डोरोथी और सेब का बीज : चीनी लोक-कथा

Dorothy and the Seed of Apple : Chinese Folktale

चीन के एक शहर में एक लड़की रहती थी। उसका नाम था डोरोथी। वह अकेली रहती थी और लोगों के कपड़े धो कर अपना गुजारा करती थी।

हफ्ते के आखीर में जब लोग उसे पैसा देते तब वह अपना खाने का सामान खरीदने जाया करती थी।

लेकिन वह अक्सर भूखी रहती थी। क्योंकि जब भी वह किसी दूकान से सामान खरीद कर बाहर निकलती तभी कोई न कोई भिखारी उसके सामने आ जाता और उससे खाना माँगता — “डोरोथी, मैंने आज सुबह से कुछ नहीं खाया, कल रात भी खाना नसीब नहीं हुआ। बहुत भूखा हूँ, कुछ खाने को दे दो।”

और डोरोथी जवाब देती — “हाँ हाँ, क्यों नहीं। तुम मेरे घर चलो मैं तुम्हें पेट भर खाना खिलाऊँगी।” और डोरोथी अपना खाना उस भिखारी के साथ बाँट लेती।

पर कभी कभी वह भिखारी इतना ज़्यादा खा जाता कि डोरोथी के लिये उसका बनाया खाना बहुत कम पड़ जाता और वह लगभग भूखी ही सो जाती।

एक दिन खूब धूप निकल रही थी। डोरोथी धूप में कपड़े सुखा रही थी कि उसने चीं चीं की आवाज सुनी। उसने इधर उधर देखा पर उसे कोई दिखायी नहीं दिया। फिर किसी जानवर की नन्हीं चीख सुनायी पड़ी।

फिर उसने सुना कोई कह रहा था — “डोरोथी, इधर देखो, मैं हूँ, जल्दी आओ मैं मर रही हूँ। मेरे पंख गिर रहे हैं और मेरा एक पंख तो टूट भी गया है। अब मैं फिर कभी नहीं उड़ सकूँगी, गा भी नहीं सकूँगी।”

और डोरोथी के पैरों के पास एक घायल चिड़िया आ कर गिर गयी। उसने उसे उठाया और अपने घर ले गयी।

चिड़िया ने कहा — “डोरोथी, तुम मुझे अपने पास रख लो। मुझे ठीक कर दो, मैं तुम्हें इसका बदला जरूर चुका दूँगी। मेरे पंख गिर रहे हैं और मेरा एक पंख भी टूट गया है। मुझे उड़ने और गाने के लायक बना दो डोरोथी।”

डोरोथी ज़ोर से बोली — “देखो, मैं तुम्हें ठीक तो कर दूँगी पर तुम मुझसे कभी बदले की बात नहीं करना। मुझे तो वही खुशी काफी है जब मैं तुमको उड़ते और गाते देखूँगी।”

उसने उस चिड़िया को पानी में भिगो कर डबल रोटी खिलायी, पानी पिलाया। उसका टूटा पंख ठीक किया। डोरोथी की उँगलियाँ इतनी नर्म थीं कि चिड़िया को उसके छूने से बिल्कुल भी तकलीफ नहीं हुई।

एक हफ्ते तक डोरोथी उसकी सेवा करती रही। एक दिन सुबह उठ कर उसने देखा कि चिड़िया की टोकरी खाली पड़ी थी। उसने खिड़की से बाहर झाँक कर देखा, सूरज चढ़ आया था, हवा शान्त थी और दूर कहीं कोई नन्हीं आवाज गा रही थी।

“डोरोथी, इधर देखो, मैं आकाश में उड़ती हुई तुम्हारे लिये गीत गा रही हूँ। तुमने मेरे पंख ठीक किये हैं इसलिये मैं अब उड़ सकती हूँ और गा सकती हूँ। तुमने रोज मुझे दाना पानी दिया मैं इसका बदला तुम्हें जरूर चुकाऊँगी।”

डोरोथी हँसी और बोली — “अरी ओ चिड़िया, मुझे कुछ भी देने की जरूरत नहीं है, मेरे लिये तो यही बहुत है कि तुम उड़ो और गाओ। पर अगर तुम्हें कभी भी मेरी जरूरत पड़े तो मुझे जरूर याद रखना।”

डोरोथी का पिछला हफ्ता चिड़िया की देख भाल में निकल गया था सो वह कपड़े ही नहीं धो पायी और इसलिये पैसे भी नहीं कमा पायी। और जब पैसा नहीं था तो खाना भी नहीं था। सो डोरोथी बेचारी बहुत भूखी थी।

उसने सारा दिन काम किया और सुस्ताने के लिये सीढ़ियों पर बैठ गयी।तभी उसने फिर चीं चीं की आवाज सुनी और एक चिड़िया उसकी गोद में सेब का एक बीज डाल गयी।

“डोरोथी, तुमने मेरे पंख ठीक किये थे न, इसी लिये अब मैं गा सकती हूँ, उड़ सकती हूँ। और मैंने कहा था न कि मैं इसका बदला जरूर चुकाऊँगी।

देखो तुम्हारी गोद में सेब का एक बीज पड़ा है। इसे तुम अभी बो दो, इसकी देखभाल करो, पानी दो। शायद यह तुम्हारा भाग्य बना दे।”

डोरोथी यह सोच कर हँसी कि यह सेब का बीज मेरा क्या भाग्य बनायेगा। पर वह चिड़िया के दिल को ठेस नहीं पहुँचाना चाहती थी।

सो उसने उस सेब के बीज को वहीं एक गड्ढा खोद कर गाड़ दिया, पानी दिया और पहचान के लिये एक डंडी भी गाड़ दी। फिर वह जा कर सो गयी।

अगली सुबह चिड़िया के गीत से उसकी आँख खुली — “डोरोथी डोरोथी, उठो, देखो मैंने तुम्हारा बदला चुका दिया है। आओ और अपने सेब इकठ्ठे कर लो।”

अबकी बार डोरोथी को गुस्सा आ गया। वह बिस्तर से ही चिल्लायी — “अरे तुम मुझसे मजाक क्यों कर रही हो? मैं सेब तोड़ने कहाँ जाऊँ? क्या बगीचे में?

अभी कल रात को ही तो मैंने सेब का बीज बोया था अभी उसमें सेब कहाँ से आ गये? अच्छा तुम कहती हो तो जाती हूँ।” कह कर वह बगीचे में दौड़ गयी। उसके आश्चर्य का ठिकाना न रहा जब उसने देखा कि जहाँ उसने पिछले दिन अपना सेब का बीज बोया था वहाँ तो भरा पूरा सेब का पेड़ खड़ा था जिस पर लाल लाल सेब लदे हुए थे।

चिड़िया फिर भी गाती रही। डोरोथी खुशी से भर गयी। उसने चिड़िया को धन्यवाद दिया और उस पेड़ से सुबह के नाश्ते के लिये उचक कर एक सेब तोड़ लिया।

वह सेब कुछ बड़ा भी था और भारी भी सो वह उसे सँभाल कर घर के अन्दर ले गयी और चाकू से उसके दो हिस्से कर दिये। पर यह क्या? जहाँ सेब के बीज होने चाहिये वहाँ तो हीरे, मोती, लाल और सोने के टुकड़े भरे हुए थे। डोरोथी ने ऐसा सेब पहले कभी नहीं देखा था। वह तो उस सेब को देखती ही रह गयी।

चिड़िया ने फिर गाया — “डोरोथी, जाओ, इन्हें बेच दो और अपना भाग्य बनाओ।” डोरोथी बहुत खुश हुई। उसके बाद से वह कभी भूखी नहीं रही। वह हमेशा गरीबों की मदद करती थी और भूखों को खाना खिलाती थी।

(साभार सुषमा गुप्ता जी, जिन्होंने लोक-कथाओं पर उल्लेखनीय काम किया है.)

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