लोमड़ा और साही : रोमानियाई लोक-कथा
Fox and Hedgehog : Romanian Folktale/Folklore
“एक बार ही वहाँ जाना काफी नहीं है।” मुर्गीखाने जाने के बारे में कम से कम लोमड़ा तो ऐसा ही सोचता था। और हर आदमी जानता था कि वह मुर्गीखाने में मुर्गे मुर्गियों से मिलने नहीं जाता था बल्कि वह अपने अगले खाने के लिये जाता था।
जब वह मुर्गों के बाड़े के पास इधर उधर घूम रहा था तो सबसे पहले साही को इस बात का शक हुआ कि यह लोमड़ा मुर्गीखाने में केवल उनसे मिलने ही नहीं जाता था बल्कि वह कुछ और भी करने जाता था।
सो वह लोमड़े से बोला — “अरे लोमड़े भाई , तुम इस समय यहाँ क्या कर रहे हो?”
लोमड़े ने अपने होठों पर अपना पंजा रखते हुए कहा — “ए साही भाई, इतनी ज़ोर से मत बोलो। मैं यहाँ दावत खाने आया हूँ।”
“मुर्गीखाने में? नहीं नहीं, तुम इस तरह से वहाँ नहीं जा सकते।”
लोमड़ा फुसफुसाया — “तुम देखो तो सही साही भाई। तुम मेरे साथ आओ तो तुमको भी उतना खाने को मिल जायेगा जितना तुम चाहते हो। और सबसे अच्छी बात तो यह है कि खाना अगली बार के लिये भी काफी रहेगा।”
अब साही कोई बेवकूफ तो था नहीं। उसने लोमड़े को सावधान किया — “देखो अपना ख्याल रखना। जिन आदमियों का यह मुर्गीखाना है वह तुमको ऐसे ही नहीं जाने देंगे।”
लोमड़ा बोला — “मैं उन आदमियों से कहीं ज़्यादा अक्लमन्द हूँ जिनका ये मुर्गीखाना है। मैं उनकी वजह से अपना खाना नहीं छोड़ने वाला। अब यह बताओ कि तुम मेरे साथ आ रहे हो या नहीं?”
हालाँकि साही लोमड़े से ज़्यादा अच्छे तरीके से सोचता था पर इस समय वह लोमड़े के पीछे पीछे मुर्गीखाने की तरफ चल दिया। पर जिन लोगों का वह मुर्गीखाना था वे भी इतने बेवकूफ नहीं थे जितना कि लोमड़ा सोचता था। अबकी बार वे लोमड़े के वहाँ आने के लिये तैयार बैठे थे।
उन्होंने मुर्गीखाने के सामने एक बहुत गहरा गड्ढा खोद रखा था और उसको ढक रखा था। साही और लोमड़े ने उस गड्ढे को देखा नहीं और वे जब वहाँ जा रहे थे तो दोनों उस गड्ढे में गिर पड़े – साही नीचे और लोमड़ा उसके ऊपर।
जैसे ही साही ने अपने आपको लोमड़े के नीचे से निकाला वह लोमड़े से बोला — “मैं न कहता था कि ये लोग तुम्हारे लिये तैयार होंगे।”
लोमड़े ने उसे चुप करते हुए कहा — “अब उन सब बातों को कहने का कोई फायदा नहीं। असलियत यह है कि हम इस समय गड्ढे की तली में पड़े हैं और अब यह सोचो कि हम यहाँ से कैसे निकलें।”
साही मुस्कुरा कर बोला — “पर लोमड़े भाई तुम तो हमेशा ही बहुत होशियार रहे हो तुम इतने छोटे से साही से यह उम्मीद कैसे करते हो कि वह तुमको बताये कि तुमको यहाँ से कैसे निकलना है।”
लोमड़ा बोला — “तुम केवल साही ही नहीं हो तुम तो बहुत ही होशियार जानवर हो। ज़रा सोचने में मेरी सहायता करो न।”
साही बोला — “नहीं नहीं, मुझे नहीं लगता कि मैं इस काम में तुम्हारी कुछ सहायता कर सकता हूँ। गिरने से और फिर तुम्हारे मेरे ऊपर गिरने से मेरा तो जी घबरा रहा है। ज़रा ध्यान रखना मेरा जी बहुत ही घबरा रहा है।”
लोमड़ा चिल्लाया — “नहीं नहीं, तुम बीमार नहीं हो सकते, कम से कम इस गड्ढे में तो नहीं। इस गड्ढे में तो जगह ही कहाँ है? और फिर जो कुछ तुम करोगे वह मुझे अच्छा नहीं लगेगा।” कह कर लोमड़े ने साही को तुरन्त ही अपने मुँह में दबा लिया और उसको गड्ढे के बाहर फेंक दिया।
साही ने जब देखा कि वह मुर्गीखाने के मालिकों के जाल में से सुरक्षित निकल आया है तो उसने गड्ढे के किनारे के ऊपर से गड्ढे के अन्दर लोमड़े की तरफ देखा और बोला — “अब बताओ अक्लमन्द कौन है? तुम कि में?
तुम कहते थे कि तुम बहुत अक्लमन्द हो पर अक्लमन्द तो मैं निकला जो तुमको धोखा दे कर इस गड्ढे के बाहर निकल आया।”
लोमड़ा बोला — “ठीक है ठीक है। तुम ही अक्लमन्द हो पर अब तुम मुझे भी तो कम से कम यहाँ से बाहर निकलने का कोई तरीका बताओ।”
साही बोला — “मेरे पास एक तरीका है पर वह तभी काम करेगा जब तुम उस पर ठीक से काम करोगे। तुमको बहाना बनाना पड़ेगा कि तुम मर गये हो। तुम बिल्कुल अकड़े हुए पड़े रहो चाहे जो कुछ हो जाये।
जब आदमी लोग आयेंगे तो वे तुमको मरा हुआ समझ कर सड़क के दूसरी तरफ बाहर कूड़े में डाल देंगे। फिर तुम वहाँ से भाग जाना पर तब तक तुमको बिल्कुल ही चुपचाप मरे जैसा पड़े रहना पड़ेगा।”
साही तो वाकई में अक्लमन्द साबित हुआ। जैसा उसने सोचा था वैसा ही हुआ।
जब आदमी लोग वहाँ आये और उन्होंने लोमड़े का देखा तो वह उनको मरा हुआ लगा। बस उन्होंने उसको गड्ढे से बाहर निकाल कर सड़क के दूसरी तरफ कूड़े में फेंक दिया।
लोमड़ा जैसे ही धरती पर गिरा वैसे ही वह उठ कर वहाँ से भाग गया। उसके बाद उसने न तो पीछे मुड़ कर देखा और न ही फिर मुर्गीखाने की तरफ देखा।
इस मुर्गीखाने की घटना के बाद लोमड़ा समझ गया कि “बस एक बार ही काफी था।”
(साभार : सुषमा गुप्ता)