एक छोटी महिला : फ़्रेंज़ काफ़्का

वह एक छोटी महिला है; स्वाभाविक रूप से पतली, अच्छी सुसज्जित, जब भी मैं उससे मिलता हूँ, वह हमेशा उसी पोशाक में होती है, जो भूरे-पीले कपड़ों की बनी है, इसका रंग लकड़ी से मिलता-जुलता है। यह व्यवस्थित तरीके से कटा हुआ है तथा इस पर कपड़े के रंग के ही बटन की तरह दिखनेवाले फुदने लगे हैं, वह कभी टोप नहीं पहनती तथा उसके बाल सुलझे हुए हैं, लेकिन ढीले-ढाले ढंग से बँधे हुए हैं। यद्यपि वह पूर्ण रूप से सुसज्जित है, लेकिन वह फुरतीली है तथा तेजी से चलती है, वास्तव में वह अपेक्षाकृत कुछ ज्यादा ही तेजी से चलती है, उसे अपनी कमर पर हाथ रखकर तथा अपने ऊपरी भाग को अचानक एक ओर आश्चर्यजनक रूप से मोड़ना बहुत पसंद है। उसके हाथ के प्रभाव को महसूस करके मुझे ऐसा लगा कि उसके हाथ में उँगलियों के बीच जितना स्पष्ट अंतर है वह मैंने पहले कभी नहीं देखा, फिर भी उसके हाथों में कुछ संरचनात्मक विचित्रता नहीं है, ये पूरी तरह से सामान्य हैं।

यह छोटी महिला मुझसे खुश नहीं रहती है, उसे हमेशा मुझमें कुछ-न-कुछ कमी दिखाई देती है । मैं हमेशा उसके साथ कुछ-न-कुछ गलत करता रहा हूँ, मैं हर कदम पर उसे नाराज करता रहा हूँ; अगर जीवन को छोटे-छोटे टुकड़ों में विभाजित किया जाए तथा इसके सभी टुकड़ों का अलग-अलग मूल्यांकन किया जाए तो मेरे जीवन का हर बचा टुकड़ा निश्चित रूप से उसके लिए एक अपमान होगा। कभी-कभी मुझे यह आश्चर्य होता है कि मैं उसके साथ ऐसा क्यों करता हूँ; हो सकता है कि मेरे से संबंधित हर चीजें उसके सौंदर्य सम्मान, उसकी न्याय भावना, उसकी आदतों, परंपराओ, आशाओं आदि को आहत करती हैं । मेरा और उसका स्वभाव पूर्णतः असंगत है, लेकिन इससे उसे इतनी परेशानी क्यों होती है ? हमारे बीच ऐसा कोई संबंध नहीं है, जो उसे मेरी तरफ से परेशान होने को विवश करे। उसे सिर्फ यह करना चाहिए कि मुझे आगंतुक मानकर सम्मान करना चाहिए। मैं एक आगंतुक तो हूँ ही और इसमें मुझे कोई बुराई भी नजर नहीं आती, बल्कि मुझे इसका स्वागत भी करना चाहिए। उसे सिर्फ मेरे अस्तित्व को नजरअंदाज करना चाहिए जो कि मैंने कभी भी उसका ध्यान खींचने की कभी कोशिश नहीं की, और न ही कभी करूँगा और स्पष्टतः उसकी पीड़ा का अंत हो जाएगा। मैं अपने बारे में नहीं सोच रहा हूँ कि मैं सिर्फ इस कारण छोड़ रहा हूँ, क्योंकि मुझे उसका रवैया निश्चय ही चिड़चिड़ा देनेवाला लगता है, तथा मैं इस कारण भी इस बात की अनदेखी करता हूँ, क्योंकि मेरी परेशानी उसकी पीड़ा के मुकाबले कुछ भी नहीं है । उसी तरह मैं इस बात से भी भली-भाँति परिचित हूँ कि उसकी परेशानी में मेरे प्रति कोई सहानुभूति नहीं है, वह मुझमें कोई वास्तविक सुधार लाना नहीं चाहती। इसके अलावा उसे मुझसे जो भी परेशानी है वह इस तरह की नहीं है जिससे कि मेरे विकास में कोई बाधा आए ।

फिर भी मेरे विकास की उसे कोई परवाह भी नहीं है, उसे तो बस अपनी किसी वस्तु में व्यक्तिगत रुचियों से ही सरोकार होता है, वे रुचियाँ ये हैं कि उन्हें मेरे द्वारा दी गई अपनी पीड़ा का बदला लेना तथा मेरे द्वारा भविष्य में इस प्रकार की किसी आशंका को रोकना । मैंने तो एक बार पहले ही यह संकेत देने की कोशिश की कि भविष्य में उनके निरंतर आक्रोश के कारण को बंद करने जा रहा हूँ, लेकिन मेरी कोशिशों से ही उसे इतना गुस्सा आया कि भविष्य में मैं वह कभी भी नहीं दुहराऊँगा ।

मैं भी एक तरह की जिम्मेदारी महसूस करता हूँ । हम दो अजनबी, जैसे कि मैं और वह अजनबी महिला हैं, और जो भी हो, सच्चाई यह है कि हमारे बीच किसी प्रकार के संबंध का एक ही कारण है और वह है, वह आक्रोश, जो मैं उसे देता हूँ बल्कि वह आक्रोश देने के लिए वह मुझे उकसाती है, मुझे उससे होनेवाली स्पष्ट शारीरिक पीड़ा के प्रति उदासीन नहीं होना चाहिए । प्रायः बार-बार मुझे यह सूचना मिलती है कि वह प्रातः पीड़ा से पीड़ित है, सोई नहीं है या सिर दर्द की वजह से काम करने में असमर्थ है। इसका परिवार इस वजह से परेशान रहता है तथा उन्हें यह समझ नहीं आता है कि उसकी परेशानी का कारण क्या है । केवल मुझे ही यह पता है कि उसकी परेशानी निरंतर है और वह मेरी वजह से है । यह सच है कि उसके परिवार की तरह मैं उसके लिए चिंतित नहीं हूँ। वह मजबूत है। कोई भी व्यक्ति जिसके भीतर यह तीव्र भावना होती है वह संभवतः इसके प्रभावों को भी झेलने में समर्थ होता है। मुझे आशंका है कि उसकी पीड़ाएँ, कम-से-कम कुछेक, मेरे ऊपर सार्वजनिक आशंका उत्पन्न करने के लिए एक दिखावा मात्र हैं। वह गर्व के तौर पर यह कहती है कि मेरा अस्तित्व मात्र ही उसकी पीड़ा का कारण है। मेरे विरुद्ध लोगों से अपील को वह आत्म-सम्मान के लिए एक चुनौती के रूप में देखती है। मेरे प्रति घृणा, बल्कि निरंतर सक्रिय घृणा ही उसे हमेशा मेरे बारे में सोचने को विवश करती है । उसकी इस पीड़ा पर सार्वजनिक चर्चा करना लज्जाजनक है। लेकिन किसी ऐसी चीज के बारे में बिल्कुल खामोश रहना जो उसे निरंतर परेशान करती है, वह भी बहुत कठिन है। इसलिए स्त्रीजनित चतुराई के साथ वह मध्य मार्ग चुनती है । वह खामोश तो रहती है पर विषय पर सार्वजनिक ध्यान आकर्षित करने के लिए वह गुप्त वेदना के सभी बाहरी संकेतों को छुपा जाती है। उसे यह उम्मीद थी कि एक बार यदि सार्वजनिक आकर्षण मुझ पर केंद्रित हो जाए तो मेरे विरुद्ध सामान्य सार्वजनिक विरोध उत्पन्न होगा जो अपनी पूरी शक्ति के साथ उसकी निजी कमजोर घृणा से क हीं अधिक शीघ्रता एवं प्रभावशाली ढंग से मेरी निंदा करेगा । तब वह पृष्ठभूमि में चली जाएगी और राहत की साँस लेगी। सही में यदि ऐसा है तो वह स्वयं को धोखा दे रही है। सार्वजनिक मत उसकी भूमिका अदा नहीं कर सकती। लोग मुझे कभी भी इतना आपत्तिजनक नहीं समझेंगे, यहाँ तक कि अपनी शक्तिशाली सूक्ष्म दृष्टि का उपयोग करके भी । मैं ऐसा भी बिल्कुल बेकार नहीं हूँ जैसा वह समझती है। मैं कोई गर्व करना नहीं चाहता विशेषकर उस संबंध के विषय में। यदि मैं उपयोगी गुणों के कारण महत्त्वपूर्ण नहीं हूँ, तो निश्चित रूप से मैं उनकी कमी की वजह से भी महत्त्वपूर्ण नहीं हूँ । सिर्फ उसे या उसकी सफेद आँखों में मैं ऐसा प्रतीत होता हूँ, वह किसी को भी यह विश्वास नहीं दिला पाएगी। इस मामले में मैं बिल्कुल आश्वस्त हूँ, क्या मैं आश्वस्त हो सकता हूँ? नहीं बिल्कुल भी नहीं; क्योंकि यदि यह सबको पता चल जाता है कि मेरे आचरण की वजह से वह सकारात्मक रूप से बीमार है तो कुछ लोग उसके बारे में मुझे सूचनाएँ देते रहते, उनको यह पता चलाना मुश्किल नहीं है; या कम-से-कम वे यह प्रभाव देंगे कि उन्हें सब कुछ मालूम है, लोगों को मुझसे यह प्रश्न करना चाहिए कि मैं बेचारी छोटी महिला को क्यों परेशान करता हूँ, तथा क्या मैं उसे इतना परेशान करना चाहता हूँ कि वह मर जाए, या मुझमें इतनी समझ कब आएगी तथा शालीन मानवीय संवेदनाएँ मुझे उसके साथ ऐसा व्यवहार करने से रोकेंगी, यदि लोग ऐसे प्रश्न करेंगे तो मेरे लिए उनके उत्तर देना मुश्किल होगा। क्या मुझे स्पष्ट रूप से यह स्वीकार कर लेना चाहिए कि मैं बीमारी के इन लक्षणों में विश्वास नहीं करता तथा ऐसा प्रभाव पैदा करना चाहिए कि मैं एक ऐसा इनसान हूँ, जो स्वयं को आरोपों से बचाने के लिए दूसरों पर आरोप लगाता है, वह भी अत्यंत धृष्टता के साथ ? और मैं कैसे यह खुले तौर पर कह सकता हूँ कि यद्यपि मुझे यह विश्वास है कि वह सचमुच में बीमार थी, पर मुझे उसके प्रति थोड़ी सी सहानुभूति नहीं है, क्योंकि वह एक अपरिचित है तथा उसके और मेरे बीच किसी भी प्रकार का संबंध एक तरफा तथा उसकी स्वयं की कृति है। मैं यह नहीं मानता कि लोग मुझ पर विश्वास नहीं करेंगे; उनकी इसकी गहराई में जाने में रुचि नहीं होगी, वे तो सिर्फ मेरे इस कमजोर, बीमार महिला के विषय में दिए उत्तरों को नोट कर लेंगे तथा वह मेरे लिए थोड़ा ही होगा । मेरा कोई भी उत्तर इस प्रकार के मामलों को आवश्यक रूप से प्रेम-प्रसंग के रूप में देखने में लोगों की असमर्थता के विरुद्ध होगा, यद्यपि यह बिल्कुल स्पष्ट है कि ऐसे किसी संबंध का कोई अस्तित्व नहीं है, यदि ऐसा हो भी तो यह ओर से होगा न कि उसकी ओर से। मुझे उस छोटी महिला के निर्णय की शीघ्रता तथा निष्कर्ष निकालने की उसकी निरंतर दृढ़ता की प्रशंसा करनी चाहिए, पर ऐसा तब होता जब वह अपने इन गुणों को मेरे विरुद्ध अस्त्र के रूप में प्रयोग नहीं करती। वह मेरे प्रति तनिक मात्र दोस्ती नहीं दरशाती; इस मामले में वह ईमानदार एवं सच्ची है, तथा यही मेरी अंतिम आशा थी, क्योंकि इस बात की थोड़ी भी आशंका नहीं थी कि कभी भी मेरे प्रति उसका व्यवहार बदलेगा। लेकिन सार्वजनिक मत, जो ऐसे मामलों में पूर्णतः असंवेदनशील होता है, वह पक्षपातपूर्ण होगा तथा मेरा त्याग होगा।

इसलिए मेरे लिए एकमात्र चीज यह थी कि मैं समय के साथ बदल जाऊँ, इससे पहले कि लोग इस मामले में हस्तक्षेप करें, ताकि उस छोटी महिला की मेरे प्रति घृणा कम हो सके । वास्तव में, मैंने कई बार स्वयं से पूछा है कि क्या मैं अपनी वर्तमान सोच से इतना खुश हूँ कि मैं बदलना नहीं चाहता था, मैं बदलने की कोशिश नहीं कर सका । यद्यपि मुझे यह करना चाहिए, इसलिए नहीं कि यह जरूरी है, बल्कि उस छोटी महिला के मेरे प्रति क्रोध को शांत करने के लिए। मैंने ईमानदारी से यह कोशिश की है, इसके लिए कुछ परेशानियाँ भी उठाई, यहाँ तक कि मुझे फायदा भी हुआ। यह एक प्रकार का ध्यान भंग भी था। कुछ परिवर्तनों के परिणाम भी आए जो बिल्कुल स्पष्ट होने में समय लगा, मैं उस ओर उसका ध्यान आकृष्ट करना नहीं चाहता । उस तरह की चीजों का पता उसे मुझसे जल्दी लग जाता है। मेरे दिमाग में क्या चल रहा है इसका पता भी उसे मेरी अभिव्यक्ति से पहले चल जाता है। लेकिन मेरी कोशिशों को कोई सफलता नहीं मिली । यह कैसे इस तरह संभवत: कर सकता था । उसकी मेरे प्रति घृणा जो मुझे मालूम है, बुनियादी है। उसे कोई भी खत्म नहीं कर सकता, यहाँ तक कि मैं स्वयं खत्म हो जाऊँ तब भी । अगर उसे पता चल जाए कि मैंने आत्महत्या कर ली है तो उस पर क्रोध छा जाएगा।

अब तो मैं यह कल्पना भी नहीं कर सकता कि इतनी तीक्ष्ण बुद्धिवाली महिला मेरी तरह अपने द्वारा की गई काररवाइयों की निरर्थकता एवं उसकी आवश्यकताओं के अनुरूप ढलने की मेरी मजबूरी को नहीं समझती है। निश्चय ही, वह यह समझती है, लेकिन स्वभावत: लड़ाका होने के कारण वह यह भूल जाती है, और मेरी दुर्भाग्यपूर्ण मनोदशा, जिसका मैं कुछ नहीं कर सकता क्योंकि यह स्वभावतः ही ऐसा है, और जो मुझे किसी भी उस व्यक्ति को हल्की डाँट लगाने के लिए उकसाता है, जो उग्रतापूर्ण व्यवहार करता है । इस प्रकार स्पष्टतः हमारे संबंध कभी अच्छे नहीं होंगे। सुबह सवेरे जब सुखद मूड में मैं घर छोडूंगा तो मेरी नजर उसके मुखड़े पर ही पड़ेगी, जो मुझे देखते ही झुक जाता है । उसकी गहरी सजग निगाहें, जो उचटती हुई मुझ पर पड़ती हैं लेकिन फिर भी सब कुछ ताड़ जाती हैं; उसके युवा गालों पर उभरते व्यंग्यात्मक मुसकान, नजरों में शिकायत, कमर पर रखे हाथ, जो उसे अपना संतुलन बनाने में मदद करते हैं, और तभी क्रोध के वेग से पीली पड़ जाती है तथा काँपने लगती है।

अभी थोड़ा पहले ही मैंने मौका पाकर, पहली बार आश्चर्यजनक अनुभूति के साथ अपने एक अच्छे मित्र से अनौपचारिक रूप से इस बात पर चर्चा की; मैंने एक मामूली घटना के रूप में उसे अपने मित्र को बताया। उत्सुकतावश मेरे मित्र ने उसकी अपेक्षा नहीं की, बल्कि इसे गंभीरता से लिया और उस पर विचार-विमर्श के लिए आग्रह किया। इससे भी ज्यादा उत्सुकता की बात यह थी कि उसने एक विषय विशेष को गंभीरता से नहीं लिया, क्योंकि उसने थोड़े समय के लिए चले जाने की मुझे गंभीर सलाह दी। कोई भी सलाह कम समझने योग्य नहीं हो सकती। यह बात तो बिल्कुल साधारण थी, जो कोई भी इसे निकट से देखता, इसे समझ सकता था, फिर भी यह इतना आसान भी नहीं कि सिर्फ मेरे चले जाने भर से ही सब कुछ सही हो जाएगा, यहाँ तक कि इसका बड़ा भाग भी। इसके विपरीत इस तरह के प्रस्थान से ही मुझे बचना चाहिए। यदि मुझे किसी योजना पर काम ही करना हो तो वह यह होना चाहिए कि इस विषय को मुझे इसकी वर्तमान संकीर्ण सीमा में रखना चाहिए, जिसमें बाहरी दुनिया की कोई संलिप्तता न हो। दूसरे शब्दों में, मैं जहाँ हूँ, वहीं चुपचाप रुक जाना चाहिए तथा जहाँ तक संभव हो उससे अपने आचरण को अप्रभावित रखूँ । मुझे किसी और से इसकी चर्चा नहीं करनी चाहिए, इसलिए नहीं कि यह एक खतरनाक रहस्य है, बल्कि यह एक मामूली एवं विशुद्ध रूप से व्यक्तिगत मामला है, और इसी कारण इसे गंभीरता से नहीं लेना चाहिए तथा उसे उस स्तर पर ही रखना चाहिए। इसलिए कुल मिलाकर मेरे दोस्त की टिप्पणी बिल्कुल निरर्थक भी नहीं थी। उससे मुझे कु छ नया सीखने को नहीं मिला फिर भी उससे मेरा मूल संकल्प मजबूत हुआ । निकट से देखने पर ऐसा लगता है कि समय के साथ उस मामले में प्रगति हुई है, लेकिन वास्तव में यह इस विषय पर प्रगति नहीं थी, बल्किमेरा उसे देखने के नजरिए में बदलाव था । एक ओर तो यह अधिक संगठित, मजबूत और घातक बन गया था तो दूसरी ओर निरंतर तनाव के कारण, जिससे मैं उबर नहीं सकता, चाहे यह जितना भी हल्का हो, इससे मेरा चिड़चिड़ापन बढ़ा ही था । अब मैं इस बात की वजह से कम परेशान हूँ कि मैं मानता हूँ कि मैं समझता हूँ कि किसी निर्णायक संकट की स्थिति में पहुँचना कितना असंभव है; जो कभी-कभी इतना अवश्यंभावी प्रतीत होता है; कोई भी आसानी से छोड़ देता है, विशेषकर जब वह युवा होता है, ताकि निर्णायक क्षणों के पहुँचने की गति को बढ़ा सके। जब कभी भी मेरी छोटी आलोचक मुझे देखते ही बेहोश होती है, एक हाथ से कुरसी की पीठ को पकड़ते हुए तथा दूसरे हाथ से अपने अंतः वस्त्रों के फीते को तेजी से खींचते हुए जब कुरसी के एक ओर धँस जाती है, उसके गालों पर क्रोध और निराशा के आँसू बहने लगते हैं, तो मैं यह सोचा करता था कि अब वह क्षण आ गया है तथा मैं अपने लिए जवाब देने के लिए बस बुलाया ही जाने वाला हूँ फिर भी वह निर्णायक क्षण या बुलावा नहीं था। महिलाएँ तुरंत बेहोश हो जाती हैं तथा लोगों के पास उनकी करतूतों को देखने का समय नहीं होता । और इन वर्षों में वास्तव में क्या घटा है? कुछ भी नहीं, सिवाय इसके कि ऐसे अवसर बार-बार आते रहे हैं, कभी अधिक तो कभी कम उग्रता से, तथा उनका कुलशेष उसी के अनुरूप बढ़ा है। आरंभ में लोग एक निश्चित दूरी बनाते थे तथा तभी हस्तक्षेप करते, जब उन्हें इसे करने का कोई रास्ता दिखाई पड़ता; लेकिन उन्हें ऐसा कोई उपाय नहीं दिखाई पड़ता । इसलिए अब तक तो उन्हें अपने पर्यवेक्षण पर ही निर्भर रहना पड़ता था, फिर भी वह लोगों को अपने काम में व्यस्त रखने के लिए काफी था; इससे ज्यादा यह कुछ नहीं कर सकता था । फिर भी बुनियादी तौर पर परिस्थिति हमेशा ही ऐसी थी, अनावश्यक तमाशाइयों से भरी, जो हमेशा ही अपनी उपस्थिति को किसी-न-किसी धूर्त बहाने के द्वारा सही साबित करती । कभी-कभी तो वे रिश्तेदार होने का नाटक भी करते तथा बातों की गहराई तक पहुँचने की कोशिश करते, लेकिन उनकी कुल उपलब्धि यह थी कि वे अभी भी मौजूद थे। एकमात्र अंतर यह था कि अब मैं धीरे-धीरे पहचानने लगा था । बहुत पहले मैं यह समझता था कि वे अभी-अभी धीरे-धीरे बाहर से अंदर आए हैं, तथा यह इस बात की व्यापक प्रतिक्रिया की परिणति है तथा ये स्वयं एक संकट को जन्म देंगे। आज मैं यह समझता हूँ कि मूझे मालूम था कि ये तमाशाई शुरू से ही हमेशा से वहाँ मौजूद थे तथा उनका किसी संकट की आवश्यकता से थोड़ा-बहुत या बिल्कुल भी लेना-देना नहीं था । और स्वयं, उसे मुझे इस नाम से गौरवान्वित क्यों करना चाहिए? यदि ऐसा कभी होता है, निश्चय ही कल या कल के बाद भी नहीं, शायद कभी भी नहीं, फिर भी सार्वजनिक मत खुद ही इस बात का फैसला करेगी, जो कि मैं एक बार फिर दुहराता हूँ कि, यह बात उसकी क्षमता के बाहर है। निश्चय ही, मैं भी इससे बच नहीं सकता, लेकिन दूसरी ओर लोगों को इस बात पर भी ध्यान देना होगा कि मैं भी लोगों की नजर में अनजान नहीं हूँ । मैंने भी लोगों के बीच एक लंबा जीवन जिया है, वह भी पूरे विश्वास एवं भरोसे के साथ, और यही बात उस छोटी महिला को परेशान करती है। मेरे जीवन में देर से आनेवाली यह महिला, जो मुझे टिप्पणी करने को विवश करती है, कोई भी दूसरा व्यक्ति इसे सहज ही अनसुनी कर देता कि यह महिला ज्यादा-से-ज्यादा बुरा यह कर सकती है कि सार्वजनिक मत को प्रभावित कर सके, जिसने बहुत पहले ही मुझे समाज के एक सम्मानित व्यक्ति के रूप में स्वीकार किया है। आज यही स्थिति है, और इससे मुझे प्रभावित होने की तनिक संभावना है।

तथ्य तो यह है कि समय के साथ मेरे में भी कुछ नकारात्मक बदलाव आए हैं, लेकिन उसका इस विषय से कुछ सरोकार नहीं है। कोई व्यक्ति किसी की घृणा का निरंतर कें द्र बनना बरदाश्त नहीं कर सकता है; जबकि वह जानता है कि यह घृणा अकारण है, निराधार है । तब वह परेशान हो जाता है; तब वह अंतिम निर्णय की अपेक्षा करने लगता है तथा एक समझदार व्यक्ति की तरह उसे यह विश्वास होता है कि ऐसा निर्णय अभी आनेवाला नहीं है। आंशिक रूप से भी, यह बढ़ती उम्र के लक्षण हैं। यौवन हर चीज को आकर्षक बना देता है तथा भद्दे लक्षण यौवन की उफनती ऊर्जा में कहीं गुम हो जाते हैं। यदि किसी व्यक्ति की युवक के रूप में निगाहें चौकस हैं तो कोई इस बात पर बिल्कुल ध्यान नहीं देता, यहाँ तक कि वह व्यक्ति स्वयं भी । लेकिन जो चीजें बुढ़ापे तक साथ रहती हैं वे हैं अवशेष। हर चीज आवश्यक है, कुछ भी नया नहीं है । हर चीज की जाँच-परख जारी है तथा किसी उम्रदराज व्यक्ति की निगाहें स्पष्टतः चौकस हैं तथा उन्हें पहचानना मुश्किल भी नहीं है । उसकी स्थिति में सिर्फ यह ही वास्तविक गिरावट नहीं है, इस मामले में भी यही बात है ।

यदि किसी भी दृष्टिकोण से मैं इस मामले पर विचार करूँ तो ऐसा लगता है, कि यदि मैं इस पर अपना हाथ रखूँ तो चाहे बहुत हलके से भी, मैं लोगों की भावनाओं से अप्रभावित हुए बिना तथा उस महिला के सारे आक्रोश के बावजूद भी आनेवाले समय में शांतिपूर्वक एक लंबा जीवन जीऊँगा, मैं इस बात के प्रति दृढ़ हूँ ।

(अनुवाद: अरुण चंद्र)

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