एक भयानक सूअर : चीनी लोक-कथा
Dreadful Boar : Chinese Folktale
यों तो सूअर की बहुत सारी कहानियाँ हैं लेकिन क्या तुमको पता है कि सूअर चीन के लोगों के एक साल का निशान भी है – “ब्राउन अर्थ पिग” और यह निशान है एक मादा सूअर का।
तो लो पढ़ो यह कहानी उस सूअर की जो चीन के कैलेन्डर से सम्बन्धित है।
एक बार की बात है कि एक बुढ़िया अपनी पोती के साथ रहती थी। एक दिन वे जंगल में आग के लिये लकड़ियाँ इकठ्ठी करने गयीं। वहाँ उनको एक ताजा गन्ना भी मिल गया तो और लकड़ियों के साथ उन्होंने उसको भी उठा कर अपनी चुनी हुई लकड़ियों के साथ रख लिया।
उसी समय उसको एक एल्फ़ मिल गया जो उस समय एक जंगली सूअर के रूप में था। उसने बुढ़िया से एक गन्ना माँगा पर बुढ़िया ने उसे उसको यह कह कर देने से मना कर दिया कि उसकी उम्र में नीचे झुकना और फिर उसे उठा कर उठना ठीक नहीं है। वह अपना गन्ना घर ले कर जा रही है। वह चाहती है कि उसकी पोती यह गन्ना चूसे।
बुढ़िया से मना सुन कर सूअर गुस्सा हो गया उसने कहा कि वह अगली रात आ कर गन्ने की जगह बुढ़िया की पोती को खा जायेगा और यह कह कर जंगल चला गया।
बुढ़िया जब अपने केबिन पहुँची तो वह दरवाजे के पास बैठ कर ज़ोर ज़ोर से रोने लगी क्योंकि वह जानती थी कि उसके पास जंगली सूअर से बचने का कोई तरीका नहीं था।
जब वह बैठी बैठी रो रही थी तभी वहाँ से एक सुई बेचने वाला जा रहा था। उसने बुढ़िया से पूछा कि वह क्यों रो रही थी। सुई बेचने वाले ने कहा कि मैं आपके लिये बस इतना कर सकता हूँ कि मैं आपको एक डिब्बा सुइयों का दे दूँ। उसने ऐसा ही किया और वहाँ से चला गया।
बुढ़िया ने वे सुइयाँ अपने घर के दरवाजे के बाहर की तरफ उसके नीचे वाले आधे हिस्से में लगा दीं। यह कर के वह फिर रोने लगी। उसी समय एक आदमी टोकरी भर के केंकड़े लिये जा रहा था। उसने भी बुढ़िया का रोना सुना उसने भी उससे पूछा कि वह क्यों रो रही थी।
उसने केंकड़े वाले को बता दिया तो केंकड़े वाला बोला कि वह उसके लिये कुछ नहीं कर सकता था सिवाय इसके कि मैं अपने आधे केंकड़े आपको दे दूँ। यह कह कर उसने अपने आधे केंकड़े बुढ़िया को दे दिये और चला गया।
बुढ़िया ने वे केंकड़े एक चीनी के बर्तन में रख दिये। चीनी का बर्तन दरवाजे के पीछे रख दिया और उसने फिर से रोना शुरू कर दिया।
जल्दी ही एक किसान अपने बैल के साथ अपने खेत से वापस आता हुआ वहाँ से गुजरा तो उसने भी बुढ़िया से पूछा कि वह क्यों रो रही थी। बुढ़िया ने उसे भी अपनी दुखभरी कहानी सुना दी।
उसकी कहानी सुन कर किसान बोला “मैं आपकी मुसीबत से आपको छुटकारा दिलाने के लिये आपके लिये इससे ज़्यादा कुछ नहीं कर सकता कि मैं आपके लिये रात भर के लिये यह बैल आपके पास छोड़ जाऊँ। इस तरह से कम से कम यह अपके अकेलेपन में आपके साथ रहेगा। उसने अपना बैल बुढ़िया के पास छोड़ा और वहाँ से चला गया।
बुढ़िया बैल को अपने केबिन में ले गयी और उसको अपने बिस्तर के सिरहाने बाँध दिया। उसको खाने के लिये कुछ भूसा दे कर वह फिर बाहर आ कर रोने लगी।
तभी एक हरकारा पास के शहर से अपने घोड़े पर सवार हो कर लौट रहा था कि वह उसके केबिन के सामने से गुजरा। उसने भी बुढ़िया को वहाँ रोते देखा तो उसने भी उससे पूछ लिया कि वह क्यों रो रही थी। उसने हरकारे को भी अपनी कहानी सुना दी।
हरकारा भी सुन कर परेशान हो गया कि वह उस बुढ़िया की सहायता कैसे करे फिर कुछ सोच कर बोला — “मुझे पता नहीं कि मैं आपके इस दुख में आपकी सहायता कैसे करूँ पर मैं यह घोड़ा आपके पास छोड़े जाता हूँ ताकि आपको सन्तुष्टि रहे।”
वह अपना घोड़ा छोड़ कर वहाँ से चला गया। उसने उस घोड़े को अन्दर ले जा कर अपने बिस्तर के पायताने बाँध दिया और सोचने लगी कि वह नीच अब उसके घर कैसे आयेगा। वह फिर से रोने लगी।
तभी एक लड़का अपने एक कछुए के साथ वहाँ आ गया जो उसने अभी अभी पकड़ा था। उसने बुढ़िया को रोते देखा तो उसने भी उससे पूछा कि वह क्यों रो रही थी। बुढ़िया ने उसको भी अपनी दुखभरी कहानी सुना दी। लड़का बोला — “आत्माओं से बचने का तो कोई तरीका नहीं हाँ मैं अपना यह कछुआ आपके पास छोड़ जाता हूँ।”
बुढ़िया ने उसका कछुआ लिया और उसको अपने बिस्तर के सामने बाँध दिया और बाहर आ कर फिर रोने लगी।
लड़के के बाद कुछ लोग चक्की लिये उधर से गुजरे और बुढ़िया से उसकी परेशानी के बारे में पूछा तो बुढ़िया ने उनको भी सब बता दिया।
उन्होंने भी कहा कि वे उसकी कोई सहायता नहीं कर सकते थे सिवाय इसके कि वे अपनी एक चक्की उसके पास छोड़ जायें। उन्होंने वह चक्की उसके घर के पीछे खिसका दी और चले गये।
बुढ़िया फिर घर के सामने बैठ कर रोने लगी। अबकी बार एक आदमी कुछ हल और कुल्हाड़ियाँ ले कर जा रहा था। उसने भी बुढ़िया को रोते देखा तो पूछा कि वह क्यों रो रही थी। उसकी दुखभरी कहानी सुन कर वह बोला कि मैं आपकी सहायता जरूर करता पर मैं तो केवल एक कुँआ खोदने वाला हूँ आपके लिये एक कुँआ खोद सकता हूँ।
बुढ़िया ने घर के पीछे उसको एक जगह दिखा दी तो वह वहाँ गया और जल्दी से एक कुँआ खोद दिया।
उसके जाने के बाद बुढ़िया फिर से रोने बैठ गयी। फिर एक कागज बेचने वाला आया और उससे पूछा कि वह क्यों रो रही थी।
बुढ़िया ने उसे बताया तो उसने उसको एक बहुत बड़ा सफेद कागज दे दिया। बुढ़िया ने उस कागज को सावधानी से कुँए के मुँह पर बिछा दिया।
रात आयी। बुढ़िया ने अपने केबिन का दरवाजा बन्द किया। अपनी पोती को बिस्तर के दीवार की तरफ वाले हिस्से में सुला दिया। खुद वह उसके पास लेट कर अपने दुश्मन का इन्तजार करने लगी।
आधी रात को सूअर आया और दरवाजे को खोलने के लिये उसमें अपने शरीर से धक्का मारा तो वहाँ लगीं सुइयों से उसका शरीर घायल हो गया।
सो जब वह घर के अन्दर घुसा तो उसको बहुत गर्मी लग रही थी और प्यास लग रही थी तो वह पानी के बर्तन के पास पानी पीने के लिये गया।
जैसे ही उसने अपनी थूथनी पानी पीने के लिये उसमें डाली तो केंकड़ों ने उसे काट लिया। वे उसके बालों पर चिपक गये और उसके कानों को नोचने लगे। उनको हटाने के लिये वह बेचारा जमीन पर लोटने लगा।
गुस्से के मारे वह बिस्तर की तरफ बढ़ा तो बिस्तर के सामने पहुँचते ही कछुए ने अपनी पूँछ उसे मार कर उसे पीछे जाने पर मजबूर कर दिया जिससे वह घोड़े के पैरों के पास पहुँच गया।
घोड़े ने उसको एक ठोकर मारी तो वह बैल के पास पहुँच गया। बैल ने उसे फिर से घोड़े की तरफ उछाल दिया। इस बीच वह वहाँ से बच निकलने में कामयाब हो गया। वह आराम करने के लिये और इन हालातों पर सोचने के लिये सीधा केबिन के पीछे की तरफ भाग गया।
वहाँ जा कर उसने देखा कि वहाँ तो एक साफ सफेद कागज बिछा हुआ है तो वह उसको देखने में बहुत अच्छा लगा। वह जा कर उस पर बैठ गया। पर यह क्या जैसे ही वह उसके ऊपर पहुँचा तो वह तो कुँए में गिर गया।
बुढ़िया ने उसके कुँए में गिरने की आवाज सुन ली तो वह तुरन्त भाग कर आयी और चक्की को उस कुँए में धकेल दिया। इससे वह कुचल कर मर गया।
यह कहा जाता है कि बिखरे हुए दूध पर क्या रोना। पर बुढ़िया का रोना तो काम कर गया। यह ठीक है कि उसको सूअर को खाने को नहीं मिला पर सूअर को उसकी बेटी भी तो खाने को नहीं मिली।
(साभार सुषमा गुप्ता जी, जिन्होंने लोक-कथाओं पर उल्लेखनीय काम किया है.)