Do Dhruva (Hindi Story) : Ramdhari Singh Dinkar

दो ध्रुव (कहानी) : रामधारी सिंह 'दिनकर'

एक दिन महात्मा ईसा मसीह कहीं जा रहे थे कि उन्होंने देखा, उनके एक शिष्य का बाप मर गया है और वह उसकी लाश को रो-रोकर दफना रहा है। गुरु को देखकर वह दौड़कर आया तो, मगर, आस्तीन चूमकर फिर तुरंत कब्र की ओर वापस चला गया।
गुरु को यह बात अच्छी नहीं लगी, इसलिए, शिष्य को सचेत करते हुए उन्होंने कहा, ‘‘जो मर गया, वह भूत का साथी हो गया। लाश के साथ लिपट कर तू क्यों वर्त्तमान से दूर होता है ? यह समय बहुत लंबा है और इसने बहुत-सी लाशों को जनत से दफना रखा है। तेरे बाप की लाश उसके लिए कुछ बहुत भारी नहीं पड़ेगी। भूत की खबर अब भूत को लेने दे और तू सीधे मेरे साथ चल।’’
शिष्य लाश को छोड़कर गुरु के साथ हो गया।
अजब संयोग कि थोड़ी दूर चलने पर ईसा का दूसरा शिष्य भी उन्हें इसी अवस्था में मिला। उसका भी बाप मर गया था और वह भी अपने बाप की लाश को दफना रहा था। किन्तु गुरु पर उसकी ज्योंहि दृष्टि पड़ी, वह कब्रिस्तान से भागकर उनके पास आ गया और उनके साथ चलने का हठ करने लगा। परन्तु गुरु ने उससे हँसते हुए कहा, ‘‘ऐसी भी क्या जल्दी है ? लाश को दफना कर आओ। मैं आगेवाले गाँव में ठहरनेवाला हूँ।’’
एक ही अवस्था में दो प्रकार के उपदेश सुनकर ईसा के शिष्य मैथ्यू कुछ घबराये और उन्होंने महात्मा ईसा से इसका कारण जानना चाहा।
ईसा बोले-‘‘जीवन की धारा किसी एक घाट में बाँधी नहीं जा सकती। उपदेश जब यह कहता है कि मैं आ गया, अब दूसरे को मत आने दो, तब वह लोहे की श्रृंखला बन जाता है और आदमी का सच्चा बंधन लोहे की कड़ी नहीं, रेशम का तार है।
और मैथ्यू, मैं जो कुछ बोलता हूँ, वह मेरी ही आवाज है, चाहे वह मेरे भीतर के उत्तरी ध्रुव से आती हो या दक्षिणी ध्रुव से। आत्माओं की भी अलग-अलग ऋतुएँ होती हैं, और जिस ऋतु में उन्हें जिस चोटी पर की आवाज सुनायी पड़ती है, उस ऋतु में मैं उसी चोटी पर से बोलता हूँ।
इसलिए, मैथ्यू, जो राग में फँसा है, उसे विराग सिखलाओ। किन्तु, जो वैरागी हो चुका है, उसे रागों से अलग रहने का उपदेश तो निरर्थक उपदेश है।’’

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