एक बछड़ा जो तीन बार बेचा गया : कैनेडा की लोक-कथा
Ek Bachhda Jo Teen Baar Becha Gaya : Lok-Katha (Canada)
कैनेडा देश की यह लोक कथा एक हँसी और अक्लमन्दी की लोक कथा है। कैनेडा के एक गाँव में एक आदमी रहता था जो बहुत शराब पीता था। इस पीने की वजह से उसने अपनी सारी दौलत खो दी थी।
आखीर में उसके पास केवल एक बछड़ा बच गया था सो शराब खरीदने के लिये वह उस बछड़े का सौदा करने निकला।
चलते चलते उसको गाँव का एक डाक्टर मिला जिसे वह बहुत अच्छी तरह जानता था। उसने उसको रोक कर पूछा — “जनाब, आपको बछड़ा चाहिये?”
डाक्टर ने पूछा — “कितने का है?”
शराबी बोला — “एक चाँदी के सिक्के का।”
डाक्टर ने उसको चाँदी का एक सिक्का निकाल कर दिया और उससे कहा — “यह लो चाँदी का सिक्का और इस बछड़े को मेरे घर पहुँचा देना मैं अभी एक मरीज देखने जा रहा हूँ।”
शराबी उस बछड़े को डाक्टर को बेच कर आगे बढ़ा तो उसे एक नोटरी मिला तो उसने नोटरी से भी पूछा — “जनाब क्या आप यह बछड़ा खरीदेंगे?”
नोटरी ने पूछा — “कितने का है?”
शराबी बोला — “एक पौंड का।”
नोटरी ने कहा — “ठीक है, यह लो एक पौंड और मेहरबानी करके इसे मेरे घर पहुँचा देना। मैं अभी ज़रा एक जरूरी काम से जा रहा हूँ।”
यह कह कर नोटरी भी अपने रास्ते चला गया और वह शराबी पौंड ले कर और आगे बढ़ा। आगे जा कर शराबी को एक वकील मिला।
उसने वकील से पूछा — “जनाब, क्या आप यह बछड़ा खरीदेंगे?”
वकील ने पूछा — “कितने का है?”
शराबी बोला — “एक पौंड का।”
वकील ने भी उसे एक पौंड निकाल कर देते हुए कहा — “ठीक है। यह लो एक पौंड। मैं अभी ज़रा दूसरे गाँव जा रहा हूँ, तुम्हारी बड़ी मेहरबानी होगी यदि तुम इसको मेरे घर पहुँचा दोगे।”
शराबी का तो काम बन गया था। उसने एक बछड़ा तीन बार बेच कर तीन पौंड बना लिये थे। अब वह शराबी रास्ते में एक शराबखाने में रुका, अपने सारे पैसों की शराब पी और अपने घर चला गया।
शाम को डाक्टर, नोटरी और वकील जब अपने अपने घर पहुँचे तो उन सबको यह देख कर बड़ा ताज्जुब हुआ कि उन्होंने सुबह जो बछड़ा खरीदा था वह अभी तक उनके घर नहीं पहुँचा था।
उन्होंने आपस में बात की और उस बेईमान शराबी को पकड़ने की योजना बनायी। उन्होंने उस शराबी पर मुकदमा दायर कर दिया। शराबी अपना मुकदमा लड़ने के लिये पास के एक गाँव के वकील के पास पहुँचा।
वकील बोला — “जनाब, आपका मुकदमा बहुत मुश्किल है क्योंकि इसमें आपकी बेईमानी साफ दिखायी दे रही है। इसमें आपके बचने का केवल एक ही रास्ता है और वह यह कि जब भी आपसे कोई सवाल पूछा जाये तो आप यही कहें “ओयिंक़ ओयिंक़ ओयिंक”।
सो सब अदालत में पहुँचे। जज ने शराबी से पूछा — “क्या आपने इस डाक्टर को अपना बछड़ा बेचा था?”
शराबी को जैसा समझाया गया था उसने वैसा ही जवाब दे दिया — “ओयिंक़ ओयिंक़ ओयिंक”।
“और इस नोटरी को भी?”
शराबी फिर बोला — “ओयिंक़ ओयिंक़ ओयिंक”।
“और इस वकील को भी?”
शराबी फिर बोला — “ओयिंक़ ओयिंक़ ओयिंक”।
जज आगे बोला — “और फिर आपने इन लोगों को वे बछड़े दिये नहीं?”
शराबी फिर बोला — “ओयिंक़ ओयिंक़ ओयिंक”।
जज आगे बोला — “आपने ऐसा क्यों किया जनाब?”
शराबी फिर बोला — “ओयिंक़ ओयिंक़ ओयिंक”।
जज के कई सवाल पूछने पर भी जब शराबी के मुँह से सिवाय “ओयिंक़ ओयिंक़ ओयिंक” के और कुछ न निकला तो जज ने उन तीनों से कहा — “ऐसा लगता है कि यह आदमी पागल है। मेरा फैसला है कि इसको छोड़ दिया जाये।”
और शराबी को छोड़ दिया गया और वे तीनों अपने अपने पैसे गँवा कर अपने अपने घर चले गये।
कुछ दिन बाद शराबी का वकील शराबी के पास आया और बोला — “हम लोग मुकदमा जीत गये इसलिये मेरी फीस दो।”
शराबी बोला — “ओयिंक़ ओयिंक़ ओयिंक”।
वकील बोला — “देखो, तुम यह चालाकी मेरे साथ नहीं खेल सकते। मैंने ही तुमको यह मुकदमा जिताया है।”
“ओयिंक़ ओयिंक़ ओयिंक”।
“अब क्या मैं तुमसे अपनी फीस के लिये झगड़ा करूँ?”
“ओयिंक़ ओयिंक़ ओयिंक”।
और वह वकील भी डाक्टर, नोटरी और वकील की तरह उस शराबी से “ओयिंक़ ओयिंक़ ओयिंक” के अलावा और कुछ भी न बुलवा सका तो उसको भी उसकी फीस नहीं मिली और वह बेचारा बिना फीस का मुकदमा लड़े ही घर चला गया।
इस तरह उस वकील की सिखायी हुई चाल उसी के सिर आ पड़ी।
(अनुवाद : सुषमा गुप्ता)