ग़रीबों में सन्तोष का नुस्ख़ा (निबंध) : लू शुन

Gharibon Mein Santosh Ka Nuskha (Chinese Article in Hindi) : Lu Xun

एक शिक्षक अपने बच्चों को नहीं पढ़ाता, उसके बच्चों को दूसरे ही पढ़ाते हैं। एक डॉक्टर अपना इलाज खुद नहीं करता, उसका इलाज कोई दूसरा डॉक्टर करता है। लेकिन अपना जीवन जीने का तरीक़ा हर आदमी को ख़ुद खोजना पड़ता है। क्योंकि जीने की कला के जो भी नुस्खे दूसरे लोग बनाते हैं वे बार-बार बेकार साबित होते हैं।

दुनिया में प्राचीन काल से ही शान्ति और चैन बनाए रखने के लिए ग़रीबी में सन्तोष पाने का उपदेश बड़े पैमाने पर दिया जाता है। ग़रीबों को बार-बार बताया जात है कि सन्तोष ही धन है। ग़रीबों में सन्तोष पाने के अनेक नुस्खे तैयार किये गये हैं, लेकिन उनमें में कोई पूरी तरह सफल साबित नहीं हुआ है। अब भी रोज़-रोज़ नये-नये नुस्खे बनाये जा रहे हैं। मैंने अभी हाल में ऐसे दो नुस्खों को देखा है। वैसे ये दोनों भी बेकार ही हैं।

इनमें में एक नुस्खा यह है कि लोगों को अपने कामों में दिलचस्पी लेनी चाहिए। ‘अग़र आप अपने काम में दिलचस्पी लेना शुरू कर दें तो काम चाहे कितना ही मुश्किल क्यों न हो, आप ख़ुशी से काम करेंगे और कभी नहीं थकेंगे।’ अग़र काम बहुत मुश्किल न हो तो यह बात सच हो सकती है। चलिए, हम खदान मज़दूरों और मेहतरों की बात नहीं करते। आइये हम शंघाई के कारख़ानों में दिन में दस घण्टे से अधिक काम करने वाले मज़दूरों के बारे में बात करें। वे मज़दूर शाम तक थक कर चूर-चूर हो जाते हैं। उन्हें उपदेश दिया जाता है कि स्वस्थ शरीर में ही स्वस्थ मन होता है। अग़र आपको अपने शरीर की देखभाल की फुर्सत नहीं मिलती तो आप काम में दिलचस्पी कहाँ से पैदा करेंगे। इस हालत में वही आदमी काम में दिलचस्पी ले सकता है जो जीवन में अधिक दिलचस्पी रखता हो। अग़र आप शंघाई के मज़दूरों से बात करें तो वे काम के घण्टे कम करने की ही बात करेंगे। वे काम में दिलचस्पी पैदा करने की बात कल्पना में भी नहीं सोच सकते।

इससे भी अधिक पक्का नुस्खा दूसरा है। कुछ लोग अमीरों और ग़रीबों की तुलना करते हुए कहते हैं कि आग बरसाने वाले गर्मी के दिनों में अमीर लोग अपनी पीठ से बहते पसीने की धार की चिन्ता न करते हुए सामाजिक सेवा में लगे रहते हैं। ग़रीबों का क्या है? वे एक टूटी चटाई गली में बिछा देते हैं, फिर अपने कपड़े उतारते हैं और चटाई पर बैठकर आराम से ठण्डी हवा खाते हैं। यह कितना सुखद है। इसी को कहते है चटाई समेटने की तरह दुनिया को जीतना। यह सब दुर्लभ और राज्यात्मक नुस्खा है लेकिन इसके बाद एक दुखद दृश्य सामने आता है। अगर आप शरद ऋतु में गलियों से गुज़र रहे हों तो देखेंगे कि कुछ लोग अपने पेट कसकर पकड़े हुए हैं और कुछ नीला तरल पदार्थ कै कर रहे हैं। ये कै करने वाले वे ही ग़रीब लोग है जिनके बारे कहा जाता है कि वे धरती पर स्वर्ग का सुख लूटते हैं और चटाई समेटने की तरह दुनिया को जीतते हैं। मेरा ख्याल है कि शायद ही कोई ऐसा बेवकूफ होगा जो सुख का मौका देखकर भी उससे लाभ न उठाता हो। अगर ग़रीबी इतनी सुखद होती तो ये अमीर लोग सबसे पहले गली में जाकर सो जाते और ग़रीबों की चटाई के लिए कोई जगह न छोड़ते।

अभी हाल में ही शंघाई के हाई स्कूल की परीक्षाओं के छात्रों के निबन्ध छपे हैं। उनमें एक निबन्ध का शीर्षक है ‘ठण्डक से बचाने लायक कपड़े और भरपेट भोजन’। इस लेख में कहा गया है कि ”एक ग़रीब व्यक्ति भी कम खाकर और कम पहनकर अगर मानवीय गुणों का विकास करता है तो भविष्य में उसे यश मिलेगा। जिसका आध्यात्मिक जीवन समृद्ध है उसे अपने भौतिक जीवन की ग़रीबी की चिन्ता नहीं करनी चाहिए। मानव जीवन की सार्थकता पहले में है, दूसरे में नहीं।”

(अनुवाद: चन्द्र सदायत)

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