दुसेर मल्ल की समझदारी : पंजाबी लोक-कथा
Duser Mall Ki Samajhdari : Punjabi Lok-Katha
एक गाँव में एक सौदागर रहता था। उसका एक पुत्र था। उसका विवाह हो चुका था, परन्तु उसकी पत्नी सुन्दर नहीं थी। उसी गाँव में एक नम्बरदार भी रहता था। उसकी इकलौती पुत्री थी, जो बहुत सुन्दर थी, परन्तु उसका पिता एक गरीब घर से सम्बन्धित था। कभी-कभी तो ऐसा भी होता था कि दो समय की रोटी भी उनको मिल नहीं पाती थी। कई-कई दिन तो उनके घर चूल्हा तक नहीं जलता था और उनको फाके मरने पड़ते थे।
सौदागर के लड़के ने नम्बरदार की लड़की का हाथ माँगा। सौदागर विवश होकर नम्बरदार के पास गया और डरते-डरते अपनी सारी बात उसे बताई। नम्बरदार एक शर्त पर मान गया कि वह उसे खाना और दूसरे खर्चों के लिए खर्चा दिया करेगा।
अब नम्बरदार की लड़की का विवाह सौदागर के लड़के के साथ हो गया। कुछ समय तक तो सौदागर दो परिवारों का खर्च सहन करता रहा, परन्तु सौदागर पर भी धीरे-धीरे निर्धनता आनी आरम्भ हो गई। एक दिन ऐसा भी आया कि उनको भी रोटी के लाले पड़ गए।
अब लड़के को दोनों ओर से गालियाँ मिलने लगीं। एक दिन लड़के को एक तरकीब सूझी। एक दिन वह उनको ननिहाल लेकर जाने का बहाना करके उन्हें साथ ले गया। मार्ग में रात घिर आई। पहली पत्नी और नम्बरदार की लड़की दूसरी पत्नी दोनों बेफिक्री से सोई हुई थी। वह आप भी सो गया।
जब अर्द्धरात्रि हुई, तो लड़के ने एक के सिरहाने दो धारी डण्डा खड़ा कर दिया। अपने बिस्तर में कुछ लकड़ियाँ रख कर उस पर चादर डालकर स्वयं वहाँ से वापस चला गया। जब वह सुबह उठी तो देखा कि उनका पति कहीं भी नहीं है। वह रोती और पीटती रहीं, परन्तु कुछ नहीं हुआ। अन्त में नम्बरदार की लड़की को एक उपाय सूझा। वह दूसरी को कहने लगी, "बहन ! या तो पुरुष बनकर मुझे रोटी खिलाओ अथवा मैं तुम्हें मेहनत-मज़दूरी करके खिलाऊँगी। दूसरी ने कहा, “बहन ! मैं तो बनिए की पुत्री हूँ। कद की छोटी और दिल की कमज़ोर हूँ। इसलिए तुम ही मेहनत-मज़दूरी करो।
नम्बरदार की लड़की ने पुरुषों वाले वस्त्र पहन लिए और हाथ में दो धारी डण्डा पकड़ लिया और वह एक शहर की ओर चल पड़ी।
शहर में पहुँचकर उन्होंने रहने के लिए एक मकान ले लिया। उस मकान की मालकिन एक औरत थी। उस शहर में एक राजा रहता था। रात के समय वह दरबार लगाया करता था। हर कोई अपने दुःख वहाँ सुनाता था। नम्बरदार की लड़की, जोकि लड़का बना हुई थी, हर रोज रात को जाया करे और वापस आ जाया करे, चुपचाप बैठ जाया करे और चुपचाप ही वापस आ जाया करे, कोई भी बात न करे।
एक दिन राजा ने अपने अमात्य को कहा, “यहाँ एक अजनबी सा व्यक्ति आता है, परन्तु वह बोलता कुछ नहीं। जैसे चुपचाप-सा आता है। वैसे ही चुपचाप-सा चला जाता है। उसका अच्छी प्रकार से पता करना चाहिए।"
दूसरी रात उस व्यक्ति पर निगाह रखी गई। वह व्यक्ति वहाँ दरबार में आया तो वज़ीर उसे राजा के पास ले गया। राजा ने पूछा, “भाई ! तुम चुपचाप वापस चले जाते हो, कोई बात नहीं करते हो। क्या बात है ?" व्यक्ति ने कहा, "मुझे मज़दूरी करनी है। मुझे अपनी सेवा में रख लो।” अब राजा ने उसे अपने घोड़ों को सँभालने के लिए रख लिया।
जब उसको पूछा गया कि तुम्हें क्या दिया जाए तो उसने कहा, "दो सेर आटा नित्य का।" वह रोज ही अच्छी प्रकार से काम करता था और दो सेर आटा ले जाता। वह बनिए की लड़की को कुछ आटा दे देता और कुछ स्वयं रख लेता और कुछ को बेचकर अपने दुसरे खर्चे पूरे किया करता। दिन गुजरते गए धीरे-धीरे उसका नाम दुसेर मल्ल पड़ गया। यह दुसेर मल्ल नाम इसलिए पड़ा क्योंकि वह नित्य दो सेर आटा ही लेता था, परन्तु इसके बदले वह काम बहुत मेहनत से करता था।
एक दिन की बात है कि उस पर राजा बहुत प्रसन्न हो गया और उसे अपने साथ शिकार पर ले गया। दुसेर मल्ल ने अपने साथ पानी का एक घड़ा ले लिया, एक बर्तन चूरी का और एक किलो भूना हुआ मांस एवं शराब भी ले ली।
सारा दिन फिरते-फिरते व्यतीत हो गया, परन्तु कोई शिकार नहीं मिला। सांझ हो गई तो राजा को बहुत प्यास लगी क्योंकि ग्रीष्म ऋतु थी और वह मार्ग भी बहुत तय कर चुके थे। राजा ने कहा, “दुसेर मल्ल, मैं तुम्हें राज्य का चौथा भाग दूंगा, यदि तुम मुझे पानी पिला दो।" दुसेर मल्ल ने कहा, “महाराज ! आप तो अनोखी बातें करते हो। ऐसे घने जंगल में पानी की इच्छा रखते हो।" दुसेर मल्ल ने हँसते हुए पानी पिला दिया।
कुछ समय बाद राजा को भूख लगने लगी और वह कहने लगा, “मैं तुम्हें आधे राज्य का सरताज़ बना दूंगा, यदि तुम मुझे चूरी खिला दो तो।" दुसेर मल्ल कहने लगा, “महाराज ! चूरी कहाँ से लाऊँ ? परन्तु यदि कहते हो तो मैं ला देता हूँ। इतने में हँसते-हँसते उसने बर्तन में से चूरी निकाल कर राजा को दे दी। कुछ समय उपरान्त राजा ने कहा, "दुसेर मल्ल मेरी एक बात पूरी कर दो, तो मैं तुम्हें अपना वज़ीर बना दूंगा।" दुसेर मल्ल ने कहा, “क्या बात है महाराज ?" राजा ने कहा, "हम थक कर चूर हो चुके हैं। यदि तुम मुझे मांस और मदिरा भी लाकर दे दो।" दुसेर मल्ल ने वह भी उसके समक्ष लाकर रख दी और राजा की आखिरी इच्छा भी पूरी कर दी।
रात घिर आने पर वे दोनों महल के लिए वापस चल पड़े। दो धारी डण्डा दुसेर मल्ल के पास ही था। मार्ग में उन्होंने एक वृद्धा देखी, जो एक वृक्ष के पास खड़ी थी। उनको देखकर वह कहने लगी, “पुत्र ! मेरे पुत्र को किसी ने वृक्ष पर लटका दिया है। मैं उसका चेहरा देखना चाहती हूँ। ऐसा तभी सम्भव हो सकता है, यदि तुम उसे उतार दो। दुसेर मल्ल ने उस पर तरस खाया और उसकी लाश उतारकर उसे सौंप दी। अब वह उसे खाने लग गई और डायन बन गई। दुसेर मल्ल ने दो धारी डण्डा मारा और वह वहीं मर गई। उसके दो धारी डण्डे में उस डायन के घाघरे का एक टुकड़ा फंस गया। वापस महलों में आकर, उसने दो धारी डण्डा बनिए की लड़की को दे दिया और कहा, “यह टुकड़ा उतार मत देना।" उनके सभी वस्त्र स्वर्ण-चाँदी में जड़ित हो गए और झिलमिल-झिलमिल करने लग गए और अब वे काफ़ी अमीर हो गए।
उन्हीं दिनों की बात है, राजा ने नया विवाह रचाया। शहर की लड़कियाँ एकत्रित होकर रानी को देखने के लिए गईं। जब रानी को देखकर वह वापस जाने लगी तो उसमें से एक ने कहा, "इससे सुन्दर तो दुसेर मल्ल की पत्नी है, जो स्वर्ण और चाँदी के बने हुए सुन्दर वस्त्र पहनती है।"
इस बात की भनक नई रानी के कानों में भी पड़ गई। बस फिर क्या था ? वह चादर ओढ़कर लेट गई। राजा आया और कहने लगा, "रानी ! रानी ! तुम क्यों लेटी हुई हो ?” रानी चुप रही। राजा ने फिर से कहा, "रानी ! तुम ऐसे क्यों लेटी हुई हो?” रानी फिर चुप रही, कुछ न बोली। राजा ने फिर से पूछा, “रानी ! तीसरा वचन है। फिर रानी बोली, “मैं तभी जीवित रह सकती हूँ, यदि तुम मुझे दुसेर मल्ल की पत्नी जैसे वस्त्र लाकर दे दो।" अब राजा ने उसी पल दुसेर मल्ल को बुलाया और कहा, “अपनी पत्नी के जैसे वस्त्र लाकर दो, नहीं तो मैं तुम्हें जीवित कोल्हू में पिसवाँ दूंगा।"
दुसेर मल्ल घर आया और कहने लगा, “मैंने तुम्हें कहा था, न उतारना उस टुकड़े को क्योंकि भूत-चुड़ेल के कपड़े ऐसे जादू वाले होते हैं कि देखते-ही-देखते और ही कुछ बन जाते हैं। परन्तु वह बेबस था। वह दो धारी डण्डा लेकर शहर की तरफ चल पड़ा। जब शहर में गया, तो बाहर एक चिता जल रही थी और उसके आस-पास कुछ लोग बैठे थे। दुसेर मल्ल ने पूछा, "भाई ! रात हो गई, तुम यहाँ क्यों बैठे हुए हो ?” उन व्यक्तियों में से एक ने कहा, “यहाँ के एक साहूकार के इकलौते पुत्र की मृत्यु हो गई है। हम इसलिए बैठे हैं क्योंकि कुंवारे लड़के के सिवे की लोग हड्डी निकालकर जादू-टोना करते हैं। कहीं इस लड़के के सिवे के साथ भी वैसा ही न हो।" दुसेर मल्ल ने कहा, "तुम चले जाओ। मैं इसकी रखवाली करता हूँ।" अब दुसेर मल्ल वहीं पर बैठ गया। आधी रात को एक दैत्य आया और बाईं कनिष्ठका में से रक्त निकालकर छींटा दिया और लड़का जीवित हो गया। दुसेर मल्ल ने उसी पल दो धारी डण्डा खड़ा करके दैत्य को मार डाला। वह उस जीवित लड़के को लेकर घर गया। उसने बहुत सी आवाजें लगाईं, परन्तु घर का कोई सदस्य नहीं बोला। लड़के ने भी कई आवाजें लगाईं ताकि उसकी आवाज़ पहचान कर कोई दरवाज़ा खोल दे, परन्तु किसी भी सदस्य ने दरवाज़ा नहीं खोला। अन्त में साहूकार की छोटी लड़की उठी और उसने कहा, "बेशक मुझे कोई मार डाले या खा जाए, मैं दरवाज़ा खोलती हूँ।" लड़की ने दरवाज़ा खोल दिया और उसने अपने भाई और रात वाले व्यक्ति को देखा तो वह बहुत प्रसन्न हुई। अब उसने सभी घरवालों को उठा लिया और कहा, “जो तुमने माँगना है, माँग लो।" यह सुनकर उसने कहा, “मुझे नवविवाहिता लड़के की पत्नी के सुन्दर वस्त्र दे दो और अपनी पुत्री का रिश्ता भी।"
दोनों बातें पूरी कर दी। वह लड़की को और वस्त्र लेकर आगे की ओर चल पड़ा। आगे एक लड़की बैठी हुई थी। वह उसको देखकर पहले हँसी और बाद में रोने लगी। दुसेर मल्ल ने इसका कारण पूछा तो उसने बताया, "मेरे पिता एक दैत्य हैं। वह तुम्हें खा जाएँगें, इसलिए मैं रो रही हूँ। मैं इसलिए हँसी थी कि तुम्हारे जैसा सुन्दर व्यक्ति मैंने आज तक नहीं देखा।" फिर उसने इसका उपाय भी बता दिया। लड़की ने कहा, "यदि दैत्य तुम्हें पूछे कि तुम कौन हो? तो कहना कि मैं तुम्हारा दामाद हूँ।”
ऐसे ही हुआ, दैत्य आदम वो आदम करता हुआ आ धमका। उसने आते ही पूछा, "तुम कौन हो ?” इस पर दुसेर मल्ल ने उत्तर दिया, “मैं तुम्हारा दामाद हूँ और तुम्हारी पुत्री को लेने के लिए आया हूँ।” दैत्य ने फिर पूछा, “तुम दहेज में क्या लोगे? यह सुनकर दुसेर मल्ल ने कहा, “आप मुझे जादू की टूटी हुई चारपाई दे दो। अब दुसेर मल्ल लड़की और चारपाई को अपने घर ले आया। तीन औरतें तो वहीं रह गईं, स्वयं चौथी, जो लड़का बनी हुई थी, फिर से आगे चल पड़ी।
वह आगे गया तो आगे एक लड़की चरखा कात रही थी। वह भी उसे देखकर पहले तो हँसी और उसके बाद रोने लगी। दुसेर मल्ल ने इसका कारण पूछा तो उसने बताया, 'मेरे पिता एक दैत्य हैं। वह तुम्हें खा जाएँगे, इसलिए मैं रो रही हूँ। मैं इसलिए हँसी थी कि तुम्हारे जैसा सुन्दर व्यक्ति मैंने आज तक नहीं देखा।" फिर उसने इसका उपाय भी बता दिया, “यदि दैत्य तुम्हें पूछे कि तुम कौन हो? तो कहना कि मैं तुम्हारा दामाद हूँ।"
ऐसे ही हुआ, दैत्य आया। उसने आते ही पूछा, “तुम कौन हो ?" इस पर दुसेर मल्ल ने उत्तर दिया, "मैं तुम्हारा दामाद हूँ और तुम्हारी पुत्री को लेने के लिए आया हूँ।” दैत्य ने फिर पूछा, "तुम दहेज में क्या लोगे?" यह सुनकर दुसेर मल्ल ने कहा, "मुझे छड़ी और कड़ी चाहिए।" दैत्य मान गया। उसने उसे अपनी लड़की दे दी और साथ ही छड़ी और कड़ी भी दे दी। लड़का उसी समय लड़की को और छड़ी को लेकर फिर से वापस चला गया और उसे वहीं पर छोड़ आया। फिर उसे एक ओर लड़की मिली। उसने भी उसी प्रकार ही कहा। दुसेर मल्ल ने वैसे ही किया और दहेज में एक फटा हुआ वस्त्र और गद्दा माँगा और दैत्य मान गया। वह पाँचवीं को लेकर भी अपने घर आ गया। फिर वह आगे बढ़ा। वहाँ भी उसे एक लड़की मिली। वहाँ से उसने जादू की एक डिबिया माँग ली। इसी प्रकार उसने छ: पत्नियाँ एकत्रित कर ली और सातवीं वह स्वयं भी तो एक लड़की ही थी। हर रोज उसकी एक पत्नी उसको खाना खिलाती। पहली ने जब उसे खाने पर बुलाया, तो अपने साथ लाए हुए सुन्दर वस्त्र दिये और कहा, 'यह आप राजा की पत्नी को दे आओ।" दुसेर मल्ल ने उसी प्रकार किया। राजा ने प्रसन्न होकर उसे अपना वज़ीर नियुक्त कर दिया, पहले वाला वज़ीर उससे ईर्ष्या करने लगा और राजा को उससे सवाल पूरे करवाने के लिए कहता।
एक दिन राजा ने दुसेर मल्ल को कहा कि, “तुम रातों-रात गंगा से पानी लाओ और मुझे पिलाओ।" दुसेर मल्ल बड़े बुझे मन से अपने घर गया और भीतर जाकर लेट गया। उस दिन जिस को दहेज में चारपाई दी थी, उसके घर रोटी खानी थी। उसने पूछा, “स्वामी जी ! आप को क्या हुआ?" अब दुसेर मल्ल ने सारी बात बता दी। वह कहने लगी, “यह भी कोई मुश्किल काम है। यह टूटी हुई चारपाई किस लिए साथ लाए हो? तुम फ्रिक मत करो।” दुसेर मल्ल चारपाई के मध्य मैं बैठ गया और चारों तरफ मटके रख लिए और कहने लगा, “चलो, चलो चारपाई, गंगा वाले देश को चलो।" दुसेर मल्ल उस चारपाई द्वारा गंगा नदी के पास पहुँच गया और रातों-रात गंगा का जल ले आया और राजा को पीने के लिए दे दिया। वज़ीर फिर से ईर्ष्या से भर उठा कि यह तो फिर से बच गया। उसने फिर राजा से कहा कि दुसेर मल्ल से रातों-रात कुआँ खुदवाओ। राजा ने फिर दुसेर मल्ल को बुलाया और कहा, "रातों-रात एक कुआँ खोद कर दिखाओ। यदि तुम ऐसा न कर सके तो तुम्हें देश-निकाला दे दिया जाएगा। अब दुसेर मल्ल घर आया और चुपचाप लेट गया। उस दिन छड़ी कड़ी वाली ने उसे रोटी पर बुलाया था। उसने उसे सारी बात बता दी। उसकी पत्नी ने कहा, “स्वामी जी ! आप फ्रिक मत करें। यह छड़ी और कड़ी किसलिए हैं ?" अब दुसेर मल्ल छड़ी और कड़ी को लेकर एक खुले स्थान पर चला गया और कहने लगा, “खोदो, कड़ी उठाओ छड़ी।” अब कुआँ रात-भर में तैयार हो गया। सुबह होते ही उसने राजा को उसका पानी पिला दिया।
अब वज़ीर ने सोचा कि इसका जीवित रहना खतरे से खाली नहीं है। इसका मर जाना ही उचित है। वह उसे मरवाने की सोचने लगा। वज़ीर ने राजा को फिर से कहा, "हे राजन् ! आप दुसेर मल्ल को कहो कि यह रातों-रात सुबह होने से पहले हमारे पूर्वजों की ख़बर लाकर देवे।” उसे आज्ञा प्रदान कर दी गई। दुसेर मल्ल अपने घर गया। उस दिन चौथी पत्नी ने खाना खिलाना था। दुसेर मल्ल ने उसे सारी बात बता दी। चौथी पत्नी ने कहा, “तुम राजा को कहना कि मुझे चिता में चिनवा दो और आग लगा दो। जब आग लगने लगी, तो तुम वस्त्र और गद्दा अपने साथ ले जाना।” दुसेर मल्ल ने ऐसा ही किया। उसने राजा के पास जाकर कहा, "हे राजन् ! एक चिता चिनवा दी जाए और उसमें मुझे बिठाकर आग लगा दी जाए। ऐसा ही हुआ। आग लगा दी गई। जब आग लगाई गई, तो दुसेर मल्ल ने वस्त्र और गद्दा अपने पर ले लिया। जब आग ठण्डी हुई तो दुसेर मल्ल उससे उठ गया।
आग से निकलते ही दुसेर मल्ल ने कहा, “आपके बुर्जुग बहुत ही दुःखी हैं। उनके सिर में मूंछे वाली जुएँ हैं और उनकी अंगुलियों पर दो-दो इंच लम्बे नाखून हैं। नाई और नाइन की माँग कर रहे हैं। वज़ीर बहुत प्रसन्न हुआ, क्योंकि वह जाति का नाई था। उसने अपनी भी तैयारी कर ली।
अब फिर से चिता तैयार की गई। बढ़िया-बढ़िया रेशमी रज़ाइयाँ साथ ले ली गईं। दिल में कहने लगा, “फटे हुए वस्त्र में तो उसे तपिश महसूस हुई, मेरी तो रेशम की रज़ाई है। अब उसने अपनी पत्नी को भी अपने साथ ले लिया। राजा को कहा गया कि वह आग लगा दें। राजा ने आग लगाई। आग की लपटें ऊँची-ऊँची निकलने लगी और नाई एवं नाइन दोनों ही भूनकर भुर्ता बन गए।
जब राजा को सारी बात का पता चला तो उसने दुसेर मल्ल को सारा राज्य दे दिया और स्वयं साधु बन गया। दुसेर मल्ल ने एक बहुत बड़ा यज्ञ किया। जब उसने जादू वाली डिबिया में से चुटकी भर राख निकाली और फूंक मारी तो कड़ाहियाँ चावल से भर गईं। सभी लोग यज्ञ में शामिल हुए। भीड़ बहुत अधिक थी। दुसेर मल्ल ने अच्छा प्रबन्ध किया ताकि सभी पंक्तियाँ बना लें। वह स्वयं भी चावल बाँटने लगा। उस यज्ञ में दुसेर मल्ल के माता-पिता और जिसके घर उसका विवाह हुआ था, वह भी आए थे। सभी रोटी और चावल खाकर चले गए, परन्तु दुसेर मल्ल ने उन्हें कुछ नहीं दिया। वह हक्के-बक्के से वहीं-के-वहीं खड़े रह गए कि बाकी सभी तो खाकर चले गए, परन्तु हमें खाने को क्यों कुछ नहीं दिया, पता नहीं हमें क्यों बिठा रखा है।
कुछ समय पश्चात् दुसेर मल्ल अपने पति के पास आया और कहने लगा, “पता है, मैं कौन हूँ ? मैं वही हूँ, जिसे तुम जंगल में सोते हुए छोड़ आए थे। उसे वह घटना याद आ गई और वह उसके चरणों में गिर पड़ा। दुसेर मल्ल ने सारी व्यथा सुनाई कि किस प्रकार वह एक लड़का बनकर निर्वाह करती रही। वह कहने लगी, “पहले तो तुम हम दोनों से पीछा छुड़ाकर भागे थे, अब तो हम सात हैं। राज्य का कार्य संभाल लो और हम सातों को अपने साथ रख लो।" उसने सभी को अपनी रानियाँ बना लिया और स्वयं राजा बन बैठा।
साभार : डॉ. सुखविन्दर कौर बाठ