गुदड़ी में लाल : उत्तर प्रदेश की लोक-कथा

Gudadi Mein Lal : Lok-Katha (Uttar Pradesh)

सिर में ऊनी टोपी, ऊनी पजामा और कोट पर सेला बांधे गद्दी ने सजी-धजी दुकान में प्रवेश किया तो दुकानदार और वहां चाय पीते ग्राहकों ने उसे अजूबे की तरह देखा। गद्दी ने सजीली दुकान और वहां बैठे लोगों पर एक नजर डाली और खाली कुर्सी पर बैठते हुए कहा, “लालाजी, एक चाय और पाव भर पकौड़े देना।”

दुकानदार उपेक्षा से अनसुना कर दूसरे ग्राहकों को निबटाता रहा। कुछ देर इन्तजार के बाद गद्दी ने पुनः कहा- “लाला जी, चाय-पकौड़े। मुझे जाना भी है।”

“देता हूं मामटी, सब्र कर जरा। इधर बीजी हूं न मैं भी।” व्यंग्य भरे स्वर में दुकानदार ने उगला।

गद्दी ने उसे साधारण नजरों से देखा फिर दुकान में सजी तमाम मिठाइयों के मूल्यों की जानकारी ली। दुकानदार ने सभी के रेट बता तो दिए, पर उपेक्षा से। फिर गद्दी के प्रति उसके भीतर की नफरत बाहर निकल ही गई। उसने चाय पीते ग्राहकों को सुनाते गद्दी से कहा

“गद्दी मामा, तुमने गर्मी में भी ऊनी कपड़े पहने हैं, क्या मिठाइयां खरीदोगे? जेब में नहीं धेला तो क्या चढ़ोगे रेला।” अब दुकानदार ने ग्राहकों के साथ जोर का ठहाका भी लगाया।

गद्दी को अबकी बार दुकानदार का व्यवहार अच्छा न लगा। उसने गम्भीरता से कहा, “लाला, दुकान में गरीब भी आता है और अमीर भी। ग्राहकों को ग्राहक समझकर उनसे सभ्य व्यवहार करने की दुकानदार से अपेक्षा की जाती है। किसी के कपड़ों को देख कर उसे आंकना सही नहीं। मुझे मालूम है अच्छी तरह कि मुझे कैसे कपड़े पहनने चाहिए। किन्तु आप जैसे दुकानदार का ग्राहक से व्यंग्य और तिरस्कार का व्यवहार कतई ठीक नहीं। …अच्छा, तुम अपनी और अपनी दुकान की कीमत बोलो, इसी समय खरीद लूंगा। बताओ, कीतनी कीमत है? मुंह मांगा दाम दूंगा।” गद्दी ने अपने कोट के भीतर से तीन छोटी थैलियां निकाली। उनमें से एक मेज पर उलट दी। मेज अशरफियों, चांदी के सिक्कों, हीरे-मोती जड़े गहनों से जगमगा गया। दो थैलियां मेज के एक किनारे बिना खोले रखी।

जगमगाते मेज को देख दुकानदार और वहां बैठे ग्राहकों के मुख खुले के खुले रह गए। अब खिसियाने और शर्मीन्दे से होकर वे गद्दी से आंखें न मिला पाए।

“ऑल आर स्टूप्डि। मरे हुए लोग।” निःश्वास भर गद्दी ने सब पर एक नजर डाली। फिर उल्टे मेज पर उल्टाए चांदी के सिक्के, अशरफियां और गहने थैली में डाले। तीनों थैलियां कोट के कोटरे में डाली और धीरे-धीरे दुकान छोड़ चला गया। दुकान में सन्नाटा पसर गया था। (साभार : प्रियंका वर्मा)

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