एक पूंछ की कहानी : ओड़िआ/ओड़िशा की लोक-कथा
Ek Poonchh Ki Kahani : Lok-Katha (Oriya/Odisha)
उड़ीसा के एक गांव में एक बुजुर्ग दंपति रहता था। पति का नाम बापलो था और पत्नी का मालो। वे बहुत निर्धन थे और उनके कोई संतान नहीं थी। बापलो के पास थोड़ी-सी ज़मीन थी जिस पर वह सब्जियां बो लिया करता था। इनमें से कुछ सब्जियां तो उनके घर में ही काम आ जातीं और बाकी बापलो बाज़ार में बेच आता था। यह गांव घने जंगल के किनारे पर बसा था इसीलिए यहां बहुत शांति थी। यह दंपति अपना अधिकतर समय भगवान जगन्नाथ की पूजा-अर्चना में लगा दिया करता था।
कुछ दिनों से गांव में लोभी नाम के एक बाघ ने आतंक मचा रखा था। घरों के बाहर बने बाड़ों में से रोज़ाना कोई-न-कोई पशु उसका शिकार बनता था। गांववालों को समझ नहीं आ रहा था कि उससे छुटकारा पाने के लिए क्या किया जाए? चौपाल पर पंचायत जमा हो गई। “एक काम करते हैं, पशुओं को बंद आंगन में रखना शुरू कर देते हैं," पंचों ने सलाह दी।
जिन लोगों के घर में बड़े-बड़े आंगन थे, वे इस पर सहमत हो गए। सभी के पशु पास-पड़ोस के आंगनों में बांध दिए गए। लेकिन लोभी को कोई दीवार नहीं रोक पाई। दीवारें फांदकर वह घर के लोगों की नाक के नीचे से अपने शिकार को उठा ले जाता था।
पहले तो लोभी रात में ही उत्पात मचाता था, पर अब तो वह दिन-दहाड़े गांव में घुस आता था। कोई ऐसा बहादुर व्यक्ति नहीं था जो उसे चुनौती दे सके। गांववालों के मन में इस खूखार बाघ का भय बैठ चुका था।
इस बार पंचायत की आपात बैठक बुलाई गई।
"यह बाघ तो दिन-पर-दिन मुसीबतें बढ़ाता जा रहा है," प्रधान बोला।
"जीऽऽऽ यह तो हमें भी निशाना बनाएगा," किसी ने कहा।
"मुझे लगता है कि इस गांव को छोड़ देने के अलावा हमारे पास कोई चारा नहीं," प्रधान ने सबके सामने सुझाव रखा।
"तो अब हम कहां जाएं?" सब कहने लगे।
"नदी के पार जो गांव है, जुहारपुर, हम वहां जा सकते हैं। उस गांव का प्रधान मुझे जानता है। कुछ समय के लिए वहां रह लेते हैं। जब हमारा गांव खाली हो जाएगा तो वह दुष्ट बाघ यहां आना ही छोड़ देगा। उम्मीद है कि वह यहां से कहीं दूर चला जाए। उसके बाद हम वापस आ जाएंगे।"
सब सहमत हुए और तय किया गया कि गांववाले अपने पशुओं के साथ रात में जुहारपुर के लिए निकल पड़ेंगे। गांव खाली होने लगा। सभी रवाना होने लगे, लेकिन बापलो और मालो नहीं गए।
"तुम्हें नहीं लगता कि हमें भी चल देना चाहिए?" मालो ने पूछा।
"क्या करेंगे हम वहां? मैं तो बूढ़ा हो चुका हूं। कोई काम तो कर नहीं सकता। अरे भूखे मर जाएंगे वहां। इससे तो अच्छा उस बाघ के हाथों मर जाना है। कम-से-कम उसकी भूख तो मिटेगी," बापलो ने समझाया।
अगली सुबह बापलो पौ फटने से पहले जाग गया। गांव के चौक में एक गहरा गड्ढा खोदकर उसने इसके आस-पास खुशबूदार फूल फैला दिए। अपनी पत्नी को साथ लेकर वह गड्ढे में उतर गया और बैलगाड़ी के एक पहिए से उसने गड्ढे को ढक लिया। दोनों नीचे छिपकर बैठ गए।
लोभी गांव में घुसा तो उसने देखा कि पूरा इलाका वीरान पड़ा है। भूख मिटाने के लिए आज उसे केवल एक बूढा-लंगड़ा भैंसा ही मिला। गांव के चौक में पहुंचकर लोभी ज़ोर-ज़ोर से दहाड़ने लगा। वह अपने आपको गांव का राजा समझ रहा था। कुछ देर बाद वह बैलगाड़ी के उसी पहिए पर जा बैठा। फूलों की सुगंध के कारण उसे बिलकुल पता नहीं चला कि वहां कोई इंसान भी है।
भैंसे को खाने के बाद लोभी सुस्ताने लगा और वहीं सो गया। बापलो ऐसे मौके की ताक में ही बैठा था। सो रहे लोभी की पूंछ पहिए की ताड़ियों के बीच लटक रही थी। बापलो ने धीरे से उसकी पूंछ को खींचा फिर पत्नी के कान में बुदबुदाया, "मालो, मैं इस पूंछ पर लटकने वाला हूं। तुम भी मेरी कमर पकड़कर पूरा जोर लगाना। कुछ भी हो जाए, छोड़ना मत।"
"पागल हो गए हो क्या? बाघ हमें खा जाएगा," मालो ने जवाब दिया।
"अरे! मरना तो हमें वैसे भी है। क्यों न एक बार मुकाबला किया जाए?" इतना कहते ही बापलो झटके के साथ लोभी की पूंछ पर लटक गया।
गड्ढे के ऊपर रखे पहिए पर नींद ले रहा लोभी सपने में एक मोटी गाय का शिकार कर रहा था। अचानक उसे लगा कि उस गाय ने अपना एक पैना सींग उसके पिछले हिस्से में घुसेड़ दिया हो।
"आऊऽऽऽ!" वह चिल्लाया और जाग गया। उसे लगा कि वह ठीक से खड़ा भी नहीं हो पा रहा है। तभी उसने पहिए की ताड़ियों में से नीचे झांका। उसे मालूम पड़ा कि एक बूढ़ा उसकी पूंछ को पकड़े हुए है और बूढ़े की कमर को एक बुढ़िया ने पकड़ रखा है। बूढ़े की कमर को एक बुढ़िया ने पकड़ रखा है।
लोभी ज़ोर-ज़ोर से दहाड़ने लगा, लेकिन बापलो ने उसकी पूंछ को बिलकुल नहीं छोड़ा। अपनी पूंछ को छुड़ाने के लिए लोभी कभी ऊपर उछले तो कभी नीचे, कभी दाएं उछले तो कभी बाएं। उसने सभी प्रयास करके देख लिए, पर अपनी पूंछ को वह नहीं छुड़ा पाया। आखिरकार लोभी ने पूरा जोर लगाकर पूंछ को खींचा।
“आऽऽऽ!!!" उसकी चीख निकल पड़ी। पूंछवाले हिस्से पर उसे बहुत जलन महसूस हुई। डरते-डरते उसने पीछे देखा। वह दहाड़ें मारकर रोने लगा जब उसने देखा कि उसकी प्यारी पूंछ उसके शरीर से अलग हो चुकी है। दर्द के मारे तो उसका बुरा हाल हो ही रहा था, उसे शर्म भी बहुत आ रही थी। बिना इधर-उधर देखे वह जंगल की ओर भाग खड़ा हुआ।
"भाग गया दुष्ट, पर अभी पलटकर आएगा," बापलो ने पत्नी से कहा।
मालो चिल्लाई, “मरवा दिया तुमने तो, अब क्या करें?"
वे दोनों गड्ढे से बाहर निकल आए। चारों ओर नज़र दौड़ाते हुए बापलो बोला, "आओ, नारियल के उस पेड़ पर चढ़ जाएं।"
"मैं उस पेड़ पर चढ़ पाऊंगी क्या?" मालो बौखलाकर बोली।
"कोई चारा नहीं है। जल्दी करो, अगर रुके तो वह हमें खा जाएगा।"
मालो और बापलो धीरे-धीरे पेड़ के सबसे ऊपरी हिस्से पर पहुंच गए और उन्होंने स्वयं को पत्तों में छिपा लिया था।
***
इस बीच लोभी चीखता-चिल्लाता जंगल में अपनी गुफा में जा पहुंचा। वहां उसके माता-पिता, दो चाचा, तीन चाचियां, पांच भतीजे, छह भतीजियां और दादा-दादी, नाना-नानी दौड़े-दौड़े आ पहुंचे। लोभी को लहुलुहान देख उसके परिवार वाले आग-बबूला हो गए।
"चलो, चलकर उन लोगों को सबक सिखाएं," लोभी का नाना दहाड़ा।
सभी एकजुट होकर ऐसे दौड़े जैसे राजा पुरुषोत्तम के सिपाही कांची पर विजय प्राप्त करने के लिए भागे थे। बाघों की फौज गांव में घुस गई और उन्हें तलाशने लगी। काफी ढूंढ़ने के बाद भी वे नहीं मिले। गांव के कई चक्कर लगा लेने के बाद वे सब उसी पेड़ के नीचे आ खड़े हुए।
अचानक बापलो को छींक आ गई। बाघों की नज़र एक साथ ऊपर गई। उन्होंने देखा कि बुड्ढा और बुढ़िया, दोनों नारियल के पेड़ पर टंगे हैं। "नीचे उतारो इन्हें," दांत पीसती हुई लोभी की चाची दहाड़ी।
खुद तो वे दोनों नीचे उतरने वाले थे नहीं। सवाल उठ खड़ा हुआ कि इन्हें उतारा कैसे जाए। सबकी सहमति बनी कि एक के ऊपर एक चढ़कर उन दोनों तक पहुंचा जाए। लोभी को सबसे नीचे खड़ा किया गया, फिर उस पर उसके चाचा फिर उसके ऊपर एक चाची...इस तरह सब चढ़ते चले गए। ऐसे करते-करते एक ऊंचा स्तंभ बनने लगा। अब मालो की दिल की धड़कनें तेज़ होने लगीं। वह बोली, “अब हमें कोई नहीं बचा सकता।"
"मूर्ख! कुछ सोचने दो मुझे," बापलो चिल्लाया।
अगले ही पल वह बोला, "एक काम करो, रोना-धोना जारी रखो।"
इतना कहने की देर थी कि मालो दहाड़ें मारकर रोने और चिल्लाने लगी।
"हे मेरे भगवान, अब क्या होगा? बाघ तो हमें खा जाएंगे।"
"रोना बंद करो मालो और सुनो मेरी बात। इस पेड़ पर जो नारियल लगे हैं न? एक-एक कर मैं इन्हें तोडूंगा और सबसे नीचे खड़े पूंछ कटे बाघ को मारूंगा। तुम्हें तो पता है मेरा निशाना अचूक है। एक नारियल भी अगर ठीक उसके सिर पर जा लगा, तो उसका सिर बुरी तरह फट जाएगा। पूंछ तो इसकी काट दी है, अब ये अपना सिर भी तुड़वाएगा।"
नीचे खड़ा लोभी यह सब सुन रहा था। 'ये बुड्ढा और बुढ़िया तो मेरी जान लेकर छोड़ेंगे। पूंछ तो उखाड़ दी, अब मेरा सिर तोड़ने की तैयारी कर रहे हैं। अच्छा हो कि मैं यहां से भाग लूं,' लोभी ने सोचा और वह वहां से भाग लिया।
लोभी के नीचे से हटते ही उसके सारे रिश्तेदार एक के बाद एक एक-दूसरे पर गिरते गए। उनके सिर फूटे, हड्डियां टूटी, पैरों में मोचें आईं और उनकी पूंछे कुचली गईं। अब तो उन्होंने आव देखा-न-ताव, वे हड़बड़ाते हुए जंगल की ओर दौड़ पड़े।
जल्द ही यह खबर गांववालों तक पहुंच गई कि उस बुजुर्ग दंपति ने इलाके को बाघों से छुटकारा दिला दिया है। सब वापस अपने गांव लौट आए। बापलो को गांव का प्रधान बना दिया गया। इसके बाद दोनों पति-पत्नी खुशी-खुशी रहने लगे। क्या आप यह नहीं जानना चाहेंगे कि लोभी का क्या हुआ? लोभी शाकाहारी बन गया। लेकिन क्या उसकी पूंछ उसे कभी वापस मिली? इसकी भी एक रोचक कहानी है।