Gaanv Ka Chuha Aur Shehar Ka Chuha : Aesop's Fable

गाँव का चूहा और शहर का चूहा : ईसप की कहानी

शहर में रहने वाले और गाँव में रहने वाले दो चूहों में गहरी मित्रता थी। वे अक्सर एक-दूसरे को संदेश भेजा करते और एक-दूसरे का हाल जाना करते थे। एक बार गाँव में रहने वाले चूहे ने शहरी चूहे को गाँव आने का निमंत्रण भेजा। शहरी चूहे ने निमंत्रण स्वीकार कर लिया।

सप्ताहांत का समय नियत हुआ और गाँव का चूहा अपने शहरी मित्र के आने की प्रतीक्षा करने लगा। वह उससे ढेर सारी बातें करना चाहता था, उसे गाँव के खेत-खालिहानों की सैर करवाना चाहता था। वह अपने मित्र की आव-भगत में कोई कसर नहीं छोड़ना चाहता था। इसलिए वह उसके लिए ढेर सरे फ़ल और आनाज इकट्ठा करने में लगा हुआ था।

आखिर वह दिन भी आया, जब शहरी चूहा गाँव पहुँचा। दोनों मित्र एक-दूसरे से मिलकर बहुत ख़ुश हुए। बहुत देर तक वे बातें करते रहे और एक-दूसरे को अपना हाल बताते रहे। फिर दोनों भोजन के लिए बैठे। भोजन में गाँव के चूहे ने अनाज और फ़ल परोसे, जिसे खाकर दोनों ने आराम किया।

शाम को गाँव का चूहा अपने शहरी मित्र को गाँव दिखाने ले गया। शहरी चूहा वहाँ के खेत-खलिहान देखकर आनंद से भर उठा। वहाँ की शुद्ध हवा में श्वास लेकर उसका मन प्रफुल्लित हो गया। गाँव का चूहा बोला, “गाँव का वातावरण और वायु शुद्ध है, जो तुम्हें शहर में शायद ही नसीब होती होगी मित्र।”

शहरी चूहा शहर की समस्याएं जानता था। वह वर्षों से वहाँ रहा रहा था, लेकिन गाँव के चूहे मित्र की ये बात उसे बुरी लग गई। हालांकि वह कुछ बोला नहीं।

गाँव का चूहा गाँव की प्रशंसा में लगा हुआ था, वह उसे जंगलों में ले गया और बोला, “मित्र, ऐसे प्राकृतिक और मनोरम दृश्य तुम्हें शहर में देखने को नहीं मिलेंगे। इसलिए आज इस दृश्यों का आनंद ले लो।”

शहरी चूहे को यह बात भी चुभी, लेकिन वह कुछ नहीं बोला। वह सोचने लगा कि अब अपने इस ग्रामीण मित्र को शहरी चका-चौंध का जीवन दिखाना पड़ेगा। तब इसे समझ आएगा कि शहर कितना शानदार होता है।

रात होने पर दोनों चूहे घर वापस आ गए। भोजन का समय आया, तो गाँव के चूहे ने फिर से शहरी चूहे को फ़ल और अनाज परोसा। शहरी भोजन के आदी चूहे को यह भोजन गले नहीं उतर रहा था, वह बोला, “मित्र, क्या तुम हर समय फल और अनाज खाते हो। शहर आओ, मैं तुम्हें एक से बढ़कर एक पकवान खिलाऊंगा। साथ ही वहाँ का शानदार जीवन भी दिखाऊंगा। कल ही तुम मेरे साथ चलो।”

गाँव के चूहे में शहर देखने की लालसा जाग गई। वह फ़ौरन तैयार हो गया। रात नरम घास पर सोने के बाद अगली सुबह उठकर दोनों शहर के लिए निकल गए। शहरी चूहा अपने ग्रामीण मित्र को उस घर में ले गया, जहाँ वह रहा करता था। वह किसी अमीर आदमी का घर था, उसमें ही शहरी चूहे का बिल था। उतना बड़ा और सजा-धजा घर देखकर गाँव के चूहे की आँखें चौंधिया गई।

खाने की मेज़ देखी, तो उसका मुँह खुला रह गया। एक से बढ़कर एक पकवान उस पर सजे हुए थे। शहरी चूहे ने उसे भोजन प्रारंभ करने को कहा। ख़ुशी-ख़ुशी गाँव का चूहा भोजन करने लगा। सबसे पहले उसके प्लेट में से पनीर का टुकड़ा उठाया। उसने अभी पनीर कुतरा ही था, कि शहरी चूहा चिल्लाया, “भागो मित्र, बिल्ली आ रही है। जल्दी से अलमारी में छुप जाओ। नहीं तो जान से हाथ धोना पड़ेगा।”

पनीर छोड़ गाँव का चूहा शहरी चूहे के साथ अलमारी की ओर भागा। कुछ देर तक दोनों अलमारी में छुपे रहे। बिल्ली के जाने के बाद दोनों वहाँ से निकले। शहरी चूहा फिर से अपने मित्र गाँव के चूहे को भोजन के लिए ले गया। लेकिन डर के मारे उसकी भूख मर गई थी।

शहरी चूहा उसकी हालत देख बोला, “मित्र डरने की कोई बात नहीं है। बिल्ली चली गई है। वैसे यह शहरी जीवन का हिस्सा है। यहाँ यूं ही जीवन जीते हैं। लो केक खाकर देखो।”

गाँव के चूहे ने केक का टुकड़ा ले लिया। लेकिन इसके पहले वह उसे मुँह में डाल पाता, शहरी चूहा चिल्लाया, “भागो मित्र! कुत्ता आ गया है।”

दोनों फिर से भागकर अलमारी में जा छुपे। शहरी चूहे ने बताया कि उस घर के मालिक ने एक कुत्ता पाला हुआ है, जो बड़ा भयानक है। उससे बचकर रहना पड़ता है।”

गाँव का चूहा बहुत ज्यादा डर गया था। अलमारी से बाहर आने के बाद वह एक क्षण भी वहाँ नहीं रुका। वह बोला, “मित्र, मुझे जाने दो। ये शहरी जीवन मुझे तो रास नहीं आता। यहाँ तो हर समय सिर पर ख़तरा मंडराता रहता है। इससे तो गाँव ही भला।”

फिर वह गाँव की ओर चल पड़ा और गाँव पहुँचकर ही दम लिया। वहाँ पहुँचकर वह सोचने लगा, “जगह वही अच्छी है, जहाँ जीवन सुरक्षित है।”

शिक्षा : अमन-चैन का साधारण जीवन ऐसे ऐशो-आराम के जीवन से बेहतर है, जो ख़तरों से भरा हुआ है।

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