गली का बूढ़ा लैंप (डैनिश कहानी) : हैंस क्रिश्चियन एंडर्सन

Gali Ka Boodha Lamp (Danish Story in Hindi) : Hans Christian Andersen

एक गली में भला-सा बूढ़ा लैंप था जिसने बहुत साल तक ईमानदारी के साथ अपना काम किया; पर अब उसे पुराने फैशन का बताया जा रहा था। खंभे पर लटक कर गली को रोशनी देने की यह आखिरी शाम थी, उसे उस नृत्यांगना की तरह लग रहा था जो आखिरी बार नाचने वाली थी और फिर कल से उसके बारे में लोग यही कहने वाले थे कि वह नाचा करती थी। लैंप को आने वाले दिन का बड़ा डर था क्यों उसको बताया गया था कि शहर की परिषद के छत्तीस आदमी उसका मुआयना करने वाले थे। वे ही यह तय करने वाले थे कि लैंप आगे काम के लिए ठीक है या नहीं, और अगर है तो किस काम के लायक है। वे कह सकते थे कि उसे किसी छोटे पुल पर लगा दिया जाए या किसी फैक्टरी को बेच दिया जाए और या बिल्कुल बेकार कह दिया जाए। इसका मतलब यह कि उसे पिघला दिया जाएगा और फिर उसको कुछ और बना दिया जाए; पर उसे फिक्र थी कि फिर उसे याद भी रहेगा या नहीं कि वह गली का लैंप था।

जो भी हो, एक बात तय थी; कल वह रात के चौकीदार और उसकी पत्नी से बिछुड़ जाएगा। इसका उसे दुःख था क्योंकि वे उसके परिवार की तरह थे। जिस साल यह आदमी चौकीदार बना उसी रात उसे टाँगा गया था। उसकी पत्नी उम्र में कम और बददिमाग थी। वह सिर्फ रात के वक्त उसे देखती थी, दिन में एक बार भी उसकी तरफ नज़र नहीं डालती थी। इधर कुछ सालों से जब से ये तीनों-चौकीदार, उसकी पत्नी और लैंप-बूढ़े होने लगे, उसकी औरत ने लैंप का ध्यान रखना शुरू किया। वह उसे पॉलिश करती थी, उसमें तेल भरती थी। बूढ़ा दंपति ईमानदार था, उन्होंने कभी लैंप के तेल की एक बूंद भी नहीं चुराई थी।

वह आखिरी रात थी जब लैंप पटरी पर रोशनी डाल रहा था। कल उसे टाउन हॉल के एक कमरे में ले जाया जाएगा। इन दो बातों से वह इतना उदास था कि उसकी लौ काँपने लगी, उसके मन में पुरानी यादें आने लगीं। उसने इतने अजीब दृश्यों पर रोशनी डाली थी जितनी वे छत्तीस सदस्य मिलकर भी नहीं देख सकते थे। पर यह बात वह कभी कह नहीं सकता था क्योंकि वह अधिकारियों की बहुत इज़्ज़त करता था।

बूढ़ों को बीती बातें याद करना बहुत अच्छा लगता है। हर बार जब वह कोई बात याद करता तो उसके अंदर की बत्ती तेज़ हो जाती थी। लैंप ने सोचा, 'जैसे मैं उन्हें याद करूँगा वैसे ही वे भी मुझे याद करेंगे। बहुत साल पहले मेरे नीचे खड़े हुए एक जवान आदमी ने गुलाबी कागज़ पर किसी औरत के हाथ का लिखा हुआ एक पत्र खोला। उसने उसे दो बार पढ़ा फिर चूमा। फिर उसने मेरी तरफ देखकर कहा, 'मैं सब से ज्यादा खुश हूँ।' उसकी प्रेमिका ने उसे प्यार-भरी चिट्ठी लिखी थी; सिर्फ मैं और वह ही जानते थे।

'मुझे एक और जोड़ा आँखें याद आ रही हैं किसी के विचार कितनी अजीब तरह कूद सकते हैं!- किसी का अंतिम संस्कार था। इसी गली में रहने वाली एक जवान और रईस औरत मर गई थी। चार काले घोड़े मुर्दा ढोने वाली गाड़ी को ले जा रहे थे। ताबूत फूलों से ढंका था। अफसोस करने वाले उसके पीछे हाथों में टॉर्च लिए चल रहे थे। इतनी रोशनी में मेरी रोशनी फीकी पड़ रही थी। पर जब जुलूस चला गया और मुझे लगा कि फिर एक बार गली खाली हो गई है, अचानक मैंने देखा कि ठीक मेरे नीचे खड़ा कोई रो रहा था। मैं अपनी तरफ देखती, उन दुःख-भरी आँखों को कभी नहीं भूल सकता, लैंप को आखिरी बार चमकते वक्त यह सब बातें याद आ रही थीं। जब एक चौकीदार अपनी पारी खत्म करके जाता है तो अपनी जगह आने वाले से कुछ बातें करके जाता है पर लैंप को यह भी नहीं मालूम था कि उसकी जगह कौन आने वाला है जिससे वह उसे कुछ सलाह दे सके। हवा के बारे में कुछ बताए कि वह किस तरफ से आती है, या चंद्रमा के बारे में कि वह कैसे । पटरी पर चमकता है।

नीचे नाली में तीन लोग थे जो गली को रोशनी देने वाले की जगह खाली होते ही खुद वहाँ आना चाहते थे; यह सोचकर कि लैंप ही अपनी जगह आने वाले का चुनाव करेगा, वे उसके सामने अपने को पेश कर रहे थे। पहला तो सड़ी मछली का सिर था, जो जैसा कि सब जानते ही हैं अँधेरे में चमकता है। उसने बताया कि वह जगह उसे मिलने से तेल की बचत होगी। दूसरा सूखा सड़ा लकड़ी का टुकड़ा था। वह भी चमकता है और उसने खुद बताया था कि वह पुरानी मछली से ज्यादा चमकता है। वैसे भी वह जंगल के गौरवपूर्ण पेड़ का आखिरी टुकड़ा था। तीसरा जुगनू था। बूढ़े गली के लैंप की समझ में नहीं आ रहा था कि वह कहाँ से आया था पर वह भी दूसरों की तरह चमक रहा था। पहले दोनों ने दावा किया कि जुगनू हमेशा नहीं चमकता सिर्फ दौरा पड़ने पर ही चमकता है, इसलिए उसे सही नहीं माना जा सकता।

गली के बूढ़े लैंप ने उन्हें समझाने की कोशिश की कि उनमें से किसी में भी गली का लैंप बनने लायक रोशनी नहीं थी। पर तीनों में से कोई भी यह मानने को तैयार नहीं था। जब उन्हें बताया गया कि किसी भी हालत में लैंप अपने वारिस को तय नहीं कर सकता तो वे बोले कि इस खबर से वे खुश थे-क्योंकि सभी मानते थे कि-बूढा लैंप इतना बड़ा निर्णय लेने के काबिल नहीं था। वह बुढ़ापे के कारण अक्ल खो बैठा था।

उसी वक्त कोने से हवा आई और उसकी टोपी में से सीटी बजाती हुई निकल गई। यह मैं क्या सुन रही हूँ कि तुम कल हमें छोड़कर जा रहे हो? क्या आज यहाँ तुम्हारी आखिरी शाम है ? मैं तुम्हें विदा करते हुए एक भेंट दूंगी। मैं तुम्हारे दिमाग के जाले हटाकर साफ कर दूंगी। इससे तुमने जो कुछ देखा और सुना है वह तुम सिर्फ याद ही नहीं रख सकोगे, बल्कि तुम्हारे सामने जो कुछ बताया या पढ़ा जाएगा वह तुम देख भी पाओगे।'

'कितनी बढ़िया भेंट है!' बूढ़ा लैंप बोला। बस मुझे गलाया न जाए।'

हवा ने जवाब दिया, 'कभी ऐसा हुआ तो नहीं है। अब मैं तुम्हारी याद ताज़ा करूँगी। अगर तुम्हें मेरे जैसी कुछ और भेंट मिल जाए तो तुम्हारा बुढ़ापा और काम से हटना खुशी से भर उठेगा।'

'पर अगर मुझे पिघला दिया गया तो? क्या तब भी मेरी याद रहेगी?' ठंडी साँस भरकर लैंप बोला।

हवा ने पूरी ताकत से फेंकते हुए कहा, 'बूढ़े लैंप, अक्ल से काम लो।' तभी बादल के पीछे से चाँद निकला। हवा ने पूछा, 'तुम बूढ़े लैंप को क्या दोगे?'

'मैं? कुछ नहीं।' चंद्रमा बोला। मैं तो खुद खत्म होता जा रहा हूँ। इसके अलावा लैंप ने मुझे थोड़े ही रोशनी दी है। मैंने ही उसे दी है।' और चंद्रमा बादलों के पीछे छिप गया क्योंकि उसे किसी के माँगने से बेहद नफरत थी।

टोपी पर एक बूंद पानी गिरा। उन्होंने बताया कि स्लेटी बादलों ने उन्हें ऊपर से भेजा था, और वे एक कीमती भेंट लाए थे। अब हम तुम्हारे अंदर आ गए हैं, तुम एक रात में जंग खा सकते हो-जब तुम चाहो, भले की वह आज रात की ही क्यों न हो।'

लैंप को वह बहुत बुरा तोहफा लगा, हवा भी उसकी बात मान गई। वह जितना तेज़ चीख सकती थी चीख कर बोली, 'क्या किसी के पास देने को इससे अच्छी भेंट नहीं है; कुछ बेहतर नहीं है?'

आसमान से गिरते एक तारे ने आग की लकीर-सी खींच दी। 'क्या था?' मछली के सिर ने चिल्लाकर पूछा। मेरे ख्याल से एक तारा बूढ़े लैंप में गिर गया है! अगर लैंप की जगह इतने बड़े लोग आ रहे हैं तो हम तो घर ही चले जाएँ तो अच्छा है।' और उन तीनों ने वही किया।

बूढ़ा लैंप पहले से ज्यादा तेज़ी से चमक रहा था। यह बहुत अच्छी भेंट थी!' लैंप बोला। ऊपर चमकते सितारों को मैं हमेशा बड़ी प्रशंसा से देखता था, चाहे मैंने भी सारा जीवन कोशिश की है पर मैं कभी उतना तेज़ नहीं चमक सकता जैसा वे हमेशा चमके हैं। उन तारों ने मुझ जैसे गरीब, धुंधले से गली के लैंप को इतना बढ़िया तोहफा भेजा है! उन्होंने मुझे यह ताकत दी है कि मुझे जो भी याद है वह मैं अपने प्यारों को साफ दिखा सकूँ। क्या बढ़िया भेंट है! क्योंकि जो खुशी औरों के साथ बाँटी नहीं जा सकती वह आधी रह जाती है।'

हवा बोली, 'तुम्हारा ख्याल बहुत अच्छा है। पर मुझे डर है कि वह तुम्हें यह बताना भूल गए कि कुछ करने के लिए तुम्हें अपने अंदर एक जलती हुई मोमबत्ती की ज़रूरत होगी। उसके बिना कोई कुछ नहीं देख पाएगा। तारों ने शायद इसलिए नहीं बताया होगा क्योंकि उन्होंने सोचा होगा कि नीचे जो कुछ चमकता है उसमें जलती हुई मोमबत्ती होती ही है। अब मैं थक गई हूँ। मेरे ख्याल से अब मैं आराम करूँगी।' और हवा चली गई।

अगले दिन, अगले दिन की छोड़ो शाम की बात करते हैं जब लैंग आरामकुर्सी पर रखा था। पर कहाँ? रात के बूढ़े चौकीदार के घर में! उसने परिषद के छत्तीस सदस्यों से अपने लंबे और ईमानदारी से किए गए काम में इनाम के तौर पर वह पुराना गली का लैंप माँगा था। वे हँसे पर बूढ़े आदमी को वह लैंप ले जाने दिया। अब वह स्टोव की बगल में पड़ी आरामकुर्सी पर रखा था। ऊपर टंगे लैंप से वह दुगुना बड़ा लग रहा था।

खाना खाते हुए बूढ़े जोड़े ने प्यार से उसकी तरफ देखा। वे लैंप को मेज़ पर जगह दे देते, पर उसकी कोई तुक नहीं थी। जिस कमरे में रहते थे वह जमीन से दो फुट नीचे एक तहखाना था। उसमें घुसने के लिए पत्थर का गलियारा था। कमरा साफ-सुथरा और गरम था। पलंग और दो छोटी खिड़कियाँ पर्दो से छिपे थे। खिड़की की चौखट पर दो अजीब से गमले रखे थे जो उनके पड़ोसी ने इन्हें लाकर दिए थे। वह जहाज पर काम करता था। ये गमले वह पूर्वी या पश्चिमी हिंद द्वीप समूह से लाया था, इतना बूढ़े मियाँ-बीवी को भी पता नहीं था पर वे चीनी के बने दो हाथी थे जिनकी पीठ पर मिट्टी भरने के लिए गड्ढा था। एक में उन्होंने प्याज जैसी सब्जी बोई हुई थी। वह मानो बूढ़े पति-पत्नी के लिए सब्जी का बगीचा था; दूसरे में फूल खिल रहा था, वह उनका फूलों का बगीचा था। दीवार पर 'वियना की कांग्रेस' का एक बड़ा रंगीन चित्र लगा था। इस तसवीर में यूरोप के सारे राजाओं और बादशाहों को एक नज़र में देखा जा सकता था। कोने में एक पुराने ज़माने की घड़ी रखी थी जो हमेशा आगे रहती थी। बूढ़े का कहना था कि धीरे चलने से तेज़ चलना बेहतर होता है।

बूढ़े मियाँ-बीवी खाना खा रहे थे, लैंप स्टोव के पास कुर्सी पर था। लैंप को लग रहा था कि उसकी दुनिया ही उलट गई। पर जैसे ही बूढ़े आदमी ने पुरानी बातें याद करनी शुरू की कि कैसे -बारिश हो या खुला, गर्मियों की रात हो या सर्दियों की लंबी रात-उसने और लैंप ने साथ-साथ वक्त बिताया था, तब लैंप को लगा कि तहखाने में गर्म स्टोव के पास बैठना भी अच्छा लगता है। लैंप को पिछली बातें ऐसे याद आने लगीं जैसे अभी हुई हों। हवा ने उसकी याद ताज़ा करने का काम बढ़िया ढंग से किया था।

बूढ़ा-बुढ़िया बड़े मेहनती लोग थे, एक मिनिट भी बेकार नहीं करते थे। इतवार की दोपहर को बूढ़ा किताब लेकर ऊँची आवाज़ में पढ़ता था। वह यात्रा के, खासकर अफ्रीका के गर्म जंगलों के बारे में पढ़ना पसंद करता था जहाँ हाथी घूमते थे। उसकी पत्नी खिड़की की चौखट पर रखे हाथियों को देखकर कहती, 'मुझे लगता है, मैं उन्हें देख पा रही हूँ।'

गली के लैंप का मन होता था कि उसमें जलती हुई मोमबत्ती हो! फिर बूढ़ा-बुढ़िया भी वह सब देख सकते थे जिनकी वह कल्पना कर सकता था। वह ऊँचे पेड़ देख सकता था जो इतने पास-पास थे कि उनकी डालें एकदूसरे में उलझती थीं; घुड़सवारी नंगे आदिवासी लोग, और हाथियों के झुंड जो अपने बड़े पैरों के नीचे पौधों को कुचलते हुए चलते जाते थे।

लैंप ठंडी साँस भरते हुए सोच रहा था, 'अगर मोमबत्ती ही न हो तो मेरी इस देन का क्या फायदा। पर ये दोनों तो इतने गरीब हैं कि उन्हें खरीद ही नहीं सकते। ये तो सिर्फ चरबी से बनी या तेल की बत्ती ही इस्तेमाल कर सकते हैं।' पर एक दिन उस तहखाने में मुट्ठी-भर मोमबत्ती के बचे हुए टुकड़े आए। दोनों ने बड़े टुकड़े रोशनी के लिए जला लिए, पर उन्हें यह नहीं सूझा कि एक टुकड़ा लैंप में भी रख दें। छोटे टुकड़ों से बुढ़िया ने अपने सिलाई के धागे को मजबूत किया।

लैंप को शिकायत थी कि मेरे पास इतनी निराली देन है। मेरे अंदर पूरी दुनिया है पर मैं इन बूढ़े पति-पत्नी को नहीं दिखा सकता। वे नहीं जानते कि मैं उनकी सफेदी वाली दीवारों को बढ़िया कपड़े से सजा सकता हूँ। वे बढ़िया घने जंगल देख सकते हैं वे जो चाहें वही देख सकते हैं पर हाय! वे यह नहीं जानते'...

अब लैंप को साफ करके चमकाकर कोने में रख दिया गया था। हर आने-जाने वाले की नज़र उस पर पड़ती थो। ज्यादातर लोग सोचते थे वह कोई पुरानी बेकार की चीज़ है, पर चौकीदार और उसकी पत्नी सचमुच उसे प्यार करते थे।

उस दिन चौकीदार का जन्मदिन था। बुढ़िया ने लैंप के सामने खड़े होकर कहा, 'आज उनके लिए तुम्हें भी चमकना होगा।'

लैंप ने उम्मीद से भरकर सोचा, 'इन्हें भी अक्ल आई, अब वे मुझे एक मोमबत्ती देंगे।'

बुढिया ने फिर लैंप में तेल भरा और वह सारी शाम जला। अब लैंप को पक्का विश्वास हो गया कि तारों ने उसे जो भेंट दी थी वह बेकार जाएगी। उसकी बाकी जिंदगी में उसे मिले सारे उपहारों में सबसे अच्छा उपहार छिपे हुए खजाने की तरह बेकार पड़ा रहेगा।

उस रात लैंप ने सपना देखा-अगर किसी के भी पास लैंप जैसी देन हो तो वह सपना देख सकता है कि बूढ़ा-बुढ़िया मर गए हैं और उसे ढलाईघर में गलाने के लिए भेज दिया गया है। वह उतना ही डरा हुआ था जितना उस दिन था जब छत्तीस सदस्य उसका मुआयना करने आए थे। हालाँकि उसके पास जंग खाकर धूल में मिलने की ताकत थी पर उसने उसका इस्तेमाल नहीं किया। उसे गलाया गया, फिर गरम लोहे से एक सुंदर मोमबत्ती- दान बनाया गया जिसका आकार हाथों में फूल का गुलदस्ता लिए एक परी का था। फूलों के बीच में मोमबत्ती लगाने के लिए एक छेद था। उस मोमबत्ती दान को एक गरम कमरे में हरे रंग की लिखाई की मेज़ पर रख दिया गया। उस कमरे में बहुत-सी किताबें थीं और दीवारों पर चित्र लटके थे। वह एक कवि का कमरा था। जो कुछ सोचकर या कल्पना करता लिखता था। ऐसा लगता था कि उस कमरे में वीरान अँधेरे जंगल, धूप से चमकते नदी के पास के मैदान जहाँ सारस चलते थे, यहाँ तक कि लहराते समुद्र पर तैरते जहाज़ का डेक तक, सब कुछ मौजूद था।

बूढ़े लैंप ने कहा, 'मेरे पास भी क्या देन है! मैं तो गला दिया जाना चाहूँगा। पर नहीं! तब तक नहीं जब तक कि ये बूढ़े-बुढ़िया जिंदा हैं। मैं जैसा हूँ वे मुझे वैसे ही प्यार करते हैं। मैं उनके लिए उनके बच्चे की तरह हूँ, उन्होंने मुझे चमकाया, मुझे तेल दिया। वे मुझे "वियना की कांग्रेस' की तसवीर की तरह इज़्ज़त देते हैं जबकि वह तसवीर ऊँचे दर्जे की है।'

इसके बाद से बूढ़े लैंप के मन में शांति छा गई। गली का एक इज्ज़तदार बूढ़ा लैंप होने के नाते यही उसके लिए ठीक भी था।

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