एक आदमी और बन्दर : असमिया लोक-कथा

Ek Aadami Aur Bandar : Lok-Katha (Assam)

एक दिन एक आदमी और उसकी पत्नी अपने खेत में कुछ बल्ब बोने गये। कुछ बन्दर उन लोगों को बल्ब बोते देख रहे थे। उन बल्बों को देख कर उनके मुँह में पानी आ गया। वे उनको खाने का विचार करने लगे। सो उनको एक तरकीब सूझी।

उन्होंने उस आदमी से कहा — “तुम लोग इन बल्बों को ठीक से नहीं बो रहे। सबसे पहले तुम्हें इन्हें पकाना चाहिये, फिर इनको अलग अलग पत्तों में बाँधना चाहिये।

उसके बाद हर एक के पास बाँस के प्याले में पानी भर कर इनको रात भर छोड़ देना चाहिये। फिर जब सुबह तुम इनको देखने आओगे तो तुमको ये घुटनों तक लम्बे मिलेंगे।”

उस आदमी ने ऐसा ही किया जैसा कि बन्दरों ने उससे कहा था पर जब वह अगली सुबह अपने बल्ब देखने आया तो यह देख कर बहुत दुखी हुआ कि उसके सारे बल्ब गायब थे। पर उसको यह समझने में देर नहीं लगी कि यह सब उन बन्दरों की चालाकी थी। बन्दर ही उसके सारे बल्ब खा गये थे।

अब उस आदमी ने अकेले ही उन बन्दरों से बदला लेने का विचार किया। वह घर आया और सड़ी हुई पिसी हुई बीन्स अपने शरीर के ऊपर लपेट कर अपने घर के फर्श पर लेट गया जैसे मर गया हो। सड़ी हुई पिसी हुई बीन्स को शरीर पर लपेटने की वजह से उसके सारे शरीर में से बदबू आ रही थी।

उसकी पत्नी ने उसके शरीर को कुँए के पास एक ऊँचे से चबूतरे पर रख दिया और खुद उसके पास बैठ कर रोने लग गयी जैसे वह सचमुच में ही मर गया हो।

बन्दरों ने जब यह सुना कि खेत वाला आदमी मर गया है तो वह उसकी पत्नी को ढाँढस बँधाने आये।

उन बन्दरों में साइज़ में जो सबसे बड़ा बन्दर था वह रो कर बोला — “जब यह मेरा पिता ज़िन्दा था तब यह मुझको बहुत अच्छी अच्छी सब्जियाँ खाने को देता था। अब यह चला गया तो मुझे वैसी सब्जियाँ कौन खिलायेगा।”

उस आदमी की पत्नी रोते हुए बोली — “तुमने मुझसे मरने से पहले कहा था कि मेरे पास मेरा भाला रख देना,।”

उस बड़े बन्दर ने जैसे ही यह सुना तो वह उस आदमी का भाला उठा लाया और उसके शरीर के पास ला कर रख दिया। अब उस आदमी की पत्नी ने और ज़ोर ज़ोर से रोना शुरू कर दिया तो बन्दर ने उसके पास उसकी बन्दूक भी ला कर रख दी। तभी उस आदमी ने थोड़ी सी आँख खोल कर अपने चारों ओर देखा।

उन बन्दरों में एक छोटी सी बँदरिया भी थी। वह उस समय गर्भवती थी। वह उस आदमी के शरीर के पास ही बैठी थी और बड़ी सहानुभूति से उसके बेजान शरीर को देख रही थी। पर यह क्या? उसने देखा कि उस आदमी ने तो आँख खोल कर अपने चारों ओर देखा। वह तुरन्त ताड़ गयी कि वह आदमी मरा नहीं था बल्कि ज़िन्दा था और मरने का नाटक कर रहा था। उसने आदमी के ज़िन्दा होने की बात सब बन्दरों को बता दी। पर किसी बन्दर ने उस पर विश्वास नहीं किया।

बल्कि वह बड़ा बन्दर तो बोला — “पर इसके शरीर से तो कितनी बदबू आ रही है यह ज़िन्दा कैसे हो सकता है?” पर बँदरिया को अपनी आँखों पर विश्वास था सो वह वहाँ से उठी और एक कूड़े वाले गड्ढे के पास जा बैठी।

अब उस आदमी की पत्नी ने रोना बन्द कर दिया था। वह बड़े बन्दर से बोली — “देखो, ज़रा दरवाजा ठीक से बन्द कर दो।”

बन्दर उठा और उसने घर का दरवाजा ठीक से बन्द कर दिया। बन्दर के दरवाजा बन्द करते ही वह आदमी उठ कर बैठा हो गया और उसने सारे बन्दरों को अपनी बन्दूक से मार दिया बस केवल वह बँदरिया ही बची जो अपनी जान बचाने के लिये उस समय उस गड्ढे में कूद गयी थी।

आज जितने भी बन्दर इस दुनियाँ में मौजूद हैं वे सब उस बँदरिया की ही सन्तान हैं।

(सुषमा गुप्ता)

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