गाँव की बारात (उत्तराखंड) : श्याम सिंह बिष्ट
Gaanv Ki Barat : Shyam Singh Bisht
गांव की बारात का यह शब्द जब भी हमारे कानों में गूंज पड़ता है मानो तब-तब गांव में होने वाली शादियों कि एक स्मृति हमारे यादों में या यह कहें इन गांव में होने वाली शादियों की रस्में, संपूर्ण उत्तराखंड की संस्कृति और वहां की परंपरा धरोहर को दिखाने का कार्य अभी भी करती हुई आ रही है ।
अब भी गांव मैं होने वाली शादियों की परंपरा उस गांव की एकता और आपसी भाईचारे का एक सत्य प्रमाण चिन्ह है, हम लोग अपने राज्य से नौकरी के कारणवश या किसी और प्रयोजन के तहत शहरों में आकर चाहे बस गए हो पर जब भी गांव में किसी की शादी का निमंत्रण आता है तो, उस समय सभी को शादी में सम्मिलित व गांव जाने की खुशी सिर्फ अपने अंतर्मन से ही महसूस की जा सकती है ।
पहले की अपेक्षा अब गांव की शादियों में थोड़ा बहुत वक्त के कारण या यह कहें हैं कि, व्यवस्थित दिनचर्या के कारण अब परिवर्तन आ चुका है ।
पहले जहां शादियों में सारे कार्य गांव के लोगों द्वारा आपस में मिलकर हुआ करते थे अब इसकी जगह कुछ लोगों को खाना बनाने का या अन्य वस्तुएं बनाने का ठेका दे दिया जाता है ।
मुझे अब भी याद है जब भी हमारे गांव में किसी की विवाह उत्सव की तैयारियां होती थी, तब हम सब दोस्त लोग अपनी अपनी छुट्टी लेकर शादी के कुछ दिन पहले गांव को चले जाया करते थे, और यदि गांव में उसी बीच दो, तीन शादियां हो तो शादी की तारीख ऐसे व्यवस्थित करते की, जितनी छुट्टी लेकर हम सब जाएं उसी बीच में सभी शादियों में सम्मिलित भी हो सके, ओर वहां सारे कार्य कर सके ।
शादी के दो-तीन दिन पहले ही शादी वाले घर में चहल पहल और सब लोगों का आना जाना दिन भर लगा रहता था चाहे शादी के लिए बाजार से सब्जी लाने का कार्य करना हो या अन्य कोई कार्य हम सभी भाई ,पर दोस्त ज्यादा हर कार्य के लिए हमेशा आगे ही रहते थे ।
यदि लड़के की शादी है तो शादी से 1 दिन पहले चांदनी लगाने का कार्य सभी गांव के लड़कों द्वारा किया जाता था, शादी वाले घर के आंगन में चांदनी कहां पर लगानी है और किस प्रकार बांधनी है हमारे भाई लोग व हमसे उम्र में बड़े व्यक्ति हमें सही मार्गदर्शन दिया करते थे, और यदि लड़की की शादी है तो इसके विपरीत होता था - क्योंकि लड़की की शादी में थोड़ा साज सजावट अधिक करनी पड़ती थी इसके लिए लड़की वाले बुकिंग वालों को घर की साज सजावट की जिम्मेदारी सौंपी जाती थी, पर अन्य काम गांव के लोगों द्वारा ही होता था ।
बारात में खाना बनाने की व्यवस्था व बर्तनों को लाने का इंतजाम सब लोगों को पहले ही करना पड़ता था, क्योंकि गांव के लोगों ने आपस में पैसा इकट्ठा करके शादी में लगने वाले बर्तनों को गांव के लोगों द्वारा पहले ही खरीदा जा चुका होता था और गांव के ही किसी घर में मैं शादी में लगने वाले बर्तनों को रखा होता था और इस बात का ध्यान रखा जाता है की जिस घर में भी वह बर्तन लाए जाए उसका विवरण व लेखा जोखा लाने वाले के पास और देने वालों को दे दिया जाता था जिससे बर्तनों के खोने की गुंजाइश कम हो ।
खाना बनाने के लिए चूल्हा किस प्रकार लगाना है व यदि पानी की समस्या है तो पानी का पहले से हे इंतजाम करना सभी लोग अपना दायित्व समझते थे,क्योंकि वह शादी उस गांव के एक घर की जिमेंदारी नहीं उस गाँव में रहने वालै सभी की जिम्मेदारी होती थी ।
गांव की शादी का वह माहौल अपने आप में दिल को खुशी व आंखों को एक यादगार स्मृति हमेशा दिया करता था ।
कहीं पर छोटे बच्चों द्वारा धागों पर पतंगी कागजों को चिपकाना, पटाण, खोई मैं तिरपाल वो चटाई बिछाना, बड़े से पराद में आटा गुदना, गप्पे वह हंसी मजाक करते हुए सब्जी काटना, चूल्हों में आग लगाते हुए सब्जी की तैयारी करते हुए बड़े बर्तनों को रखना, कार्य करते हुए लोगों को चाय बांटना, बने हुए आटे के सूवाल को धूप में सुखाना, महिलाओं द्वारा रंगीन पिछोरे में सुवाल पथाई की रस्में को निभाना, शादी में सम्मिलित सभी लोगों को पीठंआँ लगाना, गुड व मिठाई द्वारा मुंह मीठा करना, चाहे गांव की महिलाएं हो या पुरुष दोनों शादी का कार्य अपने घर की जिम्मेदारी की तरह किया करते थे ।
शाम को पहाड़ी गानों में नाचना, गाना व खाना पीना, सब लोगों का आपसी मेल मिलाप और शादी वाले उन दिनों की बात ही कुछ और हुआ करती थी, और बारात आने से पहले समय पर खाना बनाना और पूड़िया बनाने का कार्य गांव के लोगों द्वारा ही अक्सर किया जाता था, बारात की विदाई वाला क्षण हमेशा हम सब लोगों के लिए आंखों को नम करने वाला होता था ।
गांव से रोड की ज्यादा दूरी होने के कारण दुल्हन को डोली में बैठा कर विदाई देने के लिए सभी नवयुवक एक साथ मिलकर हमेशा जाते थे ।
गांव की बारात और शहर की बरात में शायद यही एक असमानताएं थी जहां गांव की किसी भी बारात में अधिकतर सभी गांव वालों का मौजूद होना दो-तीन दिन पहले से ही हो जाता था, व बारात की चहल-पहल पूरे गांव के माहौल को खुशनुमा और यादगार बना देता था ।
हम लोग शहरों में कहीं भी रहे पर हमारी कोशिश होनी चाहिए कि हम लोगों को गांव से यदि किसी शादी का निमंत्रण आए तो वहां पर पहुंचने का प्रयास और शादी में शरीक होने को पूरा प्रयत्न करना चाहिए। हो सके तो शहरों में रह रहे अपने बच्चों की शादी अपने गांव के पुश्तैनी मकान से ही करने का प्रयत्न करना चाहिए, हम सब जानते हैं और इस कटु सत्य से मुख नहीं फेर सकते हैं कि - गांव से ही हम सब लोगों की नींव और जड़ें जुड़ी है वह गांव हीं था जिसने हमें अपने पैरों पर खड़ा करना सिखाया, वो हमारे खेत ही थे जिन्होने हमारे भूखे समय पर हमें अन का दाना दिया, जहां हमारे अमा बुबु, ईजा बाजयु, व हमारे पूर्वजों ने जन्म लिया ।
दुनिया में कई लोग ऐसे भी हैं जो हरे भरे पहाड़, बर्फ की चोटी, ठंडी हवाओं, यहां की अद्भुत नदी झरनों, यहां के तीर्थ स्थलों, जहां स्वयं भगवान विराजते हैं, इन पहाड़ों की हरी घास पर चलने का आनंद, चीड़, देवदार के पेड़ों को देखने का लुफ्त, सफेद बर्फ से खेलने की जिज्ञासा लिए हुए, उगते हुए सूरज और रात की सफेद निर्मल तारों से भरी हुई टिमटिमाती हुई चांदनी को निहारना, तो चाहते हैं पर वह अपनी आर्थिक तंगी के कारण देख नहीं पाते, और कई पर्यटक हजारों लाखों रुपए खर्च कर दूर-दूर से इन पहाड़ों को देखने आते हैं ।
हमें इस बात का गर्व होना चाहिए हम लोगों ने ऐसे स्थान पर जन्म लिया है जो देवभूमि, तपोभूमि, तीर्थ स्थल और पर्यटक क्षेत्र है ।
जहां तक बात है असुविधा की तो असुविधा हर उस स्थान पर होती हैं जहां सुविधा है, लोगों को सकारात्मक बातें सोचनी चाहिए ।