लोमड़े का गर्मी का सौदा : अर्जेण्टीना की लोक-कथा
Fox's Warm Bargain : Lok-Katha (Argentina)
एक बार एक समय में अर्जेन्टीना के घास के मैदान में दो विस्काचा रहते थे। विस्काचा चूहे जैसा एक जानवर होता है पर वह चूहे से काफी बड़ा होता है – खरगोश जितना बड़ा। दोनों विस्काचा आपस में बड़े अच्छे दोस्त थे। वे एक साथ खेलते थे और हर काम एक साथ करते थे। अगर उन दोनों में से किसी एक को भी कोई छोटी सी भी गिरी खाने के लिये मिल जाती तो दोनों ही उसको कुतर कुतर कर तब तक एक साथ खाते रहते जब तक वह खत्म नहीं हो जाती।
अर्जेन्टीना के हरे हरे घास के मैदानों में उनको रहने में बहुत आनन्द आता। वहाँ के दिन बहुत आरामदेह थे। उनको वहाँ खाने पीने को भी खूब मिलता था।
उन दिनों वहाँ उनको केवल एक ही परेशानी थी और वह यह कि रातों को वहाँ की हवा थोड़ी ठंडी हो जाती थी और जब वह ठंडी हवा चलती थी तो दोनों विस्काचा रात भर ठंड में काँपते रहते।
एक दिन जब वे खेल रहे थे तो उन्होंने एक झाड़ी में किसी लाल चीज़ को देखा। जब वे उसके पास पहुँचे तो उन्होंने देखा कि वहाँ केवल एक ही चीज़ नहीं थी बल्कि वहाँ तो दो चीज़ें थीं। वे थे लाल कम्बल के दो टुकड़े जो अर्जेन्टीना की हवा ने कहीं से उड़ा कर ला कर वहाँ पटक दिये थे। ये कम्बल के टुकड़े जहाँ वे लोग रहते थे उसी जगह के पास वाली एक झाड़ी पर चिपके हुए थे।
एक दोस्त ने दूसरे दोस्त से कहा — “यह तो हम लोगों को खजाना हाथ लग गया है। यह तो एक कम्बल है जो हमको रात में गर्मी देगा।”
दूसरा दोस्त बोला — “यह तब ज़्यादा अच्छा खजाना होता जब ये दोनों टुकड़े बजाय फटे होने के एक साथ सिले हुए होते। अभी तो ये बहुत छोटे छोटे हैं। या तो कोई इनको यहाँ भूल गया है और या फिर उसने इनको इसलिये यहाँ फेंक दिया है क्योंकि उनका यह बड़ा टुकड़ा फट गया होगा।”
पहले दोस्त ने कहा — “चलो, इसको ठीक कर लेते हैं। अभी तो यह हम दोनों में से किसी एक को भी गर्म रखने के लिये काफी नहीं है।”
सो जब दोनों दोस्त हवा सूँघते और यह सोचते बैठे हुए थे कि आगे क्या करना है कि सीनोर लोमड़ा वहाँ आया। उसकी लम्बी नाक थी, लम्बी पूँछ थी और चालाक दिमाग था।
वह आते ही बोला — “नमस्ते दोस्तों, यह यहाँ क्या है तुम्हारे पास?”
दोनों एक साथ बोले — “हमको आज एक खजाना मिला है। हमको एक कम्बल मिला है जो हम लोगों को यहाँ की ठंडी रातों में गर्म रखेगा। पर वह हममें से किसी एक के लिये भी छोटा है जब तक कि हम उसको सिल न लें।”
चालाक लोमड़ा बोला — “मेरे पास एक छोटी सी सुई और थोड़ा सा धागा है जिसे तुम लोग अपना कम्बल सिलने के लिये इस्तेमाल कर सकते हो अगर तुम मुझे ठंडी रातों में उसकी गर्मी बाँट लेने दो तो।”
वे मान गये और सीनोर लोमड़े ने अपना सुई धागा उन लोगों को उधार दे दिया।
वे जब अपने कम्बल के टुकड़े सिल रहे थे तो लोमड़ा उनको ध्यान से देखता रहा। जब उनका कम्बल सिल गया तो वह लोमड़ा अपना सुई धागा ले कर वहाँ से चला गया।
दोनों दोस्त बहुत खुश थे। वे सारा दिन धूप में इधर उधर खाना ढूँढते, खाना खाते और एक साथ खेलते घूमते रहे। और फिर रात आ गयी।
घास के मैदान में ठंडी हवा चलनी शुरू हो गयी। दोनों विस्काचा दौड़े दौड़े वहाँ गये जहाँ उनका कम्बल रखा हुआ था। तभी उन्होंने देखा कि सीनोर लोमड़ा भी उधर ही चला आ रहा था।
उसने पूछा — “क्या तुमको अपना सौदा याद है?”
उसने फिर कहा — “मैंने तुमको तुम्हारा लाल कम्बल सिलने के लिये अपना सुई और धागा दिया था और तुमने कहा था कि मैं ठंडी रातों में उसकी गर्मी तुमसे बाँट सकता हूँ।”
“हाँ हाँ, बिल्कुल।” कह कर उन्होंने उसको अपने पास बुलाया और कम्बल में आ कर गर्म रहने के लिये कहा।
लोमड़ा बोला — “क्योंकि मेरे सुई धागे ने कम्बल के बीच का हिस्सा सिला था इसलिये मैं बीच में सोऊँगा।”
यह कह कर वह दोनों के बीच में लेट गया और दोनों विस्काचा कम्बल के बाहर के दोनों किनारों के नीचे लेट गये।
अब जिधर की तरफ से वे लोमड़े की तरफ थे उधर की तरफ से तो वे गर्म थे पर दूसरी तरफ से वे बहुत ठंडे थे। जबकि लोमड़े को तीनों तरफ से गर्मी मिल रही थी – ऊपर से भी और दोनों तरफ से भी।
सो ऐसा लगता है कि इस गर्मी के सौदे में केवल लोमड़े का ही फायदा हुआ क्योंकि केवल वही गर्मी में सोता रहा – कम्बल की गर्मी में भी और विस्काचाओं की गर्मी में भी। और दोनों विस्कोचा बेचारे फिर भी ठंड में ही सिकुड़ते रहे।
सो ध्यान रखना अगर कभी कोई लोमड़ा तुमसे कभी कोई सौदा करने की कोशिश करे तो। वह तुमसे गर्मी का सौदा कर लेगा और तुम ठंड में सिकुड़ते रह जाओगे।
(साभार सुषमा गुप्ता जी, जिन्होंने लोक-कथाओं पर उल्लेखनीय काम किया है.)