गोत्रों का जन्म : आदिवासी लोक-कथा
Gotron Ka Janm : Adivasi Lok-Katha
उस समय सहरिया जंगल के राजा हुआ करते थे। इसीलिए गोंडों से उनकी शत्रुता चलती रहती थी। सहरिया निडर तो थे ही साथ ही वे जादू, टोना, तंत्र, मंत्र और जड़ी-बूटी का भी ज्ञान रखते थे।
एक बार एक सहरिया राजकुमार का प्रेम एक गोंड राजकुमारी से हो गया। गोंड राजा को जब इस बात का पता चला तो उसने सोचा कि यदि वह विरोध करेगा तो सहारिया उसके राज्य पर आक्रमण कर देंगे और उसे हरा देंगे। अतः उसने सहरियाओं से शत्रुता प्रकट करने के बदले अपनी बेटी का विवाह सहरिया राजकुमार के साथ करने की अनुमति दे दी। लेकिन इसमें भी गोंड राजा की चाल थी। उसने संबंधी बनकर छल-कपट से सहरियाओं से बदला लेने की मन में ठान रखी थी। राजकुमारी को अपने पिता के इस विचार की भनक भी नहीं थी।
वह तो राजकुमार को पति के रूप में पाने के बारे में विचार करके निहाल थी। निश्चित तिथि को सैन्यबल सहित सहरिया राजकुमार की बारात गोंड राजा के राज्य में पहुँची। बारात का भरपूर स्वागत किया गया। राजकुमार और राजकुमारी का लग्न सम्पन्न हुआ जिसके बाद बारातियों को भोज दिया गया। गोंड राजा ने पूर्वयोजना के अनुसार भोज के खाद्यपदार्थों में विष मिलवा दिया था। अतः भोजन करते ही बाराती मरने लगे। उस पर गोंड राजा के सिपाहियों ने उन पर अपने हथियारों से आक्रमण कर दिया। बारात में आए सहारियाओं में से जो भाग सके वो अपनी जान बचा कर भागे। वे भाग कर जंगल में पहुँचे। गोंड सैनिक उन्हें मारने के लिए उनके पीछे लगे हुए थे।
जंगल में पहुँचकर जिस सहरिया को जहाँ जगह मिली वहाँ उसने शरण ली। इस प्रकार वे पेड़ों, पत्तों, नदी, तालाबों, पहाड़ों, पत्थरों आदि में जा छिपे। इस प्रकार उन्होंने अपने प्राण बचाए। जिस सहरिया ने जिस आश्रय में छिपकर अपने प्राण बचाए थे वे उसी की पूजा करने लगे तथा उसी के आधार पर उन्होंने गोत्र धारण किया। अतः ऊमर के पेड़ में छिपने वाले उमरिया, परोद के पौधे की आड़ में छिपने वाले परोदिया, वट वृक्ष में छिपने वाले बरोटिया, सालई के पेड़ में शरण लेने वाले सोलकिया, डांग (घनी झाड़ियाँ या जंगल) में छिपने वाले डांगिया, नदी-नाले पार करके बचने वाले पैरूवा, मैदान में भागने वाले छुवान तथा पत्थरों के पीछे छिपने वाले सेलिया कहलाए। इसी प्रकार सहरियों में अनेक गोत्रों का जन्म हुआ।
(साभार : भारत के आदिवासी क्षेत्रों की लोककथाएं, संपादक : शरद सिंह)