बादशाह के हुक्म : चीनी लोक-कथा

Emperor’s Commands : Chinese Folktale

चू यूआन चाँग बेचारा अपने जन्म के बाद से ही लावारिस हो गया था इसलिये उसके एक दूर के चाचा को उसको अपने पास रखना पड़ा।

अब हुआ यह कि जब वह दो साल का हुआ तो उसको सिर में खाल की बीमारी112 लग गयी। उसको कई डाक्टरों को दिखाया गया पर कोई भी उसकी उस बीमारी को ठीक नहीं कर सका। इसलिये सब लोग उसको, यहाँ तक कि उसका अपना चाचा भी, फूले सिर वाला चाँग कह कर बुलाते थे। लोगों में वह बहुत खाने वाला और आलसी के नाम से मशहूर था।

एक दोपहर को जब उसका चाचा मक्का बोने के लिये अपना खेत जोत रहा था तो चू यूआन चाँग को पास के मूँगफली के खेत में खेलने का मौका मिल गया। उन दिनों मूँगफलियाँ जमीन के नीचे नहीं बल्कि ऊपर उगा करती थीं। सो जब भी चू यूआन चाँग को भूख लगती उसको बस ज़रा सा नीचे झुकना होता था और फिर वह जितनी चाहे उतनी मूँगफलियाँ खा सकता था।

इस तरह से वह बिना किसी चिन्ता के आराम से उस खेत में खेलता रहता, मूँगफलियाँ खाता रहता, पेड़ों पर चढ़ता रहता और जो खरगोश उस मूँगफली के खेत में उन्हें खाने आते उनको भगाता रहता।

एक दिन बहुत सारी मूँगफली खा कर और बहुत सारी भाग दौड़ कर के उसको कुछ आलस आ गया तो वह वहीं मूँगफली के खेत के बीच में ही मूँगफली की चुभने वाली डंडियों पर ही सो गया।

वह एक घंटे तक तो बहुत ज़ोर से सोता रहा पर फिर मूँगफली की वे नुकीली डंडियाँ उसके सिर में इतने ज़ोर से चुभीं कि फिर वहाँ उससे सोया नहीं गया।

वह खड़ा हो गया और उसने मूँगफली की डालियों पर पैर रख कर उनको जमीन पर से हटाया और बोला — “अरी ओ बेवकूफ मूँगफलियों, मुझे तुमसे नफरत है। तुम मुझे सोने भी नहीं देतीं। तुम बजाय जमीन के ऊपर उगने के जमीन के नीचे क्यों नहीं उगती हो?”

उसके आश्चर्य का ठिकाना न रहा जब उसने देखा कि उसके यह कहते ही वे मूँगफलियाँ जमीन के इधर उधर जाने लगीं। पहले तो वे एक दूसरे के ऊपर चढ़ कर और अपनी डंडियों को एक दूसरे में उलझा कर धीरे धीरे जा रही थीं।

पर फिर उनमें ताकत आ गयी और वे सामने से गायब हो कर बहुत तेज़ी से जमीन के नीचे जाने लगीं। इससे वह खेत ऐसा लगने लगा जैसे उसे अभी अभी जोता गया हो।

हालाँकि फूले हुए सिर वाले चाँग को पहले तो यह पता नहीं चला कि मूँगफली आगे से भी जमीन के नीचे ही उगेगी पर बाद में उसको लगा कि उस दिन के बाद से तो हर मूँगफली जमीन के नीचे ही उगने लगी।

पहले तो सारे किसान भी यह देख कर आश्चर्य में पड़ गये कि उनकी मूँगफली तो जमीन के ऊपर थीं कहाँ गयीं। फिर उनको पता चला कि वे तो सब जमीन के नीचे पहुँच गयीं।

और और बाद में तो यह भी पता चला कि अब तो वे जमीन के ऊपर उग ही नहीं रही थीं वे तो जमीन के नीचे ही उग रही थीं। उनकी समझ में तो नहीं आया कि ऐसा कैसे हुआ पर वे क्या करते। उन्होंने इस बदलाव को भगवान की इच्छा समझ कर स्वीकार कर लिया।

किसी को यह पता नहीं था कि यह सब चू यूआन चाँग के कहने से हुआ था। इसलिये किसी ने भी उसके शब्दों की ताकत को नहीं जाना, यहाँ तक कि उस लड़के ने खुद भी नहीं।

मूँगफली के खेत में हुई इस आश्चर्यजनक घटना के कई महीने बाद की बात है कि चू यूआन चाँग को उसके चाचा ने उसको अपनी मुर्गियों की देखभाल के लिये रख दिया।

सो वह उन मुर्गियों को नदी पर ले जाता। वहाँ वह सारा दिन नदी के किनारे लेटा रहता और शाम को उनको घर वापस ले आता।

एक दिन जब वह रोज की तरह उनको नदी के किनारे ले कर गया तो उस दिन दोपहर को बहुत गर्म था। चू यूआन चाँग ने अपने कपड़े निकाल दिये और नदी के ठंडे पानी में तैरने के लिये कूद पड़ा।

अपने नीचे उसने जामुनी रंग की एक मछली देखी जो बहुत धीरे धीरे नदी की तली के साथ साथ तैर रही थी। बिजली की सी तेजी से चू यूआन चाँग ने नीचे की तरफ एक डुबकी लगायी और अपने नंगे हाथों से ही उस मछली को पकड़ लिया।

मछली उस जवान लड़के की मजबूत मुठ्ठी की पकड़ से छूटने की कोशिश में पानी से बाहर आते ही मर गयी।

उस लड़के ने पेड़ की कुछ डंडियाँ तोड़ीं, उनसे एक छोटी सी आग जलायी और उस पर उस मछली को भूना। जब वह भुन गयी तो वह एक मोटे से पेड़ के तने के सहारे बैठ गया और उसे अपने नंगे हाथों से ही खाने लगा। वह उसको स्वाद ले ले कर बहुत धीरे धीरे खा रहा था।

अभी उसने आधी ही मछली खायी थी कि उसने अपने चाचा के आने की आवाज सुनी तो उसने बड़े दुख के साथ उस मछली को वापस पानी में यह कहते हुए फेंक दिया — “ओ मेरी स्वाददार मछली, तू फिर से ज़िन्दा हो जा ताकि एक दिन मैं तुझे फिर से खा सकूँ।”

वह आधी खायी हुई मछली उसका हुक्म मान कर फिर से ज़िन्दा हो गयी। उसका आधा बिना खाया हुआ शरीर तो जामुनी रंग का था और दूसरा आधा शरीर जो खा लिया गया था वह सफेद रंग का था।

चाँग ने उस मछली की एक आँख उसके सिर के दूसरी तरफ फेंक दी थी सो जब वह मछली ज़िन्दा हुई तो उसकी दोनों आँखें उसके जामुनी रंग के शरीर की तरफ आ गयी थीं।

इस तरह वह मछली ज़िन्दा रही और अंडे भी देती रही। जिन लोगों ने उस मछली को पकड़ा वे उसको सोल नाम से पुकारते रहे।

कई हफ्ते बाद एक दिन जब चाँग अपने चाचा की मुर्गियों की देखभाल कर रहा था तो कुछ दोस्त लोग वहाँ पतझड़ के चाँद का त्यौहार मनाने आये।

उनके पास खाने के लिये चावल तो था पर माँस नहीं था सो उन्होंने चाँग से कहा कि वह उनके लिये एक मुर्गा मार दे और उसको खुली आग पर पका दे।

चाँग ने बड़े उत्साह से कहा कि हाँ हाँ वह मार देगा इसमें उसे कोई परेशानी नहीं होगी बल्कि वह तो उनके लिये सारी मुर्गियाँ भी मार देगा और वे उनको तब तक खा सकते हैं जब तक वे वहाँ से हिल भी न सकें।

चाँग ने सारी मुर्गियों की गर्दनें तोड़ीं और उन दोस्तों ने उनके हड्डी के ढाँचे निकाले। जबकि चाँग ने आग जलायी और उनको उसमें भूनने के लिये तैयार किया।

सब लड़के सारी दोपहार खाते रहे, गाते रहे, नाचते रहे। शाम को वे सब लोग चाँग को वहीं पहाड़ी के पास अकेला छोड़ कर अपने अपने घर चले गये।

उनके जाने के बाद चाँग को लगा कि यह उसने क्या कर दिया। तब उसने भगवान की कसम खायी कि वह तब तक घर नहीं लौटेगा जब तक जितनी मुर्गियाँ उसने मारी हैं वे सब वह इकठ्ठी नहीं कर लेगा। इस काम को करने में चाहे उसको कितनी भी देर क्यों न लग जाये।

एक बार फिर भगवान ने उसके ऊपर मेहरबानी की और एक सफेद हंसों का झुंड उसके सिर पर उड़ता हुआ आ गया। चाँग ने उनको बुला लिया — “हंसों हंसों, तुम लोग मेरे पास नीचे आ जाओ। मैं तुम्हारे सरदार को हंसों का राजा बना दूँगा।”

आश्चर्य, सब हंसों ने अपनी अपनी गर्दनें नीची कीं और धीरे धीरे नीचे उतर कर चाँग के पैरों के पास आ कर बैठ गये। चाँग खुशी खुशी उन सबको अपने घर ले गया और रात भर के लिये उनको मुर्गियों के लकड़ी के बाड़े में बन्द कर दिया।

रोज की तरह चाँग ने अपना रात का खाना खाया और लकड़ी के लठ्ठों की आग के सामने आराम से सो गया। उसका चाचा अपने खेत में यह देखने के लिये कि वहाँ सब कुछ ठीक है खेत पर चला गया।

खेत पर पहुँच कर उसने चाँग को खेत पर आने के लिये उठाया और बोला — “यह सब तुम क्या बेवकूफी का खेल खेल रहे हो? ये मेरी सारी मुर्गियाँ सफेद क्यों हैं? और ज़रा इनकी गर्दन तो देखो ये पहले के मुकाबले में दोगुनी लम्बी कैसे हो गयीं?”

चाँग ने भोलेपन से अपने चाचा की तरफ देखा और बोला — “इस सुबह जब मैं मुर्गियों को पहाड़ी के पास ले गया था तो घाटी में और पहाड़ी के ऊपर बहुत ज़ोर की दक्षिणी हवा चली और ओले पड़ने लगे। उस हवा ने उन मुर्गियों की गर्दनें लम्बी कर दीं और उन ओलों ने उनके पंख सफेद कर दिये।”

उसके चाचा ने उसकी इस सफाई के ऊपर कुछ देर विचार किया पर उसको भी इस बदलाव की इससे ज़्यादा अच्छी और कोई वजह नजर नहीं आयी इसलिये उसने चाँग को फिर से सोने के लिये भेज दिया।

अगले दिन चाँग के चाचा ने उसको सुबह सुबह बुलाया पर चाँग एक दो बार करवट बदल कर फिर सो गया। उसके चाचा ने उसको उस सुबह दो बार बुलाया लेकिन दोनों बार चाँग उसके सामने जाने के लिये टाल गया।

दोपहर को चाँग का चाचा उसके सोने वाले कमरे में गया और उसकी कमीज खींच कर उसको उठाया। उसके बिस्तर से उसने उसे बाहर खींच लिया और उसके सूजे हुए सिर पर ज़ोर से एक चाँटा मारा।

चाँग चिल्लाया — “छोड़िये न मुझे। आज मुर्गियों की उड़ान का दिन है और अगर आपने दरवाजा बन्द कर के नहीं रखा तो वे सब उड़ जायेंगी। मैं अपना गर्म बिस्तर छोड़ कर वहाँ सारा दिन यह देखने के लिये उनके दरवाजे के सामने खड़ा नहीं रह सकता कि वे कहीं उड़ न जायें।”

उसका चाचा भी चिल्लाया — “क्या तू मुझे बिल्कुल ही बेवकूफ समझता है। मैं सारी ज़िन्दगी अपनी इन मुर्गियों की हिफाजत करता रहा हूँ और मैंने कभी ऐसा बेकार का बहाना नहीं सुना जैसा कि तू मुझे बता रहा है।

चल उठ, इससे पहले कि मैं तुझे पैर मार कर उठाऊँ तू अभी अभी बिस्तर से बाहर निकल और इन मुर्गियों को पहाड़ के पास ले कर जा।”

चाँग कुछ भुनभुनाता हुआ उठा, कपड़े पहने, खेत में गया और मुर्गियों के बाड़े का दरवाजा खोला। वहाँ तो दरवाजा खोलते ही सारे हंसों में वहाँ से बच कर भाग निकलने की होड़ लग गयी। जैसे ही वे सारे हंस दरवाजे से बाहर निकले वे एक अजीब से ढंग से जमीन पर बिखर गये। वे डरते हुए हवा में उड़े और फिर हमेशा के लिये वहाँ से पहाड़ के ऊपर और मकान के पीछे उड़ कर गायब हो गये।

यह चाँग और उसके चाचा के बीच की आखिरी कड़ी थी। इसके बाद चाचा ने चाँग को घर से बाहर निकाल दिया और उससे कहा कि अब वह वहाँ कभी वापस न आये।

उस रात चाँग जंगल में एक फटा सूती कम्बल ओढ़ कर सूखी पत्तियों पर सोया। अब उसके पास बस वही एक कम्बल था और दूसरी कोई चीज़ नहीं थी।

महीनों तक चाँग देश में इधर उधर भटकता रहा। वह रास्ते में मिलने वाले दयावान किसानों और गाँव वालों से भीख माँग माँग कर खाता रहा। उसने इस दान पर रहना ही ठीक समझा। काम उसने तभी किया जब कि वह भूखा मर रहा होता था।

जबसे वह अपने चाचा के घर से निकाला गया था तबसे उसके शब्दों की ताकत चली गयी थी और हालाँकि वह काम करने के लिये बहुत सुस्त था पर उसको अपने दिल में पता था कि उसकी अच्छी किस्मत उसका इन्तजार कर रही थी। बस उसको उस समय का इन्तजार था।

चाँग को अक्सर ही अपनी यात्रा के बीच सरकार के सिपाही और डाकू लड़ते मिलते पर वह बजाय उनकी लड़ाई में पड़ने के कहीं अनाजघर में या जंगल में या गड्ढे में छिप जाता।

यूआन साम्राज्य भी खत्म होने को आ रहा था और देश में बलवा मचने की उम्मीद बहुत ज़्यादा थी। अफवाह तो यहाँ तक थी कि नया बादशाह, आसमान का बेटा, तो पहले से ही पैदा हो चुका था और देश की बागडोर सँभालने के लिये बस ठीक समय का इन्तजार कर रहा था।

उसी समय एक ज्योतिषी लियू पो वैन ने यह जिम्मेदारी उठायी कि वह उस आसमान के बेटे को ढूँढेगा। उसने जंगल के बहुत सारे ऐसे लोगों को लिया जो उस आसमान के बेटे को ढूँढने और उसको नया बादशाह बनाने के लिये जरूरत पड़े तो मर मिटने के लिये भी तैयार थे।

एक दिन ये सब लोग एक लकड़ी के पुल पर आये और एक सूजे हुए सिर वाले नौजवान को एक नाव में पड़े सोते देखा। उसके सिर के ऊपर एक छतरी लगी हुई थी जो उसने उस समय बह रही तेज हवा से अपने सिर को हवा से बचाने के लिये लगा रखी थी। जंगल के लोग तो उसको देख कर बहुत आश्चर्य में पड़ गये क्योंकि जब वह लड़का लेटा हुआ था तो उसके लेटने के ढंग से उसकी शक्ल उस चीनी अक्षर से बहुत मिल रही थी जिसका मतलब होता है “बादशाह”।

वे लोग उस पुल पर से ही उस लड़के को जगाने के लिये चिल्लाये पर वह तो बस ऊँ आँ कर के उन सबसे पीठ फेर कर अपनी छतरी को और नीची कर के लेट गया।

पर अब वह कुछ इस तरह लेटा हुआ था कि इससे वह एक ऐसा चीनी अक्षर दिखायी दे रहा था जिसका मतलब होता है “बेटा”।

वे जंगली लोग तो अपनी खुशकिस्मती पर विश्वास ही नहीं कर पाये और तुरन्त ही पुल से नीचे उस लड़के के पास दौड़े गये ताकि वह कहीं भाग न जाये।

लियू पो वैन ने कहा कि यह चाँग ही आसमान का बेटा है सो वे जंगली लोग उस सूजे हुए सिर वाले लड़के को नये साम्राज्य के पहले बादशाह की हैसियत से गाँवों और शहरों में से घुमाते हुए ले चले।

हर एक ने, जिसने भी ज्योतिषी की भविष्यवाणी सुनी, उसी ने उस लड़के की अक्लमन्दी को माना और उसको होने वाला बादशाह समझ कर उसके सामने सिर झुकाया।

इस तरह लियू पो वैन की भविष्यवाणी सही निकली। वह सूजे हुए सिर वाला लड़का चू यूआन चाँग मिंग साम्राज्य का पहला बादशाह बना।

Chu Yuan Chang was the first Emperor of the Ming Dynasty in 1368 AD

(साभार सुषमा गुप्ता जी, जिन्होंने लोक-कथाओं पर उल्लेखनीय काम किया है.)

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