फ्रांस का राष्ट्रगान (रूसी कहानी) : लियोनिद आंद्रेयेव
France Ka Rashtragaan (Russian Story in Hindi) : Leonid Andreyev
वह अस्तित्वहीन था—खरगोश की प्रवृत्ति और बैल की निर्लज्ज सहनशीलता के साथ! जब भाग्य ने दिल्लगी और ईर्ष्या से उसको हमारी काली पंक्ति में भेजा तो हम पागलों की तरह हँसे; कुछ गलतियाँ इतनी हास्यास्पद, इतनी भद्दी होती हैं; और वह वास्तव में रोया । मैं अपने जीवन में आँसुओं की पूर्ति करनेवाले या इतनी जल्दी आँसू बहानेवाले किसी दूसरे आदमी से नहीं मिला था। आँसू उसकी आँखों, नाक और मुँह से बहते थे। वह पानी में डुबोए और तुम्हारे हाथ पर निचोड़े गए पानी सोख की तरह था । मैंने लोगों को अपनी पंक्ति में रोते देखा है, परंतु उनके आँसू ज्वाला की तरह होते थे, जिससे डरकर जंगली जानवर भाग जाते थे। आदमी के ये आँसू चेहरे को बूढ़ा, परंतु आँखों को युवा बनाते थे— पृथ्वी के उबलते दिल से मंथन किए हुए भूचाल की तरह। वे न हटाने योग्य चिह्नों को जला देते हैं, वे महत्त्वहीन इच्छाओं के नगरों को और जीवनवृत्ति की छोटी-छोटी चिंताओं को दफना देते हैं, परंतु उस आदमी के आँसुओं का परिणाम केवल लाल नाक और गीला रूमाल ही थे। संभवतः उसने बाद में उन्हें सुखा लिया था, नहीं तो रूमालों की पर्याप्त आपूर्ति कहाँ से होती!
निर्वासन के सारे समय में उसने अधिकारियों को धोखा दिया था – सारे अधिकारियों को, जो उस समय में थे या जिनको उसकी कल्पनाशक्ति ने बनाया था। वह उनके सामने झुका, रोया, शपथ ली कि वह निर्दोष है; अपनी जवानी के लिए दया की प्रार्थना की, भविष्य में मुँह न खोलने का वचन दिया— सिवाय प्रार्थना करने और प्रशंसा के गीत गाने के; और वे हमारी तरह इसपर हँस दिए– 'दुःखी सूअर' के नाम से पुकारा और जोर से चिल्लाए, “ओ छोटे सूअर!"
वह हर बुलावे पर आज्ञानुसार दौड़ता था । हर बार घर जल्दी लौटाए जाने के समाचार की आशा करता था और वे इसका केवल मजाक उड़ाते थे । वे हमारी तरह जानते थे कि वह निर्दोष है, परंतु उसको कष्ट देकर दूसरे सूअरों को डराना चाहते थे— मानो वे पहले ही से काफी भीरु थे ।
यहाँ तक कि पशु के अकेलेपन के डर से प्रेरित वह हमारे पास आया, परंतु हमारे चेहरे कर्कश तो थे ही, पत्थर की तरह कठोर भी थे। उसने गुप्त रूप से चाबी प्राप्त की । उसने चरचराते हुए हमें पुकारा –“प्यारे साथियो और मित्रो!" और हमने अपने सिर हिलाकर कहा- "ध्यान दो, वे हमारी बातें सुन रहे हैं ।"
वह उठता और चोरी से दरवाजे की ओर देखता - वह विनीत छोटा सूअर ठीक है, फिर हम गंभीर रह सकते थे क्या? और हम ऐसी आवाज में हँसे, जो प्रायः हँसी के लिए असामान्य होती है, परंतु उसने फिर साहस किया और हमारी बगल में बैठकर आँसुओं के माध्यम से घर पर पड़ी अपनी प्यारी पुस्तकों के बारे में बताया, अपनी माँ और भाइयों की बाबत शोक और भय से बताया, क्योंकि उनके बारे में वह नहीं जानता था कि वे जीवित हैं या मर चुके।
अंततः हमने उसे जाने दिया।
जब अकाल शुरू हुआ तो त्रास ने उसे जकड़ लिया — अवर्णनीय हास्यकर त्रास! तुम जानते हो कि वह सूअर खाने का बहुत शौकीन था और अपने साथियों और अधिकारियों से बहुत डरता था । वह व्यग्रता से हमें घूरता और प्रायः अपने माथे को रूमाल से पोंछता था- - आँसुओं को या पसीने को | हमसे अधीरता से पूछता-
"क्या तुम अधिक समय तक भूखा रहकर मरोगे? "
"अधिक समय तक!" मैंने उत्तर दिया।
"और तुम गुप्त रूप से भी कुछ नहीं खाओगे? "
"संभवतः हमारी माताएँ हमारे लिए केक भेजेंगी।" मैं गंभीरता से सहमत हुआ । उसने संदेह से मुझे देखा, अपना सिर हिलाया और आह भरता हुआ चला गया। अगले दिन त्रास से तोते की तरह हरा होते हुए उसने घोषणा की—
"प्यारे साथियो, मैं भी तुम्हारे साथ भूखों मरूँगा।"
और साधारण उत्तर था—
"अकेले भूखा मरो ।"
और वह भूखों मरा! हमें इसपर विश्वास नहीं हुआ । हमने सोचा कि वह गुप्त रूप से कुछ खा रहा था; पहरेदारों ने भी ऐसा ही सोचा था । और जब भूख के ज्वर से पीड़ित हो वह अपने अंत के कगार पर पहुँचा तो हमने केवल अपने कंधे झटक दिए – "विनीत नन्हा सूअर ! "
परंतु हममें से एक, जो कभी हँसता नहीं था, ने शानदार ढंग से कहा, "वह हमारा साथी था । आओ, हम उसके पास चलें।”
वह बेहोश था और उसकी चिल्लाहट उसके जीवन की तरह बेजान थी । उसने अपनी प्यारी पुस्तकों की बात की, माँ और भाइयों के बारे में बताया, उसने केक के लिए याचना की, शपथ ली कि वह निर्दोष है और क्षमा के लिए प्रार्थना की। उसने अपने पैदाइशी देश को पुकारा – फ्रांस को पुकारा – ओह, मनुष्य के दुर्बल हृदय पर दैवी प्रकोप! उसने चीख से अपनी आत्मा को फाड़ दिया-
"प्यारे फ्रांस !”
हम सब अपनी कुटी में थे, जब उसकी मृत्यु हो गई। मृत्यु से पहले उसकी चेतना लौट आई थी और वह शांति से वहाँ लेटा हुआ था—विनीत और दुर्बल — और हम सब उसके इर्दगिर्द खड़े थे। हम सबने उसे कहते सुना—
"जब मैं मरूँ तो मेरे लिए फ्रांस का राष्ट्रगान करना । "
"तुम क्या कह रहे हो?" हमने कुछ प्रसन्नता से काँपते हुए और कुछ रोष के साथ पूछा। उसने दोहराया-
"जब मैं मरूँ तो मेरे लिए फ्रांस का राष्ट्रगान करना । "
और पहली बार ऐसा हुआ कि उसकी आँखें सूखी देखी गईं। हम सब उस अंतिम आदमी के लिए रोए और हमारे आँसू उस आग की तरह जल रहे थे जिस आग को देखकर जंगली जानवर भाग जाते हैं।
वह मर गया और हमने उसके लिए फ्रांस का राष्ट्रगान गाया । सुदृढ़ युवा आवाजों ने वह स्वतंत्रता का महान् गीत गाया और शक्तिशाली सागर ने फ्रांस की ओर जाती हुई अपनी ऊँची लहरों से हमारा समर्थन किया—समर्थन किया वर्तमान त्रास और पिसी हुई आशा के साथ! उसकी याद हमारे लिए हमेशा ताजा और प्रेरणादायी ही रहेगी— अस्तित्वहीनता, खरगोश के शरीर और मनुष्य की महान् आत्मा के साथ। नायक के सामने हमारे साथियों और मित्रों ने घुटने टेक दिए।
हमने गाया। बंदूकों ने हमारी तरफ देखा, उनके घोड़े भयावह तरीके से चमक रहे थे, फिर तेज किरिचों ने हमारी ओर मुँह किया और शक्तिशाली गाना और भी ऊँचा हो गया; कोमल हाथों ने धीरे से काले कफन को कब्र में जाने दिया।
हमने फ्रांस का राष्ट्रगान गाया!
(अनुवाद : भद्रसैन पुरी)