एल्व्ज़ और जूते बनाने वाला : स्वीडिश लोक-कथा
Elves and the Shoemaker : Folktale Sweden
बहुत समय पहले लोगों के जूते केवल जूता बनाने वालों से ही आते थे। जूता बनाने वाले लोगों के पैरों का नाप कागज पर खींच लेते थे और फिर उसी डिजाइन का चमड़ा काटते थे। फिर उन चमड़े के टुकड़ों को सँभाल कर सिल कर जूता बना देते थे।
जूता बनाना बहुत मेहनत का काम था और कभी कभी उनको जूते बनाने का काफी पैसा भी नहीं मिल पाता था।
सो स्वीडन देश में एक बार एक जूता बनाने वाला अपनी पत्नी के साथ रहता था। वह एक बहुत ही छोटी सी दूकान में काम करता था और उसी छोटी सी दूकान में रहता भी था। यह दूकान एक बहुत छोटा सा कमरा थी जिसका दरवाजा शहर की बड़ी सड़क पर खुलता था।
बहुत पहले कभी वह दूकान खरीदारों से भरी रहती थी पर काफी दिनों से काम बहुत कम हो गया था क्योंकि उसके खरीदार भी कम होते जा रहे थे।
अब खरीदार नये जूते खरीदने के लिये तो कम और कम होते ही जा रहे थे पर वे अब अपने पुराने जूते ठीक कराने के लिये भी नहीं आते थे।
सो समय गुजरते गुजरते वह जूता बनाने वाला गरीब होता चला गया। जल्दी ही वह इतना गरीब हो गया कि अब उसकी दूकान में केवल एक जोड़ी जूता बनाने का ही चमड़ा रह गया था। और क्योंकि हाल फिलहाल में कोई आदमी या औरत उसके पास जूता बनवाने नहीं आया था सो उसको अब यह अन्दाज भी नहीं था कि वह किस नाप का जूता बनाये।
पर फिर भी एक दिन अन्दाज से उसने एक जोड़ी जूते का चमड़ा काटा और उसको फैला कर मेज पर रख दिया। वह उसको सुबह को सिल कर उसका जूता बनाने वाला था।
इसके बाद उसने और उसकी पत्नी दोनों ने अपनी रात की प्रार्थना की और सोने चले गये।
अगली सुबह जब वे सो कर उठे तो जूता बनाने वाले ने उन चमड़े के टुकड़ों की तरफ देखा जो उसने रात को काट कर रखे थे पर दोनों पति पत्नी तो यह देख कर बड़े आश्चर्य में पड़ गये कि वहाँ तो चमड़े के टुकड़ों की बजाय एक जोड़ी जूता ही बना रखा था।
वे लोग यह सोच ही रहे थे कि वह जूते की जोड़ी कहाँ से आयी, किसने बनायी, कि एक खरीदार उस दूकान में आया। आश्चर्य की बात यह कि वह जूते की जोड़ी उस खरीदार के पैरों में बिल्कुल ठीक आ गयी। उसने वे जूते खरीद लिये।
वह जूते भी इतनी अच्छी तरह से बने हुए थे कि उस खरीदार ने उस जूता बनाने वाले को उसके बहुत अच्छे पैसे दिये।
और वह पैसे भी इतने सारे थे कि उस जूता बनाने वाले ने उन पैसों से खाना भी खरीद लिया और दो जोड़ी जूते बनाने के लायक खाल भी खरीद ली।
उसने उस खाल को भी काटा और उन टुकड़ों को सुबह जूता बनाने के लिये उसी मेज पर बिछा कर रख दिया। फिर उन्होंने अपनी रात की प्रार्थना की और सोने चले गये।
अगली सुबह जब वे उठे तो दोनों पति पत्नी ने फिर उन चमड़े के टुकड़ों की तरफ देखा जो उन्होंने रात को काट कर रखे थे पर वे दोनों यह देख कर फिर बड़े आश्चर्य में पड़ गये कि वहाँ तो चमड़े के टुकड़ों की बजाय फिर एक जोड़ी जूता बना रखा था।
वे फिर यह सोच रहे थे कि वह जूता कहाँ से आया या फिर किसने बनाया कि एक खरीदार दूकान में घुसा और फिर आश्चर्य कि वे जूते उस खरीदार के पैरों में बिल्कुल ठीक आ गये और वे जूते इतने अच्छे बने थे कि उस खरीदार ने उनको बड़े अच्छे पैसे दे कर खरीद भी लिया।
वे पैसे इतने ज़्यादा थे कि उसने उन पैसों से खाना भी खरीद लिया और दो जोड़ी जूते बनाने के लिये और चमड़ा भी खरीद लिया। और फिर उस दिन भी उन पति पत्नी ने वैसा ही किया जैसा कि वे दो रातों से करते आ रहे थे।
उन्होंने मेज पर दो जोड़ी जूते का चमड़ा काट कर अगले दिन सिलने के लिये बिछा दिया और अपनी रात की प्रार्थना करने के बाद सोने चले गये।
अगले दिन जब वे दोनों उठे तो उनको यह देख कर फिर आश्चर्य हुआ कि अबकी बार वहाँ चमड़े के टुकड़ों की बजाय दो जोड़ी जूते बने रखे थे। वे दोनों जोड़ी जूते बहुत ही बढ़िया बने हुए थे।
जब वे उन जूतों को देख रहे थे कि दो खरीदार दूकान में घुसे और उन्होंने उनको अच्छे पैसे दे कर खरीद लिया। अबकी बार वे लोग खाना खरीदने के साथ साथ चार जोड़ी जूते बनाने के लिये चमड़ा भी खरीद सके।
इस रात भी उस जूता बनाने वाले ने वैसा ही किया और अगली सुबह चार जोड़ी जूते बने रखे पाये। इस बार उनको ये जूते बेच कर इतना पैसा मिल गया कि वह कुछ पैसा दान में भी दे सके।
इन चार जोड़ी जूतों को बेचने के बाद अब उनके पास आठ जोड़ी जूते बनाने के लायक चमड़ा खरीदने के पैसे और आ गये। धीरे धीरे उनके पास सोलह, फिर बत्तीस जोड़ी जूते बनाने के लिये चमड़ा खरीदने को लायक पैसे हो गये।
यह सब इसी तरीके से बढ़ता रहा और वे लोग अमीर होते चले गये।
एक रात जूता बनाने वाले की पत्नी ने कहा — “बजाय सोने जाने के क्या हम आज रात को जाग कर यह नहीं देख सकते कि यह कौन है जो हमारे लिये जूते बना कर जाता है और कौन हमारी इतनी सहायता कर रहा है।”
दोनों ने सोचा कि यह एक अच्छा विचार था। वे सोचने लगे कि देखा जाये कि वह आदमी कैसा होगा जो हमको जूता बनाने में सहायता करता रहा है। सो रात को वे लोग यह देखने के लिये कि उनके वे जूते कौन बनाता था एक आलमारी के पीछे छिप गये।
पर जो कुछ उन दोनों पति पत्नी ने देखा उसको देख कर तो उनको बहुत आश्चर्य हुआ। जैसे ही आधी रात हुई उन्होंने किसी के कमरे में आने की हलकी सी आवाज सुनी।
उसके कुछ पल बाद ही उन्होंने चमड़े में उस जगह छेद करने की कील पर हथौड़ा मारने की आवाज सुनी जहाँ से चमड़े को जोड़ने के लिये सिला जाता है। फिर उन्होंने चमड़ा सिलने की आवाज सुनी जैसे कोई धागा छेदों में से डाल कर निकाल रहा हो।
अब दोनों पति पत्नी ने आलमारी के पीछे से झाँक कर देखा तो वहाँ दो छोटे छोटे एल्व्ज़ (Elves is plural of Elf) थे। पहले तो वे केवल उनके सिर का ऊपरी हिस्सा ही देख पाये। उनके बाल सुनहरी और सिल्क जैसे चिकने दिखायी दे रहे थे।
पति पत्नी दोनों ने एक दूसरे की तरफ देखा जैसे पूछ रहे हों
“क्या हम लोग कुछ और ऊपर उठ कर देखें?”
दोनों ने हाँ में सिर हिलाया और दोनों कुछ और ऊपर उठे। अब उन्होंने उनका चेहरा देखा। वे दोनों ही अपने सामने पड़ा काम करने में लगे हुए थे।
उनके नुकीले कान थे। बड़ी बड़ी सुन्दर आँखें थीं। उनकी आँखें चमकीली और खुश थीं। उनकी नाक बटन जैसी थी और वह ताजा कटी हुई खाल की खुशबू से खुशी से बार बार सिकुड़ जाती थी।
वे काम करने वाली बैन्च पर बैठे हुए थे और सामने पड़े चमड़े के टुकड़ों को बहुत जल्दी जल्दी सिल रहे थे। उन्होंने वे टुकड़े सिले फिर उनको हथौड़े से पीटा। सारी रात वे यही करते रहे।
उनके हाथ सिलाई करते समय इतनी जल्दी जल्दी चल रहे थे कि उन दोनों पति पत्नी की आँखें उनके हाथ चलते ठीक से देख भी नहीं पा रही थीं।
इस सबको देखते हुए उन दोनों से चुप नहीं बैठा जा रहा था। दोनों ने एक दूसरे की तरफ देखा और और आँखों ही आँखों में बोला कि उनको यकीन नहीं हो रहा कि यह सब क्या हो रहा था।
सुबह की पहली किरन से पहले ही उन्होंने अपना काम खत्म कर लिया और अब वे वहाँ से चलने की तैयारी में थे। वे मेज से नीचे कूदे, उन्होंने जूता बनाने वाले की तरफ पीठ की और जूतों को दूकान के सामने वाली आलमारी में सजा दिया।
उनके जाने के बाद पहली बार उन दोनों पति पत्नी की यह हिम्मत हुई कि वे उठ कर खड़े हो कर यह देखें कि वे एल्व्ज़ देखने में लगते कैसे हैं। जब उन्होंने देखा तो उन्होंने उनको पीछे से देखा। तो वे तो देख कर हैरान रह गये। वे तो नंगे थे।
उन्होंने उन दोनों के लिये कितने सारे जूते बनाये पर उन्होंने अपने लिये एक भी नहीं रखा। सो न केवल उनके पास कपड़े ही थे बल्कि उनके पास तो जूते भी नहीं थे।
जैसे ही खिड़की से रोशनी की पहली किरन आयी वे वहाँ से गायब हो चुके थे। रात भर की टप टप की अवाज के बाद अब दूकान में बहुत शान्ति थी। उनकी दूकान की सामने वाली आलमारी में दर्जनों जूते सजे रखे थे।
आलमारी के पीछे दोनों पति पत्नी अभी भी फुसफुसा कर ही बात कर रहे थे क्योंकि वे अभी भी ज़ोर से बात करने में डर रहे थे क्योंकि उनको लग रहा था कि अगर वे ज़ोर से बोले तो जो कुछ उन्होंने पाया है वे वह सब खो देंगे।
आखिरकार वे उठ खड़े हुए। सारी रात उस आलमारी के पीछे हाथों और घुटनों पर बैठे बैठे उनकी बूढ़ी हड्डियाँ दर्द करने लगीं थी।
जूते बनाने वाले की पत्नी बोली — “ओह, ज़रा देखो तो, ये छोटे नंगे आदमी हमारे ऊपर कितने मेहरबान हैं। जब ये इधर उधर जाते होंगे तो इन बेचारों को कितनी ठंड लगती होगी।
मुझे इन लोगों के लिये कुछ जाँघिये, कुछ कमीजें, कुछ पैन्टें और कुछ मोजे बनाने चाहिये। और तुमको भी इनके लिये जूते का एक एक जोड़ा बनाना चाहिये।”
पति ने अपनी पत्नी के इस विचार को बहुत पसन्द किया। इसी लिये तो उसने उससे शादी की थी क्योंकि वह बहुत चतुर थी और उसके विचार हमेशा अच्छे होते थे।
शाम तक उसकी पत्नी ने दोनों एल्व्ज़ के लिये कपड़े बना कर तैयार कर दिये जिनमें एक कोट और एक नुकीला टोप भी शामिल था।
जूते बनाने वाले ने उनके लिये दो जोड़ी जूते भी बना कर तैयार कर दिये। जूता बनाने वाले ने इन जूतों को बनाने में अपनी सारी होशियारी लगा दी थी। दोनों ने अपनी अपनी चीज़ें एक साथ रख दी।
आज के दिन उन लोगों ने वहाँ जूते बनाने के लिये कोई चमड़ा नहीं छोड़ा। पर उन्होंने वहाँ उन कपड़ों के पास रोशनी के लिये एक मोमबत्ती जला कर रख दी।
उसके बाद वह जूते बनाने वाला और उसकी पत्नी दोनों उसी आलमारी के पीछे छिप कर बैठ गये। जैसे ही आधी रात हुई वे एल्व्ज़ वहाँ दरवाजे से अपना काम करने के लिये फिर आये पर आज तो वहाँ कोई चमड़ा नहीं रखा था।
आज तो वहाँ केवल दो जोड़ी कपड़े ही कपड़े रखे थे बिल्कुल उन्हीं के साइज़ के, क्योंकि जूता बनाने वाले की पत्नी साइज़ भाँपने में बहुत होशियार थी।
दोनों एल्व्ज़ के चेहरे पर एक लम्बी सी मुस्कुराहट दौड़ गयी। उन्होंने तुरन्त ही वे कपड़े पहन लिये और खुशी से गाने लगे। वे दूसरों की सहायता तो करते थे पर किसी से अपने काम के बदले में कुछ माँगने में विश्वास नहीं करते थे।
पर एक भेंट जो उनको बिना माँगे मिली थी वह तो सबसे अच्छी भेंट थी। गाते गाते वे फिर नाचने भी लगे। कुछ मिनट के बाद वे एक खास तरीके का नाच नाचने लगे।
वे काम करने की मेज के ऊपर नाच रहे थे, उसके चारों तरफ नाच रहे थे। कभी वे पट पट कर के नाचते तो कभी घूम घूम कर। वे सारे समय हँसते ही रहे। कभी वे धन्यवाद देने के लिये अपनी आँखें भी मिचकाते। उसके बाद वे चले गये।
और उसके बाद उन पति पत्नी ने फिर कभी उन ऐल्व्ज़ को नहीं देखा। अब उनके पास रहने के लिये काफी पैसा था। उनको काम करने की भी कोई जरूरत नहीं थी पर क्योंकि वे काम से प्यार करते थे इसलिये वे काम करते थे।
वे एल्व्ज़ की सहायता को कभी भूले नहीं और इसी लिये वे दूसरों की भी सहायता करते रहे।
(साभार सुषमा गुप्ता जी, जिन्होंने लोक-कथाओं पर उल्लेखनीय काम किया है)