गप्पीलाल का किस्सा (कहानी) : प्रकाश मनु
Gappilal Ka Kissa (Hindi Story) : Prakash Manu
अज्जू के साथ अजब मुसीबत थी। जाने क्या बात थी कि वह झूठ बोले बगैर रह ही
नहीं पाता था। दोस्तों के बीच डींगें मारने का मौका मिलता, तब तो उसकी
कल्पना के पंख लग जाते और मन छलाँगें लगाने लगता। ऐसी-ऐसी बातें कहता कि
सुनने वाले पहले तो हैरान होने का नाटक करते, फिर उसके झूठ की कलई खोल ऐसा
तंग करते कि बेचारे से भागते ही बनता।
बेचारा अज्जू ऐसे क्षणों में अपनी इस इजीब सी आदत को लेकर मन ही मन रोया
करता था। सोचता था, ‘बहुत हुआ। अब आगे से ऐसी उल्टी-सीधी गप्पें
नहीं हाँका-करूँगा।’ पर वह लाचार था। जाने क्या बात थी, जहां
चार दोस्त इकट्ठे हों, वहाँ ऐसी बातें कहे बगैर उसे चैन ही न पड़ता था। इन
बातों का कोई सिर-पैर तो होता नहीं। इसलिए फौरन पकड़ में आ जातीं और अज्जू
की खूब लानत-मलानत होती।
धीरे-धीरे तो हालत यह हो गई कि अज्जू ज्यों ही गप्प हाँकने के लिए मुँह
खोलता, उसके दोस्त ही-ही-ही करके हँसना शुरू कर देते। उसकी आधी बात मुँह
की मुँह में ही रह जाती। और मारे शर्म के उसका चेहरा लाल हो जाता।
एक दिन ऐसे ही दोस्तों ने अज्जू का बुरी तरह मजाक उड़ाया। वह छुट्टी के
बाद स्कूल के पास वाले मुरली बाबा के बगीचे में जाकर एक पेड़ के नीचे बैठ
गया। रह-रहकर उसे रोना आ रहा था। सोच रहा था, ‘क्या करूँ, क्या
न करूँ ? क्या कुछ ऐसा नहीं हो सकता कि मुझे रोज-रोज की इस बेइज्जती से
छुटकारा मिल जाए !’
‘‘हो सकता है...जरूर हो सकता है
!’’ उसे एक महीन सी आवाज सुनाई दी।
‘‘कौन...?’’ अज्जू हैरान होकर
इधर-उधर देखने लगा। उसे अपने कानों पर यकीन नहीं हो रहा था। क्या सचमुच
अभी-अभी कोई बोला था या फिर...?
‘‘इधर-उधर क्या देख रहे हो अज्जू ? मैं कह रही हूँ न,
कि तुम्हें रोज-रोज की इस मुसीबत से छुटकारा मिल सकता है, जरूर मिल सकता
है !’’
अज्जू को लगा, यह आवाज तो जरूर इस पीपल के पेड़ के ऊपर से आ रही है। उसने
अचकचाकर ऊपर देखा, तो एक सुंदर सी रंग-बिरंगी चिड़िया को अपनी ओर देखते
पाया।
अज्जू को लगा, हो न हो, यह चिड़िया ही अभी-अभी उससे बोल रही थी। लेकिन भला
यह आदमी की-सी आवाज में कैसे बोल लेगी ?
अज्जू अभी यही सोच ही रहा था कि देखा, पंख लहराती हुई, वही सुंदर,
रंग-बिरंगी चिड़िया उड़कर उसके सामने आ बैठी। वह लाल-हरे रंग की प्यारी सी
चिड़िया थी, उसकी गरदन नीली थी और सिर पर पीले रंग की सुंदर कलगी थी।
‘‘अरे, अभी-अभी क्या तुम्हीं बोल रहीं थीं
?’’ अज्जू ने हैरानी से चिड़िया को देखते हुए पूछा।
‘‘हाँ...!’’ उसे लगा कि अरे, यह
चिड़िया तो हँसती भी है। ‘हाँ’ कहते-कहते जरूर
धीमे-धीमे हँस रही थी।
लेकिन अज्जू तो अपनी ही मुश्किलों से घिरा था बोला,
‘‘बताओ नन्ही, अच्छी चिड़िया। बताओ, भला तुम कैसे
मुझे मेरी मुश्किलों से छुटकारा दिला सकती हो ?’’
‘‘बस, ऐसे कि जब तुम कुछ ज्यादा ही गप्पें हाँकने
लगोगे, तो मैं चीं-चीं, चीं-चीं करके तुम्हें सावधान कर दूँगी। मेरी आवाज
बस तुम्हीं को सुनाई पड़ेगी, किसी और को नहीं ! तुम झट समझ जाना और गप्पें
हाँकना बंद कर देना।’’ चिड़िया बोली।
‘‘अरे ! यह आइडिया तो अच्छा
है।’’ अज्जू उछल पड़ा और जोर-जोर से तालियाँ बजाते
हुए बोला, ‘‘धन्यवाद, नन्हीं चिड़िया धन्यवाद
!’’
बस, खुश होकर अज्जू ने अपना बस्ता उठाया और चिड़िया को
‘टा-टा’ करके घर चल दिया। उसे लगा, उसके सिर पर से
चिंताओं की भारी गठरी उतर गई है।
अगले दिन अज्जू स्कूल पहुँचा, तो खुश-खुश सा था। अभी क्लाश शुरू होने में
काफी देर थी। इसलिए बच्चे टोली बनाकर आपस में बातें कर रहे थे। दीपू कह
रहा था, ‘‘कल शाम मैं अपने अंकल के यहाँ दावत में गया
था। वहाँ कई तरह की चाट थी...रसगुल्ले थे, आइसक्रीम भी थी। खू मज़ा आया
!’’
‘‘ठीक है, दावत अच्छी होगी। पर मेरे नाना ने एक बार
मेरे जन्मदिन पर जो दावत दी थी, उसका भला कौन मुकाबला करेगा ? आहा ! ऐसी
दावत थी, ऐसी कि कोई सोच भी नहीं सकता !’’
अज्जू कह रहा था तो चिड़िया ने बीच-बीच में दो-एक बार चीं-चीं करके इतना
शोर मचा दिया कि बेचारा अज्जू परेशान। अपनी गलती सुधारता हुआ बोला,
‘‘नहीं, दस हजार तो नहीं थे। मैं शायद कुछ ज्यादा कह
गया। हाँ, हजार लोग तो जरूर थे।...नहीं, हजार नहीं, बस सौ-डेढ़ सौ ! हाँ
सौ-डेढ़ सौ तो जरूर होंगे।’’
‘‘तो इसमें क्या खास बात ?’’
दीपू बोला।
‘‘खास बात...! खास बात पूछते हो ? तो सबसे खास बात तो
उसमें यह थी कि छत्तीस तरह की सब्जियाँ थीं—सूखी भी, रसेदार भी।
और छत्तीस तरह की चाट। ओह, न जाने क्या-क्या चीजें थीं ! मुझे तो नाम भी
याद नहीं आ रहे।’’
अज्जू ने अपना वाक्य पूरा किया ही था कि चिड़िया ने इस बुरी तरह से
चीं-चीं, चीं-चीं का शोर मचा दिया कि अज्जू को लगा, अपनी गलती को सुधारना
ही पड़ेगा, वरना चिड़िया की चीं-चीं रुकेगी नहीं और उसका दिमाग खराब हो
जाएगा।
अज्जू कुछ सोचकर गंभीर होकर बोला, ‘‘दोस्तों, लगता
है, मैं कुछ गलत बोल गया। छत्तीस तरह की सब्जियाँ नहीं थीं और छत्तीस तरह
की चाट भी नहीं थी। असल में सब्जियाँ, चाट, आइसक्रीम और
मिठाइयाँ—ये सारी चीजें मिलाकर छत्तीस थीं, अब मुझे याद आया।
हाँ, ठीक-ठीक याद आ गया !’’
सुनकर दोस्त हैरान होकर अज्जू की ओर देख रहे थे। सोच रहे थे, आज इसे हुआ
क्या है ? खुद ही अपनी बात कहता है, खुद ही काटता है। शायद इसकी तबीयत कुछ
ठीक नहीं है या परेशान सा है।...इसलिए अज्जू का मजाक उड़ाना छोड़कर वे चुप
हो गए। फिर भी दो-एक दोस्त तो खुदर-खुदर हँस ही रहे थे। और आँखें
नचा-नचाकर अज्जू का मजाक उड़ा रहे थे।
उस दिन आधी छुट्टी के समय अज्जू फिर दौड़कर मुरली बाबा की बगिया में गया
और उसी पीपल के नीचे आकर बैठ गया। वह बहुत उदास था। फौरन कल वाली दोस्त
चिड़िया फुदककर उसके पास आ गई। बोली, ‘‘क्या बात है
अज्जू ? तुम तो आज भी उदास हो।’’
‘‘हाँ...क्या करूँ ? मेरी मुश्किलें तो कम होंने में
ही नहीं आ रहीं।’’ कहता-कहता अज्जू रो पड़ा। और फिर
उसने सुबकते हुए चिड़िया को आज की पूरी बात सुना दी।
चिड़िया बोली, ‘‘मेरी चीं-चीं तो बस तुम्हें सावधान
करने के लिए है। लेकिन तुम खुद भी कोशिश करो न !’’
बात अज्जू की समझ में आ गई। चिड़िया को धन्यवाद देकर फिर वह झटपट अपनी
क्लास में आ गया।
उस दिन स्कूल से छुट्टी होने पर सारे बच्चे हँसते, बात करते हुए घर जा रहे
थे। उन्हीं के बीच अज्जू भी था। दोस्त जब बातें कर रहे थे, तो बीच-बीच में
अज्जू का मन होता, वह भी दो-चार गप्पें लगा दे और अपनी धाक जमा दे। लेकिन
तभी उसे चीं-चीं चिड़िया की बात याद आई और उसने अपने मन को बड़ी मुश्किल
से काबू में किया।
ऐसे ही दो-तीन दिन निकल गए। बार-बार अज्जू का मन डींगें हाँकने का होता,
लेकिन हर बार चीं-चीं चिड़िया की सलाह उसे याद आ जाती और वह गप्पें हाँकने
की बजाए, सीधे-सादे ढंग से अपनी बात कहने लगता।
अज्जू के दोस्त बड़ी हैरानी से देख रहे थे। अज्जू बदल कैसे रहा है ? एक
दिन गोपाल ने कहा, ‘‘जरूर किसी ने इसे अच्छी सीख दी
है। लेकिन देखता हूँ, यह बाहर-बाहर से ही बदला है या भीतर से
भी...!’’
‘‘वह तुम कैसे पता करोगे।’’
दोस्तों ने पूछा।
‘‘बस, देखते रहो...!’’ गोपाल
बोला।
उसी दिन छुट्टी होने के बाद सब बच्चे बातें करते हुए घर जा रहे थे। तभी
गोपाल ने अज्जू को बुलाकर कहा, ‘‘अरे सुनो अज्जू, कल
तो बड़ा मजेदार किस्सा हुआ। मेरे पापा शिकार खेलने गए थे, एक हिरन मारकर
लाए। जानते हो, कितना बड़ा था...बहुत बड़ा था, बहुत बड़ा
!’’ कहते-कहते गोपाल ने अपने दोनों हाथ फैला दिए।
‘‘अरे, कितना बड़ा होगा ? ज्यादा से ज्यादा पाँच-छह
फुट। लेकिन तुम्हें यह नहीं पता कि मेरे दादा जी कितने बड़े शिकारी थे !
दूर-दूर तक उनका नाम था। और आदमी तो क्या, जंगल के जानवर भी उनका नाम
सुनकर थर-थर काँपते...!’’
अज्जू जब यह बोल रहा था, तो चिड़िया ने दो-तीन बार चीं-चीं करके उसे
चेताया। पर अज्जू कहाँ मानने वाला था ! बहुत दिनों बाद मौका मिला था,
इसलिए वह पूरी तरह अपना सिक्का जमा देना चाहता था।