एक पैसे में सब : कश्मीरी लोक-कथा
Ek Paise Mein Sab : Lok-Katha (Kashmir)
एक बार की बात है कि एक घाटी में एक बहुत ही अमीर सौदागर रहता था। उसके एक ही बेटा था पर वह अपने उस अकेले बेटे से खुश नहीं था।
उसका वह बेटा बहुत ही बेवकूफ सा था और कोई अक्ल का काम करना तो दूर कुछ और भी नहीं करता धरता था।
पर उसकी माँ उसको बहुत प्यार करती थी। वह उसके लिये अच्छा ही अच्छा सोचती थी और अगर वह कोई गलत काम भी करता था तो उसकी गलती के लिये वह कोई न कोई बहाना ढूँढ लेती थी।
धीरे धीरे वह लड़का बड़ा हो गया और अब शादी के लायक हो गया। उसकी माँ ने अपने पति से कहा कि अब बेटा बड़ा हो गया है सो वह उसके लिये कोई अच्छी सी लड़की ढूँढ कर उसकी शादी कर दे।
पर वह सौदागर अपने बेटे की बेवकूफियों पर इतना शरमिन्दा था कि उसने अपने मन में यह तय कर रखा था कि वह उसकी शादी कभी नहीं करेगा।
उधर उसकी माँ उसकी शादी की बहुत चिन्ता कर रही थी। वह तो बहुत दिनों से उसकी शादी का सपना देख रही थी कि कब मेरा बेटा बड़ा होगा और कब मैं उसकी शादी करूँगी। वह सारी उम्र कुँआरा बैठा रहे यह तो वह सोच भी नहीं सकती थी और न वह इसके लिये तैयार ही थी।
सो उसने अपने बेटे की शादी के लिये बहुत कोशिशें कीं। उसने अपने पति को उसकी अक्लमन्दी के कई लक्षण बताये कई अक्लमन्दी के काम बताये ताकि उसका पति उसकी शादी कर दे पर शादी करने की बजाय वह उसकी इन बातों से चिड़चिड़ा ज़्यादा होता गया।
एक दिन जब उसकी पत्नी अपने बेटे की तारीफ किये जा रही थी तो वह चिड़चिड़ा हो कर अपनी पत्नी से बोला — “देखो तुम मुझसे यह सब कितनी बार कह चुकी हो पर तुमने इसे मुझे साबित करके कभी नहीं दिखाया।
क्योंकि मुझे तुम्हारी बातों पर बिल्कुल भी विश्वास नहीं है कि जो कुछ तुम कह रही हो उसमें ज़रा सा भी सच है। माँऐं अपने बच्चों के प्यार में अन्धी होती हैं। खैर तुम्हारी सन्तुष्टि को लिये मैं उस बेवकूफ को एक मौका और देता हूँ। तुम उसको बुलाओ और उसको ये तीन पैसे दो और उससे कहो कि वह बाजार जाये और इसमें से एक पैसे की कोई एक चीज़ ऐसी खरीद कर लाये जो उसके अपने लिये हो। दूसरा पैसा वह नदी में फेंक दे।
और तीसरे पैसे से वह ये पाँच चीज़ें खरीदे – कुछ खाने के लिये कुछ पीने के लिये कुछ चबाने के लिये कुछ बागीचे में बोने के लिये और कुछ गाय को भी खिलाने के लिये।”
माँ को यह सुन कर बहुत खुशी हुई कि अब कम से कम उसके बेटे को अपने आपको साबित करने का मौका मिलेगा। सो तुरन्त ही उसने अपने बेटे को बुलाया उसे तीन पैसे दे कर उसके पिता की सारी बात उसको समझा दी।
बेटे ने भी उससे पैसे लिये और बाजार चल दिया। बाजार जा कर उसने एक पैसे का कुछ अपने लिये खरीदा और खा लिया। उसके बाद वह एक नदी के पास आया और दूसरा पैसा नदी में फेंकने ही वाला था कि इसको अपनी बेवकूफी समझ कर वह रुक गया।
इसको नदी में फेंकने से क्या भला हो सकता है। अगर मैं एक पैसा नदी में फेंक देता हूँ तो मेरे पास केवल एक पैसा ही बच जायेगा। और फिर इस एक पैसे से मैं ऐसा क्या खरीद सकता हूँ जो खाने का भी हो और पीने का भी हो। चबाने वाला भी हो और बागीचे में बोने वाला भी हो और साथ में गाय के खाने वाला भी हो। जैसा कि उसकी माँ ने कहा था। और अगर मैं इसे नदी में नहीं फेंकता हूँ तो इसका मतलब है कि मैं माँ का कहना नहीं मानता।
वह इसी सोच में पड़ा था कि किस्मत से उसी समय वहाँ से एक लोहार की बेटी जा रही थी। उसने देखा कि नदी के किनारे एक लड़का उदास खड़ा है। उसने उसको वहाँ इस तरह खड़े देख कर उसने उससे पूछा कि क्या बात है वह इतना उदास क्यों खड़ा है। उसने उस लड़की को वह सब बताया जो उसकी माँ ने उससे कहा था। फिर उसने उसको बताया कि उसकी माँ ने तीसरा पैसा नदी में फेंकने के लिये कहा था पर यह तो बेवकूफी है। लेकिन वह करे तो क्या करे। पैसा नदी में नहीं फेंकने पर तो माँ का कहना न मानना होगा जो वह नहीं चाहता था।
वह लड़की बहुत होशियार थी। वह बोली — “मैं तुमको बताती हूँ कि तुम क्या खरीदो। तुम जा कर एक पैसे का तरबूज खरीद लो और तीसरा पैसा अपनी जेब में रख लो। उसको तुम नदी में मत फेंको।”
“तरबूज?”
“हाँ तरबूज।”
वह आगे बोली — “देखो तरबूज तुम्हारी माँ की सब शर्तों को पूरा करेगा। वह खाने की चीज़ भी है और वह पीने की चीज़ भी है। वह चबाने की चीज़ भी है और वह जमीन में बोने के लिये भी कुछ देगा। और वह गाय के खाने के लिये भी कुछ देगा। तुम जा कर यह खरीद कर ले जा कर अपनी माँ को दे देना मुझे यकीन है कि वह तुम्हारी इस खरीद से बहुत खुश होंगी।”
सो उसने ऐसा ही किया। जब उसकी माँ ने अपने बेटे की अक्लमन्दी देखी तो वह बहुत खुश हुई। उसको लगा कि उसका बेटा वाकई बहुत अक्लमन्द है। वह तुरन्त ही अपने पति के पास दौड़ी दौड़ी गयी और उस तरबूज को दिखा कर बोली देखो यह मेरे बेटे का काम है।
तरबूज देख कर वह सौदागर भी आश्चर्य में पड़ गया। वह बोला — “मुझे विश्वास नहीं होता कि यह काम उसने खुद किया है। उसे तो अक्ल ही नहीं है। जरूर किसी ने उसको यह करने की सलाह दी है।”
फिर उसने अपने बेटे की तरफ देख कर उससे पूछा — “तुमसे यह करने के लिये किसने कहा?”
वह बोला — “एक लोहार की लड़की ने मुझे यह सलाह दी थी।”
सौदागर अपनी पत्नी की तरफ देख कर बोला — “देखा तुमने? मुझे मालूम था कि यह इस बेवकूफ का काम ही नहीं है। खैर चलो अगर तुम राजी हो तो और इसकी इच्छा हो इसकी शादी उस लोहार की बेटी से कर दो जो खुद इतनी होशियार है और उसने इसमें अपनी इतनी रुचि दिखायी है।”
माँ बोली — “इससे अच्छी तो कोई बात हो ही नहीं सकती।”
अगले कुछ दिनों में सौदागर लोहार के घर गया और उसकी लड़की को देख कर आया जिसने उसके बेटे की सहायता की थी। जब वह उसके घर पहुँचा तो लड़की ने ही दरवाजा खोला। सौदागर ने उससे पूछा — “बेटी क्या तुम घर पर अकेली हो?”
लड़की बोली — “जी हाँ।”
सौदागर ने पूछा — “तुम्हारे माता पिता कहाँ हैं?”
वह बोली — “मेरे पिता एक कौड़ी का लाल खरीदने गये हैं और मेरी माँ शब्द बेचने गयी है। पर वे लोग जल्दी ही आने वाले होंगे। जब तक वे आयें तब तक अन्दर आ कर आप उनका इन्तजार करें।”
लड़की की बात सुन कर सौदागर कुछ सोच में पड़ गया और कुछ न समझते हुए पूछा — “तुमने क्या कहा कि तुम्हारे माता पिता कहाँ गये हैं।”
लड़की बोली — “मेरे पिता एक कौड़ी का लाल यानी लैम्प के लिये तेल खरीदने गये हैं। और मेरी माँ कुछ शब्द बेचने यानी किसी की शादी का रिश्ता तय करने गयी है।”
सौदागर लड़की की होशियारी की बातें सुन कर भौंचक्का रह गया पर उसने अपने विचारों को प्रगट नहीं होने दिया। इसी समय लोहार और उसकी पत्नी घर वापस लौट आये। वे अपने घर में इतने बड़े और अमीर सौदागर को देख कर बहुत आश्चर्यचकित हुए।
उन्होंने उसको सलाम किया और पूछा — “आपने इस गरीब के घर आने का कष्ट कैसे किया?”
सौदागर बोला — “मैं अपने बेटे के लिये आपकी बेटी का हाथ माँगने आया हूँ।”
लोहार ने इस रिश्ते को तुरन्त ही स्वीकार कर लिया। शादी का दिन तय कर लिया गया और सौदागर अपने घर वापस लौट गया। घर आ कर वह अपनी पत्नी से बोला कि यह सब ठीक है। लोहार शादी के लिये राजी हो गया है और शादी का दिन भी पक्का हो गया है।
तुरन्त ही यह खबर सब जगह फैल गयी कि लोहार की बेटी की शादी सौदागर के बेटे से हो रही है। लोगों ने बात करना शुरू कर दिया कि सौदागर अपने बेटे की शादी अपने से नीचे घर में कर रहा है। यह ठीक नहीं है। कुछ लोग तो यहाँ तक पहुँच गये कि उन्होंने सौदागर के बेटे के पास जा कर उसे चेतावनी दी कि वह लोहार से जा कर कहे कि अगर उसने अपनी बेटी की यह गलत शादी की तो वह उसकी बेटी की रोज सात बार जूतों से पीटेगा।
उन्होंने सोचा कि उसकी इस धमकी से लोहार शायद डर जायेगा और यह सगाई तोड़ देगा। उन्होंने उससे आगे कहा कि अगर ऐसा नहीं हुआ और फिर भी तुम्हारी शादी उससे हो गयी तो पहले दिन ही तुम अपनी पत्नी को इस तरह से मारोगे ताकि वह तुम्हें आगे तंग न करे और तुम्हारा कहना माने।
वह बेवकूफ लड़का इस प्लान को एक बहुत अच्छा प्लान समझ कर मान गया और उसने वैसा ही किया। उसने लोहार से जा कर वह सब कह दिया जो लोगों ने उससे लोहार से कहने के लिये कहा था।
लोहार यह सुन कर बहुत परेशान हुआ। उसने यह सब अपनी बेटी को बताया जो सौदागर के बेटे ने उससे कहा था और उससे प्रार्थना की कि वह उस आदमी से कोई सम्बन्ध न रखे।
उसने कहा — “ऐसी शादी करने से तो जिसमें पति पत्नी को चोर की तरह से पीटे ज़िन्दगी भर शादी न करना अच्छा है।”
लड़की बोली — “पिता जी आप चिन्ता मत कीजिये। साफ जाहिर है कि कुछ नीच लोगों ने उनको आपसे ऐसा कहने पर मजबूर किया है। पर आप बिल्कुल परेशान न हों। ऐसा कभी नहीं होगा। एक आदमी के कहने में और उसके वही काम करने में बहुत अन्तर होता है। आप मेरे लिये बिल्कुल नहीं डरें। जो कुछ उन्होंने कहा है वैसा कभी नहीं होगा।”
जिस दिन की शादी तय हुई थी उस दिन धूमधाम से शादी हो गयी। आधी रात को दुलहा उठा और यह सोचते हुए कि उसकी पत्नी सो रही थी उसने एक जूता उठाया और उसको उससे मारने ही वाला था कि पत्नी ने अपनी आँखें खोल दीं।
वह बोली — “ऐसा नहीं करते। शादी की पहली रात को ही लड़ना झगड़ना अपशकुन होता है। कल को अगर तुम चाहो तो मुझे मार लेना पर आज की रात तो तुम मुझसे मत लड़ो।”
अगली रात दुलहे ने दुलहिन को मारने के लिये फिर से अपना जूता उठाया तो उसने फिर से उससे प्रार्थना की — “अगर पति पत्नी शादी के पहले हफ्ते में ही एक दूसरे का अपमान करें तो यह बहुत बड़ा अपशकुन होता है।
मैं जानती हूँ कि तुम एक बहुत ही अक्लमन्द आदमी हो और तुम मेरी बात सुनोगे। तुम अपना यह काम आठवें दिन के लिये रख लो। उस दिन तुम मुझे जितना चाहे उतना मार लेना।”
लड़का राजी हो गया और उसने अपने हाथ में लिया हुआ जूता एक तरफ फेंक दिया। मुसलमानों के रीति रिवाजों के अनुसार सातवें दिन लड़की अपने पिता के घर आयी।
जब लड़के के दोस्त लोग उससे मिले तो वे बोले — “अहा तो उसने तुम्हें भी अच्छा बना दिया। तुम कितने बेवकूफ हो। हमें मालूम था कि ऐसा ही होगा।”
इस बीच सौदागर की पत्नी अपने बेटे के आगे के जीवन के बारे में सोच रही थी। वह सोच रही थी कि अब समय आ गया है जब उसको आजादी से रहना चाहिये। सो उसने अपने पति से कहा — “तुम उसको कुछ सामान दे दो और उसको बेचने के लिये उसे बाहर जाने दो।”
सौदागर बोला — “कभी नहीं। उसके हाथ में यह सब देना तो ऐसा होगा जैसे पैसे को पानी में फेंकना। वह तो उस सबको बरबाद कर आयेगा।”
पत्नी बोली — “अब जाने भी दो। उसको अक्ल इसी तरह से तो आयेगी। उसको कुछ पैसे दो और उसको दूर देशों की यात्रा पर भेज दो। अगर उससे वह कुछ पैसा कमाता है तो कम से कम हम उससे यह उम्मीद रख सकते हैं कि वह पैसे की कीमत समझेगा। और अगर वह पैसा गँवा कर और गरीब हो कर लौटता है तो हम यह उम्मीद करेंगे कि जब वह दोबारा कमायेगा तब उसकी कीमत समझेगा। वह किसी भी हालत में लौटे हम फायदे में रहेंगे। इनमें से किसी भी अनुभव के बिना वह कुछ नहीं सीख सकता।”
इस तरह सौदागर की पत्नी ने सौदागर को अपने बेटे को अकेले व्यापार पर भेजने के लिये राजी कर लिया। उसने अपने बेटे को बुलाया उसको कुछ पैसे दिये कुछ सामान दिया और कुछ नौकर उसके साथ करके उसे व्यापार करने भेज दिया।
इस तरह वह नौजवान सौदागर अपने नौकरों के साथ व्यापार पर चल दिया। उनका कारवाँ बहुत दूर नहीं गया था कि वे सब एक बहुत बड़े बागीचे के पास से गुजरे। उस बागीचे के चारों तरफ एक बहुत ऊँची चहारदीवारी खिंची हुई थी।
नौजवान सौदागर ने पूछा — “यह क्या जगह है। इसके अन्दर जाओ और देख कर आओ।”
उसके नौकर लोग गये और वापस आ कर उसे बताया कि उस चहारदीवारी के अन्दर एक बहुत बड़े बागीचे में एक बहुत बड़ी और शानदार बिल्डिंग है। इस पर वह नौजवान सौदागर खुद उस बागीचे के अन्दर गया।
जब वह उस बड़ी और शानदार बिल्डिंग को देख रहा था तो उसमें उसको एक बहुत सुन्दर लड़की दिखायी दी। उस लड़की ने उसको नड खेलने के लिये अन्दर बुलाया। यह लड़की एक बहुत बड़ी जुआरी थी। इसको वे सब चालें आती थीं जिनसे वह अपने साथ खेलने वाले का सारा पैसा ले लेती थी।
उसकी एक सबसे प्रिय चाल यह थी कि जब वह खेलती थी तो एक बिल्ली अपने साथ रखती थी जो उसने इस तरह से सिखा रखी थी कि जब वह उसको इशारा करती थी तो वह लैम्प के पास जा कर उसको बुझा कर अँधेरा कर देती थी। ऐसा इशारा वह उसको तब करती थी जब वह अक्सर हार रही होती थी। और इस तरह से वह अपने साथ खेलने वाले का सारा पैसा हड़प लेती थी।
यही चाल उसने इस नौजवान सौदागर के साथ भी खेली और उसका काफी पैसा जीत लिया। और उसका केवल पैसा ही नहीं बल्कि उसकी हर चीज़ चली गयी – उसका पैसा उसका सामान उसके नौकर यहाँ तक कि वह खुद को भी हार गया।
और अब जब उसके पास कुछ नहीं बचा तो उसको जेल में डाल दिया गया। यहाँ उसके साथ बहुत बुरा बरताव किया गया। अक्सर वह सिर उठा कर अल्लाह से प्रार्थना करता कि वह उसे इस हालत से बचाने के लिये इस दुनियाँ से उठा ले।
एक दिन उसने जेल के दरवाजे के सामने से जाता हुआ एक आदमी देखा तो उसने उसको पुकारा और उससे पूछा कि वह वहाँ कब आया था। आदमी ने जवाब दिया कि वह फलाँ फलाँ देश से आया था और उसने अपने देश का वही नाम बताया जिसमें उसका पिता रहता था।
नौजवान सौदागर कैदी ने कहा — “यह तो ठीक है पर क्या तुम मेरे ऊपर एक उपकार करोगे। जैसा कि तुम देख रहे हो मैं यहाँ इस जेल में कैद हूँ। मै यहाँ से तब तक नहीं निकल सकता जब तक मेरे ऊपर पड़ा एक बड़ा कर्जा न निबट जाये।
मैं यह चाहता हूँ कि तुम मेरी ये दो चिट्ठियाँ लो। इनमें से एक चिट्ठी मेरे पिता को दे देना और एक मेरी पत्नी को दे देना। अगर तुम मेरा यह काम कर दोगे तो मैं तुम्हारा यह उपकार कभी नहीं भूलूँगा।”
वह आदमी राजी हो गया और दोनों चिट्ठियाँ उससे ले कर अपने रास्ते चला गया। अपने पिता की चिट्ठी में उसने वह सब लिखा था जो उसके ऊपर बीता था और अपनी पत्नी वाली चिट्ठी में उसने लिखा था कि उसने बहुत सारा पैसा कमा लिया है और अब वह जल्दी ही घर वापस आ कर उसे जूते से मारेगा जैसा कि उसने उससे पहले ही कहा था।
जैसे ही उस आदमी ने उस देश में अपना काम खत्म किया वह अपने देश लौट गया और जा कर दोनों चिट्ठियाँ दे दीं। उसको पढ़ना लिखना आता नहीं था सो गलती से उसने पिता की चिट्ठी पत्नी को और पत्नी वाली चिट्ठी पिता को दे दी।
अच्छी खबर पढ़ कर पिता बहुत खुश हुआ हालाँकि उसको यह समझ में नहीं आया कि वह चिट्ठी उसकी बजाय उसकी बहू को क्यों लिखी गयी थी और उसके बेटे ने अपनी पत्नी को ऐसी पीटने वाली बात क्यों लिखी थी।
जब सौदागर के बेटे की पत्नी ने अपनी चिट्ठी पढ़ी तो वह बहुत दुखी हुई और उसको भी यह समझ में नहीं आया कि वह चिट्ठी उसके पति ने अपने पिता के नाम क्यों लिखी थी उसके नाम क्यों नहीं लिखी।
यह बात न समझ पाने से वह अपने ससुर के पास गयी और जा कर अपनी चिट्ठी का हाल उनको बताया तो दोनों की गुत्थी और उलझ गयी क्योंकि दोनों चिट्ठियों में अलग अलग लिखा था। बहू बहुत होशियार और समझदार थी। उसने अपने ससुर से बात की और अपने पति की सहायता के लिये चल पड़ी। और अगर हो सका तो उसको आजाद कराने के लिये भी। उसके ससुर ने उसको जाने की इजाज़त दे दी और साथ में उसके रास्ते के लिये उसे कुछ पैसे भी दे दिये।
लड़की ने आदमी का वेश रखा और चल दी। चलते चलते वह भी उसी जगह पहुँच गयी जहाँ वह सुन्दर लड़की रहती थी। उसने उस लड़की के पास यह खबर पहुँचायी कि वह एक बहुत ही अमीर सौदागर का बेटा है और एक अच्छा जुआरी है इसलिये वह उसके साथ दो दो हाथ खेलना चाहता है।
वह लड़की तुरन्त राजी हो गयी। शाम को उन दोनों को खेलना था। इस बीच बहू ने उस लड़की के नौकरों से पूछताछ की कि उनकी मालकिन खेल में जीतने के लिये कौन कौन सी चालें इस्तेमाल करती है।
पहले तो नौकर उसको यह बताने से हिचकिचाये पर जब बहू ने उनको अशर्फियों के ढेर और कुछ और सामान दिखाया तो वे मान गये और सब कुछ बताने पर तैयार हो गये। उन्होंने उसे बताया कि शायद उनकी मालकिन उसको हराने के लिये उस रात भी बिल्ली वाली चाल खेले। यह सुन कर बहू वहाँ से चली गयी। शाम को वह फिर वहाँ आयी और लड़की को अपना सलाम भेजा। वह अपने साथ एक चूहा लायी थी जो उसने अपने कोट की आस्तीन में छिपा रखा था।
खेल शुरू हुआ। बहुत अच्छी खिलाड़ी होने की वजह से बहू जीतने लगी। यह देख कर उस नीच जुआरी लड़की ने अपनी बिल्ली को इशारा किया। बिल्ली तुरन्त ही लैम्प की तरफ चली। उसी समय बहू ने अपनी आस्तीन में से चूहा छोड़ दिया। छोड़ते ही चूहा दूर भाग गया और उसके पीछे पीछे भाग गयी बिल्ली। कमरे की सारी चीज़ें इधर उधर हो गयीं। लड़की कुछ परेशान सी हो गयी तो बहू बोली — “क्या हम अपना खेल शुरू करें?”
बस फिर क्या था। अब कोई बाधा नहीं थी सो बहू वह बाजी भी जीत गयी और फिर दूसरी तीसरी चौथी। वह सब कुछ जीतती चली गयी। उसने न केवल अपने पति के पैसे और सामान ही जीत लिया बल्कि उस लड़की का पैसा सामान नौकर महल आदि सब कुछ जीत लिया।
इतनी आसानी से सब कुछ जीता हुआ सामान उसने बड़े बड़े बक्सों में बन्द किया। वहाँ के सारे कैदियों को आजाद किया। उसका पति भी दूसरे कैदियों के साथ उसे धन्यवाद देने के लिये वहाँ आया पर वह उसे उस वेश में पहचान न सका।
उसने उसे ध्यान से देखा और पूछा कि क्या वह उसका सरदार बनना चाहेगा। मजबूरी की हालत में उसने उसका सरदार बनना स्वीकार कर लिया। बहू ने उसके फटे मैले कपड़े उतरवा कर सरदारों जैसे कपड़े पहनवाये। सरदार ने ही फिर उनके वहाँ से जाने का इन्तजाम किया।
उसके पुराने कपड़े लकड़ी के एक छोटे से बक्से में रख दिये गये। सारे बक्सों की चाभियाँ सरदार के हवाले कर दी गयीं पर जिस बक्से में नौजवान सौदागर के पुराने कपड़े थे उस बक्से की चाभी बहू ने अपने पास रखी।
जब सब तैयारियाँ हो गयीं तब वे सब वहाँ से चल दिये। उस नीच लड़की को उन्होंने अपने साथ ले लिया। जब वे सब अपने देश के पास पहुँचे तो बहू ने सरदार से कहा — “मुझे अपना एक जरूरी काम है तो मैं इस तरफ जाता हूँ। पर तुम मेरी चिन्ता मत करना। तुम सीधे शहर चले जाओ और यह सब सामान अपने साथ ले जाओ। इस सब सामान को अपने घर में सँभाल कर रख देना जब तक मैं लौट कर आता हूँ।
मैं तुम्हारे पिता को जानता हूँ और तुम्हारे ऊपर भरोसा कर सकता हूँ। अगर मैं बीस दिनों तक न आऊँ तो ये सारी चीज़ें तुम्हारी हैं।” इतना कह कर बहू तो अपने घर चली गयी और उसका सरदार उस नीच लड़की नौकर चाकर और सब सामान के साथ अपने घर चला गया।
अपने घर पहुँच कर बहू ने अपने पिता से यह मामला छिपाने के लिये कहा। कुछ दिनों बाद वह अपनी ससुराल गयी तो जैसे ही उसके पति ने उसे देखा तो बोला — “क्या तुम्हें मालूम है कि मुझे तुम्हें कितनी बार पीटना है।” ऐसा कह कर उसने अपना जूता निकालने का बहाना किया।
उसके माता पिता बोले — “छि छि क्या तुम घर में आने के इस शानदार मौके को ऐसे नीच काम करके मनाओगे।”
उसकी पत्नी बोली — “अब मुझे पता चला। अब तक मैं सोचती थी कि शायद तुममें कुछ अक्ल आ गयी होगी पर लगता है कि तुम वैसे के वैसे ही रहे। इधर देखो। वह बक्सा मेरे पास लाओ। उसको खोलो और उसमें रखे गन्दे कपड़े देख कर बताओ कि ये कपड़े किसके हैं। तुम्हारे या किसी और के? इनको देखो और याद करो कि जेल के रखवालों ने तुम्हारे साथ कैसा व्यवहार किया था। कितनी ज़ोर ज़ोर से मारा था उन्होंने तुमको। कितना खराब और कितना कम खाना दिया था उन्होंने तुमको। और कितनी गालियाँ दी थीं उन्होंने तुमको। यह याद करके तो तुम काँप जाते होगे न।
सुनो मैं ही वह अमीर सौदागर का बेटा हूँ जिसने तुमको छुड़ाया है। जो चिट्ठी तुमने अपने पिता को लिखी थी वह इत्तफाक से मेरे पास आ पहुँची। मैंने तुम्हारा दुख पढ़ा और तुरन्त ही तुमको छुड़ाने के लिये चल पड़ी।
मैंने एक नौजवान सौदागर का वेश रखा और जा कर उस लड़की से मिली जिसने तुम्हें बेवकूफ बनाया था। मैं उसके साथ खेली और तुम्हारा सब कुछ जीत लिया जो तुमने हारा था। और इसके अलावा उस लड़की का भी सब कुछ जीत लिया। यही वह लड़की है। जाओ और जा कर उससे पूछो कि वह मुझे पहचानती है कि नहीं।”
उस जुआरी लड़की ने कहा — “हाँ हाँ यही है वह।”
सौदागर का बेटा तो यह सुन कर भौंचक्का रह गया उसके मुँह से तो कोई बोल ही नहीं फूटा। सौदागर की पत्नी ने अपनी बहू की तरफ देखा और उसको आशीर्वाद दिया। सौदागर खुद अपने बेटे से इतना नाउम्मीद और गुस्सा था कि वह न तो कुछ बोल सका और न ही कुछ कर सका।
आखिर उसने अपनी पत्नी की तरफ देखा और बोला — “अब तुम्हें विश्वास हो गया कि तुम्हारा बेटा कितना बेवकूफ है। यह सब सामान और जवाहरात बहू को दे दो। वह उसके लिये बहुत ज़्यादा अच्छी है।”
(सुषमा गुप्ता)