बड़े साइज़ का आदमी फ़िन और लुंड चर्च का मंत्री : स्वीडिश लोक-कथा

Finn, the Giant and the Minster of Lund : Folktale Sweden

स्वीडन के लुंड शहर में एक छोटा शहर है शुनैन जहाँ सारे स्कैन्डिनैवियन देशों का आर्चबिशप बैठता है। यहाँ एक शाही रोमन चर्च है। लोगों का कहना है कि यह रोमन चर्च कभी पूरा नहीं होगा। उसकी इमारत में कुछ न कुछ कमी हमेशा ही रहेगी। इसकी वजह यह बतायी जाती है।

कहते हैं कि जब सेन्ट लौरेन्स वहाँ गोस्पल का उपदेश देने के लिये आये तो वह वहाँ पर एक चर्च बनवाना चाहते थे पर उनको यह नहीं मालूम था कि वह वहाँ उसे कैसे बनवायें।

जब वह इस बात को सोच रहे थे तो एक बड़े साइज़ का आदमी उनके पास आया और उनसे कहा कि वह उसके लिये चर्च बना देगा पर एक शर्त पर। कि सेन्ट लौरेन्स को चर्च पूरा होने से पहले पहले उसका नाम बताना पड़ेगा। और अगर वह नहीं बता पाया तो वह या तो चाँद सूरज ले लेगा या फिर सेन्ट लौरेन्स की आँखें ले लेगा।

सेन्ट बड़े साइज़ के आदमी की इस बात को मान गया और बड़े साइज़ के आदमी ने चर्च बनाना शुरू कर दिया। चर्च जल्दी जल्दी आगे बढ़ने लगा और उसकी इमारत जल्दी ही खत्म होने पर भी आ गयी।

सेन्ट लौरेन्स बेचारा परेशान सा अपने भविष्य के बारे में सोचता रहा क्योंकि अभी तक उसे बड़े साइज़ के आदमी का नाम पता नहीं चला था। और वह अपनी आँखें भी खोना नहीं चाहता था।

एक दिन ऐसा हुआ कि जब वह शहर के बाहर घूम रहा था और इस मामले पर गम्भीर रूप से विचार कर रहा था तो वह बहुत दुखी हो गया और एक पहाड़ी पर आराम करने के लिये बैठ गया।

जब वह उस पहाड़ी पर बैठा हुआ था तो उसने पहाड़ी के अन्दर से एक बच्चे के रोने की आवाज सुनी। साथ में एक स्त्री के गाने की आवाज भी सुनी जो वह उस बच्चे को चुप करने के लिये गा रही थी — “सो जा सो जा मेरे बच्चे सो जा। कल तेरा पिता फ़िन यहाँ आयेगा तब तुझे आसमान के सूरज और चाँद खेलने के लिये देगा या फिर सेन्ट लौरेन्स की आँखें देगा।”

जब सेन्ट लौरेन्स ने यह सुना तो वह बहुत खुश हुआ क्योंकि अब उसे उस बड़े साइज़ के आदमी का नाम पता चल गया था। वह वहाँ से तुरन्त ही शहर भाग गया और चर्च जा पहुँचा। वहाँ बड़े साइज़ का आदमी चर्च की छत पर बैठा हुआ था और उस चर्च का आखिरी पत्थर रखने ही जा रहा था कि ...

सेन्ट लौरेन्स नीचे से चिल्लाया — “फ़िन फ़िन। चर्च का यह आखिरी पत्थर ज़रा ध्यान से रखना।”

अपना नाम सुन कर बड़े साइज़ के आदमी को गुस्सा आ गया और गुस्से के मारे उसने वह पत्थर वहीं से नीचे फेंक दिया और बोला — “अब यह चर्च कभी खत्म नहीं होगा।”

यह कह कर वह वहाँ से गायब हो गया। तबसे चर्च में हमेशा ही कुछ न कुछ काम चलता ही रहता है।

कुछ दूसरे लोगों को कहना है कि अपना नाम सुन कर वह बड़े साइज़ का आदमी अपनी पत्नी के साथ नीचे आया चर्च के अन्दर गया और दोनों एक एक खम्भा ले कर उसको तोड़ने ही वाले थे कि वे खुद पत्थर में बदल गये और आज तक उन्हीं खम्भों के बराबर में खड़े देखे जा सकते हैं जिन्हें उन्होंने पकड़ा था।

(साभार सुषमा गुप्ता जी, जिन्होंने लोक-कथाओं पर उल्लेखनीय काम किया है)

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