एक गधे की वापसी (उपन्यास) : कृष्ण चन्दर

Ek Gadhe Ki Wapsi (Novel in Hindi) : Krishen Chander

दर्शकगण और श्रोताओं! मैं न रूसियों का राकेट हूं, न अमरीकियों का पाकिट हूं, न गली हबशखां फाटक हूं; न मैं रमता जोगी न्यारा हूं न कोई बनावटी सय्यारा हूं, न किसी फिल्मी हीरोइन का प्यारा हूं, न किसी लखपती की आंख का तारा हूं-मैं महज एक गधा आवारा हूं, जिसे बचपन की गलतकारियों के कारण अखबार पढ़ने की आदत पड़ गई थी। जो न कविराज गुरनामदास के हिदायतनामे से दूर हुई, न प्यारी बहन जी के इलाज से गई। अखबार पढ़ते-पढ़ते मैं इन्सानों की बोली बोलने लगा और कूट राजनीति की बातें करने लगा। इसी कारण मैंने अपना प्यारा वतन बाराबंकी छोड़ा और डंकी बनकर दिल्ली के एक धोबी से नाता जोड़ा। धोबी को अचानक एक मगरमच्छ ने खा लिया और मुझे धोबी की विधवा पत्नी और अनाथ बच्चों के निर्वाह के लिए बड़े-बड़े अफसरों की सेवा में निवेदन करने पर विवश कर दिया गया। मैं अर्जी लेकर दफ्तर-दफ्तर घूमा और मिनिस्टर-मिनिस्टर पहुंचा और पहुंचते-पहुंचते एक दिन सीधा पंडित नेहरू की कोठी पर जा पहुंचा। पंडित नेहरू से संयोगवश जो मेरा इण्टरव्यू हो गया, उसने मुझे प्रसिद्धि के आसमान पर पहुंचा दिया। लोग मुझे घरों और क्लबों में बुलाने लगे। गलियों और बाजारों में मेरा जूलूस निकालने लगे। एक सेठ ने समझा कि मैं कोई खुदाई फौजदार हूं या कोई करोड़पति ठेकेदार हूं, जिसने ऊपर से एक मासूम गधे का भेस धारा है और अंदर ही अंदर बहुत बड़ा ठेकेदार है। वह बहुत मिन्नत-समाजत करके मुझे अपने घर ले गया। अपनी फर्म का हिस्सेदार बनाने लगा, अपनी सुंदर लड़की से मेरी शादी रचाने लगा और हाई सोसायटी में मुझे घुमाने लगा।

मैंने बहुत इंकार किया, मना किया। बताया-मैं यूं तो ज्ञान भार से लदा हूं किंतु दरअसल एक गधा हूं! किंतु वह लालच का अंधा मेरी बात पूरी सुनने से पहले अनसुनी कर देता था और अपनी हांके जाता था और मेरी आवभगत किए जाता था।

कुछ महीने तो बड़े ऐशोआराम से कटे, किंतु जिस दिन उस लालची सेठ को पता चला कि मेरे पास न कोई परमिट है न कोटा, उसी दिन वह बेपेंदी का लोटा मुझे मारने पर तुल गया और कमरा बंद करके उसने और उसकी लड़की ने मार-मारकर मेरा भुरकस निकाल दिया और मुझे सख्त घायल करके बाहर सड़क पर निकाल दिया।

छः मास तक मैं जानवरों के अस्पताल में पड़ा जीवन और मृत्यु के बीच लटकता रहा। पीड़ा की अधिकता से कराहता रहा। इंसानों की बेहिसी (हृदयहीनता) और गधों की बेबसी पर रोता रहा। किंतु ईश्वर को मेरा जीना स्वीकार था और मेरे लिए जिंदगी का जहर पीना जरूरी था। इसलिए मैं अच्छा हो गया। स्वस्थ होते ही अस्पताल के दयालु डॉक्टर ने मुझे अपने ऑफिस में बुला लिया और मेरी पीठ पर दो सेर घास लादकर कहा-
‘‘तुम्हारे लिए यह दो सेर घास काफी है, बाकी ईश्वर दाता है। अब तुम यहां से चले जाओ और मेरा दो हजार का बिल चुकाते जाओ।’’

मैंने कहा, ‘‘डॉक्टर साहब, मैं एक पढ़ा-लिख गधा नाकारा हूं। इसलिए गरीब और आवारा हूं। मैं जब तक जीऊंगा, आपके जानोमाल की दुआएं दूंगा। पर इस बिल का भुगतान नहीं कर सकता।’’

डॉक्टर, जिसका नाम राम अवतार था और जो अपने काम में बड़ा होशियार था, मेरी विवशता समझकर मुस्करा दिया और बिल को वापस अपनी जेब में डालते हुए बोला, ‘‘तो मेरा यह कर्ज तुम पर बाकी रहा। अब अगर वाकई तुम कर्ज देना चाहते हो तो सीधे बम्बई चले जाओ।’’
‘‘बंबई?’’ मैंने पूछा।

‘‘हां’’, डॉक्टर बोला, ‘‘पश्चिमी भारत में एक नगर आबाद है, जो सब नगरों का उस्ताद है। उसका नाम बंबई है। तुम सीधे वहां चले जाओ और काम करके मेरा कर्ज चुकाओ।’’

मैं स्वयं दिल्ली में नहीं रहना चाहता था। दिल्ली-जिसने मेरे प्रसिद्धि की ऊंचाई देखी थी और जो अब मेरे पतन की नीचाइयां देख रही थी-अब मुझे एक आंख न भाती थी। इसलिए मैंने डॉक्टर की सलाह मान ली और बंबई जाने की ठान ली।

दिल्ली से मैं रेल की पटरी के किनारे-किनारे हो लिया और मथुरा पहुंचा, क्योंकि मुझे मथुरा के पेड़े खाने का शौक था। किंतु मथुरा में मुझे पेड़ों के बजाय पंडों के डंडे खाने को मिले और मैं वहां से जान बचाकर सीधा ग्वालियर पहुंच गया। उद्देश्य यह था कि तानसेन की समाधि पर जाऊं और उस महान् संगीतकार के सामने अपना शीश नवाऊं कि जिसके नाम से भारत में शास्त्रीय संगीत की प्रतिष्ठा कायम है। और यह तो सब लोग जानते हैं कि आजकल भारत में केवल दो प्रकार के लोग शास्त्रीय संगीत पसंद करते हैं। एक तो तानसेन-से श्रद्धालु, दूसरे गधे; वर्ना सारी दुनिया रेडियो सीलोन सुनती है।

तानसेन की समाधि पर बड़ा सन्नाटा था। एक कोने में दो मुजाविर पड़े ऊंघ रहे थे। जमीन पर बासी हारों की पत्तियां बिखरी पड़ी थीं। थोड़ी दूर पर कुछ भेड़-बकरियां फिल्मी ‘प्लेबैक’ गानेवालियों की तरह मिमियां रही थीं। संगीत-सम्राट् की समाधि की बुरी दशा देखकर मेरे दिल को बहुत दुःख हुआ और मैंने वहीं चारों घुटने टेककर स्वर्गीय उस्ताद की सेवा में दण्डवत् होकर माथा टेका और फिर सिर उठाकर शुद्ध झंझोटी में एक ऐसी जोरदार तान लगाई जिसने अर्धनिद्रित मुजाविरों को झिंझोड़ दिया है। वे जागकर मेरी ओर आश्चर्य से देखने लगे और बजाय इसके कि लोग मेरे जौके सलीम बल्कि जौके-अकबर की दाद देते, जिसके सहारे मैंने स्वर्गीय उस्ताद की आत्मा को प्रसन्न करने का प्रयत्न किया था, वे लोग पंजे झाड़कर मेरे पीछे पड़ गए और मुझे डंडे मार-मारकर उन्होंने वहां से भी भगा दिया।

मैं डंडे खाकर इतना बेमजा न हुआ था जितना यह सोचकर बेमजा हुआ कि अब इस देश में आर्ट और कल्चर का भगवान् ही मालिक है, जहां एक पक्के गाने वाला दूसरे पक्के गाने वाले को अपनी श्रद्धांजलि भी भेंट नहीं कर सका। अतः मैंने जोर की दुलत्ती झाड़ी और रास्ते में खाई देखी न खाड़ी, सीधा बंबई आकर लिया-

यहां पर घीसू घसियारे ने मुझ पर दया की और मुझको अपने मकान पर बांध लिया। घीसू घसियारा था बड़ा बेचारा, क्योंकि उसके बच्चे थे ग्यारह। वह घास का एक गट्ठा अपने सिर पर लादता था और चार मेरी पीठ पर, और रोज पहुंच जाता था जोगेश्वरी में दूध बेचने वाले ग्वालों के पास, जो उसकी घास के गट्ठे खरीद लेते थे ओर उसे उसके मूल्य दे देते थे, जिसे लेकर वह सीधा जोसफ डिसूजा की झोंपड़ी में जाता था और जाते ही एक पव्वा ठर्रे का चढ़ाता था और अपने दोस्त रमजानी और करनैल सिंह टैक्सी-ड्राइवर से गप्प लड़ाता था।

मैं झोंपड़ी के बाहर नारियल के पेड़ों के नीचे हरी-हरी घास चरता था और शुक्र करता था कि आखिर मुझे आराम की जिंदगी मिली। बंबई में आकर मैंने इंसानों की बोली त्याग दी थी, क्योंकि अनुभव ने मुझे बता दिया कि इंसानों की दुनिया में वही लोग प्रसन्न रह सकते हैं जो गधे बनकर रहें। बुद्धिमान का यहां गुजारा नहीं, क्योंकि अच्छा परामर्श किसी को प्यारा नहीं, इसलिए मैं इंसानों की बोली से हजर (अरुचि) करने लगा और जानवरों की जिंदगी बसर करने लगा; जैसे बंबई में वे सब लोग बसर करते हैं जिनके लिए पैसा ही प्यारा है और जिन्हें केवल अपना ऐशो-आराम दुलारा है।

छः महीने में मैं हरी-हरी घास खाकर खूब मोटा हो गया। मेरी काली खाल चिकनी हो गई और मेरी अयाल पर सेहत का रंग चमकने लगा और मैं एक सुंदर गधा बन गया, जिस पर कोई भी गधी मुग्ध हो सकती थी। और यह तो कोमलांगियों की कमजोरी है कि वे सदा सुंदर गधों पर मुग्ध होती हैं। चिकनी खाल पर उनकी जान जाती है चाहे उसके अंदर भुस ही भरा हो।

इधर कुछ अर्से से दो-तीन गधियों ने मुझ पर डोरे डालने शुरू किए, किंतु इनमें जो सबसे अधिक कोमल और मादक भाव-भंगिमा वाली थी वह मुझसे बिल्कुल बातचीत नहीं करती थी। इसलिए मेरा दिल बार-बार उसकी ओर खींचा चला जाता था और एक विचित्र-सा आकर्षण मेरे दिल में उसके प्रति अनुभव होता था। उसके कान लंबे, पतले, सुडौल और सुनहरे बालों वाले थे; और जिस तरह वह अपने छोटे-छोटे सफेद दांतों से हरी दूब चरती थी, उस पर मेरा दिल लोट-पोट हो जाता था। वह दूसरी भूखी-चटोरी गधियों के समान घास पर पिल नहीं पड़ती थी, बल्कि बड़े धैर्य से एक ग्रास खाकर अलग हो जाती थी और बुरी घास को सूंघकर अरुचि से छोड़ देती थी। इससे मालूम होता था कि वह कितनी अत्यन्त श्रेष्ठ और ऊंचे परिवार की गधी है, जो केवल मनोरंजन के लिए गधों के इस झुंड में जोजफ डिसूजा की झोंपड़ी के बाहर, नारियल के पेड़ों के नीचे चरने के लिए चली आती है। भूख अमीरों के लिए एक बढ़िया मनोरंजन है, गरीबों के लिए महत्त्वपूर्ण आवश्यकता है।

एक दिन अवसर पाकर मैं उसके निकट चला गया। वह नारियल के एक झुंड के नीचे अकेली घास चर रही थी और अजब शान से अपनी दुम हिला रही थी। मैंने उसके निकट जाकर धीरे से कहा, ‘‘ऐ सुंदरी, कब तक हमसे नजरें चुराओगी। जरा इधर तो देखो अपने आशिक की तरफ।’’
‘‘हिश्ट।’’ वह अपने नथुने फुलाकर बड़ी घृणा से हिनहिनाई।
‘‘आखिर ऐसी भी उपेक्षा क्यों? मैं भी एक गधा हूं।’’ मैंने कहा।
‘‘प्रेम में हर आदमी गधा हो जाता है,’’ उसने ऐसे कंटीले स्वर में मुझसे कहा कि मैं एक क्षण के लिए चुप हो गया।

वास्तव में वह बेहद हाजिर जवाब गधी थी। मालूम होता था कि अच्छी शिक्षा पाई है। मैंने सोचा-अगर इससे मेरी शादी हो जाए तो जिंदगी संवर जाए, वर्ना आम गधों की ऐसी गधियों से शादी होती है जिन्हें घास चरने और बच्चे जनने के सिवा कोई काम नहीं आता। किंतु यह तो बड़ी विदुषी है और कर्तव्यपरायण ज्ञात होती है। ईश्वर ने इसे सौंदर्य के अतिरिक्त सुरुचि भी प्रदान की है। अरे! इसके साथ तो पिक्चर भी देखी जा सकती है। जरा सोचो तो हमारे बच्चे कितने तीव्रबुद्धि के होंगे! बिल्कुल गधे तो न होंगे।
मैंने उसकी ओर गर्दन बढ़ाकर कहा, ‘‘डार्लिंग!’’

उसने ऐसे जोर की दुलत्ती झाड़ी कि यदि मैं तत्काल ही अपनी गर्दन न मोड़ लेता तो शायद मेरी आंख ही फूट जाती। मैं घबराकर पीछे हट गया। उसके नथनों से चिनगारियां निकल रही थीं। वह अग्निमय दृष्टि से मुझे ताकती हुई बोली, ‘‘एक घसियारे के गधे होकर मुझसे प्रेम करते हुए तुम्हें शर्म नहीं आती।’’
मैंने घबराकर कहा, ‘‘तुम कौन हो?’’

वह बोली, ‘‘मैं विक्टर ब्रूगांजा की गधी हूं, जो जोजफ डिसूजा का ‘बॉस’ है और दस भट्ठियों का मालिक है। गोरेगांव से दूर-दूर तक उसका ठर्रा बिकता है। और मैं तुम्हारी तरह घास नहीं लादती हूं। शराब के केवल चार पीपे गोरेगांव से लादकर यहां जोगेश्वरी जोजफ डिसूजा के झोंपड़े तक पहुंचा देती हूं। फिर शाम को खाली पीपे वापस लेकर जाती हूं। तुम्हारी तरह दिन-भर गधों की तरह मेहनत नहीं करती हूं।’’
‘‘क्या बात है बेटी?’’ अचानक पास ही से एक आवाज आई, और मैंने देखा कि पकी आयु की उजली किस्म की एक गधी उस जवान गधी के निकट आ गई है।
‘‘कुछ नहीं अम्मा!’’ जवान गधी ने कहा, ‘‘यह गधा मुझसे प्रेम करने चला है। जरा सुनो तो इसकी बात।’’
पकी आयु की गधी ने मुझे सिर से पांव तक देखा और बोली, ‘‘तुम कौन हो?’’
मैंने बताया।
सुनकर बोली, ‘‘तुम्हारा-हमारा क्या मेल! तुम हिंदू हो, हम ईसाई....कहां के रहने वाले हो?’’
‘‘यू.पी. का।’’
‘‘लो, तुम यू.पी. के, हम महाराष्ट्र के, तुम्हारा-हमारा क्या जोड़?...कौन जाति हो?’’
‘‘गधों की भी जाति होती है?’’ मैंने पूछा।

‘‘वाह! क्यों नहीं होती? जो मालिक की जाति होती है वहीं उसके गुलाम की जाति होती है, वही उसका धर्म होता है। हम जानवर लोग तो अपने मालिक के रुतबे से पहचाने जाते हैं। हम वही सोचते और करते हैं जो इंसान करता है।’’
‘‘हालांकि मैंने जो अक्सर इंसानों को जानवरों की तरह सोचते और करते देखा है, बड़ी बी?’’ मैंने नम्रता से कहा।

बड़ी बी को मेरी बात पसंद आई। बोली, ‘‘तुम समझदार मालूम होते हो। अच्छा, यह बताओ कि अगर मैं अपनी बच्ची की शादी तुमसे करने पर तैयार हो जाऊं तो तुम मेरी बच्ची को कहां रखोगे और क्या खिलाओगे?’’

‘‘रखने का कोई विशेष स्थान तो नहीं है, घीसू घसियारे के यहां। वह मुझे रात को घर के बाहर जामुन के पेड़ से बांध देता है। बल्कि प्रायः खुला ही छोड़ देता है ताकि मैं इधर-उधर घास चरकर अपना पेट भर लूं।’’
‘‘तो वह तुम्हें घास नहीं डालता क्या?’’
‘‘नहीं।’’
‘‘तो इसका मतलब है कि अगर मेरी बच्ची की तुम्हारे साथ शादी हो जाए तो उसे भी घास नहीं मिलेगी?’’

‘‘प्रेम में घास क्या करेगी? इकबाल ने कहा-‘बेखबर कूद पड़ा अतिशे-नमरूद में इश्क।’ बड़ी बी, इश्क तो इश्क है और घास घास है। मुझे देखो, इश्क भी करता हूं और घास भी खाता हूं। और कभी-कभी जब घास भी नहीं मिलती तो केवल इश्क खाता हूं कव्वाली गाता हूं-‘यह इश्क-इश्क है इश्क-इश्क।’ बड़ी बी, तुम मेरी मानो, अपनी बेटी को मेरे हवाले कर दो। घास का क्या है? यह दुनिया बहुत बड़ी है। कहीं न कहीं घास मिल ही जाएगी।’’

‘‘जी नहीं,’’ बड़ी बी बड़ी कठोरता से बोली, ‘‘मैं अपनी मासूम बच्ची की तुमसे हर्गिज-हर्गिज शादी नहीं करूंगी। जबकि न बाप का पता न मां का। न धर्म ठीक, न जाति दुरुस्त। जिसका कोई ठौर-ठिकाना नहीं, रहने के लिए कोई स्थान नहीं, खाने के लिए घास नहीं, ऊपर से पढ़े-लिखे आदमियों की तरह बात करते हो।’’

मैंने गर्वपूर्ण शब्दों में कहा, ‘‘हां, मैं अखबार पढ़ सकता हूं पर इसमें क्या बुराई है?’’

‘‘यह तो बहुत बुरी बात है,’’ बड़ी बी जलकर बोली, ‘‘आजकल हिन्दुस्तान में जितने पढ़े-लिखे गधे हैं, सब क्लर्की करते हैं या फाका करते हैं। तुम्हीं बताओ, तुमने आज तक किसी पढ़े-लिखे ठीक आदमी को लखपती होते देखा है? न भैया, मैं तो अपनी बेटी की किसी लखपती से शादी करूंगी। चाहे वह बिल्कुल अनपढ़, घामड़ गधा ही क्यों न हो।’’

मुझे उस गधी की मूर्खतापूर्ण बातों पर बड़ा क्रोध आया। किंतु चूंकि मामला इश्क का था, इसलिए मैं जहर का घूंट पीते हुए उसे फिर से समझाने की कोशिश करने लगा-
‘‘देखो अम्मा, आजकल नया जमाना है। इस जमाने में धर्म, जाति-पाति को कोई नहीं पूछता। हम सब हिन्दुस्तानी हैं, हम सब गधे हैं-बस, इतना ही सोच लेना काफी है। यह प्रश्न राष्ट्रीय एकता का है।’’

‘‘अमीर और गरीब में राष्ट्रीय एकता कैसी? तुम्हारी समस्याएं अलग, हमारी समस्याएं अलग। हमारे स्वार्थ अलग, तुम्हारे स्वार्थ अलग। हमारा जीवन-स्तर अलग, तुम्हारा जीवन-स्तर अलग। और फिर हम तो हिन्दुस्तानी भी नहीं। हमारी तो नस्ल भी तुमसे अलग है। मेरी बच्ची के दादा, खुदा उन्हें करवट-करवट जन्नत बख्शे, विशुद्ध अंग्रेजी गधे थे और मेरी मां फ्रांसीसी नस्ल की थी और तुम बड़े बेसुरे, बेकार, काले हिन्दुस्तानी गधे हो और चले हो मेरी बेटी से इश्क जताने! खबरदार, जो मेरी बेटी की तरफ आंख उठाकर भी देखा! दोनों आंखें फोड़ डालूंगी!’’

यह कहकर बड़ी बी ने मेरी तरफ पीठ करके इतने जोर की दुलत्ती झाड़ी कि मैं घबराकर वहां से भाग खड़ा हुआ और डिसूजा की झोंपड़ी के सामने आकर दम लिया और उस दिन से संकल्प किया कि अब कभी प्रेम नहीं करूंगा, क्योंकि प्रेम करने के लिए केवल इतना ही पर्याप्त नहीं है कि आदमी कवि-स्वभाव रखता हो; प्रेम करने के लिए यह भी बहुत आवश्यक है कि आदमी को दो वक्त की घास भी प्राप्य हो, वरना कोई औरत घास नहीं डालेगी।

इसलिए मैंने उस परियों-सी सुंदर गधी से प्रेम करने का विचार त्याग दिया और अपने जीवन को केवल घास लादने पर लगा दिया, जोकि हर गधे का भाग्य है।

खुल जाना आरे कालोनी का बंबई में और भूखे मरना जोगेश्वरी के ग्वालों का। घीसू घसियारे का बेच देना अपने गधे को। और बयान नई मुसीबतों का....।

दिन बड़े आराम से गुजर रहे थे। घास लादना, घास खाना और खूंटे पर जाकर सो जाना। जिंदगी इससे सादा और क्या हो सकती है और इसी दुनिया में अधिकांश लोग इससे अधिक चाहते भी क्या हैं। इस निर्दयी आसमान की चाल को क्या कहिए कि मेरी कुछ दिनों की यह शांति भी उसे सहन न हुई। पहली मुसीबत यह आई कि गवर्नमेंट ने जनता के लिए बंबई में खालिस दूध सप्लाई करने के लिए एक बहुत बड़ी डेयरी ‘आरे कालोनी, के नाम से चालू कर दी। समस्त आपत्तियां इसी प्रकार नेक इरादों से आरंभ होती हैं। अब भला बंबई में खालिस दूध की किसे आवश्यकता थी। बंबई के वीर निवासियों ने स्वतंत्रता-संग्राम का सारा युद्ध ईरानियों की चाय और ग्वालों का आधा दूध और आधा पानी पीकर लड़ा, जीता और जिंदा रहे। उनके लिए खालिस दूध प्राप्य करने का अर्थ इसके अतिरिक्त और क्या हो सकता था कि उन्हें व्यर्थ में ही निरंतर संघर्ष और लड़ाई के लिए उकसाया जाए। अतएव जिस दिन से बंबई में आरे कालोनी की नींव पड़ी, उसी दिन से संयुक्त महाराष्ट्र का किस्सा भी शुरू हो गया। आखिर आम लोगों को खालिस दूध पिलाकर वे और क्या आशा कर सकते हैं।

यह ईरानियों की चाय ही थी जो महाराष्ट्र और गुजरात में तालमेल पैदा किए हुए थी, वरना दूध तो सदा विभाजित करता है। पहले तो पंजाब को ही ले लीजिए। दूध पीने के अभ्यस्थ थे, इसलिए विभाजन हो गया। अपराध दूध का था और अपराधी ठहराया जाता है बेचारे अंग्रेजों को। हालांकि साहब, दूध में ऐसी शक्ति है कि यदि आप कुछ न करें, उसे कुछ घंटों के लिए किसी बर्तन में अकेला छोड़ दें तो स्वयं ही विभाजित हो जाएगा। दूध का दूध अलग, पानी का पानी अलग। मानव के इतिहास में इस प्रकार की छोटी-छोटी बातों में बड़ी दूर के परिणाम निकले हैं। उदाहरण के लिए-सोचिए कि यदि मुहम्मद बिन कासिम ने हिन्दुस्तान के बजाय चीन पर हमला किया होता तो आज पाकिस्तान चीन में होता। यदि नेपोलियन पानीपत में पैदा हुआ होता तो वाटरलू की लड़ाई में अंग्रेजों की विजय न होती। यदि कोलंबस की नाव समुद्र में डूब जाती तो अमरीका का कभी पता न चलता और बेचारा कोलंबस अपने मुंह से गालिब का यह मिसरा दोहराता, ‘डुबोया मुझको होने ने, न होता मैं तो क्या होता।’

इसी कारण मैं भी कहता हूं कि यदि आरे कालोनी न बनती तो महाराष्ट्र का पृथक् प्राप्त भी न बनता। यह केवल दूध का अपराध है, दूध जो विभाजित करता है।

बंबई के शरीफ लोग लगभग एक सौ वर्षों से ईरानियों की फीकी-सीठी चाय पीते चले आ रहे थे। अब उन्हें जो खालिस दूध पीने को मिला तो उनका हाजमा बिगड़ गया। और जब जनता का हाजमा बिगड़ता है तो वह तरह-तरह की मांगें करने लगती हैं। ‘‘हमें महाराष्ट्र चाहिए। हमें काम चाहिए। हमें रोटी चाहिए और हर चीज उतनी ही सस्ती और बढ़िया चाहिए जितना कि आरे कालोनी का दूध है।’’

इसीलिए पुराने जमाने में जो लोग राज्य चलाते थे, वे जनता की किसी आवश्यकता को कभी पूरा नहीं करते थे। इससे जनता का हाजमा हमेशा ठीक रहता था। किंतु अब वह इतना बिगड़ चुका है कि किसी प्रलोभनपूर्ण वादे के चूर्ण से ठीक नहीं हो सकता।

आरे कालोनी के बन जाने से जहां एक तरफ लोगों का हाजमा बिगड़ा, वहां दूसरी तरफ निजी तौर पर दूध बेचने वाले ग्वालों की ‘गाहकी’ भी कम हो गई और सैकड़ों ग्वाले बेकार हो गए। उन्होंने अपना हर संभव प्रयत्न ‘गाहकी’ को कायम रखने के लिए कर डाला। कभी दूध का भाव कम किया और पानी अधिक मिलाया, कभी घास का भाव कम किया और घसियारे का जो दबाया। कभी पानी की मात्रा कम की और हानि अधिक उठाई। किंतु आरे कालोनी के सामने उनकी एक न चली। आरे कालोनी का दूध अधिक सर्वप्रिय होता गया और प्राइवेट व्यापार करने वाले ग्वाले अपने ऊंचे लाभ से हाथ धोने लगे। यदि वे बिल्कुल खालिस दूध बेचते और आरे-कालोनी से जरा कम दाम पर बेचते तो अब भी वे थोड़ा-सा लाभ कमा सकते थे। किंतु यह तो व्यापार के विरुद्ध है और हमारी जीवन-व्यवस्था में उस समय तक व्यापार नहीं हो सकता जब तक किसी एक चीज में किसी दूसरी चीज की मिलावट न की जाए। उदाहरणार्थ-दूध में पानी, साहित्य में उरयानी (नग्नता), आटे में बुरादा, घृणा में धर्म का लबादा, घी में तेल, शासन में रिश्वत का मेल; यह तो व्यापार का प्रथम नियम है।

जब ग्वालों का दूध बिकना बंद हो गया तो घीसू घसियारे की घास बिकनी बंद हो गई, और घर में घीसू घसियारे और बीबी-बच्चे के फाके लगने शुरू हो गए। स्थिति इस सीमा तक नाजुक हो गई कि एक दिन जोसफ डिसूजा की झोंपड़ी में घीसू घसियारे ने मुझे बेचने की सोच ली। यह तरकीब उसे रमजानी कसाई ने बताई थी।
कहने लगा, ‘‘अगर तुम इस गधे को मेरे हाथ बेच दो तो मैं तुम्हें इसके पच्चीस रुपये दे दूंगा।’’

जोजफ बोला, ‘‘हां, ठीक तो कहता है रमजानी। आजकल तुम्हारी घास कहीं नहीं बिक रही है। इसलिए तुम इस गधे को रखकर क्या करोगे? फिर सात रुपये मेरे बाकी हैं तुम पर। वे भी इसी रकम में कट जाएंगे।’’
मैं दरवाजे के निकट सरक आया और अत्यंत मौन होकर उनकी बातें सुनने लगा।

घीसू बोला, ‘‘इस बेचारे गधे का कोई खर्च तो है नहीं मुझ पर। खुद ही दिन में इधर-उधर से घास चरकर मेरे घर के बाहर आके पड़ा रहता है। दिन-भर मेरे बच्चे इसकी सवारी करते हैं। और एक-आध घास का गट्ठा बिक ही जाता है।’’

रमजानी बोला, ‘‘यह एक-आध गट्ठा तुम खुद अपने सिर पर लाकर बेच सकते हो। तुम खुद सोच लो। पूरे पच्चीस रुपये दूंगा। और वह भी दोस्ती में दे रहा हूं, वर्ना यह गधा तो पन्द्रह रुपये में भी महंगा है।’’
घीसू बोला, ‘‘तुम इस गधे को लेकर क्या करोगे?’’

रमजानी एक आह भरकर बोला, ‘‘इस दुनिया में जीना बहुत मुश्किल हो चला है। आजकल भेड़-बकरियां ऐसी दुबली-पतली आ रही हैं कि एक के अंदर से तीन सेर गोश्त भी मुश्किल से निकलता है। अब यह तुम्हारा गधा खासा हट्ठा-कट्ठा और मोटा-ताजा हो रहा है। इसका गोश्त बहुत ही बढ़िया निकलेगा।’’
‘‘तो तुम गधे का गोश्त बेचोगे!’’ घीसू ने आश्चर्य से पूछा।
‘‘हां, बकरी के गोश्त में मिलाकर बेचूंगा।’’ रमजानी बोला।
‘‘बकरी के गोश्त में मिलाकर बेचोगे!’’ घीसू हैरत से चिल्लाया।
‘‘इसमें हैरत की क्या बात है?’’ रमजानी ने जरा गुस्से से कहा, ‘‘तुम्हारे ग्वाले क्या दूध में पानी मिलाकर नहीं बेचते?’’
घीसू ने फिर आंखें फाड़कर कहा, ‘‘मगर गधे का गोश्त लोगों को पता नहीं चलेगा?’’

‘‘यह तो अपने-अपने पेशे के गुर की बात है,’’ रमजानी बोला, ‘‘मैंने ऐसे-ऐसे उस्ताद देखे हैं जो बकरी के गोश्त में कुत्ते का गोश्त मिलाकर बेच देते हैं। मैं तो केवल गधे का गोश्त बेचूंगा। और फिर कीमे में तो कुछ पता ही नहीं चलता है।’’

मेरी टांगें भय से सुन्न हो गई थीं। ऐसा मालूम होता था जैसे किसी ने मेरी हर टांग के साथ चार-चार मन के पत्थर बांध दिए हैं। मैं छप्पर की दीवार के साथ दरवाजे के पीछे लगा यह बातचीत सुन रहा था, जिसमें मेरे जीवन और मृत्यु का निर्णय हो रहा था। मैं यह सुनना चाहता था कि आखिर घीसू क्या कहता है। एक बेजुबान जानवर ने इतने महीने उसके लिए प्राणप्रण से मेहनत की थी और बदले में घास का एक तिनका न लिया था। क्या इस इंसान के सीने में कृतज्ञता का एक रत्तीभर भाव न होगा?
घीसू ने कहा, ‘‘यह गधा मुझसे और मेरे बच्चों से बहुत हिल गया है। उसकी जान लेने को मेरा जी नहीं चाहता। थोड़ी-सी और दो यार।’’

‘‘लो पियो,’’ रमजानी ने उसका गिलास भरते हुए कहा, ‘‘पर तुम उसकी जान कहां ले रहे हो? जान लेने वाला या रखने वाला वह ऊपर है’’ रमजानी ने खरपैल की छत की तरफ एक उंगली उठाकर कहा, ‘‘तुम तो गधे को खाली मेरे हाथ बेच रहे
हो।’’

करनैलसिंह ड्राइवर ने बात पलटकर कहा, ‘‘अबे, कल तू कहां गया था रमजानी? यहां नहीं आया।’’

‘‘भैया, मैं शकीलाबानो गढ़वाली की कव्वाली सुनने गया था। जालिम क्या गाती है!-अर्जे-नियाजे इश्क के काबिल नहीं रहा, जिस दिल पे हमको नाज था वो दिल नहीं रहा।’’

रमजानी पहले गुनगुनाता रहा। फिर जोर-जोर से गाने लगा। घीसू जोर-जोर से सिर हिलाने लगा और करनैलसिंह टीन का एक खाली डिब्बा बजाने लगा। मैंने इन्मीनान का सांस लिया। चलो, जिंदगी बच गई। आई हुई मौत टल गई। घीसू घसियारा नशे में बोला, ‘पच्चीस क्या, अगर कोई पच्चीस हजार भी दे तो भी अपना गधा न बेचूं।’’
‘‘यार; कौन तेरे गधे की बात करता है,’’ जोजफ जरा क्रोध से बोला, ‘‘रमजानी का गाना तो सुनने दे।’’

मगर घीसू घसियारे को चिढ़ हो गई थी। वह जोर-जोर से अपना हाथ हिलाते हुए बोला, ‘‘कोई पच्चीस लाख भी दे तो भी मैं अपना गधा न दूं। इस गधे ने मेरी इतनी सेना की है, मेरी और मेरे बच्चों की, कि मैं इसे जिंदगी-भर अपने पास रखूंगा। कोई पच्चीस करोड़ भी दे तो यह गधा न दूंगा। घीसू घसियारे ने आज तक किसी की जान नहीं ली। यह हमारे धरम-सास्तर के खिलाफ है।’’

‘‘ले आया फिर बीच में अपना धर्म,’’ करनैलसिंह चिढ़कर बोला, ‘‘यार जोजफ, जल्दी से इसका गिलास भर दो।’’
‘‘कहां से भर दूं।’’ जोजफ क्रोध से बोला, ‘‘सात रुपये की पहले ही पी चुका है। कहां तक उधार दूंगा?’’
‘‘भर दो, भर दो,’’ घीसू जोर से चिल्लाया ‘‘वह भगवान् देने वाला है। कहीं न कहीं से तुम्हारा कर्ज भी उतार देगा।’’
‘‘जब उतार देगा तब और पी लेना,’’ जोजफ बोला, ‘‘अब मैं एक बूंद न दूंगा।’’
घीसू ने अपने खाली गिलास की तरफ देखकर रमजानी से कहा, ‘‘मेरा गिलास खाली है।’’
‘‘और खाली रहेगा,’’ जोजफ कठोरता से बोला।
‘‘एक रुपया दे,’’ घीसू ने रमजानी से कहा।
रमजानी ने जेब से पच्चीस रुपये निकालकर कहा, ‘‘एक नहीं पच्चीस देता हूं।’’

घीसू ने एक क्षण के लिए पच्चीस रुपयों की ओर देखा। एक क्षण के लिए रुका। फिर उसका हाथ हठात् पच्चीस रुपयों की ओर बढ़ गया। जल्दी से उसने रुपये जेब में डालकर कहा, ‘‘चलो, गधा तुम्हारा हुआ। ले भैया जोजफ, अब तो शराब दे दे।’’
रमजानी मेरे गले में रस्सी डाले मुझे ले जा रहा था और लहक-लहककर गा रहा था-

अर्जे-नियाज-इश्क के काबिल नहीं रहा,
जिस दिल पे हमको नाज था वो दिन नहीं रहा।

अचानक मैंने कहा-

जाता हूं दाग-हसरते-हस्ती लिए हुए
हूं शम्मए-कुश्ता दरखुरे महफिल नहीं रहा।

एकाएक रमजानी ने चौंककर इधर-उधर देखा। मेरी तरफ देखा। फिर मुझे रस्सी से खींचते हुए आगे बढ़ गया। उसकी समझ में कुछ नहीं आया कि यह आवाज कहां से आई थी। उसके चेहरे पर मैंने भय की एक हल्की-सी झलक देखी। अब रात का झुटपुट बढ़ रहा था और अपने हृदय के भय को दूर करने के लिए रमजानी जोर-जोर से गाते हुए मुझे ले जा रहा था और दोहरा रहा था-

अर्जे-नियाज-इश्क के काबिल नहीं रहा,
जिस दिल पे हमको नाज था वो दिन नहीं रहा।

मैंने फिर कहा, जरा ऊंचे स्वर में-

मरने की ए दिल और ही तदबीर कर कि मैं,
शायाने दस्ते-बाजूए कातिल नहीं रहा।

रमजानी भय से थर-थर कांपने लगा। उसने इधर-उधर रास्ते में देखा। किंतु किसी को न पाकर रात के बढ़ते हुए अंधेरे में चिल्लाकर बोला-
‘‘कौन बोलता है?’’
मैंने कहा, ‘‘मैं हूं एक गधा।’’
‘‘तुम?’’ रमजानी की आंखें फटी की फटी रह गईं, ‘‘तुम एक गधे होकर इंसानों की बोली बोलते हो?’’

मैंने कहा, ‘‘मैंने संकल्प कर रखा था कि इंसानों की बोली कभी नहीं बोलूंगा। किंतु जब जान पर बन आती है और इंसान की कृतध्नता सामने आती है तो गालिब के साथ कहना भी पड़ता है-’’

दिल के हवाय-किस्ते-वफा मिट गई कि वां,
हासिल सिवाय हसरते-हासिल नहीं रहा।

‘‘लाहौल विला कूवत इल्ला-विल्ला।’’ रमजानी ने जोर से कहा और घबराकर उसने अपने हाथ से रस्सी छोड़ दी और फिर मेरी तरफ पीठ करके इस तेजी से भागा कि मैं उसे बुलाता ही रह गया ‘‘रमजानी भैया! ऐ रमजानी! जरा सुनो तो।’’
किंतु उसने एक बार भी पीछे मुड़कर नहीं देखा और भय से पागलों की तरह से चीखता हुआ, कुछ पढ़ता हुआ, वहां से हवा हो गया।

मैं सिर झुकाकर धीरे-धीरे कदम रखता हुआ वापस चलने लगा और कुछ मिनट के बाद जोजफ के झोंपड़े के बाहर पहुंच गया। किंतु घीसू घसियारा उस समय वहां से जा चुका था और करनैलसिंह भी। इस समय अकेला जोजफ अपने झोंपड़े के बाहर लकड़ी के एक बेंच पर बैठा हुआ अंतिम जाम पी रहा था। उसने जब मुझे देखा तो लपककर आगे बढ़ा और मेरी रस्सी अपने हाथ में लेकर बोला, ‘‘रस्सी तुड़ाकर अपनी जान बचा लाए? मगर बचके कहां जाओगे मियां गधे? सुबह तुमको रमजानी के हवाले कर दूंगा।’’

यह कहकर मुझे नारियल के एक पेड़ से बांध दिया। मैंने अवसर देखकर जोजफ से कहा, ‘‘जोजफ!’’
‘‘हयं!’’ वह आश्चर्य से चीखा।

मैंने कहा, ‘‘चिल्लाने की जरूरत नहीं। तुम एक पढ़े-लिखे आदमी हो इसलिए मैं तुमसे बातचीत करता हूं और तुमसे कहता हूं कि मैं गधा ही बोल रहा हूं।’’
‘‘क्या मैं नशे में हूं?’’ जोजफ ने अपने-आपसे पूछा।
‘‘नशे में तो हो, किंतु यह बिल्कुल सच है कि इस समय तुम्हारा नशा नहीं बोल रहा, यह खाकसार बोल रहा है। बचपन में मैंने इंसानों की बोली सीखी थी।’’

यह कहकर मैंने जोजफ को अपनी थोड़ी-सी विपदा कह सुनाई। वह मेरा हाल सुनकर बोला, ‘‘गुड गॉड! बिल्कुल विश्वास नहीं आता। मगर अब तुम्हें अपने सामने बोलता सुन रहा हूं तो विश्वास करना पड़ता है कि तुम वही प्रसिद्ध गधे हो जिसने पंडित नेहरू से भेंट की थी। अब याद आया, मैंने उनके बारे में अखबारों से भी पढ़ा था। फर्माइए, मैं आपकी क्या सेवा कर सकता हूं?’’

मैंने कहा, ‘‘रमजानी के हाथों मेरी जान बचा सकते हो!’’
‘‘वह किस तरह?’’ जोजफ ने पूछा, ‘‘रमजानी ने पच्चीस रुपये में घीसू से तुम्हें खरीद लिया है।’’
‘‘पच्चीस रुपये में क्या तुम मेरी जान ले लोगे?’’

‘‘बम्बई में दादा लोग तो दस रुपये में जान लेने को तैयार रहते हैं और वह भी एक इंसान की जान। तुम तो एक गधे हो। हालांकि पढ़े-लिखे हो। पर इससे क्या होता है! विश्वयुद्ध में मैं एक सिपाही था। मैंने स्वयं अपनी आंखों देखा कि लाखों इंसानों को कुछ रुपयों की खातिर खून और आग की भट्ठी में झोंक दिया गया था। तुम तो महज एक गधे हो।’’

‘‘वे भी गधे थे,’’ मैंने अत्यंत कड़वे स्वर में कहा, ‘‘यदि हिसाब लगाओ तो युद्ध के मोर्चे पर इंसानों की जिंदगी भेड़-बकरियों से भी सस्ती बिकी है। हिरोशिमा के एक बम्ब ने कितनी लाख जानें ले ली हैं। जरा हिसाब लगाओ, पच्चीस रुपये प्रत्येक आदमी भी नहीं पड़े होंगे।’’
जोजफ बोला, ‘‘इस हिसाब से तो तुम्हें खुश होना चाहिए कि एक गधे की जिंदगी की कीमत एक इंसान की जिंदगी से ज्यादा पड़ रही है।’’

मैंने उसकी बात अनसुनी करके कहा, ‘‘उन लोगों ने बेकार में लाखों इंसानों को मशीनगनों से भून दिया। यदि वे उनका गोश्त बकरी के गोश्त में मिला के बेचते तो उन्हें अधिक लाभ होता। और लाभ ही तो वे चाहते हैं?’’
‘‘तुम कैसी भयानक बातें करते हो!’’ जोजफ चिल्लाया।
‘‘इतनी भयानक नहीं जितनी कि जिंदगी है, जिसमें पच्चीस रुपये के लिए एक के गले की रस्सी दूसरे के हाथों में थमा दी जाती है।’’
‘‘तुम क्या चाहते हो!’’

‘‘मैं जीवित रहना चाहता हूं,’’ मैंने रुंधे हुए स्वर में कहा, ‘‘मेरी तरह के करोड़ों लोग इस दुनिया में मौजूद हैं जो अत्यंत भोले और कायर और निरे गधे हैं किंतु हम सब जीवित रहने का अधिकार मांगते हैं। हममें से कोई अपने गले में रस्सी नहीं चाहता।’’
‘‘खुदा के फौजदार न बनो,’’ जोजफ बोला, ‘‘सिर्फ अपनी बात करो।’’
‘‘मैं चाहता हूं कि तुम मुझे रमजानी से खरीद लो।’’
‘‘वाह! एक गधे की जान बचाने के लिए रमजानी को पच्चीस रुपये दे दूं-ऐसा गधा नहीं हूं मैं।’’ जोजफ बिगड़कर बोला।

‘‘तुम मेरी बात पूरी सुन लेते, फिर कुछ कहते,’’ मैंने उसे समझाते हुए कहा, ‘‘इसमें तुम्हारा ही लाभ है। यदि तुम मुझे रमजानी से खरीद लोगे तो मैं तुम्हारा ठर्रा बिना तलाशी के माहिम क्रीक पुलिस चौकी के पार पहुंचा दिया करूंगा। अब तक तुम इस काम के लिए इंसानों से काम लेते रहे जो कभी न कभी पुलिस के हाथों पकड़े जाते हैं। उन्हें सजा हो जाती है और तुम्हारी शराब पकड़ी जाती है। किंतु यदि तुम इस काम के लिए मुझे नौकर रख लोगे तो मैं तुमसे वायदा करता हूं कि पुलिस एक बार भी मुझे न पकड़ सकेगी।’’
‘‘वह कैसे?’’
‘‘बहुत आसान काम है। किंतु इसके लिए तुम्हें अपना एक अड्डा बांद्रा में और माहिम क्रीक के बाहर माहिम के इलाके में कायम करना पड़ेगा।’’
जोजफ बोला, ‘‘तुम इसकी चिंता मत करो। वहां पहले से कई अड्डे मौजूद हैं हमारे।’’

मैंने कहा, ‘‘तो फिर तो इस प्रस्ताव पर कार्य करना अत्यंत सुगम है और मुझे आश्चर्य है कि आज तक किसी स्मगलर को ऐसी बढ़िया तजबीज क्यों न सूझी!’’
जोजफ ने बेचैनी से कहा, ‘‘अब तुम बातें न करो। जल्दी से अपना प्रस्ताव समझाओ।’’
‘‘प्रस्ताव बहुत आसान है। तुम केवल इतना करो कि सुबह-सुबह मुझे जोगेश्वरी से बांद्रा के अड्डे तक ले जाओ।’’
‘‘अच्छा।’’

‘‘फिर वहां सुबह-सबेरे निहार-मुंह मेरे खाली मेदे को शराब से भर दो गले तक। मेरे मेदे आतों में कई गैलन शराब समा सकती है। इसलिए जब हलक तक शराब भर जाए तो मुझे माहिम क्रीक तक ले जाकर छोड़ दो। वहां से मैं स्वयं धीरे-धीरे एक आवारा अनाथ गधे की तरह चलता हुआ पांच मिनट में पुलिस चौकी पार कर जाऊंगा। पुलिस को एक क्षण के लिए भी संदेह न होगा कि इस गधे के पेट में इतने गैलन शराब भरी हुई है। वे तो केवल इंसान और उसके कपड़ों की तलाशी लेते हैं। किंतु एक नंगे गधे पर, जिस पर कपड़े का एक चीथड़ा तक नहीं है, उन्हें कैसे शक होगा? अतः मैं प्रत्येक दिन पुलिस चौकी से बिना किसी भय के सुरक्षित गुजर जाया करूंगा।’’
‘‘फिर?’’
‘‘फिर माहिम के अड्डे पर पहुंचकर तुम मेरे गले में रबर की नली डालकर पम्प के द्वारा शराब निकाल लिया करना और अपने ग्राहकों में बांट दिया करना।’’
‘‘क्या मेरे ग्राहक गधे के पेट से निकली शराब पीना पसंद करेंगे?’’

मैंने कहा, ‘‘मूर्ख हुए हो। जो लोग गंदी मोरियों में दवाई हुई बोतलों और गंदे-सड़े पीपों की शराब पीते हैं, जो लोग साइकिल की नली और पुरानी ट्यूबों में ले जाई गई शराब डकार जाते हैं, उन्हें एक गधे की आंतों से निकली शराब पीने में क्या एतराज होगा! सुबह-सबेरे मेरा भूखा खाली मेदा बहरहाल गली-सड़ी ट्यूबों से तो अधिक साफ-सुथरा होगा।’’
‘‘और तुम्हें नशा नहीं होगा क्या?’’

‘‘पांच मिनट में नशा क्या होगा। माहिम क्रीक पार करने में पांच मिनट से अधिक न लगेंगे। यूं सोचो कि मेरा पेट एक पेट्रोल ले जाने वाली लारी का बड़ा ड्रम है। बांद्रा रिस्क फिलिंग स्टेशन है। बांद्रा पर तुम इस ड्रम को भर देते हो, माहिम पर खाली करा लेते हो। बहुत बढ़िया, आसान, सस्ता, लाभदायक सुरक्षित और साइण्टिफिक सुझाव है।’’

‘‘गॉड ब्लेस यू।’’ जोजफ ने एक मिनट सोचने के बाद कहा। फिर उसने प्रसन्नता से दोनों बांहें गले में डाल दीं। ‘‘क्या तरकीब बताई है तुमने! एक स्मगलर गधा!...पुलिस कयामत तक शक नहीं कर सकती!...होली क्राइस्ट!...मैं तो एक ही साल में लखपती हो सकता हूं।’’

प्रसन्नता के आधिक्य से जोजफ मेरा मुंह चूमने लगा। ‘‘अब तो मैं जरूर लखपती बन जाऊंगा। अब तो मैं पच्चीस क्या, सौ रुपये देकर रमजानी से तुम्हें खरीद लूंगा।’’

वह इसलिए कि पहले मैं महज एक गधा था और अब मैं एक लाभदायक सुझाव हूं। और जब इंसान को लाभ दिखाई देने लगे तो वह एक गधे का मुंह भी चूम सकता है।

‘‘अंदर आ जाओ,’’ जोजफ ने मेरी रस्सी खींचते हुए कहा, ‘‘मैं तुम्हें बाहर नारियल के पेड़ के नीचे बांधने का खतरा मोल नहीं ले सकता। संभव है तुम्हें सर्दी लग जाए। तुम्हारे बदन पर तो एक कपड़ा तक नहीं है।’’
मैंने कहा, ‘‘दुनिया में करोड़ों बेघर गधे नंगे या अधनंगे खुले आसमान-तले सोते हैं।’’
‘‘अजी गोली मारो उन गधों को! मैं तो आज तुम्हें अपने छप्पर के अंदर सुलाऊंगा।’’
‘‘किंतु छप्पर के अंदर तो बड़ी गर्मी होगी।’’ मैंने इठलाते हुए कहा।

‘‘मैं आपके लिए छत का पंखा खोल दूंगा, डंकी सर!’’ जोजफ ने मुझसे बड़े गिड़गिड़ाते हुए कहा और फिर बड़े प्यार से मेरी गर्दन सहलाता हुआ वह मुझे छप्पर के अंदर ले गया।

शुरू होना स्मगलिंग के धंधे का, और पार कर जाना गधे का माहिम क्रीक को आसानी से, और पड़ जाना हाथों से सेठ भूरीलाल के, और बयान माहिम के सट्टेबाजों का....

कम्बख्त जोजफ ने रात-भर मुझे भूखा रखा। सुबह भी घास का एक तिनका न तोड़ने दिया और सुबह ही मुझे बान्द्रा के गुप्त अड्डे पर ले गया। बान्द्रा तक पहुंचते-पहुंचते भूख से मैं बेहाल होने लगा। आंतें कुलबुलाने लगीं और मेरा पेट पिचकर पसलियों से जा लगा। मेरी यह दशा देखकर जोजफ बहुत प्रसन्न हुआ, क्योंकि मेरा पिचका हुआ पेट इस बात का प्रमाण था कि मेरा मेदा बिल्कुल खाली हो चुका है।

मुझे भी शुरू ही से इस बात का ख्याल था कि इस काम में मुझे दिन में केवल एक बार खाना मिला करेगा और वह भी सुबह दस-ग्यारह बजे, अपने काम से निवृत्त हो जाने के बाद। किंतु मैंने यह सोचकर संतोष कर लिया था कि इस दुनिया में करोड़ों इंसान ऐसे हैं जिन्हें दिन-भर की मेहनत के बाद केवल एक वक्त की रोटी मिलती है। मैं तो एक गधा हूं। मुझे यदि दिन-भर के परिश्रम के बाद एक वक्त की घास मिल जाए तो क्या बुरा है?
बान्द्रा के गुप्त अड्डे पर पहुंचकर जोजफ ने पूछा, ''अब क्या करें?''
मैंने कहा, ''अब एक बाल्टी भरकर शराब मेरे सामने रख दो। मैं उसे पी जाऊंगा।''

जोजफ एक छप्पर के अंदर गया। थोड़ी देर बाद उस छप्पर के अंदर से दो आदमी निकले। एक जोजफ था, दूसरा उसका मित्र कामता प्रसाद। यह एक दुबला-पतला धोती बांधे हुए एक ठिंगना-सा आदमी था। उसकी एक आंख कानी थी, दूसरी एकदम नीली। दोनों ने दो बाल्टियां उठा रखी थीं।

पहले मैंने एक बाल्टी पी। फिर दूसरी। फिर कामता प्रसाद तीसरी उठा लाया। वह भी किसी न किसी तरह मैंने पी ली। फिर कामता प्रसाद चौथी उठा लाया। मैंने इंकार कर दिया।

''तुम कोशिश तो करो,'' कामता प्रसाद ने मुझे बढ़ावा देते हुए कहा, ''जितनी शराब तुम्हारे पेट में जा चुकी है उतनी शराब तो एक तगड़ा शराबी सुबह से शाम तक पी लेता है। तुम गधे होकर एक बाल्टी और नहीं पी सकते।''
''नहीं,'' मैंने उद्विग्न होकर कहा, ''मेरा पेट फट जाएगा।''

''खैर, न सही,'' कामता प्रसाद ने मुड़कर जोजफ ने कहा, ''इसे हर रोज रात को एक बढ़िया-सा जुलाब देना चाहिए। ईनोजफ्रूट साल्ट या कोई ऐसी चीज। सुबह को इसका पेट ऐसा साफ हो जाएगा कि आसानी से चौथी बाल्टी की शराब इसके पेट के अंदर समा सकेगी।''

मैंने कहा, ''अब मुझे जल्दी से यहां से ले चलो। डर है कि मुझे नशा न हो जाए। सुना है कि खाली पेट यूं भी नशा बहुत होता है।''

उन दोनों ने मुझे बहुत शीघ्रता से बान्द्रा की मस्जिद से कुछ कदम आगे ले जाकर छोड़ दिया और मैं एक आवारा गधे की तरह झूमता-झामता, इधर-उधर सिर मारता, सड़क सूंघता पुलिस चौकी की तरफ बढ़ने लगा।

सुबह का वक्त था। समुद्र से ठण्डी-ठण्डी हवा आ रही थी। क्रीक के पानियों पर मछुओं के जाल फैले हुए थे। बादबानी किश्तियां सामान से लदी हुई खुले समुद्र में जा रही थीं और छोटी-छोटी लड़कियां फूलदार फ्राकें पहने हुए चिड़ियों की तरह चहकती हुई स्कूल जा रही थीं। ऐसा सुंदर दृश्य था कि मेरा दिल खुशी से नाचने लगा और जी चाहा कि शुद्ध आसावरी लय में एक ऐसी तान छेड़ूं जो गले से निकलकर सीधे आसमान के बादलों तक पहुंच जाए बिना किसी स्मगलिंग के। किंतु इस चलते जमाने में यह असंभव है। व्यापार ने हर वस्तु को इस प्रकार जकड़ लिया है कि आजकल कोई मामूली से मामूली वस्तु भी बिना परमिट के, कोटे के, स्मगलिंग के, रिश्वत के इधर से उधर नहीं की जा सकती। शास्त्रीय संगीत को भी आजकल रेडियो वाले सुगम संगीत के प्रोग्राम में स्मगल करके पेश करते हैं।

मैं यह सोच रहा था और अपनी धुन में चला जा रहा था कि इतने में मेरी दृष्टि एक मराठी स्त्री पर पड़ी और मैं उसके लावण्य पूर्ण सौंदर्य को देख वहीं ठिठककर खड़ा हो गया। उसने गहरे हरे रंग की नौगजी मराठी साड़ी पहन रखी थी। उसके ऊदे ब्लाउज पर सोने का मंगलसूत्र चमक रहा था। वह सोने की चमकती हुई नथ पहने हुई थी और अपने एक हाथ में थाली उठाए हुए, उसमें जलते दीप और फूल रखे, मन्दिर को जा रही थी। उसके चेहरे पर सुबह के गुलाब खिले हुए थे, और उसकी बादलों की तरह श्वेत वेणी में से चम्पा की महक आती थी और वह अपनी लंबी-लंबी पलकें झुकाए ऐसी सलज्ज, पवित्र और शर्मीली मालूम हो रही थी। जैसे वह इस धरती की स्त्री न हो, किसी दूर-दराज ऊंचे आसमान की अप्सरा हो। मैं तो उसे देखते ही
मुग्ध हो गया और धीरे-धीरे उसके पीछे चलने लगा।

पुलिस चौकी पर खासी भीड़ थी। बहुत-सी टैक्सियां, गाड़ियां और ट्रक रुके हुए थे। पुलिस के सिपाही बारी-बारी प्रत्येक गाड़ी को अंदर-बाहर गौर से देखते, निरीक्षण करते और फिर उसे आगे बढ़ने का अवसर देते।
अब पुलिस वालों ने एक टैक्सी की 'डिकी' खुलवाई थी और ध्यान से उसके सामान की तलाशी ले रहे थे।

वह सुंदर स्त्री पुलिस के सिपाहियों के निकट जाकर जरा सी ठिठकी। उसने अपनी थाली का संतुलन अपने ऊंचे हाथों पर ठीक किया और नजरें झुकाए आगे बढ़ने लगी। पुलिस वालों ने तत्काल पीछे हटकर उसे रास्ता दे दिया।
इतने में पीछे से पुलिस को एक स्त्री की आवाज आई, ''ऐ कुठे!''
वह सुंदर स्त्री मुड़कर देखने लगी।
पुलिस की स्त्री ने उससे कहा, ''ऐ इकाई।''
वह सुंदर स्त्री खड़ी की खड़ी रह गई। पुलिस की स्त्री उसके निकट पहुंचकर और उसके चेहरे को ध्यान से ताककर कहने लगी, ''कहां जा रही है?''
''मन्दिर।''

पुलिस की स्त्री ने जल्दी से एक हाथ उस सुंदर स्त्री के मांसल कूल्हे पर मारा। मुझे उस स्त्री की यह हरकत बेहद बुरी मालूम हुई। कितनी बदतमीज औरत है यह पुलिस की! मैं अभी यहां तक सोच पाया था कि पुलिस की स्त्री ने दूसरा हाथ उसकी पीठ पर मारा। दूसरे ही क्षण वह उसकी नौगजी साड़ी के अंदर से शराब की भरी हुई रबर की टयूबें बरामद कर रही थी, जो उस स्त्री के पेट के चारों तरफ बंधी हुई थी।
''तुम यह ठर्रा लेकर मन्दिर जाती है?'' पुलिस की स्त्री ने व्यंग्य से कहा। और वह सुंदर स्त्री जोर-जोर से रोने लगी।
पुलिस के एक सिपाही ने मेरी पीठ पर डण्डा मारते हुए कहा, ''अबे, ओ गधे, यहां क्या कर रहा है?''
डण्डा खाते ही मैं वहां से भाग निकला और माहिम के चौक तक दौड़ता चला गया जहां जोजफ और कामता प्रसाद पहले ही से मेरे इंतजार में खड़े थे।

जोजफ ने मेरे गले में रस्सी डाल दी और मुझे खींचकर एक तंग-सी गली में ले गया। वहां जाकर उन्होंने मुझे एक अंधेरे मकान के अंदर ढकेल दिया। यह पुरानी बनावट का एक अंधेरा-सा मकान था। कुछ समय तक उन्होंने मुझे उसकी अंधेरी ड्योढ़ी में खड़ा रखा। फिर कामता प्रसाद ने ड्योढ़ी के अंदर के दरवाजे की कुण्डी खटखटाई।
''कौन है?'' अंदर से एक जनानी आवाज आई।
''मैं हूं कामता प्रसाद।''

दरवाजा खुल गया और उसमें से बादामी रंग का ब्लाउज और गहरे लाल रंग का स्कर्ट पहने हुए एक नवयुवती निकली। उसके होंठ गहरे लाल थे और उसकी बड़ी-बड़ी आंखें गहरी काली थीं। उसने मस्त अदा से अपने दोनों कूल्हे मटकाए और बोली, ''खाली हाथ आए हो?''
''मारिया, तुम पूरा दरवाजा तो खोलो,'' जोजफ ने बड़ी बेचैनी से कहा, ''और खुद परे हट जाओ।''

मारिया ने दरवाजा पूरी तरह खोल दिया और परे हट गई। वे दोनों मुझे खींचकर अंदर ले गए। अंदर एक खुला आंगन था, जिसके एक कोने में आग जल रही थी और एक कोने में बहुत-से ड्रम पड़े हुए थे। एक कोने में एक अलगनी पर धुले हुए कपड़े टंगे हुए थे और एक कोने में एक खाट पर एक बुड्ढा आदमी सो रहा था।

कामता प्रसाद मारिया के साथ एक तरफ के बरामदे में गायब हो गया। थोड़ी देर के बाद वे दोनों रबर की एक लंबी ट्यूब लेकर आए। फिर दोनों ने मेरे मुंह के नीचे एक बड़ा ड्रम रख दिया और मेरे मेदे में ट्यूब डालकर शराब बाहर निकालने लगे।

मारिया ने जब मेरे मुंह से शराब निकलते देखी तो पहले आश्चर्य से उसकी बड़ी-बड़ी आंखें खुली रह गईं। फिर वह कहकहा मारकर हंसी, इतनी हंसी कि उसकी आंखों में आंसू आ गए। जोजफ के कूल्हे पर हाथ रखकर कहा, ''क्या अब तुम्हें कुछ शक है मारिया, कि मैं अब बहुत जल्दी अमीर हो जाऊंगा। फिर तुम मुझसे शादी कर सकोगी न?''

''देखेंगे,'' मारिया ने हाथ मारकर जोजफ के हाथ को अपने कूल्हे से हटा दिया और मेरे समीप आकर बोली, ''फिलहाल तो मेरा इरादा इस गधे से शादी करने का हो रहा है। यह गधा तो सोने की खान है।''
थोड़ी देर बाद कामता प्रसाद ने शराब को बाल्टियों में भरकर कहा, ''पौने तीन बाल्टी शराब मिली है। एक-चौथाई यह गधा हजम कर गया।''
मारिया ने हंसकर कहा, ''शुक्र करो कि यह गधा है, कोई शराबी आदमी नहीं है। वर्ना पूरी शराब हजम कर जाता।''
जोजफ बोला, ''एक-चौथाई पानी डाल दो। क्या पता चलेगा?''
मैंने सोचा-दूध में पानी, शराब में पानी...
कामता प्रसाद ने पूछा, ''सेठ कहां है?''

मारिया ने कामता प्रसाद के कान में कुछ कहा। फिर कामता प्रसाद और मारिया बरामदे के अंदर चले गए। मैंने उचित अवसर समझकर जोजफ से कहा, ''मुझे जल्दी से घास दे दो, वर्ना मैं अभी भूख से मर जाऊंगा।''

''मैंने सब बन्दोबस्त कर रखा है, पार्टनर'।'' जोजफ बड़े प्यार से मेरा कान ऐंठते हुए बोला, ''अय मारिया, अंदर से घास लेती आओ''

मारिया अपनी दोनों गोरी-गोरी बांहों में घास के गट्ठे भर-भरकर लाई और अपने हाथों से मुझे घास खिलाने लगी। कई बार उसकी कोमल उंगलियां मेरे होंठों से जा लगीं। एक बार तो मेरी जबान से छू गई।

आह! उन उंगलियों का स्वाद कितना कोमल और हल्का था, जैसे वसंत के आरंभ में पहाड़ की वादियों में उगने वाली घास के पहले गठ्टे का होता है। दो दिन के बाद कामता प्रसाद रबर की एक मोटी ट्यूब और बड़ा-सा हैण्डपम्प ले आया।
बोला, ''यह गधा कामचोर है। वास्तव में इस गधे के मेदे में कई गैलन शराब ज्यादा समा सकती है।''
जोजफ ने विरोध किया, ''बेचारा जहां तक भर सकता है, भर लेता है।''
''जी नहीं,'' कामता प्रसाद ने कहा, ''हम इस पम्प के द्वारा गधे के मेदे में शराब भरेंगे, जिस तरह मोटर ट्यूब में हवा भरी जाती है।''
मैंने कहा, ''मेरा पेट एक जीव का पेट है, वह मोटर की ट्यूब नहीं हैं।''

किंतु मेरी एक न सुनी गई। उन लोगों ने मेरे मुंह में ट्यूब डालकर पम्प के द्वारा शराब भरनी शुरू की और धीरे-धीरे मेरा पेट फूलना शुरू हुआ। फिर मुझे ऐसा महसूस हुआ जैसे मेरी आंतें रबर की ट्यूब की तरह फूल गई हैं। मेरा मेदा एक ढोल की तरह फूलकर कुप्पा होता जा रहा है।

जब शराब मेरे गले से बाहर छलकने लगी, तब जाकर उन कम्बख्तों ने मेरा पीछा छोड़ा। कामता प्रसाद ने मुस्कराकर विजयी स्वर में कहा, ''पूरी छः बाल्टी शराब भरी है मैंने, पहले से दुगुनी।''
जोजफ ने कहा, ''तो हम पहले से दुगुना लाभ कमाएंगे!''
''अरे जालिमो, मेरा पेट फट जाएगा।'' मैं दर्द और पीड़ा से चिल्ला कर बोला।

जोजफ ने मेरे सिर पर हाथ फेरकर कहा, ''केवल पांच मिनट का तो रास्ता है। यूं चुटकियों में तय हो जाएगा। अब हम तुमको माहिम के चौक पर मिल जाएंगे।''
कामता प्रसाद ने कहा, ''अगर हम दो-चार मिनट देर से पहुंचे तो फिक्र मत करना।''
फिर वह जोजफ की ओर मुड़कर बोला, ''इस खुशी में एक-एक पेग हो जाए।''
''हो जाए।''

उन दोनों को पीता छोड़कर मैं माहिम क्रीक की ओर रवाना हो गया। आज कोई विशेष घटना नहीं हुई और मैं पहले दो दिनों की तरह चौकी से निडरता से गुजर गया और माहिम के चौक पर पहुंचकर एक फुटपाथ पर खड़ा जोजफ और कामता प्रसाद की प्रतीक्षा करने लगा।

जहां मैं खड़ा हुआ था वहां टैक्सियों का एक अड्डा था। अड्डे के पीछे फुटपाथ पर एक कबाबिया सीकें, कबाब और परांठे लेकर बैठा था। समीप ही चारपाइयां बिछी थीं, जिन पर कुछ लापरवाह किस्म के लोग सुबह के नाश्ते में कबाब और परांठे खा रहे थे और सट्टे के नंबरों की बात कर रहे थे।

पांच मिनट गुजर गए, दस मिनट गुजर गए, आध घंटा गुजर गया; किंतु जोजफ और कामता प्रसाद कहीं दिखाई नहीं दिए। धीरे-धीरे मेरा नशा बढ़ता जा रहा था। मेरा सिर घूम रहा था। शराब मेरी रग-रग में सरसराहट भरती जा रही थी। मुझे ऐसा लग रहा था कि जैसे मैं हवा में हूं। पहले तो मैंने नशे की हालत में जोर से हांक लगाई, जिसे सुनकर इधर-उधर के सब लोग उछल पड़े; फिर मैंने गाना शुरू कर दिया।
''आवारा हूं, मैं आवारा हूं...''
लोगों ने आश्चर्य से मेरी ओर देखा और बोले, ''गधा गाता है!''
गीत की धुन पर मेरे कदम स्वयं ही नाचने लगे।
''अरे नाचता भी है!''
मैंने झूमकर कहा, ''यारो, मुझको माफ करना मैं नशे में हूं।''
मेरा नशा क्षण-प्रतिक्षण बढ़ रहा था। मैंने बहक-बहककर चिल्लाना शुरू कर दिया।
''दो घूंट मैंने पी, और सैरे-जन्नत की।''
''विचित्र! बड़े अच्छे स्वभाव का गधा मालूम होता है।'' एक आदमी बोला।
दूसरे ने कहा, ''बीसवीं सदी का आश्चर्य है यारो! इंसान की तरह बोलता है।''
''यह बम्बई है बम्बई,'' तीसरे ने कहा, ''यहां गधे भी आकर इन्सान की तरह बोलने लग जाते हैं।''

चौथे आदमी को मैंने पहचान लिया। यह चिकन का कुर्ता पहने हुए था, जिसमें सोने के बटन लगे हुए थे और अत्यन्त ही बारीक मलमल की धोती धारण किए हुए था। इस व्यक्ति ने अपने साथी को, जो तहमद पहने हुए था, कहा, ''जुम्मन, तुमने आज तक कोई बोलता हुआ गधा देखा है?''
''नहीं, सेठ भूरीमल। आज तक तो नहीं देखा। कसम ले लो।''

सेठ भूरीमल और जुम्मन, दोनों को मैं कबाबिये की दुकान के सामने चारपाई पर कबाब-परांठे खाते देख चुका था। सेठ भूरीमल ने मेरी ओर ध्यान से देखते हुए कहा, ''यार जुम्मन, मुझे तो कुछ गोलमाल लगता है।''

''क्या गोलमाल सेठ?''
''मेरे ख्याल में यह गधा नहीं है। कोई योगी, साधु, सन्त, महात्मा मालूम होता है, जिसने हम दुनियादारों से बचने के लिए गधे का भेस धरा है।''

जुम्मन बोला, ''तुम ठीक कहते हो। मुझे भी कोई पहुंचा हुआ तान्त्रिक मालूम होता है, जिसने कब्र से किसी आत्मा को निकालकर इस गधे के शरीर में कैद कर दिया है।''
सेठ भूरीलाल बोला, ''आओ, इसके पांव पड़ जाएं, और इससे सट्टे का नम्बर मालूम कर लें।''

यह कहते ही सेठ भूरीमल ने सैकड़ों लोगों के सामने मेरा एक पांव पकड़ लिया और प्रेम से विह्नल होकर श्रद्धायुक्त स्वर में बोला, ''मैंने पहचान लिया योगी महाराज, मैंने पहचान लिया।''
जुम्मन ने मेरा दूसरा पांव पकड़कर कहा, ''करामाते फकीर दस्तगीर, करम कर दे, सट्टे का नम्बर बता दे।''
''हटो, यह बकवास है।'' मैंने नशे के बावजूद अपना पांव परे हटाते हुए कहा।

''नहीं छोड़ूंगा, नहीं छोड़ूंगा,'' सेठ भूरीमल ने दृढ़ता से दोनों हाथों से मेरा पांव पकड़कर उसे चूमते हुए कहा, ''नहीं छोड़ूंगा जब तक सट्टे का नम्बर नहीं बताओगे, जब तक अपने ज्ञान में ध्यानमग्न होकर नम्बर नहीं बताओगे, कभी नहीं छोड़ूंगा।''

जुम्मन से मेरे दूसरे पावं को चुमकर कहा, ''तेरे रहमो-करम के सदके, एक नम्बर इस गरीब को भी अता कर दे। अगर तू जलाल पर आ जाए तो बन्दा निहाल हो जाए।''
उनकी देखा-देखी दो-तीन और आदमी मेरे पांव पर गिर पड़े और रो-रोकर प्रार्थना करने लगे।
''तुझे चोगा सिलवा दूंगा साटन का।''
''अगर नम्बर बता दे काटन का।''
''तुझे हलवा खिलाऊंगा हर रोज।''
''एक बार बता दे ओपन टू क्लोज।''

'नम्बर-नम्बर' की बेचैन आवाजें भीड़ से ऊंची उठने लगीं। भीड़ मेरे चारों तरफ बढ़ रही थी और मुझे यह भी मालूम नहीं था कि बम्बई के लोग सट्टे के कितने प्रेमी हैं। अब नम्बर बताए बिना जान कैसे छूटेगी। किसी भी क्षण पुलिस आ जाएगी। और मेरा पेट लगता था, अभी फट जाएगा।

मैं बहुत-से नकली फकीरों, ज्योतिषियों और साधुओं को नम्बर बताते देख चुका था, इसलिए मैंने दुलत्ती की टेकनीक इस समय अपनाना उचित समझा। पहले तो मैंने दुलत्तियां झाड़कर अपने लिए जगह बनाई। फिर मैं झूम-झूमकर नाचने लगा और ऊल-जलूल बकाने लगा।
''अन्तर-मन्तर-जन्तर। कांग्रेस लीग स्वतंतर। न हिन्दू समझे न मुस्लिम जाने। कोई छुरी भोंके, कोई खंजर ताने। एक दिल दो पैमाने।''
''मिल गया, मिल गया।'' सेठ भूरीमल प्रसन्नता से चिल्लाता हुआ बोला, ''एक दिल दो पैमाने, यानी इक्के से दुआ।''
''नहीं,'' जुम्मन खुशी से आंसू पोंछता हुआ बोला, ''एक दिल दो पैमाने, यानी एक में जमाकर दो-दो तो हुए तीन। इक्का से तिया।''
''अरे नहीं,'' तीसरा बोला, ''एक दिल, दो पैमाने। दो से एक निकालो, बाकी रहा एक। इक्के से इक्का आएगा।''
''गलत,'' चौथा बोला, ''न हिन्दू समझे, न मुस्लिम जाने। भाई नतीजा सिफर, यानी कि बिन्दी आएगी।''

सब लोग अपनी-अपनी समझ के अनुसार नम्बर लगाने को भागे। एक मिनट में भीड़ साफ थी। मैं फुटपाथ पर अकेला खड़ा था। इतने में सामने से मारिया, जोजफ और कामता प्रसाद आते हुए दिखाई दिए।
जोजफ ने घबराकर पूछा, ''क्या हुआ था? लोगों ने तुम्हें क्यों घेर लिया था?''

मैंने कहा, ''लारी को ओवरलोड' करोगे, तो क्या इन्जन फेल नहीं होगा? तुमने मुझे ओवरलोड कर दिया। परिणामस्वरूप मुझे नशा हो गया और मैं ऊल-जलूल बकने लगा। इन्सानों की बोली बोलने लगा और तुम्हारी दुनिया ऐसी है कि यहां इन्सान गधे की बोली बोलने लगे तो किसी को आश्चर्य न होगा, किन्तु यदि गधा इन्सान की तरह बातचीत करने लगे तो प्रत्येक को आश्चर्य होगा। अब जल्दी से मेरे पेट से शराब निकालो, वर्ना शायद मेरा हार्टफेल हो जाएगा।''

वे लोग जल्दी से मुझे घसीटकर गली में ले गए। मारिया के घर के आंगन में पहुंचकर मैं लड़खड़ाकर फर्श पर गिर पड़ा और गिरते ही बेहोश हो गया।

होना गिरफ्तार स्मगलिंग के धन्धे में जोजफ, मारिया और कामताप्रसाद का, और भागना गधे का पुलिस के डर से और मुलाकात करना पारसी बाबा रुस्तम सेठ से, और बयान बम्बई के रेसकोर्स का...

जब मैं होश में आया तो मैंने देखा कि गली के बाहर नुक्कड़ पर एक कोने में बाजार की मोरी के समीप पड़ा हूं। मेरे मुंह से झाग बह रहा है और बाजार के कुछ लौंडे मुझसे कुछ दूर खड़े मुझे ध्यान से देख रहे हैं।

मैंने अच्छी तरह से आंखें खोलकर इधर-उधर देखा, कान फटफटाए, टांगें सीधी की, तो मुझे प्रतीत हुआ कि मेरा पेट बहुत हल्का हो चुका है और मेरा नशा भी लगभग उतर चुका है।

मगर जोजफ, मारिया और कामता प्रसाद गायब थे। उन लोगों ने मेरे पेट से शराब निकाल ली थी और मुझे मुर्दा समझकर गली से घसीटकर मेरी लाश को बाजार के कोने में फेंककर चले गए थे। लगता है कि बिजनेस की दुनिया में यही होता है। जब कोई आदमी काम के योग्य नहीं रहता तो उसे एक लाश की तरह घसीटकर बेकारी के कूड़े-कर्कट में फेंक दिया जाता है। पहले तो वे आपके शरीर से जीवन का रस और रक्त की अंतिम बूंद कड़े परिश्रम के पम्प से निकाल लेते हैं, फिर धक्का देकर मोरी में गिरा देते हैं।

जब इन्सान इंसानों के साथ यह व्यवहार करते हैं, तो फिर मैं तो एक गधा हूं। मुझे संतोष कर लेना चाहिए और धन्यवाद देना चाहिए कि इन लोगों ने मेरी जान बख्श दी है।

मैं यूं ही सोच रहा था कि इतने में मैंने कनखियों से देखा कि सामने माहिम के चौक में जोजफ, मारिया और कामता प्रसाद चले आ रहे हैं। तीनों के हाथ में हथकडि़यां हैं और उनके साथ पुलिस के दो सिपाही हैं।
मैं घबराकर उठ खड़ा हुआ। इतने में उन लोगों ने मुझे देख लिया। मारिया ने चिल्लाकर कहा, ‘‘वह रहा गधा!’’
पुलिस का सिपाही मेरी तरफ भागा। उसे देखते ही मैं भी भागा।
‘‘पकड़ो, पकड़ो!’’ पुलिस के सिपाही ने शोर मचाया।

मगर मेरे कदमों को जैसे पंख लग गए थे। मैं भय से चीखता, चिल्लाता, हिनहिनाता, दुलत्तियां झाड़ता माहिम के बाजार के बीचों बीच भागता हुआ, दौड़ता हुआ, शिवाजी पार्क तक चला गया। पुलिस वाले एक जीप लेकर मेरा पीछा करने लगे। मगर मैं भी अपनी पूरी शक्ति के साथ भागने लगा। मुझे यह आशंका थी कि यदि मैं गिरफ्तार हो गया तो वे लोग मुझे जीवित न छोड़ेंगे।

हरी-निवास के अड्डे से मैं शिवाजी पार्क की तरफ भागा, जीप मेरे पीछे-पीछे आ रही थी। मैंने एक चौकड़ी भरी और शिवाजी पार्क की दीवार फांदकर मैदान में आ रहा। जीप छलांग न लगा सकती थी। अतः वह रुक गई। फिर चक्कर काटकर शिवाजी पार्क के दरवाजे की ओर रवाना हो गई, जो यहां से बहुत दूर था। तब तक मैं शिवाजी पार्क का मैदान पार करके फुटबाल खेलने वाली टीमों के बीच से गुजरता हुआ, क्रिकेट की विकेट उड़ाता हुआ, वर्ली साइड की दीवार फांदता हुआ दूसरी तरफ जा पहुंचा और वहां से सरपट भागता हुआ, तीर की तरह सनसनाता हुआ, टैफिक के तमाम नियमों का उल्लंघन करता हुआ, ‘वर्ली सी-बीच’ पर जा पहुंचा। समुद्र के किनारे पहुंचकर मेरी टांगों ने जवाब दे दिया और मैं बेबस और निढाल होकर समुद्र के किनारे लेट गया।

वर्ली का दृश्य बहुत सुन्दर था। दृष्टि-सीमान्त तक समुद्र एक अर्धवृत्ताकार रूप में फैला हुआ था, ऊपर आकाश महराब के आकार में झुका हुआ था, जिस पर उषा की झालरें और रंगीन बादलों की जालियां जड़ी हुई थीं। उन रंगारंग झालरों और बदलियों के स्वच्छ झिलमिलाते हुए सौन्दर्य ने मुझे मोहित कर लिया। और मैंने सोचा, यह सुन्दरता मुझसे कितनी दूर है! सौंदर्य का सुन्दर प्रतिबिम्ब कितना मनमोहक है! बढ़ती हुई भूख बेकारी और

अपराध की इस दुनिया में एक साधारण गधे के लिए कहीं आराम नहीं है। क्या कोई ऐसा समय आएगा जब मैं सौंदर्य की इस ऊंची महराब को छू सकूंगा! अभी तो असम्भव ज्ञात होता है- मैंने मन में सोचा। अभी तो जीवन प्रायः अनेक स्थानों पर एक गधे के स्तर से ऊपर नहीं उठा है। अभी सुन्दरता बहुत दूर है, न्यास की महराब बहुत ऊंची है। और मैं एक गधा हूं, जिसका पुलिस पीछा कर रही है।

मैंने थककर अपनी आंखें बन्द कर लीं। अब जो हो, सो हो। चाहे पुलिस आए और मुझे गिरफ्तार कर ले, चाहे समुद्र की एक बड़ी उछाल आए और मुझे लहरों में समेटकर समुद्र के नीचे पहुंचा दे। इस समय मैं इतना थक चुका हूं कि प्रत्येक परिणाम के लिए तत्पर हूं।
मेरे कानों में एक मोटर के रुकने की आवाज आई। मैंने समझा, जीप आ गई पुलिस की। लेकिन मैंने आंखें बन्द कर लीं, उसी तरह लेटा रहा।

मोटर के पट खुलने की आवाज आई। फिर कदमों की चाप सुनाई दी और फिर वे कदम मेरे समीप आकर रुक गए, पर मैं उसी तरह आंखें बन्द किए लेटा रहा।
फिर मेरे कानों में आवाज आई, ‘‘खेमजी, कहीं से एक ओपन ट्रक लाना।’’
‘‘क्या करेगा रुस्तम सेठ?’’ दूसरी आवाज ने पूछा।
‘‘हम इस गधे को लादकर अस्तबल में ले जाएगा।’’
‘‘काहे को सेठ?’’

‘‘तुम इस वक्त जास्ती बात मत करो। हमारा खोटी मत करो।’’ रुस्तम सेठ ने शासकीय स्वर में कहा, ‘‘अभी पुलिस वाला इधर आता होगा। उन लोगों के आने से पहले हम इसको अपने अस्तबल में ले जाना मांगता है।’’

‘‘बहुत अच्छा सेठ! अभी लाता हूं।’’ दूसरी आवाज ने आज्ञा मानते हुए कहा। और फिर कदमों की चाप दूर होती गई। शायद खेमजी ट्रक लेने आया था। अब मुझे यह भी मालूम हो गया था कि ये लोग जो कोई भी थे, पुलिस वाले हर्गिज नहीं थे। इसलिए मैंने बिना किसी भय के अपनी आंखें खोलीं।

मैंने देखा- एक लाल चेहरे वाला, लम्बी मुड़ी हुई नाक, गंजे सिर और सफेद बालों की कनपटियों वाला, एक लम्बे कद का पारसी बाबा है, जो मेरे ऊपर झुका हुआ है और मुझे दयालु दृष्टि से देख रहा है।

बाद में मुझे रुस्तम सेठ ने बताया कि मैं उनके अस्तबल में लगातार तीन-चार दिन मृत्यु-शय्या पर पड़ा रहा। रुस्तम सेठ ने मेरे इलाज के लिए अच्छे-से-अच्छे जानवरों के डॉक्टर बुलाए, जो जानवरों का इलाज करने में दक्ष समझे जाते थे। किन्तु चूंकि ये सब-के-सब भारतीय थे, इसलिए ठीक तरह से मेरा इलाज नहीं कर सके। रुस्तम सेठ के ख्याल में मुझे एक विदेशी एक्सपर्ट की आवश्यकता थी, जो सही ढंग से मेरी बीमारी का निदान करके मेरा इलाज कर सके। दुर्भाग्य यह था कि बम्बई में इस समय कोई ऐसा डॉक्टर नहीं था जिसने अपना जीवन गधों के इलाज में गुजारा हो; क्योंकि बेचारे गधे फीस नहीं दे सकते, और बम्बई में जितने डॉक्टर हैं सब फीस लेते हैं।

किन्तु रुस्तम सेठ के यहां फीस की तो कोई समस्या न थी; समस्या गधों के इलाज के अनुभव की थी। बहुत दौड़-धूप के बाद ज्ञात हुआ कि हांगकांग में एक अंग्रेज डॉक्टर मेकन्ले रहते हैं। जो गधों के इलाज में प्रवीण समझे जाते हैं। और चूंकि अंग्रेजों को पिछले दो सौ वर्षों से एशिया के गधों के रोग का अनुभव रहा है, इसलिए रुस्तम सेठ ने वायुयान के द्वारा उसे तत्काल मेरे इलाज के लिए बुलावा लिया और उन्होंने आते ही मेरे रोग का सही निदान करके शीघ्र मेरा इलाज आरम्भ कर दिया। ये तमाम बातें मुझे बाद में मालूम र्हुइं। इस समय मुझे इतना याद है कि तीन-चार दिन की बेहोशी के बाद जब मैंने आंखें खोलीं तो मैंने अपने-आपको लकड़ी की एक बड़ी मसहरी पर लेटा हुआ पाया। मेरे हाथ-पांव बंधे हुए थे। मेरे सिर के पीछे बड़े-बड़े आरामदेह रबर के तकिये रखे हुए थे। एक नर्स मेरी बायीं तरफ खड़ी हुई थी। दायीं तरफ डॉक्टर मेकन्ले बड़े ध्यान से कांच की कुल नलकियों को देख रहे थे। रुस्तम सेठ मेरे पास खड़े थे और बड़े प्यार से मुझे देख रहे थे।

मैंने आंखें खेालकर पूछा, ‘‘मैं कहां हूं?’’
‘‘मेरे अस्तबल में।’’ रुस्तम सेठ बड़े प्यार से बोले।
‘‘यह क्या हो रहा है?’’
‘‘तुम्हारी नसों में खून डाला जा रहा है।’’
‘‘बोलो नहीं,’’ डॉक्टर मेकन्ले अपने होंठों पर उंगली रखते हुए बोले, ‘‘आराम करो।’’

मैंने अपनी आंखें बन्द कर लीं। कुछ क्षणों पश्चात् मुझे ऐसा लगा जैसे शरीर की रगों में जीवन-संजीवनी की धारा दौड़ रही है। धीरे-धीरे मुझमें शक्ति वापस आ गई। हौले-हौले एक शान्तिप्रद, कोमल, रेशमी तन्द्रा मुझ पर छा रही थी और मैं आंखें बन्द करके सो गया।

पता नहीं, कितने समय बाद मैं जागा। किन्तु जब जागा तो देखा कि रात का समय था। मेरी मसहरी के पास एक नीले रंग का टेबिल लैम्प जला हुआ था। और उसके समीप एक आराम कुर्सी पर मारिया बैठी थी।
‘‘मारिया?...तुम?...यहां कहां...’’
मारे खुशी और आश्चर्य के मेरे मुंह से एक चीख-सी निकल गई।

मारिया की बड़ी-बड़ी कृपालु आंखों ने मुझे घबरा-सा दिया। फिर वह धीरे-धीरे कहने लगी, ‘‘तुम्हें रुस्तम सेठ ने खरीद लिया है। जोजफ तुम्हें लेने के लिए आया था किन्तु रुस्तम सेठ ने उसे पांच हजार रुपये देकर खरीद लिया है। और मुझे तुम्हारी देखभाल के लिए नर्स नियुक्त कर दिया है। दो और नर्सें भी हैं। हम तीनों बारी-बारी ड्यूटी देती हैं। कहो, क्या हाल है तुम्हारा? कैसा महसूस करते हो?’’

‘‘किन्तु पांच हजार रुपये!...’’ इतना आश्चर्य था मुझे कि मेरी आवाज बैठ-सी गई, ‘‘पांच हजार रुपये! जरा सोचो तो मारिया, हिन्दुस्तान में किसी गधे का इतना मूल्य न लगा होगा!’’

‘‘हां,’’ मारिया ने स्वीकार किया, ‘‘वर्ना यहां जितने गधे हैं, रोजाना कुछ आने की ही मजदूरी पाते हैं और बड़ी मुश्किल से दिन में एक बार घास खाते हैं। तुम्हारी किस्मत तो वाकई अपनी किस्म का एक रिकार्ड है। हालांकि सुना है कि तुम्हारी नस्ल अच्छी नहीं।’’

‘‘एक गरीब गधे की नस्ल कहां अच्छी हो सकती है!’’ मैंने दयनीयता से कहा, ‘‘आजकल अच्छी नस्ल तो एक अच्छी नस्ल की गाड़ी रखने से स्पष्ट होती है, एक ‘केडीलक’ या ‘रोल्स रायज’! पैदल चलने वाले गधे की क्या नस्ल और क्या उसका खानदान! इसलिए मुझे आश्चर्य हो रहा है कि रुस्तम सेठ ने मुझे पांच हजार रुपये में क्यों खरीद लिया?’’

मारिया ने अपनी बड़ी-बड़ी आंखें कई बार घुमाई, अपने कोमल कन्धे उचकाए और बोली, ‘‘क्या मालूम? मगर यह मुझे मालूम है कि उन्होंने तुम्हारे इलाज पर अब तक हजारों रुपये खर्च कर दिए हैं। मुझे तो रुस्तम सेठ बहुत ही शरीफ आदमी मालूम होता है। उन्होंने तुम्हें सपने में मेरा नाम दो बार बड़बड़ाते सुना और फौरन मुझे उचित वेतन देकर नर्स के काम के लिए नौकर रख लिया।’’

मारिया यह कहते-कहते शर्मा-सी गई। मैंने भी उसकी कोमल भावना का सम्मान करते हुए मुंह फेर लिया और रुंधी आवाज में धीरे से बोला, ‘‘रुस्तम सेठ मेरा रक्षक है। उसने मेरी जान बचाई है। वह एक सज्जन आदमी है। उसके दिल में इन्सानियत का दर्द मालूम होता है- गरीबों के लिए सहानुभूति और गिरे हुओं के प्रति प्रेम। मैं मृत्यु-पर्यन्त ऐसे आदमी का अहसान नहीं भूल सकता।’’

मेरी आंखों में आंसू आ गए। सम्भव है कि मैं कुछ और भी कहता, किन्तु इतने में डॉक्टर मेकन्ले आ गए और उन्हें देखते ही मारिया उठ खड़ी हुई और डॉक्टर का संकेत पाकर कमरे में बाहर चली गई। मैं तो उसकी कमर के लचकदार मोड़ को देखता ही रह गया।
‘‘अब कैसे हो?’’ डॉक्टर मेकन्ले ने मेरी नब्ज टटोलते हुए पूछा।
‘‘बहुत अच्छा महसूस कर रहा हूं! थैंक्यू।’’

डॉक्टर मेकन्ले मुस्कराए। उन्होंने नब्ज देखनी छोड़ दी और अपनी आराम कुर्सी मेरी मसहरी के समीप घसीटते हुए बोले, ‘‘तुम्हें वास्तव में रुस्तम सेठ का धन्यवाद करना चाहिए। यदि वे मुझे समय पर न बुलाते तो तुम्हारी जान का बचना बहुत कठिन था।’’
‘‘मुझे क्या बीमारी थी डॉक्टर?’’
‘‘ओवर ईटिंग।’’
‘‘हालांकि मेरी बीमारी अधिक पीने से हुई होगी, डॉक्टर!’’ मैंने कहा।
‘‘एक ही बात है। अधिक खाना, अधिक पीना एक ही क्रम में आते हैं।’’

‘‘किन्तु मुझे स्मरण है,’’ मैंने अपनी स्मरण-शक्ति पर जोर देते हुए कहा, ‘‘उस दिन तो मैंने घास का एक तिनका तक न तोड़ा था और उससे पहले भी दो दिन बारह-बारह घण्टे के लिए मुझे खाने के लिए कुछ नहीं दिया गया था। आज तक तो मुझे याद नहीं कि कुछ अच्छे दिनों को छोड़कर मुझे कभी भरपेट खाना मिला हो।’’
‘‘इसलिए तो जब तुम्हें पेट-भर खाने को मिलता है तब तुम अधिक खा जाते हो और बीमार पड़ जाते हो। मैंने अक्सर गधों को यही बीमारी देखी है।’’
‘‘देखिए यह तो कोई बीमारी नहीं है डॉक्टर!’’ मैंने बात का विरोध करते हुए कहा, वास्तविक बीमारी तो भूख है, जिससे सब गधे मरते हैं।’’
‘‘भूख का हम इलाज नहीं कर सकते हैं,’’ डॉक्टर ने कहा, ‘‘भूख एक असाध्य रोग है।’’
‘‘और बेकारी?’’
‘‘बेकारी भी असाध्य है।’’
‘‘और अशिक्षा?’’
‘‘अशिक्षा भी असाध्य है, बल्कि भयानक है,’’ डॉक्टर ने कहा, ‘‘जहां-तहां गधों को शिक्षा दी गई, राज्य उलट गए हैं।’’

मैं चुप हो गया। मैंने सोचा-डॉक्टर से उलझना व्यर्थ है। सम्भव है, इलाज ही करना बन्द कर दे और वापस हांगकांग चला जाए। अतः मैंने बात पलटते हुए कहा, ‘‘तो आपके ख्याल में मेरी बीमारी अधिक घास खा जाने से हुई है?’’
‘‘निस्सन्देह।’’
मैंने दिल में कहा, ‘डॉक्टर साहब, कहीं आप ही तो घास नहीं खा गए!’ किन्तु मैं दिल को रोककर चुप रहा।

डॉक्टर मेकन्ले बोले, ‘‘तुम एक पढ़े-लिखे गधे हो। मैंने अखबारों में तुम्हारा हाल पढ़ा था। इसलिए तुम्हें बताता हूं कि तुम्हारा रोग बहुत भयंकर है। एक तो अधिक खा जाने की बीमारी, ऊपर से खून खराब।’’
‘‘खून खराब था?’’

‘‘हां। जो गधा पढ़-लिख जाए, उसका खून प्रायः खराब हो जाता है। दिमाग भी खराब हो जाता है। इसलिए मैंने आते ही तुम्हारे पेशाब, पाखाने, खून और पसीने का निरीक्षण किया।’’
‘‘पसीने का भी निरीक्षण होता है डॉक्टर साहब?’’

‘‘हां। फिर दिल-दिमाग, फेफड़े, जिगर, गुर्दे, तिल्ले, मेदे का एक्स-रे किया और मैं इस परिणाम पर पहुंच गया कि पढ़ने-लिखने से तुम्हारा खून खराब हो गया है। इसलिए जब तक तुम्हारे शरीर में किसी अनपढ़ गधे का खून प्रविष्ट न किया जाएगा, तुम ठीक नहीं हो सकते। रुस्तम सेठ का ख्याल था कि बम्बई में किसी अनपढ़ गधे का मिलना कठिन है। किन्तु जब विज्ञापन दिया तो हजारों गधों के प्रार्थना-पत्र मिले जो दस रुपये से घास के गट्ठे तक के लिए अपना खून बेचने के लिए तैयार थे। रुस्तम सेठ को बड़ा आश्चर्य हुआ।’’
‘‘इसमें आश्चर्य की क्या बात है? गरीबों ने आज तक अपना खून ही बेचा है।’’

डॉक्टर के गाल मेरी बात सुनकर लाल होते हुए एकदम आग के रंग के हो गए। वह एक क्षण मौन रहने के बाद बोला, ‘‘मालूम होता है तुम्हारा दिमाग अभी तक बीमार है। अभी तुम्हें और खून की आवश्यकता है। अभी तुम्हें काफी समय तक अनपढ़ गधों का खून दिया जाएगा और पुराना खून निकाल लिया जाएगा। और एक सप्ताह तक मैं समझता हूं कि तुम्हारे शरीर में तुम्हारे खून की एक बूंद तक न रहेगी।’’
‘‘क्यों मेरी उम्मीदों का खून करते हो डॉक्टर?’’
डॉक्टर हंस पड़ा। बोला, ‘‘अच्छा, अब मैं चलता हूं। तुम आराम करो। रात अधिक जा चुकी है।’’

दस-बारह दिन के पश्चात् मैं बिल्कुल अच्छा हो गया और अस्तबल के बाहर मैदान में चहलकदमी करने लगा और दौड़ लगाने लगा। डॉक्टर मेकन्ले भी पर्याप्त फीस लेकर हांगकांग वापस चला गया। मारिया अलबत्ता अभी तक मेरी देखभाल पर तैनात थी, हांलाकि दूसरी दो नर्सों की छुट्टी कर दी गई थी।
चहलकदमी करते समय प्रायः मारिया मेरे साथ होती थी और अपनी लुभानी बातों से मेरा दिल लुभाती थी।

फिर एक दिन रुस्तम सेठ मेरे पास आया। उसके साथ एक नाई भी था। रुस्तम सेठ ने मेरी ओर संकेत करके नाई से कहा, ‘‘इसके शरीर के सारे बाल मूंड डालो और इसके शरीर को घोड़े के शरीर की तरह स्वच्छ और चिकना बना दो।’’

हजामत के बाद मुझे साबुन और पानी से कई बार नहलाया गया। सूखे तौलिये से मेरा शरीर कई बार रगड़ा गया। फिर कई दिन तक मेरे शरीर पर जैतून के तेल की मालिश होती रही और अन्त में एक विचित्र-सा पॉलिश मेरे शरीर पर किया गया, जिससे मेरा शरीर सिर से पांव तक एक मुश्की घोड़े की खाल के समान चमकने लगा।

सारे जीवन में मैंने अपने-आपको कभी ऐसा सुन्दर न पाया था। अब तो कभी-कभी मारिया भी चाव-भरी निगाहों से मेरी ओर स्वीकारात्मक ढंग से देख लेती थी।

मैंने मारिया से कहा, ‘सेठ रुस्तम जैसा देवगुण-सम्पन्न देवता-स्वरूप इन्सान मैंने आज तक नहीं देखा। कैसा निःस्वार्थ, सहानुभूतिपूर्ण हृदय पाया है इसने! अरे, अपने सगे रिश्तेदार ऐसा व्यवहार नहीं करते जो इसने मुझसे किया है। इसे देखकर मेरे जैसा गधा भी मानवता पर विश्वास ला सकता है।’
मारिया ने कहा, ‘‘खुदा मेरे और तुम्हारे रक्षक को प्रबल तक जिन्दा रखे!’’

इस वार्तालाप के दूसरे दिन एक धनी मूंछों वाला, सांवले रंग का, दोहरे बदन का, अधेड़ उम्र का आदमी, जिसकी दृष्टि मेरे शरीर को बर्मे की तरह छेदती थी, एक डॉक्टर को लेकर आया। सेठ रुस्तमजी और खेमजी भी साथ ही थे।
डॉक्टर ने मेरा अच्छी तरह से निरीक्षण करने के बाद कहा, ‘‘यह तो मुझे गधा मालूम होता है।’’
रुस्तम सेठ ने कहा, ‘‘अजी नहीं, यह पीरू का घोड़ा है। पीरू प्रान्त दक्षिणी अमरीका में स्थित है। वहां के घोड़े बिल्कुल
गधों के समान होते हैं।’’
‘‘बौना भी है।’’ घनी मूंछों वाले ने एतराज किया।

‘‘वहां के घोड़े इस प्रकार ही बौने होते हैं।’’ खेमजी बोला, ‘‘सेठ ने इसे खासतौर पर पीरू से मंगाया है। हिन्दुस्तान में आज तक इस नस्ल का घोड़ा कभी नहीं आया। यह दोगला घोड़ा है। बाप स्पेनिश, मां साउथ अमेरिकन इण्डियन। दोनों की क्रासब्रीडिंग से यह नस्ल तैयार हुई। दौड़ने में बहुत बढि़या होती है।’’
‘‘हूं...’’ घनी मूंछों वाले ने सन्देह से सिर हिलाया। फिर बोला, ‘‘इसका नाम क्या है?’’
‘‘गोल्डन स्टार!’’ रुस्तम सेठ बोला।
‘‘हूं...’’ अब की डॉक्टर ने सन्देह से सिर हिलाया।

सम्मिलित होना महालक्ष्मी की रेस में घोड़ों के साथ, और मजाक करना देखकर गधे को लोगों का, और बयान घुड़दौड़ के आर्श्चयजनक परिणाम का...

रुस्तम सेठ घनी मूंछों वाले आदमी और डॉक्टर को एक ओर ले गया। दोनों में देर तक कुछ खुसर-पुसर होती रही। उसके पश्चात् डॉक्टर और घनी मूंछों वाला आदमी दोनों कहीं चले गए और सेठ खेमजी को लेकर खुशी से मुस्कराता हुआ मेरे पास आया और बोला-

''सब ठीक हो गया है। कल से तुमको महालक्ष्मी के रेसकोर्स अस्तबल में भेज दिया जाएगा।''
''महालक्ष्मी के रेसकोर्स में! क्यों?''
''वहां एक मास पश्चात् तुम्हें क्रिसमस कपवाली रेस की प्रतियोगिता में सम्मिलित किया जाएगा।''
''मैं...?...एक गधा होकर घोड़ों की रेस में भाग लूंगा?''
मैंने आश्चर्य से कहा, ''आप लोगों की अक्ल तो ठीक है? आज तक कहीं कोई गधा किसी घोड़े से तेज दौड़ा है?''

रुस्तम सेठ ने मुस्कराकर कहा, ''तुम्हारा पीछा किया था और तुम पुलिस की जीप और दूसरी तीव्र गति वाली गाड़ियों से भी तेज भागते हुए माहिम से वर्ली के बीच तक चले आए थे। यदि तुम उस गति की तीन-चौथाई गति से भी रेस में दौड़े तो तुम सब घोड़ों को पीछे छोड़ जाओगे।''
मैंने आश्चर्य से कहा, ''सेठ, तो जिस दिन तुमने मेरी जान बचाई थी क्या उसी दिन तुमने इसका अनुमान लगा लिया था!''
सेठ हंसकर बोला, ''अनुमान मैंने पहले लगा लिया था, जान बाद में बचाई थी।''

''तो यह बात थी! इसलिए सेठ ने मेरी जान बचाई थी! मैं एक गधा...! घोड़ों की रेस में स्मगल किया जाऊंगा। अरे मारिया, जरा सोचो तो, यह स्मगलिंग कहां-कहां नहीं है!''

मैंने कुछ उदास और परेशान होकर मारिया से कहा,
''मेरा जी नहीं चाहता कि मैं इस रेस में भाग लूं।''

''सेठ ने तुम्हारी जान बचाई है। उसने तुम्हारे इलाज पर हजारों रुपये व्यय किए हैं।'' मारिया ने प्रश्न किया, ''क्या इतने बड़े अहसान करने वाले का तुम पर कोई अधिकार नहीं है! क्या तुम उनके अहसान का बदला नहीं चुकाओगे?''

''किन्तु इसका क्या भरोसा है कि मैं जरूर यह रेस जीत जाऊंगा। जिस स्पीड की सेठ बात करते हैं, उस समय की बात कुछ और थी। उस समय मेरे लिए जीवन और मृत्यु का प्रश्न था। ऐसे अवसर पर तो गधा भी एक घोड़े से तेज भाग सकता है...नहीं मारिया, मैं रेस में भाग नहीं लूंगा।''

''अच्छी तरह सोच लो,'' मारिया बोली, ''इतिहास में ऐसी घटना कभी घटित नहीं हुई, जब गधा घोड़ों की रेस में शामिल हुआ हो। तुम पहले गधे होगे! अपनी जाति के प्रथम प्रतिनिधि!!''

"ऐसा मत कहो।" मैंने पूछा, "और वे सब लोग कहां हैं जो रेस- कोर्स के आन्तरिक षड्यन्त्रों और पेचीदगियों से अनभिज्ञ रेसकोर्स के हर खेल में हजारों की संख्या में शामिल होकर अपनी गाढ़े पसीने की कमाई के लाखों रुपये एक रहस्य पर लुटा देते हैं ?"

मारिया बोली, "सेठ मुझसे कह रहे थे कि सफल व्यापार का सारा रहस्य इसी में है कि एक आदमी दूसरे आदमी को कहां तक गधा बना सकता है ।"

"मैं ऐसा काम क्यों करूं ?" मैंने कहा, "जिससे साधारण लोगों के लाखों रुपयों की हानि हो ।"

"तुम यदि इस रेस में शामिल नहीं होगे तो क्या अन्तर पड़ेगा ? रेस तो लोग फिर भी खेलेंगे। हां, इतना अवश्य होगा कि मारिया बेचारी की रोटी समाप्त हो जाएगी।" मारिया ने धीमे से कहा ।
''तुम्हारी रोटी?'' मैंने आश्चर्य से पूछा।

''तो तुम क्या समझते हो? सेठ ने मुझे अब तक कोई नौकर रखा हुआ है?'' मारिया मेरी गर्दन पर हाथ रखकर बोली, ''डियर डंकी, क्या तुम मेरे लिए रेस में भाग नहीं ले सकते?''

''तुम्हारे लिए तो मैं अपनी जान भी दे सकता हूं।'' मैंने निर्णयात्मक स्वर में कहा, ''यदि तुम्हारा मामला बीच में है तो समझ लो कि यह गधा इस रेस में अवश्य दौड़ेगा! न केवल दौड़ेगा, बल्कि रेस जीतने के लिए जान की बाजी भी लगा देगा!''
''डार्लिंग...'' मारिया ने खुश होकर मेरी गर्दन पर एक चुंबन लिया, ''मुझे तुमसे यही आशा थी?''

"किन्तु मुझे नहीं पता था कि तुम मुझसे इतना प्रेम करती हो,” मैंने कुछ शरमाकर कहा, “आखिर तो मैं एक गधा हूं।"

" प्रेम करने के लिए किसी हद तक गधा होना अनिवार्य है ।" मारिया ने चंचल स्वर में उत्तर दिया । फिर वह अपनी कमर के लचीले मोड़ उभारती हुई अस्तबल से बाहर चली गई । उसके जाते ही मैंने प्रसन्नता से एक जोरदार दुलत्ती झाड़ी और अस्तबल के दरवाज़े से सिर निकाल- कर दरबारी विलम्बित में एक ऐसी तान लगाई जिसने सारे अस्तबल को गुंजा दिया ।

मारिया अस्तबल से निकलकर लान को लांघती हुई सेठ के बंगले की ओर जा रही थी। समुद्र की हवाएं अजनबी देश की गन्ध ला रही थीं और ऊपर सातवें दिन का चांद एक गधी के सुम के समान उज्ज्वल था, और आकाश की घास में स्थान-स्थान पर तारे बाजरे के दानों की भांति चमक रहे थे ।

रेस से कुछ दिन पहले घुड़दौड़ के विषय में समाचारपत्रों के कालमों में रुस्तम सेठ के नये घोड़े 'गोल्डन स्टार' की चर्चा थी। उसके वंश - इति- हास का विवरण था, जोकि अर्ध-स्पेनिश और अर्ध-नेटिव बताया गया था । अधिकांश कालम-लेखक इस घोड़े के सम्बन्ध में कोई अच्छी राय न रखते थे और उन्होंने अपने पढ़नेवालों को परामर्श दिया कि वे इस बौने अनभ्यस्त घोड़े पर अपना धन व्यर्थं न करें ।

मारिया समाचारपत्र पढ़कर मुझे ये बातें सुनाती रही और इन्हें सुन-सुनकर मेरा खून खौलता था । मैंने दृढ़ निश्चय कर लिया कि रेस के दिन मैं इस प्रकार दौड़ंगा, जैसे मेरे पीछे बम्बई की सारी पुलिस लगी हुई हो । मैं भी इन कालम-लेखकों को बता दूंगा कि यदि एक गधा चाहे तो ऊंची से ऊंची नस्ल के घोड़ों को मात दे सकता है । टांगों में शक्ति और हृदय में सच्चा प्रेम हो, तो क्या नहीं हो सकता ।

फिर रेस का दिन आ गया। कुछ समय पहले मुझे महालक्ष्मी के अस्तबल में भेज दिया गया था। किंतु भेद खुलने के भय से मुझे दूसरों घोड़ों के पृथक रखा गया था और किसी फोटोग्राफर को फोटो लेने की अनुमति न दी गई थी। रेस से कई घंटे पहले मारिया ने मुझे डटकर ठर्रा पिलाया और एक डॉक्टर ने मुझे एक इंजेक्शन दिया। मेरे शरीर में तीर की-सी सनसनाहट महसूस होने लगी।

रेसकोर्स के स्टैण्ड हजारों खिलाड़ियों से भरे हुए थे। जब लोगों ने मुझे देखा तो आश्चर्य से उनकी चीखें निकल गईं और दर्शकों के झुंड के झुंड ठट्ठा मारकर हंसने लगे। वे सब लोग मुझ पर हंस रहे थे।

मारे क्रोध के मेरे मुंह से झाग निकलने लगे। मैंने दांत पीसे। किंतु चुप रहा। ऑनर्स-गैलरी में मारिया सेठ रुस्तम के पास खड़ी थी और अपना गुलाबी रूमाल हिला-हिलाकर मेरा साहस बढ़ा रही थी।

दर्शकों की प्रतिक्रिया के फलस्वरूप मैं कुछ खिन्नमन हो गया था। किंतु मारिया को देखते ही मेरा दिल निश्चय के बल से भर गया और मैं रेस के घोड़ों की पंक्ति में सबसे अंत में खड़ा हो गया।

रेस के आरंभ होते समय भी सबसे अंत में था।
रेस के पहले चक्कर में भी सबसे अंत में था। जिधर-जिधर से मैं गुजरता गया, दर्शक मुझ पर हंसते थे।
'अरे यह गधा है गधा! इस इस्पानवी घोड़े से तो गधे भी तेज दौड़ते होंगे!''
किसी भी दर्शक ने मुझ पर एक रुपया भी लगाने का साहस न किया था। मारिया का चेहरा उड़ा हुआ था और रुस्तम सेठ का चेहरा पीला पड़ गया था।

मारिया के चेहरे को देखकर मेरे मन में जोश और उत्साह की एक लहर-सी उठी। मैंने दांत पीसकर एक ऐसी चौकड़ी भरी कि आधे फर्लांग में तीन घोड़ों से आगे निकल गया। फिर चौथे घोड़े से! फिर पांचवें घोड़े से! फिर छठें घोड़े से! फिर सातवें घोड़े से!
''बक अप गोल्डन स्टार!'' मारिया अत्यन्त प्रसन्नता से चिल्लाई।

सारे स्टैण्ड में केवल उसकी आवाज गूंजी, क्योंकि और किसी दर्शक ने मुझ पर दांव नहीं लगाया था। सब आश्चर्य से मुंह खोले खड़े थे।

अब मेरे आगे केवल दो घोड़े थे और विनिंट पोस्ट केवल एक फर्लांग की दूरी पर था।
''बक अप 'सुबह का तारा'!''
हजारों दर्शक 'सुबह का तारा' के लिए चिल्लाए, जो हम सबसे आगे था, जिस पर हजारों दर्शकों ने दांव लगाया था।
''बक अप 'माहपारा'!''
दूसरे दर्शकों ने 'माहपारा' के पक्ष में पुकारा, क्योंकि उन्होंने उस पर दांव लगाए थे और जिसका इस समय नंबर दो था।

''बक अप माई डार्लिंग गोल्डन स्टार!'' मारिया और जोर से चिल्लाई और उसकी आवाज सुनते ही मैं आंखें बंद करके अपने शरीर की पूरी शक्ति से दौड़ा और एक तीर की भांति सनसनाता हुआ, दोनों घोड़ों को पचास गज पीछे छोड़ता हुआ विनिंग पोस्ट, से आगे निकल गया।

बंबई रेसकोर्स के इतिहास में ऐसी घटना कभी नहीं घटी थी। 'गोल्डन स्टार' ने एक पर नब्बे का भाव दिया था। टिकट केवल 'गोल्डन स्टार' पर लगाए गए जो सबके सब रुस्तम सेठ के अपने आदमियों ने खरीदे थे। मारिया ने मुझ पर दो सौ रुपये लगाए थे, उसे अट्ठारह हजार मिले।

रुस्तम सेठ ने विभिन्न 'बुकियों' के हाथ भारी रकमें लगाई थीं। कुछ दूसरे घोड़ों पर भी दांव लगाए थे। हार-जीत सब कट-कटाकर उसने जो अनुमान लगाया तो उसे पता लगा कि उसने 'गोल्डन स्टार' पर दांव लगाने में कोई गलती नहीं की। दो 'बुकी' अवश्य फेल हो गए। किंतु सेठ ने ढाई लाख रुपये एक रेस से ही समेट लिए।
गोल्डन स्टार!

रेस समाप्त होने के पश्चात् मुझे कुछ ही घंटों में महालक्ष्मी के अस्तबल से सेठ के अस्तबल में भेज दिया गया। सेठ ने खूब-खूब मेरी पीठ ठोकी। मारिया ने मुझे प्यार किया। खेमजी ने, जो मेरा 'जाकी' था, मुझे गर्दन पर कई बार थपथपाया।

रात को मारिया ने मुझे अपने हाथ से केवड़े से सुगंधित हरी-हरी घास खिलाई और मुझे असली स्कॉच ह्निसकी पहली बार चखने को मिली। मैं प्रसन्नता के प्रवाह में दोनों बोतलें समाप्त कर गया। स्कॉच पीते ही मुझे गहरी नींद आ गई और मैं खाट की मसहरी पर लंबी तान लेकर सो गया।
आधी रात के समय अचानक मेरी आंखें खुल गईं। मेरे अस्तबल के बाहर कुछ खुसर-फुसर हो रही थी। मैंने लकड़ी की दीवार से कान लगा दिया।
सेठ की आवाज आई, ''इस मामले की गहरी खोज होगी। दूसरी रेस का 'रिस्क' लेना ठीक न होगा।''
खेमजी 'जाकी' बोला, ''पर सेठ 'गोल्डन स्टार' ने तो कमाल कर दिया आज!''

''तुम नहीं समझते हो,'' सेठ बोला ''हम 'रिस्क' नहीं ले सकते। जब छानबीन शुरू होगी तो यह अवश्य पता चल जाएगा कि हमने एक गधे को घोड़ों की रेस में शामिल किया है। उस स्थिति में न केवल मेरे अस्तबल को रेसकोर्स से बाहर कर दिया जाएगा, बल्कि हो सकता है कि मुझे जेल भी हो जाए। 'गोल्डन स्टार' को खत्म कर देना होगा।''
''वह कैसे?'' खेम जी 'जाकी' ने पूछा।

''तुम इसे किसी बहाने से यहां से निकाल समुद्र के किनारे ले जाओ। पर यह गधा है शहर का पला हुआ। इसे इस तरह न मारना चाहिए। इससे कह दो यहां तुम्हारी जान को खतरा है। यहां से निकालकर इसे समुद्र के किनारे ले जाओ और पिस्तौल से इसे मारकर समुद्र में इसकी लाश को धकेल दो। क्यों मारिया?''
''हां, यह ठीक है,'' मारिया की आवाज आई, ''न गधे की लाश मिलेगी, न छानबीन का कोई परिणाम निकलेगा।''
पहले तो मैं भय से कांप रहा था। मारिया की बात सुनकर मेरी आंखों में आंसू आ गए। तो यह है मेरे प्रेम का परिणाम!

खेमजी 'जाकी' बोला, ''कुछ अच्छा नहीं लगता सेठ। जिस जानवर से मैंने लाखों रुपये एक ही दांव में कमा लिए हों, उसे इस प्रकार समाप्त कर देना किसी तरह अच्छा नहीं मालूम होगा।''
''मूर्ख न बनो,'' सेठ ने आज्ञा-भरे स्वर में कहा, ''जब किसी गधे से और किसी लाभ की आशा न हो तो उसे खत्म कर देना ही अच्छा है।''

फिर खुसर-पुसर बंद हो गई और देर तक सन्नाटा रहा और रात को मौत एक खंजर बनकर मेरे सीने पर लटकती रही।
फिर धीरे से अस्तबल का द्वार किसी ने खोला और एक धुंधली छाया ने अंदर प्रवेश किया।
मैंने भय से कांपती हुई आवाज से पूछा, ''कौन है?''
अचानक किसी ने दीवार पर हाथ फेरकर स्विच दबा दिया। अस्तबल में प्रकाश हो गया। सामने खेमजी खड़ा था।
''क्या है?''
''उल्टे चलो बाहर।''
''कहां?''
''समुद्र के किनारे।''
''क्यों?''
''टहलेंगे, तुमसे बात करेंगे।''
''यहां पर बात क्यों नहीं हो सकती?'' मैंने पूछा।

''यहां बहुत गर्मी है, और संभव है कोई सुन ले। दीवार के भी कान होते है!'' खेमजी 'जाकी' बोला, ''समुद्र के किनारे टहलेंगे और तुमसे दूसरी रेस के बारे में बातें करेंगे।''

मैंने अपने मन में कहा- 'तुम! तुम मुझसे उस रेस के बारे में क्या बातें करोगे जो मेरी मृत्यु तक जाती है!' किंतु मैं चुप रहा। खेमजी ने मेरी गर्दन में एक रस्सी बांधी और मुझे अस्तबल से निकालकर समुद्र के किनारे ले चला।

रास्ते में अंधेरा था। नारियल के पेड़ कोर्टमाशल के सिपाहियों के समान अपने काले तने रायफल के समान उठाए खड़े थे। समुद्र की लहरें तक भयानक शोर के साथ तट से टकरा रही थीं। चारों तरफ आदमी न आदमजात!

बस, एक गधा और एक आदमी!
एक हत्यारा और एक मरने वाला!
समुद्र के तट पर ले जाकर खेमजी ने मुझे खड़ा कर दिया और मुझे विचित्र-सी दृष्टि से देखकर बोला, ''जानते हो, मैं तुम्हें यहां क्यों लाया हूं?''
''हां,'' मैंने उदास स्वर में कहा, ''तुम मेरी जान लेने के लिए मुझे यहां लाए हो।''

खेम जी ने अपनी जेब से पिस्तौल निकाल लिया ।

"तुमने मेरा काम आसान कर दिया। अब अपनी मौत के लिए तैयार हो जाओ ।"

"मैं बिलकुल तैयार हूं । किन्तु मेरी प्रार्थना है ।"

"क्या ?"

"जिस आदमी ने पहली बार मुझपर सवार होकर एक गधे को घोड़ों की रेस में जिताया, मैं मरने से पहले उस आदमी के हाथ चूमना चाहता हूं।"

“इसमें क्या है !" खेम जी ने अपने दोनों हाथ आगे बढ़ाते हुए कहा, "लो, चूम लो ।”

ज्यों ही उसने हाथ आगे बढ़ाए, मैंने पलटकर जोर की दुलत्ती झाड़ी कि वह चकराकर तट पर के पत्थरों पर गिर पड़ा और उसके बाद इस अवसर को उचित समझकर मैं वहां से भाग निकला।

थोड़ी देर बाद कराहते हुए खेम जी की गोलियों की श्रावाज़ आई । किंतु मैं समझे-बूझे बिना सरपट भागे जा रहा था, रेसकोर्स की गति से भी तेज । फिर अचानक कई गोलियों के चलने की आवाज़ आई और कई गोलियां मेरे समीप से सनसनाती हुई गुज़र गईं।

खेमजी ने अपनी जेब से पिस्तौल निकाल लिया। जिस पर मैंने इस जोर से दुलत्ती झाड़ी, वह चकराकर मुंह के बल गिर पड़ा और मैं सरपट भाग निकला।
फिर अचानक कई गोलियों के चलने की आवाज आई और कई गोलियां मेरे समीप से सनसनाती हुई गुजर गईं।
फिर एक गोली पीछे से आई और मेरी पिछली दाहिनी टांग को छेदती हुई गुजर गई।

मैं चकराकर गिरने को ही था किंतु मैंने अपने-आपको संभाल लिया और दौड़ता-दौड़ता-दौड़ता चला गया! बाजार...सड़क...मोड़...नुक्कड़ मुझे कुछ याद न रहा। मैं अपने जीवन को बचाने के लिए भाग रहा था।

बहुत देर तक भागने के बाद जो मैंने पीछे मुड़कर देखा तो दूर-दूर तक कोई न था । रात अकेली थी, सड़क अकेली थी । आसपास के सब बंगले सोए हुए थे ।

और अचानक अपने-आपको अकेला पाकर मेरी टांगों ने मुझे जवाब दे दिया और नारियल के एक पेड़ के नीचे एक बंगले के दरवाज़े के बाहर मैं गिर गया ।

मुलाकात करना एक पश्चिमी सुन्दरी लोला और उसके प्रेमी वैज्ञानिक से, और सहायता करना गधे का भूख का इंजेक्शन बनाने में

सुबह को जब बंगले के माली ने मुझे डंडे मार-मारकर भगाना चाहा तो मुझसे उठा नहीं गया। मेरी टांग सुज गई थी और उसके घाव से रक्त बह-बहकर सूख गया था। इसलिए मैं इस विवशता की स्थिति में पड़ा-पड़ा मार खाता और पीड़ा से डकराता रहा। मेरी चीखें सुनकर बंगले का स्वामी बाहर निकल आया ।

वह एक छोटे कद का, सांवले रंग का आदमी था, जिसके बाल कनपटियों तक गायब थे। उसकी आँखें बड़ी-बड़ी और चमकदार थीं, और वह रुक-रुककर बात करता था, और शब्द उसके होंठों से यूं निकलते थे जैसे किसी अर्क निकालनेवाली नलकी से बूंद-बूंद करके बह रहे हों ।

"क्या बात है माली ? यह कौन है ?"

"गधा, मास्टर, " माली ने मुझे डण्डा मारते हुए कहा ।

मास्टर ने मुझे सिर से पांव तक ध्यान से देखा । अपने गंजे सिर पर हाथ फेर । अपनी लम्बोतरी ठोड़ी खुजाई, जिसपर फ्रेंच कट दाढ़ी थी । फिर उसकी आंखें एकदम चमकने लगीं; जैसे किसी अच्छे विचार ने उन्हें प्रकाशित कर दिया हो ।

"हूं," वह बोला, "यह तो घायल है। इसको फौरन अन्दर लाओ ।"

माली इस प्रकार चौंका जैसे उसे अपने मालिक से ऐसी सहानुभूति की आशा न हो। वह होंठों होंठों में कुछ बड़बड़ाया । फिर रस्सी लेने के लिए अन्दर चला गया। उसके जाते ही मालिक भी अन्दर चला गया । थोड़ी देर के बाद माली अपने दो जवान बेटों को लेकर बाहर आ गया। वे लोग रस्सों से घसीट मुझे अन्दर ले गए और मुझे एक लान पर ले जाकर छोड़ दिया। फिर उसके जवान बेटे माली के क्वार्टर में चले गए और माली बंगले के अन्दर चला गया ।

कोई आधे घण्टे के पश्चात् मालिक बंगले के अन्दर से कुछ दवाएं और पेटियां लेकर निकला। उनके साथ एक नौकर भी था। मालिक ने मेरा घाव धोया । नश्तर से ऑपरेशन करके गोली निकाली पट्टी की । मुझे एक इन्जेक्शन देने लगा ।

इतने में बंगले के अन्दर से लाल बालों वाली पश्चिमी सुन्दरी प्रकट हुई। वह मास्टर से कम से कम डेढ़ फुट ऊंची होगी । उसने तैरने का एक सुन्दर बिकनी सूट पहन रखा था, यानी कमर पर एक फूलदार चड्डी और स्तनों पर एक रूमालनुमा फूलदार कपड़ा, बस । उसका गोरा नंगा शरीर अत्यन्त सानुपातिक और सुन्दर था। ऐसा मालूम होता था जैसे उसका शरीर मांस के बजाय सूरज की किरणों का बना हो ।

"मास्तर," वह आश्चर्य से चिल्लाई, "यह जानवर कौन है ?"

जिस स्वर में उस पश्चिमी स्त्री ने बात की उससे मुझे अन्दाजा हो गया कि यह स्त्री अंग्रेज़ नहीं हो सकती, यद्यपि वह अंग्रेजी में बात करती थी । हमारे निकट आकर बोली, "यह तुम क्या कर रहे हो ?"

"डंकी ज़ख्मी...इसको मैं देता इन्जेक्शन," मास्टर बोला। बाद में मुझे मालूम हुआ कि बंगले के मालिक का नाम एच० बी० मास्टर था और वह एक डाक्टर और वैज्ञानिक था ।

"वात ? दंकी ? पूअर दंकी ! पूअर पूअर दंकी !" वह स्त्री मेरे समीप आकर झुकी और गर्दन पर हाथ फेरने के लिए उसने अपना उज्ज्वल हाथ फैलाया ।

"दूर हट लोला ।”

मास्टर आज्ञा के स्वर में चीखा और लोला घबराकर पीछे हट गई और भयभीत होकर उसकी ओर देखने लगी। किन्तु मास्टर ने मुड़कर भी उसकी तरफ नहीं देखा। बड़े विश्वास से उसने मुझे दो इन्जेक्शन लगाए और फिर दवाइयों का बक्सा और खाली सिरिंज नौकर को देकर लोला से बोला : "पहनकर तुम...ऐसा ड्रेस...आई सामने अजनबी के ... बेशर्म ।"

"मगर यह तो एक गधा है, जानवर है," लोला ने विरोध कहते हुए कहा ।

"नहीं चलेगा," वह क्रोध से बोला, "बदलो इसको अन्दर जाकर ... फोरन ।”

लोला बोली, "मगर डार्लिंग, मैं तो इसको पहनकर, 'स्वीमिंग पूल' में 'बाथ' लेने जा रही थी।"

"नो बाथ मेरी आज्ञा ड्रेस बदलो," वह छोटा-सा आदमी एड़ियां उठाकर क्रोध से बोला ।

एक क्षण के लिए लोला का चेहरा इतना लाल हो गया कि उसके गालों और बालों के रंग में कोई अन्तर नहीं रहा। उसकी आँखें गहरी हरी हो गईं। यदि वह चाहती तो उस छोटे-से, टैयां-से आदमी को दो हाथ ऐसे देती कि वह वहीं गिर जाता । किन्तु वह होंठ चबाकर खामोशी से मुड़ गई और बंगले के भीतर चली गई। मास्टर मुस्कराने लगा ।

"नो अखरा...नो लफड़ा...हम मास्टर ।" मास्टर मेरी तरफ देखकर इस प्रकार मुस्कराया जैसे मुझसे अपनी इस बात पर दाद मांग रहा हो, भला मैं क्या कहता ? अपनी आँखें झपकाए बिना देर तक उसकी ओर देखता रहा । थोड़ी देर के बाद मास्टर कुछ सोचता हुआ अन्दर चला गया ।

लान पर धूप पड़ने लगी। मेरे शरीर में भी प्रानन्दमयी उष्णता की लहरें दौड़ने लगीं। पट्टी और इन्जेक्शनों से मुझे बहुत लाभ पहुंचा था । जिसका एक परिणाम यह हुआ कि मुझे तेज भूख महसूस होने लगी । इतने में माली के दोनों बेटे मेरे लिए घास लेकर आ गए और मुझे खिलाने लगे ।

जब वे मुझे घास खिला रहे थे, उस समय दूसरे लान में एक रंगदार छतरी के नीचे एक नौकर आकर एक गलीचा विछा गया। फिर कुछ देर के बाद बंगले के अन्दर से लोला और मास्टर निकले । लोला ने एक बढ़िया पश्चिमी फ्राक पहन रखा था और सिर पर तौलियानुमा एक टोपी पहन रखी थी (जो बाद में तौलिया ही सिद्ध हुआ) । उसके हाथ में तेल की दो शीशियां थीं। उसके साथ मास्टर काली रंगत वाली निकर पहने चल रहा था। उस निकर के सिवा वह पांव तक नंगा था। धूप में उसका सुर्मई बदन यूं चमक रहा था जैसे वह आदमी न हो, किसी भैंस का नवजात शिशु हो ।

वह रंगदार छतरी के नीचे आकर गलीचे पर औंधा लेट गया और लोला तेल से उसकी पीठ पर मालिश करने लगी। इन दोनों को देखकर माली के दोनों बेटे आपस में खुसुर-पुसुर करने लगे ।

"ज्यों ही मालिक की पत्नी जाती है अपने देस को, यह हरामज़ादी फौरन आ जाती है ।" एक बोला ।

दूसरे ने कहा, "मैं तो हैरान हूं, इतनी लम्बी-चौड़ी मेम इस चींटे में क्या देखती है।"

"पैसा ।" पहला हंसकर धीरे से बोला ।

"पैसा तो इस सुन्दर मेम को कहीं भी मिल सकता है।"

"गाड़ी ?" पहला बोला ।

"नौकरों पर कैसे हुक्म चलाती है," दूसरा बोला, "जैसे घर की मालकिन हो । अंग्रेजी में गाली देती है ।"

"मुझे कहीं अकेले में मिल जाए तो " पहला इतना कहकर चुप हो गया और बहुत ही मांसल विचारों में खो गया ।

"हमको क्यों मिलने लगी ?" माली के दूसरे नवयुवक बेटे ने एक आह भरकर कहा ।

"मास्टर की शक्ल तो देखो !” पहला बहुत दुःख के स्वर में बोला ।

"औरत शक्ल नहीं देखती राजा, पैसा देखती है ।"

फिर दोनों चुप हो गए, जैसे हमेशा के लिए इस जीवन से ऊब चुके हों । फिर घास भी समाप्त हो गई और वे दोनों वहां से चले गए और मैं कान खड़े करके दूसरे लान की बातचीत सुनने लगा ।

लोला पूछ रही थी, "इस गधे को रखकर क्या करोगे तुम ?"

"एक्सपेरीमेण्ट ।"

"क्या एक्सपेरीमेण्ट ।"

"सीरम ।"

"कैसा सीरम ?"

"नासूर...पुराना घाव...सब ठीक...दो दिन में..." मास्टरे ने उसे धीरे-धीरे समझाया ।

"किन्तु पश्चिम में तो इस कार्य के लिए घोड़े इस्तेमाल किए जाते हैं, " लोला बोली, “उन्हीं के खून से सीरम तैयार होता है, उन्हीं पर तजुर्बे किए जाते हैं। ऐसा मैंने सुना है ।"

"घोड़ा महंगा... गधा सस्ता... " मास्टर दो टूक बोला ।

"मगर..."

"नो अगर-मगर, हम मास्टर...हम साईण्टिस्ट...यू शट अप ।"

लोला कड़वाहट से मुस्कराकर चुप हो गई और मास्टर की पीठ पर मालिश करती रही। थोड़ी देर बाद मास्टर ने करवट ली और सीधा लेट गया और अपने दोनों हाथ लोला की तरफ बढ़ाकर बोला :

"किस मी।"

"नो।" लोला इन्कार से सिर हिलाकर बोली ।

“किस मी ।” मास्टर ने बेचैनी से दोनों हाथ हिलाकर कहा ।

"तुम्हारे मुंह पर तेल है।" लोला ने एतराज किया ।

"नई गाड़ी मांगता ?"

लोला के चेहरे पर होंठ शबनम में भीगे हुए गुलाब के समान खिल गए । हंसकर बोली, "हां"

"कैडीलाक ?"

"हां।"

"किस मी।"

लोला ने प्रसन्न होकर अपनी दोनों बांहें मास्टर के गले में डाल दीं ।

एक्सपेरीमेण्ट करने के दौरान में कई बार मास्टर ने मेरे शरीर से रक्त निकाला; कई बार रक्त डाला; कई बार भिन्न-भिन्न प्रकार के इन्जेक्शन दिए, जिनसे मेरे सारे शरीर पर तरह-तरह के फोड़े निकल आए और उनसे पीव बहने लगा । मास्टर अपनी लैबोरेटरी में मुझे एक अंधेरे कमरे में बन्द करके रखता था। किसी समय भी मुझे अकेला नहीं छोड़ा जाता था । मेरे गले में हर समय लोहे की एक मोटी जंजीर पड़ी रहती थी ।

एक दिन मुझे बहुत पीड़ा हो रही थी । फोड़ों से पीव और खून बह रहा था। सारे शरीर में लगता था जैसे ज्वर भर गया हो। मुझे ऐसा महसूस हुआ जैसे मैं आज मर जाऊंगा। अब तक मैंने मुंह नहीं खोला था, किन्तु अपनी मृत्यु सामने खड़ी देखकर बोलना पड़ा ।

वह उस समय मेरे कमरे में अकेला खड़ा मुझे किसी दवा का इन्जेक्शन दे रहा था। जब वह इन्जेक्शन दे चुका तो मैंने कहा, "नीम हकीम खतराये जान ।"

वह मेरी आवाज सुनकर आश्चर्य से उछल पड़ा।

"यू बोलता...यू डंकी...बोलता ?” उसने घबराकर पूछा और इन्जेक्शन की सिरिज उसके हाथ से छूटकर फर्श पर जा गिरी।

मैंने कहा, "हां मास्टर, मैं बोलनेवाला गधा हूं। पढ़ा-लिखा गधा हूं। तुमने मेरी कहानी समाचारपत्रों में पढ़ी होगी ।"

मैंने उसे याद दिलाया। वह आश्चर्य से वहीं खड़े का खड़ा था और मुंह खोले मेरी ओर देखे जा रहा था । अन्त में, मैंने उससे कहा, "तुम मेरी जान लेने पर क्यों तुल गए हो ?"

"एक्सपेरीमेण्ट..." वह बोला ।

मैंने कहा, मैं एक पढ़ा-लिखा गधा हूं। मैं तुम्हें अपने जीवन से खेलने की अनुमति न दूंगा ।"

वह बोला, "तुम बच जाता...हम तैयार करता...एण्टीनासूर सीरम । तुम मर जाता...होता शहीद...साइन्स पर । "

मैंने कहा, "मैं शहीद होने के लिए तैयार नहीं हूं। मैं जिन्दा रहना चाहता हूं।"

"गधा होता...हर जगह शहीद, मजा करता...दूसरा लोग..." वह हंसकर बोला। उसकी हंसी में बड़ी निर्दयता थी ।

"ईश्वर के लिए मेरी बेड़ियां खोल दो । मुझे स्वतन्त्र कर दो।" मैं दर्द, दुःख और भय से बेचैन होकर चिल्लाया ।

"शट-अप !" मास्टर जोर से चिल्लाया और कमरा बाहर से बन्द करके चला गया ।

शायद ईश्वर को मेरा जीवित रहना स्वीकार था। क्योंकि इस घटना के कुछ दिन बाद स्वयं ही मेरे घाव और फोड़े अच्छे होने लगे । और एक सप्ताह के बाद मैं बिलकुल ठीक-ठाक हो गया । किन्तु इसपर भी उस निर्दयी ने मुझे कमरे से बाहर नहीं निकाला, बल्कि लगातार दो सप्ताह तक मुझे अपनी निगरानी में रखा। अन्त में, जब उसे विश्वास हो गया कि मैं बिलकुल स्वस्थ हो चुका हूं तो वह एक दिन मेरे पास आया। उसके हाथ में दवाओं का एक पैकेट था और वह अत्यन्त प्रसन्न मालूम होता था । बोला, "एक्सपेरीमेण्ट सफल एण्टी-नासूर सीरम... रेडी फार सेल ... पेटण्ट प्राप्त..."

इतना कहकर उसने वह पैकेट खोला और खोलकर उसमें से उसने मुझे बारह मोहरबंद कांच की शीशियों के सीरम दिखाए। एक सीरम का रंग लाल था, दूसरा बिलकुल सफेद था ।

वह बोला, "एक दिन लाल इन्जेक्शन...दूसरे दिन सफेद इन्जेक्शन... "बारह दिन में नासूर ठीक..."

मैंने पूछा, "यह लाल रंग की दवा क्या है ?"

"एण्टी- नासूर सीरम ।"

"और यह सफेद रंग वाली दवा ?"

"सादा पानी ।"

“पानी ?” मैंने आश्चर्य से पूछा ।

"हां पानी ।" वह बोला ।

मैंने कहा, “तुमको अधिक लाभ की क्या आवश्यकता है ? तुम एक सम्मानित वैज्ञानिक हो । तुम्हारी अपनी एक फैक्टरी है दवाइयों की, जिससे प्रतिवर्ष तुमको तीन-चार लाख रुपये का लाभ हो जाता है । क्या यह पर्याप्त नहीं है ?"

वह बोला, “एक लड़का पेरिस में पढ़ता...दूसरा लन्दन । दो लड़की जवान शादी होना । एक पत्नी ...एक मेम साहब...बड़ा खर्चा मांगता । हम पानी बेचता ।"

मैंने कहा, "अब तक मैं समझता था कि तुम केवल गधों के जीवन से खेलते हो । अब मालूम हुआ कि तुम इन्सानों के जीवन से भी खेल सकते हो, चार-चार पैसों के लिए।...दूध में पानी, शराब में पानी, दवा में पानी ।"

वह मेरी बात सुनकर हंसा । बोला, "खाली बेचता... इधर हम पानी...उधर हमारा बड़ा भाई बनाता है एटम बम ।

वैज्ञानिक वह... वैज्ञानिक हम । "

"तुम दोनों चोर, गधों के शत्रु..." मैंने जलकर कहा ।

बाद में मैंने सोचा -एच० बी० मास्टर से लड़ना व्यर्थ है । अपनी स्वतन्त्रता के लिए प्रयत्न करना चाहिए। अतः कुछ दिनों के पश्चात् मैंने उससे कहा, “तुम्हारा एक्सपेरीमेण्ट तो अब सफल हो गया, अब तो मुझे छोड़ दो।"

मास्टर ने बड़ी कठोरता से सिर हिला दिया । बोला, "नया एक्सपेरीमेंट करता हम तुमको भूखा रखता..."

मैंने घबराकर कहा, "मुझे भूखा क्यों रखोगे ?”

"नया इन्जेक्शन बनाता हम...भूख का इन्जेक्शन ।”

"यह भूख का इन्जेक्शन क्या होता है ?"

मास्टर ने मुझे बहुत देर तक समझाया। उसके वार्तालाप का सार, जहां तक मैं समझ सका हूं, यह था कि इस दुनिया में भूख बहुत है । हर इन्सान को भूख लगती है। उसकी भूख मिटाने के लिए उसे रोटी खिलानी पड़ती है, प्रतिदिन दो बार। और यह बहुत महंगा सौदा है। इसलिए मैं किसी ऐसे इन्जेक्शन की खोज में हूं, जिससे इन्सान को भूख न लगे । बिलकुल भूख न लगे यह तो असम्भव है; किन्तु ऐसी औषधि अवश्य आविष्कृत की जा सकती है, जिससे इन्सान को आठ-दस दिन तक भूख न लगे । उसका यह अभिप्राय नहीं है कि दवा भोजन का काम देगी । हरगिज नहीं। वह तो केवल भूख को आठ-दस दिन के लिए दबा देगी । इन्सान इन आठ-दस दिनों में कमज़ोर तो होगा, किन्तु भूख महसूस नहीं करेगा; और आठ-दस दिन तक बिना भोजन के काम कर सकेगा। जरा सोचो तो कि यदि मैं ज़रा यह इन्जेक्शन आविष्कृत करने में सफल हो जाऊं तो इससे दुनिया भर के उद्योगपतियों को कितना लाभ पहुंचेगा !

एक कारखाने के हज़ारों मजदूरों को एक दिन एक इन्जेक्शन लगा दिया और दस दिन तक बिना रोटी के उनसे काम ले लें। मैं एक ऐसी दवा की टोह में हूं। और तुम्हारे खून से एण्टी भूख सीरम तैयार करूंगा और सारी दुनिया में पेटेण्ट कराके उसे बेचूंगा ।

मैंने दिल में सोचा -लो श्रीमान गधे, पहले तो स्वाधीनता गई और अब घास से भी गए । विचित्र पागल वैज्ञानिक से पाला पड़ा है। मैं उसके सामने बहुत गिड़गिड़ाया, रोया, गाया। बहुत-बहुत उसकी मिन्नतें कीं । किन्तु मास्टर किसी प्रकार से मुझे छोड़ने पर तैयार न हुआ ।

अब उसका प्रतिदिन का स्वभाव हो गया कि वह प्रतिदिन मुझे भूखा रखता और रात को पूछता, "भूख लगी ?"

"लग रही है।" मैंने भूख से बेचैन होकर कहा ।

दूसरे दिन उसने फिर एक नया इन्जेक्शन लगाया। फिर शाम को पूछा, "लग रही है ?"

"लग रही है, मास्टर ! कड़ी भूख लग रही है।"

मास्टर झल्लाकर लौट गया। चौथे दिन उसने फिर मुझे एक नया इन्जेक्शन दिया। फिर रात को पूछने लगा, "भूख खत्म ?"

“अरे आज तो मुझे इतनी भूख लगी है कि यदि तुम मुझे खुला छोड़ दो तो घास के बजाय तुम्हें कच्चा खा जाऊं ।" मैंने अत्यन्त क्रोध से कहा ।

दस दिन पश्चात् लगातार भूखे रहने से मेरी पसलियां निकल आईं । जीवन में इतने अधिक समय तक मैं कभी भूखा न रहा था। भूख कमज़ोरी की अधिकता से मेरा सारा शरीर कांपता था। मैंने रो-रोकर उससे कहा, "मुझे थोड़ी-सी घास दे दो । मेरी जान न लो मास्टर ! ऐसी कोई दवा अविष्कृत नहीं की जा सकती जो भूख को मिटा दे मास्टर ! :- भूख तो जीवन का अनिवार्य अंग है । जीवन मिटाए बिना भूख को मिटाना कठिन है। और फिर इस भूख को मिटाना क्यों आवश्यक है ? आज भी इस दुनिया में इतनी घास मौजूद है कि प्रत्येक गधा दोनों समय आसानी से पेट भर सकता है । किन्तु तुम अपना लालच तो बढ़ाते जाते हो और गधों की भूख कम करना चाहते हो। यह कहां का न्याय है ?"

"शट-अप !” उसने मेरी पसलियों में एक ज़ोर की ठोकर मारी और क्रोध से भरा हुआ कमरे से बाहर चला गया।

उसके जाने के पश्चात् मैंने गम्भीरता से इस बात पर ध्यान देना आरम्भ किया कि इस पागल डाक्टर और वैज्ञानिक से कैसे छुटकारा प्राप्त किया जाए। वर्ना यह पागल तो अपने एक्सपेरीमेण्ट करता जाएगा और मैं भूख से मर जाऊंगा। अन्त में सोच-सोचकर मैंने एक उपाय ढूंढ़ निकाला और जब यह उपाय मुझे सूझ गया तो मैं अत्यन्त प्रसन्न हुआ और बहुत परेशान भी हुआ। प्रसन्न इसलिए हुआ कि चलो अब अपनी जान बच जाएगी और परेशान अपनी मूर्खता पर इसलिए हुआ कि मैं भी क्या गधा हूं ! अब तक इतना अच्छा उपाय मुझे क्यों नहीं सूझा था ।

दूसरे दिन ही मैंने अपने उपाय को प्रयोग में लाना आरम्भ किया । जब दूसरे दिन मास्टर ने आकर प्रतिदिन के अनुसार मुझसे प्रश्न किया तो मैंने हंसकर कहा :

"भूख... भूख क्या चीज़ है ? हुआ क्या है ?"

"भई, तुम भूखे नहीं ?” उसने आश्चर्य से पूछा ।

"हरगिज़ नहीं," मैंने अपनी भूख को छिपाते हुए, कहकहा लगाते हुए कहा, "मुझे तो ऐसा महसूस होता है मास्टर, जैसे मैं एक सौ वर्ष तक घास खाए बिना जीवित रह सकता हूं।"

"ओह गॉड ! ...अब ...मैं ...करोड़पति ...अरबपति ...एण्टी भूख सीरम । "

"हा...हा ...हा..." मैं जोर से हंसा, "विश्वास न हो तो घास सामने लाकर रख दो ।"

मास्टर ने मेरे सामने बहुत सारी घास लाकर रखी। मेरा जी तो चाहता था कि घास पर भूखों के समान गिर पड़ूँ और एक-एक तिनका चबा-चबाकर खा जाऊं । किन्तु मैंने मुंह फेर लिया और घास को पांव से ठोकर मारकर कहा, "अरे, यह तो घास है ।"

मैंने बहुत घृणा से कहा, "यदि इस समय तुम मेरे सामने बिरयानी भी लाकर रखो तो उसे भी न चखूं।"

"शाबाश ! ग्रेट ! !" मास्टर प्रसन्नता से चिल्लाया और मेरे गले में बांहें डालकर मेरे गले लगने लगा । "मेरी जान, मेरी जान ! आना संडे के संडे ।" मैंने गाना आरम्भ किया । "मास्टर आज मेरा जी गाने को चाह रहा है। जाने तुमने कैसी दवा मुझे दी है । एक तो भूख नहीं लगी, ऊपर से गाने को जी चाह रहा ... है··· फाकों से आगे जहां और भी हैं, अभी इश्क के इम्तिहां और भी हैं।"

"हुर्रे..." मास्टर ने मेरी जंजीर खूंटे से खोलकर अपने हाथ में ले ली और मुझे कमरे से बाहर ले जाते हुए कहने लगा, “लोला ...लोला... कम हीयर...देखो-देखो डंकी गाता भूखा डंकी गाता ।"

मास्टर मुझे अपनी लैबोरेटरी से निकालकर बंगले के बाहर लान पर ले आया और चिल्लाकर लोला से कहने लगा, “देखो लोला, 'वर्ल्ड- प्रॉब्लम्' समाप्त···देखो गधा ...रोटी न मिलता... फिर भी गाता..."

मैंने नाच-नाचकर नया गाना आरम्भ किया-

जिस खेत से मयस्सर1 हो किसी गधे को रोटी,
उस खेत के हर खोशये-गन्दुम2 को जला दो ।
1. प्राप्त 2. गेहूं की बाली

लोला और मास्टर, दोनों ने प्रसन्नता से तालियां बजाईं। लोला मास्टर के गले लग गई और मास्टर उसकी कमर में हाथ डालकर बोला, "अब हम...दोनों जाता...दुनिया घूमता।"

अचानक मैंने अवसर देखकर ज़ोर की दुलत्ती झाड़ी । मास्टर के हाथ से जंजीर निकल गई और मैं बगटूट बंगले के दरवाज़े के बाहर भागा ।

“कहां...कहां...?” मास्टर आश्चर्य से बोला ।

मैंने कहा, "अब हम भी बाहर जाता । दुनिया की सैर करता.. गुडबाई ।”

"स्वाईन ।" मास्टर क्रोध से चिल्लाया ।

"नो, डंकी।" मैंने कहा और अपनी जान बचाने के लिए तेजी से भागा । मास्टर लोला को लेकर उसकी नई मोटर की तरफ भागा और उसके साथ मोटर में बैठकर बोला, “जल्दी करो, गधा पकड़ो।"

मैं अपनी जान बचाने के लिए तेजी से भागा । किन्तु वह पुराने दिनों की फुर्ती और तेज़ी मुझमें मौजूद न थी। दस दिन का भूखा गधा कहां तक दौड़ेगा ? मैं सड़क का मोड़ काटकर एक छोटे-से बाज़ार में भागा । बाज़ार से एक लेन में घुस गया । लेन में घुसकर एक गली में घुस गया । वह गली अन्दर से बन्द थी। मैं दौड़ता हुआ गली के अन्त तक चला गया, जहां एक नई पांच मंज़िल की बिल्डिंग खड़ी थी ।

यहां पहुंचकर मैं विवश और मजबूर होकर खड़ा हो गया। पीछे मुड़कर देखा तो मास्टर की मोटर चली आ रही है। पीछे जा नहीं सकता, आगे जाऊं तो कहां जाऊं ।

एक क्षण के लिए मैंने सोचा और फिर कुछ सोचे बिना बिल्डिंग की सीढ़ियां चढ़कर दौड़ता हुआ अंदर एक बड़े खुले हुए ड्राइंगरूम में दाखिल हो गया। मुझे देखते ही एक धोती पहने हुए आदमी जोर से चिल्लाया-

''गुरुजी, गुरुजी आ गए!'' वह धोती पहनने वाला आदमी आगे बढ़ा और आगे पाकर मेरे पांव पर गिरकर प्रसन्नता से रोने लगा, ''गुरुजी...आप कहां चले गए थे? कब से आपको ढूंढ़ रहा था, आप किधर अलोप हो गए थे...धन्य भाग मेरे...ऐ कुरमाया...बिजारिया...दामोरिया!...कहां मर गए सब? जल्दी से मुनीम जी को बुलाओ!''

मेरे पांव छूकर जब वह उठा और नौकरों को बुलाने लगा तब मैंने उसे पहचाना। वह सेठ भूरीमल था, जिसने माहिम में मुझसे सट्टे का नंबर पूछा था। सेठ भूरीमल खुशी से हाथ नचाते हुए मुझसे बोला-
''उस दिन योगीराज, आपने जो नंबर दिया उससे मैंने सट्टे में तीन लाख कमा लिए! यह बिल्डिंग उसी दिन खड़ी की है- भूरी महल!''

भूरी महल - मैं अभी कुछ सोच भी न पाया था कि इतने में लोला और मास्टर जल्दी से आ धमके और मेरी जंजीर पकड़ने लगे ।

"खबरदार, जो गुरु जी को हाथ लगाया ।" सेठ भूरीमल मास्टर को परे हटाते हुए बोला ।

"यह गधा मेरा..." मास्टर जोर से चिल्लाया ।

"खबरदार जो इनको गधा कहा..." भूरीमल क्रोध से बोला, "मैं नहीं जानता कि तुम कौन हो; और तुम नहीं जानते कि यह गधा कौन है ? और कौन नहीं जानता कि योगिराज, ज्ञानी ध्यानी, क्या-क्या रूप धरते हैं ।"

लोला ने बीच में पड़कर सन्धि कराने का प्रयत्न कराना चाहा, क्योंकि मास्टर 'शार्टहैण्ड' में बात करता था और भूरीमल 'लांग हैण्ड' में । अन्त में भूरीमल ने परामर्श दिया, "तो तुम अपने गधे को बेच दो। मैं पांच सौ रुपये दूंगा।”

"नहीं ।" मास्टर ने अस्वीकृति से सिर हिलाया ।

"एक हज़ार ।"

"नहीं।"

"दस हजार ।" भूरीमल ने चिल्लाकर कहा और मास्टर श्राश्चर्य में - पड़ गया और मेरी ओर फटी-फटी दृष्टि से देखने लगा कि इस गधे में आखिर बात क्या है, जिसके लिए उसे दस हज़ार 'आफर' किए जा रहे हैं। उसकी प्रांखों में लालच की एक तेज़ चमक पैदा हुई । किन्तु उसने फिर बड़ी कठोरता से कहा, "नहीं ।"

"बीस हजार ।"

"नहीं।"

"तीस हज़ार ।”

“नहीं।”

"चालीस हज़ार, पचास हज़ार, साठ हजार, सत्तर हजार..." भूरीमल बोलता चला गया ।

लोला ने झुंझलाकर मास्टर की ओर देखा । मास्टर ने जोर से सिर हिला दिया- "नहीं।"

"एक लाख ।" भूरीमल जोर से चीखा ।

"डन,” लोला ज़ोर से प्रत्युत्तर में चीखी और फिर मास्टर की ओर देखकर, उसे समझाते हुए बोली, “पचास-साठ रुपये पर जितने गधे चाहो, मिल जाते हैं । इस गधे के लिए एक लाख मिल रहा है, ले लो। वर्ना फिर कभी यह अवसर हाथ न आएगा। तुम निस्संदेह इस धन से एक गधे के बजाय घोड़ों का अस्तबल खरीद सकते हो ।"

मास्टर की समझ में कुछ नहीं आ रहा था। वह कभी मेरी ओर ध्यान से देखता, कभी सेठ भूरीमल की ओर। इस गधे के एक लाख रुपये । क्या बात है इस गधे में, जो वह इस अर्से में मालूम नहीं कर सका ? एक लाख एक गधे के ।

“एक लाख पच्चीस हज़ार ।" भूरीमल ने चेक लिखकर मास्टर के सामने रख दिया।

"नहीं ।" मास्टर ने कहा ।

"तो ले जाओ अपने गधे को " भूरीमल ने चेक तह करते हुए धीरे-से कहा, "मैं इससे अधिक नहीं दे सकता।"

यह कहकर भूरीमल ने मेरी जंजीर मास्टर के हवाले कर दी। मास्टर मुझे लेकर द्वार की ओर चला। किन्तु द्वार पर पहुंचकर तेजी से पलटा और भूरीमल के हाथ से चेक लेकर अपनी जेब में डाल लिया और चुप- चाप मेरी जंजीर भूरीमल के हवाले कर दी और लोला को लेकर तेज़ी से बाहर निकल गया ।

जब वह दृष्टि से ओझल हो गया तो भूरीमल जोर से हंसा और मेरी ओर देखकर बोला, "बड़ा विजनेसमैन बनता है। आपके लिए तो मैं दो लाख तक देने को तैयार था । किन्तु वह तो सवा लाख में ही राजी हो गया, मूर्ख ! "

“किन्तु मेरे ख्याल में तो मूर्ख तुम हो ।”

उसने सिर झुकाकर कहा, "आप जो बोलें, ठीक है । मैं आपको क्या बोल सकता हूं ऐ कोड़िया, मजूरिया दमोरिया मेरा मुंह क्या देखते हो ? जाओ, साथ वाले कमरे और बाथरूम को गुरु जी के लिए साफ करो। ये आज से हमारे यहां रहेंगे ।"

बिक जाना गधे का सवा लाख रुपये में, और खरीद लेना सेठ भूरीमल का उसको खुशी से, और घेर लेना सट्टेबाज़ों का उसको, और ब्यान गधे की चालाकी का

दूसरे दिन सेठ भूरीमल मेरे कमरे में बहुत-से समाचारपत्र लेकर प्रविष्ट हुआ । समाचारपत्र के मुख्य पृष्ठ के अधिकांश भाग मोटे-मोटे अक्षरों में छापा गया था-

दुनिया का सबसे अधिक मूल्य का गधा !

सेठ भूरीमल ने सवा लाख रुपये में खरीदा ! !

अधिकांशतः समाचारपत्रों ने मेरी जीवनी की कुछ विशेष घटनाएं प्रकाशित की थीं। प्रसिद्ध वैज्ञानिक एच० बी० मास्टर का इण्टरव्यू था, जिसमें उनके साईण्टिफिक एक्सपेरीमेण्ट्स का जिक्र था जो उन्होंने मुझ- पर किए थे। मुझे भूखा रखने की कहीं चर्चा न थी । फिर सेठ भूरीमल का इण्टरव्यू था, जिसमें उन्होंने बताया था कि यह गधा मेरे लिए बहुत 'लकी' सिद्ध हुआ है । अत: मैंने इसे सवा लाख रुपये में खरीद लिया है ।

इसपर जर्नलिस्टों की भिन्न-भिन्न प्रकार की टीका-टिप्पणियां थीं । अधिकांश समाचारपत्रों के प्रथम पृष्ठ का आधे से अधिक भाग मेरे समाचारों से भरा हुआ था। बड़े-बड़े मंत्रियों के भाषण और राजनीतिक उथल-पुथलें पीछे डाल दी गई थीं ।
सेठ भूरीमल प्रसन्न होकर बोला, ‘‘देखा, कैसी शानदार पब्लिसिटी की है आपकी।’’
मैंने कहा, ‘‘मेरे साथ आप लोगों की भी तो बहुत पब्लिसिटी हो गई है।’’

वह बोला, ‘‘आजकल पब्लिसिटी का जमाना है। एक गधे के साथ पब्लिसिटी मिले तो यार लोग उसे भी प्राप्त करने से नहीं चूकते। इसलिए मैंने कल रात ही कुछ जर्नलिस्ट मित्रों को बुलाकर उन्हें यह सूचना दे दी थी।’’

मैंने समाचार-पत्र तह करके अलग रख दिया और सेठ भूरीमल से प्रश्न किया, ‘‘अन्ततः आपको एक गधे के लिए यह सब करने की क्या आवश्यकता थी?’’

सेठ भूरीमल मुस्कराकर बोले, ‘‘जो आपको गधा समझते हैं, स्वयं गधे हैं। मेरे लिए आप क्या हो, यह मैं भली प्रकार जानता हूं। किन्तु इस समय इस प्रश्न पर विवाद न करें तो अच्छा है। सबसे पहले तो मुझे आपके स्वास्थ्य की चिन्ता है। इतने कमजोर हो गए हैं आप कि आठ-दस, बारह-पन्द्रह दिन तक पूरा आराम करें( बाद में बात करूंगा।’’

अतः पन्द्रह दिन बड़े चैन और आराम से गुजरे। तीन बार बढ़िया से बढ़िया खाने को मिला और विलायती जौ का दलिया, गुलूकोज के इंजेक्शन और ताजा फलों का रस, विटामिन की गोलियां। और अन्य टॉनिक एवं औषधियां एक कुशल पशु-चिकित्सक के परामर्श के अधीन मुझे खिलाई गईं। पढ़ने के लिए अगाथा क्रिस्टी के उपन्यास, जासूसी और रूमानी मासिक पत्रिकाएं, फिल्मी पत्रिकाएं और वे यूरोपीय पत्र मेरे पास पहुंचाए गए जो केवल आर्ट पेपर पर प्रकाशित होते हैं और जिनमें या तो स्त्रियों के नग्न चित्र होते हैं या प्रसिद्ध अभियुक्तों के हत्याकांड के भयानक विवरण लिखे होते हैं।

पन्द्रह दिनों के पश्चात्, सेठ ने मेरे स्वास्थ्य-लाभ के उपलक्ष्य में एक शानदार पार्टी दी। पार्टी भिन्न-भिन्न खानों के कारण बहुत शानदार थी। सेठ ने मेरे लिए विशेषतः वायुयान के द्वारा कश्मीर की घास मंगाई थी, जो गुलमर्ग की ऊंची घाटियों में उत्पन्न होती है। जो स्वाद, रस और पौष्टिकता के आधार पर संसार-भर में अद्वितीय समझी जाती है।

किन्तु इस पार्टी में सेठ ने अधिक आदमियों को दावत न दी थी। केवल सेठ था और उसका दोस्त जुम्मन, जो उस दिन माहिम में सेठ के साथ था। और उसके साथ दो आदमी और थे, जिनमें नाम मुझे गुलाबसिंह और सिताबसिंह बतलाए गए और जो अपने चौड़े-चकले सीने, घुटे हुए सिर और हंसती हुई मूंछों के कारण बड़े भयानक किस्म के गुण्डे नजर आते थे।

उस दिन मैंने भिन्न प्रकार की शराबें चखीं। ऐसी शराबें जो किसी गरीब गधे के भाग्य में नहीं होतीं, जो कीमती साड़ियों की तरह सुन्दर कांच की खिड़कियों में दूर ही दूर से दुकान पर नजर आती हैं और जिन्हें आवारा गधे बड़ी हसरत से देखते हुए सड़क पर से गुजर जाते हैं- इटली की ‘कियंति’, हंगरी की ‘तौकई’, जर्मनी की ‘राईन हासन’, फ्रांस की ‘शातो ब्रियां’, स्पेन की ‘बरगण्डी’ और स्काटलैण्ड की ‘ब्लैक डॉग’ ह्विस्की।

‘ब्लैक डॉग’ यानी काला कुत्ता मार्का ह्विस्की। अब मैं काला कुत्ता तो न था, किन्तु एक काला गधा अवश्य था। इस कारण मजे में आकर ‘ब्लैक डॉग’ की तीन बोतलें समाप्त कर गया और नशे में आकर झूमने लगा। मेरे पांव जमीन पर न पड़ते थे और मैं एक चौड़े गलीचे के फर्श पर खड़ा होकर एल्बस पर्सले की धुन में ‘राक-एन-रोल’ का एक मिला-जुला हिन्दुस्तानी और अंग्रेजी गीत गाने लगा-

जूं...जूं...जूं
कड़वा-कड़वा थू!
मीठा-मीठा हप्प,
यू शट-अप!
यू...यू...यू,
जूं...जूं...जूं,
तू मेरी जान,
मैं तेरी जानी!
तेरे-मेरे ऊपर,
एक मच्छरदानी!
सो-हट,
शट-अप!

अचानक सेठ भूरीमल, जुम्मन दादा, गुलाबसिंह, सिताबसिंह अपने-अपने स्थान वर से उठे और आकर मेरे पांव पड़ गए।
‘‘गुरु महाराज, दया करो। सट्टे का नम्बर बता दो, उस दिन की तरह।’’ सेठ भूरीमल मेरे पांव पर अपनी नाक रगड़ते हुए बोले।
‘‘साईं लाला, तेरा बोलबाला,’’ जुम्मन बोला, ‘‘बस एक नम्बर बता दो।’’
‘‘हटो, क्या करते हो!’’ मैं क्रोध से बोला, ‘‘मैं कोई योगीराज या साईं नहीं हूं। महज एक गधा हूं।’’
‘‘हम जानते हैं। सब जानते हैं।’’ वे सब एकदम बोल उठे।
‘‘अरे खाक जानते हो!’’ मैं भड़ककर कहा, ‘‘मैं कोई
साधु-सन्त या योगी-फकीर होता तो इस प्रकार शराब पीता?’’

‘‘गुरु महाराज, हम जानते हैं।’’ भूरीमल मेरे पांव पर अपना माथा रगड़कर बोला, ‘‘जो अघोरी साधु होते हैं या वाममार्गी तांत्रिक होते हैं, वे मांस-मच्छी, अण्डा-शराब सब खाते-पीते हैं। जिस पशु का भेस चाहें, बदल लेते हैं।’’
‘‘गुरु महाराज, हम आपका पीछा नहीं छोड़ेंगे। हमें सट्टे का नम्बर दे दो।’’

मैंने अपने पांव छुड़ाने का बहुत प्रयत्न किया। किन्तु गुलाबसिंह और सिताबसिंह ने इतनी दृढ़ता से मेरे दोनों पिछले पांव पकड़ रखे थे कि मैं किसी प्रकार भी उनसे अपने पांव न छुड़ा सका। अन्त में मुझे कहना पड़ा-
‘‘मेरे पांव छोड़ दो, मरदूदों। बताता हूं।’’

उन लोगों ने तत्काल मेरे पांव छोड़ दिए और मैंने कुछ सोचकर एक-दो क्षण के मौन के पश्चात् झूम-झूमकर नाचना और गुनगुनाना प्रारम्भ कर दिया, फिर वे लोग भी ताली पीट-पीटकर मेरे साथ नाचने लगे।

‘‘उटी देखी, शिमला देखी,
देखा मैंने कुल्लू!
कुल्लू में उल्लू,
उल्लू में चुल्लू!
मर गई चारों की नानी!
नानी के बेटे ग्यारह,
जो जीता वह भी हारा!’’

कहते-कहते मेरे मुंह से झाग निकलने लगे और मैं लड़खड़ाकर एक ओर गिर गया और बेहोश हो गया। किन्तु यह सब कुछ बनावटी था। उन लोगों ने इसे बनावटी नहीं समझा।

जुम्मन ने कहा, ‘‘साईं को ‘हाल’ आ गया है।’’
सेठ बोला, ‘‘योगी अन्तर्धान हो गए।’’
किन्तु गुलाबसिंह बोला, ‘‘नम्बर कब बताया?’’
‘‘नम्बर तो साफ बताया,’’ जुम्मन बोला, ‘‘मर गई चारों की नानी। भई, चौका तो जरूर आएगा।’’
गुलाबसिंह बोला, ‘‘पर ओपन में आएगा या क्लोज में आएगा, यह तो कुछ बताया नहीं।’’
जुम्मन बोला, ‘‘फकीर कभी साफ-साफ नहीं बताते। मतलब निकालना होता है। मेरे ख्याल में तो यह क्लोज में चौका जाएगा।’’
‘‘वह कैसे?’’ सिताबसिंह ने पूछा।

‘‘जरा ध्यान दो।’’ जुम्मन सोचते हुए बोला, ‘‘मर गई चारों की नानी-अब मौत को ओपन नहीं कह सकते। मौत तो एक तरह का क्लोज है। जिन्दगी ओपन होती है, पर मौत क्लोज होती है। लिहाजा चौका क्लोज में आएगा। क्यों सेठ?’’

सेठ ने ध्यान करते हुए कहा, ‘‘मेरे विचार में यह जो योगीराज ने कहा है न, नानी के बेटे ग्यारह, यह मुझे ठीक मालूम होता है। ग्यारह अधिक ठीक है।’’
‘‘पर कुल नम्बर तो दस होते हैं सेठ?’’ गुलाबसिंह ने कहा।
‘‘हां, तो इसका मतलब यह है कि योगी ने ओपन टू क्लोज दिया है। ग्यारह यानी, एक से एक।’’
‘‘हां, यह मुझे ठीक लगता है।’’ सिताबसिंह ने कहा और जल्दी नम्बर लगाने चला गया। उसके जाते ही जुम्मन और गुलाबसिंह भी रफूचक्कर हो गए।

अब कमरे में सेठ अकेला रह गया था। वह अपनी धुन में खोया खड़ा-खड़ा बहुत देर सोचता रहा। फिर वह भी बाहर चला गया।

दूसरे दिन न चौका आया, न एक से एक। बल्कि बिन्दी से बिन्दी आई, यानी शून्य से शून्य। जुम्मन, गुलाबसिंह और सिताबसिंह मुंह लटकाए ड्राइंगरूम में बैठे थे। किन्तु सेठ प्रसन्न था। आज उसने फिर दो लाख रुपये कमाए थे।

‘‘किन्तु कैसे?’’ जुम्मन ने आश्चर्य से पूछा, ‘‘मैं खुद भी बहुत हैरान था कि न चौका आया, न एक से एक फिर भी सेठ ने दो लाख कैसे कमा लिया?’’

सेठ मुस्कराकर बोला, ‘‘तुम लोगों के जाने के बाद मैं देर तक सोचता रहा। हो न हो, योगीराज इतने आसानी से नम्बर बतलाने वाले नहीं हैं। जरूर इसमें कुछ उलझाव है। बहुत सोच-विचार के बाद मेरी समझ में आया कि योगीराज ने सबसे अन्त में जो बात कही, वही सबसे उत्तम है।’’
‘‘जो जीता वह भी हारा?’’ जुम्मन ने पूछा।

‘‘बिल्कुल सही! इसका तो साफ मतलब यह है कि हार-जीत बराबर, यानी मामला सिफर। बल्कि सिफर से सिफर। इसलिए मैंने सिफर से सिफर पर दांव लगा दिया?’’
‘‘कमाल है,’’ मैंने कहा, ‘‘सेठ, तुम मुझे कितना समझते हो।’’
‘‘सारी आयु आप लोगों की ही जूतियां सीधी की हैं।’’ सेठ भूरीमल प्रसन्न होकर बोला।

जुम्मन ने कहा, ‘‘तो आज नम्बर तुम बोलोगे सेठ, साईं की बात सुनकर जो नम्बर तुम खूब सोच करके बतलाओगे, उस पर हम लगाएंगे। पर हमसे धांधली मत करना कि तुम तो खुद कुछ और लगाते हो और हमें कुछ और बताते हो?’’
‘‘आज तो मैं कोई नम्बर बताने वाला ही नहीं हूं।’’ मैंने निर्णय के स्वर में कहा।
‘‘क्यों योगीराज, मुझसे क्या अपराध हुआ है?’’ सेठ दोनों हाथ जोड़कर बोला।
मैंने कहा, ‘‘बात वास्तव में यह है कि मैं केवल पूर्णमासी के दिन ही नम्बर बता सकता हूं। मुझे केवल उसी दिन नम्बर बताने की आज्ञा है।’’

मैंने सोचा कि आज यदि किसी प्रकार से मामला टल गया और अपनी बात रह गई और अब यदि प्रतिदिन मैंने शराब पीकर बकवास शुरू की तो एक न एक दिन पकड़ा जाऊंगा। यहां मैं बहुत आनंदपूर्वक था। यदि एक मास और आराम और शान्ति के लिए मिल जाए तो क्या बुरा है। अगली पूर्णमासी को देखेंगे। उस दिन भी यदि इन लोगों ने मेरी बकवास से अपने ढब का कोई नम्बर निकाल लिया, तो पौ बारह! वर्ना दुम दबाकर भाग जाएंगे या ये लोग स्वयं ही डंडे मारकर निकाल बाहर करेंगे।

गुलाब सिंह बोला, ‘‘सेठ, महीने में एक नम्बर भी ठीक से मिल जाए तो साल-भर की रोटी चल जाती है। एक पगला बाबा मैंने देखा था। ये तो खैर बोलते भी हैं।’’ उसने मेरी ओर संकेत करके कहा, ‘‘ये महाराज हमेशा चुप साधे रहते थे। उनका नम्बर बड़ी मुश्किल से मिलता था। किंतु जब मिलता था, तो निहाल कर देते थे। लोग हर समय उनके इधर-उधर भीड़ लगाए रहते थे।’’
मैंने आश्चर्य से पूछा, ‘‘जब वे चुपचाप रहते थे नम्बर कैसे बताते थे?...लिखकर?’’

‘‘जी नहीं,’’ गुलाबसिंह बोला, ‘‘बड़े पहुंचे हुए बुजुर्ग थे। बड़ी अजब-अजब हरकतों से नम्बर बताते थे। एक बार उन्होंने मेरे मुंह पर पान की पीक फेंकी। मैं उसी वक्त उठकर गया और ‘पंजा’ लगा दिया। आ गया। फिर एक दिन उन्होंने मुझे अपना डण्डा खींचकर मार दिया। मैंने उसी वक्त जाकर ‘इक्का’ लगा दिया, क्योंकि डण्डा इक्के के अंक की तरह होता है। इक्का भी आ गया। बड़े पहुंचे हुए बुजुर्ग थे। एक दिन अचानक बम्बई से अन्तर्धान हो गए। फिर कभी नहीं मिले। वर्ना मैं तो अब तक उम्र भर की रोटियां उनकी सेवा करके खड़ी कर लेता।’’

सेठ मेरे पांव दबाते हुए बोला, ‘‘चिन्ता मत करो गुलाबसिंह! अब गुरु महाराज के चरणों की धूल से हमारा बेड़ा पार लग जाएगा। अगली पूर्णमासी तक प्रतीक्षा करो।’’

कमाना गधे का लाखों रुपये थोड़े दिनों में, और निहाल कर देनासब सट्टेबाज़ों को, और पार्टनर बन जाना सेठ भूरीमल की फर्म में, और ब्यान लखपति गधे की हरकतों का

अगली पूर्णमासी के दिन मैंने सेठ से स्पष्ट रूप से कह दिया, ‘‘हम आज नम्बर नहीं बताएंगे।’’
‘‘क्यों महाराज ?’’
‘‘मुझको आज हिमालय से बुलावा आया है। योगी सिद्धनाथ जो हमारे गुरु हैं और जो कैलाश पर्वत पर दो हजार वर्ष से समाधि लगाए बैठे हैं, वे हमसे बहुत रुष्ट हो गए हैं। हमें आज चला जाना चाहिए।’’
‘‘क्यों महाराज, आपके गुरु आपसे क्यों रुष्ट हैं?’’

‘‘बेटा भूरीमल!’’ मैंने सेठ से कहा, ‘‘गुरु हमसे इसलिए रुष्ट हैं कि हम बम्बई आकर अपने कर्तव्य को भूल गए। गुरु महाराज ने हमको इसलिए बम्बई में आने की आज्ञा दी थी कि हम बम्बई जाकर गुरु के मठ के लिए इक्कीस लाख रुपये का चन्दा जमा करके लाएं। यहां आकर हम तेरे पल्ले पड़ गए। और तू हमसे सट्टे का नम्बर लेता है और हमारे गुरु के मठ के लिए कुछ भी नहीं करता।’’
‘‘आप आज्ञा करें महाराज! मैं अभी एक लाख का चेक काटता हूं।’’
‘‘एक लाख से क्या होगा, बेटा भूरीमल! अरे हमको चाहिए इक्कीस लाख! और हमारे गुरु की आज्ञा है कि केवल एक आदमी से इक्कीस लाख मांगना और यदि उसने न दिया तो फिर किसी से मत मांगना। वापस हिमालय चले आना।’’
‘‘मेरे पास इक्कीस लाख तो नहीं हैं, गुरुजी!’’ सेठ भूरीमल परेशान होकर बोला।

‘‘तो हम कहां तुमसे इक्कीस लाख मांगते हैं! हम तो केवल यह चाहते हैं कि हमारे ज्ञान-ध्यान की बातों से तू जो नम्बर निकाले, और उससे जो कमाए, उसका आधा हमारे नाम से बैंक में जमा करता जाए। जब इक्कीस लाख हो जाएगा तो हम उसे लेकर हिमालय चले जाएंगे।’’

‘‘मुझे स्वीकार है, मुझे स्वीकार है महर्षि,’’ सेठ बड़ी दयनीयता से बोला, ‘‘आप जो कहें मुझे स्वीकार है। मैं तो आपके नम्बरों का, मेरा मतलब है आपके चरणों का दास हूं।’’

निश्चित समय पर फिर महफिल जमी। फिर ह्विस्की का दौर चला। आज मैंने अच्छी तरह से सोच लिया था कि ऐसी अण्ट-सण्ट हांकूंगा कि किसी के पल्ले कुछ न पड़े। उसके बाद भी यदि वे नम्बर निकालने में सफल हो जाएं तो मेरा आधा हिस्सा तो खरा है। इस प्रकार ये लोग मेरे ऊपर किसी प्रकार का आरोप लगाने में सफल न होंगे। और अपना कुछ समय और मजे में कट जाएगा।

यह दुनिया है ही ऐसी। यहां पर ईमानदारी, सचाई, सहृदयता और आदर्श की ऊंचाई का अर्थ यह है कि आदमी भूखा रहे और कुढ-कुढ़कर दूसरे के लिए गधा बनकर मर जाए। अब तो इन लोगों के साथ मैं भी ऐसा ही व्यवहार करूंगा जैसा ये अब तक मुझसे करते आए हैं। इनका जूता इन्हीं के सिर रख देना चाहिए, वर्ना हमारे जैसे सिरफिरे गधों के लिए कहां स्थान है!

किन्तु, जब नम्बर बताने का समय आया तो मेरे दिल में विचित्र प्रकार का क्रोध पलने लगा। कैसे मूर्ख और लालची हैं ये लोग! कितने अनपढ़ और पैसे के पुजारी! इनके लिए धर्म, राजनीति, समाज और व्यक्ति, हैसियत, कल्चर, सभ्यता, मानव का भविष्य-ऐसे शब्द कोई अर्थ नहीं रखते। ये लोग रुपये की सीमित परिधि में घिरे हुए, अपने स्वाभिमान पर पट्टी बांधे हुए भूत और भविष्य से असम्पृक्त, अपनी लालसा के कोल्हू के चारों ओर घूमते रहते हैं। ये चारों के चारों किस प्रकार अपने चेहरे उठाए हुए मेरी ओर कैसी मूर्खता-भरी दृष्टि से देख रहे हैं जैसे मेरे एक शब्द से उन पर चारों ओर से नोटों की वर्षा आरम्भ हो जाएगी।
‘‘सूअर के बच्चे! हरामी!’’
मैंने क्रोध में झुंझलाकर कहा। वे चारों एक क्षण के लिए चौंक गए। फिर ऐसे ठस्स-से बैठ गए जैसे उन्हें सांप सूंघ गया हो।

‘‘परिश्रम नहीं करेंगे, काम नहीं करेंगे, राष्ट्र की सम्पत्ति में एक पाई की वृ)ि नहीं करेंगे! किन्तु सट्टा, जुआ, रेस, स्मगलिंग, बदमाशी, गुंडागर्दी, आवारगी, जालसाजी, बेईमानी, चोरी-डकैती, चचा-भतीजावाद, रिश्वत, हत्या, हर बुरे से बुरे काम को उचित ठहराएंगे। फिर इस बात पर मगरमच्छ के आंसू बहाएंगे कि यह देश प्रगति क्यों नहीं करता, समाज आगे क्यों नहीं बढ़ता,
निर्धनता दूर क्यों नहीं होती, लोग प्रसन्न और सभ्य क्यों नहीं दीख पड़ते!

‘‘साले, चोर, उचक्के, बदमाश, कुत्ते, कमीने चाहते हैं छूमंतर करके लाखों रुपये एक क्षण में कमा लें। नम्बर बता दो। नम्बर बता दो! क्यों नम्बर बताऊं मैं? नहीं बताता! जाओ जो करना है, कर लो मेरे ठेंगे से!’’

मारे क्रोध के मेरे मुंह से झाग निकलने लगे और मैं थरथर कांपने लगा। उनके मनहूस लालची चेहरे कैसे कुरूप और पेशेवर नजर आ रहे थे। पक्के और झुके हुए। मैंने अत्यंत क्रोध और ग्लानि से उनकी ओर से मुंह फेर लिया और कमरे से बाहर चला गया। दरवाजे की आड़ लेकर उनकी बातें सुनने लगा।

सिताबसिंह कह रहा था, ‘‘इस गधे को हुआ क्या है! हमारा खाता है, हमें ही गाली देता है। ह्विस्की वह पीए। फलों का रस इसके लिए आए! दो नौकर इसकी मालिश और मुट्ठी-चम्पी करें! सोने के लिए बढ़िया बिस्तर, रहने के लिए बढ़िया कमरा, झाड़-फानूस, गलीचे, गावतकिये, टेलीफोन, जीवन की प्रत्येक
सुविधा इसको हम दें और यह कम्बख्त हमको गाली दे! मैं अभी इसको पिस्तौल से मारता हूं।’’
‘‘नहीं, नहीं, तुम नहीं समझे सिताबसिंह,’’ जुम्मन बोला, ‘‘साईं को जलाल आ गया है। जरूर हमसे कोई गलती हो गई है।’’
‘‘जुम्मन ठीक कहता है,’’ गुलाबसिंह ने अपनी ठोड़ी खुजाते हुए कहा, ‘‘योगीराज हमसे रुष्ट हैं। जरूर हमसे कोई अपराध हुआ है।’’
‘‘अजी, कुछ नहीं हुआ,’’ सेठ भूरीमल हंसकर बोला,

‘‘साधु का वचन तो आकाशवाणी होता है। उसकी गाली में गुलाब होता है। तुमने ध्यान नहीं दिया? महात्मा ने नम्बर बता दिया है।’’
‘‘नम्बर बता दिया है, कि गाली दी है?’’ सिताबसिंह ने
क्रोध में कहा।
‘‘हंय, नम्बर बता दिया है? वह कैसे?’’ गुलाबसिंह ने आश्चर्यचकित होकर पूछा।
‘‘जरा सोचकर बताओ कि बातचीत शुरू करते समय योगीराज ने हमें कौन-सी गालियां दीं।’’
‘‘अजी, उसने छूते ही हमें सुअर का बच्चा और हरामी कहा और आखिर में साले, चोर, उचक्के, बदमाश, कुत्ते, कमीने कहा!’’ सिताबसिंह भड़ककर क्रोध से लाल होता गया।

‘‘मतलब शुरू में दो गालियां दीं और अन्त में छः गालियां दीं,’’ सेठ भूरीमल प्रसन्न होकर बोला, ‘‘बस, अब तो मामला साफ है। आज ओपन में ‘दुआ’ आएगा और क्लोज में ‘छक्का’। आज महर्षि ने जी भरकर गाली दी हैं। इसलिए आज जी करके इसी नम्बर पर सट्टा खेल दो। आखिरी पाई भी लगा दी यारों, ‘दुए’ और ‘छक्के’ पर। आज मौका है, सारी बम्बई लूट लो।’’

क्षण भर के लिए उन लोगों ने आश्चर्य और हैरत-भरी मुस्कराहट की निगाहों से सेठ भूरीमल की ओर देखा। फिर वे चारों एक-दूसरे के गले लग गए और एक-दूसरे को खुशी से मुंह चूमने लगे।

मैं भागकर अपने कमरे में चला गया और इन लोगों की प्रकृति पर सोच-विचार करने लगा, जो रुपये के लिए गालियां खाकर बेमजा न हुए थे।

इतनी बात तो बिल्कुल स्पष्ट है-मैंने अपने मन में सोचा कि यदि कल ये नम्बर न आए तो अपनी कुशल नहीं। सिताबसिंह मुझे फौरन गोली मार देगा। मैंने निकल भागने के लिए कई प्लान बनाए, किन्तु इस प्रकार कड़ा पहरा था मुझ पर कि भागने का अवसर भी न मिला। रात को सोते समय बाहर से ताले से बन्द कर दिया गया।

सुबह को जब कमरा खोला गया तो मैं निराश होकर हतप्रभ अपनी मृत्यु की प्रतीक्षा में चुपचाप खड़े का खड़ा रह गया। उन चारों को अपने सामने गम्भीरता से खड़े देखकर मेरी घिग्गी बंध गई। आज मृत्यु आ गई गधे! अब तैयार हो जाओ। मैं परेशान होकर पीछे हटने लगा। ये लोग उतने ही आगे बढ़ आए और चारों के चारों मेरे पांव पर गिर पड़े।

‘दुए’ से ‘छक्का’ आ गया था!
जुम्मन ने सत्तर हजार कमाए थे।
गुलाबसिंह ने तीस हजार!
सिताबसिंह ने पचास हजार!
सेठ भूरीमल ने अपनी सारी पूंजी लगा दी थी। उसने चौंसठ लाख कमा लिए थे।
चौंसठ लाख!
एक दांव-चौंसठ लाख!!
बाप रे!!!

अब वे लोग प्रसन्नता के कारण हंसते जाते थे और रोते भी जाते थे और मेरे पांव को चूमते भी जाते थे। प्रसन्नता और गाम्भीर्य, आश्चर्य और भय से उनके गले से विचित्र प्रकार की चीखें और कराहें निकल रही थीं। जो कुछ वे बोल रहे थे वह मेरी समझ में नहीं आ रहा था। कभी कुछ शब्द समझ आ जाते।

‘‘भगवान्...मालिक...महर्षि देवता साईं...फकीर...दरवेश...’’
मैंने एकदम कड़ककर कहा, ‘‘निकल जाओ, अभी निकल जाओ कमरे से। हम एकान्त चाहते हैं।’’

वे लोग मेरे पांव छोड़कर उल्टे पांव भागे। हाथ जोड़ते हुए थर-थर कांपते हुए, कमरे से बाहर जाने लगे, तो मैंने गरजकर फिर कहा, ‘‘सेठ को यहीं छोड़ जाओ।’’

जब सेठ अकेला मेरे सामने खड़ा रह गया तो मैंने कुछ क्षण उसकी ओर एकटक घूरकर देखा। सेठ ने दृष्टि झुका ली। उसके सारे शरीर पर कम्पन छाया हुआ था।
मैंने पूछा, ‘‘सच-सच बताओ, तुमने कितने कमाए?’’
‘‘चौंसठ लाख गुरुदेव, केवल चौंसठ लाख!’’
‘‘तो मेरे बत्तीस लाख मुझे दे दो।’’
‘‘अभी लीजिए, स्वामी।’’

सेठ भूरीमल घबराया हुआ, भागता हुआ, अपने बेडरूम में गया और अपनी तिजोरी खोलकर हजार-हजार के बत्तीस सौ नोट लेकर आया। और नोट लाकर उसने मेरे कदमों पर ढेरी कर दिए।

बत्तीस लाख के नोट देखकर मेरा दिल पसीजा और मेरा स्वर बदला और मैंने कहा, ‘‘बच्चा, हम तुमसे बहुत प्रसन्न हैं। तू अपनी परीक्षा में सफल हुआ। इस खुशी में हम तुम्हें और दो लाख का पुरस्कार प्रदान करते हैं। इस ढेरी में से दो लाख के नोट उठा ले और शेष तीस लाख के नोट लेकर हमारे साथ बैंको चल।’’

जाना गधे का दि ग्रेट नेशनल स्टार बैंक ऑफ इण्डिया में, और जमा कराना तीस लाख रुपये का, और मुलाकात करना बैंक के जनरल मैनेजर से...

बैंक के मैनेजर से एक असिस्टैण्ट ने कहा, ‘‘आपसे मिलने के लिए एक गधा आया है।’’
‘‘गधा? गधे का बैंक में क्या काम!’’ बैंक के मैनेजर ने चौंककर पूछा।

बैंक के अंदर आते ही मुझे देख सब लोगों में खलबली मच गई थी। क्लर्क लोग अपनी कुर्सियों से उठ खड़े हुए और एड़ियां उचका-उचकाकर मुझे देखने लगे। पैसा निकलवाने और पैसा जमा कराने वाले सब मुझे आश्चर्य और परेशानी से देख रहे थे।
इससे पहले कि लोग अपने होश-हवास ठीक करके मेरे प्रवेश का विरोध कर करते, सेठ भूरीमल मुझे लेकर मैनेजर के कमरे में प्रविष्ट हो गया।
‘‘यह क्या बदतमीजी है!’’ बैंक-मैनेजर चिल्लाया। फिर वह सेठ भूरीमल की ओर मुड़कर बोला, ‘‘श्रीमान्जी, यह बैंक है, अस्तबल नहीं!’’

सेठ भूरीमल कुछ कहना चाहता था, किन्तु मैंने उसे बात नहीं करने दी। मैंने धीरे से मुस्कराकर कहा, ‘‘इस दुनिया में सबसे बड़ी मुसीबत यह है कि जिन लोगों को बैंक में होना चाहिए वे अस्तबल में बंद कर दिए जाते हैं, और जिन लोगों को वास्तव में अस्तबल में होना चाहिए वे बैंक में पाए जाते हैं!’’
बैंक-मैनेजर मुझे बोलता देखकर आश्चर्यचकित हो गया। उसका निचला जबड़ा लटके का लटका रह गया। वह हकलाकर बोला, ‘‘आ...आ...आपकी तारीफ?’’

‘‘एक गधे की तारीफ क्या हो सकती है! वह भला इस योग्य कहां, किंतु मैं आपका समय नष्ट नहीं करूंगा। मुझे गधा कहते हैं। मैं आपके यहां अपना एकाउंट खोलने आया हूं।’’
‘‘हमारे यहां किसी गधे का एकाउंट नहीं खुल सकता।’’
‘‘क्यों नहीं खुल सकता? मैं नकद रुपया लाया हूं। आपका बैंक-चार्ज देने को तैयार हूं।’’
‘‘आप इंसान नहीं, हैवान हैं!’’

‘‘इस बात की क्या गारंटी है कि आपके यहां जो लोग आते हैं सबके सब इंसान हैं? मैंने बहुत इंसानों को हैवानों से बुरा जीवन व्यतीत करते देखा है। मैं बैंक एकाउंट रखने वाले बहुत-से ऐसे इंसानों को जातना हूं जिन्हें देखकर हैवानों से प्रेम हो जाता है।’’

‘‘मैं विवश हूं साहब,’’ बैंक-मैनेजर मेरी बातों से परेशान होकर बोला, ‘‘यह हमारे बैंक का नियम है कि हम किसी जानवर या हैवान का एकाउंट नहीं खोल सकते।’’
‘‘इंसान की एक विशेषता यह भी है कि बोलने वाला गधा है। इस सीमा तक आप मुझे भी इंसान समझ सकते हैं।’’
‘‘बहस मत कीजिए। चले जाइए। मैं यहां किसी गधे का एकाउंट नहीं खोल सकता!’’ बैंक-मैनेजर ने बड़ी कठोरता से कहा।
मैंने कहा, ‘‘बस दो-एक बातें बता दीजिए। फिर मैं चला जाऊंगा।’’
‘‘फर्माइए।’’
‘‘ये जो हजारों आदमी आपके बैंक में रुपया जमा कराते हैं इनको आप क्या देते हैं?’’
‘‘देने का क्या मतलब! हम तो लेते हैं, बैंक का ब्याज।’’
‘‘यानी एक तो आप हमारा रुपया अपने पास रखें, और फिर ब्याज भी हमसे लें!’’
‘‘नहीं, यदि आप जनरल एकाउंट के बजाय सेविंग एकाउंट या फिक्स्ड डिपाजिट में रुपया रखवा दें तो हम आपको ब्याज देंगे।’’

‘‘आखिर आप मुझे क्यों मदद देंगे! जब मेरा रुपया आपके पास सदा जमा रहता है तो फिर मुझको कैसे ब्याज दे सकते हैं? क्या मेरा रुपया आपके पास पड़ा-पड़ा अंडे देता है?’’

मैनेजर हंसा। बोला, ‘‘श्रीमान्जी, बात यह नहीं है। वह बात यह है कि आप हजारों लोग जो अपना थोड़ा-थोड़ा करके सैकड़ों की पूंजी हमारे बैंक में जमा करते हैं, उन्हीं की पूंजी को जमा करो तो लाखों की रकम हो जाती है। फिर हमारे बैंक के डायरेक्टर लोग आपकी पूंजी को बड़े-बड़े उद्योगों में लगाते हैं, सुरक्षित सम्पत्तियां खरीदते हैं और लाखों का लाभ कमाते हैं।’’

‘‘यानी निर्धन आदमी अपनी छोटी-सी पूंजी सुरक्षा के विचार से तुम्हारे जनरल एकाउंट में रखता है, उसके लिए चार्ज देता है, और तुम हम सबकी पूंजी जमा करके लाखों का धन्धा कर लेते हो!’’
‘‘जी हां, बात तो कुछ ऐसी ही है।’’
‘‘और फिर तुम कहते हो इस बैंक में किसी गधे का एकाउंट नहीं खुल सकता!’’
बैंक-मैनेजर मेरी बात समझकर हंस दिया। बोला, ‘‘आप अत्यंत चतुर सिद्ध हैं।’’
‘‘निर्धन आदमी कभी-कभी अपनी मुसीबत को चतुरता से न टाले तो जीना कठिन हो जाए। अच्छा मैनेजर साहब, हम जाते हैं।’’

यह कहकर मैं बैंक-मैनेजर के कमरे से बाहर निकल आया। मेरे जाने के बाद भूरीमल ने बैंक-मैनेजर से कहा, ‘‘तुमने बड़ी भारी गलती की, दयालुराम! यह गधा तीस लाख रुपये जमा कराने आया था।’’
‘‘तीस लाख!’’ बैंक-मैनेजर जोर से चिल्लाया।
‘‘हां, तीस लाख!’’ सेठ भूरीमल ने सिर हिलाकर कहा।
‘‘तीस लाख!’’ बैंक-मैनेजर कुर्सी से उछलकर बाहर दरवाजे की ओर दौड़ा।
‘‘अरे, वह गधा कहां है?’’

बैंक में खलबली मच गई। सब लोग मैनेजर को बैंक से भागकर बाहर निकलते हुए मेरे पीछे-पीछे भागते हुए देख रहे थे।
बैंक-मैनेजर चीख रहा था, ‘‘अबे ओ गधे, यानी कि अजी जनाब गधे साहब! जरा सुनिए तो सरकार मेरी!’’
मैंने पीछे मुड़कर पूछा, ‘‘क्या है?’’

बैंक-मैनेजर ने मेरी रस्सी पकड़ी और बड़ी दयनीयता से बोला, ‘‘मुझसे बड़ी गलती हुई। वास्तव में मुझे आपको पहचानने में बड़ी गलती हुई। अब आप अंदर चलिए और अपना रुपया जमा कर दीजिए।’’
‘‘पर मैं तो एक गधा हूं।’’
‘‘अजी, आप गधे क्या उल्लू भी हों तो भी कोई बात नहीं!’’
‘‘मैं एक हैवान हूं।’’
‘‘अजी आप हैवान क्या शैतान हों, तब भी आपको न जाने दें! चलिए, अंदर चलिए!’’
बैंक का मैनेजर फर्शी सलाम करते हुए मुझे अपने कमरे में अंदर ले गया।
लोग आश्चर्य से हक्का-बक्का रह गए। अंदर जाते ही बैंक के मैनेजर ने जोर से घंटी बजाई।
‘‘एकाउंट का फार्म लाओ। हस्ताक्षर का फार्म लाओ। पासबुक लाओ, चेकबुक लाओ...जल्दी लाओ!’’
फिर मेरी तरफ मुड़कर बोला, ‘‘आप तीस लाख रुपये जमा कराएंगे?’’
‘‘जी हां।’’

‘‘हुम्!’’ बैंक-मैनेजर ने प्रसन्नता से अपनी एड़ियां रगड़ीं। फिर बोला, ‘‘मेरे ख्याल से आप बीस लाख तो फिक्स्ड डिपाजिट में रख दीजिए, पांच लाख सेविंग एकाउंट में और पांच लाख जनरल एकाउंट में।’’
‘‘जी नहीं,’’ मैंने कहा, ‘‘मैं इक्कीस लाख रुपये फिक्स्ड डिपाजिट में रखूंगा, चार लाख सेविंग में और पांच लाख जनरल एकाउंट में।’’
‘‘बीस की बजाय इक्कीस लाख क्यों?’’ सेठ भूरीमल ने पूछा।

‘‘इक्कीस लाख रुपये मठ के लिए सुरक्षित रखना चाहता हूं!’’ मैंने सेठ भूरीमल को बताया। ‘‘वह भूल गए कि गुरुजी ने जो मुझे हिमालय पर मठ खोलने के लिए कहा था?’’
सेठ भूरीमल को याद आ गया और विश्वास हो गया।
मैनेजर ने एक फार्म मेरे सामने रखते हुए कहा, ‘‘इस पर हस्ताक्षर कर दीजिए।’’
‘‘मैंने कहा, ‘‘मैं हस्ताक्षर नहीं कर सकता। मैं तो गधा हूं।’’
‘‘कोई बात नहीं,’’ मैनेजर बोला, ‘‘आप अंगूठा लगा दीजिए।’’
‘‘गधे का अंगूठा भी नहीं होता, सुम होता है।’’
‘‘सुम भी चलेगा। तीस लाख रुपये की रकम के लिए सुम तो क्या गधे की दुम का निशान भी चलेगा!’’ मैनेजर मुस्कराकर बोला और उसने फार्म मेरे सामने रख दिया।
‘‘सुम लगाइए।’’
सेठ भूरीमल ने कहा, ‘‘पढ़ जाओ।’’
‘‘क्यों?’’ मैंने पूछा।
सेठ भूरीमल ने मैनेजर से पूछा- ‘‘इस रकम पर आपको ओवर-ड्राफ्ट क्या मिलेगा?’’
‘‘ओवर-ड्राफ्ट क्या होता है?’’ मैंने पूछा।
सेठ भूरीमल ने स्पष्ट करते हुए कहा, ‘‘बैंक में जितना एकाउंट हो आप उससे अधिक निकलवा सकते हैं। उसकी एक रकम निश्चित हो जाती है।’’
मैनेजर बोला, ‘‘इस रकम पर मैं आपको एक लाख रुपये ओवर-ड्राफ्ट दूंगा।’’
‘‘एक लाख नहीं दो लाख।’’ सेठ भूरीमल ने कहा।
‘‘चलिए दो लाख सही। आप सुम लगाइए।’’

जब मैं फार्मों पर सुम लगा रहा था, उसी समय एक दुबला-पतला परेशानहाल आदमी अंदर आया और बैंक-मैनेजर से कहने लगा, ‘‘मेरी पत्नी बहुत बीमार है। जाने बचे कि नहीं बचेगी। मुझे उसकी दवा-दारू के लिए डेढ़ सौ रुपये चाहिए। और मेरे एकाउंट में केवल पचास रुपये जमा हैं इस समय। मैनेजर साहब, मुझे एक सौ का ओवर-ड्राफ्ट दे दीजिए। दो दिन के बाद पहली तारीख को जब मुझे वेतन मिलेगा, मैं एक सौ रुपये बैंक में जमा कर दूंगा।’’
‘‘क्या आपका ओवर-ड्राफ्ट बैंक से स्वीकृत है?’’ मैनेजर से पूछा।
‘‘जी नहीं। पर मेरी पत्नी बहुत बीमार है। वह मर जाएगी अगर...’’
मैनेजर ने बात काटकर कहा, ‘‘सॉरी, मैं इस मामले में कुछ नहीं कर सकता।’’
वह आदमी रोता हुआ बाहर चला गया।

मैंने मैनेजर से कहा, ‘‘तीस लाख जमा करने वाले गधे के लिए दो लाख का ओवर-ड्राफ्ट! और किसी की पत्नी मृत्यु-शैया पर पड़ी हो, उसे सौ रुपये भी न मिलें। मैनेजर साहब, आप अपेन बैंक को इंसानों का बैंक कहते हैं?’’

बैंक का मैनेजर कुछ कहना चाहता था। किंतु इतने में द्वार फिर खुला और एक लंबे बालों वाला गोरे रंग का आदमी- जिसने बादामी रंग की कमीज पहन रखी थी और एक सफेद पतलून और पेशावरी चप्पल पहने था- जल्दी से एक चेक लेकर अंदर आया और बोला, ‘‘कटाकट फिल्मी कम्पनी वालों ने मुझे डेढ़ सौ का यह चेक दिया था। पर क्लर्क बोलता है, कटाकट फिल्म कम्पनी के हिसाब में केवल एक सौ चालीस रुपये जमा हैं।’’
‘‘तो मैं क्या करूं?’’ मैनेजर ने तुनककर पूछा।

‘‘आप ऐसा कीजिए कि कटाकट फिल्म कम्पनी के हिसाब में मैं दस रुपये अपने पास से जमा कराए देता हूं, और आप फटाफट मेरा डेढ़ सौ का चेक पास कर दीजिए। साला...अपना दस रुपये का ही तो मादा रहेगा। एक सौ चालीस रुपये तो अपने घर में आएगा।’’
‘‘ओ.के.’’ मैनेजर ने कहा और वह लंबे बालों वाला आदमी तत्काल बाहर चला गया।
‘‘यह कौन था?’’ मैंने उस आदमी की चालाकी से प्रभावित होकर बैंक-मैनेजर से पूछा।
‘‘यह दादा धमाल है। कटाकट कम्पनी में फिल्म डायरेक्टर है।’’
फिर वह मुझे पासबुक और चेकबुक देते हुए बोला, ‘‘लीजिए साहब आपका काम हो गया। मेरे लिए और कोई सेवा?’’

मैंने चेकबुक देखकर कहा, ‘‘क्या मैं अब इस एकाउंट से रुपया निकाल सकता हूं?’’
‘‘जितना जी चाहे निकाल सकते हो।’’ मैनेजर बोला।
‘‘अब चेकबुक पर हस्ताक्षर के बजाय अपना सुम लगा सकता हूं?’’
‘‘निस्संदेह! आपके सुम का निशान ही आपका हस्ताक्षर समझा जाएगा।’’
‘‘बहुत खूब!’’ मैंने सेठ भूरीमल से कहा, ‘‘अब आप इस चेक पर एक लाख की रकम लिख दें। मैं अपना सुम लगाए देता हूं।’’
एक लाख रुपये लेकर हम बाहर आ गए।
बाहर आकर सेठ ने मुझसे पूछा, ‘‘गुरु, इस रकम की क्या जरूरत थी?’’

मैंने कहा, ‘‘अधिक बकवास मत करो। यहां से सीधे नुक्कड़ की ‘जनरल स्टोर्स’ की दुकान पर चले जाओ और इस रकम के लिए एक झोला खरीद लाओ और उसे मेरी गर्दन में लटकाकर उसमें ये एक लाख रुपये रख दो।’’
सेठ बड़बड़ाता हुए और यह कहता हुआ चला गया, ‘‘अभी से इस गधे के दिमाग में गर्मी आ गई है।’’
उसका ख्याल था कि मैंने नहीं सुना होगा। किंतु मैंने सुन लिया था...खैर, तुझे भी ठीक कर दूंगा।
जब सेठ नुक्कड़ पर गायब हो गया तो मेरे कानों में यह आवाज आई-
‘‘सेठ!’’
मैंने इधर-उधर देखा तो सेठ नहीं दिखाई दिया। फिर कानों में आवाज आई-
‘‘सेठ! मैं तुमको बोलता हूं।’’
अब जो मैंने देखा तो दादा धमाल था। कह रहा था, ‘‘सेठ, आइसक्रिम खाएगा?’’
‘‘नहीं।’’
‘‘जलेबी?’’
‘‘नहीं।’’
‘‘बढ़िया मघई पान खाएगा-फर्स्ट क्लास!’’
‘‘नहीं।’’
मैंने अस्वीकृति से सिर हिलाकर कहा, ‘‘क्यों? बात क्या है? क्यों खुशामद कर रहे हो?’’
‘‘खुशामद तो हम अपने बाप की भी नहीं करेगा। पर तुमको काम की बात बताएगा। पर जरा इधर कोने में आ जाओ।’’

मैं उसके निकट चला गया। वह दस मिनट तक मेरे कान में खुसर-पुसर करता रहा और इधर-उधर देखता रहा। जब उसने दूर से सेठ भूरीमल केा आते देखा तो फौरन ‘फिर मिलूंगा’ कहकर लुप्त हो गया।

सेठ भूरीमल ने न उसे मुझसे बातें करते देखा, न गायब होते देखा। मेरे समीप आकर सेठ भूरीमल ने झोला मेरे गले में बांधा। उसमें एक लाख के नोट गिनकर डाले। मेरे पांव छुए और दोनों हाथ जोड़कर बोला, ‘‘गुरु महाराज! अब आप हिमालय कब जाएंगे?’’

एक लाख के नोट झोले में पड़ते ही मेरे सारे शरीर में एक विचित्र सनसनी-सी दौड़ गई। रगों में खून का दौरा तेज हो गया। सिर से पांव तक एक अंगड़ाई-सी आई। फिर मैंने जोर की एक हांक लगाई और कहा-
‘‘अहमक! अब हम हिमालय नहीं जाएंगे, यहीं बम्बई में रहेंगे।’’
‘‘अब वह गधों का मठ?’’ सेठ ने पूछा।
‘‘वह गधों का मठ अब बम्बई में ही खुलेगा।’’
‘‘यानी?’’ सेठ ने मेरी ओर आश्चर्य से देखकर पूछा।
‘‘यानी एक फिल्म कम्पनी।’’
‘‘फिल्मी कम्पनी?’’ सेठ भूरीमल जोर से चीखा, ‘‘गुरुजी, आप तबाह हो जाएंगे, बर्बाद हो जाएंगे!’’
‘‘हम न तबाह होंगे, न बर्बाद होंगे। हमें दादा धमाल ने बता दिया है। केवल अड़तालीस रुपये में फिल्म कम्पनी खुल सकती है।’’
‘‘केवल अड़तालीस रुपये में? महाराज, आपकी बुद्धि को क्या हुआ है?’’

‘‘हम कोई गधे नहीं हैं, सेठ! हम सब समझते हैं। दादा धमाल ने हमें सब समझा दिया है। वह कहता था- मुझे अड़तालीस रुपये दे दो। तुम्हें फिल्म कंपनी खड़ी करके दिखा दूंगा। मैंने उसे सौ रुपये दे दिये हैं, अब वह कल तक फिल्म कंपनी खड़ी करके मेरे पास आएगा।’’
‘‘फिल्म कंपनी न हुई, बांस का डंडा हो गया! उठाया और खड़ा कर दिया!’’ सेठ भूरीमल ने और भी उकताहट से कहा।

‘‘तुम नहीं समझते हो। हम सब समझते हैं। दादा धमाल ने हमें सब समझा दिया है, और फिर हमारे पास से जाएगा क्या?...केवल अड़तालीस रुपये। अड़तालीस रुपये में यदि अड़तालीस लाख का लाभ हो तो क्या तुम उसको बुरा धंधा कहोगे?’’
‘‘पर आएगा कहां से?’’

‘‘हम सब जानते हैं। हम सब समझते हैं। तुमको भी समझा देंगे। तुमको भी बता देंगे। कल दादा धमाल हमारे पास आएगा। उससे मिलकर अपनी तसल्ली कर लेना।’’

खोलना गधे का फिल्म कंपनी, और बन जाना प्रोड्यूसर और प्रेम करना बंबई की प्रसिद्ध हीरोइन प्रेमबाला से, और बयान डायरेक्टर धमाल और दूसरे अभिनेताओं का...

दूसरे दिन दादा धमाल अपने बिज़नेस मैनेजर सुमन को लेकर हमारे घर आ गया । सुमन दादा धमाल से भी सूखा और पतला नज़र आता था। उसकी आँखों की पुतलियां बड़ी तेज़ी से इधर-उधर चलती थीं और और उनमें एक स्थायी भूख की चमक थी। किन्तु वे बड़ी बुद्धिमान और चालाक आँखें थीं । ऐसी आँखें जो दृष्टि से उंगलियों का काम लेती मालूम होती थीं ।

जब सेठ भूरीमल ने पूछा, "अड़तालीस रुपये में पिक्चर कैसे बन सकती है, और उससे अड़तालीस लाख का लाभ कैसे हो सकता है ?" तो दादा धमाल ने एक पैकेट खोला ।

"यह क्या है ?" मैंने पूछा ।

“ये आपकी फिल्म कंपनी के लेटर पैड, एग्रीमेण्ट फार्म और रसीद- बुकें हैं। मेरे बिज़नेस मैनेजर सुमन ने उन्हें रातोंरात देकर प्रेस में छपवा लिया है।"

"दो सौ रुपये तो शायद इन्हीं कागजों के हो जाएंगे ।" सेठ भूरीमल ने विरोध करते हुए कहा ।

"अपनी जेब से एक धेला नहीं जाएगा," सुमन ने बताया, "मैंने प्रेस वाले से यह काण्ट्रेक्ट कर लिया है कि हमारी पिक्चर की पूरी पब्लिसिटी उसके यहां छपेगी। बड़े-बड़े रंगीन पोस्टर भी वह स्वयं छापेगा । पच्चीस हजार रुपये व्यय होंगे।"

"किन्तु तुम तो अड़तालीस रुपये..." मैंने कहना चाहा ।

किन्तु मुझे सुमन ने बीच में ही रोककर कहा, "पहले पूरी बात सुन लो सेठ, फिर एतराज करो। वह पच्चीस हजार रुपये हमें नहीं देने होंगे । अपनी जेब से एक धेला नहीं जाएगा। यह रकम डिस्ट्रीब्यूटर देगा ।"

"यह डिस्ट्रीब्यूटर कौन होता है ? " मैंने पूछा ।

"तुम्हारी तरह सेठ लोग होता है," सुमन बोला, “जो पिक्चर हमसे खरीदता है; वही पच्चीस हज़ार देकर पब्लिसिटी की डिलीवरी ले लेगा ।"

"किन्तु माल के बिना पिक्चर कैसे बन जाएगी ?" सेठ भूरीमल ने पूछा, “पिक्चर में तो बड़े-बड़े स्टार लोग काम करते हैं । जो सुना है- एक पिक्चर में काम करने के लाखों रुपये ले लेते हैं । तुम अड़तालीस रुपये में पिक्चर कैसे बनाओगे ?"

" बहुत आसान काम है," दादा धमाल बोला, " अश्विनीकुमार मेरा बचपन का दोस्त है । वह मुझे दादा धमाल कहता है। मैं उसे दादा गुनी कहता हूं। कल रात को मैं अश्विनीकुमार से मिला था। मैंने कहा- दादा गुनी ! मेरी पिक्चर में काम करेगा। वह बोला- दादा धमाल ! मेरे पास इस समय बीस पिक्चर हैं । एक तुम्हारी और हो जाएगी तो क्या हर्ज हो जाएगा ?

“ मैंने कहा— पर मैं पहले दस दिन तक एक पैसा नहीं दूंगा और दूसरों से भी कम दूंगा । वह बोला- तू मेरा बचपन का दोस्त है। तू अगर एक पाई भी न दे तो परवाह नहीं। मैं दूसरों से ढ़ाई लाख लेता हूं, तुझसे दो लाख ले लूंगा ।

" मैंने कहा- मैं पौने दो लाख से एक पाई भी ज्यादा न दूंगा । वह बोला- मुझे यार की यारी से काम है, उसके रुपयों से क्या काम ? बस सौदा हो गया ।

“किन्तु -- ..." मैंने कहा ।

सुमन तत्काल बोला, "और मैं ब्रजेन्द्रकुमार के पास गया था। किसी जमाने में हम दोनों एक ही डायरेक्टर के असिस्टण्ट थे। हम दोनों ने इकट्ठे ही विपदाएं झेली हैं। भगवान ने कहां पहुंचा दिया है। पर शाबाश है उस इन्सान को । वह आदमी अपने दोस्तों को नहीं भूला । जब मैंने ब्रजेन्द्रकुमार से आपकी पिक्चर में काम करने के लिए कहा तो उसकी आंखों में आंसू भर आए और वह मेरा हाथ दबाकर बोला – कुत्ते, तेरी पिक्चर में काम कैसे नहीं करूंगा ।"

"उसने तुम्हें कुत्ता कहा ?" मैंने आश्चर्य से पूछा ।

सुमन बोला," वह मुझे प्यार से कुत्ता कहता है, क्योंकि मैं अपने मित्रों का बहुत स्वामिभक्त हूं। और मैं उसे 'जन्नी' कहता हूं ।

"मैंने कहा- जन्नी, तुझे पहले दस दिन एडवान्स लिए बिना काम करना होगा और पैसे भी दूसरों से कम दूंगा । वह बोला- कुत्ते, पैसे की बात मत कर मुझसे । दूसरों से चार लाख लेता हूं । तू एक खोटा पैसा भी दे देगा तो ले लूंगा। बस, मैं उसे दो लाख पर राजी करके आ गया ।

"दो लाख ज्यादा दिया तुमने । पौने दो कहे होते," दादा धमाल ने विरोध प्रकट करते हुए कहा, "वर्ना अश्विनीकुमार नाराज हो जाएगा ।"

"तो पौने दो लाख करवा दूंगा । जन्नी तो अपनी मुट्ठी में है ।"

"पौने दो और पौने दो―साढ़े तीन लाख ये हो गए; और तुम अड़तालीस रुपये बताते थे। यह रकम कौन देगा ?"

"सेठ, दस दिन में तो मैं पिक्चर की एक तिहाई खत्म कर दूंगा, " दादा धमाल बोला, "फिर डिस्ट्रीब्यूटर्स को पिक्चर दिखाकर उनसे रुपये ले लेंगे। एक क्षेत्र से एक लाख की पहली किश्त आएगी। छः जगहों से छः लाख घर बैठे आ जाएंगे। इधर से चेक आएगा, उधर से दिया जाएगा अपनी जेब से एक धेला नहीं जाएगा ।"

सुमन बोला, "पिक्चर जानी भाई के स्टूडियो में बनेगी । वही सेठ बनाएगा, फर्नीचर और कपड़े देगा। और उसकी कैण्टीन से चाय आएगी।

उसकी लैबोरेटरी में पिक्चर धुलेगी और तैयार होगी। इस सारे खर्चे का वही ज़िम्मेदार होगा ।"

"वह क्यों ज़िम्मेदार होगा ?" सेठ भूरीमल ने पूछा ।

"क्योंकि हम पिक्चर के खत्म होने पर उसे दो लाख रुपये देंगे।"

"दो लाख हम कहां से देंगे ?" मैंने पूछा ।

"तुम नहीं दोगे सेठ, वह डिस्ट्रीब्यूटर देगा जो पिक्चर उठाएगा । वही यह रकम देगा । अपनी जेब से एक धेला नहीं जाएगा ।"

"और हीरोइन ?" सेठ भूरीमल ने पूछा ।

"उसका भी प्रबंध हो गया है," दादा घमाल बोला, "मैं प्रेमबाला से बात करके आ रहा हूं । प्रेमबाला को अपनी पिक्चर में सबसे पहले मैंने चान्स दिया था। तब से वह मेरी कृतज्ञ है । वह बेचारी भी दस दिन तक एक पैसा नहीं लेगी ।"

सेठ भूरीमल ने कहा, "जब सब लोग मुफ्त काम करेंगे तो फिर अड़तालीस रुपयों की क्या जरूरत है ?"

"सेठ, मुहूर्त के लिए पेड़े आएंगे। मैंने हिसाब लगा लिया है । अड़तालीस रुपये के पेड़े आएंगे।"

"वैसे मैं तो एक हलवाई को भी जानता हूं," सुमन बोला, "जो उधार पर पेड़े भी दे देगा ।"

"नहीं, नहीं," मैंने शीघ्रता से कहा, "हलवाई से उधार करना ठीक नहीं है। अब ऐसे भी गए गुज़रे नहीं हैं हम ।"

"किन्तु कंपनी के लिए एक आफिस तो बनाना पड़ेगा। उसके लिए एक क्लर्क, टाइपिस्ट वगैरह रखना पड़ेगा, टाइपराइटर आएगा।" सेठ भूरीमल ने कहा ।

"सेठ, कंपनी का आफिस हम आपके आपिस में रखेंगे," सुमन बोला, "ऐसा हमने सोचा था। अब इतना सा काम तो आप भी कर देंगे । रहा टाइपिस्ट और एकाउण्टेण्ट ! मैं स्वयं ही हिसाब-किताब कर लेता हूं । टाइप भी जानता हूं व्यर्थ में पैसे नष्ट करने की क्या ज़रूरत है ।"

"यह सब काम सुमन कर लेगा," दादा धमाल बोला, "अपनी जेब से एक धेला नहीं जाएगा।"

सेठ भूरीमल मेरी तरफ देखने लगा, मैं उसकी तरफ । सच बात तो यह थी कि हम दोनों को उन्होंने कायल कर लिया था । निस्सन्देह पिक्चर पर अड़तालीस रुपये से अधिक खर्च नहीं आ सकता था ।

" किन्तु अड़तालीस लाख कहां से आएगा ?"

"सेठ, पिक्चर टेक्नीकलर में और 'वाइड स्क्रीन' की तैयार होगी । ऐसी गज़ब की पिक्चर बनाऊंगा कि लोग 'सिसल डी मेलो' को भूल जाएंगे। फिल्म 'नागिन' से तीन करोड़ का बिज़नेस किया है। फिल्म 'मुग़ले- श्राज़म' अब तक छब्बीस करोड़ का बिज़नेस कर चुकी है। क्या हमारी किस्मत में अड़तालीस लाख भी न आएगा ।"

"और अगर कम भी आएगा तो क्या हुआ," सुमन बोला, "अपनी जेब से तो एक धेला भी नहीं जाएगा ।"

" फिल्म कंपनी का नाम क्या रखा है ?" मैंने लेटर पैड खोलते हुए पूछा ।

"डंकी ला प्रोडक्शन ।" सुमन बोला ।

"डंकी ला प्रोडक्शन !" दादा धमाल बोला ।

दोनों प्रसन्न होकर मेरी ओर देखने लगे। मैं प्रसन्नता से झूम-झूम गया, क्योंकि लेटर पैड पर 'डंकी ला प्रोडक्शन' मोटे शब्दों में लिखा हुआ था और उनके ऊपर एक गधे का चित्र था ।

दादा घमाल ने उस चित्र की ओर संकेत करके कहा, " सेठ, यह हमारी कंपनी का मोनोग्राम होगा । और पिक्चर में भी सबसे पहले यह तस्वीर आएगी। बस अब मुंह मीठा करवाओ और मुहूर्त तय कर दो।

ठीक अड़तालीस रुपये में पिक्चर का मुहूर्त हो गया । किन्तु उसके पश्चात् थोड़ी-सी गड़बड़ हो गई। मुहूर्त पर कुछ लोगों ने कोका-कोला मांग लिया और उसके लिए कोकाकोला की एक गाड़ी मंगानी पड़ी ।

फिर पान और सिगरेट के व्यय का तो हमने सोचा न था । मुहूर्त लगानेवाले ज्योतिषी ने भी रुपये मांग लिए । फिर इधर-उधर जाने पर. टक्सी भाड़े पर बहुत खर्च उठता था। इसलिए हमने एक गाड़ी और एक स्टेशन-वैगन खरीद ली। गाड़ी भी नई खरीदनी पड़ी, क्योंकि दादा धमाल ने बताया कि यह तो ज़रूरी है। यह सब तो शो का काम है । सेकेण्ड हैंड गाड़ी देखकर डिस्ट्रीब्यूटर कम दाम देगा। नये माडल की बड़ी गाड़ी देखकर बहुत ज्यादा बताएगा। वैसे हमें कुछ कहना नहीं है इस सिलसिले में । गाड़ी तो आप जैसे बड़े सेठ को रखना ही चाहिए। इस गाड़ी को हम पिक्चर के लिए भी इस्तेमाल कर लेंगे। डंकी ला प्रोडक्शन का एक स्टेशन - वैगन भी होगा तो शो और भी बढ़ जाएगी। और फिर कौन-सा अपनी गिरह से माल खर्च करना है हमें। दस दिन के बाद डिस्ट्रीब्यूटर से पैसा आने वाला है । छः लाख आएगा । उसमें अपनी गाड़ी स्टेशन वैगन और ड्राइवर का खर्चा भी निकाल लिया जाएगा ।

"अपनी जेब से धेला नहीं जाएगा।" सुमन बोला ।

मुहूर्त तो निस्सन्देह अड़तालीस रुपये में हो गया था । किन्तु जब स्टेशन वैगन और मोटर गाड़ी और दूसरे इधर-उधर के खर्चे मिलाकर हिसाब किया तो ज्ञात हुआ कि अब तक पिक्चर पर मेरा अड़तालीस हज़ार खर्च हो चुका है । और अभी केवल मुहूर्त हुआ था ।

मैंने पिक्चर बन्द कर देने की सोची। किन्तु सेठ भूरीमल ने मुझे समझाया :

"इतने दिनों ध्यान से देख रहा हूं। मुझे दादा धमाल और सुमन सज्जन और ईमानदार मालूम होते हैं । किन्तु इन लोगों को बिजनेस का अधिक अनुभव नहीं है। यदि आप उचित समझें तो आपकी फिल्म कंपनी का बिजनेस भी संभाल लूं ।"

"इससे अच्छी बात और क्या हो सकती है।" मैंने प्रसन्न होकर कहा ।

और सेठ भूरीमल को उनकी सेवा के पहले ही चार आने की पार्टनरशिप भी दे दी।

"इसकी क्या ज़रूरत है ?" सेठ ने कहा ।

"नहीं जनाब, मैं किसीका हक मारने के पक्ष में नहीं हूं । जो आदमी मेहनत करता है उसे उसका भाग अवश्य मिलना चाहिए और फिर मेरी इसमें क्या हानि है ? डिस्ट्रीब्यूटर से पैसा आएगा और सबको बांटा जाएगा और अपनी जेब से एक धेला नहीं जाएगा ।"

मुहुर्त के कुछ दिन बाद कहानी पर तर्क प्रारम्भ हुआ ।

"पिक्चर की कहानी क्या होगी ?" मैंने पूछा ।

"कहानी !" दादा धमाल गड़बड़ाकर बोला ।

"पिक्चर में कहानी नहीं होती है।" सुमन बोला ।

" फिर इस पिक्चर की कहानी क्या है ?" मैंने ज़िद करते हुए पूछा ।

सुमन ने सोचते हुए एक उंगली उठाई। दादा धमाल ने पूरा हाथ उठाकर अपने दूसरे हाथ पर इतने ज़ोर से मारा कि मैं आश्चर्य से उछल पड़ा ।

"कोई मच्छर था ?” मैंने पूछा ।

"नहीं, कहानी ।"

"कहानी ?"

"हां, गज़ब की फर्स्ट क्लास ! बहुत आलीशान ! रिकार्ड-तोड़ कहानी, अभी-अभी दिमाग में आई है।"

"क्या कहानी है ?" मैंने पूछा ।

"सोहनी-महीवाल ।”

“सोहनी-महीवाल ? सोहनी-महीवाल बन चुकी है।" मैंने कहा, “मैंने सुना था...”

"अजी एक बार नहीं, तीन बार बन चुकी है," सुमन ने उत्तर दिया, "और दो बार सिल्वर जुबली मना चुकी है। ऐसा गज़ब का सबजेक्ट सोचा है दादा ! दाद देता हूं-सोहनी-महीवाल ।”

"और वह भी टेक्नीकलर में... " दादा धमाल बोला ।

"और वह भी वाइडस्क्रीन पर।" सुमन ने बात बढ़ाई ।

"और मैं इसमें बड़ी चेंज करने वाला हूं। मैं इसमें एक आइडिया लगाता हूं; जिससे यह कहानी सिल्वर जुबली मनाने पर, गोल्डन जुबली मनाने पर, डायमण्ड जुबली मनाने पर भी पिक्चर हाउस से न हटे । अजी जनाब, इस पिक्चर को तो पुलिस ही सिनेमा से उतारेगी।"

"यह क्या चेंज है ?" सुमन ने श्रद्धानत दृष्टि से दादा धमाल की ओर देखते हुए पूछा ।

"सुनो," दादा बोला, "अश्विनीकुमार एक कुम्हार है । प्रेमबाला उसकी बेटी है, जिसका नाम सोहनी है। सोहनी पर ब्रजेन्द्रकुमार आशिक होता है, जिसका नाम महीवाल है। समझ गए ?

"हां, समझ गए।" मैंने कहा ।

"अब मैं इसमें एक आइडिया लगाता हूं।"

"क्या ?"

“कुम्हार का गधा।”

"कुमार का गधा !" सुमन ने आश्चर्य से पूछा।

दादा ने चमककर कहा, "हर कुम्हार के यहां एक गधा नहीं होता है क्या ? अब यह गधा हमारी कहानी में भी मौजूद है। सोहनी-महीवाल की कहानी में भी कुम्हार का एक गधा है। किन्तु कहानीकार ने इस गधे से कोई काम नहीं लिया है। मैं इस कुम्हार के गधे से पिक्चर में वह काम लूंगा, वह काम लूंगा कि लोग सोहनी-महीवाल को भूल जाएंगे ।"

"वह कैसे ?"

"उदाहरण के लिए – जब सोहनी-महीवाल का प्रेम हो जाता है तो वह उस गधे के गले में बांहें डालकर रोती है । उसे अपने प्रेम का हमराज़ बना लेती है । बेचारा बेजुबान गधा सब सुनता है, सब समझता है । पर कुछ कह नहीं सकता । प्रेमबाला अपने प्रेमी के विरह में एक गीत गाती है और टप्-टप् उसकी आँखों से आँसू बहने लगते हैं ।”

"किसकी आँखों से ? प्रेमबाला की ?"

“नहीं गधे की। वे बेजुबान आँखें; पर सहानुभूति, दर्द और प्रेम के सोज़ में डूबी हुईं।"

"एक बेजुबान जानवर की आंखें जब आंसू बरसाएंगी तो हाल में कौन ऐसा होगा जो रो न देगा ।"

सुमन रोने लगा ।

"अब मैं एक और आइडिया लगाता हूं।"

" लगाइए।" सुमन ने रोते-रोते कहा ।

" गधे को सोहनी से सहानुभूति हो जाती है । वह उसे अपनी पीठ पर सवार करके चल देता है, महीवाल से मिलाने के लिए। रास्ते में एक खन्दक आती है । वह उसे छलांग मारकर पार कर जाता है । फिर एक दीवार आती है । वह उसे भी फलांग जाता है। फिर चिनाब नदी आती है। सोहनी इधर, महीवाल उधर । बीच में गधा। हां जनाब, अब क्या कहूं? नदी का बहाव बहुत तेज़ है । लहरों का उफान तूफानी है । अब क्या हो ? भगवान का नाम लेकर गधा नदी में कूद पड़ता है और लहरों को चीरता हुआ दूसरे किनारे तक पहुंचकर सोहनी को महीवाल से मिला देता है।"

तालियां ! ज़ोर से तालियां ! !

"फिर क्या हुआ ?" मैंने आगे झुककर कहा । मुझे कहानी में बहुत दिलचस्पी उत्पन्न हो गई थी।

" फिर जनाब यह होता है कि कुम्हार को पता चल जाता है कि सोहनी गधे पर सवार होकर प्रतिदिन महीवाल से मिलने जाती है। इस पर क्रोध में आकर वह सोहनी को एक कमरे में बन्द कर देता है और गधे को डंडे मार-मारकर अधमरा कर देता है। जरा सीन देखिए ! अन्दर कमरे में प्रेमवाला रो रही है, बाहर गधा मार खा रहा है। मार खाते- खाते गधा बेहोश हो जाता है। कुम्हार उसे वहीं छोड़कर चला जाता है और सोहनी के कमरे के दरवाज़े की कुंडी लगा जाता है ।

" अब देखिए मेरा आइडिया ! रात है । गधा बेहोश है। सोहनी कमरे में बेहोश है। जनाब ! महीवाल इन्तज़ार कर रहा है। सोहनी क्रोध में आकर दरवाजा पीटती है, पर कोई दरवाजा नहीं खोलता । दरवाज़ा पीटने की आवाज़ सुनकर गधे को होश आ जाता है। वह सब समझ जाता है । पर क्या करे, क्या न करे ? बेजुबान जानवर ! और घायल !! खैर, किसी न किसी प्रकार घिसटकर कमरे की ओर बढ़ता है। दरवाजे पर पहुंचकर अपनी लम्बी गर्दन ऊंची करके अपनी थूथनी मार-मारकर बाहर से कुंडी खोलने में सफल हो जाता है। दरवाजा खुलता है। सोहनी बाहर निकलती है । कसकर गधे की पीठ पर बैठती है। गधा घायल है, उससे चला नहीं जाता। पर मालकिन के लिए तीर की तरह उड़ा जाता है और चिनाव का पाट तैरकर सोहनी को महीवाल के पास पहुंचा देता है।"

तालियां !

हम लोग प्रसन्नता से तालियां पीटने लगे ।

" अब कुम्हार को बहुत क्रोध आता है । और वह अपने गधे को किसी दूसरे कुम्हार के हाथ बेच देता है, जो किसी दूसरे गांव में रहता है ।

" दिन-भर सोहनी गधे को ढूंढ़ती है। रात को उधर चिनाब के किनारे महीवाल सोहनी का इन्तज़ार करते हुए गाता है, 'आजा, आजा, मेरी सोहनी ।'

"सोहनी गधे को तलाश करते हुए गाती है, 'आजा, आजा, मेरे गधे !'

'ड्यूएट खत्म होने पर गधा दूसरे मालिक के घर से रस्सियां तुड़ाकर ठीक वक्त पर पहुंच जाता है ।"

तालियां !

"पर सोहनी-महीवाल तो एक ट्रेजडी है !" मैंने कहा ।

"हां, ट्रेजडी तो है," दादा बोला, " अन्तिम दिन यह होता है कि कुम्हार गधे को बन्द करके ताला लगा देता है । अब सोहनी चिनाब के पार कैसे जाएगी। पर वह एक कच्चा घड़ा लेकर चल देती है । इधर गधा दीवार से टक्करें मार-मारकर दीवार तोड़ देता है। (गांव में तो कच्ची मिट्टी की दीवारें होती हैं न ! ) और बाहर निकलकर सोहनी को ढूंढ़ता है । इतने में वह छुपकर सुन लेता है कि सोहनी एक कच्चे घड़े को लेकर चिनाब पार करने गई है । वह सबकी नज़र बचाकर नदी की ओर भागता है । पर कुम्हार को पता चल जाता है । वह बन्दूक उठाकर गधे को गोली मार देता है । पर गधा, बेजुबान, बेचारा, मासूम, स्वामिभक्त गधा, गोली खाकर सख्त घायल हो जाता है, पर नदी की ओर दौड़ता जाता है ।

"उधर नदी के उस पार महीवाल सोहनी का इन्तज़ार कर रहा है और कहता है – सोहनी ! इधर सोहनी बगल में कच्चा घड़ा दबाए दौड़ती चली जा रही है । दूर पीछे गधा भागता चला आ रहा है ताकि मालकिन को कच्चे घड़े पर सवार होकर चिनाब पार करने से रोक दे । आज बादल घिर आए हैं। तूफान गरज रहा है । चिनाव ठाठें मार रहा है। महीवाल चिल्लाता है--सोहनी, सोहनी ! क्या तू भी बेवफा निकली । सोहनी चिल्लाकर कहती है-मैं कैसे बेवफाई करूंगी। मेरा प्रेम-सम्बन्ध तो बिलकुल पक्का है ।

"पर घड़ा तो कच्चा है— गधा सोचता है, और अपने शरीर की अन्तिम शक्ति प्रयोग करता हुआ नदी की ओर भागता जाता है। पर सोहनी उसके नदी पर पहुंचने से पहले ही नदी में छलांग लगा देती है । घायल गधा किनारे पर गिर जाता है। सोहनी कच्चे घड़े के साथ बह जाती है। महीवाल उसे बचाने के लिए नदी में छलांग लगा देता है । पर पानी की भयानक लहरों में दोनों प्रेम के मारे डूब जाते हैं। गधा भी अन्तिम हिचकी लेकर दम तोड़ देता है।

कहानी समाप्त करके दादा घमाल अपनी भीगी हुई आँखों को पोंछने लगा ।

सेठ भूरीमल ने कहा, "मुझे तो यह सोहनी-महीवाल की कहानी कम और गधे की ज़्यादा मालूम होती है।"

"पर कितने गज़ब की कहानी है। सच कहता हूं सेठ, मेरे तो बदन के रोंगटे खड़े हो गए ।" मैं मानता हुआ बोला ।

"प्रश्न यह है," सुमन बोला, "ऐसा अच्छा काम करनेवाला गधा कहां से मिलेगा ?"

दादा धमाल ने कहा, "कहीं दूर जाने की जरूरत नहीं है । वह गधा तो सामने बैठा है ।"

"मैं ?” मैंने आश्चर्य से पूछा ।

"हां सेठ," दादा धमाल ने कहा, "यदि तुम मेरी पिक्चर में काम कर लोगे तो मेरी किस्मत चमक उठेगी ।"

"पर मैं तो एक गधा हूं। क्या इतने बड़े-बड़े फिल्म स्टार एक गधे के साथ काम करना पसन्द करेंगे ?"

"वे दिन-रात और करते क्या हैं ?" सुमन बोला, "आप मान जाइए, उनको मनाना मेरा काम है ।"

"पर मैंने आज तक ऐक्टिंग नहीं की, " मैंने झिझकते हुए कहा, "और यह रोल तो बहुत बड़ा है। इस कहानी में तो गधा ही लगभग हीरो है ।"

" शुरू में हर हीरो एक गधा होता है," सुमन बोला, "तीन-चार पिक्चरें चौपट करने के बाद कहीं उसे अक्ल आती है। और आप कोई ऐसे-वैसे मामूली गधे नहीं हैं। पढ़े-लिखे गधे हैं। फिर बहुत ही अच्छे और दयालु गधे हैं। आपके लिए ऐक्टिंग करना क्या कठिन है !"

"अरे मालिक," दादा धमाल ने समझाया, "आप तो दो-चार दिन में ऐसे तेज हो जाएंगे कि बड़े-बड़े हीरो के कान काटने लगेंगे। 'रोल' तो वह धातु है कि पिक्चर खत्म होने से पहले एक-एक लाख करके दस के कण्ट्रेक्ट आपकी जेब में होंगे ।"

"वह कैसे ? मैं कोई फिल्म स्टार हूं ! " मैंने पूछा ।

"अजी, धड़ल्ले की पब्लिसिटी हो तो गधा भी फिल्म स्टार बन सकता है । आजकल का ज़माना ही पब्लिसिटी का है । आप काम कीजिए और अपनी पब्लिसिटी के लिए दो लाख रुपये पास कीजिए। फिर देखिए क्या रंग जमाता हूं।" सुमन बोला ।

"मुझे स्वीकार है ।" मैं बेधड़क होकर बोला ।

बन जाना गधे का बम्बई में हीरो, और काम करना फिल्म में संग प्रेमबाला के, और करना बेवफाई प्रेमबाला का, और ब्यान गधे के प्रेम के परिणाम का।

पहले दिन के 'रश प्रिण्ट' देखकर प्रेमबाला मेरे गले से लग गई। बोली, "क्या गज़ब के एक्सप्रेशन्स दिए हैं तुमने । दिलीपकुमार को मात कर दिया ।"

"वाकई ?” मैंने बहुत प्रसन्न होकर पूछा ।

"और वह नदी के किनारे तुम्हारा लड़खड़ाकर चलना - जब महीवाल मुझसे मिलने के लिए आया था। उस सीन में तो तुमने कमाल ही कर दिया। बिलकुल चार्ली चैपलिन की-सी ऐक्टिंग है।"

"नहीं, यह कैसे हो सकता है ! " मैंने धीमे स्वर में प्रतिरोध किया । किन्तु मेरा हृदय अन्दर ही अन्दर बल्लियों उछल रहा था ।

"सच कहती हूं और वह......वह तुम्हारा क्लोज-अप किस कयामत का है, जिसमें कुम्हार की नजर बचाकर तेजी से मेरे पास आ जाते हो और मुझे अपनी पीठ पर सवार कर लेते हो। बिलकुल देवानन्द की सी चंचलता है तुममें। मुझे मालूम नहीं था कि इस गधे की खाल में इतना बड़ा ऐक्टर छिपा बैठा है ।"

फिर वह विचित्र ढंग से हंसकर कहने लगी, "कहीं ऐसा न हो कि फिल्म के समाप्त होते-होते मैं महीवाल के बजाय तुमसे प्रेम करने लगूं ।"

इतना कहकर वह जोर से हंसी। अपनी वाचालता पर स्वयं लज्जित भी हुई। फिर उसने मेरी ओर बहुत विचित्र दृष्टि से देखा और दूसरे ही क्षण लजाकर मुंह फेर लिया। मैं भी उसकी हंसी में शामिल हो गया। जैसे यह सब एक दिलचस्प मज़ाक था । किन्तु उसकी विचित्र-सी दृष्टि देखकर मेरा दिल ज़ोर-जोर से धक् धक् करने लगा था ।

उसी शाम संयोगवश वह हमारे घर आ गई । बहुत परेशान और उदास प्रतीत होती थी। जब मैंने पूछा तो स्पष्ट मना कर दिया कि कोई बात नहीं है । किन्तु जब मेरी ज़िद बढ़ती ही गई तो बोली, "क्या बताऊं डार्लिंग ! वह मेरा एक केस है इन्कम टैक्स का उसके हिसाब-किताब में गड़बड़ हो गई और मुझपर इन्कमटैक्स वालों ने दो लाख का जुर्माना कर दिया। कल वह जुर्माना भरना है और मेरे बैंक में इस समय केवल पचास हज़ार रुपये हैं। समझ में नहीं आता, क्या करूं।"

मैंने कहा, "तो इसमें क्या बात है ? डेढ़ लाख मैं दे दूंगा ।"

"न, न," वह सिर हिलाकर बोली, "तुमसे मैं न लूंगी। मैंने दस दिन तक तुम्हारी पिक्चर में फ्री काम करने का वायदा किया है। मैं हरगिज़- हरगिज़ तुमसे यह रकम नहीं लूंगी और मैं अपने वायदे से नहीं फिरूंगी।"

"हमारे होते हुए तुम जेल जाओगी, " मैंने साहसपूर्ण शब्दों में कहा, "यह कैसे हो सकता है । यह डेढ़ लाख का चेक तो तुम्हें लेना ही पड़ेगा ।"

वह इन्कार करती रही, मैं जिद करता रहा। अन्त में मेरी ज़िद पर वह मान गई। पर इस शर्त के साथ कि वह यह रकम एक महीने में मुझे लौटा देगी। मैं मान गया। इसपर उसने चेक ले लिया । फिर मैंने थोड़ी-सी व्हिस्की पी और उसने थोड़ी-सी शेरी ली। फिर वह कुछ देर तक मेरे रेडियोग्राम पर रिकार्ड बजाती रही। फिर बोली "तुम्हें नाचना आता है ?"

मैंने हिनहिनाकर बहा, "सेवक तो केवल दुलत्ती झाड़ सकता है ।"

"गंवार मत बनो," वह मुझे डांटकर बोली, "यह तुमने अपनी क्या सूरत बना रखी है। हर समय गले में झोला डाले घूमते हो। कोट- पतलून पहना करो, टाई लगाया करो । आयो, तुम्हें डान्स सिखाऊं । बढ़िया पार्टियों में उठने-बैठने के लिए पश्चिमी डान्स से परिचित होना आवश्यक है ।"

यह कहकर उसने 'स्लो फाक्स ट्रॉट' का एक रिकार्ड लगा दिया और गलीचे के फर्श पर मुझे डान्स सिखाने लगी । वन-टू-थ्री । वह ताल देकर चुटकी बजाती थी और मैं नाचता जाता था। समय कैसे बीत गया— कुछ पता ही नहीं चला। मैं यह भी भूल गया कि मैं भी एक गधा हूं। उन क्षणों में मैंने अपने-आपको एक इन्सान के समान अनुभव किया ।

सुन्दर खुला कमरा, गुलगुले गलीचे, रेडियोग्राम बजता हुआ । नीली- नीली, धीमी-धीमी झिलमिलाती रोशनी । एक सुन्दर, प्यारा, गुलाबी चेहरा । प्रसन्नताओं की किरणें बरसाता हुआ वातावरण | यह है जीवन ! और इस जीवन से दुनिया के करोड़ों गधे कितनी दूर हैं !

अचानक प्रेमबाला ने चौंककर अपनी घड़ी देखी। और घबराकर वोली, "उफ ! नौ बज गए । घर पर मां जी इन्तज़ार करती होंगी। अब मैं जाती हूं। कल स्टूडियो में मिलेंगे। टाटा ! "

जल्दी से मेरे कान पर झुकी, एक चुम्बन दिया और घूमकर तेजी से बाहर चली गई।

इन्हीं दस दिनों की शूटिंग में एक विचित्र घटना और घटी। कुम्हार की गली का सेट लगा हुआ था । वर्तन चाक पर घुमाए जा रहे थे । कुम्हार और कुम्हारिन अपने कार्य में व्यस्त ! बच्चे खेलते हुए और शोर मचाते हुए । लाइट्समैन कभी प्रकाश बुझाते हुए, कभी जलाते हुए । विचित्र गहमा-गहमी का दृश्य प्रस्तुत कर रहे थे ।

एक ओर वृक्षों का झुंड लगाया गया । उसके नीचे कई गधे घास में मुंह मार रहे थे । मैंने दादा धमाल से पूछा, "इन गधों को क्यों बुलाया है ?"

वह बोला, “कुम्हारों की गली का सीन हो और उसमें गधे न हों, यह कैसे हो सकता है ?"

"मैं इन गधों के साथ काम नहीं करूंगा।" मैंने क्रोध से चिल्लाकर कहा ।

"नहीं सेठ, यह तो एक्स्ट्रा गधे हैं। भला उनका आपका क्या मुकाबला ! यह तो सीन की शोभा बढ़ाने के लिए मंगाए गए हैं। इनको तो गधा कहना भी गधे शब्द का अनादर करना है । आप तो गधे हैं सेठ ! पर ये तो बाज़ारी, आवारा टट्टू हैं । कहां आप जैसा गधा, कहां ये टट्टू ? कहां राजा भोज, कहां गंगू तेली ।"

सुमन शीघ्रता से बोला, “आपका काम केवल बड़े-बड़े फिल्म स्टारों के साथ होगा । अश्विनीकुमार के साथ, ब्रजेन्द्रकुमार के साथ, प्रेमबाला के साथ ।"

"हां, यह ठीक है।" मैंने अपना क्रोध दूर करते हुए कहा ।

दादा धमाल मेरे बिलकुल समीप आकर बोला, “अब तो मैंने स्क्रिप्ट बिलकुल बदल दिया है। अब तो हर सीन में जहां प्रेमबाला आई है वहां आपका काम भी रखा है ।"

"शाबाश !" मैंने प्रसन्न होकर कहा ।

थोड़ी देर बाद मुझसे रहा न गया। मैं उन गधों के निकट चला गया। निकट जाते ही मैंने उस पश्चिमी गधी को पहचान लिया जिससे मैंने जीवन में पहली बार, जोजफ के झोंपड़े के बाहर, प्रेम दर्शाया था । किन्तु अब उस गधी का रंग उड़ा उड़ा-सा था । कान झुके हुए, पेट अन्दर पिचका हुआ और पसलियां ? एक-एक पसली खाल के अन्दर से नज़र आ रही थी जैसे सदियों से उसने पेट भर घास न खाई हो ।

मैंने उसके निकट जाकर कहा, "ऐ चन्द्रमुखी, दृष्टि उठाकर देख, कौन तेरे सामने खड़ा है ।"

वह चौंक गई । उसने कई क्षण मुझे घूमकर देखा । किन्तु मुझे पहचान न सकी ।

"तुम कौन हो ?" वह परेशान होकर बोली ।

"मैं वही पुराना प्रेमी हूं जिसके प्रेम को तुमने वहीं जोजफ के झोंपड़े के बाहर ठुकरा दिया था।"

उसकी आंखों की पुतलियां फैल गईं। वह आश्चर्य से मेरी ओर ताकती रही । अन्त में रुक-रुककर बोली, "यहां तुम क्या कर रहे हो ? क्या हमारे साथ एक्स्ट्रा गधों में लाए गए हो ?"

"जी नहीं । जिस फिल्म कंपनी में आपको काम करने के लिए बुलाया गया है, मैं उसका प्रोड्यूसर हूं।"

"फिल्म प्रोड्यूसर !” वह आश्चर्य से चीखी, "एक गधा !”

"जिस गधे के पास कुछ लाख रुपये हों वह फौरन प्रोड्यूसर बन सकता है। प्रोड्यूसर बनने के लिए दूसरी किसी क्वालिफिकेशन की आवश्यकता नहीं है, मेम साहब ! वकील को वकालत की परीक्षा पास करनी पड़ती है, डाक्टर को डाक्टरी की, इंजीनियर को इंजीनियरिंग की; किन्तु प्रोड्यूसर को किसी क्वालिफिकेशन की आवश्यकता नहीं, केवल रुपया चाहिए ।"

वह आश्चर्य से मेरी ओर देखती रह गई ।

"तुमने इतना रुपया कहां से कमाया ?"

"सट्टे से ।"

"कितना ?"

" बत्तीस लाख ।"

" बत्तीस लाख ! बाप रे !!" वह सिर से पांव तक मुझे देखने लगी ।

मेरे ऊपर शार्क स्किन का बढ़िया कोट था और नीचे चार टांगों वाली पतलून थी । गले में बढ़िया टाई थी। मेरे बाल कोमल और सुगन्ध से भरे थे ।

उसने मेरी तरफ आकर मुझे सूंघा और फिर आश्चर्यचकित स्वर में बोली, "काश ! मैंने तुम्हारे प्रेम को स्वीकार कर लिया होता !" मैं चुप रहा।

"तो आज मेरी यह दशा न हुई होती।" वह कमजोर स्वर में बोली । फिर मेरी ओर अपनी बड़ी-बड़ी आँखें घुमाकर बोली, “क्या तुम मुझसे अब शादी नहीं कर सकते ?"

"वह समय गुज़र गया, मिस साहिबा !" मैंने गर्व से तनकर कहा, "उस समय मैं निर्धन था। आज मैं स्वयं एक बड़ा फिल्म स्टार हूं। 'फैन- फेयर' और 'न्यू स्क्रीन' में मेरे रंगीन चित्र छपते हैं । अब मैं अपने बराबर वालों से शादी करूंगा। तुमसे क्यों करूंगा ?"

इतना कहकर मैं बड़ी शान से वहां से घूम गया और डायरेक्टर के पास चला आया । उससे कहा, "वह एक गधी है, एक्स्ट्रा गधों में सुनहरे बालों वाली । वह मुझे कई दिनों से भूखी मालूम होती है। उसके लिए घास का प्रबंध करो। और जब तक उसका काम रहे, उसे घास खिलाते रहो ।"

"कोई पुरानी याद...." दादा धमाल ने मुझे आँख मारकर पूछा ।

"हां, पर बेकार और बुझी हुई-सी ।"

सुमन बोला, "अंगार बुझ जाता है तो राख हो जाता है । सौन्दर्य उड़ जाए तो केवल इच्छा शेष रह जाती है ।"

इतने में प्रेमबाला मटकती हुई मेरे पास आ गई। बोली, "किस गधी से बातें कर रहे थे ?"

"कोई नहीं । एक एक्स्ट्रा है ।"

किन्तु वह ज़रा क्रोध से बोली, "पर मैंने खुद देखा कि तुम उसके समीप खड़े होकर मीठी-मीठी बातें कर रहे थे ।"

"तुम्हें गलतफहमी हो रही है जानी ! वह तो एक एक्स्ट्रा है । उससे मैं क्यों मीठी-मीठी बातें करने लगा ! बस ऐसे ही मुझे वह बेचारी बड़ी भूखी और त्रस्त मालूम हुई, इसलिए मैंने कह दिया कि उसे घास-वास खिला दो ।"

“उसे बिलकुल घास नहीं डाली जाएगी," प्रेमबाला क्रोध से भड़ककर बोली, "वह इसी समय सेट से बाहर निकाली जाएगी; वर्ना मैं पिक्चर में काम नहीं करूंगी।"

वह अब कुर्सी पर मुंह मोड़कर बैठ गई। मैंने उसे मनाने का बहुत प्रयत्न किया । किन्तु वह किसी प्रकार राजी न हुई । विवश होकर मुझे उस गधी को सेट से बाहर निकाल देने का हुक्म देना पड़ा । उसके जाते ही प्रेमबाला का मूड ठीक हो गया और वह लहक-लहक- कर गाने लगी :

"बैरन सोतिया .."

वह इस समय इतनी प्यारी, शोख और चंचल मालूम हो रही थी कि मेरा जी चाहता था कि उसके कदमों में गिरकर लोट लगाऊं ।

दस दिन के बाद डिस्ट्रीब्यूटरों से छः लाख रुपये आने वाले थे, किन्तु नहीं आए | किस्सा यह हुआ कि जानी भाई की लैबोरेटरी में टेकनीकलर फिल्म का कोई प्रबंध नहीं था। टेकनीकलर प्रिण्ट तो केवल लन्दन में निकलते हैं या अमेरिका में ।

बहुत सोच-विचार के बाद सुमन को प्रिण्ट निकलवाने के लिए लन्दन भेजा गया। विचार यह था कि वह पंद्रह-बीस दिन में वापस आ जाएगा । किन्तु कुछ ऐसी टेक्नीकल कठिनाइयां पेश आईं, जिन्हें दूर करने के लिए सुमन को लन्दन में दो सप्ताह के बजाय चार सप्ताह रहना पड़ा। और फिर इन्हीं टेक्नीकल कठिनाइयों को सुलझाने के लिए उसे लन्दन से पेरिस और पेरिस से रोम जाना पड़ा। और मामला टलता गया ।

शूटिंग रोक देने से प्रेमबाला बहुत बोर होने लगी थी। एक दिन उसने मुझे परामर्श दिया :

"तुम शूटिंग क्यों रोके बैठे हो ? आखिर एक दिन प्रिण्ट यूरोप से बन- कर आ ही जाएंगे। एक दिन तुम्हें डिस्ट्रीब्यूटरों के छः लाख रुपये भी मिल जाएंगे। पर तुम हाथ पर हाथ धरे क्यों बैठे हो ? समय क्यों नष्ट कर रहे हो ? हिम्मत से काम लेकर शुरू कर दो। तुम्हारे पास पैसा न हो तो मुझसे दो-चार-दस लाख ले लो।"

मैं लज्जा से पानी-पानी हो गया और उसी समय कार्य शुरू कर देने का फैसला कर लिया। हमने सुमन को रोम में रोक दिया था। विचार यह था कि दस दिन की शूटिंग और हो जाए तो उसके प्रिण्ट भी बनवाने यूरोप भेज दें ।

दुर्भाग्य से पहले दस दिनों के प्रिण्ट खराब निकले । इसलिए दस दिनों तक लगातार शूटिंग करनी पड़ी। इस बीच सब लोगों ने तकाजा शुरू कर दिया और हमें वायदे के अनुसार सब लोगों को रुपया देना पड़ा ।

फिर एक दिन अश्विनीकुमार का प्रेमबाला से झगड़ा हो गया और मैंने क्रोध में आकर अश्विनीकुमार को चुकता कर दिया। और उसके स्थान पर रूपकुमार को लेकर फिर बीस दिन की शूटिंग की। सात लाख इसमें खुल गए । तात्पर्य यह कि अगले सात महीने में मेरा पूरा पटरा हो गया । तीस के तीस लाख पिक्चर में गुल हो गए, और पिक्चर अभी अपूर्ण थी। डिस्ट्रीब्यूटरों से एक धेला तक नहीं मिला । सुमन अब न्यूयार्क में था ।

मैंने सेठ भूरीमल से रुपये मांगे । वह साफ मुकर गया ।

बोला, "मेरे विचार में गुरु महाराज, आापको फिल्म का काम रास नहीं आया । मेरी समझ में तो अब आपको सीधा हिमालय चला जाना चाहिए।"

मैंने दादा धमाल से बात की तो वह बोला, "सेठ क्या बताऊं, कितना लज्जित हूं | जाने कैसी घड़ी थी वह मनहूस, जब हमने पिक्चर शुरू की थी । ले-देकर मेरे पास यह छकड़ा गाड़ी है। चाहे तो इसे ले लो। पांच- सात सौ में तो बिक ही जाएगी।"

“पांच-सात सौ से क्या होगा ?" मैंने पूछा ।

"हां यह तो ठीक है," वह बोला, "मैंने अपनी कोशिश पूरी कर डाली । इतने समय किसी दूसरी जगह काम किया होता तो अब तक दो पिक्चरें खत्म कर डालता । अब भी कुछ नहीं बिगड़ा है ! सेठ, यदि तुम अब भी कहीं से तीन लाख का प्रबंध कर दो तो मैं तीन लाख में ही पिक्चर खत्म कर दूंगा । पक्का वायदा करता हूं। तीन लाख के बाद सारा पैसा डिस्ट्रीब्यूटर से आ जाएगा और अपनी जेब से एक धेला नहीं जाएगा ।"

किन्तु तीन लाख रुपये कौन देगा ?

दो-तीन दिन मैं इसी परेशानी में घूमता रहा और सोचता रहा । अन्त में एक शाम मैंने निश्चय किया, मुझे प्रेमबाला के यहां जाना चाहिए और उससे तीन लाख का ऋण मांगना चाहिए। देखा जाए तो मेरे रुपये उसपर चाहिए भी । अपने कण्ट्रेक्ट की रकम के अतिरिक्त वह दो लाख रुपये अधिक ले चुकी है । यदि वह दो लाख रुपये वापस कर दे और एक लाख का ऋण दे दे तो फिर बेड़ा पार हो सकता है ।

यही सोचकर एक शाम को हिम्मत करके उसके बंगले में चला गया । ड्राइंग रूम के अन्दर जाते ही मुझे धक्का-सा लगा। मैंने देखा कि वह अश्विनीकुमार की गोद में बैठी ड्रिंक कर रही है । वही अश्विनीकुमार जिसे मैंने प्रेमबाला की खातिर पिक्चर से निकाल दिया था और उसका सारा हिसाब चुकता कर दिया था। इस वक्त वह उसी अश्विनीकुमार की गोद में बैठी थी ।

मुझे देखते ही वह घबराकर उठ खड़ी हुई । जरा कठोर होकर बोली, "ऐसे बिना बुलाए, मुंह उठाए अन्दर क्यों चले आए ?"

मैंने कहा, "इस समय एक ज़रूरी काम से आया हूं । इस समय तक पिक्चर में मेरे तीस लाख रुपये खर्च हो चुके हैं । अब यदि तुम तीन लाख दे दो तो मेरी पिक्चर पूरी हो सकती है।"

"तीन लाख मैं दे दूं ?" वह आश्चर्य से चिल्लाई । मेरे निकट आकर बोली, "तुम पागल तो नहीं हो ।"

"पागल तो नहीं था, पर बनाया गया हूं। मैं तुमसे कुछ अधिक नहीं मांग रहा हूं | दो लाख का ऋण तो मेरा तुमपर है ।"

"क्या ? दो लाख का ऋण ?" वह जोर से चीखी।

"डेढ़ लाख तो तुमने इन्कमटैक्स देने के सिलसिले में लिया था और पचास हजार एक नई गाड़ी खरीदने के लिए लिया था। याद आया डार्लिंग ?"

"डार्लिंग ! - मैं किसीकी डार्लिंग नहीं हूं।" प्रेमबाला तमककर बोली, "तुमने सुना अश्विनी, यह गघा मुझे डार्लिंग कहता है ।"

मैंने कड़वे स्वर में कहा, "कल जब तक मेरी जेब में तीस लाख रुपया था, मैं सबका डार्लिंग था । आज में एक गधा हूं।"

"गेट आउट, यू डर्टी डंकी !"

वह दोनों हाथों से मुझे तमाचे मारने लगी। मुझे भी क्रोध आ गया । मैंने कहा, "बस प्रेमबाला, मैं भी अब यहां से वापस नहीं जाऊंगा । और जाऊंगा तो तभी जाऊंगा जब तुम मेरा रुपया लौटा दोगी ।"

"नहीं जाइएगा ?" वह बोली ।

"नहीं।"

"नहीं ?"

"नहीं।" मैंने दृढ़ता से उत्तर दिया ।

प्रेमबाला ने एक छड़ी उठा ली और अश्विनी से बोली, "तुम ड्राइंग रूम का दरवाजा अन्दर से बन्द करो और दूसरी छड़ी भी उठा लो ।”

+++

पूना जाने वाली लम्बी, अकेली, उदास सड़क पर एक गधा चला जा रहा था । उसने देखा कि सड़क के किनारे एक बैल मरा पड़ा है और उसके सिरहाने एक स्त्री और एक पुरुष, बैठे धाड़े मार-मारकर रो रहे हैं।

"क्या हुआ ?" गधे ने रुककर पूछा ।

"हमारा बैल मर गया ।" पुरुष ने दुःख से सिसकते हुए कहा ।

"तो दूसरा बैल खरीद लो ।" गधे ने सुझाव दिया ।

"कोई दूसरा बैल इसका स्थान नहीं ले सकता । हमने इसे बड़ी मुश्किल से सधाया है। हम इसकी आँखों पर पट्टी बांध देते थे और किसानों की भीड़ इकट्ठी करके इस बैल के द्वारा उन लोगों के भाग्य का हाल बताते थे ।" स्त्री ने

रोते हुए अपनी विपदा सुनाई।

गधे ने कहा, "वह जमाना लद गया जब अन्धे बैल किसानों को उनके भाग्य का हाल बताते थे। और निर्धन किसान एक अन्धे बैल की तरह अपने भाग्य के कोल्हू के चारों तरफ घूमते जाते थे। यह जमाना आँखें खोलकर काम करने का है । मुझे अपने किसान मित्रों में ले चलो। मैं उन्हें अखबार पढ़कर सुनाऊंगा और ज़िन्दगी की सही तकदीर बताऊंगा, जो सट्टे से नहीं सच्ची मेहनत से पैदा होती है ।

धरती विशाल थी और आसमान सीमाहीन । और अब वे तीनों एक साथ-साथ चल रहे थे – एक पुरुष, एक गधा, स्त्री ! जो पुरुष स्वामी है, स्त्री जो मां है, गधा जो जीवन की मेहनत और मासूमियत है !

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