फैक्टरी टाउन (जापानी कहानी) : बेत्सुयाकू मिनोरु (अनुवाद : विजय शर्मा)
Factory Town (Japanese Story in Hindi) : Betsuyaku Minoru
एक दिन, बस यूं ही, एक छोटी-सी फैक्टरी शहर की बाहरी सीमा पर उग गई। इसकी चिमनी भयंकर काला धुआं उगलने लगी।
‘हे भगवान!’ पास से गुजरते कुछ शहरवासियों ने आश्चर्य जताया, ‘क्या हो रहा है यहां?’
‘चिमनी से धुआं निकल रहा है, मुझे तो लगता है फैक्टरी है।’
‘ठीक है, मगर बना क्या रहे हैं?’
‘पता नहीं।’
वे टहलते हुए फैक्टरी तक गए और एक आदमी ने बाड़ के सूराख से देखा।
‘क्या ठक-ठक-ठक चल रहा है?’
‘जरूर कोई मशीन होगी। एक बड़ी विशाल काली मशीन गोल-गोल घूम रही है। लेकिन यह बना क्या रही है?’
‘हटो, अब, मुझे देखने दो! हां, है तो मशीन ही। बहुत बड़ी! ओह, कुछ आदमियों को काम करते देख रहा हूँ!’
‘वे कैसे दिखते हैं?’
‘तीन लोग हैं। बड़ा वाला पिता होना चाहिए और दोनों जवान उसके बेटे।’
‘हूँ… परिवार।’
‘ग्रीज से पुते हुए हैं, अवश्य कुछ बना रहे हैं!’
‘बता सकते हो वे क्या बना रहे हैं?’
‘काश, मैं बता पाता।’
खैर, मुंहामुंही फैक्टरी की खबर पूरे शहर में फैल गई। खरीददारी से लौटती माताएं, पार्क से टहल कर लौटते पिता, कॉफी शॉप में चाय पीते भाई और बहनें – सब लोग फैक्टरी की ही बात कर रहे थे।
‘अगर मुझसे पूछो तो वे लोग बरतन बना रहे हैं। हमारे शहर में इनकी भारी कमी है।’
‘मेरे ख्याल से कुदाल और हंसिया बना रहे हैं। ये औजार जल्दी घिस जाते हैं। बराबर नए की जरूरत पड़ती है।’
‘मैं कहूंगा वे लोग ब्रेड बेक कर रहे हैं। हमारे यहां बेकर है, मगर वह ब्रेड बनाने में बहुत धीमा है।’ बेकर दूसरी तरह से सोच रहा था।
‘नहीं, यह ब्रेड नहीं है। अवश्य कोयले के चूरे की गूल (ईंधन) बन रही है। वो काला धुआं बेकिंग से नहीं है। यह गूल बनाने से है।’
‘जाहिर-सी बात है’, गूल बनाने वाला असहमत हुआ।
‘नहीं, गूल नहीं। खराब गंध है। यह ईंट बनाने की फैक्टरी है। वे ईंट बना रहे हैं।’
‘ईंट? कोई चांस नहीं!’ लाल-भभूका चेहरे के साथ ईंट-बनाने वाला गरजा- ‘मेरी ऐसी-की-तैसी अगर मैं उन्हें यहां आने दूं, ईंट बनाने! नहीं, नहीं, यह कुछ और है।
‘अवश्य कांच होगा। वे बोतल और ग्लास बना रहे हैं।’
दिन-पर-दिन बातें होती रहीं, लेकिन उत्पाद का कोई संकेत न था। ऐसा नहीं था कि फैक्टरी के लोग आराम कर रहे थे। चिमनी रोज धुआं उगल रही थी, सूराख से आप पिता और दोनों बेटों को देख सकते थे, ग्रीज से काले रंगे हुए, पागलों की तरह काम करते हुए। मशीन की ठक-ठक-ठक सुनने के लिए आपको उस स्थान के पास से गुजरना काफी था।
‘ये लोग आराम कब करते हैं?’ जब भी शहर के लोग सूराख से देखते, वे आश्चर्य करते।
‘कितने विशिष्ट कामगर!’
‘मैंने कभी किसी को इस तरह काम करते नहीं देखा है!’
‘मैं चाहता हूँ, मेरा बेटा यह देखे!’
‘मैं अपने आदमी से कहने जा रही हूँ कि उसे बेहतर करना चाहिए!’
इस शहर के लोग काम की जगह आराम करना पसंद करते थे। और भला क्यों नहीं? खेतों में फसल अपने आप होती थी, समुद्र उनके खाने से अधिक मछली देता था, और आप खूब मेहनत करके पैसे जमा कर सकते थे, लेकिन खर्च करने के लिए कुछ न था। हालांकि एक बार फैक्टरी आ गई तो लोगों का विचार बदलने लगा। छोटी फैक्टरी से काला धुआं इतनी अकड़ से निकलता कि सब लोग गंभीर रूप से प्रभावित हो गए। पहाड़ी की चोटी से पूरा शहर नजर आता था, अलसाया हुआ, हरियाली में दुबका हुआ।
केवल फैक्टरी तगड़ी नजर आती थी, मानो भाप गाड़ी खेतों के बीच से जा रही हो।
‘इसे मैं कहता हूँ बोल्ड!’ ऊपर से नीचे देखते हुए लड़के एक-दूसरे से कहते।
‘मैं इसे मैचो कहता हूँ!’ इस बीच उनकी मां-बहनें उन्हें टहोकती रहतीं।
‘तुम्हें मालूम है, फैक्टरी 7 बजे शुरू हो जाती है।’
‘वे केवल दस मिनट का ब्रेक लेते हैं।’
‘अंधेरा होने के बाद भी वे रोशनी जला कर काम करते हैं।’
लड़के जल्दी उठने की कोशिश करने लगे और रात को देर से सोने की। हालांकि उनके पास करने को कोई काम न था। वे खुद को व्यस्त दिखाते हुए शहर में घूमते रहते और अंत में फैक्टरी की बाड़ के पास जा पहुंचते। वे बारी-बारी से सूराख के पास जाते, ईर्ष्या से देखते।
‘उनकी आंखें इतनी चमकीली हैं।’
‘उनका पसीना देखो! वे उसे पोंछते भी नहीं हैं!’
‘और वो हाथ देखो! घन ऐसे उठाता है मानो वजन हो ही नहीं!’
फैक्टरी चलती रही, लेकिन अभी भी उत्पादन का कोई संकेत न था।
‘हालांकि, वे वास्तव में काम कर रहे हैं। गजब है, जो भी वे बना रहे हैं।’
‘एकदम ठीक! उस बड़ी मशीन को देखो!’
शहर के लोग इस-उस उत्पादन का अनुमान लगाते रहे, वे उसके बिक्री में आने के लिए बेसब्र हो रहे थे।
‘तुम्हें नहीं लगता है कि चिमनी से कुछ ज्यादा ही धुआं निकल रहा है?’
‘सच में। हाँ, मुझे लगता है। आकाश सदा एक तरह के बादलों से भरा लगता है।’
फैक्टरी की चिमनी से काला धुआं उबलता रहता। दिन-पर-दिन एक समय का शहर का नीला आकाश धूसर रहने लगा।
‘वे कुछ नहीं कर सकते हैं। इतनी बड़ी मशीन है!’
मुझे मालूम है वे जितनी जल्दी हो सके उत्पाद निकालने के लिए रेस लगा रहे हैं।’
‘यह कुछ बहुत अच्छा होगा।’
‘अवश्य।’
एक लड़का एक दिन सुबह जल्दी उठ गया और अपने घर के सामने चिल्लाया।
‘हे! देखो! फैक्टरी की दो चिमनियां हो गई हैं!’
जिसने भी सुना अपनी निंदियाई आंखें मलता हुआ बाहर देखने आ गया। दृश्य प्रभावशाली था।
अब छोटी फैक्टरी के ऊपर दो विशाल चिमनियां थीं। सुबह के आकाश में काले धुएंं का वमन करते दो स्तंभ थे। भारी धुआं आलस्य के साथ शहर की ओर खिसक रहा था। उससे नन्हें काले चमकते हुए कण झड़ रहे थे।
‘यह आश्चर्यजनक है!’
‘धुआं मेरे भीतर एक तरह की शक्ति उठाता है।’
‘वे अवश्य अंतिम चरण में पहुंच गए हैं। इसीलिए उन्होंने एक और चिमनी लगाई है।’
‘वे जानते हैं, वे जो बना रहे हैं, हम उसका कितनी बेसब्री से इंतजार कर रहे हैं।’
‘यह क्या होगा?’
‘कुछ अनोखा, कुछ ऐसा जिसका हम उपयोग कर सकते हैं।’
‘मुझे लगता है, तुम सही हो।’
उसके बाद प्रतिदिन वे दो स्तंभकार जुड़वां चिमनियां धुआं उगलती रहीं। कालिख के कारण अब लोग अपनी आंखें खुली रख कर नहीं चल पाते। उनका गला इतना खराब हो गया था कि वे हर पल खांसते रहते। रस्सी पर सूखते कपड़े, उनकी पोशाक और यहां तक कि उनके चेहरे भी काले हो गए। फिर भी वे धैर्य के साथ इसे सहन करते रहे, उत्पादन अवश्य ही कुछ विशिष्ट होगा।
अंतत: एक दिन, जब वे और न सह सके, मेयर से बात करने पहुंचे।
‘हम सोच रहे हैं क्या करना चाहिए। अब धुआं इतना खराब हो गया है। इतने मेहनती कामगारों की शिकायत करनी ही होगी, लेकिन इसके पहले उन्हें हमें यह बताना होगा कि उनका सामान कब तैयार होगा और वह क्या होगा?’
‘मैं जानता हूँ, आपका मतलब क्या है। हम थोड़ा और इंतजार कर सकते हैं यदि वे सचमुच कुछ अच्छा बना रहे हैं। ठीक है, चलो, सुनें उनका क्या कहना है।’
मेयर और शहर के लोग खांसते, कालिख से बचते-बचाते चले।
‘हैलो, फैक्टरी के जेंटलमेन!’
कालिख पुता मुंह चियारता हुआ फैक्टरी का प्रमुख बाहर आया।
‘हैलो! तो यह आप हैं, मिस्टर मेयर! और बाकी लोग भी! क्या बात है?’
‘देखिए, शहर के लोग जानना चाहेंगे कि आपका प्रोडक्ट कब तैयार होगा।’
‘ओह, यह बात है? तब, मेरे पास एक अच्छी खबर है। यह तैयार है।’
‘सच में? तैयार है?’
‘जी, भीतर आइए। मैं आपको दिखाऊंगा। आप सब बहुत प्रसन्न होंगे।’
हर्ष ध्वनि करते हुए शहर के लोग प्रमुख के पीछे-पीछे भीतर गए। उसने और उसके बेटों ने उनका मुस्कान से स्वागत किया।
‘इसे देखिए।!’
उसने बड़ी मशीन, जिसे वे दरार से देखते आए थे, की बगल की चमकती हुई छोटी मशीन की ओर इशारा किया। मोती जैसे दाने उससे कूद कर निकल रहे थे और एक डिब्बे में गिर रहे थे, डिब्बा भर कर आगे सरक रहा था।
प्रमुख ने मेयर को एक दाना दिया। मेयर ने उसे हाथ में ले कर घूरा।
‘उम्म, क्या है यह?’
‘इसे अपने मुंह में रखिए! यह खांसी की दवा है।’
‘खांसी की दवा?’
लोगों ने फिर से हर्ष ध्वनि की। तभी, देखिए, वे इतना भयंकर खांस रहे थे कि सांस लेना कठिन था।
‘जी हां, लेडीज एंड जेंटलमेन, हमारा उत्पाद खांसी की दवा है। ये थोड़ी महंगी है, लेकिन कारगर है!’
‘अच्छा, आप कुछ अनोखा बना रहे हैं!’
‘हमें अभी ठीक यही चाहिए!’
‘एक मिनट लूंगा!’
उन्होंने मुस्कराते हुए फैक्टरी प्रमुख और उसके बेटों के हाथ से सीधे दवा खरीदी और वहीं फैक्टरी में खानी शुरू की। इसी बीच मेयर ने अपना ज्वलंत प्रश्न पूछा।
‘एक्सक्यूज मी, मिस्टर फैक्टरी चीफ़, मैं समझ गया कि छोटी मशीन खांसी की दवा बनाती है, लेकिन बड़ी वाली क्या बनाती है?’ शहर के लोगों ने जिसको दरार से देखा था, उसने उसकी ओर इंगित किया। ‘आखिरकार इसकी दो चिमनियां हैं। यह कुछ बेहतर बनाती होगी।’
‘ओह, वो वाली?’ प्रमुख ने मुंह चियारते हुए पूछा। ‘वह कुछ नहीं बनाती है।’
‘कुछ नहीं बनाती है?’
‘नहीं, मात्र धुआं। आपको मालूम है कि दूसरी चिमनी लगाने में हमें काफी समय लगा!’
खांसते हुए लोगों ने दवा खरीदी।