एक विधवा और उसका बेटा : असमिया लोक-कथा

Ek Vidhwa Aur Uska Beta : Lok-Katha (Assam)

बहुत दिन पहले की बात है कि एक विधवा स्त्री अपने एकलौते बेटे के साथ रहती थी। एक दिन वह बेटा एक नाले की ओर गया और वहाँ से एक मछली पकड़ लाया। घर आ कर उसने वह मछली पकाने के लिये माँ को दे दी।

उस मछली को देख कर माँ बहुत खुश हुई और तुरन्त ही उसने उसको एक बड़े बरतन में पानी भर कर उबालने के लिये आग पर रख दिया। जब पानी में उबाल आया तो वह मछली पानी में इधर उधर नाचने लगी और उसे ऐसा लगा जैसे उस पानी में एक नहीं कई मछलियाँ हों।

उस स्त्री ने देखा तो बोली — “इनमें से एक मेरी है और एक मेरे बेटे की, एक मेरी है और एक मेरे बेटे की, एक मेरी है और एक मेरे बेटे की। इस तरह हम लोग पाँच पाँच मछलियाँ खायेंगे।” इतना कह कर उसने बरतन में से एक मछली निकाली और खा ली। खाने के बाद उसने बरतन में झाँका तो यह देख कर वह बहुत दुखी हुई कि उसमें तो अब एक भी मछली नहीं थी।

उसी समय उसका बेटा घर आ गया और माँ से बोला — “माँ, बहुत ज़ोर से भूख लगी है आओ खाना खा लें।”

माँ खाना तो ले आयी पर बेटे को उसमें वह मछली कहीं दिखायी नहीं दी जो वह पकड़ कर लाया था सो उसने माँ से पूछा — “माँ, उस मछली का क्या हुआ जो मैं ले कर आया था?”

माँ ने उसे बताया कि वह तो उसने खा ली। यह सुन कर बेटा बहुत दुखी हुआ कि अब वह खाने के साथ माँस नहीं खा सकेगा। उसकी माँ भी बहुत दुखी थी। कुछ ही देर में उसको एक तरकीब सूझी। वह उठी, उसने एक लाल रंग का बीज लिया और उसको मोम से अपने पिछवाड़े पर चिपका कर एक नदी की ओर चल दी जहाँ जंगली जानवर पानी पीने आया करते थे। उस नदी पर पहँुच कर वह नीचे झुक कर पानी पीने लगी।

तभी एक हिरन वहाँ पानी पीने आया पर वह उस लाल रंग के बीज को देख कर डर के मारे भाग गया।

रास्ते में उसको एक बारहसिंगा मिला तो उसने उसको बताया कि आज नदी पर उसने क्या देखा पर बारहसिंगे को हिरन की बातों पर विश्वास नहीं हुआ सो हिरन उसको वह दिखाने के लिये नदी की तरफ ले गया।

अब लाल बीज तो वहीं का वहीं था सो उसको देख कर वह बारहसिंगा भी डर गया और वे दोनों ही वहाँ से भाग लिये। जल्दी ही दूसरे जानवर – जंगली सूअर, भालू, चीते, बन्दर, हाथी आदि भी वहाँ पानी पीने आये पर वे सब भी उस लाल बीज को देख कर डर गये और भाग गये।

जब वे लाल बीज के डर की वजह से पानी नहीं पी सके तो उन सबने मिल कर एक मीटिंग की कि उस लाल बीज का क्या करना चाहिये जो उस स्त्री ने अपने पिछवाड़े पर चिपका रखा था। तय यह हुआ कि बन्दर वहाँ जाये और उस लाल बीज को उस स्त्री के पिछवाड़े से हटाये।

सो बन्दर धीरे धीरे उस स्त्री के पीछे गया और जैसे ही उसने उस लाल बीज को उसके पिछवाड़े से हटाने की कोशिश की कि उसका हाथ उसके पिछवाड़े से चिपक गया। वह डर के मारे चिल्ला पड़ा।

उसकी चीख सुन कर दूसरे जानवर भी डर गये और इधर उधर भागने लगे।

इतने में एक हाथी उसी तरफ आ रहा था। सबको भागता हुआ देख कर वह भी दौड़ पड़ा। कई जानवर इस भागा दौड़ी में मारे गये और कई जानवर उस हाथी के पैरों के नीचे आ कर मर गये।

उधर भागते समय हाथी का पैर एक बडे, पेड़ की जड़ में फँस गया जिससे उसकी टाँग टूट गयी और वह भी गिर कर मर गया। वह स्त्री घर गयी और अपने पड़ोसियों को बुला लायी। सब लोगों ने मिल कर मरे हुए जानवरों के माँस की खूब दावत उड़ायी। वह सब माँस इतना ज़्यादा था कि आदमियों ने भी खूब खाया और जानवरों ने भी खूब खाया पर फिर भी वह बच रहा। यह देख कर जानवरों ने यह विचार किया कि बाकी का बचा हुआ माँस सब जानवरों में बाँट दिया जाये। हाथी की टाँग उमर में सबसे बड़े जानवर को मिलेगी।

काफी सोच विचार के बाद यह पाया गया कि उन सब जानवरों में सबसे छोटा छंगबई चूहा उमर में सबसे बड़ा था सो हाथी की टाँग उसको दे दी गयी।

चूहे को हाथी की टाँग तो मिल गयी पर हाथी की टाँग के मुकाबले में तो वह चूहा बहुत ही छोटा था वह उसको ले कर कैसे जाता?

अब क्योंकि वह उसको अकेले उठा कर नहीं ले जा सकता था सो उसने अपने बहिन के बेटे ज़बी8 को अपनी सहायता के लिये बुलाया।

लेकिन वह टाँग तो इतनी भारी थी कि वे दोनों मिल कर भी उसको नहीं उठा सके। बल्कि इस सब मेहनत में छंगबई के पेट में से हवा और निकल गयी – ऊँ ऊँ ऊँ। हवा निकलने की आवाज सुन कर उसका भतीजा ज़बी खूब हँसा, खूब हँसा।

ज़बी को हँसता देख कर छंगबई को इतना अधिक गुस्सा आया कि उसने उसके पिछवाड़े पर एक ज़ोर का हाथ मारा। बेचारा ज़बी गिरते गिरते बचा।

फिर उसने हाथी की टाँग के पास ही एक गड्ढा खोद कर अपना बिल बनाया और वहीं रहने का विचार किया। वह हाथी की टाँग बहुत दिनों तक खाता रहा।

कहते हैं कि छंगबई की हवा निकलने पर ज़बी इतना हँसा इतना हँसा कि उस हँसने से उसकी आँखें बहुत छोटी हो गयीं और उसका पिछवाड़ा भी उसके सिर के मुकाबले में बहुत छोटा हो गया था क्योंकि छंगबई ने उसको वहाँ बहुत ज़ोर से मारा था।

(सुषमा गुप्ता)

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