घमंडी गादड़ : हरियाणवी लोक-कथा

Ghamandi Gaadad : Lok-Katha (Haryana)

एक गादड़ था। वो अपणा चौंतरा [चबूतरा] बनाकर, लीप-पोतकर, साफ-सुथरा राख्या करता। वो इस साफ-सफाई पर घमण्ड करता था व अन्य जानवरों पर अपने चबूतरे की शान-शौकत का रौब मारता था। चबूतरे पर इस तरह अकड़ कर बैठता जैसे राजा के सिंहासन पर बैठा हो और उसकी मंशा यह रहती कि जंगल के जानवर उसका हुक्म मानें।

एक दिन की बात है वो नहा-धोकर और खूब सज-धजकर अपने चौंतरे पर आ बैठा। जो भी उसके पास से गुजरता उसी से पूछता कि बता मैं किसा लागू सूं? जानवर भी खामखा नाराज न कर उसकी सराहना कर देते। अपनी प्रशंसा सुनके वो फूला न समाता। उसके चौंतरे के पास एक बडबेरी थी, जिसके बेर बड़े ही मीठे थे। वो उस बडबेरी पर अपना मालिकाना हक जमाता था। जंगल के जानवर बेर खाण की खातिर उसकी खूब झूठी प्रशंसा कर दिया करते। इस बात ने उसका घमण्ड और बढ़ा दिया था। उसका दिमाग सातवें आसमान में चढा रहता। जंगल में उसके पड़ोस में रहने वाला एक खरगोश था जो उसकी घणी चापलूसी नहीं करता था। खरगोश था चालबाज। जब उसे बेर खाणे होते तो मीठा-मीठा बोलता, नहीं तो उसका मजाक उड़ाया करता।

एक दिन गीदड़ बन ठन कर चबूतरे पर बैठा था। सबको खुद-ब-खुद कहता जा रहा था कि देखो मैं कितना साफ-सुथरा रहता हूं। मेरा चौंतरा भी चांदी-सा चमकता रहता है। मैं क्या तुम्हें किसी राजा से कम दिखता हूं। बेरों के लालच में सारे जानवर उसकी हां में हां मिलाकर बेर खा रहे थे। मन में सोच रहे थे कि इसकी झूठी-साची बड़ाई से हमारा क्या जाता है? मीठे-मीठे बेर तो मिल जां सै। खरगोश ने भी आज उसकी बड़ाई की और बेर खाए। पेट भर बेर खाने के बाद खरगोश को कुबद्ध सूझी।

माटी का तेरा चौन्तरा गोबर त लीपा सै, काना मैं तेरे लीतरे जणूं मूसा बैठा सै।

सारे जानवर जो गीदड़ के घमण्ड से चिढ़ते थे, वे भी खरगोश के साथ-साथ सुर मिलाकर गाने लगे।

माटी का तेरा चौन्तरा गोबर त लीपा सै, काना मैं तेरे लीतरे जणूं मूसा बैठा सै।

गादड़ को गुस्सा चढ़ गया। वो उनको मारने उनके पीछे भागा। खरगोश आगे-आगे बाकी जानवर उसके पीछे और गीदड़ सबके पीछे। एक मोड़ पर खरगोश व जानवर तो अचानक एक तरफ मुड़े, लेकिन गीदड़ गुस्से में देख-सोच नहीं पाया और सीधे भागता हुआ सामने एक गहरे खड्ड में जा गिरा। वो पड़ा-पडा चिल्लाता, “अरे कृतघ्नो! मुझे निकालो।” लेकिन जानवर उसे निकालने के बजाय वापिस मुड़कर उसकी बडबेरी के बेर तोड़-तोड़कर खा गए। कुछ देर बाद गादड़ तरकीब लगा मुश्किल से बाहर निकला। अब उसे अक्ल आ गई कि घमण्ड करना और दूसरे को छोटा दिखाना, अच्छी बात नहीं।

(डॉ श्याम सखा)

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