ग्रामीण डॉक्टर : फ़्रेंज़ काफ़्का

मैं बड़ी असमंजस की स्थिति में था। मुझे एक आवश्यक यात्रा पर जाना था; दस मील दूर एक गाँव में गंभीर रूप से बीमार एक मरीज मेरा इंतजार कर रहा था । घने बर्फानी तूफान ने उसके और मेरे बीच के विस्तृत स्थानों को भर रखा था। मेरे पास एक टमटम था, बड़े पहियोंवाला एक हल्का टमटम, ग्रामीण लड़कों के लिए यह एकदम उपयुक्त था। रोवें में लिपटा, हाथ में औजारों का थैला लिये, मैं आँगन में खड़ा यात्रा के लिए बिल्कुल तैयार था। लेकिन वहाँ कोई घोड़ा ही नहीं था, एक भी नहीं, जो उसमें जोता जाता । मेरा अपना घोड़ा इस बर्फीली सरदी की थकावट से रात में ही मर गया था। मेरी नौकरानी घोड़ा उधार लेने के लिए गाँव में घूम रही थी। मुझे मालूम था, यह निराश थी, फिर भी मैं वहाँ निराशा से खड़ा था और मेरे ऊपर बर्फ की परत मोटी ही होती जा रही थी, जिस कारण मेरे लिए चलना कठिनतर होता जा रहा था । दरवाजे पर लड़की प्रकट हुई, वह अकेली थी, उसने लालटेन लहराया। निस्संदेह, इस समय ऐसी यात्रा के लिए कौन अपना घोड़ा उधार देगा ? एक बार फिर मैं आँगन में गुजरा। मुझे कोई रास्ता दिखाई नहीं पड़ा । भ्रमित परेशानी की स्थिति में मैंने वर्षों पुराने निर्जन बाड़े के दरवाजे पर लात मारी। यह खुल गया तथा कब्जे के सहारे इधर-उधर लहराने लगा। घोड़े की तरह की गंध बाहर आई। अंदर रस्सी के सहारे एक मद्धिम लालटेन लहरा रहा था । उस छोटी-सी जगह में अपने पुट्टे के सहारे दुबके हुए एक आदमी ने नीली खुली आँखोंवाला एक चेहरा दिखाया । " क्या मैं नाथ हूँ?" अपने चारों हाथ-पैर पर रेंगते हुए उसने पूछा। क्या जवाब दूँ, मुझे कुछ भी समझ में नहीं आया, मैं बस झुककर यह देखने लगा कि इस बाड़े में और क्या है ?, नौकरानी मेरे बगल में खड़ी थी । " आपको कभी यह पता नहीं होता कि अपने ही घर में आपको क्या मिलनेवाला है, " उसने कहा और हम दोनों ही हँस पड़े। "देखो, यहाँ, भाई, देखो यहाँ, बहन ! " साइस ने कहा और शक्तिशाली पार्श्वोवाले दो घोड़े, जिनकी टाँगें उनके शरीर से लगी हुई थीं, उनके सिर अच्छी आकृति में, ऊँट की तरह झुके थे, कूल्हे की ताकत के सहारे किसी तरह अपने शरीर को सिकोड़कर, दरवाजे के छिद्र से निकले, जो पूरी तरह भर गया था। शीघ्र ही वे खड़े हो गए; उनकी लंबी टाँगें एवं शरीर घने माप निकले। " इसकी मदद करो, ' मैंने कहा, इच्छुक लड़की तेजी से जोतने में साइस की मदद करने के लिए दौड़ी। मुश्किल से वह अभी उसके बगल में पहुँची ही थी कि साइस ने झपटकर उसे पकड़ा और अपना चेहरा उसके चेहरे के सामने झटके से किया। वह चिल्लाई और मेरे पास भागी । उसके गाल पर दाँत की दो पंक्तियों के लाल निशान पड़ गए थे। गुस्से से मैं चिल्लाया, “तुम हिंसक, 'क्या तुम्हें चाबुक की मार चाहिए? " तभी उसी क्षण यह पता चला कि वह तो एक अजनबी है। मुझे यह नहीं मालूम था कि वह कहाँ से आया, और अपनी इच्छा से ही वह मेरी मदद कर रहा था जबकि सभी ने निराश किया था। मानो उसे मरे विचारों का पहले से ही आभास था और मेरी धमकी पर भी उसे बुरा नहीं लगा, लेकिन फिर भी स्वयं को घोड़ों के साथ व्यस्त रखा हुआ था, सिर्फ एक बार वह मेरी ओर पलटा । तभी उसने कहा, “आ जाओ, " और वास्तव में सब कुछ तैयार था । मैंने देखा कि एक जोड़ा आकर्षक घोड़ा, ऐसा कि जिस पर में पहले कभी नहीं बैठा था, तैयार था । मैं खुशी-खुशी उस पर सवार हो गया । "मैं हाँकूँगा, आपको रास्ते का पता नहीं है,” मैंने कहा । "जरूर," उसने कहा, "वैसे भी मैं तुम्हारे साथ नहीं आ रहा हूँ। मैं तो रोके के साथ रुकूँगा।” ‘“नहीं,” चिल्लाते हुए वह घर के अंदर भागी, यह जानते हुए भी कि उसका भाग्य अपरिहार्य है और उसे इसका पूर्वाभास भी था। मैंने दरवाजे की जंजीर की आवाज सुनी, जैसे ही उसने उसे लगाया, मैंने ताले के भीतर चाबी के घूमने की आवाज भी सुनी; इससे भी बढ़कर मैं यह देख पा रहा था कि किस प्रकार उसने प्रवेशद्वार की बत्ती बुझाई और आगे भागने के प्रयास में तथा स्वयं का पता न चलने देने के लिए सभी कमरों की बत्ती बंद कर दी। "तुम मेरे साथ आ रहे हो, मैंने साइस से कहा, "या मैं नहीं जाऊँगा, जैसा कि मेरी यात्रा जरूरी है। मैं लड़की को तुम्हें सौंपकर इसके पैसे अदा करने का भी नहीं सोच रहा हूँ।" "दम लगाओ!" उसने कहा, तथा अपनी ताली बजाई, टमटम तेजी से घूम गया, जैसे लकड़ी का बड़ा टुकड़ा पानी में घूम जाता है। मुझे अपने घर के सिर्फ दरवाजे के फटने की आवाज सुनाई पड़ी, क्योंकि साइस इसे धक्का मार रहा था। उसके बाद मैं तूफानी बहाव के कारण बहरा और अंधा हो गया, जिसने एक-के-बाद-एक मेरी सभी इंद्रियों को बेकाम कर दिया। लेकिन यह सिर्फ कुछ क्षण के लिए ही हुआ, मुझे ऐसा लगा कि मानो मेरे मरीज के फार्म का हाता ठीक मेरे आँगन के दरवाजे के सामने खुल गया हो, मैं पहले से ही वहाँ था, खामोशी के साथ घोड़े भी रुक गए थे, बर्फीला तूफान भी थम गया था; चारों ओर चाँदनी फैली हुई थी । मेरे मरीज के माता-पिता तेजी से घर से निकलकर आए, उसकी बहन भी उनके पीछे थी। मुझे टमटम से लगभग उठा लिया गया था । उनके भ्रमित उद्बोधन से कुछ भी समझ में नहीं आ रहा था। मरीजवाले कमरे में हवा लगभग न के बराबर थी; उपेक्षित चूल्हे से धुआँ निकल रहा था। मैं खिड़की को धक्का देकर खोलना चाहता था । लेकिन सबसे पहले तो मुझे अपने मरीज को देखना था । दुबला- पतला, बिना बुखार, जुकाम, गरमी के, खाली नजरों से, बिना कमीज के, वह पंखदार बिछावन से खुद जोर लगाकर उठा, अपनी बाँहों को मेरे गले में डाल दिया और मेरे कान में फुसफुसाया, "डॉक्टर, मुझे मरने दो।" मैंने कमरे में चारों ओर नजर दौड़ाई, किसी ने भी यह बात नहीं सुनी थी। माता-पिता खामोशी से आगे की ओर झुके मेरे कुछ कहने का इंतजार कर रहे थे। बहन ने मेरे छोटे थैले को रखने के लिए वहाँ एक कुरसी रख दी थी। मैंने थैला खोला और अपने औजारों से ढूँढ़ना शुरू किया। लड़का अपने बिछावन पर से ही मुझे पकड़े हुए था तथा अपनी प्रार्थना याद दिलाना चाह रहा था । मैंने अपनी चिमटी उठाई, उसे मोमबत्ती के प्रकाश में देखा और उन्हें वापिस रख दिया। ‘“हाँ” मैंने निंदात्मक ढंग से सोचा, "उस तरह के मामलों में ईश्वर मददगार होते हैं, खोए हुए घोड़े को भेजते हैं, आवश्यक होने के कारण उसे दूसरे में जोड़ते हैं तथा सभी कुछ व्यवस्थित करने के लिए साइस भी भेज देते हैं।'' और अब मुझे एक बार फिर रोज की याद आ रही थी । मैं क्या कर सकता था, मैं कैसे उसे बचा सकता था, मैं किस प्रकार उस साइस के पास से उसे निकालकर दस मील दूर ला सकता था, वह भी घोड़ों के ऐसे दल के साथ, जिन्हें मैं नियंत्रित भी नहीं कर सकता। अब इन घोड़ों किसी तरह जीन भी ढीला कर लिया है, बाहर से ही ढकेलकर खिड़की खोल दी है, मुझे नहीं मालूम यह सब कैसे हुआ? प्रत्येक घोड़े ने अपना सिर खिड़की पर मारा है तथा परिवार के अचंभित शोर से अविचलित चुपचाप खड़े होकर मरीज को देख रहे हैं। मैंने सोचा, "इससे तो अच्छा कि तुरंत वापस चला जाऊँ, " मानो घोड़े मुझे वापिस जाने का आग्रह कर रहे हों । फिर भी मैंने मरीज की बहन को यह अनुमति दी कि वह मुझसे मेरा रोवेंदार कोट ले ले, क्योंकि उसने शायद यह कल्पना कर ली थी कि मैं उसकी गरमी से परेशान हो रहा हूँ । मेरे लिए एक गिलास रम तैयार किया गया । बूढ़े व्यक्ति ने मेरे कंधे पर थपकी मारी, एक परिचितपन का एहसास जो रम की इस पेशकश के अनुकूल था । मैंने अपना सिर हिलाया। बुजुर्ग व्यक्ति की सोचों की परिधि में घिरकर मैं बीमार महसूस करने लगा । यही एकमात्र कारण था, जिसकी वजह से मैंने रम पीने से मना कर दिया । माँ बिस्तर के बगल में खड़ी मुझे यह पीने के लिए फुसला रही थी। मैं मान गया और एक घोड़ा छत की ओर देखकर जोर से हिनहिनाया, मैंने अपना सिर लड़के के सीने पर रख दिया, जो मेरी भीगी दाढ़ी की वजह से काँपने लगा । जो मैं पहले से ही जानता था, मैंने उसकी पुष्टि कर दी। लड़का अब काफी बेहतर था। परिसंचरण में कुछ प्रॉब्लम थी, जो उसकी परेशान माँ द्वारा दी गई कॉफी के कारण बढ़ गई थी। लेकिन वह अब ठीक था तथा एक ही झटके से बिस्तर से उठ बैठा । मैं कोई विश्व सुधारक नहीं हूँ, इसलिए मैंने उसे झूठ बोलने दिया। मैं जिला चिकित्सक था और मैंने अपना परम कार्य किया, उस बिंदु तक जब यह लगभग अति बन गया। मुझे बहुत कम पैसे मिलते, फिर भी मैं गरीबों के प्रति काफी उदार एवं मददगार था । अभी मुझे यह देखना था कि रोज ठीक तो है न फिर हो सकता है लड़का अपने ढंग से काम करे तथा मैं भी करना चाहता था। मैं अंतहीन सरदी में वहाँ क्या कर रहा था । मेरा घोड़ा मर चुका था और गाँव का कोई भी व्यक्ति मुझे घोड़ा उधार नहीं देगा। मुझे उस बाड़े से अपने दल को बाहर निकालना था, यदि उन्होंने घोड़े को दाँव पर नहीं लगाया हो तो वह न तो मुझे सुअर पर सवारी करनी पड़ सकती है। यह तो ऐसा ही था। तभी मैंने परिवार से सहमति प्रकट की। उन्हें इस बारे में कुछ भी मालूम नहीं था, यदि उन्हें यह सब कुछ पता होता तो वे कभी भी इस पर विश्वास नहीं करते। नुस्खे लिखना तो आसान होता है, लेकिन लोगों को समझना मुश्किल होता है । ठीक है, अब यह मेरी यात्रा का अंत होना चाहिए। एक बार फिर मुझे बिना जरूरत बुलाया गया था। मुझे तो इसकी आदत थी, पूरे जिले के लोगों ने मेरी रात की घंटी से मेरा जीवन परेशान कर रखा था, लेकिन मुझे इस समय रोज को भी छोड़ना चाहिए, छोटी लड़की जो वर्षों से मेरे घर में रहती आई थी इसके बावजूद भी कि मैंने कभी उसकी ओर कोई ध्यान ही नहीं दिया था। यह इतना बड़ा त्याग था कि इस बारे में कुछ पूछा नहीं जा सकता था । मुझे किसी भी तरह इस विषय पर विश्लेषण करना था, ताकि उसे वापिस इस परिवार में न जाना पड़े, जो कि मुझे रोज को फिर वापिस नहीं देनेवाली थी। लेकिन जैसे ही मैंने अपना थैला बंद किया और अपना रोवेंदार कोट एक हाथ में पहना ही था कि पूरा परिवार एक साथ खड़ा था, पिता हाथ में रम का गिलास लिये सूँघ रहा था, माँ प्रकटतः मुझसे निराश खड़ी थी, लोग क्यों, क्या अपेक्षा करते हैं? वह आँखों में आँसू लिये अपने होंठ काट रही थी, बहन खून से सना तौलिया लहरा रही थी, मैं किसी भी तरह सशर्त यह मानने के लिए तैयार था कि हो सकता है कि लड़का फिर बीमार पड़ जाए। मैं उसकी तरफ गया। उसने मुसकराते हुए मेरा स्वागत किया, मानो मैं उसके लिए सबसे पौष्टिक, दुर्बल शोरबा ला रहा हूँ...आह, अब तो दोनों घोड़े एक साथ हिनहिना रहे थे । यह शोर, मैं मानता हूँ कि स्वर्ग द्वारा निर्देशित था, जो मेरे द्वारा इस मरीज की जाँच में मदद आने के लिए था और इस समय मुझे पता चला कि वह बच्चा वास्तव में बीमार था। उसकी दाईं ओर नितंब पर मेरी हथेली के आकार का खुला घाव था, जो गुलाब की तरह लाल था, जिसमें अनेक रंग थे, गहराई में गहरा, किनारे पर हल्का, हल्का दानेदार, जिसमें खून के अनियमित थक्के होते हैं, इस तरह खुला मानो दिन की रोशनी में धरातल का खाना, दूर से वह ऐसा ही दिखता था । लेकिन निकट से जाँच करने पर कुछ और जटिलताएँ दिखीं। मैं सीटी की धीमी आवाज के रूप में अपना आश्चर्य व्यक्त करने से नहीं रोक सका । मेरी कनिष्ठ उँगली के जितने लंबे और मोटे कीड़े, देखने में गुलाब की तरह लाल तथा शरीर पर रक्त के धब्बे, जिनके सिर छोटे और कई टाँगें थीं, घाव के भीतर कुलबुला रहे थे। बेचारा लड़का, मदद से परे ! मैंने तुम्हारा बड़ा घाव देख लिया है; तुम्हारे पार्श्व में यह घाव तुम्हें बरबाद कर रहा है । परिवार खुश था; उन्होंने मुझे स्वयं में व्यस्त देखा। बहन ने माँ को कहा, माँ ने पिता को कहा, पिता ने आनेवाले मेहमानों को बताया, जो चाँदनी में खुले दरवाजे से अपने पैर के अँगूठे के सहारे चलते हुए तथा अपनी बाजुएँ फैलाकर अपना संतुलन बनाते अंदर आ रहे थे। "क्या आप मुझे बचा लेंगे?" सिसकते हुए बच्चे ने मुझसे पूछा, जिसके घाव के भीतर के जीवन के बारे में कुछ भी मालूम नहीं था। मेरे जिले में इसी तरह के लोग हैं, डॉक्टर से हमेशा असंभव की अपेक्षा करनेवाले । उनका प्राचीन विश्वास खो गया है। पादरी घर पर बैठता है, एक-एक करके अपने पूजा परिधान उतारता जाता है, लेकिन डॉक्टर से अपने दयालु शल्य चिकित्सक के हाथ के साथ सर्वशक्तिमान होने की अपेक्षा की जाती है। ठीक है, इससे उन्हें खुशी मिलती है; मैंने भी उन्हें अपनी सेवा की पेशकश नहीं की है। यदि पवित्र कारणों से वे मेरा दुरुपयोग करते हैं, तो वह मैं अपने साथ होने दूँगा । और अच्छा मैं क्या चाहता हूँ, पुराना ग्रामीण डॉक्टर जो मैं हूँ। अपनी नौकरानी से वंचित। इसलिए वे सभी आए, परिवार तथा गाँव के बुजुर्ग और मेरे कपड़े उतार दिए। स्कूल की गायक मंडली शिक्षक का इसके प्रमुख के रूप में घर के सामने खड़ी थी और इन शब्दों को बिल्कुल ही साधारण धुन में गाने लगी—

“इसके कपड़े उतारो, तभी यह हमारा इलाज करेगा,
यदि वह ऐसा नहीं करे तो इसे मार डालो।
केवल एक डॉक्टर, केवल एक डॉक्टर । "

तब मेरे कपड़े उतार दिए गए और मैं लोगों को चुपचाप देख रहा था । उँगली को दाढ़ी में डाले और अपने सिर को एक ओर झुकाए। मैं लगभग व्यवस्थित था और स्थिति के बिल्कुल अनुकूल और वैसे ही रहा, यद्यपि इससे मुझे कोई मदद नहीं मिल रही थी, क्योंकि वे लोग मुझे मेरे सिर और पैर से पकड़कर बिस्तर के पास ले गए। घाव की ओर दीवार के साथ ही उन लोगों ने मुझे वहाँ लिटा दिया, उसके बाद सभी लोग कमरे के बाहर चले गए और दरवाजा बंद कर दिया। गाना बजना रुक गया । चाँद बादलों से ढक गया, मेरे चारों ओर का बिस्तर गरम था। खुली खिड़की से घोड़ों के सिर परछाई की तरह हिल रहे थे । " क्या आप जानते हैं? " मेरे कान में एक आवाज आई, "मुझे आप में बहुत कम विश्वास है। आपको ही यहाँ क्यों लाया गया है, आप खुद से अपने कदमों पर चलकर तो यहाँ नहीं आए। मुझे मदद करने की बजाय आप मृत्यु- शय्या पर मुझे जकड़ रहे हैं। सबसे सही काम जो मैं करूँगा, आपकी आँखों को नोच लूँगा, " "ठीक है, " मैंने कहा, "यह शर्म की बात है और फिर भी मैं डॉक्टर हूँ। मैं क्या करूँ? मेरा विश्वास करो, यह मेरे लिए इतना आसान नहीं है । " 'क्या मुझे इस क्षमायाचना से संतुष्ट हो जाना चाहिए। ओह मुझे जरूर होना चाहिए। मैं इसमें कोई मदद नहीं कर सकता। मुझे हमेशा चीजें बरदाश्त करनी पड़ती हैं। एक घाव ही तो मैं इस दुनिया में लाया, यही मेरी एकमात्र वृत्ति है ।" "मेरे युवा मित्र," मैंने कहा, “आपकी गलती है; आपका दृष्टिकोण व्यापक नहीं है और मैं हमेशा ही बीमारों के कमरे में रहा हूँ मैं आपको बता दूँ आपका घाव इतना बुरा नहीं है । "

सँकरे कोने में कुल्हाड़ी के दो प्रहार किए गए। कई तो उसकी ओर का प्रस्ताव देते हैं और जंगल में कुल्हाड़ी की आवाज शायद ही सुन पाते हैं, उसके निकट आते हुए से भी बहुत कम । " क्या वास्तव में ऐसा है या क्या आप मुझे बुखार में भ्रम में डाल रहे हैं? यह वास्तव में ऐसा ही है। किसी सरकारी डॉक्टर के सम्मान के इस शब्द पर विश्वास करो।'' उसने मान लिया और बेसुध लेट गया लेकिन मेरे लिए यह सोचने का समय था कि मैं कैसे भागूँ । घोड़े सभी अपने स्थान पर वफादारी के साथ खड़े थे। मैंने अपने कपड़े, रोवेंदार कोट और थैले तेजी से इकट्ठे किए। मैं तैयार होने में समय बरबाद करना नहीं चाहता था, यदि घोड़े उसी तरह भागते हुए जाते, जिस प्रकार वे आए थे, तो मुझे उसके बिछावन से उछलकर तैयार हो जाना चाहिए । आज्ञाकारितापूर्वक घोड़े खिड़की के पास से हट गए। मैंने अपना बंडल टमटम पर फेंका, रोवेंदार कोट बाजू से खूँटी पर अटक गया । सब ठीक था । मैं उछलकर घोड़े पर सवार हो गया । ढीले-ढाले लटकते जीन के कारण एक घोड़ा दूसरे से शायद ही बँध पाया था और पीछे टमटम घूम रहा था । मेरा रोवेंदार कोट अंत में बर्फ में पड़ा था । " दम लगाओ!" मैंने कहा, लेकिन वहाँ तो हलचल ही नहीं हुई। धीरे-धीरे बूढ़े व्यक्ति की तरह हम बर्फीले अवशेषों पर रेंगने लगे। हमें पीछे से नए लेकिन बच्चों के अशुद्ध गीत की आवाज आई।

"ओ, सभी मरीज, खुश हो जाओ,
डॉक्टर बिस्तर पर तुम्हारे बगल में पड़ा है । "

इस रफ्तार से तो मैं अभी भी घर नहीं पहुँच पाऊँगा; मेरा फलता-फूलता काम बरबाद हो गया, मेरे उत्तराधिकारी मुझे लूट रहे थे, लेकिन बेकार, वह मेरी जगह नहीं ले सकता। मेरे घर पर वह घृणास्पद साइस उत्पाद मचा रहा था; रोज उसका शिकार है । मैं इस बारे में और अधिक नहीं सोचना चाहता । नंगा, सर्दियों के इस सबसे अप्रिय ठंड में अनाश्रित, पार्थिव गाड़ी, अपार्थिव घोड़े, मैं एक बूढ़ा आदमी आवारा भटक रहा था । मेरा रोवेंदार कोट टमटम के पीछे लटक रहा था, लेकिन मैं इस तक पहुँच नहीं पा रहा था और मेरे फुरतीले मरीजों के समूह में कोई भी एक उँगली नहीं उठा पाता। धोखा खा गया! धोखा खा गया! रात की घंटी पर झूठे अलॉर्म ने एक बार उत्तर दिया, यह सही नहीं किया जा सकता, कभी नहीं ।

(अनुवाद: अरुण चंद्र)

  • मुख्य पृष्ठ : फ़्रेंज़ काफ़्का की कहानियाँ हिन्दी में
  • जर्मनी की कहानियां और लोक कथाएं
  • भारतीय भाषाओं तथा विदेशी भाषाओं की लोक कथाएं
  • मुख्य पृष्ठ : संपूर्ण हिंदी कहानियां, नाटक, उपन्यास और अन्य गद्य कृतियां