एक तिल और सात भाई : लोककथा (उत्तराखंड)
Ek Til Aur Saat Bhai : Lok-Katha (Uttarakhand)
किसी गॉंव में एक किसान रहता था । उसका नाम कमलू था । उसके सात बेटे थे । उसके सात बेटों के बीच गहरा प्रेम था । उसी गॅांव में हीरा किसान भी रहता था । उसके तीन बेटे थे । वे छोटी-छोटी बातों पर लड़ते रहते थे । हीरा उन्हें बहुत समझाता था कि भाइयों का आपस में लड़ना ठीक नहीं है । उन पर हीरा की बात का कोई प्रभाव नहीं पड़ा ।
एक दिन हीरा ने अपने तीनों बेटों से कहा ‘‘देखो! तुम्हारे गाँव में ही कमलू किसान के सात बेटे भी रहते हैं । वे आपस में कभी नहीं लड़ते हैं । उनसे सीखो’’ |
यह सुनकर उन तीनों का सिर शर्म से झुक गया । उन्होंने आपस में लड़ना छोड दिया ।
एक बार भंयकर सूखा पड़ गया । खेतों में कोई पैदावार नहीं हुई । कमलू के सात बेटे शहर नौकरी करने चले गए । उन्होंने जो भी धन कमाया उसे आपस में बांट दिया । वे सुखपूर्वक रहने लगे ।
एक दिन महर्षि नारद पृथ्वी का भ्रमण कर रहे थे । उन्होंने कमलू के सात बेटों के प्रेम की बातें सुनी । वे कुछ समय बाद स्वर्ग चले गए । स्वर्गलोक में देवताओं का किसी बात पर मनमुटाव हो गया । उन्होंने आपस में बातें करना भी बन्द कर दिया ।
नारद देवताओं से बोले, ‘‘आप लोग देवता होकर भी आपस में लड़ रहे हो । धरती में कमलू के सात बेटे आपस में कभी नहीं लड़ते । आप लोगों को उनसे सीखना चाहिए ।‘‘
सुनकर देवराज इन्द्र बोले, ‘‘हम उन सात भाइयों की परीक्षा लेंगे । ‘‘
इन्द्र महात्मा का रूप धारण कर कमलू के घर पहुंच गए । वह सबसे पहले कमलू के बडे बेटे के पास गए । इन्द्र ने कमलू के बडे बेटे को सौ स्वर्ण मुद्राएं देते हुए कहा ‘‘लो, यह मुद्राएं रख लो, इनसे तुम्हारा पूरा जीवन सुखपूर्वक गुजरेगा किन्तु एक शर्त है ।’’
‘कौन सी शर्त ?'
‘‘इन मुद्राओं को अपने किसी भाई को मत देना । ‘‘
‘‘मुझे नहीं चाहिए ऐसी स्वर्ण मुद्राएं जो मुझे मेरे भाइयों से अलग करे । ‘‘
देवराज इन्द्र एक-एक कर कमलू के सातों बेटों के पास गए । सातों बेटों ने स्वर्ण मुद्राएं इन्द्र को वापस लौटा दी ।
देवराज इन्द्र स्वर्गलोक वापस चले गए । उन्होंने सात भाइयों की एक परीक्षा और लेने की सोची ।
कमलू की तिल की खेती अच्छी होती थी । इस साल तिल में खूब फूल आए थे । तिल पकने पर उन्होने तिलठेनो (तिल की शाखाओं) से तिल झाड़े़ । उन्हें आश्चर्य हुआ । तिल के फलों में तिल थे ही नहीं । तिल झाड़ने और छांटने के बाद उनके हाथ एक ही तिल लगा ।
उन सात भाइयों ने वह एक तिल आपस में बांट दिया ।
यह देखकर इन्द्र प्रसन्न हो गए । उन्होंने सात भाइयों को वरदान दिया कि वर्षों बाद भी लोकमानस में उनका नाम बना रहेगा । सात भाइयों की भयात (भातृत्व) की बातें आज भी की जाती हैं ।
(साभार : डॉ. उमेश चमोला)