गायक जोसफिन या मूषक लोक : फ़्रेंज़ काफ़्का
हमारी गायिका का नाम जोसफिन है। कोई भी उसके बारे में नहीं जानते हैं उन्हेंसंगीत की शक्ति का पता नहीं है। ऐसा कोई भी नहीं है, जो उसके संगीत को सुनकर भाव विह्वल न हुआ हो । एक श्रद्धांजलि क्योंकि आमतौर पर हम कोई संगीत प्रेमी प्रजाति नहीं हैं । सुस्थिर शांति ही वह संगीत है, जिसे हम सबसे ज्यादा पसंद करते हैं। हमारा जीवन कठिन है। हम दिन-प्रतिदिन की चिंताओं से स्वयं को मुक्त करने में अब तक समर्थ नहीं हैं, यहाँ तक कि जब कभी भी हमने यह कोशिश की तो भी, ताकि हम अपने सामान्य रूटीन से इतना ऊँचा और दूर चले जाएँ जितना कि संगीत। लेकिन उसके लिए हमारे मन में इतना दुःख नहीं है; हम इतना दूर गए भी नहीं। एक निश्चित व्यावहारिक धूर्तता जिसकी स्वीकार्य रूप से हमें बहुत जरूरत होती है और जिसे हम अपना सबसे बड़ा सम्मान समझते हैं। उससे धूर्तता से उत्पन्न मुसकराहट के साथ हम अपनी सभी कमियों के लिए स्वयं को सांत्वना देने के लिए अभ्यस्त हैं। अगर यह मान भी लें कि सिर्फ ऐसा नहीं होगा, फिर भी हम अभिलाषा करेंगे उस आनंद की जो संगीत से प्राप्त होती है। जोसफिन ही एकमात्र अपवाद है । उसे संगीत से प्रेम है और वह जानती है कि इसे किस तरह प्रसारित किया जाता है । वह ही एकमात्र है। जब वह मर जाएगी संगीत कौन जानता है कि कब तक, हमारे जीवन से गायब हो जाएगा।
मैंने कई बार सोचा है कि उसके इस संगीत का वास्तव में क्या अर्थ है । क्योंकि हम तो बिल्कुल ही असंगीतमय हैं, यह कैसे होता है कि हम जोसफिन के संगीत को समझते हैं या चूँकि जोसफिन इस बात से इनकार करती है, कम-से-कम यह सोचते हैं कि हम यह समझ सकते हैं । इसका सीधा सा जवाब यह है कि उसके गाने में इतना आकर्षण है कि संगीत के प्रति अति असंवेदनशील व्यक्ति भी उसके संगीत की अनदेखी नहीं कर सकता है, लेकिन यह उत्तर संतोषजनक नहीं है। यदि सचमुच में ऐसा होता तो उसके संगीत में यह शक्ति होती कि इसे सुननेवाला अपने अस्तित्व के प्रति सामान्य से हटकर शीघ्र एवं शाश्वत अनुभव कर सकता था, एक ऐसा अनुभव कि उसके गले से निकलनेवाली आवाज ऐसी है जैसी हमने पहले कभी नहीं सुनी है और जिसे हम सुनने के लिए समर्थ भी नहीं हैं, कोई ऐसी चीज जिसे जोसफिन के सिवा कोई अन्य हमें सुनने के लिए समर्थ कर भी नहीं सकता है। लेकिन मेरे विचार में यह ऐसा है जो होता नहीं है । मैं ऐसा महसूस नहीं करता हूँ और न ही मैंने कभी यह देखा है कि किसी को भी ऐसा अनुभव होता है । अपने निकट लोगों में हम यह स्पष्ट रूप से स्वीकार करते हैं कि जोसफिन के गायन में, गायन के रूप में, सामान्य से हटकर के कुछ भी नहीं था।
क्या सचमुच में सिर्फ गायन ही है? यद्यपि हम असंगीतमय हैं, फिर भी संगीत की हमारी एक परंपरा है। प्राचीन समय में हमारे लोग तो गाते ही थे, इसके उल्लेख में तो मिलता ही है और कुछ गीत तो वास्तव में आज भी विद्यमान हैं, जो कि यह सच है कि अब कोई भी नहीं गा सकता है। इसलिए हमें थोड़ा आभास है कि संगीत क्या होता है और जोसफिन की कला तो वास्तव में इससे मेल नहीं खाती है। इसलिए क्या यही गायन है? शायद यह बाँसुरी की आवाज नहीं है क्या ? तथा बाँसुरी की आवाज कोई ऐसी चीज है, जिसके बारे में हम तो जानते ही हैं यह हमारे लोगों की वास्तविक कलात्मक प्रवीणता थी या कि कोई प्रवीणता नहीं है, बल्कि हमारे जीवन की विशिष्ट अभिव्यक्ति थी। हम सभी बाँसुरी बजाते हैं, लेकिन निस्संदेह किसी ने भी यह समझने की कोशिश नहीं की कि बाँसुरी बजाना भी एक कला है, हम बिना सोचे बाँसुरी बजाते हैं, वास्तव में बिना कोई ध्यान दिए ही और हममें से बहुत लोग ऐसे होंगे, जिन्हें यह तक नहीं मालूम कि बाँसुरी बजाना हमारी विशेषताओं में से एक है। इसलिए यदि यह सच है कि जोसफिन गाती नहीं है वह तो सिर्फ बाँसुरी बजाती है और शायद, जैसा कि कम-से-कम यह मुझे लगता है, यह हमारे बाँसुरी बजाने के स्तर से मुश्किल से ही थोड़ा ऊपर है, फिर भी, शायद उसकी शक्ति हमारे सामान्य बाँसुरी बजाने के बराबर भी नहीं है, जबकि एक सामान्य कृषि श्रमिक बिना किसी प्रयास के ही उस स्तर को पूरा दिन बनाए रख सकता है, जो वह अपना काम करने के अलावा कर सकता है, यदि वह बिल्कुल सही है। तो जोसफिन के कथित स्वर कौशल को गलत माना जा सकता है। लेकिन इससे सिर्फ वास्तविक पहेली, जिसका कि उस पर व्यापक प्रभाव है, को सुलझाना है।
जो भी हो, यह तो बाँसुरी की ही एक प्रकार की आवाज है जो वह निकालती है। यदि आप अपने आपको उससे काफी दूर रखकर सुनते हैं तो, या उससे भी अच्छा, अपने निर्णय की जाँच करते हैं तो, जब कभी भी वह दूसरों के साथ गाती है, उसकी आवाज को पहचानने की कोशिश करके आप निस्संदेह कुछ और अंतर नहीं पाएँगे सिवाय बाँसुरी की आवाज के, जो कि दूसरों की तुलना में अधिक-से-अधिक कमजोर या नाजुक हो सकता है। फिर भी यदि आप उसके सामने बैठ जाएँ तो यह सिर्फ बाँसुरी ही नहीं है। उसकी कला को समझने के लिए यह आवश्यक है कि आप न सिर्फ उन्हें सुनें ही, बल्कि उसे देखें भी । यद्यपि कि उसकी बाँसुरी की आवाज हमारे सामान्य कामकाजी दिनों की तरह ही है, फिर भी सबसे पहले तो इस विचित्रता पर विचार कीजिए कि कोई सामान्य चीजों की सहायता से ही महत्त्वपूर्ण प्रदर्शन कर रहा है । सुपारी तोड़ना सचमुच कोई अद्भुत काम नहीं है, इसलिए कोई भी श्रोताओं को इकट्ठा कर उन्हें सुपारी काटकर दिखाकर मनोरंजन करने का साहस नहीं करेगा । लेकिन यदि कोई वही काम करता भी है तथा लोगों का मनोरंजन करने में सफल भी हो जाता है तो यह सुपारी काटने जैसी आम सी बात नहीं है। तब तो यह इस बात को सिद्ध करता है कि हमने सुपारी काटने की कला की अनदेखी की, क्योंकि हम इसमें अत्यंत कुशल हैं तथा इसी कला को प्रदर्शित करनेवाला नया व्यक्ति इसके प्रभाव को उपयोगी पाकर भी वह हमारी तुलना में सुपारी काटने में कम कुशल होने के बावजूद भी सबसे पहले तो हमें इसकी वास्तविक प्रकृति दिखाता है।
शायद जोसफिन के गायन के साथ भी बहुत कुछ ऐसा ही है । हम उसमें उन चीजों की प्रशंसा करते हैं, जो हम अपने लिए बिल्कुल नहीं करते हैं । इस दृष्टि से, मैं कह सकता हूँ कि वह हमारी तरह ही है। एक बार मैं किसी अन्य के साथ था, ऐसा प्रायः निश्चित रूप से होता भी है, जहाँ कहीं भी हम जा रहे थे, उसका ध्यान लोक बाँसुरी वादन की ओर जा रहा था, इस ओर इशारा मात्र ही कर रहा था, फिर भी जोसफिन के लिए यह बहुत बड़ी बात थी। एक अहंकारभरी व्यंग्यपूर्ण मुसकान, क्योंकि उसने यह सोचा कि मैंने यह कभी देखा ही नहीं है। वह जो देखने में इतनी नाजुक थी, विशेष रूप से हमारे लोगों के बीच में जो इस प्रकार की नारीवादी छाप में सफल थे, उस क्षण वास्तव में बड़े ही अभद्र लग रहे थे। उसे शीघ्र ही अपने आप अपनी तीव्र संवेदनशीलता द्वारा इस बात का पता चल गया और उसने स्वयं पर नियंत्रण कर लिया। वह किसी भी कीमत पर अपनी कला और सामान्य बाँसुरी वादन के बीच किसी भी प्रकार के संबंध को नकारती है। जिनके विचार इसके विपरीत हैं, उनके लिए उसके मन में सिर्फ घृणा तथा उपेक्षित तिरस्कार ही है । यह कोई आम घमंड नहीं है, क्योंकि वह विरोध जिसके साथ मेरी भी आधी सहानुभूति है, निश्चित रूप से भीड़ की तुलना में कम प्रशंसा नहीं करती है। लेकिन जोसफिन सिर्फ प्रशंसा ही नहीं चाहती है, वह चाहती है कि उसकी ठीक उसी प्रकार प्रशंसा की जाए जैसा कि वह चाहती है, सिर्फ प्रशंसा से तो उसका उत्साह ही ठंडा हो जाता है। यदि आप उसके आगे बैठते हैं तभी आप उसे समझ पाते हैं। विरोध तो कुछ दूर से ही संभव है। जब आप उसके आगे बैठते हैं तो आप जानते हैं, उसका यह बाँसुरी वादन कोई बाँसुरी वादन नहीं है।
चूँकि बाँसुरी वादन हमारी एक विचारहीन आदत है, कोई भी यही सोच सकता है कि लोग जोसफिन के श्रोताओं के सामने भी गाने लगेंगे; उसकी कला हमें आनंद देती है और जब हम खुश होते हैं तो बाँसुरी वादन करते हैं; लेकिन उसके श्रोता कभी भी बाँसुरी नहीं बजाते हैं। वे तो चूहों की - सी मौनता लेकर बैठ जाते हैं; मानो इच्छित शांति के सहभागी हैं जिससे कि हमारा अपना बाँसुरी वादन हमें बाँधकर रखता है, और हम कोई शोर नहीं करते हैं। क्या यह उसका गायन है जो हमें मोहित करता है या बल्कि यह उसकी कमजोर आवाज से निकलनेवाली गंभीर शांति नहीं है? एक बार ऐसा हुआ कि जब जोसफिन कोई साधारण सा गीत पूरी निश्छलता से गा रही थी तभी वे सब भी गाने लगे, अब भी यह बिल्कुल वही था जो हम जोसफिन से सुन रहे थे। हमारे सामने बाँसुरी की जो आवाज आ रही थी सारे अभ्यास के बावजूद भी संकोची थी और यहाँ श्रोताओं में एक बच्चे का निःसंकोच बाँसुरी वादन चल रहा था; इस अंतर को समझा पाना असंभव होता, लेकिन फिर हमने फुफकारे और सीटी बजाकर बाधा डालनेवाले को चुप किया, यद्यपि कि यह बहुत जरूरी नहीं होता, क्योंकि फिर तो वह लज्जा एवं भय के कारण भाग जाती, जबकि जोसफिन ने अपने विजय उल्लास से पूर्ण धुन बजाई और वह अपने आप से बाहर थी। वह अपने बाजू को फैला रही थी और अपने गले को जितना ऊँचा खींच सकती थी, खींच रही थी ।
हमेशा की तरह वह ऐसी है; हर मामूली - साधारण घटना, हर परेशानी, फर्श की एक खड़खड़ाहट, दाँतों की किरकिराहट, प्रकाश व्यवस्था की नाकामी उसे अपने संगीत के प्रभाव को बढ़ाने के लिए प्रेरित करती है। जो भी हो उसे यह विश्वास रहता है कि वह बहरे लोगों के लिए गा रही है । उत्साह और प्रशंसा की कोई कमी नहीं होती है, लेकिन सही समझ की आशा न करना तो उसने पहले ही सीख लिया है, वह ऐसा ही समझती है । इसलिए उसे व्यवधान से कोई फर्क नहीं पड़ता है। उसके संगीत की शुद्धता को बाधित करने के लिए बाहर से जो भी व्यवधान आता है, थोड़े से प्रयास से या बिना किसी प्रयास के ही, सिर्फ इसका सामना करके ही वह लोगों को जाग्रत् करने में मदद कर सकती है, उन्हें वह शायद समझ की शिक्षा नहीं दे सकती है, लेकिन विस्मित सम्मान की तो दे सकती है।
यदि छोटी-छोटी घटनाओं से उसे इतना फायदा होता है तो बड़ी घटनाओं से कितना होगा? हमारा जीवन तो वैसे ही असुरक्षित है, हर दिन, चिंताएँ, शंकाएँ, आशाएँ एवं आतंक लेकर आता है, यदि व्यक्ति को दिन-रात अपने साथियों का समर्थन एवं सहयोग न मिले तो अकेले व्यक्ति के लिए यह सब बरदाश्त कर पाना लगभग असंभव होगा; लेकिन फिर भी प्रायः यह बहुत कठिन हो जाता है। बार-बार हजारों कंधे एक बोझ के नीचे काँप रहे हैं जो कि वास्तव में एक जोड़ी के लिए बने थे । तब जोसफिन को लगता है कि उसका समय आ गया है। इसलिए जब वह नाजुक प्राणी, विशेषकर अपनी छाती की हड्डियों के कंपन से विचलित होकर खड़ी होती है, तो कोई भी उसके लिए चिंतित हो जाता है। ऐसा लगता है मानो उसने अपना पूरा ध्यान ही अपने संगीत पर केंद्रित कर दिया है, मानो उसके भीतर की हर चीज जो सीधे-सीधे उसके गायन में सहायता नहीं करती है, वह सारी शक्ति, जीवन की लगभग सारी शक्ति निकल गई है, मानो वह बेआसरा परित्यक्त छोड़ दी गई, जिसकी देखभाल सिर्फ दूतों के जिम्मे है। ऐसा लगता है कि वह पूरी तरह से अंतर्मुखी हो गई है और सिर्फ अपने संगीत में ही जीवित है तथा उसके ऊपर पड़नेवाली एक ठंडी साँस से भी वह मर सकती है। लेकिन तभी वह ऐसे प्रकट होती है कि हम, जो उसके विरोधी माने जाते हैं, को यह कहने की आदत है, "वह गा भी नहीं सकती है, उसने अपने ऊपर एक संगीत के लिए इतना दबाव बना रखा है, इसे हम संगीत नहीं कह सकते हैं, बल्कि यह हमारे सामान्य प्रचलित बाँसुरी वादन के सादृश्य कोई चीज है।" इस तरह हमें ऐसा लगता है, लेकिन यह प्रभाव भी, जैसे कि मैंने कहा, अवश्यंभावी पर क्षणभंगुर है, अस्थायी है। शीघ्र ही हम भी आम लोगों की भावनाओं में डूब जाते हैं, वह भी एक-दूसरे से चिपके, अंतर्मुखी साँसों के साथ हम सुनते हैं।
उसके चारों ओर इकट्ठे होने के लिए हमारे आदमियों की यह भीड़, जो कि हमेशा ही गायब रहती है और बिना किसी कारण के ही इधर-उधर भागती रहती है, उनके लिए जोसफिन को अधिकांशतः कुछ नहीं करना पड़ता है, सिवाय इसके कि वह अपना सिर पीछे झुकाकर मुँह आधा खोलकर आँखें ऊपर की ओर निकालकर एक जगह खड़ी हो जाए, जिससे यह लगे कि वह गाने जा रही है । जहाँ उसे पसंद होता है, वह यह कर सकती है, इसके लिए किसी सुदूर निर्जन कोने की जरूरत नहीं होती है । जैसे ही खबर मिलती है कि वह गाने जा रही है, शीघ्र ही लोगों का जुलूस उसी ओर बढ़ने लगता है। अब, कभी - कभी उसी तरह से बाधाएँ विघ्न डालती हैं । जोसफिन को गाना गाना सबसे अच्छा उसी समय लगता है, जब चीजें अव्यवस्थित होती हैं। अनेक चिंताएँ एवं खतरे हमें धूर्ततापूर्ण रास्ता अपनाने के लिए विवश करते हैं। दुनिया के श्रेष्ठ संकल्पों के साथ भी हम उतनी शीघ्रता से एकत्रित नहीं हो सकते हैं, जितना कि जोसफिन चाहती है। कई अवसरों पर तो बिना पर्याप्त श्रोताओं के भी वह औपचारिक रूप से खड़ी हो जाती और बहुत देर तक खड़ी रहती । उसके बाद वह वास्तव में क्रोधित हो जाती और भद्दे तरीके से जमीन पर अपने पाँव पटकने लगती । वास्तव में वह परेशान करती है। लेकिन ऐसा आचरण भी उसकी प्रसिद्धि को प्रभावित नहीं करता है। अपने अत्यधिक माँगों को थोड़ा कम करने की बजाय लोग उससे मिलने के लिए परेशान रहते हैं। नए-नए श्रोताओं को बुलाने के लिए दूत भेजे जाते हैं । उसे इस अज्ञानता में रखा जाता है कि यह काम हो रहा है। सड़क के चारों ओर प्रहरियों को तैनात देखा जा सकता है, जो नव आगंतुकों को जल्दी जाने के लिए प्रेरित करते हैं। यह तब तक जारी रहता है, जब तक कि ठीक-ठीक ढंग से काफी श्रोता इकट्ठे नहीं हो जाते।
जोसफिन के लिए इतनी मेहनत करने के लिए लोगों को क्या प्रेरित करता है ? इस प्रश्न का उत्तर देना जोसफिन के गायन के बारे में पहले प्रश्न से आसान नहीं है, जिससे कि इसका निकट का संबंध है। कोई भी उसे निकालकर इन दोनों को दूसरे प्रश्न के साथ जोड़ सकता है, यदि बलपूर्वक यह कहना संभव होता तो, क्योंकि उसके गायन के कारण लोग बिना शर्त उसके प्रति समर्पित हैं। लेकिन सीधे-सीधे यह ऐसा मामला नहीं है । हमारे बीच बिना शर्त समर्पण मुश्किल से ही है । हम तो उस तरह के लोग हैं, जो धूर्तता से हर चीज से ज्यादा प्यार है, बिना किसी कपट के, बचकाना-फुसफुसाहट, बकबक, निश्छल सतही बकबक के, निश्चित रूप से, इस प्रकार के लोग बिना शर्त समर्पण नहीं कर सकते हैं, और जैसा कि जोसफिन स्वयं भी निश्चित रूप से जानती है और इसीलिए वह अपने कमजोर गले की पूरी शक्ति से इसके विरुद्ध लड़ती है।
ऐसी सामान्य घोषणाएँ करने के लिए, निश्चित रूप से बहुत आगे जाने की जरूरत नहीं है । हमारे लोग भी जोसफिन के प्रति उतने ही समर्पित हैं, केवल बिना शर्त रूप में ही नहीं । उदाहरण के लिए वे जोसफिन का मजाक नहीं उड़ा पाएँगे। यह स्वीकार किया जा सकता है; जोसफिन में ऐसी बहुत चीजें हैं, जिन पर लोगों को हँसी आ सकती है; और हँसने के लिए हँसने का तो हमें बहाना चाहिए । हमारे जीवन की सभी परेशानियों के बावजूद भी हँसी तो हमेशा हमारे मन में होती है, लेकिन हम जोसफिन का मजाक नहीं उड़ाते हैं । कई बार तो मेरे मन में यह बात आई कि हमारे लोग जोसफिन के साथ अपने संबंध की इस रूप में व्याख्या करते हैं, कि उसे एक कमजोर प्राणी, जिसे सुरक्षा की जरूरत होती है और कुछ तरह से विशेष, उसके अपने ही विचार में उसके गाने के उपहार के लिए विशिष्ट उनकी देखभाल में सौंप दिया गया है और उन्हें उसकी देखभाल करनी चाहिए। इसका कारण तो किसी को भी मालूम नहीं है, लेकिन तथ्य स्थापित प्रतीत होता है। लेकिन जो कुछ भी किसी की देखरेख में सौंपा जाता है वह उस पर हँसता नहीं है। हँसने का अभिप्राय है अपने कर्तव्य में लापरवाही । सबसे बड़ा छल, जो हममें से सबसे बड़ी कपटी ने जोसफिन के साथ किया वह प्रायः यह कहना है, "जोसफिन पर नजर पड़ना ही हँसी को रोकने के लिए काफी है।"
इस तरह लोग पिता द्वारा अपने उस बच्चे की देखभाल करने से ज्यादा जोसफिन की देखभाल करते हैं, जिसका छोटा-सा हाथ किसी को नहीं मालूम कि आदेश या आग्रह के लिए उसकी ओर फैला है । कोई भी यह सोच सकता है कि पितृत्व दायित्व निभाने के लिए हमारे आदमी उपयुक्त नहीं होंगे, लेकिन वास्तव में वे इसका निर्वहन कर रहे हैं; कम-से-कम इस मामले में तो प्रशंसापूर्वक कर रहे हैं। कोई भी अकेला व्यक्ति वह नहीं कर सकता, जो इस दृष्टि से सभी लोग सम्मिलित रूप से करने में समर्थ हैं । पक्के तौर पर एक व्यक्ति और लोगों की शक्ति के बीच का अंतर इतना बड़ा है कि नर्स की देखरेख में रहनेवाले शिशु के लिए उनकी निकटता की गरमी की ओर खींचा जाना काफी है और वह पर्याप्त रूप से सुरक्षित होता है। जोसफिन के लिए तो निश्चित रूप से, किसी को भी ऐसा विचार व्यक्त करने की हिम्मत नहीं हो सकती । "तुम्हारी सुरक्षा का मूल्य एक पुराने गीत के बराबर नहीं है ।" तब वह कहती है कि जरूर, जरूर, पुराने गीत हम सोचते हैं। उसके विरोध में कोई वास्तविक विरोधाभास न होने के अलावा, बल्कि यह करने का एक पूरी तरह से बचकाना तरीका है और बचकाना अहसानमंदी, जबकि एक पिता के करने का तरीका यह है कि इस पर कोई ध्यान ही न दो ।
फिर भी इसके पीछे कुछ चीज ऐसी है, जिसकी लोगों और जोसफिन के बीच के संबंध द्वारा व्याख्या करना आसान नहीं है। जोसफिन, कहने का अभिप्राय है, इसके बिल्कुल विपरीत सोचती है, वह मानती है कि लोगों की रक्षा तो वह कर रही है। जब हम राजनीतिक और आर्थिक रूप से बुरी अवस्था में हैं तो उसके गायन से यह अपेक्षा होती है कि वह हमारी रक्षा करेगा, उससे कम कुछ भी नहीं और यदि यह भी बुराई को नहीं भगाता है, कम-से-कम हमें इसे सहन करने की शक्ति तो देता है । वह इसे इन शब्दों में या किसी अन्य शब्दों में नहीं वर्णन करती है । जो भी हो वह बहुत कम बताती है। बक-बक करनेवालों में वह खामोश रहती है; यह तो उसकी आँखों से, बंद होंठों से भी झलकता है; हममें से कुछेक लोग ही अपने होंठ बंद रख सकते हैं, लेकिन वह रख सकती है, यह सहज रूप से स्पष्ट है। जब कभी भी हमें बुरी खबर मिलती है और कई दिनों तक बुरी खबरें आती रहती हैं, जिनमें झूठ एवं आधा सच भी होता है, वह तेजी से उठती है, जबकि वह प्रायः निरुत्साह के साथ जमीन पर बैठी रहती है। वह उठती है तथा खींचकर अपना गला सीधा करती है तथा समूह के सिर के ऊपर से उसी प्रकार देखने की कोशिश करती है, जिसमें मेघ गर्जन एवं बिजलीवाले तूफान से पहले गड़ेरिया देखता है। निश्चित रूप से यह बच्चों की आदत होती है, जो असभ्य, मनमौजी ढंग से ऐसे दावे करते हैं, लेकिन जोसफिन का आचरण बच्चों के लिए इतना भी बेबुनियाद नहीं है। यह सही है कि वह हमें बचाती नहीं है और वह हमें कुछ शक्ति भी नहीं देती है; स्वयं को अपने लोगों के उद्धारक के रूप में प्रस्तुत करना आसान है, कष्ट में जिस प्रकार ढल जाते हैं, खुद को भी नहीं छोड़ते, तीव्र में तेज होते हैं, मृत्यु से भली-भाँति परिचित होते हैं, उन्मुक्त साहस के वातावरण में ही वे डरते हैं, जिन्हें निरंतर वे श्वास में लेते हैं तथा जितने वे साहसी होते हैं, उसके अलावा वे ऊर्वर भी होते हैं। मैं कहता हूँ घटना के बाद स्वयं को लोगों के उद्धारक के रूप में प्रस्तुत करना आसान है, जो कि हमेशा ही किसी-न-किसी तरह स्वयं को बचाने में सफल रहे हैं, यद्यपि कि उस बलिदान की कीमत पर जो कि इतिहासविद् बनाते हैं, आमतौर पर बोला जाए तो हम पूरी तरह से ऐतिहासिक अनुसंधान की अनदेखी करते हैं, बहुत ही डरे हुए से। और फिर भी यह सही है कि हम आपातकालीन स्थिति में अन्य समय की तुलना में जोसफिन की आवाज सुनना पसंद करते हैं। हमारे ऊपर मँडरानेवाले संकट हमें खामोश, विनम्र एवं दब्बू बना देते हैं तथा जोसफिन के अधीन कर देते हैं। हम एक साथ जाना पसंद करते हैं । हम एक-दूसरे के साथ सिमटकर रहना पसंद करते हैं, विशेषकर ऐसे मौकों पर जब परेशानियों के कारण हम अलग हो जाते हैं। ऐसा लगता है मानो हम जल्दी में पी रहे हैं, हाँ जल्दी भी जरूरी होता है, कभी-कभी जोसफिन यह भूल जाती है - लड़ाई के पहले शांति के प्याले से जो सामान्य होता है । यह उतना गाने का प्रदर्शन नहीं है जितना लोगों की भीड़ का, एक ऐसी भीड़, जहाँ सामने बाँसुरी की आवाज के सिवाय पूरा सन्नाटा है। यह समय हमारे लिए इतना गंभीर है कि हम इसे बक-बक करके बरबाद नहीं कर सकते।
इस प्रकार का संबंध, निश्चित रूप से जोसफिन को कभी संतुष्ट नहीं करेगा। समस्त स्नायविक बेचैनी के बावजूद, जो जोसफिन को प्रायः महसूस होती है, क्योंकि जोसफिन की स्थिति कभी भी पूर्णतः परिभाषित नहीं रही है, फिर भी बहुत कुछ है जो वह देख नहीं सकती है, क्योंकि घमंड ने उसे अंधा कर रखा है; और उसे बहुत आसानी से उसकी नजरों से बचाया भी जा सकता है; उसके बहुत सारे चाटुकार हमेशा यह करने में व्यस्त रहते हैं, जो एक प्रकार से समाज सेवा है, फिर भी यह संयोगवश है तथा उनकी ओर किसी का ध्यान भी नहीं जाता है एवं वे लोगों के जमघट में एक कोने में होते हैं, फिर भी यह कोई छोटी सी बात नहीं है, वह निश्चित रूप से हमें अपने गायन से वंचित नहीं कर सकती है।
उसे ऐसा करने की जरूरत भी नहीं है, क्योंकि उसकी कला की अनदेखी नहीं होती है । यद्यपि हम कई अन्य चीजों में उलझे रहते हैं तथा यह किसी भी तरह ऐसा नहीं है कि उसके गायन के वास्ते ही शांति है; कुछ श्रोता तो देखते भी नहीं और अपना चेहरा पड़ोसी के बालों में छुपा लेते हैं ताकि सामने जोसफिन बिना उद्देश्य स्वयं को थकाती रहे। फिर भी इसमें कुछ है, इससे इनकार नहीं किया जा सकता, जो प्रबल रूप से जोसफिन की बाँसुरी से हम तक पहुँच जाता है। इस बाँसुरी की आवाज तब तेज होती है, जब सभी शांत रहने का संकल्प लेते हैं, और सभी व्यक्तियों की ओर से प्रत्येक व्यक्ति के लिए आए हुए संदेश की तरह लगता है; जोसफिन की पतली बाँसुरी गंभीर निर्णयों के बीच लगभग उसी तरह लगती है जैसे कोलाहल भरे वैरी संसार में हमारे लोगों का कमजोर अस्तित्व। जोसफिन स्वयं को थकाती है, उसकी आवाज में कुछ नहीं है, उसके क्रियान्वयन में कुछ नहीं है। वह दृढ़तापूर्वक अधिकार जताती है और हम तक पहुँच जाता है उसका संदेश; इसे सुनकर हमें अच्छा तो लगता ही है। यदि हमारे बीच में एक भी ऐसा वास्तविक रूप से प्रशिक्षित गायन मिलता है तो हमें निश्चित रूप से ऐसे समय में यह सहन नहीं करना पड़ेगा और हमें सर्वसम्मति से ऐसे प्रदर्शनों की निरर्थकता से मुक्ति मिलेगी। जोसफिन को भी इस सोच से मुक्ति मिले कि हमारा उसे सिर्फ सुनना ही यह प्रमाण है कि वह गायक नहीं है । उसे इसका आभास तो होना चाहिए नहीं तो इतने आवेश में वह यह कैसे इनकार कर सकती है कि हम सुनते तो हैं, वह तो सिर्फ गाती रही और अपने आभास को हवा में उड़ाती रही।
दूसरी अन्य चीजें भी हैं, जिसमें उसे राहत महसूस होती है; हम वास्तव में एक तरह से उसे इस प्रकार सुनते हैं जैसे कोई प्रशिक्षित गायक को सुनता है । उसे वह प्रभाव मिलता है, जो एक प्रशिक्षित गायक व्यर्थ में हमारे बीच प्राप्त करना चाहेगा तथा जो बिल्कुल सही तरह से तभी प्रस्तुत किया जाता है, क्योंकि उसके संसाधन बिल्कुल अपर्याप्त हैं। इसके लिए निस्संदेह हमारा जीने का ढंग ही मुख्य रूप से उत्तरदायी है।
हमारे लोगों में युवावस्था की कोई उम्र नहीं होती, मुश्किल से सबसे छोटा बचपन नियमित रूप से, यह सत्य है, ऐसी माँगें आती रहती हैं कि बच्चे को विशेष स्वतंत्रता दी जानी चाहिए, विशेष सुरक्षा, थोड़ा लापरवाह रहने का अधिकार, थोड़े अर्थहीन चक्कर खाने का अधिकार, थोड़ा खेल, कि इस अधिकार का सम्मान किया जाना चाहिए तथा इसके उपयोग को प्रोत्साहित किया जाना चाहिए; ऐसी माँगें आती रहती हैं और लगभग हर कोई इसकी स्वीकृति देते हैं। इससे ज्यादा स्वीकार्य करने के लिए और कुछ है ही नहीं; और हमारी दैनिक जीवन की वास्तविकताओं में ऐसा भी कुछ नहीं है, जिसे दिए जाने की कम संभावना है। कोई भी इन माँगों की स्वीकृति देता है, कोई भी इन माँगों को पूरा करने का प्रयास करता है, लेकिन शीघ्र ही सभी पुराने तरीके वापिस आ जाते हैं। हमारा जीवन ऐसा है कि एक बच्चा जैसे ही थोड़ा चलना सीखता है तथा एक से दूसरी चीजों में फर्क करना सीखता है; उसे एक वयस्क की तरह स्वयं को देखना चाहिए। वे क्षेत्र, जहाँ कि आर्थिक कारणों से हमें बिखराव में रहना पड़ता है वे बहुत हैं। हमारे दुश्मन भी बहुत हैं, हमारी प्रतीक्षा में इधर-उधर पड़े संकटों का अनुमान करना भी आसान नहीं है। हम अपने बच्चों की अस्तित्व के संघर्ष से रक्षा नहीं कर सकते हैं। यदि हम ऐसा करते हैं, तो जल्द ही उनके अस्तित्व पर संकट आ जाता है। इन निराशाजनक सोच-विचार को, अन्य विचारों को, जो निराशाजनक नहीं हैं हमारी प्रजाति की उर्वरता से बल मिलता है । हमारी पीढ़ी और प्रत्येक बहुसंख्यक हैं, दूसरों के सहारे चलती है। बच्चे को बच्चा बने रहने का समय नहीं है, दूसरी प्रजातियाँ अपने बच्चों का ध्यानपूर्वक पालन-पोषण करती हैं, उसके बच्चों के लिए स्कूलों की स्थापना की जा सकती है। ऐसे स्कूलों से प्रतिदिन बच्चे निकलते आएँगे। इनमें प्रजाति का भविष्य वही बच्चे हैं, जो लंबी अवधि से दिन-प्रतिदिन निकलते रहे हैं । हमारा कोई स्कूल नहीं है, फिर भी हमारी प्रजाति से छोटे अंतराल पर असंख्य बच्चों के झुंड निकलते हैं, जो हँसते-खेलते, चहचहाते रहते हैं, तब तक जब तक कि उन्हें बाँसुरी वादन नहीं आ जाता है, वे आवेग में तब तक लुढ़कते, उठते-गिरते जब तक वे दौड़ नहीं सकते; अव्यवस्थित रूप से हर चीज तब तक ढोते रहते हैं, जब तक कि वे देख भी नहीं सकते, हमारे बच्चे ! नहीं, नहीं, ये उन स्कूलों की तरह के बच्चे नहीं हैं; ये तो हमारे नए-नए बच्चे हैं, अबाध रूप में आते हुए, अभी मुश्किल से वह बच्चा प्रकट भी नहीं होता है कि वह बच्चा नहीं रहता है, जबकि उसके पीछे बच्चे जैसे दिखनेवाले चेहरों की इतनी भीड़ होती है कि उनमें अंतर करना मुश्किल होता है, सभी हँसते - खिलखिलाते बच्चे । सही में, यह कितना ही आनंददायक क्यों न हो और दूसरे इसके लिए हमसे कितनी ही ईर्ष्या क्यों न करें और सही है, हम तो बस अपने बच्चे को सच्चा बचपन नहीं दे सकते । और इसके अपने परिणाम हैं। हमारे लोगों में बचा हुआ और जिसे नष्ट न किया जा सके, ऐसा बचपन अभी भी है । इसके बिल्कुल विपरीत हमारे भीतर क्या श्रेष्ठ है, हम अपनी अचूक व्यावहारिक सामान्य बुद्धि के बावजूद, कभी-कभी हम अत्यंत मूर्खतापूर्ण आचरण करते हैं, ठीक बच्चों की तरह, वह भी छोटे-छोटे आनंद के लिए, आडंबरपूर्ण, निरुद्देश्य, गैर-जिम्मेदार आचरण । यद्यपि कि इससे प्राप्त हमारा आचरण निश्चित रूप से बच्चों के आनंद की तरह उल्लास भरा नहीं होता, फिर भी इसका कुछ अंश तो निस्संदेह रूप से इसमें विद्यमान रहता है । हमारे लोगों के इस बचपने से जोसफिन को भी शुरू में फायदा हुआ है।
फिर भी हमारे लोगों में सिर्फ बचपना ही नहीं है, एक तरह से हममें अपरिपक्व बुढ़ापा भी है। हमें बुढ़ापा और बचपना ऐसे आता है जैसे अन्य लोगों को नहीं आता है । हमारी कोई युवावस्था नहीं आती, हम शीघ्र ही बड़े हो जाते हैं और फिर हम लंबी अवधि तक वयस्क ही रहते हैं। इससे उपजी थकान और निराशा के कारण हमारे व्यक्तियों के स्वभाव में एक व्यापक निशानी छोड़ देता है, जो इस आशा में कि यह सामान्य है, कठोर और मजबूत हो जाता है। हममें संगीतमय उपहारों की कमी का निश्चित रूप से इससे कुछ संबंध है। संगीत, इसकी उत्तेजनाओं के लिए हम बहुत बड़े हो चुके हैं। इसका हर्षोन्माद हमारे भारीपन के अनुकूल नहीं होता है, हम थके अंदाज में इसे हाथ हिलाकर स्वीकार करते हैं; हम बाँसुरी वादन से ही स्वयं को संतुष्ट करते हैं। थोड़ा-बहुत इधर-उधर बाँसुरी वादन ही हमारे लिए बहुत है । किसे मालूम कि ठीक हमारे अंदर भी संगीत के लिए प्रतिभा है । यदि वे होते भी होंगे तो हमारे लोगों का चरित्र उसे निखरने से पहले ही कुचल देता है। दूसरी ओर जोसफिन तब तक बाँसुरी वादन करती है या गाती है या वह इसे जो भी कहना चाहती है कर सकती है, जब तक वह चाहती है। इससे उसे कोई व्यवधान नहीं आता है और यह हमारे लिए अनुकूल होता है और हम यह अच्छी तरह सहन कर सकते हैं। इसमें जो भी संगीत होगा वह तो कम-से-कम संभव अवशेषों में बदल गया है। संगीत की एक निश्चित परंपरा सुरक्षित है, फिर भी इसके प्रति हमारे अंदर थोड़ी भी रुचि नहीं है।
फिर भी हमारे लोग जैसे भी हैं, उन्हें जोसफिन से इससे ज्यादा ही प्राप्त होता है। उसके संगीत कार्यक्रमों में विशेषकर तनाव के समय में, उसके गायन में, गायन के रूप में केवल अति वयस्क लोग ही रुचि लेते हैं, सिर्फ वे ही अचरजभरी टकटकी के साथ उसे टकटकी लगाकर देखते रहते हैं। जब वह अपने होंठ हिलाती है, सामने के छोटे-छोटे दाँतों के बीच से हवा निकालती है, उसके मुख से निकलनेवाली आवाज पर अत्यंत अचरज के साथ आहें भरते हैं। इस प्रकार की सराहना के बाद उसका प्रदर्शन नई एवं विश्वसनीय ऊँचाइयों को छू जाता है, जब लोगों का वास्तविक समूह, जिसे देखना आसान है, बहुत ही अंतर्मुखी और खुद में सिमट जाता है। हमारे लोग अपने संघर्ष के लघु अंतराल के बीच में सपने देखते हैं; यह ऐसा ही है जैसे मानो सभी के अंग ढीले पड़ गए हैं; मानो परेशान इनसान समुदाय के बड़े, गरम बिछावन पर एकाध बार विश्राम ले सकता है तथा आराम से अँगड़ाई ले सकता है। इन सपनों में जोसफिन का बाँसुरी वादन एक-एक स्वर करके आता है; वह इसे कहती है, मोती की तरह, हम इसे असंबद्ध करते हैं। लेकिन जो भी हो यह यहाँ अपने सही जगह पर है, क्योंकि कहीं भी इसके लिए क्षणों को प्रतीक्षा में पाना संगीत में ऐसा शायद ही होता है । हमारे संक्षिप्त कमजोर बचपन की भी इसमें कुछ भूमिका है, खोई हुई खुशी को जिसे दुबारा कभी नहीं प्राप्त किया जा सकता है, हमारे सक्रिय दैनिक जीवन इसकी छोटी- छोटी खुशियों का भी, जो इसके लिए जवाबदेह तो नहीं है, फिर भी आती रहती हैं, जिसे मिटाया नहीं जा सकता है। और वास्तव में यह सब कुछ व्यक्त किया जाता है, स्पष्ट शब्दों में नहीं, लेकिन धीमी, फुसफुसाहटभरी आवाज में गुप्त रूप से और कभी-कभी थोड़ा भद्देपन से भी । निस्संदेह यह एक प्रकार का बाँसुरी वादन है, क्यों नहीं? बाँसुरी की आवाज हमारे लोगों की दैनिक बात है । कुछेक लोग ही अपनी पूरी जिंदगी बाँसुरी बजाते हैं और इसके बारे में जानते नहीं, जबकि यहाँ बाँसुरी की आवाज दैनिक जीवन की बेडियों से मुक्त है तथा हमें भी यह कुछ के लिए मुक्त कर देती है। निश्चित रूप से हमें इन प्रदर्शनों के बिना नहीं करना चाहिए। इस दृष्टिकोण से तो यह जोसफिन के दावे से बहुत दूर है कि वह हमें नई शक्ति आदि देती है । कम-से-कम साधारण लोगों के लिए, न कि उसके चाटुकारों के लिए । " इसकी और दूसरी व्याख्या क्या हो सकती है?" निर्लज्ज धृष्टता के साथ वे कहते हैं, " और किस तरह से आप महान् श्रोताओं को समझा सकते हैं, विशेषकर जब खतरा अवश्यंभावी है, जिसने कि खतरों को टालने के लिए ली गई उचित सावधानियों को भी प्रायः काफी बाधित किया है।" दुर्भाग्यवश अब यह अंतिम कथन सच है, लेकिन इसे शायद ही जोसफिन की प्रसिद्धि की एक पंक्ति के रूप में गिना जा सकता है। विशेषकर इस बात को ध्यान में रखते हुए जब कि शत्रुओं द्वारा अनपेक्षित रूप से ऐसी बड़ी भीड़ को हटाया गया और हमारे बहुत सारे लोगों को मरने के लिए छोड़ दिया गया, जोसफिन, जो कि इन सब चीजों के लिए उत्तरदायी थी तथा वास्तव उसने ही अपनी बाँसुरी की आवाज द्वारा लोगों को आकर्षित किया था, हमेशा सबसे सुरक्षित स्थान पर चली जाती और अपने पहरेदारों की सुरक्षा में तेजी से तथा चुपचाप भागनेवालों में वह सबसे पहले होती । फिर भी, सभी कुछ सबको मालूम है और फिर भी लोग उन जगहों पर दौड़ते रहते हैं, जहाँ अगली बार जाने का जोसफिन निर्णय करती है या किसी भी समय जब वह गाने के लिए तैयार होती है। इस आधार पर कोई भी यह तर्क दे सकता है कि जोसफिन कानून से बाहर है, वह जो चाहे कर सकती है, वास्तव में समुदाय को संकट में डालने के खतरे पर भी और उस सब कुछ के लिए माफ भी कर दिया जाएगा। यदि यह सही है तो जोसफिन का दावा पूरी तरह समझ में आने योग्य है, हाँ, उसे दी जानेवाली इस स्वतंत्रता में, उसे दिए जानेवाले इस अद्भुत उपहार, जो किसी और को नहीं दिया गया है, यह कानून का स्पष्ट उल्लंघन है। इस बात की स्वीकृति में भी इसके संकेत मिलते हैं कि लोग जोसफिन को नहीं समझते हैं, जैसा कि वह आरोप लगाती है, कि वे उसकी कला पर मुग्ध हैं तथा स्वयं को ऐसे प्रदर्शनों के लिए उपयुक्त नहीं मानते हैं; एवं वह उनमें दया की उस भावना को शांत करने की कोशिश करती है जो कि उन लोगों ने उसके लिए हताशा त्याग करके किए हैं, जो कि जोसफिन को उसने ही उनमें उत्पन्न किए हैं।
उसी हद तक उसकी कला भी उनकी समझ से बाहर है। उन लोगों के क्षेत्राधिकार से बाहर होने के उसके व्यक्तित्व एवं उनके सीमा क्षेत्र से बाहर झूठ बोलने की उसकी इच्छाओं पर विचार कीजिए । ठीक है, सीधे-सीधे यह बिल्कुल सच नहीं है, व्यक्तिगत रूप से लोग आसानी से जोसफिन के सामने समर्पण कर सकते हैं, लेकिन एक समूह के रूप में वे बिना शर्त किसी के सामने भी समर्पण नहीं करते हैं; और उसके सामने भी नहीं। बहुत समय पहले से शायद अपने इस कलात्मक जीवन के आरंभिक समय से ही जोसफिन दैनिक कामों में अपने गायन की वजह से खुद को अलग किए जाने के लिए संघर्ष करती रही है । अपने दिन-प्रतिदिन की जरूरतों को खुद प्राप्त तथा अस्तित्व में सामान्य संघर्ष में सम्मिलित होने के कारण उसे सारी जिम्मेदारियों से मुक्त कर दिया जाना चाहिए, जो कि स्पष्टतः उसकी ओर से सारे लोगों को हस्तांतरित कर दिया जाना चाहिए। एक सरल उत्साही, ऐसे बहुत रहे भी हैं, इस प्रकार की माँग की असामान्यता के प्रति बहस कर सकते हैं; तथा इस प्रकार की माँग को प्रस्तुत किए जाने के लिए आवश्यक दृष्टिकोण से, इसमें आंतरिक औचित्य भी है। लेकिन हमारे लोग दूसरे निष्कर्ष निकालते हैं और इसे चुपचाप इनकार कर देते हैं । वे उस धारणा को अस्वीकृत करने के लिए भी ज्यादा प्रयास नहीं करते हैं, जिस पर यह आधारित है। जोसफिन तर्क देती है, उदाहरण के लिए कि काम का तनाव उसकी आवाज के लिए नुकसानदेह है तथा काम का तनाव निश्चित रूप से आवाज के तनाव की तुलना में तो कुछ भी नहीं है, फिर भी यह उसे गायन के बाद पर्याप्त रूप से आराम करने तथा और अधिक गायन के लिए स्वयं को ठीक होने से रोकती है। उसे पूर्ण रूप से अपनी शक्ति को खत्म कर देना पड़ता है और फिर इन परिस्थितियों में तो वह कभी भी अपनी क्षमताओं के शीर्ष पर नहीं पहुँच सकती। लोग उसके तर्क सुनते हैं, लेकिन उस ओर कोई ध्यान नहीं देते हैं। हमारे लोग, जो इतनी आसानी से प्रभावित हो जाते हैं, कभी-कभी तो बिल्कुल ही प्रभावित नहीं होते हैं। कभी-कभी तो उनकी अस्वीकृति इतनी दृढ़ होती है कि जोसफिन भी भौंचक्का रह जाती है, वह इस बात के लिए सहमत होती हुई प्रतीत होती है, काम में अपना उचित हिस्सा करने, जितना अच्छा गा सकती है, गाने के लिए तैयार प्रतीत होती है, लेकिन कुछ ही समय के लिए, फिर अपनी नई शक्ति, इस उद्देश्य के लिए उसकी शक्ति अनंत प्रतीत होती है, एक बार फिर संघर्ष शुरू कर देती है ।
अब तो यह स्पष्ट है कि जोसफिन जो बोलती है, वास्तव में वह, चाहती नहीं है । वह सम्माननीय है, वह काम से भागनेवाली नहीं है, किसी भी स्थिति में पीछे हटना हमने कभी उसे ऐसा देखा ही नहीं, यदि उसका आग्रह स्वीकार भी कर लिया जाता है तो भी निश्चित रूप से वह वैसा ही जीवन जीती रहेगी जैसा वह पहले जीती रही है, उसका काम बिल्कुल भी उसके गायन के रास्ते में नहीं आएगा और उसके संगीत में भी कोई सुधार नहीं आएगा, जो वह चाहती है वह अपनी कला की सार्वजनिक, असंदिग्ध और स्थायी पहचान, अब तक ज्ञात सभी उदाहरणों से भी आगे। लेकिन जबकि सबकुछ लगभग उसकी पहुँच में लगता है, यह लगातार उसके नियंत्रण से बाहर है। शायद शुरू से ही उसे आक्रमण का दूसरा तरीका अपनाना चाहिए था, शायद उसे भी मालूम है कि उसका रास्ता गलत है। लेकिन अब वह पीछे भी नहीं हट सकती है, पीछे हटने का मतलब खुद को धोखा देना होगा । उसे या तो अपने आग्रह के साथ दृढ़ता से डट जाना चाहिए या उसकी पराजय मान लेनी चाहिए।
यदि सचमुच में उसके शत्रु थे, जैसा कि वह कहती है, इस संघर्ष को देखने से बिना उँगली उठाए उन्हें कहीं अधिक आनंद मिलेगा। लेकिन उसका कोई शत्रु नहीं है । प्रायः इधर-उधर उसकी आलोचना होती भी है, उसका यह संघर्ष लोगों के लिए एक मनोरंजन है । सिर्फ इस कारण से कि यहाँ लोग अपने आपको निरुत्साही, उचित पहलू दिखाते हैं, जो कि अन्यथा शायद ही हम में देखने को मिलता है। और जो कुछ भी हो, यदि कोई इस मामले में इसे स्वीकृति दे भी देता है, तो सिर्फ यही विचार कि इस प्रकार का पहलू स्वयं के लिए ही उपयुक्त नहीं हो सकता है तथा मनोरंजन में सुधार करने से रोक सकता है। लोगों की अस्वीकृति एवं जोसफिन के आग्रह में कारवाई महत्त्वपूर्ण नहीं है, बल्कि यह बात है कि लोग अपने ही एक-एक सदस्य के प्रति कठोर, अमेद्य मोरचा खोलने में समर्थ हैं, और वह भी यह और भी अधिक अमेद्य है, क्योंकि अन्य मामलों में तो वे अभिभावकीय चिंताएँ दरशाते हैं और यह इस अभिभावकीय चिंताओं से भी ज्यादा है।
मान लो कि इन लोगों की बजाय यदि किसी को किसी व्यक्ति से निपटना है तो वह यह कल्पना कर सकता है कि वह व्यक्ति तो हमेशा ही जोसफिन के सामने समर्पण करता रहा है और किसी दिन अपने इस समर्पण का अंत करने की एक अविवेचित इच्छा भी उसके मन में रहती है। उसने जोसफिन के लिए अतिमानवीय त्याग इस दृढ़ विश्वास के कारण किए कि त्याग की उसकी क्षमता की एक स्वाभाविक सीमा है; हाँ, उसने जरूरत से ज्यादा त्याग सिर्फ इसलिए किए, ताकि इस प्रक्रिया को तीव्र कर सके, सिर्फ इसलिए कि जोसफिन को बरबाद कर दें और उसे और अधिक की माँग के लिए प्रेरित कर दे ताकि वह अपने आग्रह की अंतिम सीमा तक न पहुँच जाए, और अंतिम अस्वीकृति के बाद अपनी माँगें वापस ले ले, जो कि रूखा है कि और बहुत पहले से ही यह सुरक्षित था। अब जबकि यह निश्चित रूप से नहीं मालूम कि मामला क्या है, लोगों को ऐसे छल की जरूरत ही नहीं है, इसके अलावा जोसफिन के प्रति उनका सम्मान अच्छी तरह से आजमाया हुआ और सच्चा है तथा जोसफिन की माँगें सबसे बढ़कर उतनी व्यापक हैं कि एक छोटा सा बच्चा भी यह कह सकता है कि इसके परिणाम क्या होंगे; फिर भी हो सकता है कि अपनी बातों को आगे बढ़ाने के क्रम में जोसफिन के दिमाग में ये बातें आएँ तथा अस्वीकार किए जाने की पीड़ा में और तीखापन भर दें ।
लेकिन इस विषय पर उसके जो भी विचार हों, वे उन्हें आंदोलन की अपनी राह में बाधा नहीं बनने देती है; हाल में उसने अपने आक्रमण को और भी तेज कर दिया है; अभी तक तो उसने हथियार के रूप में केवल शब्दों के ही प्रयोग किए थे, लेकिन अब उसने अन्य माध्यमों का भी सहारा लेना शुरू कर दिया है, उसे लगता है कि ये अधिक प्रभावी होंगे तथा हमें लगता है कि इससे उसकी परेशानी और ज्यादा बढ़ेगी।
कुछ लोगों का मानना है कि जोसफिन अडियल होती जा रही है, क्योंकि उसे लगता है कि उसकी उम्र बढ़ रही है और उसकी आवाज खराब होती जा रही है । इसलिए उसे लगता है कि मान्यता के लिए लड़ने का यह सही समय है। मैं यह नहीं मानता। अगर इसे सही मान लें तो फिर जोसफिन, जोसफिन नहीं रहेगी । उसके लिए उम्र का बढ़ना कोई अर्थ नहीं रखता और उसकी आवाज कभी खराब नहीं होगी। यदि वह माँगें करती है तो यह बाहरी परिस्थितियों के कारण नहीं, बल्कि आंतरिक तर्क के कारण । वह सबसे ऊँचे माले के लिए जाती है कि वह क्षणिक रूप से नीचे लटक रहा है, बल्कि यह सबसे ऊँचा है इसीलिए वह जाती है । इसलिए यदि उसकी कोई भूमिका तो यह उसके लिए अभी भी ऊँचा ही होता ।
बाह्य कठिनाइयों के प्रति यह तिरस्कार, निश्चित रूप से, उसे सबसे घृणित तरीके अपनाने से भी नहीं रोकता है। उसे अपना अधिकार किसी भी सीमा से परे लगता है; इसलिए इस बात का क्या महत्त्व है कि वह उन्हें कैसे प्राप्त करती है। ईमानदार तरीकों का असफल होना तो लगभग निश्चित है। शायद इसीलिए उसने अधिकार की इस लड़ाई को गाने के क्षेत्र से हटाकर किसी अन्य क्षेत्र में कर दिया है और वह इसकी परवाह भी नहीं करती। उसे अपने समर्थकों का भी समर्थन प्राप्त है; उसके अनुसार वह स्वयं को ऐसे गाने गाने में समर्थ समझती है, जिससे जनता के सभी वर्गों को वास्तविक आनंद मिले, लोकप्रिय स्तर के आधार पर ही वास्तविक आनंद नहीं, बल्कि लोग यह बात स्वयं स्वीकार करें कि उन्हें उसके गाने में आनंद मिला, उसके अपने स्तर के हिसाब से आनंद । जो भी हो, आगे वह कहती है, चूँकि वह श्रेष्ठ स्तर को झूठा नहीं कर सकती है, और निम्नतम स्तर को बढ़ावा भी नहीं दे सकती हैं, उसका गायन जैसा है उसे वैसा ही रहना पड़ेगा। लेकिन जब उसके काम से उसे छूट मिलने के उसके आंदोलन की बात होती है तो हमें एक दूसरी कहानी दिखाई पड़ती है। निश्चित रूप से उसके गायन की ओर से भी यह एक आंदोलन है। लेकिन वह प्रत्यक्षतः अपने बहुमूल्य अस्त्र गायन की सहायता से नहीं लड़ रही है, इसलिए वह जिस अस्त्र का भी प्रयोग करती है वह काफी है । अतएव, उदाहरण के लिए, यह अफवाह फैली कि यदि जोसफिन की प्रार्थना पूरी नहीं की गई तो वह उसे छोटा कर देगी। जोसफिन की प्रार्थना के बारे में मैं कुछ नहीं जानता और मैंने उसके गायन में भी कभी यह नहीं पाया। लेकिन जोसफिन और प्रार्थना नोट छोटा करने जा रही है, अभी नहीं, उन्हें पूरी तरह से हटाने नहीं, बल्कि वह उन्हें सिर्फ छोटा करेगी। अनुमानतः उसने अपनी धमकी जारी कर दी है, यद्यपि कि मैंने उसके प्रदर्शन में कभी कोई अंतर नहीं पाया है। संपूर्ण रूप से सभी लोग प्रार्थना टिप्पणी के विषय में किसी प्रकार की टिप्पणी किए बिना ही उसे हमेशा की तरह सुनते हैं और न उनकी उसकी प्रार्थना पर प्रतिक्रिया में रत्तीभर भी परिवर्तन आया है। यह स्वीकार करना चाहिए कि जोसफिन की काया की तरह ही उसका सोचने का ढंग भी प्रायः बहुत आकर्षक होता है । इसलिए, उदाहरण के लिए, उस प्रस्तुति के बाद, प्रार्थना टिप्पणी पर उसके निर्णय अतितीव्र थे या लोगों के विरुद्ध एक अचानक कदम, उसने घोषणा की कि अगली बार फिर वह अपनी सभी प्रार्थना टिप्पणी प्रस्तुत करेगी । फिर अगली प्रस्तुति के बाद उसने एक बार फिर अपना निर्णय बदल लिया। निश्चित रूप से प्रार्थना टिप्पणी के साथ ही इन बड़े तानों का भी अंत होनेवाला है, अब जब तक कि उसकी प्रार्थना पर सहानुभूतिपूर्वक विचार नहीं किया जाता, वे फिर कभी नहीं प्रस्तुत किए जाएँगे। ठीक है, लोग ऐसी घोषणाएँ, निर्णयों एवं विपरीत निर्णयों को एक कान से सुनते हैं और दूसरे से निकाल देते हैं, ठीक उसी तरह जैसे कि एक वयस्क विचारमग्न व्यक्ति बच्चे की बक-बक के प्रति अनजान होते हैं, मौलिक रूप से तो सहमत लेकिन सुलभ नहीं ।
जो भी हो, जोसफिन ने भी समर्पण नहीं किया था । उदाहरण के लिए, दूसरे दिन उसने दावा किया कि काम के दौरान उसके पैर में चोट लग गई, इसलिए गाने के लिए खड़ा होना उसके लिए मुश्किल हो गया, लेकिन चूँकि सिवाय खड़े होने के वह गा नहीं सकती थी, तो अब उसके गानों को छोटा करना पड़ेगा । यद्यपि कि वह लँगड़ाती है और अपने समर्थकों का सहारा लेती है फिर भी कोई यह विश्वास नहीं करता कि उसे चोट लगी है। मान लेते हैं कि उसका कमजोर शरीर अतिसंवेदनशील है, और वह हम में से एक है तथा हम कामगारों की एक प्रजाति हैं । यदि हर बार खरोंच लगने पर हम लँगड़ाना शुरू कर दें तो सभी लोग कभी भी लँगड़ाना नहीं छोड़ेंगे। फिर भी यदि वह एक अपंग की तरह पीछे-पीछे चलती है, यद्यपि वह स्वयं को इस दयनीय स्थिति में प्राय: प्रस्तुत करती है, फिर भी लोग सहृदयता एवं प्रशंसा के साथ उसके गाने उसी तरह सुनते रहेंगे, जैसे पहले सुनते रहे हैं, लेकिन उसके गानों के छोटा होने से ज्यादा परेशान मत हो ।
चूँकि वह हमेशा ही लँगड़ाकर नहीं चल सकती, तो वह कुछ अन्य चीजों के बारे में सोचती है। वह बहाना करती कि वह थकी है, गाने के मूड में नहीं है, बेहोशी महसूस कर रही है । इस तरह हमें नाटकीय प्रस्तुति भी मिलती है, संगीत समारोह के साथ-साथ । पृष्ठभूमि में हम उसके समर्थकों को गाने का आग्रह करते हुए देखते हैं। वह उनके आग्रह को मानकर खुश होगी, मगर वह ऐसा कर नहीं सकती। वे उसकी खुशामद करते हैं, उसे राहत दिलाते हैं तथा उसे लगभग उठाकर उस जगह ले जाते हैं, जहाँ उसके गाने का प्रोग्राम है। अंत में, वह बिना किसी स्पष्टीकरण के फूट-फूटकर रोने लगती है और मान जाती है, जब वह गाने के लिए खड़ी होती है तो स्पष्टतः अपने संसाधनों के अंत में, थकी, उसके बाजू हमेशा की तरह खुले नहीं, बल्कि बेजान रूप से नीचे लटकते हुए, ताकि किसी को भी यह लगे कि वे शायद बहुत ही छोटे हैं, जैसे ही वह प्रहार करने का प्रयास करती है, लेकिन वह ऐसा कर नहीं सकती है, अनिच्छापूर्वक सिर को हिला कर वह हमें यह बताती है और फिर हमारे सामने ही वह बिखर जाती है। विश्वास कीजिए, एक बार फिर वह स्वयं को संयमित करती है और फिर गाती है । मैं हमेशा की तरह ही कल्पना करता हूँ; यदि किसी में भी अभिव्यक्ति के श्रेष्ठ रंगों को पहचानने की क्षमता है, तो कोई भी सुन सकता है कि वह अद्भुत भावनाओं के साथ गा रही थी, जो कि जो भी हो, भलाई के लिए था । अंत में, वह वास्तव में पहले की तुलना में कम थकी हुई थी । दृढ़ कदमों के साथ, यदि कोई उसके लड़खड़ाहट भरे कदमों के लिए यह शब्द प्रयोग कर सकता है तो, अपने समर्थकों की सहायता के सभी प्रस्तावों को नकारते हुए और भावनारहित नजरों से भीड़ को भाँपते हुए, जो कि सम्मानपूर्वक उसके लिए रास्ता बनाती है, वह चली गई।
यह एक-दो दिन पहले घटित हुआ । नवीनतम यह है कि वह गायब हो गई है, ठीक उस समय जब कि उसे गाना था। ऐसा नहीं है कि सिर्फ उसके समर्थक ही उसे ढूँढ़ रहे हैं, कई तो उसकी तलाश में ही जुट गए हैं, लेकिन सब बेकार। जोसफिन गायब हो गई है, वह नहीं गाएगी, उसे गाने के लिए चुमकारा भी नहीं जा सकता है। इस बार तो उसने हमें पूरी तरह से छोड़ दिया है।
उत्सुक, अपनी गणनाओं में वह कितनी गलत साबित हुई, चालाक प्राणी, इतनी गलत कि कोई भी समझेगा उसने कोई गणना बिल्कुल भी की ही नहीं, या तो उसका भाग है जो उसे आगे ले जा रहा है, जो कि हमारे संसार में उदासी के सिवा और कुछ नहीं है। अपनी इच्छा से उसने गाना छोड़ा, अपनी इच्छा से उसने अपनी उस शक्ति को नष्ट किया, जो उसने लोगों के दिलों पर प्राप्त किया था । वह कभी भी इतनी शक्ति कैसे प्राप्त कर सकती थी, जबकि वह हमारे लोगों के इन दिलों के बारे में इतना कम जानती है ? वह अपने को छुपाती है और गाती भी नहीं है, लेकिन हमारे लोग खामोशी से, बिना स्पष्ट निराशा के पूर्ण संतुलन में एक अहम् विश्वास से पूर्ण समूह, इस प्रकार निर्मित, कि यद्यपि चेहरे गुमराह कर सकते हैं, कि केवल उपहार देते हैं तथा पाते नहीं हैं, यहाँ तक कि जोसफिन से भी नहीं, हमारे लोगों का यही ढंग जारी है।
जो भी हो, जोसफिन के रास्ते, नीचे जाना चाहिए। जल्द ही वह समय आएगा जब उसके अंतिम स्वर भी मिट जाएँगे और खामोश हो जाएँगे। हमारे लोगों के अनंत इतिहास में वह एक छोटा सा खंड है और लोग भी उसकी कमी से उबर जाएँगे। ऐसा नहीं है कि यह हमारे लिए आसान है । बिल्कुल खामोशी में हमारा जमघट कैसे हो सकता है? फिर भी क्या वे तब खामोश नहीं थे, जब जोसफिन मौजूद थी? क्या उसकी वास्तविक बाँसुरी की आवाज इसकी याद की तुलना में महत्त्वपूर्ण रूप से ज्यादा ऊँची और सजीव नहीं थी? क्या यह उसके जीवनकाल में भी एक आम याद से ज्यादा थी? क्या यह अपेक्षाकृत इस कारण नहीं कि जोसफिन का गायन पहले ही उस मार्ग में कहीं गुम हो रहा था, जो हमारे लोग अपनी बुद्धि के आधार पर इतना ज्यादा महत्त्व देते थे?
इसके हर कुछ के बावजूद भी हम शायद बहुत कुछ नहीं खोएँगे, जबकि जोसफिन, सांसारिक दुःखों से मुक्त, जो उसके अनुसार सभी चयनित आत्माओं की प्रतीक्षारत था, स्वयं को खुशी-खुशी हमारे लोगों के असंख्य योद्धाओं की भीड़ में विलीन कर लेगी और शीघ्र ही, चूँकि हम इतिहासकार नहीं हैं, मुक्ति की ऊँचाइयों पर उदित होगी तथा अपने सभी भाइयों की तरह भुला दी जाएगी।
(अनुवाद: अरुण चंद्र)