क्या गाँव का समाज हमारा नहीं है ? : श्याम सिंह बिष्ट

Kya Gaanv Ka Samaj Hamara Nahin Hai : Shyam Singh Bisht

आज दिल्ली जैसे अनुशासित शहर से बिष्ट जी की लड़की की शादी का निमंत्रण का कार्ड मुझे भी आया था, पढ़ कर बड़ी खुशी हुई, शादी में शामिल होने के लिए मैं भी सह परिवार दिल्ली उनके निवास स्थान पर पहुंच गया ।
बिष्ट जी से मुलाकात और पैला -जुजा हुई, गांव के और उनके कुछ और रिश्तेदार भी शादी में आए हुए थे, चारों तरफ खुशी का माहौल था ।
बिष्ट जी ने अधिकतर गांव में रहने वाले रिश्तेदार और शहरों में सभी को शादी का निमंत्रण दिया हुआ था, और शाम को पार्टी का आयोजन रखा हुआ था ।
शाम को सभी कॉकटेल पार्टी के लिए इकट्ठा हुए, बिष्ट जी सभी को एक बंद कमरे की तरफ ले गए ।
मैंने कहा - बिष्ट जी कहां ले जा रहे हो ?
चलो ऊपर छत में या कहीं खुली जगह पर बैठेंगे ? बंद कमरे में तो पीने से दम घुट जाएगा ।
बिष्ट जी बोले- नही दाज्यू छत या खुली जगह मैं यहां (शहर) पीना allow नहीं है । और तो और यहां सार्वजनिक स्थानों में पीने पर जुर्माना भी देना पड़ सकता है ।
मैंने कहा- बिष्ट जी पहाड़ों में तो आप लोग शादी के 1 दिन पहले खुलेआम सबके सामने पीते हैं, तब तो वहां कोई कुछ नहीं बोलता ।
क्या वहां पर कोई नियम कानून नहीं है ?
बिष्ट जी बोले - भाई आप समझा करो यह शहर है गांव नहीं ।
तभी पीछे से नेगी जी बोले - बिष्ट जी ठीक कह रहे हैं शहर में यह सब कुछ नहीं चलता ।
और तो और आस -पड़ोस में हमारी भी जान पहचान के लोग रहते हैं, हमें सब जानते हैं ।
सोसाइटी में शर्मा जी और गुप्ता जी के सामने हमारी क्या इज्जत रह जाएगी, लोग कहैंगे पहाडी शराब पीते हैं ।
उन्हीं में से एक नेता जी तपाक बोल ऊठै - हमारे बच्चे पढ़, लिख रहे हैं, उन पर इन चीजों का क्या प्रभाव पड़ेगा, यह सब चीज देखेंगे तो, रही बात गांव कि -गांव में सब कुछ चलता है ।
मैं उनकी बातें चुपचाप सुनता गया और कोष रहा था उन लोगों को जो शहर में आकर सभ्य, शिक्षित, समझदार, बन जाते हैं, और गांव में जाकर खुलेआम शादी के बहाने कॉकटेल पार्टी का आयोजन करते हैं ।।

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क्यों यदि हमें शराब पीनी ही है तो पीने के लिए पहाड़ों में बंद कमरे की व्यवस्था का इंतजाम क्यों नहीं करते ?
क्या गांव का समाज हमारा समाज नहीं है ?
क्या हमारी यही संस्कृति यही रीति रिवाज है, जो हमें हमारे पूर्वजों ने हमें दी है ? या हम अपने enjoyment के लिए समाज को एक ऐसी बुरी प्रथा देकर जा रहे हैं, जिसका परिणाम आने वाले समय में सिर्फ कष्टदायक ही होगा ।
यह सिर्फ हम लोगों पर निर्भर करता है कि हम अपने आने वाली पीढ़ी को क्या दे कर और सीखा कर जा रहे हैं ।

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