दादी मकड़ी : अमरीकी लोक-कथा

Grandmother Spider : American Lok-Katha

(Folktale from Native Americans, Hopi Tribe/मूल अमेरिकी, होपी जनजाति की लोककथा)

बहुत दिनों पहले की बात है जब तक भगवान ने धरती और आसमान को अलग नहीं किया था। वे दोनों बहुत पास थे। इतने पास कि आसमान करीब करीब धरती पर ही बैठा रहता था।

चिड़ियें धरती के पास उड़ा करती थीं और जानवर जो धरती पर चलते और दौड़ते थे उनको ऐसा लगता था जैसे कि वे उड़ रहे हों।

ऐसे समय में एक सुबह एक बारहसिंगा एक झील पर पानी पी रहा था कि उसने उस झील के पानी में आसमान की परछाईं देखी। उसको वह परछाईं कुछ अजीब सी लगी सो उसने सिर उठा कर ऊपर हवा में देखा।

उसने देखा कि आसमान तो चल रहा था और वह धरती से दूर उठता जा रहा था। बारहसिंगे ने सोचा — “यह क्या हो रहा है। मैं ऐसा नहीं होने दे सकता। मैं इस आसमान को यहीं रोक कर रखूँगा।”

और उसने आसमान को रोकने के लिये अपने सींग आसमान की तली में घुसा दिये और आसमान को धरती के पास रखने की अपनी भरपूर कोशिश की।

इस काम के लिये उसने और जानवरों को भी अपनी सहायता के लिये बुला लिया पर आसमान तो ऊपर उठता ही रहा और जल्दी ही वह बारहसिंगा भी आसमान के साथ साथ ऊपर उठने लगा।

जैसे ही वह ऊपर उठने लगा तो वह डर गया और डर के मारे उसने अपने सींग आसमान से खींच लिये तो वह एक ज़ोर की आवाज के साथ जमीन पर गिर पड़ा और चीख पड़ा।

एक भालू ने उसकी चीख सुनी तो वह भागा भागा वहाँ आया जहाँ वह बारहसिंगा गिरा था। वहाँ आ कर उसने देखा कि आसमान तो ऊपर उठ रहा है और बारहसिंगा नीचे गिरा पड़ा है।

उसने भी कहा — “मैं ऐसा नहीं होने दे सकता। मैं इस आसमान को यहीं रोक कर रखूँगा।”

सो वह भी ऊपर कूदा और उसने भी आसमान को नीचे लाने के लिये अपने पंजे आसमान की तली में गड़ा दिये। पर आसमान तो ऊँचा और और ऊँचा उठता ही जा रहा था।

जल्दी ही भालू भी आसमान के साथ साथ ऊपर उठने लगा। पर कुछ देर बाद डर के मारे उसने भी अपने पंजे आसमान से खींच लिये तो वह भी एक ज़ोर के धमाके के साथ जमीन पर गिर पड़ा और चीख पड़ा।

भालू की चीख सुन कर और जानवर भी वहाँ आ गये। उन्होंने भी देखा कि आसमान धरती से ऊपर उठता जा रहा है। सो वे भी ऊपर की तरफ कूदे और उन्होंने भी उसको पकड़ कर नीचे रखने की कोशिश की पर कुछ काम नहीं बना।

अब वे सब आपस में बात करने लगे कि इस बारे में क्या करना चाहिये। जब वे कुछ करने के बारे में सोच रहे थे तो एक दादी मकड़ी आयी और बोली — “मेरी समझ में एक बात आती है।”

जानवर बोले — “दादी मकड़ी, यह बहुत ही गम्भीर मामला है। यह तुम्हारे लिये बहुत बड़ा है। यहाँ तक कि बड़ा बारहसिंगा और भालू भी आसमान को नीचे नहीं खींच पाये और वे तो तुमसे बहुत ज़्यादा ताकतवर हैं।”

दादी मकड़ी बोली — “पर तुम देखना कि मेरी तरकीब जरूर काम करेगी।”

जानवर बोले — “हमारे पास ज़्यादा समय नहीं है। यह आसमान तो ऊपर उठता ही जा रहा है। जो कुछ भी करना है हमें जल्दी ही करना है।”

दादी मकड़ी भी परेशान थी पर यह सोच कर वह और भी ज़्यादा परेशान थी कि सारे जानवर परेशान थे।

अपनी तरकीब के अनुसार वह गाँव से बाहर की तरफ भागी और फिर एक पहाड़ी की तरफ चली गयी। वहाँ वह उस पहाड़ी पर चढ़ कर एक लम्बा सा धागा बुनने लगी। वह वह धागा बुनती रही, बुनती रही, बुनती रही।

फिर उसने उस धागे का एक जाला बना दिया। जब वह जाला बना चुकी तो उसने उसकी एक गेंद बना दी। फिर उस जाले की गेंद के जाले का एक सिरा एक पेड़ से बाँध दिया और वह गेंद आसमान की तरफ फेंक दी।

गेंद कुछ दूर तक तो ऊपर गयी पर फिर नीचे गिर पड़ी और खुल गयी। दादी मकड़ी आसमान नहीं पकड़ सकी। वह बेचारी दौड़ी और दौड़ कर अपना सारा जाला इकठ्ठा किया और फिर एक बार उस गेंद को आसमान की तरफ फेंका। पर वह दोबारा भी नीचे गिर गयी और गिर कर खुल गयी।

दादी मकड़ी फिर दौड़ी और फिर अपना सारा जाला इकठ्ठा किया और तीसरी बार फिर उस गेंद को आसमान की तरफ फेंका। इस बार उसकी गेंद ने आसमान का सिरा पकड़ लिया और वह आसमान में जा कर चिपक गयी।

दादी मकड़ी जितनी जल्दी उस धागे पर चढ़ सकती थी चढ़ गयी और आसमान को भी पार कर गयी। फिर उसने उस गेंद का दूसरा सिरा आसमान के ऊपर बाँध दिया और धरती पर कूद पड़ी।

जैसे ही वह आसमान से जमीन पर कूदी उसने आसमान से ही एक दूसरा जाला बुनना शुरू कर दिया और उसे वह तब तक बुनती रही जब तक वह जमीन पर नहीं आ गयी।

उसने वह धागा जमीन से चिपकाया और फिर वह पहले धागे के सहारे ऊपर चढ़ गयी। उसके सिरे को फिर आसमान से चिपकाया और फिर जाला बुनती हुई नीचे उतरी। ऐसा उसने कई बार किया।

सारा दिन और सारी रात वह यही करती रही – जमीन से आसमान तक और आसमान से जमीन तक जाला बुनती रही।

अगले दिन आसमान दादी मकड़ी के जाले को जो अभी भी धरती से चिपका हुआ था साथ लिये इतना ऊपर चला गया जितना ऊपर वह जा सकता था।

वहाँ पहुँच कर उसने आखिरी बार एक बार फिर से अपने आपको धरती से ऊपर खींचने की कोशिश की पर उससे ऊपर वह अपने आपको नहीं खींच सका।

यह देख कर जानवरों ने बात करना बन्द कर दिया और ऊपर आसमान की तरफ देखना शुरू किया तो उन्होंने देखा कि दादी मकड़ी का जाला अभी भी जमीन से चिपका हुआ है और आसमान उसके ऊपर नहीं जा पा रहा है।

यह देख कर वे सब जानवर दादी मकड़ी के पास दौड़े गये और बोले — “हमको अफसोस है दादी मकड़ी कि हमने आपकी तरकीब को पहले नहीं सुना। और इसका और भी ज़्यादा अफसोस है कि हमने आपसे यह कहा कि हमारे पास ज़्यादा समय नहीं है। आपका बहुत बहुत धन्यवाद कि आपने आसमान को धरती से ऊपर जाने से रोक लिया। क्योंकि आपने हमारे लिये यह आश्चर्यजनक काम किया है इसलिये आप और आपके बच्चे हमेशा हमेशा के लिये हमारे घरों में रह सकते हैं।"

उस दिन के बाद से मकड़े सब आदमियों और जानवरों के घरों में रहते पाये जाते हैं। चाहे सारे आदमी इतने साल पहले मकड़ी से किया गया वायदा भूल गये हों पर मकड़े मकड़ियाँ वह वायदा नहीं भूले।

आज भी अगर तुम सुबह बहुत सवेरे आसमान की तरफ देखो तो तुमको मकड़े आसमान से अपने जाले से लटकते हुए दिखायी देंगे। कुछ लोग उसको सूरज की किरन कहते हैं पर अब तुमको ज़्यादा अच्छी तरह से मालूम है कि वह क्या है।

(साभार सुषमा गुप्ता जी, जिन्होंने लोक-कथाओं पर उल्लेखनीय काम किया है)

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