घोड़ा और शेर : असमिया लोक-कथा

Ghoda Aur Sher : Lok-Katha (Assam)

एक समय की बात है। एक शेर शिकार की तलाश में इधर-उधर घूम रहा था। तभी उसने एक संदर घोडे को देखा। उसे देखकर शेर के मन में लालच पैदा हो गई। वह सोचना लगा कि क्यों न इसे खाकर अपनी भूख मिटा लूँ! घोड़ा मोटा और तगड़ा था इसलिए शेर को अंदाजा हो गया कि वह ताकत से उसे खा नहीं पाएगा। उसने उसे बुद्धि और छल से उसे फंसाने को सोचा, साँप भी मर जाएगा और लाठी भी नहीं टूटेगी। बल का प्रयोग भी नहीं करना पड़ेगा और आहार भी मिल जाएगा।

शेर ने चारों ओर यह ढिंढोरा पिटवाया कि वह चिकित्सा विद्या में पारंगत हो गया है। अब वह सभी पशु-पक्षी की स्वास्थ्य परीक्षा करके उन्हें उचित चिकित्सा सेवा प्रदान करेगा। इसके लिए किसी पशु-पक्षी को उसके पास जंगल में नहीं आना पड़ेगा, बल्कि वह स्वयं उनके पास जाएगा और निःशुल्क सेवा करेगा।

इस बुद्धि के द्वारा शेर ने सभी पशु-पक्षी के निवास स्थान पर पहुँचने का रास्ता प्रशस्त किया। इसी क्रम में एक दिन वह घोड़े के अस्तबल में पहुँचने में कामयाब हो गया। घोड़ा चतुर था। उसने शेर की दुष्ट बुद्धि को पहले ही भाँप लिया था और उससे कैसे बचा जाए, यह सोच रहा था।

जब शेर अस्तबल में पहुँचा तो घोड़े ने बड़े प्यार और आदर के साथ अंदर बुलाकर उसे अपने पास बिठाया। घोड़ा नम्र भाव से कहने लगा”डॉक्टर साहब घूमते-घामते समय मेरे पीछे की दाहिनी टाँग में कहीं से एक काँटा चुभ गया है। मैं ठीक से चल नहीं पा रहा हूँ। कृपया मेरे पैर का परीक्षण करें और इसे ठीक कर दें। बड़ी मेहरबानी होगी।”

यह सुनते ही शेर घोड़े के पीछे वाली टाँग के पास गया। वह निरीक्षण करते हए सोचने लगा- इसमें ढेर सारा मांस है. खाने में मजा आएगा। उसका मुँह पानी से भर आया। सोचा, इसे पीछे से ही वार करना चाहिए।

इधर घोड़ा सोच रहा था कि आज के बाद यह दुष्ट किसी जानवर के पास जाने लायक नहीं बचेगा। वह सही मौका देख रहा था। सही मौका पाते ही उसने शेर पर अपनी दुलत्ती का जोरदार प्रहार किया। शेर इसके लिए तैयार नहीं था। घोड़े की प्रचंड प्रहार से वह चारों खाने चित होकर धड़ाम से दूर जमीन पर औंधे मुँह गिर पड़ा। वह दर्द से छटपटाने लगा। इसके साथ-साथ शर्म से वह पानी-पानी हो गया। घोड़ा मौका देखकर तुरंत अस्तबल से बाहर निकला और भाग खड़ा हुआ। घोड़े ने अपनी बुद्धि चातुर्य से मुसीबत का सामना ही नहीं किया बल्कि सुरक्षित बच निकलने में भी वह कामयाब हो गया।

(सीख– अपने से बलवान दुश्मन का सामना शक्ति से नहीं बल्कि बुद्धि से करना चाहिए।)

(साभार : डॉ. गोमा देवी शर्मा)

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