गरीबों को न भूलो : इतालवी लोक-कथा
Gareebon Ko Na Bhoolo : Italian Folk Tale
एक समय की बात है कि किसी जगह पर तीन भाई साथ-साथ रहा करते
थे। उनका नाशपाती का एक पेड़ था। उन्होंने बारी-बारी उस पेड़ की देखभाल
करने के लिए आपस में निश्चय किया था। जब दो भाई खेतों में काम करने चले
जाते, तो तीसरा भाई पेड़ की रखवाली करने के लिए घर पर ही रह जाता था।
वह यह देखता रहता कि कोई भी किसी प्रकार पेड़ को हानि न पहुंचा सके और
न ही कोई चोरी से नाशपाती तोड़ ले।
एक बार उन तीनों भाईयों की परीक्षा लेने के लिए स्वर्ग से एक दूत आया।
भिखारी के रूप में, वह नाशपाती के पेड़ के निकट गया । उस दिन सबसे बड़ा भाई
पेड़ की रखवाली कर रहा था। वह भिखारी हाथ फैलाकर बोला, “बाबा, ईश्वर के
नाम पर, एक पकी नाशपाती दे दो ।”
सबसे बड़े भाई ने उसे एक नाशपाती दे दी और कहा, “यह मेरे हिस्से की
नाशपाती है, इसलिए मैं तुम्हें दे रहा हूं। अन्य नाशपातियां मेरे भाइयों के हिस्से
की हैं।”
दूत ने उसे धन्यवाद दिया और चला गया।
दूसरे दिन दूसरा भाई पेड़ की देखभाल कर रहा था। उस दिन भी दूत
भिखारी के रूप में आया और एक पकी नाशपाती की भीख मांगने लगा। दूसरे
भाई ने कहा, “यह लो, यह नाशपाती मेरे हिस्से की है। परन्तु मैं और नहीं दे
सकता, क्योंकि ये मेरे भाइयों के हिस्से की हैं।”
दूत दूसरे भाई को भी धन्यवाद देकर चला गया।
तीसरे दिन जब दूत सबसे छोटे भाई के पास आया, तो उसने भी अपने बड़े
भाइयों की भांति उत्तर दिया।
अगले दिन प्रात:काल दूत, साधु के रूप में, उन तीनों भाइयों के घर गया।
उस समय तक वे सभी घर पर मौजूद थे। साधु ने कहा, “बच्चों, मेरे साथ आओ ।
नाशपाती के पेड़ की रखवाली करने की अपेक्षा मैं तुम्हें अच्छा काम दूंगा।”
तीनों भाई उसके साथ हो लिए। चलते-चलते वे दूर एक बड़ी गहरी नदी के
किनारे पहुंचे ।
साधु ने सबसे बड़े भाई से पूछा, “बेटे! मांग, क्या मांगता है?”
सबसे बड़े भाई ने कहा, “कितना अच्छा होता, यदि इस नदी का जल
मदिरा में बदल जाए और उसका मालिक मै बन जाऊं।”
साधु ने अपनी छड़ी घुमाई और सारी नदी मदिरा की हो गई। लोग बड़े-बड़े
पीपों में मदिरा भर-भरकर ले जाने लगे। कुछ देर में ही ऐसा मालूम पड़ने लगा,
मानो एक बड़ा व्यवसाय हो रहा हो। लोग अपने काम में व्यस्त इधर-उधर भाग
रहे थे और सबसे बड़े भाई को सम्मानपूर्वक 'मालिक-मालिक' कहकर संबोधित
कर रहे थे।
दूत जो साधु के वेश में था बोला, “तुम्हारी इच्छा पूरी हो गई। तुम धनवान
हो गए। परन्तु गरीबों को मत भूल जाना। उनका ध्यान रखना।”
सबसे बड़े भाई को मदिरा के व्यवसाय में लगाकर, साधु दोनों भाइयों के
साथ आगे बढ़ चला। वे एक ऐसे बड़े मैदान में पहुंचे जहां कि बहुत-से कबूतर
दाना चुग रहे थे।
दूत ने दूसरे भाई से कहा, “मांगो, तुम क्या मांगते हो?”
दूसरे भाई ने उत्तर दिया, “यदि ये कबूतर बदलकर भेड़ हो जाएं और मैं
इनका मालिक बन जाऊं, तो इससे सुन्दर और क्या होगा?”
दूत ने पहले की भांति अपनी छड़ी घुमाकर फिर से पहले जैसी रेखाएं बना
दीं। सहसा पूरा मैदान भेड़ों से भर गया। घर और दालान बन गए। स्त्रियां भेड़ों
को दुहने लगीं और पनीर बनाने लगीं। कुछ लोग बाजार में बेचने के लिए मांस
तैयार करने लगे और कुछ उनकी सफाई में लगे हुए थे। वे सभी अपने-अपने कार्य
में व्यस्त थे और दूसरे भाई को उन्होंने अपना मालिक समझ लिया था।
दूत ने कहा, “अब तुम्हारी इच्छा पूरी हो गई। तुम सुखी और सम्पन्न बन
गए हो परन्तु निर्धनों का ख्याल रखना ।”
तब दूत और सबसे छोटा भाई वहां से चल दिए। कुछ दूर जाने के पश्चात्
दूत ने कहा, “बेटे, तुम भी कुछ मांग लो।”
सबसे छोटे भाई ने चुपके से कहा, “मुझे केवल एक ही चीज चाहिए और
वह है एक धर्मपरायण स्त्री।”
दूत ने कहा, “बेटे! तुमने बड़ी कठिन चीज़ मांगी। संसार भर में केवल तीन
धर्मपरायण स्त्रियां हैं। उनमें से दो विवाहित हैं। तीसरी राजकुमारी है, जिसके साथ
विवाह करने के लिए दो राजा प्रयत्न कर रहे हैं। आओ, हम लोग भी राजा के पास
चलें और तुम्हारी इच्छा उनसे कहें।”
अतः वे उस नगर की ओर चल पड़े, जहां राजकुमारी रहती थी लम्बी यात्रा
के कारण थके-हारे वे राजमहल में घुसे।
राजा ने उनकी प्रार्थना सुनी | परन्तु जब उसने उनका आने का आशय सुना तो
उसने कहा, “मैं कुछ भी निर्णय नहीं कर सकता । दो राजा और यह नवयुवक, तीनों
मेरी बेटी से विवाह करने के इच्छुक हैं। क्या करूं, कुछ समझ में नहीं आता ।”
दूत ने कहा, “ईश्वर ही इसका फैसला करेंगे।”
राजा ने भी कहा, “ठीक है, पर कैसे?”
दूत ने कहा, “अंगूर की लता की तीन डालियां काट लो और उन्हें
राजकुमारी को दे दो। राजकुमारी प्रत्येक डाली के ऊपर विवाह के इच्छुक एक-एक
प्रत्याशी का नाम लिख-लिखकर तीनों डालियां आज रात बगीचे में गाड़ दे।
रात-भर में जिस डाली में फूल खिलकर प्रातः अंगूर के गुच्छे नज़र आएं, उसी के
साथ राजकुमारी का विवाह कर दें ।”
राजा ने कहा, “यह बहुत अच्छा उपाय है।”
राजकुमारी, दोनों राजकुमार और युवक-तीनों उपरोक्त उपाय पर राजी हो
गए। तीन डालियों पर उनके नाम लिखकर बगीचे में गाड़ दिये गए। प्रातःकाल दो
डालियां सूख गईं। तीसरी डाली हरी-भरी थी और उसमें अंगूर के गुच्छे लटक रहे
थे। इस डाली पर सबसे छोटे भाई का नाम लिखा हुआ था। राजा को यह शर्त
माननी पड़ी। उसे अपनी प्रतिज्ञानुसार राजकुमारी का व्याह उस युवक से करना
पड़ा। राजा ने अपनी लड़की और दामाद को आर्शीवाद दिया।
एक साल के बाद, दूत पुनः पृथ्वी पर यह देखने के लिए आया कि अब वे
तीनों भाई कैसे रह रहे हैं। भिखारी बनकर वह सबसे बड़े भाई के पास गया, जो
अपने शराब के व्यवसाय में व्यस्त था।
दूत ने कहा, “बाबा, भिखारी को भी एक प्याला शराब दे दो।”
बड़े भाई ने चिल्लाकर कहा, “बदमाश! निकल यहां से! यदि मैं सभी
भिखारियों को शराब मुफ्त देता रहूंगा तो खुद भी शीघ्र ही भिखारी बन जाऊंगा ।”
दूत ने अपनी छड़ी घुमाकर क्रॉस का चिन्ह बनाया। चिन्ह बनाते ही शराब
की दुकान, गोदाम और काम करने वाले मजदूर-सभी गायब हो गए । वहां पहले
की भांति लम्बी-चौड़ी और गहरी नदी बहने लगी।
दूत क्रोधित होकर बोला, “तुम धनवान बनके गरीबों को भूल गए। अतः
तुम फिर से जाकर अपने नाशपाती के पेड़ की देखभाल करो ।” फिर दूत दूसरे
भाई के पास गया, जो कि दूध तथा भेड़ों के करोबार में लगा हुआ था।
दूत ने गिड़गिड़ाकर कहा, “बाबा, ईश्वर के नाम पर पनीर का एक टुकड़ा
दे दो।”
दूसरे भाई ने कहा, “अबे, भाग यहां से, नहीं तो कुत्तों से फड़वा दूंगा।
तुम्हारे जैसे आलसियों को मैं पनीर नहीं देता ।”
दूत ने पहले की भांति अपनी छड़ी से दो आड़ी-तिरछी लकीरें खींचकर क्रॉस
का चिन्ह बनाया। सभी भेड़ें, काम करने वाले मज़दूर आदि सब गायब हो गए
और पहले की तरह वहां मैदान हो गया, जहां पर बहुत से कबूतरों का झुंड पहले
की भांति ही चुगने लगा था।
दूत क्रोधित होकर बोला, “तुम निर्धनों को भूल गए हो अतः तुम नाशपाती
के पेड़ के पास जाकर पहले की भांति ही उसकी रखवाली करो ।”
अब दूत शीघ्रता से जंगल में पहुंचा जहां कि सबसे छोटा भाई अपनी स्त्री
के साथ रहता था। वे दोनों एक झोंपड़ी में रहते थे और उन्हें रुपये-पैसे की बड़ी
तंगी थी।
दूत जो कि अब भी भिखारी के वेश में था, उनके निकट आकर बोला, “भगवान
तुम्हारा भला करे! मुझे खाने को कुछ भोजन और रात के लिए आश्रय मिलेगा?”
सबसे छोटे भाई ने कहा, “हम लोग निर्धन हैं, परन्तु आप यहां रहें और जो
कुछ रूखा-सूखा हमारे पास है उससे हम आपकी सेवा करेंगे।”
पति-पत्नी दोनों ने दूत को आग के निकट सर्दी से बचने के लिए स्थान
दिया। पत्नी ने रात का भोजन अलग-अलग तीन आदमियों के लिए रखा। वे इतने
गरीब थे कि उनके पास आटा तक न था। उन्होंने पेड़ों की छाल को कूटकर,
उसके आटे से रोटियां बनाई थीं। उसकी पत्नी शर्म के मारे मरी जा रही थी। उसने
कहा, “हम लोग बहुत ही लज्जित हैं। आपको खिलाने के लिए हमारे पास आटे
की रोटियां तक भी नहीं हैं।”
दूत हँसता हुआ बोला, “चिंता न करो ।”
छोटे भाई की पत्नी जब भोजन लेने के लिए रसोई में गई, तो देखा कि
रोटियां गेहूं के आटे की हो गई हैं। उसके आश्चर्य की सीमा न रही। वह बोली,
“भगवान तेरी माया विचित्र है।” खुशी के मारे, उसकी आंखों में आँसू छलछला
आये। वह निकट के झरने से एक घड़ा जल ले आयी। जब वह प्यालों में जल
उड़ेलने लगी, तो पानी मधुर मदिरा में बदल चुका था। सबसे छोटे भाई को यह
देखकर बड़ा आश्चर्य हुआ। परन्तु वह बोला कुछ नहीं।
दूत उनके सत्कार से खुश होकर बोला, “आप लोगों ने गरीबों को नहीं
भुलाया। ईश्वर आपका भला करे।”