गिलहरी और शेर : अफ्रीकी लोक-कथा
Gilehri Aur Sher : African Folk Tale
एक बार जंगल के जानवरों ने देखा कि शेर उनमें से बहुत से जानवरों को खा गया है और उनके जानवर कम होते जा रहे हैं।
यह देख कर उन्होंने आपस में एक मीटिंग बुलायी और कहा — “देखो भाइयो अगर हम लोग ज़िन्दा रहना चाहते हैं तो हमें अपने बचाव की कोई न कोई तरकीब जरूर सोचनी होगी नहीं तो यह शेर एक दिन हम सबको खा जायेगा। ”
एक जानवर बोला — “अगर हम शेर जी को एक जानवर रोज भेज दिया करें तो शायद शेर जी के जानवरों के मारने में कुछ कमी हो जाये। ”
ऐसा सोच कर इस मीटिंग के बाद वे सब मिल कर शेर के पास गये। उन्होंने शेर से कहा — “हे जंगल के राजा, हम सब आपसे एक प्रार्थना करने आये हैं। वह यह कि अगर हममें से एक जानवर आपके खाने के लिए रोज सुबह आपके पास आ जाया करे तो बाकी जानवरों को आप छोड़ दें। ”
शेर को उनकी यह प्रार्थना पसन्द आयी वह बोला — “ठीक है, मैं ऐसा ही करूँगा। ”
शेर को उनकी यह प्रार्थना इसलिये भी पसन्द आयी क्योंकि इस तरह उसको तो घर बैठे खाना मिल रहा था और जानवर इसलिये खुश थे कि शेर अब बहुत सारे जानवरों को एक साथ नहीं खायेगा।
सभी जानवर खुशी खुशी अपने अपने घरों को वापस लौट गये और आ कर रोज एक परची निकालने लगे। अब परची से जिस जानवर का भी नाम निकलता उसको शेर के पास सुबह होते ही भेज दिया जाता।
पहली बार भैंसे का नाम निकला सो उसको पकड़ कर शेर के पास भेज दिया गया। दूसरे दिन बारहसिंगे की बारी आयी तो उसको भी पकड़ कर शेर के पास भेज दिया गया।
इस तरह जानवर रोज परची निकालने लगे और शेर को अब रोज घर बैठे ही खाना मिलने लगा। अब उसको शिकार के लिए बाहर नहीं निकलना पड़ता था। शेर भी खुश था और जानवर भी खुश थे।
लेकिन एक दिन यह परची गिलहरी के नाम निकली। जानवरों ने उसे पकड़ा और उसको शेर के पास ले जाने लगे तो गिलहरी बोली — “आप लोग मुझे छोड़ दें मैं अपने आप ही शेर के पास चली जाऊँगी। ”
जानवर मान गये और उन्होंने उसको छोड़ दिया। गिलहरी अपने घर चली गयी और अगले दिन दोपहर तक सोती रही।
उधर शेर को बहुत तेज़ भूख लगी थी। वह परेशान सा झाड़ियों के आस पास घूमता रहा और खाने के लिये कुछ कुछ ढूँढता रहा।
तीसरे पहर गिलहरी उठी और शेर की माँद की तरफ चली। वहाँ जा कर उसने देखा कि शेर तो पागलों की तरह इधर उधर घूम रहा है। उसको यह देख कर बड़ा मजा आया। वह एक पेड़ पर चढ़ गयी और शेर से बोली — “आप इतने परेशान क्यों हैं शेर जी। ”
शेर बोला — “मैं सुबह से खाने का इन्तजार कर रहा हूँ और तुम लोगों ने अभी तक मेरे खाने के लिए कुछ भी नहीं भेजा है। ”
गिलहरी बोली — “ओह शेर जी, वह ऐसा हुआ कि आज जब हम लोगों ने परची निकाली तो उस परची में मेरा नाम निकला।
मैं आपके लिए शहद भरा प्याला ले कर चली आ रही थी कि रास्ते वाले कुँए के पास मुझे एक और शेर मिल गया। वह मेरे हाथ से शहद का प्याला छीन कर भाग गया। ”
शेर तो यह सुन कर गुस्से में भर गया और बीच में ही बात काट कर बोला — “अच्छा दूसरा शेर? मगर वह दूसरा शेर है कहाँ?”
गिलहरी बोली — “वह तो अन्दर कुँए में है पर वह आपसे बहुत ज़्यादा ताकतवर है। ”
यह सुन कर तो शेर को और अधिक गुस्सा आ गया और उसके तन बदन में आग सी लग गयी।
वह गिलहरी से बोला — “चलो, मुझे दिखाओ उस शेर को। वह मुझसे ज़्यादा ताकतवर कैसे हो सकता है। मैं अभी मारता हूँ उस शेर को। ”
गिलहरी शेर को साथ ले कर उस कुँए तक आयी जिसमें उसने बताया था कि वह दूसरा शेर छिपा हुआ है। शेर ने उस कुँए में झाँका।
कुँए में उसको अपनी परछाईं दिखायी दी तो उसे लगा कि गिलहरी तो सच ही कह रही थी। वहाँ तो सचमुच ही दूसरा शेर उस कुँए में बैठा उसे घूर रहा था।
उसने आव देखा न ताव बस उस शेर पर हमला कर दिया। वह उस कुँए में कूद गया और कूदते ही डूब कर मर गया।
गिलहरी अपने घर वापस चली गयी और जा कर जानवरों से बोली — “मैंने आज शेर को मार दिया है इसलिये आप सब आज से आजाद हैं। अब आप आराम से रहें। मैं अपने घर चली। ”
यह सुन कर सभी जानवरों को बड़ा आश्चर्य हुआ वे सब एक साथ बोले “कैसे?”।
तब गिलहरी ने उनको अपनी सारी कहानी सुनायी।
फिर सभी एक साथ बोले — “किसी ने सच ही कहा है अक्लमन्दी ताकत से बड़ी होती है। देखने में छोटी सी गिलहरी ने अपनी अक्लमन्दी से इतने बड़े शेर को मार दिया। ”
(साभार : सुषमा गुप्ता)