गोल्डीलॉक्स और तीन भालू : ब्रिटिश परी कहानी
Goldilocks And The Three Bears : British Fairy Tale
बहुत समय पहले की बात है। जंगल के पास स्थित एक गाँव में ‘गोल्डीलॉक्स’ नाम की एक नन्हीं बच्ची अपनी माँ के साथ रहती थी। उसके बाल सुनहरे थे और उसमें कई लटें थे। इसलिए सब उसे ‘गोल्डीलॉक्स’ बुलाते थे।
गोल्डीलॉक्स बहुत नटखट और शैतान थी। कभी अपनी माँ का कहा नहीं मानती थी। एक दिन वह अपनी माँ को बिना बताये घूमने के लिए जंगल चली गई।
उस जंगल के बीचों-बीच एक घर था, जिसमें तीन भालू रहते थे – बड़ा भालू, मंझला भालू और छोटा भालू।
उस दिन तीनों ने लिए नाश्ता बनाया और अपनी-अपनी कटोरी में निकालकर टेबल पर रख दिया। नाश्ता बहुत गर्म था। इसलिए वे उसे ठंडा होने के लिए छोड़कर जंगल में टहलने चले गए।
वे तीनों जैसे ही अपने घर से निकले, गोल्डीलॉक्स उनके घर पहुँच गई। उसने उनके घर का दरवाज़ा खटखटाया। लेकिन घर पर कोई था ही नहीं। इसलिए किसी ने दरवाज़ा नहीं खोला। कुछ देर वह दरवाज़े पर ही खड़ी रही। फ़िर दरवाज़े को धक्का देकर देखा। दरवाज़ा खुल गया, तो वो अंदर चली गई।
अंदर जाकर उसने देखा कि एक टेबल पर तीन कटोरियों में नाश्ता रखा हुआ है। सबसे पहले उसने सबसे बड़ी कटोरी का नाश्ता चखा। वह बहुत गर्म था। इसलिए उसने उसे नहीं खाया। फ़िर उसने मध्यम आकार की कटोरी का नाश्ता चखा, वह बहुत ठंडा था। इसलिए उसने वह नाश्ता भी नहीं खाया। अंत में उसने सबसे छोटी कटोरी का नाश्ता चखा, वह न ज्यादा गर्म था, न ज्यादा ठंडा। गोल्डीलॉक्स ने झटपट उस कटोरी का पूरा नाश्ता खा लिया।
वह थकी हुई थी। पास ही उसे तीन कुर्सियाँ दिखाई पड़ी। उसने कुछ देर कुर्सी पर बैठकर आराम करने का मन बनाया। सबसे पहले वह बड़ी कुर्सी पर बैठी। वह कुर्सी बहुत बड़ी और सख्त थी। इसलिए तुरंत उठकर वो दूसरी कुर्सी पर बैठ गई। वह कुर्सी पहली कुर्सी से थोड़ी छोटी थी और बहुत नरम थी। इसलिए वह उस पर भी नहीं बैठी। सबसे छोटी कुर्सी ठीक थी, न ज्यादा सख्त, न ही ज्यादा नरम। वह उस पर बैठ गई। लेकिन वो कुर्सी उसका भार नहीं सह पाई और टूट गई।
तब गोल्डीलॉक्स सीढ़ियाँ चढ़कर ऊपर चली गई। वहाँ एक कमरे में तीन पलंग लगे हुए थे : सबसे बड़ा पलंग, मध्यम आकार का पलंग और सबसे छोटा पलंग।
वह थकी हुई थी और नाश्ता करने के बाद उसे नींद भी आ रही थी। इसलिए वह सबसे बड़े पलंग पर लेट गई। लेकिन वह पलंग उसके लिए बहुत बड़ा और सख्त था। वह उठ गई और मध्यम आकार के पलंग पर लेट गई। वह पलंग बहुत नरम था। इसलिए वह सबसे छोटे पलंग पर लेट गई। वह ना तो ज्यादा सख्त था, ना ही ज्यादा नरम। वह पलंग आरामदायक था। इसलिए उस पर गोल्डीलॉक्स को तुरंत नींद आ गई।
वह सो ही रही थी कि तीनों भालू जंगल से लौट आये। उन्होंने देखा कि उसने घर का दरवाज़ा खुला हुआ है। जैसे ही उन्होंने अंदर कदम रखा, तो बड़ा भालू चिल्लाया, “अरे मेरी कुर्सी पर कोई बैठा था।”
मंझला भालू चीखा, “मेरी कुर्सी पर भी कोई बैठा था।”
छोटा भालू उदास होकर बोला, “मेरी कुर्सी पर भी कोई बैठा था और उसने मेरी कुर्सी तोड़ दी।”
जब वे नाश्ता करने टेबल के पास आये, तो बड़ा भालू चिल्लाया, “अरे कोई मेरा नाश्ता खा रहा था।”
मंझला भालू बोला, “मेरा नाश्ता भी कोई खा रहा था।”
छोटा भालू रोते हुए बोला, “किसी ने मेरा पूरा नाश्ता खा लिया।”
उसके बाद वे तीनों ऊपर गए। वहाँ अपने कमरे में पहुँचकर बड़ा भालू गुर्राया, “कोई मेरे पलंग पर सोया था।”
मंझला भालू भी बोला, “मेरे पलंग पर भी कोई सोया था।”
छोटा भालू ज़ोर से चीखा, “मेरे पलंग पर कोई सो रहा है।”
आवाज़ सुनकर गोल्डीलॉक्स की नींद टूट गई। उसने आँखें खोली, तो अपने सामने तीन भालुओं को देखा। वह डर के मारे ज़ोर से चीखी और खिड़की से बाहर कूद गई। नीचे घास का ढेर पड़ा था, वह उस पर गिरी।
तब तक तीनों भालू भी नीचे पहुँच गए थे। गोल्डीलॉक्स उन्हें देखकर फ़िर से चीखी और जंगल की ओर भागने लगी।
तीनों भालू उसका पीछा करने लगे। गोल्डीलॉक्स भागते-भागते थक गई। उसे लगने लगा कि आज उसके मौत तय है। लेकिन तभी उसकी माँ उसे खोजते हुए वहाँ आई। जलती हुई लकड़ी से डराकर उसने तीनों भालुओं को भगा दिया और गोल्डीलॉक्स को सही-सलामत घर ले आई।
घर पहुँचकर गोल्डीलॉक्स ने अपनी माँ को वचन दिया कि वह एक अच्छी बच्ची बनेगी। हमेशा अपनी माँ का कहा मानेगी और कभी बिना पूछे किसी के घर में नहीं जायेगी।