एक राजकुमारी की कहानी : कश्मीरी लोक-कथा
Ek Rajkumari Ki Kahani : Lok-Katha (Kashmir)
एक बार की बात है कि एक राजा अपने पड़ोसी राजा से लड़ाई में हार गया तो उसको अपना देश छोड़ कर भागना पड़ गया। वह जितनी तेज़ भाग सकता था भाग गया और उसने अपने शहर से करीब बारह मील दूर एक गाँव में जा कर शरण ली। वह इतनी जल्दी में था कि वह अपने साथ कोई पैसा भी नहीं ले जा सका। खुशकिस्मती से उसकी बहू राजकुमारी के पास ग्यारह लाल थे जिनमें से एक लाल उसने राजा को उस गाँव में पहुँचते ही दे दिया जहाँ वे रात को ठहरने वाले थे। उसने उनसे उस लाल को बेच कर कुछ खाना खरीदने के लिये कहा।
राजा ने लाल लिया और एक दूकानदार के पास पहुँचा और उससे उस लाल के बदले में एक रुपये का खाना माँगा। जाहिर था कि दूकानदार तुरन्त ही तैयार हो गया। उसने राजा से अपने घर चलने के लिये कहा जहाँ वह उसको उसके लाल का पैसा दे देगा। पर यह दूकानदार एक बहुत ही नीच आदमी था। हालाँकि वह राजा को उसका पैसा वहीं की वहीं दे सकता था पर वह उसको अपने घर ले जाना चाहता था क्योंकि अपने घर के एक कमरे में उसने एक जाल बिछा रखा था जिससे उसने कई लोगों को कैद कर रखा था।
वह जाल ऐसा था कि जो कोई उस पर बैठता था वह उसमें से नीचे गिर जाता था और फिर वहाँ से वह निकल नहीं पाता था जब तक वह दूकानदार का माँगा हुआ पैसा नहीं दे देता था। यही उसने राजा के साथ किया।
जब कई घंटे गुजर गये और राजा नहीं लौटा तो राजकुमारी ने एक और लाल अपने पति को दिया ताकि वह उससे कुछ खाना खरीद सके और उससे राजा का पता लगा सके। राजकुमार भी इत्तफाक से उसी दूकानदार की दूकान पर पहुँच गया क्योंकि बाजार में वही एक सबसे बड़ी दूकान थी। उसने भी उससे उस लाल को खरीदने के लिये कहा।
दूकानदार बोला — “ठीक है। तुम मेरे घर चलो मैं इसके पैसे तुम्हें घर चल कर ही दूँगा। यहाँ मेरे पास इतने पैसे नहीं हैं।” सो वह राजकुमार को अपने घर ले गया और उससे जाल पर बैठने के लिये कहा। इस तरह राजकुमार भी उसके जाल में फँस गया। अँधेरा हो गया था तो न तो राजा लौटा न राजकुमार ही लौटा। यह देख कर राजकुमारी ने अपने पास से तीसरा लाल निकाला और रानी को देते हुए उससे कुछ खाना खरीदने के लिये कहा। रानी उस लाल को ले कर गयी तो उसका भी वही हाल हुआ जो उसके पति और बेटे का हुआ था।
राजकुमारी ने उसका कुछ देर तो इन्तजार तो किया फिर उसको लगा कि राजा रानी और उसके पति तीनों पर कोई मुसीबत आ पड़ी है इसीलिये ऐसा हुआ। सो उसने अपने पति के कपड़े पहिने और बाजार चली। राजा रानी और अपने पति की तरह उसने भी सबसे बड़ी दूकान देखी तो वह भी उसी दूकान पर पहुँच गयी। उसने भी दूकानदार से अपने लाल के बदले में पैसे माँगे।
दूकानदार ने उससे भी वही कहा — “चलो मेरे घर चलो पैसे मैं तुम्हें वहीं दूँगा।”
घर पहुँचने पर उसने उससे भी अपने जाल वाले कमरे में घुसने के लिये कहा और कहा कि वह वहाँ उसका इन्तजार करे वह अभी पैसे ले कर आता है। कह कर दूकानदार चला गया।
पर राजकुमारी दूकानदार के लिये बहुत तेज़ थी। उसको दूकानदार की शक्ल कुछ अच्छी नहीं लगी। उसको यह भी कुछ अजीब सा ही लगा कि उसने अपनी दूकान में रोजमर्रा के लिये कुछ रुपये भी नहीं रखे थे। इसलिये वह उस कमरे में नहीं गयी। पर जब वह वहाँ दूकानदार का इन्तजार कर रही थी तो उसने उसके फर्श में से कुछ आदमियों की आवाजें आती सुनी। उसने वे आवाजें पहचान लीं वे राजा रानी और उसके पति की आवाजें थीं वे सहायता के लिये चिल्ला रहे थे। यह सुन कर उसे बड़ा आश्चयहुआ। वह चिल्लायी — “ओ चोर ओ खूनी तू कहाँ है?”
दूकानदार यह कहते हुए उसकी तरफ आया “क्या हुआ?”
राजकुमारी बोली — “तूने इन लोगों के साथ क्या किया है? जहाँ कहीं भी ये लोग हैं इनको यहाँ से बाहर निकाल नहीं तो मैं अभी राजा को खबर करती हूँ।”
यह सुन कर दूकानदार डर गया और उसने तुरन्त ही उन सब को छोड़ दिया। उसने उनके लाल भी वापस कर दिये जो उसने उनसे लिये थे। उसके बाद राजा रानी और राजकुमार तो चले गये पर राजकुमारी ने जो अभी भी राजकुमार के वेश में थी दूकानदार का खाने का न्यौता स्वीकार कर लिया।
राजा रानी और राजकुमार तुरन्त ही उस जगह लौटे जहाँ वे राजकुमारी को छोड़ कर गये थे पर वहाँ तो उनको राजकुमारी कहीं दिखायी नहीं दी तो राजकुमार रोते हुए बोला — “उफ़ लगता है उसके ऊपर कोई मुसीबत आ पड़ी है।”
राजा बोला — “नहीं नहीं ऐसा नहीं है। वह हम लोगों को ढूँढने गयी होगी अभी थोड़ी देर में आ जायेगी।”
पर वह थोड़ी देर में नहीं आयी। उसको राजा रानी और राजकुमार के पास लौटने में कई साल लग गये।
वह अगले दिन सुनार के यहाँ से चली और कई दिन चलने के बाद एक दूसरे राज्य में आ पहुँची। क्योंकि वह एक लड़के के वेश में थी सो उसने अपने आपको एक बनिये का लड़का बताया और अपना नाम गनपत राय रख लिया।
एक दूकानदार उसके साफ बोलने के तरीके से प्रभावित हो गया और उसको अपनी दूकान पर काम पर रख लिया। इस दूकानदार के तीन पत्नियाँ थीं पर कोई बेटा नहीं था। इसकी वजह यह थी कि जब भी उसकी किसी पत्नी ने एक बेटे को जन्म देती तो उसके अगले दिन ही एक राक्षसी आती और उसको खा जाती। हुआ यह कि जब गनपत राय उसके यहाँ काम कर रहा था तो दूकानदार की एक पत्नी ने एक बेटे को जन्म दिया। दूकानदार अपने बिजनैस के लिये गनपत पर काफी भरोसा करने लग गया था सो उसने उससे कहा — “मेरी इच्छा है कि तुम आज की रात मेरी पत्नी के कमरे के दरवाजे पर उसका पहरा दो ताकि वह राक्षसी वहाँ न आये और मेरा बच्चा बच जाये। वह यकीनन वहाँ आयेगी और उसको खाने की कोशिश करेगी।”
गनपत राय राजी हो गया। रात को राक्षसी आयी और कमरे का दरवाजा खोलने के लिये दौड़ी। गनपत राय चौकन्ना खड़ा था उसने तुरन्त ही उसके बाल पकड़ कर उसको नीचे गिरा दिया। राक्षसी चिल्लायी — “मुझे छोड़ दो मुझे छोड़ दो। मैं वायदा करती हूँ कि मैं इस घर में फिर कभी नहीं आऊँगी। मुझे छोड़ दो मुझे जाने दो। लो यह रूमाल लो यह मेरे इस वायदे की निशानी है।”
गनपत राय ने उससे रूमाल ले कर उसे छोड़ दिया और वह चली गयी। इस तरह गनपत राय की वजह से दूकानदार का बच्चा बच गया।
अगली सुबह जब दूकानदार ने सुना कि रात को क्या हुआ था तो वह बहुत खुश हुआ और बोला — “तुमने जो मेरी यह सेवा की है मैं तुम्हें इसका बदला कभी नहीं चुका सकता। तुम जब तक चाहो मेरे मकान में मेरे साथ रह सकते हो। मैं अपनी बहिन की शादी तुमसे कर दूँगा।”
सो दूकानदार ने अपनी बहिन की शादी गनपत राय से कर दी। कुछ दिन बाद ही गनपत राय ने दूकानदार से अपनी पत्नी के साथ अपने माता पिता के पास जाने की इच्छा प्रगट की। पहले तो दूकानदार ने आनाकानी की पर फिर राजी हो गया।
अपने देश जा कर गनपत राय ने राजा रानी और अपने पति की बहुत खोज की। आखीर में वे उसको एक गाँव में भीख माँगते मिल गये।
उन लोगों ने तो उसको नहीं पहचाना क्योंकि वह एक आदमी के कपड़े पहिने थी पर उसने उनको पहिचान लिया। एक शाम उसने अपने कपड़े पहिने और उनके पास गयी तब उन्होंने उसको तुरन्त ही पहचान लिया।
राजकुमार बोला — “प्रिये तुम कहाँ थीं?”
राजा और रानी बोले — “बेटी तुम कहाँ थीं? तुम्हें क्या हो गया था? हमको लगा कि या तो तुमको कोई बहका कर ले गया है या फिर तुम मर गयी हो। हमने तो तुम्हारे मिलने की आशा ही छोड़ दी थी।”
राजकुमार अपनी पत्नी से मिल कर और राजा रानी अपनी बहू से मिल कर बहुत खुश थे। वह रात सब लोगों ने खुशी खुशी गुजारी।
अगले दिन राजकुमारी उन तीनों को वहाँ ले गयी जहाँ वह अपनी पत्नी के साथ ठहरी हुई थी और उससे उनको मिलाया। फिर उसने उनको वह सब बताया जो उनको आजाद कराने के बाद उसके साथ घटा था।
कैसे वह दूसरे देश आयी वहाँ कैसे एक दूकानदार के यहाँ काम किया कैसे अल्लाह ने उसको अमीर बनाया फिर कैसे उसकी उस दूकानदार की बहिन से उसकी शादी हुई और कैसे वह बहुत सारे पैसे की मालकिन बन गयी।
उसके बाद उसने अपने लड़की होने का भेद दूकानदार की बहिन पर खोला और उससे इस बात पर नाराज न होने की प्राथना की और अपने पति से शादी करने के लिये कहा जो एक राजकुमार था और अब वहीं रह रहा था।
इस तरह से घर ठीक करने के बाद उसने अपने ससुर के बिखरे हुए सिपाहियों को इक{ा किया। उनको बहुत सारे पैसे दिये और उनको लड़ाई के लिये तैयार किया ताकि वे अपना राज्य वापस ले सकें। सेना में एक नया उत्साह भर गया था अब वे अपने राजा के लिये कुछ भी करने के लिये तैयार थे। हमला बोल दिया गया लड़ाई हुई और उस विदेशी को हरा कर अपना राज्य वापस ले लिया गया। सब लोग अपने राज्य वापस लौट गये और खुशी खुशी रहे।
इसी कहानी का दूसरा रूप
एक बार की बात है कि एक राजकुमार की शादी हुई। अगले दिन उसके पिता ने उसको बुला कर कहा कि अपनी पत्नी से कहना कि राजा ने उसे सलाम भेजा है। राजकुमार ने वैसा ही किया तो राजकुमारी ने कहा “ठीक है।”
शाम को राजा ने पूछा कि राजकुमारी ने क्या जवाब दिया। जब उसे राजकुमारी का जवाब पता चला तो वह बोला — “अफसोस मैंने राजकुमार की शादी पर बेकार ही पैसा खचकिया।”
कुछ दिन बाद राजकुमार की दोबारा शादी की गयी तो राजा ने उस राजकुमारी को भी वही सन्देश भेजा कि राजकुमारी से कहना कि राजा ने तुम्हें सलाम भेजा है। इस राजकुमारी ने भी वही कहा “ठीक है।”
जब राजा ने राजकुमारी का यह जवाब सुना तो राजा के मुँह से फिर निकला — “उफ़ मैंने राजकुमार की शादी पर बेकार ही पैसा खर्च किया।”
कुछ समय बाद राजा ने राजकुमार की तीसरी शादी की तो राजा ने उस राजकुमारी को भी वही सन्देश भेजा कि राजकुमारी से कहना कि राजा ने तुम्हें सलाम भेजा है।
यह राजकुमारी थोड़ी सी शरमीली और भले घर की थी। राजा का यह सन्देश सुन कर वह अपने पति से बोली कि वह राजा को जा कर यह कहे — “मैं उनकी क्या लगती हूँ जो उन्होंने मुझे देखा और सलाम भेजा।”
उसने ऐसा इसलिये कहा क्योंकि न तो वह राजा की बेइज्ज़ती करना चाहती थी और न ही उसे वह करना ठीक लगा जैसा कि पहिली दोनों राजकुमारियों ने किया था।
राजकुमारी का यह जवाब सुन कर राजा बहुत खुश हुआ। उसने राजकुमार से कहा — “तुम्हारी यह पत्नी बहुत अच्छी और समझदार है। तुम्हारी इस शादी पर मैंने अपना पैसा बेकार खर्च नहीं किया।
राजकुमार की इस तीसरी शादी के कुछ साल बाद एक दूसरे ताकतवर राजा ने उनके राज्य पर हमला किया और उनका राज्य जीत लिया इससे राजा को अपन राज्य छोड़ कर भाग जाना पड़ा। शाही घराना तितर बितर हो गया। राजा रानी और राजकुमार किसी दूसरे एक देश भाग गये और तीनों राजकुमारियाँ अपने अपने मायके चली गयीं।
देश छोड़ने से पहले सबसे छोटी राजकुमारी ने सात रोटियाँ बनायीं। उनमें हर एक रोटी में उसने एक एक लाल रखा और अपने साथ ले गयी।
घूमते घूमते राजा रानी और राजकुमार उस देश में आ निकले जिसमे सबसे छोटी राजकुमारी रहती थी। किसी तरह से राजकुमारी ने उन्हें देख लिया और अपने घर बुला लिया। उन्होंने राजकुमारी को सब कुछ बताया कि जब से उन्होंने देश छोड़ा उन पर क्या क्या बीती।
राजकुमारी को उन पर दया आ गयी तो उसने राजा को एक रोटी दी और कहा — “यह रोटी तो बहुत पुरानी है पर इसके बीच में एक लाल रखा है। इसको बाजार में बेच कर आप अपने लिये जरूरत का सामान खरीद लें।”
राजा ने राजकुमारी को धन्यवाद दिया और तुरन्त ही उस लाल को बेचने के लिये बाजार चल दिया। वह बाजार की सबसे बड़ी दूकान पर गया और वहाँ उससे लाल खरीदने के लिये कहा। दूकानदार उस लाल की सारी कीमत देने में सकपकाया तो राजा ने कहा कि ठीक है अगर तुम अभी मुझे इसके पूरे पैसे नहीं दे सकते तो न सही मुझे कुछ पैसे दो दो बाकी पैसे मैं कल आ कर ले जाऊँगा।
दूकानदार ने उसको कुछ पैसे दे दिये और राजा से अगले दिन आने के लिये कहा। अगले दिन जब राजा अपने बाकी के पैसे लेने उसकी दूकान पर गया तो दूकानदार ने उसको डाँट पिलायी — “कैसे पैसे किसके पैसे। चले जाओ यहाँ से। बेकार की बातों में मेरा समय बरबाद मत करो। बहुत सारे लोगों ने इसी तरह से मेरा समय बरबाद किया है जैसे कि तुम कर रहे हो। वे सोचते थे कि इस तरीके से वे मुझे धोखा दे लेंगे पर मैं धोखा खाने वाला नहीं था।
पर हममें से कुछ की याद बहुत अच्छी है। तुमने मुझे लाल बेचा ही कब? तुम जैसे गरीब आदमी के पास लाल आया ही कहाँ से? मैं तो तुम्हें जानता तक नहीं। चले जाओ यहाँ से वरना मैं तुम्हें जबरदस्ती बाहर निकलवा दूँगा।”
राजा ने देखा कि वह उससे बाकी का पैसा नहीं निकलवा सकता था सो वह वहाँ से चला आया। अब इस जवाब के साथ मैं रानी राजकुमार और राजकुमारी के पास कैसे जाऊँ वे तो मेरे ऊपर विश्वास ही नहीं करेंगे। बजाय इसके कि वे मेरे ऊपर शक करें और फिर मैं उनको सफाई दूँ अच्छा हो कि मैं महल से भाग जाऊँ और कहीं और जा कर अकेला ही रहूँ।
यही सोच कर राजा वहाँ से महल न जा कर एक जंगल में चला गया और अपने बुरे भाग्य को कोसता रहा।
कई घंटे बीत जाने के बाद भी जब राजा घर वापस न लौटा तब राजकुमारी ने एक और रोटी निकाली और उसे अपने पति को देते हुए कहा कि यह रोटी तो बहुत पुरानी है पर इसके अन्दर एक लाल है वह उसको ले जा कर बाजार में बेच दे और उन पैसों से अपनी जरूरत का सामान खरीद ले।
राजकुमार ने रोटी ली उसमें से लाल निकाला और उसे बाजार में बेचने चल दिया। वह भी उसी दूकान वाले के पास पहुँचा जिसके पास उसके पिता गये थे। उसने भी उस नीच के हाथों धोखा खाया और अपने पिता की तरह महल वापस न जा कर कहीं अकेले ही ज़िन्दगी गुजारने का फैसला किया।
इत्तफाक से वह भी उसी जंगल में चला गया जहाँ उसके पिता गये थे। वहाँ जा कर उसको उसके पिता मिल गये। उसने उनको अपनी कहानी बतायी तो पता चला कि उसके पिता के साथ भी वैसा ही हुआ था।
जब कुछ हफ्ते गुजर गये और राजा और राजकुमार का कोई अता पता न चला तो राजकुमारी ने सोचा कि उसके ससुर और उसके पति उसको छोड़ कर चले गये हैं। उसने एक और रोटी निकाली और रानी को दे कर कहा कि रोटी तो बहुत पुरानी है पर इसमें एक लाल ही जिसको बेच कर कुछ पैसा मिल सकता है। सो वह उसे बाजार में बेच कर उसका पैसा बना ले।
इत्तफाक से वह भी उसी दूकानदार के पास पहुँच गयी और उसके साथ भी वही हुआ जो राजा और राजकुमार के साथ हुआ था। उसने भी यही सोचा कि वह अब बिना लाल के या बिना पैसे के राजकुमारी के पास कैसे जाये सो वह भी जंगल में अकेली रहने चली गयी जहाँ उसको उसका पति और बेटा मिल गये।
वहाँ जा कर उसने भी उनको अपनी कहानी सुनायी तो वह भी वैसी ही थी जैसी कि उन दोनों के साथ हुई थी।
राजकुमारी ने रानी का कई दिनों तक इन्तजार किया फिर एक आदमी का वेश बना कर वह अपने पिता के घोड़े पर उन सबकी खोज में चल दी। वह रास्ते में सबसे पूछती जाती कि क्या उन्होंने किसी भिखारी को देखा है पर कहीं से उसको कोई सन्तोषजनक जवाब नहीं मिला।
वह चलती गयी चलती गयी कि वह एक दूसरे देश में आ निकली। वहाँ का राजा अपने महल के बरामदे में टहल रहा था कि उसने उस नौजवान सवार को देखा। उसने उसको बुला कर पूछा कि क्या वह उनके महल में काम करना चाहेगा।
वह तैयार हो गया और तुरन्त ही उसको महल में कुछ खास कामों के लिये लगा लिया गया। उसकी चतुराई और अक्लमन्दी से राजा बहुत प्रभावित हुआ। वह उसको अक्सर उससे अपने सभी मामलों में सलाह लिया करता था।
जब वह महल में रह रही थी तो उस शहर में एक बहुत बड़ा अजगर आया और उसने कई लोगों को मार दिया। कोई भी आदमी अपने घर के दरवाजे से बहुत दूर जाने से डरता था। राजा से ले कर नीचे से नीचे आदमी तक को उसके काटने का खतरा था। राजा बहुत दुखी था सो ऐसे समय में उसको अपने सलाहकार की याद आयी सो उसने राजकुमारी को बुला भेजा और उससे पूछा कि ऐसी हालत में उसको क्या करना चाहिये। राजकुमारी तुरन्त बोली — “मैं उस जानवर को मार देता हूँ।”
राजा यह सुन कर बहुत खुश हुआ उसने कहा — “जाओ और अगर तुमने उसे मार दिया तो मैं अपनी बेटी की शादी तुमसे कर दूँगा।”
राजकुमारी गयी और उसने अजगर को मार दिया। जैसे ही वह इस अच्छी खबर के साथ महल लौटी राजा ने अपनी बेटी की शादी उसके साथ कर दी। राजकुमारी ने कहा कि वह यह सब अपने पीर साहब की सलाह पर करने के लिये तैयार हुई थी सो उसको और उसकी पत्नी को अलग अलग महलों में रखा जाये।
जो घर राजकुमारी को दिया गया था वह एक चौराहे के एक कोने पर था। कभी कभी जब उसके पास कुछ काम करने के लिये नहीं होता था तो वह अपनी छज्जे पर बैठ जाती और बाहर आते जाते लोगों को देखती रहती।
एक दिन उसने रास्ते पर राजा रानी और अपने पति को जाते देखा तो वह तो भौंचक्की रह गयी। उसने उनको आवाज लगा कर पूछा कि वे कौन थे कहाँ जा रहे थे और क्या कर रहे थे।
उन्होंने देखा कि लड़का कुछ दयालु है सो उन्होंने उसको सब कुछ बता दिया। उसने उनको अन्दर बुला लिया और बताया कि वह कौन थी। उसने कहा — “देखिये मैं आपकी बहू हूँ। मुझे नहीं मालूम कि आपके ऊपर क्या गुजरी सो मैंने अपना वेश बदला और आप लोगों की खोज में निकल पड़ी।
भगवान का लाख लाख धन्यवाद है कि आप लोग मुझे मिल गये। आप यहाँ शाम तक इन्तजार करें तब मैं आपके साथ चलूँगी। हम सब उस नीच दूकानदार के पास चलेंगे। उसको इसकी सजा मिलनी ही चाहिये और हमारा सामान हमको वापस मिलना ही चाहिये।”
उस शाम को राजकुमारी राजा रानी और राजकुमार के साथ उस दूकानदार की तरफ चल दी। जल्दी ही वे उसके घर पहुँच गये और उसको इतने ज़ोर की धमकी दी कि उसने राजा की सजा से डर कर अपनी सारी चीज़ें बेच कर उनका सामान उनको लौटा दिया। उसके बाद राजकुमारी ने उस राजा के पास सब बातों को समझा कर सन्देश भेजा जिसकी बेटी से उसने शादी की थी कि उसको माफ कर दिया जाये और वह अपनी बेटी की शादी राजकुमार से कर दे।
राजा राजी हो गया। उसने अपनी बेटी की शादी राजकुमार से कर दी।
फिर उसने राजकुमारी के ससुर को बहुत सारी सहायता दी जिससे उन्होंने अपना राज्य फिर से पा लिया और फिर चारों तरफ शान्ति ही शान्ति रही।
(सुषमा गुप्ता)