एक लड़का और उत्तरी हवा : नॉर्वे की लोक-कथा
Ek Ladka Aur Uttari Hawa : Norway Folktale/Folklore
एक बार की बात है कि नौर्वे देश में एक गरीब विधवा अपने बेटे के साथ रहती थी। एक दिन वह अपने बेटे से बोली — “बेटे, नीचे वाले कमरे से ज़रा आखिरी आटा उठा लाओ ताकि मैं डबल रोटी बना दूँ। ”
लड़का एक कटोरा ले कर आटा लाने के लिये नीचे वाले कमरे में गया। जैसे ही वह लड़का आटा ले कर उस कमरे से बाहर निकला तो उत्तरी हवा ने उसके साथ एक नीच चाल खेलने का निश्चय किया।
वह ज़ोर से बही, एक ज़ोर का हवा का झोंका आया और उसने वह आटा उड़ा कर उस लड़के के चेहरे पर और घर के बाहर बिखेर दिया।
वह लड़का बेचारा ऊपर आया और सब कुछ अपनी माँ को बताया। उसने केवल उसको गले लगाया और बोली — “बेटे, मुझे नहीं मालूम अब मैं क्या करूँ क्योंकि अब तो हमारे पास खाने के लिये कुछ भी नहीं है। ”
उस लड़के की माँ ने उसको इस तरह से बता कर बड़ा किया गया था कि अगर कभी किसी से कोई बुरा काम हो जाये तो उसको ठीक कर लेना चाहिये सो उसने सोचा कि उत्तरी हवा का यह बुरा काम ठीक करना चाहिये।
ऐसा सोच कर उसने तुरन्त ही घर छोड़ दिया और उत्तरी हवा ने जो आटा फैलाया था उसके पीछे पीछे चल दिया। वह लड़का चलता रहा, चलता रहा, चलता रहा जब तक कि वह उत्तरी हवा के घर तक नहीं पहुँच गया।
लड़के ने उत्तरी हवा को नमस्ते की और उससे बोला — “मुझे मालूम है कि तुमने मेरे साथ अभी अभी एक चाल खेली है पर देखो, मैं और मेरी माँ बहुत गरीब हैं।
तुमने हमारा आखिरी आटा उड़ा दिया है और अब हम लोग भूखे हैं। तुमको अपने इस काम को ठीक करना चाहिये और हमारा आटा हमें वापस दे देना चाहिये। ”
उत्तरी हवा को यह सब सुन कर बहुत बुरा लगा कि उसने एक गरीब माँ और बेटे को तंग किया।
वह बोला — “बच्चे, मुझे अपने इस काम का बहुत अफसोस है। मैं तुम्हारा आटा तो तुमको वापस नहीं दे सकता पर इसके बजाय मैं तुमको एक और अच्छी चीज़ देता हूँ। ”
सो उसने एक कपड़ा निकाला और उस लड़के को देते हुए कहा — “लो यह लो। यह एक खास कपड़ा है। इसको किसी मेज पर बिछाना और इससे कहना “बिछ जा ओ कपड़े बिछ जा। ” बस तुमको खाने की कभी कमी नहीं रहेगी। ”
लड़के ने उत्तरी हवा को धन्यवाद दिया और उस कपड़े को अपनी बगल में दबा कर घर वापस चल दिया। वह बहुत देर तक चलता रहा पर फिर रात हो गयी तो वह रात को सोने के लिये एक सराय में रुक गया।
सराय के मालिक ने पूछा — “तुम इस सराय का किराया कैसे दोगे जबकि तुम कहते हो कि तुम्हारे पास न खाने के लिये पैसे हैं और न सोने के लिये?”
लड़के ने उत्तरी हवा का दिया हुआ कपड़ा मेज पर बिछाया और बोला — “बिछ जा ओ कपड़े बिछ जा। ”
और देखते ही देखते वह मेज बहुत ही स्वादिष्ट खाने और पीने के सामान से भर गयी। उस समय उस मेज पर उस सराय में हर रहने वाले के लिये काफी खाना था।
यह देख कर सराय के मालिक ने उसे सोने के लिये अपना कमरा दे दिया। रात को वह उस लड़के के कमरे में चुपके से घुसा और उसका वह जादुई मेजपोश उठा कर उसकी जगह ठीक वैसा ही एक मेजपोश रख दिया और कमरे में से निकल आया।
सुबह उठ कर लड़का अपने घर चला आया। घर आ कर उसने वह मेजपोश अपनी माँ को दिखाया और अपनी माँ को अपनी अच्छी किस्मत के बारे में बताया।
फिर वह मेजपोश मेज पर फैला कर बोला — “बिछ जा ओ कपड़े बिछ जा। ” पर वहाँ तो कुछ भी नहीं हुआ।
माँ बोली — “बेटा, तुमको धोखा दिया गया है। ”
उस लड़के को इस तरह से बता कर बड़ा किया गया था कि अगर किसी से कभी कोई बुरा काम हो जाये तो उसको ठीक कर लेना चाहिये सो उसने सोचा कि उस उत्तरी हवा को एक मौका और देना चाहिये कि वह अपना बुरा काम ठीक कर ले।
सो वह फिर उत्तरी हवा के पास चल दिया। वहाँ जा कर वह बोला — “वह कपड़ा जो तुमने मुझे दिया है वह तो काम नहीं करता। मैं जानता हूँ कि तुम मुझे और मेरी माँ को भूखा नहीं देख सकते पर तुमको अपना काम भी ठीक से करना चाहिये इसलिये तुम हमारा आटा वापस कर दो। ”
उत्तरी हवा बोला — “मैं तुम्हारा आटा तो वापस नहीं कर सकता पर मैं तुमको एक और अच्छी चीज़ देता हूँ। ”
कह कर उत्तरी हवा ने उस लड़के को एक खास बकरी दी और कहा — “देखो यह बकरी पैसे देती है। बस तुमको इतना कहना है कि “बकरी, बकरी, पैसे दो। ” और तुम्हारे पास तुम्हारी जरूरतों को पूरा करने के लिये काफी पैसा आ जायेगा। ”
लड़के ने उत्तरी हवा को धन्यवाद दिया और उस बकरी को ले कर घर चल दिया। रात को आराम करने के लिये वह फिर उसी सराय में ठहरा।
सराय के मालिक ने पूछा कि तुम इस सराय के पैसे कैसे दोगे? तुम्हारे पास तो न खाने के लिये पैसे हैं और न सराय में ठहरने के लिये।
लड़का सराय के बाहर गया जहाँ उसकी बकरी बँधी हुई थी। उसने उससे कहा — “बकरी, बकरी, पैसे दो। ”
बकरी ने एक डकार ली और उसके मुँह से बहुत सारे सिक्के गिर पड़े। सराय के मालिक ने जब यह सब देखा तो रात को उस लड़के के सो जाने के बाद उसकी बकरी को चुरा लिया और उसकी जगह दूसरी वैसी ही एक बकरी रख दी।
सुबह वह लड़का उठा और अपनी बकरी ले कर अपने घर चला गया। वहाँ जा कर उसने उस बकरी को अपनी माँ को दिखाया और बोला — “बकरी, बकरी, पैसे दो। ”
पर वहाँ तो कुछ भी नहीं हुआ। उसकी माँ फिर बोली — “मुझे अफसोस है बेटा कि तुमको फिर से धोखा दिया गया है। ”
उस लड़के की माँ ने उसको इस तरह से बता कर बड़ा किया गया था कि अगर कभी किसी से कोई बुरा काम हो जाये तो उसको ठीक कर लेना चाहिये सो उसने सोचा कि उस उत्तरी हवा को एक मौका और देना चाहिये ताकि वह अपना बुरा काम ठीक कर ले।
सो वह फिर एक बार उत्तरी हवा के पास चल दिया। वहाँ जा कर उसने उत्तरी हवा से कहा — “तुम्हारी बकरी पैसे नहीं देती। मुझे मालूम है कि तुम मुझे और मेरी माँ को भूखा नहीं देखना चाहते इसलिये तुमको अपना काम तो कम से कम ठीक से करना चाहिये और हमारा आटा वापस कर देना चाहिये। ”
उत्तरी हवा फिर बोला — “मैं तुम्हारा आटा तो वापस नहीं कर सकता पर मैं तुमको एक और अच्छी चीज़ देता हूँ। ”
अबकी बार उत्तरी हवा ने लड़के को एक डंडा दिया और बोला — “यह डंडा तुम्हारी हर परेशानी को हमेशा के लिये दूर कर देगा। जब तुम यह कहोगे “मारो डंडे मारो। ” तो यह वही करेगा जो इसको करना है।
जब तुम इसको रोकना चाहो तो इसको बोलना — “रुक जाओ ओ डंडे, रुक जाओ। ”
लड़के ने उत्तरी हवा को धन्यवाद दिया और वह डंडा ले कर अपने घर चल दिया। वह आराम करने के लिये फिर उसी सराय में रुका।
इस बार सराय के मालिक ने उस लड़के से यह नहीं पूछा कि वह उसको पैसे कैसे देगा। उसने लड़के को ठीक से खिलाया पिलाया और अपने कमरे में सुला दिया।
काफी रात गये वह उस लड़के के कमरे में आया और उसकी जादू की डंडी से अपनी डंडी बदलने लगा पर इस बार वह लड़का जाग गया और उस डंडी से बोला — “मारो डंडे मारो। ”
वह डंडी हवा में उड़ी और सराय के मालिक को मारने लगी। वह तब तक उसको मारती रही जब तक उसने यह नहीं कह दिया कि उसी ने उसके मेजपोश और बकरी चुराये थे और अब वह उनको वापस कर देगा।
तब लड़का बोला — “रुक जाओ ओ डंडे, रुक जाओ। ”
उसके ऐसा कहते ही वह डंडा रुक गया और फिर वह सराय का मालिक वह मेजपोश और बकरी लाने चला गया। वे दोनों चीजें, ला कर उसने उस लड़के को दे दीं।
लड़के ने अपना जादुई मेजपोश, बकरी और डंडा लिया और अपने घर चला गया।
अब उसके और उसकी माँ के पास कभी खाने की कमी नहीं रही, कभी पैसे की कमी नहीं रही और जब भी कोई उनके साथ खराब काम करता तो उसके लिये उनके पास उसको सजा देने के लिये डंडा था।
(सुषमा गुप्ता)