गीदड़ और हिरण : हिमाचल प्रदेश की लोक-कथा
Geedad Aur Hiran : Lok-Katha (Himachal Pradesh)
एक वन में गीदड़ और हिरण रहते थे। गिदड़ बड़ा चालू और स्वार्थी था। हिरण स्वादु और शीघ्र की दूसरों की बातों में आने वाला था। गीदड़ बुढ़ा हो गया था। हिरण को देखकर उसका दिल सदा उसका मांस खाने को ललचाता रहता था। देखिए, रहते तो दोनों साथ पर गीदड़ के विचार बहुत अधिक नीच थे। सच्च कहते हैं खश(घटिया आदमी) को घी में भी डूबो दें तब भी वह सूखा ही बाहर निकलेगा। गीदड़ ने अपनी चिकनी-चुपड़ी बातों में उलझा कर हिरण को अपनी बातों में फंसा लिया था। एक दिन गीदड़ ने उसे कहा कि नर्म-नर्म घास खाने के लिए वह उसके साथ चले। घास इतना नर्म और स्वादिष्ट है कि पूछो ही मत। वहां डरने की भी कोई बात नहीं।
गीदड की मीठी बातों में हिरण झट आ गया। गीदड उसे एक किसान के खेत में ले गया। वहां नर्म कोंपले फूटी थी। गीदड़ स्वयं तो खड़ा होकर तमाशा देखने लगा हिरण कोंपलें खाते-चरते आगे-आगे चलता रहा। एक स्थान पर किसान ने फाही (जानवर फंसाने को रस्सी-फंदा) लगाई थी। हिरण को जिव्हा के स्वाद और खूब खाने के लालच में कुछ दिखाई नहीं दिया और उसकी गर्दन फाही के बीच फंस गई। गीदड़ तो चाहता ही यही था।
हिरण घुटे-घुटे गीदड़ को आवाज लगायी- मामा गीदड़, मुझे आकर छुड़ा ले। फाही की रस्सी चमडे की बनी है इसे तुम झट अपने दांतों से काट सकते हो। शीघ्र करो मेरा दम घुट रहा है।
गीदड़ ने कहा- तुम तो ठीक बात करते हो किन्तु मेरा आज व्रत है और मैं चमड़े से मुंह नहीं लगा सकता।
हिरण ने उसके बहुत मिन्नतें की पर उसका दम घुटता ही रहा। गीदड़ नहीं आया तो नहीं आया। हिरण बहुत रोया किन्तु गीदड़ टस से मस नहीं हुआ।
हिरण फंदे में फंस कर मर गया। गीदड़ की मौज आ गई। वह धीरे-ध गरे हिरण के पास गया और कई दिन तक उसके नर्म मांस का लुत्फ उठाया। इसलिए जी, जो व्यक्ति दूसरों की बातों में आता है वह फूटे ढोल से जाता है।
(साभार : कृष्ण चंद्र महादेविया)