गाय की पूँछ : लाइबेरिया लोक-कथा
Gay Ki Poonchh : Liberia Folk Tale
पश्चिमी अफ्रीका के लाइबेरिया देश के बारिश वाले जंगल के किनारे के पास एक पहाड़ी थी जहाँ से कवाली नदी दिखायी देती थी। वहाँ एक गाँव था जिसका नाम था कुंडी।
वहाँ चावल और कसावा के खेत चारों तरफ फैले पड़े थे। वहाँ उन गाँव वालों के जानवर नदी के पास वाले घास के मैदानों में चरते रहते थे।
मिट्टी के गोल गोल घरों की आग से निकला हुआ धुँआ उन घरों की पाम के पत्तों की छतों से निकलता रहता था। यह धुँआ छत से निकल कर सारे गाँव पर छा जाता।
आदमी और लड़के नदी में मछली पकड़ते और स्त्र्यिाँ अपने अपने घरों के सामने लकड़ी की ओखलियों में अनाज पीसती रहतीं।
इसी गाँव में ओगालूसा नाम का एक शिकारी अपनी पत्नी और कई बच्चों के साथ रहता था। एक सुबह ओगालूसा ने अपने घर की दीवार से अपने हथियार उतारे और शिकार करने के लिये जंगल चला गया।
उसकी पत्नी और उसके बच्चे खेत की देखभाल करने और जानवरों को चराने चले गये। दिन गुजर गया घर आ कर उन्होंने शाम का खाना खाया – मानियोक और मछली। रात हो गयी पर ओगालूसा नहीं आया। दूसरा दिन भी गुजर गया पर ओगालूसा फिर भी वापस नहीं आया।
उन्होंने आपस में बात की कि ओगालूस के साथ ऐसा क्या हुआ जिसकी वजह से वह घर वापस नहीं आ सका। इस तरह से एक हफ्ता गुजर गया और फिर एक महीना।
कभी कभी ओगालूसा के बेटे बोलते थे कि उनका पिता घर वापस लौट कर नहीं आया था पर वे कर कुछ नहीं पा रहे थे।
परिवार खेत की देखभाल कर रहा था और बेटे शिकार के लिये चले जाते थे और कुछ दिनों के बाद तो फिर किसी ने घर में ओगालूसा का नाम भी नहीं लिया।
कुछ दिन बाद ओगालूसा की पत्नी ने एक बेटे को जन्म दिया। उसका नाम पुली रखा गया। पुली बड़ा हुआ। उसने पहले बैठना सीखा फिर घुटनों चलना सीखा।
और फिर एक समय आया जब पुली बोलने लगा सबसे पहले वह बोला — “मेरे पिता कहाँ हैं?”
इस सवाल के जवाब में ओगलूसा के दूसरे बेटों ने चावल के खेतों के उस पार की तरफ देखा।
फिर एक और बेटा बोला — “अरे हाँ पिता जी कहाँ हैं?”
दूसरा बेटा बोला — “असल में उनको तो बहुत पहले ही आ जाना चाहिये था। ”
तीसरा बेटा बोला — “उनको जरूर ही कुछ हो गया है। हमको उनको ढूँढना चाहिये। ”
एक बेटा बोला — “वह तो जंगल में गये थे हम उनको कहाँ ढूँढेंगे?”
एक बोला — “मैंने उनको जाते देखा था। वह उस तरफ नदी के उस पार गये थे। चलो उसी रास्ते पर चलते हैं और उनको ढूँढते हैं। ”
सो ओगालूस के बेटों ने अपने अपने हथियार लिये और ओगालूसा को ढूँढने चल दिये। जब वे लोग जंगल में काफी पेड़ों और बेलों के बीच में पहुँच गये तो वे रास्ता भूल गये।
वे फिर जंगल में रास्ता ढूँढने लगे तो एक बेटे को रास्ता मिल गया। वे उस पर चल दिये मगर वे फिर रास्ता भूल गये। तब एक दूसरे बेटे को रास्ता मिल गया। अब जंगल में अँधेरा हो गया था। इस अँधेरे में वे कई बार रास्ता भूले और कई बार उनको रास्ता मिला।
आखिर वे एक साफ जगह आ गये। वहाँ उन्होंने देखा कि ओगालूसा की हड्डियाँ बिखरी पड़ी थीं। पास में ही उसके जंग लगे हथियार पड़े थे। इससे उनको पता चल गया कि उनका पिता शिकार करते समय मारा गया।
उनमें से एक बेटा आगे बढ़ा और बोला — “मैं जानता हूँ कि कैसे किसी मरे हुए आदमी की हड्डियों को एक साथ जोड़ा जा सकता है। ”
कह कर उसने ओगालूसा की हड्डियों को समेटा और उनको जो हड्डी जहाँ लगनी थी वहाँ रख कर उन सबको जोड़ दिया।
दूसरा बेटा बोला — “मुझे भी कुछ आता है। मैं जानता हूँ कि किसी हड्डी के ढाँचे को माँस से कैसे ढका जाता है। ” कह कर वह अपने काम में लग गया और उसने ओगालूसा का हड्डियों का ढाँचा माँस आदि से ढक दिया।
अब तीसरा बेटा बोला — “मेरे पास ऐसी ताकत है जिससे मैं इस माँस में खून दौड़ा सकता हूँ। ” सो वह आगे बढ़ा और उसने ओगालूसा की नसों में खून बहा दिया और फिर एक तरफ को खड़ा हो गया।
ओगालूसा का दूसरा बेटा बोला — “मैं इस शरीर में साँस डाल सकता हूँ। ” कह कर उसने अपना काम किया और सब लोगों ने देखा कि ओगालूसा की छाती ऊपर नीचे उठ बैठ रही थी।
ओगालूसा का एक और बेटा बोला — “मैं इस शरीर में हलचल ला सकता हूँ। ”
सो उसने अपने पिता के शरीर में चलने फिरने की ताकत डाली और ओगअलूसा उठ कर बैठा हो गया और उसने अपनी आँखें खोल दीं।
उसके एक और बेटे ने कहा कि वह उसको बोलने की ताकत दे सकता है। सो उसने उसको बोलने की ताकत दी और वह भी थोड़ा पीछे हट कर खड़ा हो गया।
ओगालूसा ने अपने चारों तरफ देखा और खड़ा हो गया। उसने पूछा — “मेरे हथियार कहाँ हैं?”
बच्चों ने घास पर से उसके जंग लगे हथियार उठाये और उसको दे दिये। उसके बाद वे सब उसी रास्ते से अपने गाँव वापस लौट आये जिस रास्ते से गये थे – जंगल में से और चावलों के खेतों में से हो कर।
ओगालूसा अपने घर के अन्दर गया। उसकी पत्नी ने उसके नहाने का इन्तजाम किया। नहाने के बाद उसने खाना खाया। वह घर में चार दिन तक रहा।
पाँचवे दिन वह बाहर निकला तो उसने अपना सिर मुँड़वाया क्योंकि वहाँ लोग यही करते थे जब वे मरे हुओं के देश से वापस आते थे।
उसके बाद उसने फिर एक बड़ी दावत के लिये एक गाय मारी। उसने उस गाय की पूँछ ली, उसकी चोटी बनायी। फिर उसने उसको मोतियों और कौड़ियों और चमकीली धातु के टुकड़ों से सजाया। यह सब करने के बाद वह पूँछ बहुत सुन्दर लग रही थी।
अब ओगालूसा जब भी किसी खास मौके पर कहीं जाता तो उसको अपने साथ ले जाता। कभी कहीं कोई नाच होता या फिर कोई बहुत खास रस्म होती या कुछ और तब भी वह उसको हमेशा अपने साथ रखता।
लोगों का कहना था कि वह सबसे ज़्यादा सुन्दर गाय की पूँछ थी जो उन्होंने अपनी ज़िन्दगी में देखी थी।
जल्दी ही ओगालूसा के मर कर वापस आने की खुशी में गाँव में एक उत्सव मनाया गया। लोगों ने अपने सबसे अच्छे कपड़े पहिने। बाजा बजाने वाले अपने अपने बाजे ले कर आये और नाच शुरू हुआ।
ढोल बजाने वालों ने अपने अपने ढोल बजाने शुरू किये और स्त्रियों ने गाना शुरू किया। लोगों ने उस दिन बहुत सारी पाम की शराब पी। सब बहुत खुश थे।
ओगालूसा आज भी अपनी गाय की पूँछ लिये हुए था और सब उस पूँछ की तारीफ कर रहे थे। कुछ लोग जरा ज़्यादा हिम्मती थे तो वे ओगालूसा से उसकी गाय की पूँछ माँगने के लिये उसके पास भी आये और उन्होंने उसकी वह पूँछ माँगी पर ओगालूसा ने उसको अपने हाथ में ही रखा किसी को उसे दिया नहीं।
कभी कभी कई लोगों ने उसको एक साथ भी माँगा। स्त्र्यिों और बच्चों ने भी उसको देखना चाहा पर ओगालूसा ने सबको उसे दिखाने से भी मना कर दिया।
आखीर में वह बोलने के लिये खड़ा हुआ तो नाच रुक गया और लोग उसको सुनने के लिये उसके पास आ गये। उसने बोलना शुरू किया —
“यह काफी पहले की बात है कि मैं शिकार करने के लिये जंगल गया। जब मैं शिकार कर रहा था तो एक चीते ने मुझे मार दिया।
तब मेरे बेटे मुझे ढूँढने के लिये आये और वे मुझे मरे हुए लोगों के देश से मेरे गाँव वापस ले कर आये। मैं यह गाय की पूँछ अपने उन्हीं बेटों में से एक बेटे को दूँगा।
मेरे सब बेटों ने मुझको मरे हुए से ज़िन्दा करने के लिये कुछ न कुछ किया है पर मेरे पास तो देने के लिये केवल एक ही गाय की पूँछ है। मैं यह गाय की पूँछ उसी को दूँगा जिसने मुझको घर लाने के लिये सबसे ज़्यादा किया है।
यह सुन कर बच्चों में बहस शुरू हो गयी कि वह गाय की पूँछ किसको मिलनी चाहिये।
एक बेटा बोला — “पिता जी यह पूँछ मुझे देंगे। मैंने ही सबसे ज़्यादा काम किया है क्योंकि जब हम जंगल में रास्ता भूल गये थे तो मैंने ही वहाँ रास्ता ढूँढा था। ”
दूसरा बेटा बोला — “नहीं यह पूँछ मुझे मिलेगी क्योंकि उनके शरीर की हड्डियाँ तो मैंने ही जोड़ी थीं। ”
तीसरा बेटा बोला — “पर उस हड्डियों के ढाँचे को माँस से तो मैंने ही ढका था इसलिये वह पूँछ मुझे मिलेगी। ”
चौथा बेटा बोला — “लेकिन वह मैं था जिसने उस माँस के शान्त शरीर को हिलने डुलने की ताकत दी इसलिये वह पूँछ मुझे ही मिलेगी। ”
पाँचवाँ बेटा बोला — “वह पूँछ तो मुझे मिलनी चाहिये क्योंकि पिता जी के शरीर में खून तो मैंने ही भरा था। ”
छठा बेटा बोला — “असल में वह पूँछ तो मुझे मिलनी चाहिये क्योंकि उनके शरीर में साँस तो मैंने भरी थी।
उसका सातवाँ बेटा बोला — “और उनको बोलने की ताकत मैंने दी थी इसलिये गाय की वह पूँछ मुझे मिलनी चाहिये। ”
इस तरह से उसके सब बेटे आपस में बहस कर रहे थे कि गाय की वह पूँछ उसी को क्यों मिलनी चाहिये। जल्दी उसके बेटे ही नहीं बल्कि गाँव के दूसरे लोग भी आपस में इस बारे में बात करने लगे कि गाय की वह पूँछ उसके किस बेटे को मिलनी चाहिये।
कोई किसी बेटे को पूँछ देने को कह रहा तो कोई किसी बेटे को। कुछ कह रहे थे कि उसको उस पूँछ को अपने सभी बेटों को दे देनी चाहिये।
ओेगालूसा ने जब यह शोर सुना तो उसने सबको चुप रहने के लिये कहा और बोला — “मैं यह गाय की पूँछ अपने उस बेटे को दूँगा जिसका मैं सबसे ज़्यादा कर्जदार हूँ। ”
कह कर वह आगे बढ़ा और बड़ी नम्रता से झुक कर उसने वह गाय की पूँछ अपने सबसे छोटे बेटे को दे दी जो ओगालूसा के जाने के बाद पैदा हुआ था।
तब गाँव के लोगों को याद आया कि उसके पहले शब्द थे — “मेरे पिता जी कहाँ हैं?” वे जान गये कि ओगलूसा गाय की पूँछ को देने के लिये अपने बेटे को चुनने में ठीक था।
क्योंकि वहाँ एक और कहावत भी कही जाती है कि “कोई आदमी तब तक मरा हुआ नहीं समझा जाता जब तक लोग उसे याद करते रहते हैं। ”
(साभार : सुषमा गुप्ता)