गरीबा सेठ की विनम्रता : लोककथा (उत्तराखंड)
Greeba Seth Ki Vinamrata : Lok-Katha (Uttarakhand)
किसी गांव में एक आदमी रहता था। उसका नाम गरीबा था। एक बार वह बीमार पड़ गया। उसे जोर की भूख लगी हुई थी। उसे रास्ते में एक घट (घराट) दिखाई दिया। उसने घट वाले से कहा, ‘‘ मै तुम्हारा अहसान जीवन भर नहीं भूलूंगा। मुझे थोड़ा सा आटा दे दो’’
‘‘मंगता (भिखारी) कहीं का। मेरा भगवाड़ी (अनाज पीसने के बदले घट वाले को दिया हुआ आटा) भिखारी के लिए नहीं है। भाग यहां से।’’ यह कहकर घट वाले ने आटा झाड़ने वाले झाड़ू से गरीबा के सिर पर मारा।
झाड़ू की मार पड़ने से गरीबा के सिर, गाल और कपड़ों पर आटा पड़ गया। गरीबा ने इस आटे को झाडा और खाने लगा। आटा खाकर उसके शरीर में थोडी जान आ गई। गरीबा घट से अपने घर की ओर वापस आने लगा। रास्ते में उसे एक महात्मा मिला। महात्मा ने उससे भिक्षा मांगी। उसके पास कुछ भी नहीं था। उसने अपने गालों और कपड़ों पर पडे आटे को हाथ से झाड़ा और महात्मा को भिक्षा के रूप में दे दिया। कुछ देर बाद गरीबा अपने घर पहुंच गया। उसने अपने सिर गाल और कपड़ो पर पड़े आटे को एक परात में झाड़ा। उसे आश्चर्य हुआ। महात्मा के आशीर्वाद से परात में रखा आटा बढ़ता ही गया। उसने आटे को थैलियों में भरना शुरू किया। उसके पास आटे की बहुत सारी थैलियां हो गई। उसने कुछ थैलियां अपने लिए रख दी, बाकी बेच दी। इससे उसने बहुत सारा धन कमा लिया। अब उसने धन को उधार देना भी शुरू कर दिया। अब वह गरीबा सेठ के नाम से जाना जाने लगा।
एक साल भयंकर सूखा पड़ा। घराटों का पानी भी सूख गया। खेतों में गेहूं की उपज भी नहीं हुई। घट वाले को खाने के लाले पड़ गए। किसी ने घट वाले को सलाह दी कि वह गरीबा सेठ से कुछ धन उधार में मांगे।
घट वाला गरीबा सेठ के पास उधार मांगने गया। उसे पता नहीं था कि गरीबा वही सेठ है मंगता कहकर उसने जिसका अपमान किया था। वह गरीबा सेठ के पास पहुंच गया। गरीबा सेठ ने घट वाले को पहचान लिया। वह घट वाले के पैर छूते हुए बोला, ‘‘तुम्हें याद है तुमने उस दिन मुझे पर घट के झाड़ू से मारा था ? झाड़ू से मारते समय जो आटा मेरे सिर, गाल तथा कपड़ों पर पड़ा। मैने उसे जमा किया। आज उसी आटे की बदौलत मै गरीबा से गरीबा सेठ बन गया।‘‘
गरीबा सेठ की विनम्रता और उदारता से घट वाला लज्जित हुआ। उसने गरीबा सेठ से क्षमा मांगी।
(साभार : डॉ. उमेश चमोला)