घमंडी का सिर नीचा : कश्मीरी लोक-कथा

Ghamandi Ka Sir Neecha : Lok-Katha (Kashmir)

यह बहुत पुरानी बात है कि एक जगह एक राजा रहता था जो अपने में ही इतना लगा रहता था और अपने कहने और करने में इतना घमंड महसूस करता था कि यह बात अब जनता में यह एक कहावत बन गयी थी “हमारे राजा जैसा मतलबी” “हमारे राजा जैसा घमंडी”।

साफ जाहिर है कि उसके वजीर और दरबारी लोग उसकी बातें सुनते सुनते थक गये थे और उसकी यह आग भड़काने के लिये हमेशा उसकी चापलूसी करते रहते।

राजा पूछता — “इस दुनियाँ में हमारे देश जैसा और कौन सा देश है जहाँ इतना पानी है और जहाँ की मिट्टी इतनी अच्छी है।”

उसके वजीर और दरबारी जवाब देते — “कोई नहीं।”

राजा फिर पूछता — “कहाँ हैं इतने अच्छे कानून और कहाँ हैं इतने अमीर लोग?”

“कहीं नहीं।”

“मेरे महल जैसा शानदार महल कहीं और है?”

“इसके बराबर का महल तो कहीं नहीं है कहीं नहीं।”

“हाँ।” कह कर वह अपनी दाढ़ी पर हाथ फेरता और एक लम्बी साँस खींचता जैसे यह सब कह कर उसके ऊपर से एक भारी बोझ उतर गया हो। करीब करीब जो भी राजा को सुनता वह उसकी ऐसी बातें सुन कर थक जाता।

धीरे धीरे लोगों को यह एक बोझ लगने लगा। और यह इसलिये भी ज़्यादा लगता था क्योंकि राजा राज्य में उसकी उन्नति के लिये कोई खास काम भी नहीं कर रहा था और उसके राज्य के लोग भी कोई खास अमीर नहीं थे।

आखिर उसके कुछ वजीरों ने जब वह उनसे ऐसे सवाल करे तो उसको साफ साफ बोलने का निश्चय किया। इसके लिये उनको बहुत इन्तजार नहीं करना पड़ा।

एक दिन राजा बोला — “ज़रा सोचो कि क्या कोई मुझसे भी बड़ा राजा है या मेरे राज्य से भी ज़्यादा शानदार राज्य है?”

तो उनमें से कुछ वजीर बोले — “हाँ है।”

रोज से अलग जवाब सुन कर राजा बहुत गुस्सा हुआ और बोला — “मुझे जल्दी बताओ कि वह राजा कहाँ है। मैं अपनी सेना ले कर वहाँ जाऊँगा और उस पर हमला करूँगा।”

वे बोले — “राजा साहब इतनी जल्दी मत कीजिये। हालाँकि हम लोग आपके लिये प्रार्थना करेंगे कि आप जीत जायें पर कहीं अगर आप हार गये तो और आपका देश बरबाद हो गया तो।”

यह सुन कर तो राजा को और गुस्सा आ गया। उसने तुरन्त ही अपनी सारी सेना को तैयार होने के लिये हुकुम दे दिया। जब वह तैयार हो गयी तो वह उसका लीडर बन कर वह उसको ले कर चल दिया। उसने चारों तरफ अपने दूत भेज दिये कि जो राजा उससे लड़ना चाहे वह उससे लड़ने आ जाये।

कुछ समय तक तो उसको ऐसा लगा कि उसने दूसरे राजाओं को लड़ने के लिये उकसाया क्योंकि किसी ने उसका मुकाबला स्वीकार नहीं किया क्योंकि ऐसी लड़ाई में बहुत खून खराबा होता जब तक कि इस मतलबी और घमंडी राजा के घमंड को सन्तुष्ट न किया जाता पर आखिर एक राजा सामने आया और उसने इस मतलबी और घमंडी राजा को हरा दिया और उसका सारा राज्य शानो शौकत और अमीरी छीन ली। यहाँ उसके घमंड का खात्मा हुआ।

अपने कुचले हुए आत्मसम्मान को ले कर उस राजा ने अपना वेश बदला और अपनी रानी और दो बेटों को ले कर समुद्र के किनारे किसी ऐसी जगह चला गया जहाँ से उसको कोई जहाज़ मिल जाता। एक जहाज़ वहाँ से जाने के लिये तैयार खड़ा था।

उसने जहाज़ के कप्तान से पूछा कि क्या वह उसको और उसके छोटे से परिवार को अपने जहाज़ पर चढ़ा कर वहाँ ले जा सकता है जहाँ वह जा रहा था।

कप्तान राजी हो गया पर जब उसने सुन्दर रानी को देखा तो अपना मन बदल दिया। अब वह केवल रानी को ही ले जाना चाहता था राजा के पूरे परिवार को नहीं। उसने सोचा कि वह उसकी कितनी सुन्दर पत्नी बनेगी। और अगर वह उसको बेचना भी चाहेगा तो उसको उसका कितना सारा पैसा मिलेगा।

सो जब जहाज़ पर सवारियों के चढ़ने का समय आया तो पहले रानी चढ़ी और फिर जैसे ही राजा और उसके दोनों बेटे चढ़ने को थे कि कुछ मजबूत आदमियों ने जिनको कप्तान ने यह करने के लिये पहले ही कह रखा था उनको किनारे पर ही रोक लिया और उनको जहाज़ पर चढ़ने नहीं दिया। उन्होंने उनको तब तक वहीं पकड़े रखा जब तक कि जहाज़ पानी में काफी दूर तक नहीं चला गया।

रानी ने जब देखा कि राजा और उसके दोनों बेटों को जहाज़ पर चढ़ने नहीं दिया गया तो वह बहुत ज़ोर से रो पड़ी। उसने अपना माथा पीटा अपने कपड़े फाड़ डाले और दुखी हो कर जहाज़ के डैक पर गिर पड़ी और फिर बेहोश हो गयी।

उसकी यह बेहोशी बहुत लम्बी थी हालाँकि कप्तान ने उसको जल्दी होश में लाने के बहुत कोशिशें की फिर भी वह एक घंटे से ज़्यादा बेहोश रही जैसे मर गयी हो।

आखिर वह होश में आयी। इस बीच कप्तान बहुत सावधान था। उसने उसके लिये एक बहुत अच्छे बिस्तर का इन्तजाम कर रखा था। उसको जहाज़ का सबसे अच्छा खाना दिया जाता था पर इस सबसे कोई फायदा नहीं था क्योंकि रानी न उसकी तरफ देखती थी और न उससे बात करती थी।

ऐसा कई दिनों तक लगातार चलता रहा यहाँ तक कि जब कप्तान उसका प्यार पाने में नाकामयाब रहा तो उसने उसको बेचने का निश्चय किया।

उसी जहाज़ पर एक अमीर सौदागर भी यात्रा कर रहा था। उसने भी रानी को देखा। उसको पता चला कि कप्तान उसका प्यार पाने में नाकामयाब रहा तो उसको लगा कि वह उसको खरीद ले शायद वह उसका प्यार पा जाये।

सो उसने कप्तान को एक बहुत बड़ी रकम दे कर रानी को खरीद लिया और इस तरह रानी अब उस सौदागर के पास आ गयी। बहुत ही कोमलता से उसने रानी को खुश करने की और उससे प्यार जताने की कोशिश की। जब उसने उससे कहा कि उसने उसको बहुत सारा पैसा दे कर उसे खरीदा है इसलिये उसको उससे शादी कर लेनी चाहिये तो आखिर वह उसका प्यार पाने में सफल हो गया।

रानी ने कहा — “हालाँकि तुम्हारे और कप्तान के बीच में जो सौदा हुआ है वह बिल्कुल गैरकानूनी है क्योंकि कप्तान को मुझे तुम्हें बेचने का कोई अधिकार ही नहीं है क्योंकि मैं उसकी हूँ ही नहीं। फिर भी क्योंकि मैं तुम्हें पसन्द करती हूँ इसलिये मैं तुमसे शादी कर लूँगी। अगर तुम दो साल इन्तजार करो और इस बीच मैं अपने पति और बेटों से नहीं मिली तो।”

सौदागर राजी हो गया और इस समय के खत्म होने का इन्तजार करने लगा।

उधर जैसे ही जहाज़ आँखों से ओझल हुआ तो उन आदमियों ने राजा और उसके दोनों बेटों को छोड़ दिया। अगर राजा की इच्छा होती तो भी अब उनसे बदला लेना तो बेकार था सो अपने दोनों बेटों को छोड़ कर वह समुद्र से दूर जमीन की तरफ तेज़ी से चल पड़ा।

उसके दोनों बेटे रोते बिलखते उसके पीछे पीछे दौड़े। वे चलते रहे जब तक कि वह एक नदी के किनारे नहीं पहुँच गये। नदी तो उथली थी पर उसमें पानी का बहाव बहुत तेज़ था। राजा नदी पार करना चाहता था पर न तो वहाँ कोई नाव थी और न ही कोई पुल। सो उसे नदी को चल कर ही पार करना पड़ा।

सावधानी से उसमें रास्ता ढूँढते हुए वह अपने एक बेटे के साथ उस नदी के पार पहुँचने में सफल हो गया। उस बेटे को वहीं छोड़ कर वह अपने दूसरे बेटे को लाने के लिये लौट पड़ा पर रास्ते में पानी का एक तेज़ बहाव आया जिससे वह पानी में डूब गया।

जब दोनों बेटों ने देखा कि उनका पिता पानी में डूब गया है तो वे बहुत ज़ोर ज़ोर से रोने लगे। दुख की दूसरी वजह यह भी थी कि वे दोनों अलग अलग खड़े थे। वे एक दूसरे को चिल्ला चिल्ला कर एक दूसरे को बुलाते रहे इधर से उधर घूमते रहे जब तक वे थक नहीं गये और उनको नींद नहीं आ गयी।

तभी वहाँ एक मछियारा अपनी नाव ले कर आया उसने उन दोनों बच्चों को थका और दुखी देख कर अपनी नाव मे ं बिठा लिया और उनसे पूछा कि वे कौन थे और उनके माता पिता कौन थे।

उन्होंने उनके साथ जो कुछ भी हुआ था वह सब उसको बता दिया। जब उसने उनकी कहानी सुनी तो वह बोला — “तुम्हारे माँ और बाप नहीं हैं और मेरे कोई बच्चा नहीं है। इसीलिये ऐसा लगता है कि भगवान ने तुम लोगों को मेरे पास भेज दिया है। क्या तुम मेरे बच्चे बनोगे मछली पकड़ना सीखोगे और मेरे घर में रहना पसन्द करोगे?”

बच्चे यह सुन कर बहुत खुश हो गये थे उनको रहने खाने की जगह जो मिल गयी थी।

“आओ। मैं तुम्हारी देखभाल करूँगा।” कह कर मछियारा उनको नाव से उतार कर पास के एक मकान में ले गया। बच्चे उसके साथ खुशी खुशी चले गये।

घर में जब उन्होंने उसकी पत्नी को देखा तब तो वह और ज़्यादा खुश हो गये क्योंकि वह उनके लिये बहुत अच्छी थी वह उनको अपने सगे बेटों से भी बढ़ कर मानती थी।

बच्चे अपने नये घर में आराम से रहने लगे। वे स्कूल जाते थे। उन्होंने जल्दी ही वह सब सीख लिया जो उनके मास्टरों ने उन्हें सिखाया। फिर उन्होंने अपने मुँहबोले पिता की सहायता करनी भी शुरू कर दी और कुछ ही समय में बहुत ही मेहनती और अच्छे मछियारे बन गये।

इस तरह समय गुजरता रहा कि एक बार नदी किनारे पर एक बहुत बड़ी मछली आ पड़ी और फिर उससे नदी में नहीं जाया जा सका तो वह मर गयी। गाँव का हर आदमी उस बड़ी मछली को देखने के लिये आया और उसका एक एक टुकड़ा काट कर ले गया।

कुछ लोग पड़ोसी गाँवों से भी आये जिनमें एक कुम्हार भी था। उसकी पत्नी ने उस बड़ी मछली के बारे में सुना तो उसने पति से कहा कि वह भी वहाँ आये और थोड़ी सी मछली उसके लिये भी ले आये। सो वह वहाँ आया जहाँ मछली पड़ी हुई थी।

हालाँकि काफी देर हो चुकी थी फिर भी जब वह वहाँ पहुँचा तो वहाँ कोई भी नहीं था क्योंकि सारे लोग जिन जिन को उसको ले जाना था वे सब उसमें से उसका छोटा छोटा हिस्सा काट कर ले जा चुके थे और वहाँ से जा चुके थे।

जाते समय कुम्हार ने यह सोचते हुए एक कुल्हाड़ी अपने साथ ले ली थी कि क्योंकि मछली बहुत बड़ी थी तो शायद उस मछली की हड्डियाँ भी बहुत मोटी होंगी और उनको काटने के लिये उसे कुल्हाड़ी की जरूरत पड़े।

जैसे ही उसने मछली में पहली कुल्हाड़ी मारी तो उसे उसमें से चिल्लाने की आवाज आयी जैसे कोई दर्द से चिल्ला रहा हो। वह

आवाज सुन कर कुम्हार भौंचक्का रह गया। उसने सोचा कि शायद मछली में कोई भूत है मैं दोबारा कुल्हाड़ी मार कर देखता हूँ। सो उसने उस मछली में दोबारा कुल्हाड़ी मारी तो मछली में से आवाज आयी “मैं बहुत दुखी हूँ। मैं बहुत दुखी हूँ।”

यह आवाज सुन कर कुम्हार ने सोचा यह तो भूत नहीं हो सकता। यह तो किसी आदमी की आवाज है। मैं इसको सावधानी से काटता हूँ हो सकता है कि मुझे इसके अन्दर कोई आदमी मिल जाये।

सो उसने उसको सावधानी से काटना शुरू किया तो उसे एक आदमी का पाँव दिखायी दिया। वह धीरे धीरे मछली को और काटता रहा तो उसे उसमें एक पूरा आदमी दिखायी दे गया। जितनी जल्दी हो सका वह उस आदमी को अपने घर ले गया और उसको ठीक से होश में लाने के लिये उससे जो कुछ हो सका उसने किया। उसने उसके पास आग जलायी और उसको चाय और सूप पिलाया।

जब कुम्हार और उसकी पत्नी ने देखा कि वह ठीक से होश में आ रहा है तो वे दोनों बहुत खुश हुए। कुछ महीने यह अजनबी इस परिवार के साथ आराम से रहा। यहाँ उसने मिट्टी के बरतन बनाने सीखे और इस तरह से कुम्हार की सहायता की।

इत्तफाक से उन्हीं दिनों वहाँ का राजा मर गया। और यह उस देश का रिवाज था कि मरे हुए राजा का हाथी और बाज़ जिस किसी को चुन लेते थे वही वहाँ का राजा होता था। सो जब वह राजा मर गया तो राजा के हाथी को सारे राज्य में घुमाया गया और बाज़ को भी चारों तरफ उड़ा दिया गया ताकि वे वहाँ का राजा चुन सकें।

अब जिस किसी के भी सामने हाथी अपना सिर झुका देता और जिस किसी के हाथ पर बाज़ बैठ जाता वही वहाँ का राजा होता। सो हाथी और बाज़ घूमते घूमते उसी कुम्हार के घर जा पहुँचे जिसने मछली के पेट से निकले हुए आदमी को शरण दी थी।

इत्तफाक से वह अजनबी वहीं घर के दरवाजे पर खड़ा था। जैसे ही हाथी और बाज़ ने उस अजनबी को देखा तो हाथी ने उसे झुक कर सलाम किया और बाज़ उसके हाथ पर जा कर बैठ गया।

लोग जो हाथी के पीछे पीछे जा रहे थे यह देख कर चिल्लाये “यही हमारा राजा है। यही हमारा राजा है।”

सबने अजनबी के सामने लेट कर उसको सलाम किया और अपने सामने महल चलने की प्रार्थना की। राजा के मन्त्रियों ने जब यह सुना तो वे बहुत खुश हुए और उन्होंने अपने नये राजा का खुशी से स्वागत किया।

उसको राजा बनाने के रस्मो रिवाज पूरे किये गये और राजा अपने काम में लग गया। सबसे पहला काम राजा ने यह किया कि उसने कुम्हार और उसकी पत्नी को बुलाया और उन्हें कुछ पैसे और जमीन दी।

इस तरीके से और दूसरे तरीकों से भी न्याय करके अच्छे नियम बना कर होशियार और अक्लमन्द लोगों को चुन कर राजा ने बहुत सारे लोगों का प्यार पा लिया। कुछ ही दिनों में वहाँ खुशहाली छा गयी।

पर कुछ ही महीनों में वह बीमार पड़ गया। जनता की तरफ इतना सारा ध्यान देना उसके बस में नहीं था सो उसके राज्य के डाक्टरों ने उसको बाहर घूमने की सलाह दी। उनकी सलाह मान कर राजा कभी घुड़सवारी के लिये निकल जाता तो कभी शिकार खेलने के लिये चला जाता तो कभी मछली पकड़ने चला जाता।

उसको मछली पकड़ना बहुत अच्छा लगता था। यह देख कर एक दिन एक मछियारा उसके पास एक बहुत बड़ी मछली ले कर आया और बोला — “सरकार मुझसे खुश हों। आज मैंने यह मछली पकड़ी है यह मैं आपके लिये ले कर आया हूँ।”

राजा उस बड़ी सी मछली को देख कर बहुत खुश हुआ और उससे पूछा कि वह मछली उसने कब और कैसे पकड़ी। मछियारे ने राजा को सब बातें बता दीं और मछलियों के बारे में उसको इतनी जानकारी बतायी कि राजा ने उससे कहा कि जब वह मछली पकड़ने जाये तो वह भी उसके साथ मछली पकड़ने चला करे ताकि राजा भी मछली पकड़ने की कला सीख सके और वह भी वैसी ही बड़ी मछली पकड़ सके जैसी कि उसने अभी राजा को भेंट की थी।

मछियारा बोला — “सरकार आप बहुत अच्छे और दयालु हैं। जो भी आप हुकुम करेंगे उसे हर आदमी को ठीक और न्यायपूर्ण मानना चाहिये। पर आप मुझ नौकर की भी एक बात सुन लें तो बड़ी मेहरबानी होगी।

मेरे घर में दो लड़के हैं जो मुझसे भी ज़्यादा होशियार और ताकतवर हैं। अगर सरकार इजाज़त दें तो मैं वायदा करता हूँ कि वे हमेशा आपकी सेवा में लगे रहेंगे।”

राजा इस बात पर राजी हो गया। अब जब भी वह मछली पकड़ने जाता तो मछियारे के दोनों बेटों को अपने साथ ले जाता। धीरे धीरे राजा की उन दोनों बेटों से जान पहचान बढ़ती गयी। राजा उनको बहुत चाहने लगा क्योंकि वे बहुत तेज़ थे होशियार थे सुन्दर थे और स्वभाव के बहुत अच्छे थे। बाद में उसने कुछ ऐसा इन्तजाम कर लिया कि वह कहीं भी जाता तो उनको अपने साथ ही रखता।

करीब करीब इसी समय जिस सौदागर ने उस राजा की पत्नी को खरीदा था जो नदी में डूब गया था व्यापार करने के लिये इस राजा के देश में आया। उसने राजा से मिलना चाहा तो राजा ने उसे मिलने का समय दे दिया। उसने बहुत सारे कीमती जवाहरात और सामान राजा को दिखाया।

राजा उसका सामान देख कर बहुत खुश हुआ और उस सबके बारे में उससे कई सवाल पूछे। उसने उससे उन देशों के बारे में भी पूछा जहाँ से उसने उनको खरीदा था। सौदागर ने राजा को सब बता दिया तो उसने राजा से उसके राज्य में व्यापार करने की इजाज़त और सुरक्षा माँगी।

राजा ने तुरन्त ही उसकी माँग स्वीकार कर ली। उसने उसको इस काम के लिये कुछ सिपाही दे दिये जो सौदागर के आँगन में हमेशा पहरा देते थे। उसने मछियारे के दोनों बेटों को भी उसके घर में सोने के लिये भेज दिया।

एक रात इन दोनों बेटों को किसी वजह से नींद नहीं आ रही थी तो छोटे भाई ने बड़े भाई से कहा कि वह उसको कोई कहानी सु्नाये ताकि उसे नींद आ जाये। बड़ा भाई बोला — “ठीक है मैं तुझे अपने साथ घटी एक घटना सुनाता हूँ।” कह कर उसने उसको यह कहानी सुनायी।

एक बार की बात है कि एक बहुत ही बड़ा पढ़ा लिखा और अमीर राजा था। लेकिन वह बहुत घमंडी था। एक बार वह अपनी सेना ले कर दूसरे राजाओं को लड़ाई की चुनौती देता हुआ बाहर निकल पड़ा। तो कुछ राजा तो उससे हार गये पर एक राजा जो उससे ज़्यादा ताकतवर था उससे लड़ा और उसने उसको हरा दिया।

हारा हुआ राजा अपनी पत्नी और दो बेटों के साथ किसी तरह बच कर भाग निकला। भागते भागते इस आशा में वह समुद्र के किनारे पहुँचा कि शायद उसको वहाँ कोई जहाज़ मिल जाये तो वह उसमें बैठ कर बाहर निकल जाये जहाँ जा कर वह अपनी मुसीबतों को भूल जाये और नये सिरे से ज़िन्दगी शुरू कर सके।

कई मील चलने के बाद वे समुद्र के किनारे पहुँचे। खुशकिस्मती से उनको एक जहाज़ मिल गया जो किनारा छोड़ने ही वाला था। राजा ने जहाज़ के कप्तान से उनको ले जाने की बात की तो कप्तान मान तो गया पर अफसोस वह कप्तान बहुत ही बुरा आदमी था। उसने पहले रानी को जहाज़ पर चढ़ाया और फिर जैसे ही राजा और उसके दो बेटे जहाज़ पर चढ़ने लगे तो उसके आदमियों ने उन सबको वहीं किनारे पर ही रोक लिया और उनको तब तक रोके रखा जब तक वह जहाज़ आँखों से ओझल नहीं हो गया।

उफ़ राजा के लिये वह कितना भयानक समय था। दुखी दिल से वह अपने दोनों बेटों के साथ वहाँ से लौट पड़ा। वह फिर कई मील चला। वह यह भी नहीं जानता था कि वह कहाँ जा रहा है। चलते चलते वह एक नदी के पास आ पहुँचा जिसका बहाव बहुत तेज़ था।

क्योंकि उस नदी को पार करने के लिये वहाँ न तो कोई नाव थी और न ही कोई पुल सो उसको वह नदी चल कर ही पार करनी पड़ी। उसने अपने एक बेटे को लिया और नदी पार कर गया। फिर वह अपने दूसरे बेटे को लेने आया पर बीच में ही वह डूब गया। तबसे उसका कोई पता नहीं है। तू समझ सकता है कि पिता के डूबने के बाद उन दोनों बेटों की क्या हालत हुई होगी।

उस समय रात होने वाली थी। उनके पास न तो कोई खाना था और कोई रहने की कोई जगह। न उनको यह मालूम था कि वे कहाँ जायें। एक नदी के एक किनारे पर खड़ा था और दूसरा दूसरे किनारे पर। वह एक दूसरे के पास भी नहीं जा सकते थे।

आखिर उसी समय एक मछियारा अपनी नाव में आया और दोनों बच्चों को अपनी नाव में बिठा कर अपने घर ले गया। वह उन दोनों को बहुत चाहने लगा और उसकी पत्नी भी। इस तरह वे दोनों उनके माता पिता जैसे हो गये।

यह उनके साथ दो साल पहले हुआ था। अब वे दोनों लड़के दूसरों को उनके असली बेटे जैसे लगते हैं।

सो मेरे भाई वे दोनों लड़के हम दोनों हैं। और यह है हमारी कहानी। कहानी इतनी मजेदार थी और उसका अन्त भी इतना अच्छा था कि बजाय सोने के छोटे भाई की आँख और ज़्यादा खुल गयी। यह कहानी कही भी इतने अच्छे से कही गयी थी कि इसने दूसरों का ध्यान भी अपनी तरफ खींच लिया।

इत्तफाक से सौदागर की खरीदी हुई पत्नी इस समय जाग रही थी। उसके कमरे और दूकान के बीच में केवल पतला सा परदा था सो वह यह सारी कहानी सुन रही थी। उसने अपने मन में सोचा जरूर ही ये दोनों मेरे दोनों बेटे हैं।

वह अपने कमरे में से उठ कर आयी और उसने उन बच्चों से कई सवाल पूछे। दो साल में ही बच्चों में काफी अन्तर आ गया था जिससे वह उनको देखते ही नहीं पहचान सकी पर फिर भी उनमें कुछ ऐसी पहचान थी जो वे कितने भी बड़े हो जाते उनकी माँ उनकी उस पहचान को नहीं भूल सकती थी।

ये पहचान और उसके सवालों के जवाबों ने उसके मन में आये विचार को पक्का कर दिया कि वे दोनों उसी के बेटे थे। वह उन दोनों को गले लगा कर रो पड़ी। इससे उनको भी लगा कि वही उनकी रानी माँ थी जिसके बारे में वे अभी अभी बात कर रहे थे। उसने भी उनको वह सब बताया जो जो उसके साथ उनसे बिछुड़ जाने के बाद घटा था। कि किस तरह से जब जहाज़ के कप्तान ने जब यह देखा कि वह उसके साथ नहीं रह सकती तो उसको इस सौदागर के हाथों बेच दिया।

किस तरह यह सौदागर उसके साथ दया का बरताव करता रहा और सचमुच में उसको प्यार करता था। वह अमीर और होशियार होने के साथ साथ एक बहुत ही अच्छा आदमी भी है। और कैसे उसने यह सोचते हुए कि शायद वह अब राजा से नहीं मिल पायेगी इस सौदागर से दो साल बाद शादी के लिये हाँ कर दी थी। उन दो सालों के पूरा होने में अब केवल तीन दिन बचे हैं।

उसने बच्चों को यह भी बताया कि वह इस सौदागर को इतना ज़्यादा नहीं चाहती थी कि वह उससे शादी कर ले। यह तो उसने इतने दिनों तक उससे बचने के लिये कह दिया था।

अब तुम लोगों के मिल जाने के बाद मेरा यह प्लान है कि मैं सौदागर को यह विश्वास दिलाऊँ कि तुम लोगों ने मझे मारा है। मैं बहुत गुस्सा होने का नाटक करूँगी और तब तक चैन से नहीं बैठूँगी जब तक वह तुमको राजा से कोई सजा न दिलवा ले। इससे राजा तुम लोगों को बुलवा भेजेगा और तुमसे इस मामले की छानबीन करेगा।

इसके जवाब में तुमको यह कहना है कि यह तुमसे गलती हो गयी वरना तुम तो मुझे अपनी माँ की तरह मानते हो और उसी की तरह मेरी इज़्ज़त करते हो। इस बात को साबित करने के लिये राजा से प्रार्थना करना कि वह मुझे बुलवा भेजें और मुझसे खुद ही पूछ लें कि तुम लोगों ने सच कहा है या नहीं।

तब मैं तुम लोगों को अपना बेटा बताऊँगी और राजा से प्राथना करूँगी कि वह मुझे इस सौदागर से छुटकारा दिलवाये और तुम्हारे साथ रहने की इजाज़त दे जहाँ मैं अपनी ज़िन्दगी के बाकी दिन गुजार सकूँ।

बेटों ने उसकी यह सलाह मान ली। अगली रात जब सौदागर भी वहीं सो रहा था रानी ने ज़ोर ज़ोर से चिल्लाना शुरू कर दिया जिससे वहाँ सोये सब लोग जाग गये। सौदागर भी जाग गया उसने पूछा कि क्या मामला था वह क्यों चिल्ला रही थी।

रानी बोली — “वे दो लड़के जो तुम्हारी दूकान की रखवाली करते हैं उन्होंने मुझे मारने की कोशिश की तो मैं चिल्ला पड़ी ताकि वे रुक जायें।”

यह सुन कर सौदागर को बहुत गुस्सा आया। तुरन्त ही उसने दोनों लड़कों को बाँधा और जैसे ही उसको राजा से मिलने का पहला मौका मिला वह उनको राजा के सामने ले गया और उनको उसके सामने लाने की वजह बतायी।

राजा ने बच्चों से पूछा — “तुम्हें अपने बचाव में कुछ कहना है। क्योंकि अगर यह सच है कि तुमने सौदागर की पत्नी को मारा है तो हम तुम्हें सजा का हुकुम सुनायेंगे। क्या हमारी तुम्हारे संग भलाई करने का यही नतीजा है। जल्दी बोलो तुम लोगों को अपनी सफाई में क्या कहना है।”

लड़कों ने कहा — “हे हमारी भलाई चाहने वाले राजा, हम आपके शब्दों और आपकी शक्ल से बिल्कुल नहीं डर रहे हैं क्योंकि हम आपके वफादार नौकर हैं। हमने आपके विश्वास को बिल्कुल धोखा नहीं दिया है। बल्कि हमेशा से ही आपके हुकुम को माना है। सौदागर ने हमारे ऊपर जो इलजाम लगाया है वह बिल्कुल झूठा है। हमने उसकी पत्नी को मारने की बिल्कुल कोशिश नहीं की बल्कि हमने तो उनको अपनी माँ के समान ही समझा है। अगर आप चाहें तो उनको यहाँ बुला कर उनसे खुद ही पूछ लें।”

राजा राजी हो गया और उसने रानी को बुलाने का हुकुम दिया। उसके आने पर राजा ने उससे पूछा — “क्या यह सच है कि तुम्हारे होने वाले पति ने इन दोनों लड़कों के खिलाफ गवाही दी है?”

रानी बोली — “हे राजन जिन लड़कों को आपने हमारी सहायता के लिये हमारे पास भेजा है उन्होंने आपकी इच्छा पूरी करने की अपनी पूरी पूरी कोशिश की है। पर एक रात पहले की बात है कि मैंने उनकी बातें सुनी। बड़ा वाला भाई अपने छोटे भाई को एक कहानी सुना रहा था।

जैसा कि उसने कहा वह कहानी उसकी अपनी ही थी। वह एक घमंडी राजा की कहानी थी जिसको उससे एक ज़्यादा ताकतवर राजा ने हरा दिया था। अपना राज्य खोने पर उस राजा को अपनी पत्नी और दो बेटों के साथ अपना राज्य छोड़ कर भाग जाना पड़ा। वह भाग कर समुद्र की तरफ पहुँचा ताकि वह वहाँ से कहीं दूर जा सके।

खुशकिस्मती से उसको एक जहाज़ भी मिल गया जो किनारा छोड़ कर जाने वाला ही था। उसने उससे मिल कर बात कर ली कि वह जहाज़ उन सबको वहाँ ले जायेगा जहाँ वह जा रहा था। पर उस जहाज़ का कप्तान एक बहुत ही बुरा आदमी निकला। उसने राजा की पत्नी को चुरा लिया और उसको दूर देश ले गया जहाँ जा कर उसने उसको एक अमीर सौदागर को बेच दिया। उधर राजा और उसके दोनों बेटे फिर कहीं और चले गये। वहाँ वे एक नदी के किनारे आये जहाँ राजा डूब गया। उसके दोनों बेटे एक मछियारे को मिल गये जिसने उनको अपने बच्चों की तरह पाला।

राजा साहब वे दो बच्चे आपके सामने हैं और मैं इनकी माँ हूँ जिसको चुरा लिया गया था और फिर एक सौदागर को उसकी पत्नी बना कर बेच दिया गया था जिसके साथ वह दो दिन बाद उसकी पत्नी बन कर रहने वाली है। क्योंकि मैंने उससे वायदा किया था कि अगर फलाँ फलाँ समय तक मेरा पति और मेरे दोनों बेटे न मिले तो मैं उससे शादी कर लूँगी।

पर अब मेरे बच्चों के मिल जाने के बाद मैं आपसे प्राथना करती हूँ कि मुझे इस सौदागर से छुटकारा दिलवाया जाये। मैं दोबारा शादी नहीं करना चाहती क्योंकि मेरे दोनों बच्चे मेरे पास हैं। मैं राजा से मिल कर यह न्याय माँग सकूँ इसीलिये इन बच्चों के साथ मिल कर मैंने यह नाटक खेला।”

जैसे ही रानी ने अपनी कहानी खत्म की तो राजा की आँखों से आँसू बहने लगे और वह काँपने लगा। जब वह थोड़ा सँभला तो वह अपने सिंहासन से उठा और रानी और दोनों बच्चों की तरफ बढ़ा।

उसने तीनों को अपने गले लगाया और रो कर बोला — “तुम मेरी पत्नी और मेरे बच्चे हो। भगवान ने तुम लोगों को मेरे पास वापस भेज दिया है। मैं राजा जैसा तुम लोगों को लगा डूबा नहीं था बल्कि एक बड़ी मछली मुझे निगल गयी थी। कुछ दिन तक मैं उसी मछली के पेट में ज़िन्दा रहा। उसके बाद वह मछली किनारे पर आ कर पड़ गयी तब मैं उसके पेट से आजाद हुआ।

एक कुम्हार दया करके मुझे अपने घर ले गया। उसने मुझे अपना काम सिखाया। मैं वह काम करके अपना पेट अपने आप पालने लायक हुआ ही था कि यहाँ का राजा मर गया। उस राजा के हाथी और बाज़ ने मुझे अपना राजा चुन लिया और इसीलिये अब मैं यहाँ हूँ।”

उसके बाद राजा ने रानी और अपने दोनों बेटों को महल ले जाने का हुकुम दिया। उसने वहाँ जमा हुए लोगों को भी अपने इस व्यवहार की सफाई दी। सौदागर को विनम्रतापूर्वक उसके देश भेज दिया गया।

जब दोनों राजकुमार राज्य सँभालने लायक हो गये तब राजा ने अपने बड़े बेटे को अपना राज्य सौंप दिया और खुद रानी के साथ शान्ति से अपना जीवन बिताया।

(सुषमा गुप्ता)

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