लोमड़ों से दोस्ती : चीनी लोक-कथा

Friendship With Foxes : Chinese Folktale

एक बार की बात है कि एक आदमी के पास बहुत बड़ा भूसे का ढेर था – इतना बड़ा जितनी एक पहाड़ी। उसमें से उसके नौकर जितना उनको जरूरत होती थी उतना भूसा ले जाते थे। इससे उसमें एक तरफ को एक काफी बड़ा गड्ढा सा बन गया था।

एक लोमड़े ने इसे देखा तो वहाँ उसने उसे अपना घर बना लिया। कभी कभी वह एक बूढ़े के रूप रख कर वह अपने मकान मालिक से मिल आया करता था।

एक दिन लोमड़े ने अपने मकान मालिक को अपने घर बुलाया। पहले तो मकान मालिक ने मना कर दिया पर लोमड़े की जिद पर उसने उसके घर आना मान लिया।

और लो जब वह उसके घर में घुसा तो उसने देखा कि उसका घर तो बहुत बड़ा था। उस घर में कई कमरे थे। जब वे वहाँ आराम से बैठ गये तो खुशबूदार चाय पी और बढ़िया शराब पी। लेकिन वह जगह कुछ धुँधली धुँधली सी थी। न तो वहाँ रात ही थी न वहाँ दिन ही था। धीरे धीरे मेहमानदारी खत्म हुई तो मेहमान ने जाने की इजाज़त माँगी।

जब वह वहाँ से चल दिया तो वह घर वे सुन्दर कमरे उनमें रखी चीज़ें सब गायब हो गयीं। बूढ़े को शाम को चले जाने की और सुबह सुबह की सूरज की पहली किरन निकलने के समय वापस आने की आदत थी।

क्योंकि उस बूढ़े का कोई पीछा नहीं कर सकता था तो घर के मालिक ने उससे पूछा कि रात को वह कहाँ गया था। वह बोला कि उसको उसके किसी दोस्त ने शराब पीने के लिये बुलाया था वहीं गया था। मालिक ने उससे विनती की किसी दिन वह उसको भी वहाँ अपने साथ ले चले। बूढ़े ने उसको बड़े बेमन से मान लिया।

सो उसने मालिक का हाथ पकड़ा और हवा के पंखों पर सवार हो कर चल दिया। जितनी देर में एक बर्तन में बाजरा पकता है उतनी देर में वे लोग वहाँ पहुँच गये। वे एक रैस्टौरैन्ट में घुसे जहाँ बहुत सारे लोग शराब पी रहे थे और बहुत शोर मचा रहे थे।

बूढ़ा मकान मालिक को ऊपर गैलरी में ले गया वहाँ से वे नीचे बैठे लोगों को खाते पीते देख सकते थे। वह खुद नीचे चला गया। वहाँ से सारी मेजों से उसने किसी को अपने आपको दिखाये बिना ही अच्छे अच्छे खाने पीने उठा लिये।

कुछ देर बाद ही एक आदमी लाल रंग के कपड़े पहन कर सामने आया और कुछ और खाने ले कर आया। उनको देखते ही मकान मालिक ने बूढ़े से विनती की कि वह उसको उन खानों में से कुछ खाना उसको ला दे। तो बूढ़ा बोला — “ओह वह बहुत बड़ा आदमी है। मैं उसके पास नहीं जा सकता।”

इस पर मकान मालिक ने सोचा “इस तरह से तो इस लोमड़े के साथ में मैं खाने का जो मुख्य हिस्सा है वह तो खा ही नहीं पाऊँगा। इसलिये आगे से मैं भी बड़ा आदमी बनूँगा।”

जैसे ही उसने अपने मन में यह सोचा कि उसका अपने शरीर पर से काबू खत्म हो गया और वह ऊपर से खाना खाते हुए लोगों के बीच नीचे गिर पड़ा।

ये लोग इस आदमी के अचानक गिरने से चौंक गये। उसने खुद ने ऊपर देखा तो देख कर आश्चर्य में पड़ गया। वहाँ ऊपर तो कोई गैलरी नहीं थी। वहाँ पर तो केवल एक शहतीर था जिसके ऊपर वह बैठा हुआ था।

अब उसने अपने सारे हालात को फिर से सोचा तो उसने देखा कि वह तो अपने घर से बहुत दूर था – यू ताई में, 1000 ली दूर। उसका तो घर वापस जाने का ही काफी खर्चा था।

(साभार सुषमा गुप्ता जी, जिन्होंने लोक-कथाओं पर उल्लेखनीय काम किया है.)

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