एक माँ की कहानी (डैनिश कहानी) : हैंस क्रिश्चियन एंडर्सन

Ek Maan Ki Kahani (Danish Story in Hindi) : Hans Christian Andersen

माँ छोटे बच्चे के पास बैठी थी। वह बहुत उदास थी और डर रही थी कि कहीं मर न जाए। उसका नन्हा चेहरा पीला पड़ गया था और आँखें बंद थीं। बच्चा कठिनाई से साँस ले पा रहा था। कभी इतनी गहरी साँस लेता था जैसे वह आहें भर रहा हो। तब माँ पहले से और अधिक उदास हो जाती थी।

दरवाजे पर दस्तक हुई और विनीत बूढ़ा आदमी अपने को किसी चीज में लपेटे अंदर आया; उसका ओढ़ना घोड़े के बडे़ कपडे़ जैसा था जिससे वह अपने आपको गरम रख सके। उसे इसकी जरूरत थी क्योंकि शरद् ऋतु थी। बाहर हर वस्तु बर्फ से ढकी हुई थी और हवा इतनी तेज चल रही थी कि चेहरा कट रहा था।

बूढ़ा सरदी से काँप रहा था। क्षण भर के लिए बच्चा शांत हो गया, तो माँ अंदर गई और उसके लिए थोड़ी बीयर छोटे बरतन में गरम करने के लिए स्टोव पर रख दी। बूढ़ा आदमी बैठ गया और झुला झुलाने लगा तथा माँ पुरानी कुरसी पर उसके पास बैठ गई और बच्चे को देखने लगी जिसे साँस लेने में भी पीड़ा हो रही थी; इसने उसका नन्हा हाथ थाम लिया।

‘‘तुम सोचते हो कि मैं इसे रख सकूँगी?’’ उसने पूछा, ‘‘अच्छा, ईश्वर इसको मुझसे ले तो नहीं जाएगा न?’’

वह बूढ़ा आदमी—जो साक्षात् मृत्यु था—उसने इस अजीब ढंग से सिर हिलाया जिसका अभिप्राय हाँ और ना—दोनों हो सकते थे। माँ ने आँखें नीची कर लीं और आँसू उसके गालों पर टपकने लगे। उसका सिर भारी हो गया, क्योंकि तीन दिन और तीन रात वह अपनी आँखें बंद नहीं कर पाई थी और अब वह एक क्षण के लिए सोई थी। फिर वह उठी और सरदी से काँपने लगी।

यह क्या हुआ? उसने पूछा और चारों तरफ देखा, परंतु बूढ़ा व्यक्ति जा चुका था और साथ में उसका बच्चा भी अपने साथ ले गया था। कोने में पुरानी दीवार घड़ी गुनगुना और घरघरा रही थी। भारी साँसों का बोझ फर्श पर गिरा—स्थूल!—और घड़ी रुक गई।

परंतु माँ बच्चे के लिए रोते हुए घर से बाहर दौड़ी।

बाहर एक औरत बर्फ में काले कपडे़ पहने बैठी थी, उसने कहा—

‘‘मृत्यु तुम्हारे साथ कमरे में थी, मैंने उसे, तुम्हारे बच्चे के साथ जल्दी से जाते हुए देखा था; वह हवा से भी तेज कदम भर रही थी। जिसे वह एक बार ले जाती है, फिर उसे कभी नहीं लौटाती।’’

‘‘वह गई किस तरफ है, मुझे इतना बता दो,’’ माँ ने पूछा, ‘‘मुझे रास्ता बता दो, मैं उसे ढूँढ़ लूँगी।’’

‘‘मैं उसे जानती हूँ,’’ काले कपड़ोंवाली औरत ने कहा, ‘‘परंतु इससे पहले कि मैं तुम्हें बताऊँ, तुम वे सारे गीत मुझे सुनाओ जो तुमने बच्चे को सुनाए थे। मुझे वे गीत अच्छे लगते हैं; मैं उनको पहले सुन चुकी हूँ। मैं रात हूँ और मैंने तुम्हारे आँसू देखे हैं जब तुम उन्हें गाती थी।’’

‘‘मैं उन सबको गाऊँगी—सबको,’’ माँ ने कहा, ‘‘परंतु मुझे जाने दो, ताकि मैं उसे पकड़ सकूँ और अपने बच्चे को पा सकूँ।’’

परंतु रात मौन और निश्चल बैठी रही। फिर माँ ने अपने हाथ सिकोड़े, गाना गाया और रोई। बहुत गाने और उनसे अधिक आँसू बहाने पर, रात बोली, ‘‘दाईं ओर देवदार के घने जंगल में जाओ क्योंकि मैंने मृत्यु को तुम्हारे बच्चे के साथ उधर ही जाते देखा था।’’

जंगल में काफी अंदर सड़कों का चौराहा था और वह जानती थी कि कौन सा रास्ता पकडे़। वहाँ बिना फूल-पत्तों के काले काँटों की एक झाड़ी थी; ठंडी शरद् ऋतु के कारण टहनियों से बर्फ के तोदे लटक रहे थे।

‘‘क्या तुमने मृत्यु को मेरे नन्हें बच्चे के साथ जाते हुए नहीं देखा?’’

‘‘हाँ,’’ झाड़ी ने उत्तर दिया—‘‘परंतु मैं तुम्हें तब तक नहीं बताऊँगी कि वह किस तरफ गई है, जब तक तुम अपनी छाती से मुझे गरम नहीं करती। मैं यहाँ जम रही हूँ; मैं बर्फ बन रही हूँ।’’

उसने झाड़ी को सीने से लगा लिया, बिलकुल पास ताकि अच्छी तरह गरम कर सके। काँटे उसकी चमड़ी में घुस गए और उसका रक्त बड़ी-बड़ी बूँदों में बहने लगा। काले काँटोंवाली झाड़ी के ताजा पत्ते निकल आए और उस काली शरद् रात में फूल खिल गए। एक दुःखी माँ का सीना कितना गरम होता है! काले काँटोंवाली झाड़ी ने बता दिया कि वह कौन सा रास्ता पकडे़।

फिर वह एक बड़ी झील के पास आई जहाँ न कोई जहाज था और न ही कोई नाव। झील न इतनी जमी हुई थी कि वह उसपर चल सके और न ही इतनी काफी खुली थी कि उसमें से चलकर निकल सके; फिर भी उसको इसे पार करना था—यदि वह बच्चे को पाना चाहती थी। फिर वह झील को ही पीने के लिए लेट गई; ऐसा करना किसी के लिए भी असंभव था, परंतु दुःखी माँ ने सोचा कि शायद कुछ अजूबा हो जाए!

‘‘नहीं, यह कभी नहीं हो सकता,’’ झील ने कहा, ‘‘आओ, हम देखें कि हम समझौता कैसे कर सकते हैं। मुझे मोती इकट्ठे करने में रुचि है और तुम्हारी दोनों आँखें इतनी साफ हैं जैसी मैंने कभी नहीं देखीं। यदि तुम अपने आँसू मुझमें डाल दो तो मैं तुम्हें बड़े ग्रीन हाऊस तक पहुँचा दूँगी जहाँ मृत्यु फूल और वृक्ष उगाती है; उनमें से हर मानव एक जीवन है।’’

‘‘ओह, मैं बच्चे को पाने के लिए क्या कुछ नहीं दे सकती?’’ प्रभावित माँ ने कहा; वह और रोई। उसके आँसू झील की गहराई में गिरकर दो अमूल्य मोती बन गए। झील ने उसको ऊपर उठा लिया जैसे झूले में बैठी हो, फिर उसे दूसरे किनारे पर पहुँचा दिया जहाँ मीलों में एक शानदार घर खड़ा था। कोई यह नहीं बता सकता था कि वह जंगलों और गुफाओंवाला पर्वत था या ऐसी कोई जगह थी जो बनाई गई थी, परंतु बेचारी माँ उसे देख नहीं सकी क्योंकि वह अपनी आँखें खो चुकी थी।

‘‘जो मेरे बच्चे को अपने साथ ले गई है, उस मृत्यु को मैं कहाँ ढूँढूँ?’’

‘‘वह अभी यहाँ नहीं पहुँची।’’ भूरे बालोंवाली बूढ़ी औरत ने कहा, जो मृत्यु के शीशे के मकान में इधर-उधर ध्यान से घूम रही थी। ‘‘तुमने यह रास्ता कैसे ढूँढ़ा और किसने तुम्हारी सहायता की है?’’

‘‘अच्छे ईश्वर ने मेरी सहायता की है,’’ उसने उत्तर दिया—‘‘वह कृपालु है और तुम भी कृपालु होगी। कहाँ—मैं अपने बच्चे को कहाँ ढूँढूँ?’’

‘‘मैं नहीं जानती,’’ बूढ़ी औरत ने कहा, ‘‘और तुम भी देख नहीं सकती हो। कई फूल और वृक्ष रात को मुरझा गए हैं। मृत्यु आएगी और उनका जल्दी पुनरारोपण करेगी। तुम भली प्रकार जानती हो कि क्रमानुसार प्रत्येक मानव के पास जीवन-वृक्ष अथवा जीवन-पुष्प है। वे दूसरे पौधों की तरह नजर आते हैं परंतु उनके दिल धड़कते हैं। बच्चों के दिल भी धड़क सकते हैं। इसपर विचार करो। संभवतः तुम अपने बच्चे के दिल की धड़कन को पहचान सको, परंतु तुम मुझे क्या दोगी यदि मैं बता दूँ कि तुम्हें और क्या करना होगा?’’

‘‘मेरे पास देने को और कुछ नहीं है,’’ प्रभावित माँ ने कहा, ‘‘परंतु मैं तुम्हारे लिए पृथ्वी के छोरों तक जा सकती हूँ।’’

‘‘वहाँ तुम्हारे करने के लिए मेरे पास कुछ नहीं है,’’ बूढ़ी औरत ने कहा, ‘‘परंतु तुम अपने लंबे बाल मुझे दे सकती हो। तुम्हें स्वयं ज्ञात होना चाहिए कि ये सुंदर हैं और मुझे अच्छे लगते हैं। इन के बदले में तुम मेरे सफेद बाल ले सकती हो; ये सदा के लिए कुछ-न-कुछ हैं।’’

‘‘तुम और कुछ नहीं चाहती?’’ उसने पूछा, ‘‘मैं खुशी से इनको दे दूँगी।’’ और उसने अपने सुंदर बाल उसे दे दिए और बूढ़ी औरत के सफेद बाल ले लिये।

इसके बाद वह उसे मृत्यु के महान् शीशे के घर में ले गई जहाँ फूल और वृक्ष आश्चर्य ढंग से आपस में मिले उग रहे थे। वहाँ घास के फूलों के नीचे सुंदर फूल खिले थे; कुछ बिलकुल ताजा और बाकी कुछ-कुछ मुरझाए हुए; पानी के साँप उनके आसपास मिलन कर रहे थे और केकड़े टहनियों में दृढ़ता से चिपक रहे थे। वहाँ पाम के भड़कीले वृक्ष थे; बलूत, केले, अजमोदा और पोदीने के खिले हुए पौधे भी थे। हर फूल और वृक्ष का नाम था; प्रत्येक मानव जीवन था; लोग जीवित थे, एक चीन में, दूसरा ग्रीनलैंड में—दुनिया में बिखरे हुए। बूढे़, बडे़ वृक्षों को गमलों में ढकेला गया था और काई में लिपटे रक्षित छोटे, दुर्बल फूल धरती में उपज रहे थे। परंतु दुःखी माँ तमाम छोटे-से-छोटे पौधों पर झुकी और प्रत्येक में मानव हृदय को धड़कते पाया और लाखों पौधों में से अपने बच्चे के दिल को पहचान लिया।

‘‘यह है वह!’’ वह चिल्लाई और केसर के नन्हें फूल की ओर हाथ फैलाए जो पीला और मुरझाया हुआ लटक रहा था।

‘‘फूल को मत छूओ,’’ बुढि़या ने कहा, ‘‘यहाँ बैठ जाओ, जब मृत्यु, जो कुछ ही मिनटों में आनेवाली है, आएगी तो उसे पौधे उखाड़ने मत देना बल्कि उसको धमकाना कि यदि उसने ऐसा किया तो तुम दूसरे पौधे उखाड़ दोगी; तब वह डर जाएगी; उसको इन सबका हिसाब देना होता है; जब तक परमात्मा की आज्ञा नहीं होगी, एक भी पौधा उखाड़ा नहीं जाना चाहिए।’’

एकाएक बडे़ कमरे में से एक बर्फीला झोंका आया और अंधी माँ ने महसूस किया कि मृत्यु आ पहुँची है।

‘‘तुमने यहाँ का रास्ता कैसे ढूँढ़ा?’’ उसने पूछा, ‘‘तुम मुझसे पहले जल्दी कैसे आ गईं?’’

‘‘मैं माँ हूँ।’’ उसने उत्तर दिया।

मृत्यु ने कोमल नन्हें फूल की ओर अपने हाथ बढ़ाए; परंतु उसने हाथ कसकर रखे और दृढ़ता से थामे रही; फिर भी उसने पूर्णतः सावधानी रखी ताकि वह एक पत्ती भी छू न सके। फिर मृत्यु ने अपने हाथों पर फूँक मारी और महसूस किया कि उसकी साँस बर्फीली हवा से अधिक ठंडी थी; और उसके हाथ शक्तिहीन होकर नीचे गिर गए।

‘‘तुम मेरे विरुद्ध कुछ नहीं कर सकती।’’ मृत्यु ने कहा।

‘‘परंतु दयालु परमात्मा कर सकता है।’’ उसने उत्तर दिया।

‘‘मैं केवल वही करती हूँ जिसकी वह आज्ञा देता है,’’ मृत्यु ने कहा, ‘‘मैं उसकी मालिन हूँ। मैं उसके तमाम फूल और वृक्ष ले जाती हूँ और स्वर्ग के विशाल उपवन की अनजानी धरती पर पुनरारोपण करती हूँ, परंतु ये वहाँ कैसे शोभायमान होते हैं, वहाँ कैसे, क्या होता है, मैं तुम्हें नहीं बताऊँगी।’’

‘‘मेरा बच्चा मुझे लौटा दो।’’ माँ ने कहा और याचना करके रोई। एकाएक उसने अपने दोनों हाथों में दो प्यारे फूल पकड़ लिये और मृत्यु को पुकारा—‘‘मैं तुम्हारे सारे फूल नष्ट कर दूँगी क्योंकि मैं निराशा में हूँ।’’

‘‘उन्हें हाथ मत लगाओ,’’ मृत्यु ने कहा, ‘‘तुम कहती हो कि तुम दुःखी हो और एक दूसरी माँ को दुःखी करने पर तुली हो।’’

‘‘दूसरी माँ?’’ विनीत औरत ने कहा और फूलों को छोड़ दिया।

‘‘यह दूसरी माँ आँखें हैं,’’ मृत्यु ने कहा, ‘‘मैंने इनको झील से निकाला है; ये तेजी से चमक रही थीं। मुझे मालूम नहीं था कि ये तुम्हारी हैं। इन्हें वापस ले लो, ये पहले से ज्यादा साफ हैं, निकटवाले गहरे कुएँ में झाँककर देख लो। मैं तुम्हें इन दो फूलों के नाम बताऊँगी जो तुम उखाड़ना चाहती थी और जान जाओगी कि तुम निराशा और विनाश को प्राप्त होने जा रही थीं।

उसने कुएँ में झाँका; यह प्रसन्नता की बात थी कि उनमें से एक संसार के लिए किस प्रकार आशीर्वाद बन गई; उसके आसपास कितना आनंद और उल्लास फैल गया था। एक औरत ने दूसरी के जीवन को देखा कि वह रक्षा, निर्बलता, दुःख और आहों से बना था।

‘‘दोनों ही परमात्मा की इच्छाएँ हैं।’’ मृत्यु ने कहा।

‘‘इनमें से हत-भाग्य कौन सा फूल है और कौन सा भाग्यवान्?’’

‘‘यह मैं तुम्हें नहीं बताऊँगी,’’ मृत्यु ने कहा, ‘‘परंतु तुम्हें इतना मालूम होना चाहिए कि इन दो फूलों में से एक तुम्हारे बच्चे का है। यह तुम्हारे बच्चे का भाग्य था कि तुम उसका भविष्य बनी।’’

फिर माँ ने डरकर जोर से चीख मारी।

‘‘इनमें से मेरे बच्चे का कौन सा है?मुझे बताओ! मासूम बच्चे को छोड़ दो! इन तमाम दुःखों से मेरे बच्चे को मुक्ति मिल जाए। बेशक इसे ले जाओ! इसे परमात्मा के राज्य में ले जाओ। मेरे आँसुओं को भूल जाओ, मेरी प्रार्थना को भूल जाओ और उस सबको भूल जाओ जो मैंने किया है।’’

‘‘मैं समझ नहीं पा रही हूँ,’’ मृत्यु ने कहा, ‘‘क्या तुम अपना बच्चा वापस चाहोगी या मैं उसे ऐसे स्थान पर ले जाऊँ जिसे तुम नहीं जानती?’’ फिर माँ ने हाथ मले और घुटनों के बल गिरकर प्रार्थना करने लगी।

‘‘यदि मैं तुम्हारी इच्छा के विरुद्ध प्रार्थना करती हूँ तो उसे मत सुनो! तुम्हारी इच्छा सदा सर्वोत्तम है। मुझे मत सुनो! मत सुनो मुझे!’’

उसने अपने सिर को अपने सीने पर गिरा दिया।

मृत्यु उसके बच्चे के साथ अनजाने स्थान को चली गई!

(अनुवाद : भद्रसैन पुरी)

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