फ़ाख़ता का अंडा : हिंदी लोक-कथा

Faakhta Ka Anda : Folktale in Hindi

किसी फ़ाख़ता ने एक पेड़ की कोटर में अंडा दिया। पेड़ के पास एक लुहार का घर था। ज्यों ही फ़ाख़ता दाने की तलाश में कोटर से बाहर गई लुहारिन ने अंडा चुरा लिया।

फ़ाख़ता कोटर में वापस आई तो अंडा ग़ायब! फ़ाख़ता ताड़ गई कि यह लुहारिन का काम है। वह लुहारिन के पास गई और विनती की, “दया करके मेरा अंडा वापस कर दो!”

लुहारिन ने अनजान बनते हुए कहा, “अंडा? कैसा अंडा? मैंने काई अंडा-वंडा नहीं देखा।”

शोकसंतप्त फ़ाख़ता किसी मददगार की तलाश में उड़ी। उड़ते-उड़ते उसे एक सूअर मिला। सूअर ने पूछा, “क्या बात है नन्हीं चिड़िया, तुम रो क्यों रही हो?”

फ़ाख़ता ने कहा, “वराह, क्या तुम मेरी मदद करोगे? क्या तुम लुहारिन की अरबी खोदोगे? उसने मेरा अंडा चुरा लिया।”

“नहीं, मैं नहीं खोदूँगा”, सूअर घुरघुराया और आगे बढ़ गया।

फिर उसे एक शिकारी मिला, “तुम्हारी आँखों में आँसू क्यों हैं कुमरी?”

कुमरी ने कहा, “क्या तुम सूअर को तीर मारोगे? उसने लुहारिन की अरबी खोदने से मना कर दिया। लुहारिन ने मेरा अंडा चुरा लिया।”

“क्यों, मैं क्यों उसे तीर मारूँ? मुझे इसमें मत फँसाओ।” यह कहकर शिकारी चला गया।

फ़ाख़ता वहाँ से उड़ी। उसके आँसू थम नहीं रहे थे। आगे उसे एक चूहा मिला। उसने भी उसके रोने का कारण पूछा, फ़ाख़ता ने कहा, “क्या तुम शिकारी ने धनुष की डोरी कुतर दोगे? वह सूअर को तीर नहीं मारता। सूअर लुहारिन की अरबी नहीं खोदता। लुहारिन ने मेरा अंडा चुरा लिया।”

चूहे ने भी कहा, “नहीं, मैं नहीं कुतरूँगा।”

फिर उसे एक बिल्ली मिली। बिल्ली ने पूछा, “क्या बात है नन्हीं चिड़िया, तुम्हारी आँखों में आँसू क्यों हैं?”

“क्या तुम चूहे को पकड़ोगी? वह शिकारी के धनुष की डोरी नहीं कुतरता। शिकारी सूअर को तीर नहीं मारता। सूअर लुहारिन की अरबी नहीं खोदता। लुहारिन ने मेरा अंडा चुरा लिया।”

बिल्ली ने भी दूसरे के झमेले में टाँग अड़ाने से मना कर दिया।

बेचारी फ़ाख़ता के दुख और ग़ुस्से का पार न रहा। उसका विलाप सुनकर उधर से गुज़रते एक कुत्ते ने उसकी व्यथा जाननी चाही। फ़ाख़ता ने कहा, “क्या तुम बिल्ली को काटोगे? वह चूहे को नहीं पकड़ती। चूहा शिकारी के धनुष की डोरी नहीं कुतरता। शिकारी सूअर को तीर नहीं मारता। सूअर लुहारिन की अरबी नहीं खोदता। लुहारिन ने मेरा अंडा चुरा लिया।”

“मुझे इससे क्या!” कुत्ते ने कहा और भाग गया।

फ़ाख़ता और जोर से रोने लगी।

रास्ते पर जाते सफ़ेद दाढ़ी वाले बूढ़े ने उससे पूछा कि वह रो क्यों रही है। फ़ाख़ता ने कहा, “दादाजी, क्या आप कुत्ते को पीटेंगे? वह बिल्ली को नहीं काटता। बिल्ली चूहे को नहीं पकड़ती। चूहा शिकारी के धनुष की डोरी नहीं कुतरता। शिकारी सूअर को तीर नहीं मारता। सूअर लुहारिन की अरबी नहीं खोदता। लुहारिन ने मेरा अंडा चुरा लिया।”

ऐसे काम में बूढ़े की कोई रुचि नहीं थी। उसने सर हिलाया और चला गया।

फ़ाख़ता फिर आग के पास गई और उससे बूढ़े की दाढ़ी जलाने के लिए कहा। पर आग ने मना कर दिया। फिर वह पानी के पास गई और उससे आग बुझाने को कहा जो बूढ़े की दाढ़ी नहीं जलाती। बूढ़ा कुत्ते को नहीं पीटता। कुत्ता बिल्ली को नहीं काटता। बिल्ली चूहे को नहीं पकड़ती। चूहा शिकारी के धनुष की डोरी नहीं कुतरता। शिकारी सूअर को तीर नहीं मारता। सूअर लुहारिन की अरबी नहीं खोदता। लुहारिन ने उसका अंडा चुरा लिया। पानी ने भी उसकी मदद नहीं की।

थोड़ी देर बाद फ़ाख़ता को एक हाथी मिला। उसने हाथी से पूछा कि क्या वह पानी को गंदला करेगा जो आग नहीं बुझाता? आग बूढ़े की दाढ़ी नहीं जलाती। बूढ़ा...

हाथी ने कहा, “मुझे इससे क्या!”

फ़ाख़ता फिर किसी की खोज में उड़ चली। तभी उसे एक चींटी दिखी। चींटी ने उससे पूछा कि वह दुखी क्यों है।

“चींटी बहन, तुम ज़रूर मेरी मदद करोगी। क्या तुम हाथी की सूँड में घुसकर उसे काटोगी? हाथी पानी गंदला नहीं करता। पानी आग नहीं बुझाता। आग बूढ़े की दाढ़ी नहीं जलाती। बूढ़ा कुत्ते को नहीं पीटता। कुत्ता बिल्ली को नहीं काटता। बिल्ली चूहे को नहीं पकड़ती। चूहा शिकारी के धनुष की डोरी नहीं कुतरता। शिकारी सूअर को तीर नहीं मारता। सूअर लुहारिन की अरबी नहीं खोदता। लुहारिन ने मेरा अंडा चुरा लिया।”

“क्यों नहीं, अभी लो!” चींटी ने कहा और हाथी की सूँड़ में घुसकर मुलायम जगह पर जोर से काटा। हाथी तेज़ी से भागा और तालाब में घुसकर पानी को झिकोलने लगा। पानी हरहराता हुआ आगे बढ़ा और आग को बुझाने लगा। उन्मत्त आग भड़क उठी और बूढ़े की दाढ़ी को जला दिया। बूढ़े ने कुत्ते को पीटा। कुत्ता बिल्ली के पीछे भागा और उसे काट खाया। बिल्ली ने चूहे को पकड़ा। चूहे ने शिकारी के धनुष की डोरी को कुतर डाला। शिकारी ने नई डोरी बाँधी और सूअर पर तीर चलाया। सूअर दौड़ा और लुहारिन की सारी अरबियाँ खोद डालीं।

लुहारिन तुरंत समझ गई कि उसे क्या करना है। उसने फ़ाख़ता का अंडा लिया और पेड़ की कोटर में सावधानी से रख दिया।

इस तरह फ़ाख़ता को अपना अंडा वापस मिल गया।

(साभार : भारत की लोक कथाएँ, संपादक : ए. के. रामानुजन)

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