वफादार और बेवफा : स्वीडिश लोक-कथा

Faithful and Unfaithful : Folktale Sweden

एक बार की बात है कि एक गरीब पति पत्नी थे जो एक गाँव के एक छोटे से मकान में रहते थे। आखिर भगवान ने उनको एक बेटा दिया। बच्चे को देख कर वे दोनों बहुत खुश हुए।

जब उसकी क्रिस्टिनिंग की रस्म हुई तो उनके मकान में एक हुल्ड्रा आयी। वह बच्चे के पालने के पास बैठी और उसने यह भविष्यवाणी की कि उस बच्चे की किस्मत बहुत अच्छी होगी।

वह आगे बोली — “और इससे भी अच्छी बात यह है कि जब यह पन्द्रह साल का होगा तो मैं इसको बहुत ही अच्छे गुणों वाला एक घोड़ा भेंट में दूँगी। एक ऐसा घोड़ा जो बोलता भी होगा।”

यह कह कर हुल्ड्रा वहाँ से चली गयी।

बच्चा बड़ा हुआ और अच्छा तन्दुरुस्त और ताकतवर बन गया। जब वह पन्द्रह साल का हो गया तो एक अजनबी बूढ़ा उनके घर आया और उनका दरवाजा खटखटाया। उसने आ कर कहा कि वह जो घोड़ा ले कर आया है वह उसकी रानी ने भेजा है और अब इसके बाद से वह वफादार का रहेगा जैसा कि उसने वायदा किया था। उसके बाद वह बूढ़ा चला गया। वह सुन्दर घोड़ा सबको बहुत पसन्द आया। और वफादार तो उसे हर आने वाले दिन पिछले दिन से भी ज़्यादा और और ज़्यादा प्यार करने लगा।

कुछ समय बाद वह घर में रहते रहते थक गया तो उसने माता पिता से कहा कि वह दुनियाँ देखना चाहता है। माता पिता ने उसको रोका नहीं क्योंकि घर में भी उसके करने के लिये कुछ नहीं था सो उसने अस्तबल में से अपना घोड़ा निकाला उसके ऊपर जीन कसी और जंगल की तरफ दौड़ गया।

वह दौड़ता गया दौड़ता गया और वहुत दूर निकल गया। आगे जा कर उसने देखा कि दो शेर एक चीते से लड़ रहे हैं। चीता उनको मारने ही वाला था कि घोड़ा लड़के से बोला — “जल्दी करो अपना तीर कमान उठाओ चीते को मार डालो और शेरों को बचा लो।”

नौजवान बोला — “मैं वही करने जा रहा हूँ।” कह कर उसने अपना तीर कमान की डोरी पर रखा और तुरन्त ही चीते पर चला दिया। चीता उसी समय मर गया। दोनों शेर उसके पास आ गये और दोस्ताना अन्दाज में उसको अपना सिर हिला कर फिर वापस अपनी गुफा में चले गये।

वफादार फिर से घोड़े पर चढ़ कर आगे चलता रहा। काफी दूर जाने के बाद उसको दो डरे हुए सफेद फाख्ता दिखायी दिये जो एक बाज़ से डर रहे थे।

बाज उनको पकड़ने ही वाला था कि घोड़ा फिर बोला —
“जल्दी करो। अपनी कमान पर तीर रखो और बाज़ को मार कर फाख्ताओं को निडर कर दो।”

नौजवान बोला — “मैं बस यही करने वाला था।” उसने अपना तीर कमान निकाला तीर कमान की रस्सी पर रखा और बाज़ की तरफ तीर चला दिया। बाज़ मर गया और फाख्ताऐं बच गयीं। दोनों फाख्ताऐं उसके पास आयीं और कृतज्ञता से उसके सामने अपने पंख फड़फड़ाये और अपने घोंसले की तरफ चली गयीं।

नौजवान फिर आगे बढ़ चला। वह अब अपने घर से काफी दूर निकल आया था। उसका घोड़ा आसानी से थकने वाला नहीं था। वह उसके साथ साथ ही चल रहा था।

वह उसके ऊपर चलता रहा जब तक कि वह एक झील के किनारे तक नहीं आ गया। वहाँ उसने पानी एक चिड़िया झील के पानी से निकलती देखी जिसके पंजों में एक पाइक मछली थी।

उसको देख कर उसका घोड़ा बोला — “जल्दी से अपना तीर कमान उठाओ समुद्री चिड़िया को मारो और पाइक मछली को बचाओ।”

नौजवान ने जवाब दिया — “हाँ मैं यही करूँगा।” तुरन्त ही उसने अपना तीर कमान उठाया और अपना तीर उस समुद्री चिड़िया पर चला दिया जो पाइक मछली को अपने पंजे में दबाये लिये जा रही थी।

चिड़िया तो तीर से घायल हुई अपने पंख फड़फड़ाती हुई नीचे जमीन पर गिर गयी पर पाइक पानी के पास ही गिरी उसने नौजवान की तरफ कृतज्ञता भरी नजर से देखा और फिर पानी में चली गयी।

वह वफादार फिर से अपने घोड़े पर बैठा और आगे चला। अब वह एक किले के पास आ गया था। वहाँ पहुँच कर तुरन्त ही उसने राजा को बताया कि वह उससे मिलना चाहता है और उससे उसने प्रार्थना की कि वह उसके पास कोई काम करना चाहता है।

राजा ने नौजवान घुड़सवार की तरफ अपनेपन से देखते हुए पूछा कि वह किस तरह का काम चाहता है। वफादार बोला — “मैं एक सईस23 बनना चाहता हूँ। पर पहले मेरे अपने घोड़े के लिये एक कमरा और खाना चाहिये।”

राजा बोला “वह तुमको मिल जायेगा।”

सो नौजवान को एक सईस की नौकरी दे दी गयी।

उसने राजा के पास काफी दिनों तक इतना अच्छा काम किया कि केवल राजा ही नहीं बल्कि किले में हर कोई उसको बहुत चाहने लगा। राजा तो उसकी बड़ाई करते ही नहीं थकता था।

पर राजा के दूसरे काम करने वालों में एक का नाम था बेवफा। यह नौकर वफादार से बहुत जलता था और वह वही करना चाहता था जिससे वफादार को कोई नुकसान पहुँचे। क्योंकि वह यह सोचता था “तब मैं उसे यहाँ से बाहर निकाल दूँगा और राजा को उसकी तरफदारी करते नहीं देखूँगा।”

अब हुआ यह कि राजा बहुत दुखी था क्योंकि उसकी पत्नी खो गयी थी। उसको किले में से कोई ट्रौल (a supernatural being) उठा कर ले गया था। यह सच था कि रानी को राजा के साथ कोई खुशी नहीं मिलती थी और वह उसको प्यार भी नहीं करती थी पर फिर भी राजा उसको बहुत पसन्द करता था और इस बारे में अक्सर अपने नौकर बेवफा से बात किया करता था।

इस मौके का फायदा उठा कर एक दिन बेवफा ने राजा से कहा
— “मेरे मालिक को अब बहुत ज़्यादा चिन्ता करने की जरूरत नहीं है क्योंकि यह वफादार मुझसे अपनी डींगें हाँक रहा था कि यह आपकी सुन्दर पत्नी को उस ट्रौल से छुड़ा कर ला सकता है।”

राजा यह सुन कर बहुत खुश हुआ और बोला — “अगर उसने ऐसा कहा है तो उसको अपनी बात रखनी चाहिये।”

उसने तुरन्त ही वफादार को अपने सामने बुलवाया और उसको मौत की धमकी दी कि अगर वह तुरन्त ही उसकी पत्नी को ट्रौल से उसके पास ले कर नहीं आया तो उसे मरवा दिया जायेगा। पर अगर वह अपने काम में सफल हो गया तो उसको भारी इनाम दिया जायेगा।

हालाँकि वफादार ने कई बार मना किया कि बेवफा जो कुछ भी उसके बारे में कह रहा था वह गलत था पर राजा उसकी कुछ नहीं सुन रहा था।

सो वह नौजवान बेचारा चुप हो गया उसको लगा कि बस अब उसकी ज़िन्दगी इतनी ही थी। वह अपने घोड़े के कमरे में उसको विदा कहने गया और उसके बराबर में खड़े हो कर रोने लगा।

घोड़े ने पूछा — “क्या बात है तुम्हें किस चीज़ का दुख है।”

तब वफादार ने उसे सब कुछ बताया जो उसके और राजा के बीच हुआ था। वह आगे बोला “यह शायद आखिरी बार है कि मैं तुमसे मिल रहा हूँ।”

घोड़ा बोला — “अगर यही होना है तो एक रास्ता है। किले में ऐटिक (attic) में एक पुरानी वायलिन रखी हुई है तुम उसे अपने साथ ले जाओ और जब तुम वहाँ पहुँच जाओ जहाँ रानी बन्द है तब वहाँ उसे बजाना शुरू करना।

इसके अलावा अपने नाप का एक लोहे के तारों का जिरहबख्तर बनवा लो और उसमें जितने सारे चाकू आ सकते हैं रख लो। जब तुम देखो कि ट्रौल अपना मुँह खोल रहा है तो उसके मुँह में घुस कर उसे मार देना। पर तुम बिल्कुल डरना नहीं और अपने रास्ते के लिये मेरे ऊपर विश्वास रखना।”

घोड़े के इन शब्दों ने वफादार के ऊपर जादू का सा काम किया। उसमें एक नयी हिम्मत आ गयी। वह राजा के पास गया और उनसे जाने की इजाज़त माँगी।

उसने चोरी छिपे लोहे के तारों का एक जिरहबख्तर बनवाया किले की ऐटिक से वायलिन ली अपने घोड़े को उसके कमरे से बाहर निकाला और तुरन्त ही ट्रौल की पहाड़ी पर चल दिया।

बहुत जल्दी ही वह उस पहाड़ी पर पहुँच गया और इससे पहले कि वह जान पाता कि वह ट्रौल कहाँ है वह तो उसके रहने की जगह में ही था। जब वह उसके पास आ गया तब उसने ट्रौल को देखा जो अपने किले से बाहर निकल आया था और अपनी गुफा के बाहर सो रहा था।

वह बड़ी गहरी नींद सो रहा था। उसके खर्राटे भी इतने ज़ोर के थे कि उनकी आवाज से सारी पहाड़ी काँप रही थी। पर उसका मुँह पूरा खुला हुआ था। उसका मुँह इतना बड़ा था कि वह नौजवान उसमें पूरा का पूरा घुस सकता था।

उसने ऐसा ही किया क्योंकि उसको डर बिल्कुल भी नहीं लग रहा था। वह ट्रौल के अन्दर तक चला गया और उसको आसानी से मार दिया। वफादार वहाँ से फिर बाहर निकल आया और अपना जिरहबख्तर उतार दिया। फिर वह ट्रौल के किले में घुस गया।

उसमें एक बड़े सोने के कमरे में रानी बन्दी बनी बैठी थी। उसको सात मजबूत सोने की जंजीरों से बाँध रखा था। वफादार उन सोने की जंजीरों को नहीं तोड़ सका तो उसने अपनी वायलिन निकाली और उस पर एक ऐसी धुन बजानी शुरू की कि वे सोने की जंजीरें हिलने लगीं और एक एक कर के नीचे गिरने लगीं।

जब सब जंजीरें खुल कर नीचे गिर गयीं तो रानी आजाद हो कर उठ कर खड़ी हो गयी। उसने उस हिम्मती नौजवान की तरफ खुशी और बड़ाई की नजर से देखा।

उसको उसके ऊपर बहुत प्यार आया क्योंकि वह बहुत सुन्दर था और बहुत अच्छे व्यवहार वाला था। वह उसके साथ तुरन्त ही अपने किले को आने को तैयार हो गयी।

रानी के किले लौटने से सारे किले में खुशियाँ छा गयीं। वफादार को राजा ने जो इनाम देने के लिये कहा था वह उसने उसे दिया। पर रानी अब राजा को और भी ज़्यादा नीची नजर से देखने लगी थी। वह उससे बोली भी नहीं। वह हँसती भी नहीं थी। उसने अपने आपको एक कमरे में बन्द कर लिया था। वह सदा उदास रहती थी।

इस बात से राजा को बहुत दुख हुआ सो एक दिन राजा ने रानी से पूछा कि वह इतनी उदास क्यों थी। रानी बोली — “मैं तब तक खुश नहीं हो सकती जब तक मेरे पास वैसा ही एक सोने का कमरा न हो जैसा कि ट्रौल के किले में था। ऐसा कमरा तो कहीं और नहीं मिल सकता।”

राजा बोला — “रानी जी ऐसा कमरा तो आपके लिये मिलना कोई आसान नहीं है। और मैं यह भी वायदा नहीं कर सकता कि कोई इस काम को कर देगा।”

पर जब उसने यह बात अपने नौकर बेवफा से कही तो बेवफा बोला — “इसके मिलने में तो कोई ज़्यादा परेशानी नहीं है क्योंकि वफादार कह रहा था कि वह उस सोने के कमरे को यहाँ किले में आसानी से ला सकता है।”

तुरन्त ही वफादार को बुलवाया गया और उससे उसने ट्रौल का सोने का कमरा किले में लाने के लिये कहा क्योंकि वह अपनी पत्नी को बहुत प्यार करता था। उसने उससे कहा कि वह अपना वायदा पूरा करे।

अब यह तो कहना बेकार था कि वफादार राजा से इस काम के लिये मना करता। पर अब वह करे भी क्या। उसको वह कमरा लाने के लिये जाना ही चाहिये सो उसके लिये उसे जाना ही पड़ा।

उसको धीरज देना मुश्किल हो गया। वह फिर अपने घोड़े के पास पहुँचा। वहाँ जा कर वह बहुत रोया और उसको अन्तिम विदा कहा।

घोड़े ने पूछा — “तुम्हें क्या चीज़ परेशान कर रही है क्या बात है?”

नौजवान बोला — “यह बेवफा मेरे बारे में कुछ कुछ झूठ बोलता रहता है। उसने राजा से कहा है कि मैं ट्रौल का सोने का कमरा ला कर उसे दे सकता हूँ सो राजा ने मुझसे कहा है कि अगर मैंने उसे ट्रौल का सोने का कमरा ला कर नहीं दिया तो मुझे अपनी जान से हाथ धोना पड़ेगा।”

घोड़ा बोला — “इससे ज़्यादा गम्भीर बात तो कोई हो ही नहीं सकती। सुनो। तुम एक बहुत बड़ा पानी का जहाज़ लो अपनी वायलिन अपने साथ लो और उसको बजाओ तो वह सोने का कमरा उस पहाड़ी पर से नीचे उतर आयेगा।

फिर ट्रौल के घोड़े उसके आगे जोत दो तब तुम वह चमकता हुआ सोने का कमरा यहाँ बिना किसी मुश्किल के ला पाओगे।”

यह सुन कर वफादार को थोड़ी तसल्ली मिली। उसने वैसा है किया जैसा कि उसके घोड़े ने उससे करने के लिये कहा था। जब वह उस पहाड़ी पर पहुँच गया तो उसने अपनी वायलिन बजाना शुरू कर दिया।

ट्रौल के सोने के कमरे ने वह वायलिन सुनी तो वह उस संगीत की आवाज के पीछे पीछे खिंचा चला आया। ऐसा लग रहा था जैसे कोई मकान पहियों पर चलता चला आ रहा हो। वफादार ने उसके आगे ट्रौल के घोड़े जोते और उसको अपने जहाज़ पर रख लिया। जल्दी ही उसने झील पार कर ली और वह उसे सुरक्षित रूप से बिना किसी टूट फूट के किले में ले आया। रानी उसको देख कर बहुत खुश हुई।

पर फिर भी वह बहुत थकी हुई और दुखी थी। वह अपने राजा पति से बिल्कुल भी नहीं बोली और न ही किसी ने उसे हँसते हुए देखा और सुना।

इस बात पर राजा और ज़्यादा दुखी हो गया। उसने उससे पूछा कि वह इतनी दुखी क्यों थी। तो रानी ने जवाब दिया — “मैं खुश कैसे हो सकती हूँ जब तक मुझे मेरे वे दो घोड़े न मिल जायें जो ट्रौल के घर में मेरे थे। इतने सुन्दर घोड़े तो दुनियाँ में कहीं देखने को नहीं मिलेंगे।”

राजा बोला — “कोई और काम आसान हो सकता है सिवाय इस काम के। तुम कोई और काम बताओ जो तुम चाहती हो। क्योंकि वे घोड़े पालतू नहीं हैं और बहुत पहले ही जंगल में भाग गये होंगे।”

यह कह कर राजा दुखी हो कर वहाँ से चला गया। उसकी समझ में ही नहीं आ रहा था कि वह अब क्या करे। पर बेवफा फिर बोला — “मेरे सरकार इस बात की आप चिन्ता न करें क्योंकि वफादार ने कहा है कि वह ट्रौल के वे दोनों घोड़े आसानी से ले कर आ सकता है।”

एक बार फिर वफादार को बुलवाया गया।

जब वफादार राजा के पास आया तो उसको धमकी दी गयी कि अगर वह उन ट्रौल के दोनों घोड़ों को राजा के पास ले कर नहीं आया तो उसे मौत के घाट उतार दिया जायेगा। बल्कि अगर वह उनको पकड़ लाया तो उसे बहुत इनाम दिया जायेगा।

इस बार वफादार को यह पक्का भरोसा था कि वह ट्रौल के दोनों घोड़ों को पकड़ कर राजा के पास नहीं ला सकता। सो वह एक बार फिर अपने घोड़े के पास उसको अन्तिम विदा कहने के लिये पहुँचा।

घोड़ा बोला — “तुम इतनी छोटी छोटी बातों पर क्यों रोते हो। तुम जल्दी से जंगल चले जाओ अपनी वायलिन बजाओ और सब ठीक हो जायेगा।”

वफादार ने फिर वैसा ही किया जैसा उसके घोड़े ने उससे करने के लिये कहा था। कुछ देर बाद ही दो शेर जिनको उसने बचाया था उसके सामने कूदते हुए आ गये। वे उसकी वायलिन सुन रहे थे। उन्होंने उससे पूछा कि क्या वह दुखी था।

वफादार बोला — “हाँ मैं दुखी हूँ।” कह कर उसने उनको बताया कि उसको क्या करना है। यह सुन कर वे तुरन्त ही जंगल में भाग गये। एक शेर एक तरफ भाग गया और दूसरा दूसरी तरफ भाग गया। वे दोनों जल्दी ही दोनों घोड़ों को ले कर लौट आये।

वफादार ने फिर से अपनी वायलिन छेड़ी और वे दोनों घोड़े उसके पीछे पीछे चल दिये और जल्दी ही राजा के किले में आ पहुँचे। वहाँ पहुँच कर उसने वे दोनों घोड़े रानी को दे दिये।

इतने सारे काम कराने के बाद राजा अब यह आशा कर रहा था कि रानी अब उससे बोलेगी खुश होगी पर वह तो फिर भी खुश नहीं हुई। वह एक शब्द भी उससे नहीं बोली। बस केवल वह जब ज़रा सी खुश दिखती थी जब वह वफादार से बात कर रही होती थी।

तब फिर एक दिन राजा ने उससे पूछा कि अब उसे किस बात की कमी थी और वह क्यों इतनी असन्तुष्ट रहती थी। वह बोली
— “मुझे घोड़े तो मिल गये हैं और मैं अक्सर अपने सोने के चमकदार कमरे में भी बैठती हूँ पर मैं उस कमरे की अपनी किसी भी सुन्दर आलमारियों को नहीं खोल सकती हूँ जो कीमती चीज़ों से भरी हुई हैं। क्योंकि मेरे पास उनकी चाभी ही नहीं है।और अगर मुझे उनकी चाभी नहीं मिलीं तो मैं खुश कैसे होऊँ।”

राजा ने पूछा — “तो फिर उनकी चाभी कहाँ हैं।”

रानी बोली — “ट्रौल की पहाड़ी के पास वाली झील में। जब वफादार मुझे ले कर यहाँ आ रहा था तब मैंने उनको वहीं फेंक दिया था।”

राजा बोला — “तुम्हारी उन चाभियों का लाना तो बड़ा मुश्किल काम है। मैं बड़ी मुश्किल से यह वायदा करता हूँ कि तुमको वे चाभियाँ मिल जायेंगीं।”

फिर भी उसने सोचा एक बार कोशिश करने में क्या हर्ज है। उसने अपने नौकर बेवफा को फिर से बुलाया और उससे इस काम को करने के लिये कहा तो बेवफा तुरन्त बोला — “यह तो बहुत आसान काम है क्योंकि वफादार मुझसे अपनी शान बघार रहा था कि वह रानी साहिबा की चाभियाँ बड़ी आसानी से ला कर दे सकता है – अगर वह चाहे तो।”

राजा बोला — “तब तो मैं उसे अपनी बात रखने पर मजबूर कर दूँगा।” सो उसने तुरन्त ही वफादार को बुलवाया और उससे कहा कि अगर ट्रौल की पहाड़ी के पास वाली झील में से उसने आलमारियों की चाभियाँ उसे ला कर नहीं दीं तो वह उसको मरवा देगा।

इस बार वफादार इतना ज़्यादा दुखी नहीं था क्योंकि उसने सोचा कि “मेरा अक्लमन्द घोड़ा मेरी जरूर सहायता करेगा।” सो वह अपने घोड़े के पास गया और उससे जब अपनी मुश्किल बतायी तो उसने उसे उसकी वायलिन बजाते हुए जाने के लिये कहा और कहा कि देखना फिर क्या होता है।

जब वफादार को वायलिन बजाते बजाते कुछ समय बीत गया तो वह पाइक मछली जिसको उसने बचाया था पानी के ऊपर आयी। उसने उसको पहचान लिया और पूछा कि वह उसके लिये क्या कर सकती है।

नौजवान ने कहा — “हाँ तुम मेरे लिये बहुत कुछ कर सकती हो।” कह कर उसने उससे झील में से चाभियाँ लाने के लिये कहा। पाइक मछली तुरन्त ही झील में कूद गयी और अपने मुँह में सोने की चाभियों का एक गुच्छा लिये पानी के ऊपर आ गयी। वह गुच्छा उसने अपने बचाने वाले को दे दिया।

वफादार उनको ले कर तुरन्त ही किले की तरफ लौटा और चाभियाँ ला कर रानी साहिबा को दे दीं। अब रानी अपने सोने के कमरे की सब आलमारियाँ खोल सकती थी और उनमें से जो चाहे जितना चाहे निकाल सकती थी।

पर रानी अभी भी दुखी थी। उसके दुख की वजह न समझते हुए राजा ने एक बार फिर अपने नौकर बेवफा को बुलवाया और उससे यह सब कहा तो बेवफा ने कहा — “लगता है कि रानी साहिबा वफादार को बहुत प्यार करती हैं। तो मैं सरकार को यह सलाह दूँगा कि आप वफादार की गर्दन कटवा दें। तब आप देखेंगे कि रानी साहिबा में कुछ बदलाव आया है।”

राजा को उसकी इस सलाह में कुछ सार लगा और उसने यह काम बहुत जल्दी करने का फैसला कर लिया।

लेकिन एक दिन वफादार के घोड़े ने वफादार से कहा —
“राजा तुम्हारा सिर कटवाने वाला है। सो तुम जल्दी से जंगल चले जाओ और वहाँ जा कर अपनी वायलिन बजाओ। वे दोनों फाख्ताऐं जिनको तुमने बचाया था उड़ कर वहाँ आयेंगी तो तुम उनसे विनती करना कि वे तुम्हें एक बोतल “ज़िन्दगी का पानी” ला कर दें।

उसके बाद तुम रानी के पास जाना और उसको वह पानी की बोतल दे कर कहना कि जब राजा तुम्हारा सिर कटवा दे तो वह तुम्हारे सिर को तुम्हारे शरीर पर रख कर जोड़ दे और उस “ज़िन्दगी के पानी” को तुम्हारे शरीर पर छिड़क दे।”

वफादार ने ऐसा ही किया। वह उसी दिन जंगल चला गया अपनी वायलिन बजायी और जब दोनों फाख्ताऐं आ गयीं तो उनसे अपने लिये “ज़िन्दगी का पानी” लाने की विनती की।

जब वे ज़िन्दगी के पानी से भरी एक बोतल ले आयीं तो वह रानी साहिबा के पास गया और उनसे विनती की कि वह राजा के उसके सिर काटने के बाद उस सिर को उसके शरीर पर जोड़ कर उस बोतल में से उसके ऊपर पानी छिड़क दे।

रानी ने ऐसा ही किया। वफादार फिर से ज़िन्दा हो कर खड़ा हो गया – बल्कि और ज़्यादा सुन्दर। राजा ने तो यह देख कर आश्चर्य से दाँतों तले उँगली दबा ली।

फिर उसने रानी से कहा कि वह उसका सिर काट दे और वह पानी उसके शरीर पर भी छिड़क दे। रानी ने तुरन्त तलवार उठायी और पल भर में ही राजा का सिर काट दिया। उसका सिर धरती पर लुढ़क गया।

पर रानी ने उसके शरीर पर कोई ज़िन्दगी का पानी नहीं छिड़का। राजा के शरीर को तुरन्त ही ले जा कर दफ़न कर दिया गया।

उसके बाद रानी ने वफादार से शादी कर ली। बेवफा को राज्य से बाहर निकाल दिया गया और उसे बहुत बेइज़्ज़त हो कर वहाँ से जाना पड़ा।

अक्लमन्द घोड़ा अपने कमरे में सन्तोष के साथ रहा। राजा और रानी के पास वह जादुई वायलिन ट्रौल का सोने कमरा और उसकी कीमती चीज़ें हमेशा रही। और वे खुश खुश रहे।

(साभार सुषमा गुप्ता जी, जिन्होंने लोक-कथाओं पर उल्लेखनीय काम किया है)

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