Doodh Ka Katora Aur Chameli Ke Phool
दूध का भरा कटोरा और चमेली के फूल
मक्का, मदीना और बगदाद की यात्रा करते हुए गुरु नानक जी और मरदाना
अपने देश की ओर मुड़े । रास्ते में मुलतान शहर पड़ा । गुरुजी ने शहर के
बाहर एक बड़े पेड़ के नीचे अपना डेरा डाल दिया।
उस समय मुलतान पीरों, फ़कीरों, संतों, संन्यासियों का बहुत बड़ा केन्द्र था।
इस नगर में बड़े-बड़े पीर-फकीर और उनके चेले रहते थे।
जब उन्हें पता लगा कि गुरु नानक और मरदाना शहर के बाहर एक पेड़ के
नीचे अपना डेरा डाले हुए हैं तो वहां के बड़े पीर ने दूध का एक पूरा भरा
हुआ कटोरा उनके पास भेजा । कटोरा लेकर आने वाला व्यक्ति बोला"हमारे
पीर साहब ने यह दूध से भरा कटोरा आपके पास भेजा है।"
गुरुजी ने उस कटोरे को ध्यान से देखा । वह ऊपर तक भरा हुआ था। उसमें
और दूध डालने की कोई जगह नहीं थी। यह देखकर वे मुसकराये । बिना
कुछ बोले उन्होंने इधर-उधर देखा । पास में ही चमेली के फूलों का एक पौधा
था । गुरुजी ने चमेली के दो फूल तोड़े और उन्हें दूध के ऊपर रख दिया ।
वे बोले-"भाई, दूध का कटोरा भेजने के लिए पीर साहब से हमारा शुक्रिया
कहना । अब आप उन्हें जाकर मेरी ओर से यह कटोरा दे दीजिए।"
कटोरा लेकर आने वाला व्यक्ति बिना कुछ और बोले दुध से भरा कटोरा,
जिस पर चमेली के दो फल तैर रहे थे, लेकर वापस चला गया ।
पास बैठा मरदाना यह सब कुछ देख रहा था । दूध से भरा कटोरा देख कर
वह मन ही मन बहुत खुश हुआ था। परन्तु कटोरा उसी तरह वापस जाते
देखकर उसे बड़ी निराशा हुई। उसने पूछा-
"गुरुजी, मेरी कुछ समझ में नहीं आया। पहली बात तो, यही मेरी समझ में
नहीं आयी कि मुलतान के बड़े पीर ने आपके पास दूध से भरा कटोरा क्यों
भेजा ? दूसरी बात, आपने दो चमेली के फूल रखकर उसे वापस क्यों कर
दिया ?"
गुरुजी उसकी बात सुनकर हँसे और बोले-"भाई मरदाने, पीर साहब का दूध से
भरा कटोरा भेजने का मतलब यह था कि इस नगर में पीर-फकीर इस तरह
भरे हुए हैं, जैसे इस कटोरे में दूध । जैसे इस कटोरे में और नहीं आ सकता
वैसे ही इस नगर में किसी और साधु-संन्यासी के लिए जगह नहीं है।"
"और आपने चमेली के फूल डालकर वह कटोरा वापस क्यों कर दिया आपका
मतलब क्या था ?" मरदाने ने पूछा।
"हमारा मतलब था-" गुरु जी ने समझाते हुए कहा-"हम इस नगर में इसी
तरह रहेंगे जैसे ये फूल इस दूध के कटोरे पर हैं। हमारे कारण किसी को कोई
कष्ट नहीं होगा।"
(डॉ. महीप सिंह)