गौरैया युगल : असमिया लोक-कथा

Goraiya Yugal : Lok-Katha (Assam)

एक समय की बात है। असम के एक छोटे से गाँव में दो भाई रहते थे। वे दोनों भाई ही किसान थे और उनके पास खेत का एक टुकड़ा था, जिस पर वे धान उगाते थे। एक साल उनके खेत में धान के पौधों के बीच एक गौरैया युगल ने अपना घोंसला बना लिया। कुछ समय बाद मादा गौरैया ने दो अंडे दिए और उनके फूटने का उत्सुकता से इंतजार करने लगी। अंडों को गरम रखने के लिए मादा गौरैया और नर गौरैया बारी-बारी से घोंसले में बैठते। जल्दी ही उनके अंडों में से दो नन्हीं गौरैया निकल आईं। नर और मादा गौरैया, दोनों की खुशी का ठिकाना न रहा। वे प्यार से अपने बच्चों का लालन-पालन करने लगे। धीरे-धीरे उनके बच्चे बड़े होने लगे।

इस बीच धान की फसल खड़ी हो गई। रोज दोनों भाई खेत पर आते और पौधों में पानी डालते। धान अच्छे से उग सकें, इसके लिए वे आसपास से झाड़-झंखाड़ को भी हटाते रहते। जल्दी धान की फसल कटने के लिए तैयार हो गई। यह देख मादा गौरैया ने नर गौरैया से कहा, “जल्दी ही चावल के लिए धान को काट लिया जाएगा। इससे हमारा घोंसला नष्ट हो जाएगा। अभी तो हमारे बच्चे उड़ने लायक भी नहीं हुए हैं। अब हम क्या करेंगे?”

नर गौरैया बोला, “परेशान मत हो। अभी धान की कुछ फसल पूरी तरह से तैयार नहीं हुई है। उसमें कुछ और वक्त लगेगा। हम अगले हफ्ते से ही अपने बच्चों को उड़ना सिखाना शुरू कर देंगे।”

जल्दी ही वे अपने बच्चों को उड़ना सिखाने लगे। रोज वे उन्हें उड़ने के लिए कहते, पर बच्चे तो अभी बहुत छोटे थे। यहाँ तक कि उनके पंख भी पूरी तरह से नहीं उगे थे। फिर एक दिन उन्होंने दोनों भाइयों को बात करते सुना। “यह फसल अब कटने के लिए तैयार हो गई है,” छोटे भाई बड़े भाई से कह रहा था।

बड़ा भाई बोला, “तुम ठीक कह रहे हो, हमें जल्दी ही कटाई शुरू कर देनी चाहिए, लेकिन यह बहुत ही बड़ा खेत है और हम अकेले यह काम नहीं कर सकते हैं।”

छोटा भाई बोला, “हाँ, मैं भी यही सोच रहा था। चलो, चलकर इस बारे में गाँव की परिषद् से बात करते हैं। अगर सारे गाँववाले हमारी मदद करते हैं तो हम एक ही दिन में फसल की कटाई कर सकेंगे।”

बड़ा भाई यह सुन खुश हो उठा और बोला, “बहुत बढ़िया विचार है। मैं कल ही परिषद् से बात करता हूँ और इतवार को हम कटाई कर लेंगे।”

यह सुन मादा गौरैया रोने लगी। रोते-रोते बोली, “हमारे बच्चे तो अभी उड़ भी नहीं सकते। अब हम सब मारे जाएँगे।”

नर गौरैया मुसकराता हुआ बोला, “चिंता मत करो। मैं तुम्हें यकीन दिलाता हूँ कि इतवार तक वे फसल नहीं काटेंगे।”

मादा यह सुन शांत तो हो गई, पर वे बच्चों को लगातार उड़ना सिखाते रहे। इतवार की सुबह मादा इतनी परेशान थी कि वह न तो खा पा रही थी और न ही वह रात को सोई थी, पर नर गौरैया एकदम आश्वस्त था। आश्चर्य की बात तो यह थी कि इतवार आकर खत्म भी हो गया और उस दिन न तो दोनों भाई आए और न ही गाँववाले।

सोमवार को दोनों भाई फिर से खेत पर पहुँचे। बड़े भाई ने छोटे भाई से शिकायत की, “गाँववाले इतने आलसी हैं कि कोई भी इतवार को यहाँ नहीं आया।”

छोटे भाई ने मायूसी से कहा, “मुझे तो अब चिंता हो रही है। अगर फसल को नहीं काटा गया तो यह बरबाद हो जाएगी।”

बड़ा भाई बोला, “मैं ऐसा करता हूँ कि कल अपने पड़ोसियों से मदद करने को कहता हूँ और फिर अगले इतवार तक हम इस फसल को उनकी मदद से काट लेंगे।” बड़े भाई ने सुझाव दिया।

छोटा भाई बोला, “हाँ, इस तरह हम दो दिनों में फसल काट लेंगे।”

यही सोच दोनों घर वापस चले गए।

मादा गौरैया अभी भी चिंतित थी, क्योंकि उनके बच्चे अभी उड़ने के काबिल नहीं हुए थे। पर नर गौरैया बोला, “परेशान मत हो। वे अगले इतवार भी फसल को काट नहीं पाएँगे।” इस बार मादा ने नर गौरैया पर विश्वास कर लिया और ठीक ऐसा ही हुआ। अगले इतवार न तो दोनों भाई आए और न ही उनके पड़ोसी।

सोमवार को जब दोनों भाई वहाँ आए तो छोटा भाई गुस्से से बोला, “हमारे पड़ोसी कितने बेकार हैं? कोई भी इतवार को नहीं आया।”

बड़ा भाई उसे समझाते हुए बोला, “इस बार हम अपने रिश्तेदारों से मदद माँगेंगे। आखिर खून पानी से कहीं ज्यादा गाढ़ा होता है। वे जरूर हमारी सहायता करेंगे।”

छोटा भाई कुछ सोचते हुए बोला, “ठीक है, हम अगले इतवार को फसल काटना शुरू करेंगे और तीन दिनों में पूरी फसल काट लेंगे।”

यह बातचीत सुन मादा गौरैया ने नर गौरैया को देखते हुए कहा, “अब तो हमारे बचने की कोई संभावना ही नहीं है।”

नर बोला, “अब हमारे बच्चे थोड़ा सा उड़ सकते हैं, इसलिए अगर हम पूरी रात कुछ दूरी तक उड़ सकें तो हम यहाँ से निकल सकते हैं, पर मुझे नहीं लगता कि वे इस इतवार भी फसल काटेंगे। देखो, क्या होता है?” वह मुसकराते हुए बोला। और एक बार फिर से वह सही साबित हुआ। इतवार आकर चला गया। न ही दोनों भाई आए और न ही उनके रिश्तेदार।

अगली सुबह जब दोनों भाई खेत पर आए तो बहुत ही परेशान व हताश थे। बहुत देर तक वे एकदम शांत खड़े रहे। फिर बड़ा भाई बोला, “भाई, हम इस तरह तो धान को नष्ट नहीं होने दे सकते हैं। हम कल आकर खुद ही इसे काटने का काम शुरू कर देते हैं।”

छोटा भाई उससे सहमत होता हुआ बोला, “हाँ, यही ठीक रहेगा। हमें फसल काटने में छह दिन लगेंगे, पर कम-से-कम इस बार फसल कट तो जाएगी।”

नर गौरैया उनकी बात सुनने के बाद मादा से बोला, “आज रात ही हमें यहाँ से जाना होगा।”

मादा गौरैया बोली, “हो सकता है, वे कल भी फसल को न काटें। आखिरकार वे तो कब से इस काम को टालते आ रहे हैं।”

नर गौरैया बोला, “अब तक वे अपने काम के लिए दूसरों पर निर्भर थे, इसीलिए उनका काम पूरा नहीं हो पा रहा था। पर अब उन्होंने इसे खुद करने का निश्चय किया है। अब तो काम पूरा हो ही जाएगा।”

उस रात गौरैया युगल अपने बच्चों के साथ वहाँ से उड़ गया। और अगली सुबह दोनों भाइयों ने फसल काटनी शुरू कर दी।

(साभार : सुमन वाजपेयी)

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