दो ठग : बुंदेली लोक-कथा
Do Thag : Bundeli Lok-Katha
दो ठग थे। एक का नाम था गुमान और दूसरे का नाम था खुमान।
जिस गाँव के ठग थे, उसी के पड़ौसी गाँव में एक गौना होकर आया था। चर्चा थी कि नवागत बहू गहनों से लदी है। बहू के पिता ने गौने में भेंट में ढेर सारी सामग्रियाँ दी हैं।
ठगों ने इसी घर को अपना निशाना बनाने का निश्चय किया।
गुमान ने खुमान से कहा कि तुम औंढा लगा कर घुसना और घर का सामान-सट्टा चुराना। मैं वेश बदलकर अंदर जाऊँगा, तुम्हें सावधान करता रहूँगा और बाद में मैं ही नवागत बहू के जेवर ठगूंगा।
दोनों अपने अपने काम पर लग गए।
देर रात गुमान स्त्री का वेश धारण कर उत्सव वाले घर पहुँचा। घर के बाहर पुरुष या तो सो चुके थे या फिर चुपचाप लेटे हुए थे। घर के अंदर नवागत बहू की खुशी में गाना-बजाना चल रहा था; सभी महिलाएँ उसी मेँ मशगूल थीं। स्त्री वेश में गुमान महिलाओं में घुस कर बैठ गया। गाने-बजाने में डूबी महिलाओं ने पहले तो ध्यान ही नहीं दिया पर जब बहू की सास का ध्यान गया तो उसने पूछा कि बहिन आप कौन हैं, कहाँ से आईं हैं।
गुमान-हाय राम ! परवतिया तू मोय भूल गयीं।
(माथा पीट कर)-परवतिया, तेरी गलती नहीं है। मेरे ही करम खराब हैं। जबसे तेरे जीजा मरे हैं तब से तेरे घर आ ही नहीं पाई। अब आज बिटवा के गौने का पता चला तो बिन बुलाए चली आई। तेरे जीजा क्या मरे, तूने तो बुलाना ही छोड़ दिया, पहले तो खूब आना-जाना था।
अबहुँ नइ पहचानों परवतिया? अरे मैं तो तेरे मामा के ममेरे भाई की बिटिया गोमतिया हूँ। हम तुम तो तेरे ममाने मेँ खूब संग संग खेले हैं। नेक सुर्त तौ कर।
सास- हाय जिजी भूल हुइ गयी। का करें बुढापौ है।क्षिमा करौ जिजी।
गुमान- कछू बात नइयां। चलौ गाव -बजाव।
सास-जिजी तुमऊ गाय ले कछू।
गुमान तो यही चाहता था ताकि किसी बहाने वह खुमान को सावधान करता रहे।
गुमान ने गाना शुरू किया-
"ऐसौ बिलकवा करियो रे खुमना, जामें छबुला अरेरां चले जाँय।"
सभी महिलाएँ हँसने लगीं। मौसी यह कैसा गाना है।
मौसी(गुमान)-अरे बहुएँ, बिटियाँ हौ ! यह दादरा है। हमाये जमाने मेँ तो ऐसेइ दादरे गवत्ते।
उधर, यह गाना सुनकर खुमान जान गया, कि सब व्यस्त हैं। अब औंढा लगा कर घुसने का सही वक्त है।
मौसी का गाना चलता रहा-
"ऐसौ बिलकवा करियो रे खुमना, जामें छबुला अरेरां चले जाँय।"
"वर्तन ले अइयो, भांडे ले अइयो, गोझा और लडुआ छूटन न पांय।"
इस संकेत से खुमान निश्चिंत होकर दीवाल खोद कर घर में घुस आया और सामान चुरा चुरा कर अपने ठिकाने पर पहुँचाता रहा।
संयोग कि कुछ ही देर में बहू को "बाहर" (दीर्घ शंका)जाने की हाजत हुई। अधिक रात होने से प्रायः सभी बहुएँ बिटियाँ बहू को "बाहर" के लिए बाहर ले जाने में अलसाने लगीं। सास को भरा-पूरा घर अकेला छोड़कर बाहर जाना उचित न लगा। सो वह गुमान से बोली जिजी कोउ नईं जाय रओ तौ नैक तुमइँ लिबाइ जओ बहू को।
गुमान तो यही चाहता था। मन की बात पूरी हुई। वह बहू को खेतों की ओर दूर ले गया। वहाँ जाकर बहू से कहा कि ऐसे में जेबर छोत के हो जाते हैं। इसलिए सारे जेबर उतार कर मुझे दे दो। घर चलकर हाथ-पैर धोकर फिर पहिन लेना।
बहू समझती थी कि मौसी हैं सो झाँसे में आ गयी। पूरे जेबर उतार कर मौसी को दे दिए। मौसी ने कहा कि अरहर के इस खेत में अंदर चली जाओ। जरा काफी अंदर जाना क्योंकि भुनसारा होने वाला है सो इस मेंड़ पर से लोगों की आवाजाही हो सकती है।
मौसी-सास का तर्कसंगत कहना मानकर बहू अरहर के खेत में दीर्घ शंका के लिए अंदर चली गयी।
उधर बहू खेत में गयी इधर मौसी जेबर लेकर चम्पत।
जब बहू और मौसी काफी देर तक घर नहीं लौटे तो सभी को चिंता हुई। फिर चिंता आशंका में बदली तो सब स्त्री-पुरुष खोजबीन में निकले। "हार"(कृषि क्षेत्र) में काफी दूर उन्हें बहू रोती हुई मिली। मौसी का कहीं पता ठिकाना नहीं। जब बहू ने पूरा हाल सुनाया तब सभी की समझ में आया कि वे ठगे जा चुके हैं। घर आकर छानबीन की , औंढा देखा, सामान गायब देखा तब यह भी अनुमान लगाया गया कि ठग एक नहीं दो थे।
(साभार : डॉ आर बी भण्डारकर)