इंजन की समस्या (अंग्रेज़ी कहानी) : आर. के. नारायण

Engine Ki Samasya (English Story in Hindi) : R. K. Narayan

महाबातूनी कह रहा था :

कुछ साल पहले हमारे कस्बे में एक शोमैन आया जो गेटीलेंड नामक एक संस्था को चलाता था। रातोंरात वहाँ के जिमखाना क्लब में पोस्टर, झंडे और रंगबिरंगे रोशनी के बल्ब लग गये। तमाशा देखने जिले भर से लोग आने लगे। शुरू होने के एक हफ्ते बाद ही उन्हें हर रोज पाँच सौ रुपये की आमदनी होने लगी। इसमें तरह-तरह के खेल, जादू और तमाशे दिखाये जाते थे। दो आने का टिकट खरीदकर हम तोतों के करतब से लेकर मौत के कुएं में मोटरसाइकिल की गोल चक्कर दौड़ देख सकते थे। इसके अलावा वहाँ तरह-तरह की लाटरी और गैलरी थीं जिनमें एक आना खर्च करके आप सौ रुपये तक के इनाम जीत सकते थे।

शो का एक कोना बहुत ज्यादा लोगों से भरा रहता था। यहाँ आठ आने का टिकट लेकर तरह-तरह की बड़ी चीजें-जैसे पिनकुशन, सिलाई की मशीन, कैमरे और सड़क कूटने का इंजन तक इनाम में जीत सकते थे। एक दिन उन्होंने टिकट नंबर निकाला 1005 जिसका आधा हिस्सा मेरे पास था। इनाम की चीजों पर नजर डालते हुए उन्होंने कहा कि सड़क का इंजन मुझे इनाम मिला है। अब मुझसे यह पूछिए कि इनामों में रोड इंजन जैसी चीज कैसे शामिल हो गई। यह बताने के लिए मुझे काफी मेहनत करनी पड़ेगी।

खैर, यह सुनकर मैं स्तब्ध हो गया। लोग मुझे कुछ ऐसे देखने लगे, मानो मैं कोई जानवर हूँ। कई हँसकर कहने लगे, 'क्या करेगा यह रोड इंजन का?'

यह इनाम ऐसा नहीं था जिसे कोई खुद उठाकर घर ले जा सके। मैंने शोमैन से पूछा, 'इसे ले जाने में वह मेरी क्या मदद करेगा?' जवाब देने की जगह उसने मुझे ऊपर टैंगा एक नोटिस दिखा दिया, जिस पर लिखा था कि इनाम जीतने वाले सभी लोग अपने इनाम फौरन खुद ही इन्तजाम करके उठा ले जाएँ। लेकिन मेरे इस मामले में वे थोड़ी सुविधा देने के लिए तैयार थे। शो चलने के दिनों में वे इसे जिमखाना क्लब में ही रखे रहने को तैयार थे, इसके बाद मैं इसे ले जा सकूँगा। मैंने जब शोमैन से पूछा कि इसे ले जाने के लिए क्या वे ड्राइवर दे सकेंगे, वह हँसने लगा। बोला, 'जो आदमी इसे यहाँ लाया था, उसे हर रोज के पाँच रुपये और इसके अलावा सौ रुपये देने पड़े। उसे मैंने वापस भेज दिया और तय कर लिया कि अगर कोई उसे चला नहीं सकता, तो इसे अपने भाग्य पर छोड़ दूंगा। यह नई चीज है इसलिए मैं इसे लाया था। मैं ही जानता हूँ, इसके कारण मैंने कितनी परेशानी उठाई है!"

'मैं इसे किसी म्युनिसपैलिटी को नहीं बेच सकता?' मैंने पूछा। उसने जवाब दिया, 'शोमैन होने के नाते मुझे म्युनिसपैलिटी के लोगों से बहुत तकलीफें झेलनी पड़ती हैं। मैं इनसे दूर ही रहना पसंद करता हूँ...।"

मेरे दोस्त और परिचित आ-आ कर इस इनाम के लिए मुझे बधाइयाँ देने लगे। यह कोई नहीं जानता था कि इस इंजन से कितना पैसा मिलेगा लेकिन सभी कहते थे कि, 'इसकी कीमत बहुत काफी होनी चाहिए। इसमें लगा लोहा ही बेचोगे तो हजारों में बिकेगा।' कई दोस्त बार-बार यह बात कहते। रोज मैं जिमखाना क्लब का चक्कर लगाता और इंजन को देख लेता था। मुझे यह बहुत अच्छा लगने लगा था। ताँबे से बने इसके हिस्से चमकते हुए बहुत सुंदर लगते थे। मैं पास होकर प्यार से इसे थपथपाता, इसके इर्द-गिर्द घूमता और शाम को शो खत्म होने के बाद घर लौट आता। मैं गरीब था, इसलिए सोचता था कि इससे मेरी सब समस्याएँ हल हो जायेंगी। मैं कितना नादान था!-नहीं जानता था कि इससे तो समस्याओं की शुरुआत हुई है।

जब शोमैन का तमाशा खत्म हो गया तो वह अपना सामान उठाकर चला गया। म्युनिसपैलिटी से मेरे पास चिट्ठी आई कि अपने इंजन को यहाँ से उठा लें। दूसरे दिन मैं वहाँ गया तो इंजन बेचारा अकेला खड़ा था। आस-पास कोई नहीं था। चारों तरफ जमीन पर कूड़ा-करकट बिखरा पड़ा था। लेकिन अकेला होने पर भी यह बिलकुल सुरक्षित था।

मैं समझ नहीं पा रहा था कि इसका क्या करूं, इसलिए कई दिन तक इसे वहीं खड़ा रहने दिया। म्युनिसपैलिटी ने अब मुझे नोटिस भेजा कि इसे जल्दसे जल्द जिमखाने के मैदान से हटा लू, नहीं तो किराया वसूल किया जायेगा। गहराई से सोच-विचार करने के बाद मैंने किराये की बात मान ली और दस रुपये हर महीने के हिसाब से तीन महीने तक किराया देता रहा। मैं गरीब आदमी हूँ, और जिस घर में मैं अपनी बीवी के साथ रहता था, उसका किराया भी चार रुपये महीने ही था। इस हालत में दस रुपये महीने चुकाना मेरे लिए बहुत मुश्किल था। इसके लिए मुझे अपने बजट में काफी कतर-ब्योंत करनी पड़ती और एकाध बार बीवी का जेवर भी गिरवी रखना पड़ा। बीवी हर रोज मुझसे पूछती कि इस इनाम का क्या-कैसे करोगे, और मैं कोई जवाब नहीं दे पाता था। मैं बाजार जाता और हर किसी से इसे खरीदने की बात करता। किसी ने सुझाया कि कास्मोपॉलिटन क्लब का सेक्रेटरी इसे खरीद सकता है। मैं उससे मिला तो वह हँसने लगा और बोला कि मैं इसका क्या करूंगा?

मैं बोला, 'आप के यहाँ टेनिस कोर्ट है जिसका मैदान यह रोज समतल कर सकता है। मैं यह काफी सस्ता दे दूँगा।' लेकिन बात पूरी करने से पहले ही मैंने महसूस कर लिया कि मैंने बेवकूफी की बात कही है।

किसी ने कहा, 'तुम म्युनिसपैलिटी के चेयरमैन से मिलो। वह इसका उपयोग कर सकता है। ' काफी सोचने के बाद एक दिन मैं उससे मिलने गया। कोट के बटन सही ढंग से लगाकर मैं उसके कमरे में घुसा और अपनी बात कही। मैं इसे एकदम सस्ते में दे देने को तैयार था। मैंने बड़े जोर-शोर से शहर के लिए उनके कर्तव्यों पर प्रकाश डाला लेकिन शीघ्र ही समझ गया कि यह काम संभव नहीं है। इंजन बच्चों को खेलने के लिए दे देना ज्यादा आसान है।

जिमखाना मैदान में इंजन का किराया देने में मेरा दिवाला निकला जा रहा था। मैं सोचता था कि किसी दिन इतना ज्यादा पैसा इसे बेचने से मुझे मिल जायेगा कि यह सब भरपाई मैं कर सकूँगा। अब इस मैदान में पशु-प्रदर्शनी होने की घोषणा कर दी गई और मेरी समस्या फिर खड़ी हो गई। मुझसे कहा गया कि चौबीस घंटे के अंदर इसे वहाँ से हटा लें। प्रदर्शनी एक हफ्ते बाद शुरू होनी थी, और उसका इन्तजाम करने लोग पहले आ रहे थे। उनकी माँग थी कि इंजन को तुरंत हटवा दिया जाये।

मैं बेहद परेशान हो उठा। पचास मील के इलाके में कोई आदमी ऐसा नहीं था जो इंजन के बारे में कुछ राय दे सके। सड़क से गुजरते हर बस-ड्राइवर से मैं बात करता लेकिन कोई नतीजा नहीं निकल रहा था। मैं स्टेशन मास्टर से भी मिला कि वह माल गाड़ी के ड्राइवर से यह काम करा दें। लेकिन इस ड्राइवर ने कहा कि उसे देखने के लिए अपना ही इंजन काफी है, और बीच में किसी स्टेशन पर रुककर वह यह काम कैसे कर सकता है! इस बीच म्युनिसपैलिटी का दबाव जारी था।

मैं विचार करता रहा। मंदिर के पुजारी से मिलने का फैसला किया कि वह मंदिर के हाथी की सहायता से इंजन को हटवा दें। उसने मेरी बात मान ली। फिर मैंने पचास कुली किराये पर लिये, जो इंजन को पीछे से धकेलते। आप सोच सकते हैं कि इसमें मेरा कितना पैसा लगा होगा! हर कुली को एक दिन के आठ आने देने थे, हाथी का किराया सात रुपये रोज था, उसे इसके साथ खाना भी खिलाना था।

मेरी योजना थी कि इंजन को जिमखाना मैदान से निकालकर सड़क पर थोड़ी दूर एक मैदान तक ले जाऊँ, जिसका मालिक मेरा एक दोस्त था। वहाँ मैं दो महीने भी इंजन को खड़ा रख सकता था। इसके बाद मैं मद्रास जाकर इसका सौदा करना चाहता था।

इसी के साथ मैंने जोसेफ नामक एक नौकरी से निकाले बस ड्राइवर की भी सहायता ली। उसने कहा कि वह सड़क इंजन के बारे में कुछ नहीं जानता, लेकिन अगर उसे सड़क पर किसी तरह चलाये रखा जाये, तो वह उसे मैदान में पहुँचाकर खड़ा कर देगा।

यह मजेदार दृश्य था : मजबूत रस्सों से बँधा हुआ हाथी इंजन को खींचता हुआ, पीछे से पचास तगड़े मजदूर उसे धक्के लगाते, और भीतर बैठा जोसेफ उसे चलाने की कोशिश करता। भारी भीड़ जुट आयी और यह तमाशा देखने लगी। इंजन सरकने लगा। यह मेरे जीवन का सबसे महत्वपूर्ण क्षण था। जब यह जिमखाने से निकलकर सड़क पर पहुंचा, तो इसका व्यवहार बदल गया। आगे सड़क पर सीधे चलने के बजाय अब इसने टेढ़े-मेढ़े होकर चलना शुरू किया। यह अब उछलने भी लगा। हाथी इसे एक तरफ खींचता, जोसेफ यह जाने बिना कि किधर जाना है, पहिये को सारा जोर लगाकर घुमाने में लगा था। पीछे धक्के लगाते पचास कुली भी जिधर समझ में आता, उधर धकेलने में लगे थे।

इस अगल-बगल, उलटी-सीधी धक्केबाजी में इंजन जिस मैदान में उसे जाना था, वहाँ न जाकर दूसरी तरफ खड़ी एक चहारदीवारी से टकरा गया और उसका काफी हिस्सा तोड़ डाला। यह देखकर भीड़ ने एक लम्बी चीख मारी। भीड़ के व्यवहार से परेशान हाथी जोर से चिंघाड़ा और रस्से तोड़कर अलग हो गया। वह भी दीवार से जा टकराया और उसका दूसरा हिस्सा भी ध्वस्त कर दिया। पचासों कुली डरकर भाग निकले, भीड़ भी उपद्रव मचाने लगी। किसी ने मुझे जोर का थप्पड़ मारा-यह दीवाल का मालिक था। थोड़ी देर में पुलिस वहाँ आ गई और मुझे पकड़कर ले गई।

मैं जब हवालात से बाहर आया, मेरे सामने ये बहुत-से कामों की सूची पकड़ा दी गई : 1. दीवाल का जो हिस्सा टूट गया था, उसे बनवाना, 2. जो पचास कुली भाग गये थे उनको पैसे देना-यद्यपि उन्होंने यह नहीं बताया कि काम न करने पर भी उन्हें पैसे क्यों दिये जायें, 3. इंजन चलाने के लिए जोसेफ की फीस देनी थी, 4. दीवाल में टकराने से हाथी को जो चोट लग गई थी, उसके इलाज के लिए पैसा देना था-यद्यपि मंदिर के मालिकों ने मेरी यह बात नहीं सुनी कि हाथी को दीवाल तोड़ने के लिए नहीं लाया गया था, और 5. इंजन को यहाँ से हटाकर उसकी सही जगह पहुँचाना।

भाइयो, मैं सचमुच गरीब आदमी था। अब मैं समझ नहीं पा रहा था कि इन सब कामों के लिए पैसा कहाँ से लाऊँगा! बीवी के पास गया तो वह पूछने लगी, तुम्हारे बारे में यह सब क्या सुन रही हूँ? मैंने विस्तार से उसे अपनी समस्याएँ बताई। वह सोचने लगी कि कहीं मैं उससे दूसरे जेवरों की तो माँग नहीं कर बैदूँगा! इसलिए पहले तो वह जोर से चिल्लाई, फिर रोने लगी और बोली कि मैं पिताजी को खत लिख दूँगी और वे आकर मुझे ले जायेंगे।

मैं लाचार हो उठा। लोग रास्ते में मुझे मिलते तो देखकर मुस्कराते। मैं गहराई से यह सोचने लगा कि अपने गाँव क्यों न चला जाऊँ! मैंने बीवी को इस बात के लिए प्रोत्साहित किया कि वह पिताजी को जरूर पत्र लिखे जिससे गाँव जाने के लिए मेरा रास्ता साफ हो जाये। मेरी यह योजना कोई जान नहीं पायेगा। मैं लेनदारों को चकमा देकर चुपचाप एक-रात यहाँ से निकल जाऊँगा।

तभी एक स्वामी जी के रूप में मुझे अचानक कहीं से सहायता प्राप्त हो गई। एक शाम म्युनिसपैलिटी के चेयरमैन की अध्यक्षता में शहर के छोटे से टाउन हॉल में स्वामी जी का कार्यक्रम हुआ। इसमें स्वामी जी ने योग की शक्ति का तरह-तरह से प्रदर्शन किया। हॉल खचाखच भरा था और लोगx चकित होकर ये सब प्रदर्शन देख रहे थे। मैं गैलरी में बैठा था। स्वामी जी ने शीशे का बर्तन तोड़ा और टुकड़े चबाकर दिखाये। फिर वे कीलें लगे तख्त पर लेट गये, इसके बाद तरह-तरह के जहर खा लिये। फिर गर्म लोहे की सलाखों को जीभ से चाटा, लोहे की कीलें दाँतों से चबाकर निगल लीं, दिल की धड़कन रोक ली और जमीन में गड़ा खुदवाकर उसमें जा बैठे, ऊपर से मिट्टी डलवा ली। हम सब आँखें फाड़े ये सब करतब देखते रहे।

इसके बाद उसने एक भाषण दिया और बताया कि वह अपने गुरु का संदेश जनता तक पहुँचाने के लिए ये करतब दिखाता है। उसने कहा कि इससे उसे संतोष के अलावा और कुछ हासिल नहीं होता। इसके बाद उसने घोषणा की कि अब वह अपने कार्यक्रम का सबसे महत्वपूर्ण प्रदर्शन प्रस्तुत करेगा। इसके बाद उसने चेयरमैन की तरफ देखकर कहा, 'आपके पास कोई सड़क इंजन है? इसे मैं अपनी छाती पर चलाकर दिखाऊँगा।'

चेयरमैन यह सुनकर जरा शर्माया और कहने लगा, 'नहीं, हमारे पास रोड इंजन नहीं है।

' स्वामी जी जोर देकर कहा, 'मुझे रोड इंजन जरूर चाहिए।'

चेयरमैन ने उसे यह कहकर फुसलाना चाहा, 'उसके लिए ड्राइवर भी नहीं है।'

स्वामी ने उत्तर दिया, 'कोई बात नहीं। मेरा असिस्टेंट सब तरह की गाड़ियाँ चला सकता है।'

यह सुनते ही मैं गैलरी में उठकर खड़ा हो गया और जोर से चिल्लाकर बोला, 'रोड इंजन आप इनसे मत माँगिये, मुझसे माँगिये।'

मिनट भर में मैं मंच पर जा पहुँचा और इस आग खाने वाले की ही तरह महत्वपूर्ण आदमी बन गया। भीड़ तालियाँ बजाने लगी जिससे मुझे बड़ी प्रसन्नता हुई। चेयरमैन मुझसे पीछे पड़ गये।

तय हुआ कि रोड इंजन देने के बदले उनका आदमी उसे वहाँ पहुँचा देगा जहाँ मैं चाहता हूँ। मैंने यह भी सोचा कि इसका कुछ पैसा भी वसूल कर लू लेकिन जो आदमी ये सब काम बिना कुछ लिये कर रहा है, उससे पैसा माँगना मुझे अच्छा नहीं लगा।

शीघ्र ही सारी भीड़ हॉल से बाहर निकलकर जिमखाना के मैदान में जा खड़ी हुई जहाँ यह करतब दिखाया जाना था। स्वामी का असिस्टेंट सब तरह की गाड़ियों के इंजन चलाने में माहिर था। जरा-सी देर में मेरा रोड इंजन खड़खड़ करता वहाँ पहुँच गया। यह दृश्य देखने लायक था।

स्वामी जी ने दो तकिये मैंगवाये, एक अपने सिर के नीचे रखा, दूसरा पैरों के नीचे। फिर उन्होंने, किस प्रकार इंजन उनके शरीर के ऊपर से चलाया जायेगा, ये आदेश विस्तार से दिये। उन्होंने अपनी छाती पर खड़िया मिट्टी से एक निशान बनाया और कहा कि इंजन ठीक इसी जगह से गुजरना चाहिए, इसके एक इंच भी इधर या उधर से नहीं। इंजन से फिस-फिस की आवाज निकली और वह इंतजार करने लगा। लोग यह देखकर दुखी होने लगे। वे सोचने लगे कि यह करना ठीक नहीं है।

अब स्वामी जी तकिये पर लेट गये और बोले, 'जब मैं ओम् कहूँ, इंजन चला देना।' फिर उन्होंने आँखें बंद कर लीं। लोग तनाव में भरे देखते रहे। मैं बड़े ध्यान से यह सब देख रहा था-आखिरकार अब मेरा रोड इंजन चलने वाला है!

तभी एक पुलिस इन्सपेक्टर हाथ में भूरा लिफाफा लिये भीड़ में दाखिल हुआ। उसने हाथ उठाकर स्वामी जी के असिस्टेंट को इशारा किया और बोला, 'मुझे अफसोस है लेकिन आपको यह करने की इजाजत नहीं है। मजिस्ट्रेट साहब ने हुक्म जारी किया है कि यह करतब नहीं दिखाया जा सकता।'

स्वामी जी उठे। लोगों में सनसनी फैल गई थी। उन्होंने गुस्से में भरकर कहा, 'मैं यह क्रिया सैकड़ों जगह दिखा चुका हूँ और कहीं मुझे रोका नहीं गया है। मैं जो भी करना चाहता हूँ वह सब करने के लिए मैं स्वतंत्र हूँ। मेरे गुरु की आज्ञा है कि मैं, योग की सब क्रियाएँ देश भर के लोगों को दिखाऊँ-आप मुझे रोकने वाले कौन होते हैं?'

'मजिस्ट्रेट साहब यह आज्ञा दे सकते हैं. " यह कहते हुए इन्सपेक्टर ने आर्डर का कागज सामने कर दिया।

'उसको या आपको इस तरह दूसरों के कामों में दखल देने का क्या अधिकार है?'

'यह सब मैं नहीं जानता। मैं मजिस्ट्रेट के हुक्म का पालन कर रहा हूँ। वह आपको पोटेशियम सायनाइड खाने और सीने पर इंजन चलाने के अलावा और सब क्रियाएँ करने की आज्ञा देते हैं। हमारे इस क्षेत्र से बाहर आप ये क्रियाएँ भी दिखा सकते हैं।'

'मैं इसी क्षण इस पापी नगर से बाहर चला जाऊँगा!" स्वामी ने क्रोध से पागल होते हुए कहा और उनका असिस्टेंट भी उनके ही साथ जाने लगा।

मैंने दौड़कर असिस्टेंट का हाथ पकड़ा और कहा, 'तुम इसे यहाँ तक लाये हो, अब इसे मैदान तक तो पहुँचा दो।" उसने अपना हाथ झटके से छुड़ा लिया और बोला, 'मेरे गुरु इतने नाराज हैं। अब तुम मुझसे कुछ भी करने के लिए कैसे कह सकते हो !'

वह चल पड़ा। मैंने कहा, 'तुम इसे गुरु की छाती के अलावा और कहीं नहीं चला सकते।'

अब मैंने इंजन को उसके भाग्य पर छोड़कर दो-एक दिन में गाँव चले जाने की योजना बनायी। आखिरकार प्रकृति स्वयं मेरी मदद के लिए आगे आयी।

आप लोगों ने उस साल आये भयंकर भूकंप के बारे में जरूर सुना होगा जिसने उत्तर भारत के कई शहरों को तहस-नहस कर दिया था। हमारे कस्बे में भी उसने कुछ कर दिखाया था। रात को हम सब चारपाइयों से नीचे आ गिरे, दरवाजे और खिड़कियाँ जोर-जोर से बजने लगी थीं।

दूसरे दिन शहर छोड़ने से पहले मैंने सोचा कि एक बार फिर इंजन को देखता चलैं। मैं अपनी आँखों पर विश्वास ही नहीं कर सका। इंजन वहाँ से गायब था। मैंने चारों तरफ नजर डाली और शोर मचाया। लोग उसे ढूँढ़ने के लिए चारों तरफ गये। इंजन मैदान के एक बेकार कुएं में उलटा होकर पड़ा था।

मैंने ईश्वर से प्रार्थना की कि अब कोई और परेशानी पैदा न करे। लेकिन मकान का मालिक बाहर आया और यह घटना देखकर दुखी होने के बजाय हँसने लगा। मुझे देखकर बोला, 'तुमने मेरे लिए बड़ा काम किया है। इस कुएँ में शहर का सबसे गंदा पानी इकट्ठा था और म्युनिसपैलिटी हर हफ्ते मुझे नोटिस भेज रही थी कि इसे बंद कराओ। इसमें बहुत खर्चा आता जिससे मैं डर रहा था। तुम्हारे इंजन ने डाट की तरह कुआँ बंद कर दिया है। इसे यूँ ही रहने दो।'

'लेकिन, लेकिन...'

'लेकिन-वेकिन कुछ नहीं। मैं तुम्हारे खिलाफ सब शिकायतें वापस ले लूँगा और टूटी दीवाल भी खुद बनवा लूँगा।'

'लेकिन यह तो काफी नहीं है, 'मैंने उसे वे सब खर्चे भी गिना दिये जो इंजन के कारण हुए थे। उसने वह सब भी भरने का वादा किया।

कुछ महीने बाद जब मैं फिर वहाँ से गुजरा, उस कुएं पर मैंने नजर डाली। उसका मुँह सीमेंट की तरह बंद था। मैंने संतोष की साँस ली और आगे बढ़ गया।

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