गरम जामुन : तमिल लोक-कथा
Garam Jamun : Lok-Katha (Tamil)
बहुत पहले तमिलनाडु में एक बड़ी कवयित्री रहती थी। उसका नाम ओवैयार था। उसकी
विद्वत्ता के कारण पूरे देश के लोग उसका बहुत सम्मान करते थे। बड़े-बड़े विद्वान भी
उसकी कविताओं से मंत्रमुग्ध हो जाते थे। समय-समय पर ओवैयार राजदरबार में
होनेवाली कवि-गोष्ठियों में भी भाग लेती थी। ओवैयार जब रास्ते से गुज़रती थी तो
लोग उसे हाथ जोड़कर प्रणाम करते थे। छोटे तो छोटे, बड़े भी ओवैयार को देखकर
उसके लिए रास्ता छोड़ देते थे।
एक दिन दोपहर के समय ओवैयार बाज़ार की तरफ़ जा रही थी। जिस सड़क पर
वह चल रही थी, उसके दोनों ओर जामुन के पेड़ लगे थे। उन पेड़ों पर जामुन लदे
हुए थे। काले-काले रसदार जामुन देखकर ओवैयार के मुँह में पानी आ गया, लेकिन
जामुन के सभी पेड़ ऊँचे थे। उसके सामने समस्या यह थी कि वह जामुन कैसे तोड़े ?
वृद्धावस्था में बालकों की तरह पेड़ पर कूदकर चढ़ जाना उसके वश की बात
नहीं थी। वह आस-पास देखने लगी कि शायद कोई बच्चा दिख जाए। तभी ओवैयार की
नज़र एक पेड़ पर पड़ी। वहाँ एक चरवाहे का लड़का चढ़ा हुआ जामुन खा रहा था।
बालक ने ओवैयार को देखा तो झट उसे प्रणाम करके कहा, “मौसी, बड़े स्वादिष्ट
जामुन हैं। कहो तो कुछ तुम्हारे लिए गिरा दूँ।"
ओवैयार के मन की मुराद पूरी हो गई। वह तो यही चाहती थी। उसने कहा,
“बेटा, मेरा मन तो बहुत कर रहा है। यदि कुछ जामुन गिरा दो तो तुम्हें लाख
दुआएँ दूँगी।"
बालक ने पूछा, “मौसी, गिराने को तो अभी गिरा दूँ, लेकिन कौन-से जामुन खाना
पसंद करोगी-- गरम या ठंडे?”
यह सुनकर ओवैयार का सिर चकरा गया। उसने तर्क में बड़े-बड़े विद्वानों को
परास्त किया था। बहुत-सी पोथियाँ पढ़ी थीं। फिर भी आज तक कभी जामुनों के ठंडे
और गरम होने की बात नहीं सुनी थी।
उसे सोच में पड़ा देखकर बालक फिर कहने लगा, “बोलो, मौसी, कौन-से
जामुन गिराऊँ ?”
ओवैयार ने कहा, “बेटा, क्यों मुझ बूढ़ी से हँसी करता है ? भला जामुन भी कहीं गरम और ठन्डे होते हैं!"
बालक ने कहा, “अरी मौसी,
कैसी बात करती हो! मेरी इतनी
हिम्मत कहाँ कि तुमसे हँसी करूँ!
मैं सच कह रहा हूँ, यहाँ दोनों
तरह के जामुन हैं। बताओ,
कौन-से गिराऊँ?"
ओवैयार बालक की बात
पर विचार करने लगी। वह
सोचने लगी कि इस बात
का क्या उत्तर दे? क्या वह
कह दे कि गरम जामुन
गिराओ। पर जामुन तो
गरम होते ही नहीं। कौन
जाने उसकी इस बात
पर बालक उसकी
और भी हँसी उड़ाए!
बालक ने फिर कहा, “मौसी, तुम तो बड़ी बुद्धिमती हो। अपनी कविताओं से
छोटे-बड़े सबके मन में आनंद का रस घोल देती हो। बड़े आश्चर्य की बात है कि
तुम इतनी-सी बात नहीं समझ पा रही हो।”
सोचते-सोचते ओवैयार तंग आ गई थी। उसने कहा, “भई, तू नहीं मानेगा। चल,
कुछ गरम जामुन गिरा दे। मैंने आज तक ठंडे जामुन ही खाए हैं। अब देखूँ कि गरम
जामुन कैसे होते हैं।''
बालक ने हँसते हुए पेड़ की एक डाली को ज़ोर-ज़ोर से हिला दिया।
काले-काले रसदार जामुन पेड़ से नीचे गिर पड़े और धूल में सन गए। ओवैयार
एक-एक जामुन को उठाकर बड़े प्रेम से फूँक-फूँककर खाने लगी।
यह देखकर बालक हँस पड़ा। फिर बोला, “कहो मौसी, गरम जामुन कैसे लगे?"
ओवैयार ने जामुन का रस चूसते हुए कहा, “बेटा, जामुन तो ठंडे ही हैं।”
बालक ने कहा, “कैसी बात कर रही हो, मौसी ? यदि जामुन गरम नहीं हैं तो
फिर तुम उन्हें फूँक-फुँककर क्यों खा रही हो?”
ओवैयार सन्न रह गई। इस बात का वह क्या उत्तर देती ? एक चरवाहे के बालक ने
अपने वाक्-चातुर्य से उसे हरा दिया था। वह कुछ लज्जित-सी हो गई।
तभी बालक नीचे उतर आया। ओवैयार ने उसे गले से लगा लिया और कहा,
“सचमुच जामुन गरम ही हैं, तभी तो मैं इन्हें फूँक-फूककर खा रही हूँ।''
दोनों साथ-साथ हँस पड़े और हँसते-हँसते ही अपने-अपने घर चले गए।